प्रेमी भर तू प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया कर

प्रेमी भर तू प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया कर।
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥

सोने में तो रात गुजारी, दिन भर करता पाप रहा।
इसी तरह बरबाद तू बन्दे, करता अपना आप रहा॥
प्रातः समय उठ ध्यान से, सत्संग में तू जाया कर॥
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥
प्रेमी भर तू प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया कर।
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥

नर-तन के चोले को पाना, बच्चों का कोई खेल नहीं।
जन्म-जन्म के शुभ कर्मों का, होता जब तक मेल नहीं॥
नर तन पाने के लिए, उत्तम कर्म कमाया कर॥
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥
प्रेमी भर तू प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया कर।
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥

पास तेरे है दुखिया कोई, तूने मौज उड़ाई क्या?
भूखा-प्यासा पड़ा पड़ोसी, तूने रोटी खाई क्या?
पहले सबसे पूछकर, भोजन को तू खाया कर॥
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥
प्रेमी भर तू प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया कर।
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥

देख दया परमेश्वर की, वेदों का जिसने ज्ञान दिया।
बन्दे मन में सोच जरा तो, कितना है कल्याण किया॥
सब कामों को छोड़कर, ईश्वर नाम ध्याया कर॥
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥
प्रेमी भर तू प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया कर।
मन-मन्दिर में गाफिल तू, झाडू रोज लगाया कर॥