मेरी अनन्त आत्मा का यह विश्वास है

मेरी अनन्त आत्मा का यह विश्वास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

कितने युग बीते इस पन्थी को राह में।
फिर भी आई न कमी अपनी इस चाह में॥
अब भी तो महामिलन की निश्चित आस है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

यह डोर थमी है हाथ उसी आराध्य के।
सब कार्य साध्य कर दिये कि जो दुःसाध्य थे॥
आत्मा का पन्थी कभी न हुआ निराश है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

मेरा भगवन् त्रिकालदर्शी और युगदृष्टा।
वह ही मेरा अतीत स्वर्णिम भविष्य सृष्टा।
वह ही तो मेरे वर्तमान का हास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

वह बसता है तन में मन में और आत्मा में।
जो कुछ उसमें वह नहीं किसी परमात्मा में।
वह ही तो मेरे जीवन का पूर्ण विकास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

साँसों में जीवित है बन्दी है प्राण में।
बनकर सुवास छाया रहता है घ्राण में॥
तन में चेतनता मन में मधुमय रास है॥
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

सुख में वह हँसता साथ मेरे दुःख में रोता।
नित प्रति वह उठता साथ-साथ ही है सोता॥
ममता का हास करुणिमा का निःश्वास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

है अमिट चाह पूरी भी हो ही जायेगी।
यह आत्मा अन्तिम गति उसमें ही पायेगी॥
मेरी सरिता को सागर का विश्वास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

बस थोड़ा सा जीवन ही और बिताना है।
इस कर्मक्षेत्र में निज कर्तव्य निभाना है॥
प्रतिक्षण, प्रतियुग, प्रतिजन्म यही उल्लास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥

मेरी अनन्त आत्मा का यह विश्वास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥
मेरी अनन्त आत्मा का यह विश्वास है।
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है॥