बन्धनों से प्रीति कैसी?

बन्धनों से प्रीति कैसी? बन्धनों से प्रीति कैसी?
बन्धनों से प्रीति कैसी? बन्धनों से प्रीति कैसी?

हम शलभ जलने चले हैं, अस्तित्व निज खोने चले हैं।
दीप पर जलना हमें है, दाह से फिर भीति कैसी?
बन्धनों से प्रीति कैसी? बन्धनों से प्रीति कैसी?

सिन्धु से मिलने चले हैं, सर्वस्व निज देने चले हैं।
अटल से मिलना हमें है, शून्य तट पर दृष्टि कैसी?
बन्धनों से प्रीति कैसी? बन्धनों से प्रीति कैसी?

दीप बन जलना हमें है, विश्वतम हरना हमें है।
ध्येय तिल- तिल जलन का है, कालिमा से भीति कैसी?
बन्धनों से प्रीति कैसी? बन्धनों से प्रीति कैसी?

आधार ही बनना हमें है, नींव में रहना हमें है।
ध्येय जब यह बन चुका है, कीर्ति में आसक्ति कैसी?
बन्धनों से प्रीति कैसी? बन्धनों से प्रीति कैसी?