मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो

मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो।
मैं सबका परम हितैषी हूँ, चाहे मानो या न मानो॥

मेरे चिन्तन से वेद बने, शुभ धर्म-सूत्र निज-कर्म बने।
मैंने संकल्प किए जग हित, युग परिवर्तन के मर्म बने॥
संकेतों को समझो मेरे, युग धर्म सुनिश्चित पहचानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो।
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ॥

जग हित युग सिंधु मथा मैंने, शुभ रत्न अनेकों प्रकट हुए।
अमृत बाँटा सारे जग को, मैं नीलकंठ विषपान किए॥
मेरी छवि है तप की गरिमा, परमार्थ रूप मुझको जानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो।
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ॥

मुझको अरूप तुम कहो भले, मैं हर निष्ठा में चमक रहा।
मैं अगम शक्ति का स्रोत बना, सबकी श्रद्धा में महक रहा॥
मैं हूँ पावन प्रज्ञा-प्रवाह, मुझको विवेक का स्वर मानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो।
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ॥

मैं महाकाल का रूप धरे, अब बदल रहा हूँ काल चक्र।
होगा भीषणतम शिव-ताण्डव, यदि होगी मेरी दृष्टि वक्र॥
अच्छा हो मेरे इंगित पर, तुम कर्म-यज्ञ निश्चित ठानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो।
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ॥

तुम कहो बूँद या सिंधु मुझे, मैं तो पावन निर्मल जल हूँ।
तुम भले मनुज या देव कहो, मैं तो ऋषि-सत्ता का बल हूँ॥
मैं हूँ सविता का तेज प्रखर, सत्ता विराट मुझको जानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो।
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो॥
मैं सबका परम हितैषी हूँ, चाहे मानो या न मानो।
मैं सबका परम हितैषी हूँ, चाहे मानो या न मानो॥

मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो।
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो॥
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ॥