हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्

हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्, हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्।
महामन्त्र है तू जपा कर इसी को, महामन्त्र है तू जपा कर इसी को।।
हरि ओ३म तत्सत् हरि ओ३म तत्सत्, हरि ओ३म तत्सत् हरि ओ३म तत्सत्।।

दुष्टों ने लोहे का खम्भा रचा था, तो निर्दोष प्रह्लाद क्यों बचा था।
विनय एक स्वर से करी थी उसी ने।।
हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्, हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्।
महामन्त्र है तू जपा कर इसी को, महामन्त्र है तू जपा कर इसी को।।

सभा में खड़ी द्रौपदी रो रही थी, लज्जा के आँसुओं से मुख धो रही थी।
बढ़ा चीर उसमें यही रंग रंगा था।।
हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्, हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्।
महामन्त्र है तू जपा कर इसी को, महामन्त्र है तू जपा कर इसी को।।

लगी आग लंका में हलचल मचा था, तो घर फिर विभीषण का कैसे बचा था।
लिखा था यही मन्त्र कुटिया में उसके।।
हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्, हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्।
महामन्त्र है तू जपा कर इसी को, महामन्त्र है तू जपा कर इसी को।।

हलाहल का मीरा ने प्याला पिया था, तो विष से वो अमृत कैसे हुआ था।
दीवानी भी मीरा इसी नाम की थी।।
हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्, हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्।
महामन्त्र है तू जपा कर इसी को, महामन्त्र है तू जपा कर इसी को।।

कहो नाथ शबरी के घर कैसे आये, आये तो फिर बेर जूठे क्यों खाये।
जबाँ में यही था हृदय में यही था।।
हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्, हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्।
महामन्त्र है तू जपा कर इसी को, महामन्त्र है तू जपा कर इसी को।।

हरि ॐ की एक माला बनाकर, जपो रात दिन अपने चित्त को लगाकर।
करो साधना हर समय तुम इसी की।।
हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्, हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्।
महामन्त्र है तू जपा कर इसी को, महामन्त्र है तू जपा कर इसी को।।