अपने लिए जियूँ तो मेरा, जीवन नहीं मरण कह देना

अपने लिए जियूँ तो मेरा, जीवन नहीं मरण कह देना।
जीवन नहीं मरण कह देना।।

मेरी प्यास यहाँ तक जागे, अमृत-सिन्धु खोज लाऊँ मैं।
जग के प्यासे अधर देखकर, अपनी प्यास भूल जाऊँ मैं।।
प्यास बुझाते हुए जगत की, मेरी प्यास अगर डिग जाये।
संयम की संज्ञा मत देना, हर आचरण पतन कह देना।।
अपने लिए जियूँ तो मेरा . . . . . . .

इस तट का ही दृश्य डुबा दे, उस तट की बाँहें बढ़ जाएँ।
प्रीति सुधा की धार लाँघकर, हम पागल उस पार न जाएँ।।
चलने वाले मंजिल भूलें, चलते हुए समाधि न टूटे।
चलते हुए थकें यदि मेरे, भटके हुए चरण कह देना।।
अपने लिए जियूँ तो मेरा . . . . . . .

वह साधना नहीं थी पगले, साधना पूरी हुई युगों तक।
जीवन भर समाधि में बैठा, सिद्धि न झाँकी कभी दृगों तक।।
प्राणायाम छोड़कर अब तो, बढ़ती घुटन रोकती साँसें।
इस तह में हो जाएँ न दर्शन, छलनामयी लगन कह देना।।
अपने लिए जियूँ तो मेरा . . . . . . .