दुःखी चरण लम्बी मंजिल से, लेकिन तनिक नहीं कतराया

दुःखी चरण लम्बी मंजिल से, लेकिन तनिक नहीं कतराया।
ढूँढ़-ढूँढ़कर हार गया पर, मैंने तेरा पता न पाया॥

आतुर लोचन लिए पन्थ में, बैठा हूँ चिर साधक तेरा।
तिमिरा छिन्न हुआ यह जीवन, छाया है अवसाद घनेरा॥
है तुझसे मिलने की आशा, तेरे दर्शन की अभिलाषा।
अजर-अमर विश्वास लिए हूँ, तो भी जी मेरा अकुलाया॥
ढूँढ़-ढूँढ़कर हार गया पर, मैंने तेरा पता न पाया॥

यदि क्षण-भर भी पा जाता मैं, तेरा प्यार विकल जीवन में।
रह न सकेगी कंचन काया, वसुधा के विस्तृत अंचल में॥
भाव-भक्ति है बढ़ती जाती, नीर बिन्दु आँखें बरसाती।
जर्जर तन है दुःखमय जीवन, मैं तो जगती से उतकाया॥
ढूँढ़-ढूँढ़कर हार गया पर, मैंने तेरा पता न पाया॥

तेरा दर्शन मिले अगर तो, इस जग का संहार मिटाऊँ।
तेरी करुणामय छवि जन-जन, के मन मन्दिर में बिठलाऊँ॥
होकर निडर अकेला चल दूँ, घर-घर प्रज्ञा ज्योति जलाने।
दिखला दूँ सारी दुनियाँ को, हर प्राणी में वही समाया॥
ढूँढ़-ढूँढ़कर हार गया पर, मैंने तेरा पता न पाया॥

दानवपन जग ने अपनाया, यह मुझको अब नहीं सुहाता।
मैं तो विह्वल हुआ जगती में, चैन नहीं कुछ मन में पाता॥
सहता हूँ अब भी आघातें, बीत चुकी कितनी ही रातें।
गिन-गिन तारे नील गगन के, आँखों से था नीर बहाया॥
ढूँढ़-ढूँढ़कर हार गया पर, मैंने तेरा पता न पाया॥

दुःखी चरण लम्बी मंजिल से, लेकिन तनिक नहीं कतराया।
ढूँढ़-ढूँढ़कर हार गया पर, मैंने तेरा पता न पाया॥