बिना दर्शन किए तेरे, नहीं दिल को करारी है

बिना दर्शन किए तेरे, नहीं दिल को करारी है।
बिना दर्शन किए तेरे, नहीं दिल को करारी है॥

कमल ज्यों नीर बिन सूखे, पपीहा ध्वनि पुकारी है।
बिना जल मीन नहीं जीवे, वही गति अब हमारी है॥

नहीं है और की इच्छा, तेरा ही नाम कारी है।
फिरा दृग दे इधर को तू, यही विनती हमारी है॥

भला कैसे हो हा सारी, मिटी श्रुतबोधनी विद्या।
बढ़ा दे फेर इसको अब, यही उर आस धारी है॥

न देखूँ जब तलक तुझको, मुझे जीना भी भारी है।
मुझे दर्शन दिखा दे क्यों, वृथा सुध-बुध बिसारी है॥

नहीं हम मान के भूखे, नहीं दौलत पियारी है।
फक्त चाहे शरण तेरी, ‘निदाँ’ ने यों पुकारी है॥