देख खुला है द्वार पुजारी

देख खुला है द्वार पुजारी, देख खुला है द्वार पुजारी।
बैठ गया क्यों फेंक धूल में, फूलों का यह हार पुजारी॥

स्वर्ण कमल से खिले हुए हैं, मंदिर के वे कलश मनोहर।
मृदुल पवन के शुभ अंचल में, फहर रहा पावन ध्वज सुंदर॥
नयन मूद तू सोच रहा क्या, देख तनिक उस पार पुजारी॥

क्या सहलाता इन छालों को, तू पूजा का थाल उठा ले।
देख रहा तू क्या पथ पर ये, पर्वत ये नदिया ये नाले॥
शीतल हो जाएँगे क्षण में, ये जलते अंगार पुजारी॥

भाव प्रवाह उमड़ने दे तू, लहराने दे पावन सागर।
मिल जायेगीं नदियाँ उसमें, डूबेंगे नभचुम्बी गिरिवर॥
रुक न सकी है अब तक जग में, शुद्ध प्रेम की धार पुजारी॥

थाल सजाए आज जा रहा, तू जिसकी पूजा करने को।
आयेगा वह स्वयं दौड़कर, तुझसे पथ में ही मिलने को॥
गूँथ हृदय के पुष्प तुझे वह, पहनाएगा हार पुजारी॥