हो ईश्वर के अंश, आत्म-विश्वास जगाओ रे

हो ईश्वर के अंश, आत्म-विश्वास जगाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥

दीन-हीन बनकर क्यों अपना, साहस खोते हो।
क्यों अशक्ति - अज्ञान - अभावों, को ही रोते हो॥
जगा आत्म-विश्वास, दैन्य को दूर भगाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥

आत्म-बोध के बिना, सिंह-शावक सियार होता।
आत्म-बोध होने पर, वानर सिंधु पार होता
आत्म-शक्ति के धनी, न कायरता दिखलाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥

जिसके बल पर नैपोलियन, आल्पस से टकराया।
जिसके बल पर ही प्रताप से, अकबर घबराया॥
उसके बल पर अपनी बिगड़ी, बात बनाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥

सेनापति के बिना न सेना, लड़ने पाती है।
सेनापति का आत्म-समर्पण, हार कहाती है॥
गिरा आत्मबल जीती बाजी, हार न जाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥

आज मनुजता अनगिन साधन की, अधिकारी है।
बिना आत्म-विश्वास मनुजता, किन्तु भिखारी है॥
अरे! आत्म-बल की पारस मणि, तनिक छुआओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥

अडिग आत्म-विश्वास मनुज का, रूप निखरेगा।
उसका सम्बल मनुज धरा पर, स्वर्ग उतारेगा॥
उसके बल पर जो भी चाहो, कर दिखलाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम, कंगाल कहाओ रे॥