जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्

जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।
हैं विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन्॥

आकाश में तुम्हीं से, संव्याप्त नीलिमा की।
तुम ताप सूर्य के हो, तुम शीत चन्द्रमा की॥
फूलों में पल्लवों में, पुलकन तुम्हीं से भगवन्॥
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।

स्फूर्ति भोर की चिर, आकांक्षा तुम्हीं हो।
दिग्भ्रांत हर पथिक की, प्रेरक दिशा तुम्हीं हो॥
हैं प्राणतत्त्व तुमसे, जीवन तुम्हीं से भगवन्॥
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।

अनुदान से प्रफुल्लित, होते कृतज्ञ प्राणी।
आभास पर तुम्हारा, पाते न अज्ञ प्राणी॥
निर्मित प्रकृति तुम्हीं से, हर क्षण तुम्हीं से भगवन्॥
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।
हैं विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन्॥