कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान

कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
साँस-साँस में होता उसकी, चेतनता का भान॥

मानव का अस्तित्व विलक्षण, उसने गढ़ा महान।
पाँचों तत्त्व बने हैं पावन, चेतन की पहचान॥
मानव को ही दिया स्वयं को, पा जाने का ज्ञान॥
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान॥

हर चेहरे के भोलेपन में, उसका ही प्रतिबिम्ब।
करुणा जागे फिर न उसे, पाने में तनिक विलम्ब॥
जो भी है चर-अचर सभी में, मेरे प्रभु का प्राण॥
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान॥

हृदय गुहा में वही बसा है, बिल्कुल अपने पास।
जनहित के प्रत्येक कृत्य में, उसकी मधुर सुवास॥
झाँक रहा आँखों से बनकर, प्रेममयी पहचान॥
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान॥

छोटे-बड़े सभी घटकों में, उसका ही है अंश।
आदि समय से वर्तमान तक, चलता उसका वंश॥
रात्रि रूप विश्राम वही, कर्मठता रूप विहान॥
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान॥

सद्विचार कल्याण भावना, बनकर रहता पास।
उर का प्यार न बाँट सके तो, होता हृदय उदास॥
इस निःस्वार्थ प्यार से ही, जागते भक्ति और ज्ञान॥
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान॥

अधिक निकट से उसे देखने, की उमड़े जब चाह।
तब गह लेना दीन-दुःखी, पीड़ित के, घर की राह॥
संवेदन की गंगा बन फूटता, वही कविमान॥
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान॥

कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान।
साँस-साँस में होता उसकी, चेतनता का भान॥