बंदे तू औरों के काम नहीं आया

बंदे तू औरों के काम नहीं आया।
माटी के मोल गई कंचन सी काया।।

केवल सुख-साधन में जिंदगी बिताई।
मन की पर शान्ति कहीं एक पल न पाई।।
मुट्ठी पर पुण्य न इस देह से कमाया।
कर्मों पर रही सदा स्वारथ की छाया।।
तूने बस पापों का ढेर ही लगाया।
परहित का पन्थ नहीं मन से अपनाया।।

बंदे तू औरों के काम नहीं आया।
माटी के मोल गई कंचन सी काया।।

अपने हित-चिन्तन में सोया और जागा।
उसके ही लिए यहाँ दर-दर तू भागा।।
स्वार्थ भरे सपनों में बीत गई रातें।
करते तुम रहे सदा ब्रह्म भरी बातें।।
बेचैनी, दौड़-भाग, भ्रम ने भटकाया।
तूने अनमोल जनम व्यर्थ ही गँवाया।।

बंदे तू औरों के काम नहीं आया।
माटी के मोल गई कंचन सी काया।।

कर्मों का जनम-जनम साथ सदा होगा।
अपने ही कर्मों का सबने फल भोगा।।
इसीलिये कोई भी पल न अब गँवाओ।
जो बचा समय है, सत्कर्म में लगाओ।।
कण-कण ने दैवी संदेश यह सुनाया।
जीवन जीने का यही मर्म है बताया।।

बंदे तू औरों के काम नहीं आया।
माटी के मोल गई कंचन सी काया।।