इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे

इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे।
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में॥

प्राण मेरे सूर्य मंडल में, प्रभा बन जगमगाते।
प्राण मेरे शून्य के शशि, तारकों में झिलमिलाते॥
प्राण की मदिरा पिये, दिन-रात पृथ्वी झूमती सी।
वायु बनकर प्राण मेरे, व्योम को सिर पर उठाते॥
है हुई उत्पन्न मुझसे, ही सकल हलचल जगत की।
विश्व की चैतन्यता है, प्राण की पहचान मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे।
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में॥

प्राण मैं अपने सरित सर, सागरों में देखता हूँ।
प्राण मैं अपने विपिन गिरि, गह्वरों में देखता हूँ॥
योनियों में लाख चौरासी, बना बन्दी पड़ा मैं।
प्राण मैं निज व्योम जल-थल, चर नरों में देखता हूँ॥
सृष्टि के आरम्भ से ही, हर दिशा में हर तरफ से।
प्राण की झंकार आती, सुन रहे हैं कान मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे।
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में॥

दीन-दुखियों की व्यथा है, वेदना मेरे हृदय की।
चिर वियोगिनि की कथा है, वेदना मेरे हृदय की॥
है सबल का विश्व साथी, किन्तु दुर्बल का न कोई।
मानवों की यह प्रथा है, वेदना मेरे हृदय की॥
हँस कभी पाया न सुख से, मैं अमर सहचर दुःखों का।
सिसकियाँ भरते इसी से, अश्रु सिंचित गान मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे।
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में॥

सभ्यताएँ लुट चुकी हैं, उच्च उन्नति के शिखर पर।
जातियाँ सोई अनेकों, जागरण के गीत गाकर॥
आज के नृप-राज सम्भव, हैं बने कल के भिखारी।
पी सका अमरत्व का विष, कौन किस्मत का सिकन्दर॥
हैं सृजन-विध्वंस मेरे, भाग्य की लिपि में लिखे से।
खूब देखे हैं समय ने, सब पतन-उत्थान मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे।
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे॥
इस अखिल ब्रह्माण्ड में॥