ना चाहें वरदान कोई हम, न चाहें अनुदान

ना चाहें वरदान कोई हम, न चाहें अनुदान।
भटक न जाएँ सत्पथ से प्रभु, दो विवेक वह भान॥

नहीं चाहते धन या दौलत, ऋद्धि-सिद्धि हम भारी भी।
ठुकराते हैं अखिल विश्व की, विभूतियाँ भी सारी ही॥
त्रास कर सकें पर पीड़ा का, दो वह मधुरिम तान॥
ना चाहें वरदान कोई हम, न चाहें अनुदान॥

क्षुद्र आज सब लगती हमको, अभिलाषाएँ ये संसारी।
दीन दुखी की पूजा ही बस, चाह रहा है आज पुजारी॥
पीड़ित जग की पीड़ा बाँटें, दो इतना सा ज्ञान॥
ना चाहें वरदान कोई हम, न चाहें अनुदान॥

संघर्षों से डरें नहीं हम, कभी नहीं धीरज त्यागें।
कष्ट भले कितने ही पायें, शूल बिछें हों पथ में आगे॥
कभी न विचलित हों दुख में भी, दो ऐसी मुस्कान॥
ना चाहें वरदान कोई हम, न चाहें अनुदान।
भटक न जाएँ सत्पथ से प्रभु, दो विवेक वह भान॥

ना चाहें वरदान कोई हम, न चाहें अनुदान।
भटक न जाएँ सत्पथ से प्रभु, दो विवेक वह भान॥