अन्धकारमय पथ पर चमको, ओ मेरे ध्रुवतारा

अन्धकारमय पथ पर चमको, ओ मेरे ध्रुवतारा।
ओ मेरे ध्रुवतारा।।

नीरवता का शून्य हृदय का, मौन व्यथा जीवन की।
हाथों में संकेत, चरण में कंपन, धार नयन की।।
किन्तु श्वाँस को एक हास की रेखा बनी सहारा।।
ओ मेरे ध्रुवतारा।।

तुम्हीं लक्ष्य हो, तुम्हीं प्रेरणा, तुम्हीं अन्त तुम दीक्षा।
तुम विश्वास मधुर भावों के, और मिलन की इच्छा।।
तुम वह स्त्रोत कि जिससे बहती, करुणा की कल-कल धारा।।
ओ मेरे ध्रुवतारा।।

केवल मेरे लिये नहीं तुम, संस्कृति पथ पर बिखरो।
शाश्वत पुण्य प्रकाश प्रभा ले, प्रति कण-कण में निखरो।।
हो मानव की शक्ति चिरन्तन, प्रिय पाथेय तुम्हारा।।
ओ मेरे ध्रुवतारा।।