भले ही कहीं राह दिखती नहीं है

भले ही कहीं राह दिखती नहीं है।
रुके पग, थकी बाँह उठती नहीं है॥
अगर पास मेरे जो, आ जाओगे।
तो जीवन नया एक, पा जाओगे॥
भले ही कहीं राह.....

अभी तक स्वयं को, नहीं जान पाये।
हम भी भले ही न, पहचान पाये॥
मगर हम तो हरदम, बुलाते रहे हैं।
दुलारी है तुमको, जगाते रहे हैं॥
अगर एक भी शब्द, सुन पाओगे।
सही लक्ष्य की राह, पा जाओगे॥
भले ही कहीं राह.....

खनक स्वर्ण की सुन, अघाते नहीं हो।
हृदय पक्ष को देख, पाते नहीं हो॥
दुःखी प्यार की प्यास, से हो रहे तुम।
तुम्हें प्यार से थपकियाँ, दे रहे हम॥
यही भाव हमसे, मिला पाओगे।
तो अमृत सुधा सिक्त, हो जाओगे॥
भले ही कहीं राह.....

तुम्हें विष भरे घट, सुहाते रहे हैं।
अमृत घट लिए हम, बुलाते रहे हैं॥
बढ़ो खुद पिओ बाँट, दो और सबको।
समय चूकने पर न, पाओगे हमको॥
समय पर जो साहस, जुटा पाओगे।
तो अनुदान अनमोल, पा जाओगे॥
भले ही कहीं राह.....