हे प्रभु! मानव हृदय को, गगन सा विस्तार दे दो

हे प्रभु! मानव हृदय को, गगन सा विस्तार दे दो।
मानवों को मानवों के, प्रति असीमित प्यार दे दो॥

सीख जाएँ कष्ट से रोते हुए, जन को हँसाना।
दीन हीनों को उठाकर, प्यार से उर से लगाना॥
जो कभी खाली न हो, सद्भाव का भण्डार दे दो॥
हे प्रभु मानव हृदय को . . . . . .

भेद हम माने नहीं, छोटे-बड़े ऊँचे-गिरे का।
साथ दें बढ़कर सदा, संकट मुसीबत में घिरे का॥
खोल दो समदृष्टि, चिन्तन को यही आधार दे दो॥
हे प्रभु! मानव हृदय को . . . . .

प्रेम के मृदु सूत्रों में, बँध जाये धरती के निवासी।
हृदय में सबके खिली हो, भावना की पूर्णमासी॥
मेट दो सब दम्भ मन का, शील का उपहार दे दो॥
हे प्रभु मानव हृदय को . . . . . . .

तोड़ दो संकीर्णता के, बन्ध जो मन पर लगे हैं।
मेट दो वह द्वेष-ईर्ष्या, हम सभी जिसमें पगे हैं॥
मेट कर दुष्वृत्ति की, दुनियाँ नया संसार दे दो॥
हे प्रभु! मानव हृदय को . . . . . . . .

अस्त हो जाये घृणा की, दुःखद भीषण रात काली।
और ऊगे प्यार की, मंगलमयी सुप्रभात लाली॥
खिल उठें मन के कमल, हमको वही व्यवहार दे दो॥

हे प्रभु! मानव हृदय को, गगन सा विस्तार दे दो।
मानवों को मानवों के, प्रति असीमित प्यार दे दो॥