झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को

झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को।
माँ जगा दे आज तो, सोए हृदय के प्यार को॥
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को॥

राग-रंजित प्राण हों अब, रंग कुछ ऐसा चढ़ा।
नेत्र अन्तर के खुलें अब, पाठ कुछ ऐसा पढ़ा॥
देख पाएँ रूप तेरा, पा सकें तव द्वार को॥
माँ जगा दे आज तो, सोए हृदय के प्यार को।
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को॥

ज्ञान आभा बुद्धि में भर, हृदय में शुचि भावना।
कर्म पथ पर पग बढ़ें, कर्तव्य की हो साधना॥
हम समझ लें आज से, प्रतिबिम्ब तव संसार को॥
माँ जगा दे आज तो, सोए हृदय के प्यार को।
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को॥

पीड़ितों को बाँटकर, ममता हृदय की हम खिलें।
प्यार का सागर भरे, उर में सभी से हम मिलें॥
खोल दे माँ आत्मा की, रुद्ध सी इस धार को॥
माँ जगा दे आज तो, सोए हृदय के प्यार को।
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को॥

है नहीं कुछ पास, पूजा थाल हम किससे भरें
झर चुके सद्गुण सुमन, अर्पित तुझे अब क्या करें॥
आज तो स्वीकार ले, आँसू भरी मनुहार को॥
माँ जगा दे आज तो, सोए हृदय के प्यार को।
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को॥

माँ जगा दे आज तो, सोए हृदय के प्यार को।
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को॥
माँ जगा दे आज तो, सोए हृदय के प्यार को।
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को॥