आप हिमनग हैं, हमें सुरसरि बना दो

आप हिमनग हैं, हमें सुरसरि बना दो।
आपके उर की द्रवित, करुणा बहा दो।।

दुष्ट चिन्तन से मनुजता, जल रही है।
रिक्तता सम्वेदना की, खल रही है।।
आस्था के सगर सुत, अभिशप्त से हैं।
आस्था, विश्वास का अमृत पिला दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .

जो पराभव में पतन में, जी रहे हैं।
और जो दुर्भावना विष, पी रहे हैं।।
पतित-पावन श्रेष्ठ चिन्तन, आप का है।
लोक-मंगल की हमें, अंजुलि बना दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .

ज्ञान-गंगा सा उछलने, बढ़ सकें हम।
लोक मंगल साध्य शिव पर, चढ़ सकें हम।।
आज जन मानस घिरा, अज्ञान तम में।
ज्ञान से अभिषेक युग-शिव का करा दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .

हर सकें युग-पीर, वह क्षमता हमें दो।
पी सकें युग-वेदना, ममता हमें दो।।
धार फूटें हृदय से, सम्वेदना की।
भावना भागीरथी को, छल-छला दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .