मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ

मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ।
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ॥

मैं एक, किन्तु संकल्प किया तो, एकोऽहम् बहुस्याम हुआ,
मैंने विस्तार किया अपना, ब्रह्माण्ड उसी का नाम हुआ।
ये चाँद और सूरज मेरी, आँखों में उगने वाले हैं,
है एक आँख में प्यार और, दूजी में प्रखर उजाले हैं॥
मनचाही सृष्टि रचाने की, क्षमता वाला मैं कौशिक हूँ॥
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ॥
मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ॥

जिसमें मणि-मुक्ता छिपे हुए, वह सागर की गहराई हूँ,
जिसकी करुणा सुरसरि बनती, उस हिमनग की ऊँचाई हूँ।
मेरा संगीत छिड़ा करता, कल-कल करते इन झरनों में,
मैं सौरभ बिखराता रहता, इन रंग-बिरंगे सुमनों में॥
यह प्रकृति छटा मेरा ही है, इतना सुन्दर मनमोहक॥
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ॥
मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ॥

मेरे चिन्तन की धारा से, ऋषियों का प्रादुर्भाव हुआ,
मैंने जब ऋचा उचारी तो, सुर-संस्कृति का फैलाव हुआ।
मैं याज्ञवल्क्य मैं ही वशिष्ठ, मैं परशुराम भागीरथ हूँ,
जो कभी अधूरा रहा नहीं, मैं ऐसा प्रबल मनोरथ हूँ॥
प्रण पूरा करने महाकाल हूँ, काल चक्र अवरोधक हूँ॥
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ॥
मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ॥

जनहित में विष पीने वाली, विषपायी मेरी क्षमता है,
जनपीड़ा से विगलित होती, ऐसी करुणा है ममता है।
मैंने साधारण वानर को, बजरंग बनाकर खड़ा किया,
मेरी गीता ने अर्जुन को, अन्याय मिटाने खड़ा दिया॥
विकृतियों से लोहा लेने, सुर-संस्कृति का संयोजक हूँ॥
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ॥
मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ॥

मैंने संकल्प किया है फिर, मानव को देव बनाऊँगा,
फिर प्यार और सहकार जगा, धरती पर स्वर्ग बनाऊँगा।
लाऊँगा मैं उज्ज्वल भविष्य, इसका साक्षी यह दिनकर है,
मेरे संग सविता के साधक, गायत्री वाला परिकर है॥
मैं युग-दृष्टा, युग-सृष्टा हूँ, युग परिवर्तन उद्घोषक हूँ॥
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ।
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ॥
मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ।
मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ॥