आप निज करुणा उड़ेलें, पात्र वह हमको बना लो

आप निज करुणा उड़ेलें, पात्र वह हमको बना लो।
ज्योति करुणा-कण सहेजें, नाथ वह हमको बना लो।।

कमी करुणा की नहीं है, वह द्रवित हो बह रही है।
धार करुणा की सहेजें, पात्र तो सच्चा वही है।।
नाथ करुणाकर करुण की, जाति में हमको मिला लो।
ज्योति करुणा-कण सहेजें, नाथ वह हमको बना लो।।

रो उठें पर पीर से हम, द्रवित खारे नीर से हम।
हर सकें कुछ पीर जग की, नाथ मनुज शरीर से हम।।
प्रभु द्रवित जन-सेवकों की, पाँत में हमको मिला लो।
ज्योति करुणा-कण सहेजें, नाथ वह हमको बना लो।।

पात्रता पायें विनय की, दीन-दुखियों पर सदय की।
पर अनय से जूझने को, पात्रता पायें अभय की।।
बात जो बिगड़ी बनाए, पात्र वह हमको बना लो।
ज्योति करुणा-कण सहेजें, नाथ वह हमको बना लो।।

खो न जाएँ स्वार्थ में हम, समर्पित सर्वार्थ में हम।
प्राण-प्रण जुट सकें प्रभु, अहर्निश परमार्थ में हम।।
आप जीवन के रथी हों, मात्र रथ हमको बना लो।
ज्योति करुणा-कण सहेजें, नाथ वह हमको बना लो।।

मोह का फिर महाभारत, लड़ सकें प्रभु प्राण का रथ।
भय उसे क्या, जिंदगी का, आपको जो सौंप दे रथ।।
आत्म अर्जुन क्लीव हो क्यों, आप जब गीता सुना दो।
ज्योति करुणा-कण सहेजें, नाथ वह हमको बना लो।।

आप निज करुणा उड़ेलें, पात्र वह हमको बना लो।
ज्योति करुणा-कण सहेजें, नाथ वह हमको बना लो।।