अ.४. ३. अधिक मात्रा में प्रतियाँ बनाना

यदि आप दस्तावेज़ की १०० से अधिक छपी हुई प्रतियाँ प्रकाशित करते हैं, और दस्तावेज़ की अनुमति सूचिका के अनुसार आवरण लेख आवश्यक हैं, तो प्रतियों के साथ आवरण लेख के साथ होने चाहिये: अग्र आवरण लेख अग्र आवरण पर, और पृष्ठ आवरण लेख पृष्ठ आवरण पर। दोनों आवरणों पर स्पष्ट रूप से आपके इन प्रतियों के प्रकाशक होने का सङ्केत होना चाहिये। अग्र आवरण पर पूरा शीर्षक प्रस्तुत होना चाहिये, शीर्षक के सभी शब्द एक समान हों और अच्छी तरह नज़र आयें। आप शीर्षक पर और मसला भी डाल सकते हैं। जब तक परिवर्तन केवल आवरणों में हों, दस्तावेज़ के शीर्षक को बदले बिना, और अन्य शर्तों को मानते हुए हो, तो अन्य मामलों में शब्दशः प्रति बनाने की शर्तें ही लागू होंगी।

यदि किसी भी आवरण के लिये आवश्यक मसला पढ़ने लायक हालत में पन्नों पर बैठने लायक होने के हिसाब से बहुत ज़्यादा हो, तो आपको पहले लिखा मसला (जितना आराम से आ जाये) आवरण पर डालना होगा, और बाकी मसला अगले पन्नों पर जारी रखें।

यदि आप दस्तावेज़ की १०० से ज़्यादा अपारदर्शी प्रतियाँ प्रकाशित या वितरित करते हैं, तो या तो आपको हरेक अपारदर्शी प्रति के साथ एक यन्त्रपठनीय प्रति पारदर्शी प्रति भी शामिल करनी होगी, अन्यथा प्रत्येक अपारदर्शी प्रति में (या उसके साथ) एक सार्वजनिक रूप से प्रवेश्य सङ्गणक-जाल पर एक स्थान का विवरण होना चाहिये जहाँ सम्पूर्ण दस्तावेज़ की पारदर्शी प्रति, बिना किसी अन्य मसले के साथ उपलब्ध हो। यहाँ से दस्तावेज़ को गुमनामी के साथ निःशुल्क, आम मानक वाले जाल नयाचार के तहत अधिभारण करने की सुविधा होनी चाहिये। ऐसी स्थिति में जब आप अपारदर्शी प्रतियों को अधिक मात्रा में वितरित करते हैं, तो इस बात का प्रबन्ध करना होगा कि यह पारदर्शी प्रति अन्तिम अपारदर्शी प्रति (स्वयम् या अपने दलालों अथवा फुटकर विक्रेताओं की मदद से) जनता को वितरित करने के बाद एक साल तक अभिगम्य हो।

आप से अनुरोध किया जाता है (लेकिन यह लाजिमी नहीं है) कि अधिक सङ्ख्या में पुनर्वितरित करने से पहले आप दस्तावेज़ के लेखकों से आप सम्पर्क कर लें ताकि उनके पास आपको परिवर्तित या संशोधित दस्तावेज़ प्रदान करने का मौका रहे।

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