क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो

क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो।
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो॥

क्यों प्रगति पथ में तुम्हारे, हो रहा उत्पन्न भय?
श्रम बिना ही चाहते हो, क्या सफलता पर विजय?
सोचते हो क्या? गिने क्षण ही तुम्हारे पास हैं।
हाथ में आया हुआ क्यों, खो रहे हो अब समय?
बढ़ चलो निर्द्वन्द्व, कोरी कल्पनाएँ मत गढ़ो॥
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो।
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो॥

कुछ नहीं बिगड़ा अभी, सब कुछ तुम्हारे साथ है।
भाग्य के निर्माण का, अवसर तुम्हारे हाथ है॥
मुश्किलों को हराकर जो, बढ़ गए निज लक्ष्य तक।
विजयी वही है विश्व में, ऊँचा उन्हीं का माथ है॥
मत रहो आश्रित, विजय अपनी भुजाओं से गढ़ो॥
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो।
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो॥

आपदायें जो पड़ें यदि, राह में परवाह क्या?
ध्येय हो अपना अटल, फिर चोट क्या है, आह क्या?
बीच में ही टूट जाये, वह प्रबल उत्साह क्या?
धार से जो हार जाये, वह प्रबल मल्लाह क्या?
नीचे गिरो मत, हर घड़ी ऊँचे उठो, ऊँचे चढ़ो॥
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो।
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो॥

रिक्त लौटा है न कोई, साधना के द्वार से।
सब समय सब कुछ मिला, सबको इसी भण्डार से॥
साम्राज्य सारी सिद्धियों का, है सुरक्षित सर्वदा।
फिर तुम्हीं वंचित रहो क्यों, दिव्य निज अधिकार से॥
छोड़ो अतीत, भविष्य का इतिहास अब आगे बढ़ो॥
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो।
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो॥