इन्सान मेरा देवता

मैं चाहती अगणित स्वरों में, विश्व को यह दूँ बता।
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥

रवि के प्रबल तम ताप ने, श्रम को पसीना कर दिया।
हर किरण ने हर बूँद ने, जीवन धरा पर भर दिया॥
वह मूर्ति पौरुष की बने, चिर अर्चिता॥
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥

घनघोर तप की धार से, कुविचार का लोहा कटा।
सद्भाव की शुभ ज्योति से, युग का भयानक तम कटा॥
इस साधना से भाग्य युग का बदलता॥
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥

पुरुषार्थ अब जुड़ने लगा, शुभ कर्म से प्रकार्य से।
भगवान अब क्यों दूर होगा, लोक और समाज से॥
देवत्व का ही नाम होगा, मनुजता॥
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥