हे देव तुम्हारी पीड़ा का, मैं अश्रु बनूँ ढलती जाऊँ

हे देव तुम्हारी पीड़ा का, मैं अश्रु बनूँ ढलती जाऊँ।
बन पुष्प तुम्हारे सौरभ को, सारी जगती में बिखराऊँ॥

मेरे मन के दर्पण में प्रभु, प्रतिबिम्ब तुम्हारा सदा रहे।
हर भाव तुम्हारा अर्चन हो, हर क्षण अन्तर में रूप बसे॥
देखूँ स्वरूप बस तेरा ही, तुझको ही जन-जन में पाऊँ॥
हे देव तुम्हारी पीड़ा का, मैं अश्रु बनूँ ढलती जाऊँ।
बन पुष्प तुम्हारे सौरभ को, सारी जगती में बिखराऊँ॥

हे करुणा सिंधु-दयासागर, मुझमें वह दर्द जगा देना।
पी सकूँ हलाहल जन-हित में, वह करुणा धार बहा देना॥
तेरे मुरझाये उपवन को, बन स्नेह स्रोत मैं सरसाऊँ॥
हे देव तुम्हारी पीड़ा का, मैं अश्रु बनूँ ढलती जाऊँ।
बन पुष्प तुम्हारे सौरभ को, सारी जगती में बिखराऊँ॥

शुभ ज्योति जलाई जो तुमने, अपने जीवन की बाती से।
आलोक लुटाया जीवन भर, गाये शुभ गान प्रभाती के॥
बन शलभ तुम्हारी ज्योति में, तन-मन-धन आज चढ़ा जाऊँ॥
हे देव तुम्हारी पीड़ा का, मैं अश्रु बनूँ ढलती जाऊँ।
बन पुष्प तुम्हारे सौरभ को, सारी जगती में बिखराऊँ॥

हो सके समर्पण वह मेरा, हर साध्य तुम्हारा लक्ष्य रहे।
तेरी चाहों में, सपनों में, हर क्षण अर्पित सर्वस्व रहे॥
अभिनव अंकुर को सींच सकूँ, हिम भी हूँ तो गलती जाऊँ॥
हे देव तुम्हारी पीड़ा का, मैं अश्रु बनूँ ढलती जाऊँ।
बन पुष्प तुम्हारे सौरभ को, सारी जगती में बिखराऊँ॥