नये देश को मैं नयी भक्ति दूँगा, कि युग को नयी एक अभिव्यक्ति दूँगा

नये देश को मैं नयी भक्ति दूँगा, मैं नयी भक्ति दूँगा।
कि युग को नयी एक अभिव्यक्ति दूँगा॥

जगा देश सारा मिट्टी कालिमा है,
गगन में छिटकने लगी लालिमा है।
निशा नाथ सोये जगा अंशुमाली,
पथिक ने नये लक्ष्य की राह पा ली॥
प्रगति पन्थ पर वेग से बढ़ चले जो,
करोड़ों पगों को नयी शक्ति दूँगा॥
नये देश को मैं नयी भक्ति दूँगा, मैं नयी भक्ति दूँगा।
नये देश को मैं॥

न होगा कभी दृष्टि से लक्ष्य ओझल,
मनोबल हमारा बनेगा सुसम्बल।
अथक शक्ति ले पग हुए आज गतिमय,
झुकेगा किसी दिन इन्हीं पर हिमालय॥
धरा पर नया स्वर्ग बसकर रहेगा,
मनुज को विवशताओं से मुक्ति दूँगा॥

मनुज अब रुकेगा नहीं आँधियों से,
मनुजता सहमती न बरबादियों से।
जो चाहा मनुज ने वही करके छोड़ा,
दनुजता से डरकर कभी मुँह न मोड़ा॥
मनुज जब चलेगा सृजन की शपथ ले,
मैं उनको शहीदों सी आसक्ति दूँगा॥
नये देश को मैं नयी भक्ति दूँगा, मैं नयी भक्ति दूँगा।
नये देश को मैं॥

अभी कल्पना हो सकी है न पूरी,
अभी साधना रह गयी है अधूरी।
अभी तो प्रगति का खुला द्वार केवल,
अभी लक्ष्य में शेष है और दूरी॥
बिना लक्ष्य की प्राप्ति के जो न लौटे,
मैं ऐसी प्रखर शक्ति के व्यक्ति दूँगा॥
नये देश को मैं नयी भक्ति दूँगा, मैं नयी भक्ति दूँगा।
कि युग को नयी एक अभिव्यक्ति दूँगा॥

नये देश को मैं नयी भक्ति दूँगा, मैं नयी भक्ति दूँगा।
नये देश को मैं॥