दीप हूँ जलता रहूँगा

दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अन्त तक लड़ता रहूँगा ।।


पार जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है।
जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।।
कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गए हैं ।
हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।।

दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अन्त तक लड़ता रहूँगा ।।


तोड़ दी अवरोध की सारी, शिलाएँ एक क्षण में ।
मैं धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।।
शीत वर्षा और आतप कर, न पाये क्षीण गति को।
बिजलियों की कौंध में भी, पन्थ गढ़ता ही रहूँगा।।

दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अन्त तक लड़ता रहूँगा ।।


कर लिया विषपान शिव हूँ, मृत्यु मेरा क्या करेगी।
मैं स्वयं जय हूँ, पराजय फिर मुझे क्यों कर वरेगी॥
बन स्वयं वरदान मैंने श्राप को दे दी चुनौती।
हूँ स्वयं संकल्प पथ पर सतत बढ़ता ही रहूँगा ॥

दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अन्त तक लड़ता रहूँगा ।।