भगवान बसो इस मन में तुम, यह मन देवालय हो जाये

भगवान बसो इस मन में तुम, यह मन देवालय हो जाये।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।

जो कुछ जीवन में पायें हम, देने का भाव जगाएँ हम।
ले ले कर संचय करने की, दुष्वृत्ति नहीं अपनायें हम।।
दैवी गुण से भर कर जीवन, ईश्वर का परिचय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।

मन में न कहीं दुर्भाव भरे, सबके प्रति ही सद्भाव भरे।
हो दृष्टि हमारी विस्तृत फिर, पथ हों न कहीं भटकाव भरे।।
हर कोना आलोकित होवे, ऐसा अरुणोदय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।

ईश्वर के सुन्दर उपवन में, कर्तव्य करें हम हर क्षण में।
उलझें न कहीं हम संशय के, अँधियारे से कंटक वन में।।
आस्था विश्वास जगे ऐसा, हर पग फिर निर्भय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।

सीधा-सादा सा जीवन हो, अम्बर सा मन का आँगन हो।
छल सकें न हमको व्यसन कभी, जन-जन के प्रति अपनापन हो।।
सन्तोष सादगी का जीवन, सुख-साधन अक्षय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।