न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ,
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ।
समर्पित हो तन-मन समर्पित हो जीवन,
समर्पण हो सर्वस्व यही चाहती हूँ।
न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ,
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ॥
बनूँ वंशी तेरी, बजे स्वर तुम्हारा,
तड़पते हृदय की व्यथा चाहती हूँ।
न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ,
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ॥
किरणें बनूँ मैं सविता बनो तुम,
जले ज्योति तेरी चमक चाहती हूँ।
न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ,
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ॥
मिले जन्म जब भी वरण हो तुम्हारा,
बिछुड़न नहीं अब मिलन चाहती हूँ।
न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ,
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ॥
रहो तुम कहीं भी भुलाओ न मुझको,
मिलें फिर से हम-तुम वचन चाहती हूँ।
न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ,
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ॥
तुम्हीं मेघ हो प्रभु बनूँ बूँद मैं भी,
बरसूँ मैं अविरल प्रण ठानती हूँ।
न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ,
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ॥
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ।
मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ॥