अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो

अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो।
नित्य शुद्ध एकान्त भूमि में, जग-जननी का ध्यान धरो।।

दुःख काटकर निज भक्तों के, माता रक्षा करती है।
सुख-सौभाग्य बढ़ा देती है, शान्ति सुधा-रस भरती है।।
नदी समुद्र सरोवर के तट, शान्त भाव से खड़े-खड़े।
गायत्री का जप करते थे, जब द्विज पुंगव बड़े-बड़े।।

अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो।
नित्य शुद्ध एकान्त भूमि में, जग-जननी का ध्यान धरो।।

सूर्य ब्रह्म की ग्रन्थि से, हो जाती है निर्मल बुद्धि।
पाप-ताप सब कट जाते हैं, आ जाती है सच्ची शुद्धि।।
बढ़ता था श्री मार्तण्ड का, उनमें तेजस् दिव्य प्रचण्ड।
स्वर्ग भूमि से अधिक सुखी था, मित्र तभी भारत खण्ड।।

बाल्यकाल में ही जिनको ये मन्त्र सुनाया जाता है।
आलस दम्भ प्रमाद न उनकी, सन्तानों में आता है।।

अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो।
नित्य शुद्ध एकान्त भूमि में, जग-जननी का ध्यान धरो।।

द्विजों उठो! तप में प्रवृत्त हो, गायत्री को जाप करो।
पार करो भारत की नैया,, दूर सकल अभिशाप करो।।
शक्ति पुंज और सच्चा पथ ये शास्त्र सदा से गाता है।
आर्य जाति की रक्षा करती, श्री गायत्री माता है।।

अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो।
नित्य शुद्ध एकान्त भूमि में, जग-जननी का ध्यान धरो।।

गायत्री को नहीं जानता, संध्या कभी न करता है।
ऐसा कर्म-हीन अपने को, फिर क्यों ब्राह्मण कहता है।।
पूज्य हो रही जब भारत के, घर-घर श्री गायत्री की।
विश्वामित्र-वशिष्ठ अत्रि थे, सती सिया सावित्री थी।।

अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो।
नित्य शुद्ध एकान्त भूमि में, जग-जननी का ध्यान धरो।।

यद्यपि वैदिक यज्ञ बड़े हों, जिनमें बड़े-बड़े हों दान।
तो भी मनु कथनानुसार है, गायत्री जप-यज्ञ प्रधान।।
श्रद्धा-भक्ति सहित विश्वासी, निश्चित जप जो करते हैं।
पाप-ताप को छिन्न-भिन्न कर, भवसागर से तरते हैं।।

अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो।
नित्य शुद्ध एकान्त भूमि में, जग-जननी का ध्यान धरो।।