मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है

मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है।
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥

तुम्हारे बनाए जगत के लिए मैं, रहूँ हर समय मेरे भगवन समर्पित।
रुधिर की हरेक बूँद हर अंग मेरा, हरेक श्वाँस हर एक धड़कन समर्पित॥
किसी के न जो आ सके काम ऐसे, किसी भी न क्षण की मुझे कामना है॥
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥

मुझे भार सौंपा गया जो यहाँ पर, उसे साहसी बन उठाती रहूँ मैं।
निरंतर उसे ले स्वयं बढ़ सकूँ मैं, सभी को सुपथ पर बढ़ाती रहूँ मैं॥
सरल प्यार सबको सदा दे सकूँ मैं, न अब आवरण की मुझे कामना है॥
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥

जहाँ स्वार्थ का सूखता हो मरुस्थल, वहीं भाव-सम्वेदनाएँ जगाऊँ।
जहाँ की हवा में घुटन भर गयी हो, वहीं प्राण भरती हवाएँ बहाऊँ॥
जहाँ स्वस्थ मन स्वस्थ तन जी सकें सब, सुवातावरण की मुझे कामना है॥
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥

करूँ काम ऐसे कि जिनसे जगत में, बढ़े आस्थाएँ सुविस्वास फैले।
कपट, दम्भ, पाखण्ड की हो न छाया, अधर पर मधुर हास-उल्लास फैले॥
उचित मान हो पर ना अभिमान होए, विमल आचरण की मुझे कामना है॥
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥

डगर हो न वंचित खुली रोशनी से, न कोई गली भी अँधेरी यहाँ हो
किसी का न आँगन उदासी भरा हो, कहीं पर कलुष की न ढेरी यहाँ हो
सभी ओर हों स्वच्छता औ सुगन्धें, सुनहरी किरण की मुझे कामना है॥
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥
तुम्हारी शरण की मुझे कामना है, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है॥