घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना

घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना।
घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना॥

रग-रग में वह रोम-रोम में, वह धरती में और व्योम में।
जड़-चेतन में व्याप्त वही है, निर्मल मन में प्राप्त वही है॥
बूँद-बूँद में, सागर में है, तुम उसका वन्दन कर लेना॥
घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना॥

पतझर है वीरान उसी से, मधु ऋतु की मुस्कान उसी से।
सावन घन उससे ही झरते, सूखे ताल-सरोवर भरते॥
वह कल-कल जल निर्झर में है, मन अपना पावन कर लेना॥
घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना॥

जग में जो उत्थान-पतन है, जो कुछ होता परिवर्तन है।
सुबह-शाम का वह कारण है, सब उसका ही अनुशासन है॥
वही चाँद में दिनकर में है, पल भर तुम चिन्तन कर लेना॥
घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना॥

पाहन है चट्टान वही है, किन्तु सुगम आसान वही है।
हिम-शिखरों की शान उसी से, सरिता है गतिवान उसी से॥
श्रमिकों के श्रम सीकर में है, उसका ही पूजन कर लेना॥
घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना॥

वह सबका पोषक-पालक है, वह जगती का संचालक है।
महाकाल से मन को जोड़ो, छोड़ो तुम हठ-धर्मी छोड़ो॥
सबका हित प्रभु के स्वर में है, उसपर मन अर्पण कर देना॥
घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना॥