जल रहे दीपक हजारों

जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले।
जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले॥

मृत्तिका ही देह जिसमें, वृत्तिका है प्राण की।
आयु का है स्नेह थोड़ा, लौ उठी मुस्कान की॥
रात लम्बी, स्नेह तिल-तिल घट रहा।
चन्द साँसों का, खजाना लुट रहा॥
गुनगुना लूँ गीत ऐसे, प्यार के दो क्षण जरा।
दूर तक फैली अमासव, की शिला का तन गले॥
जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले।
जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले॥

लोरियाँ सुनता चलूँ, तूफान की मँझधार की।
रोशनी बनता चलूँ मैं, हर गली हर द्वार की॥
हर नयन में ज्योति हो विश्वास की।
हर चरण में गति भरें उल्लास की॥
जिन्दगी के स्वप्न पाये, जागरण की नव-किरण।
डूबती हर नाव को, पतवार का सम्बल मिले॥
जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले।
जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले॥

टूट जाये स्वार्थ गढ़, संकल्प शर-सन्धान से।
जोड़ दे लौ प्रेम की, इन्सान को इन्सान से॥
हर दिशा से एक ही आवाज सुनने को मिले।
हों सभी के मन प्रफुल्लित और सबके दिल खिले॥
ज्योति की इस पुण्य-धारा, में लगाकर डुबकियाँ।
हर मनुज का मन सुमन सा, गन्ध बिखराता चले॥
जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले।
जल रहे दीपक हजारों, दीप मेरा भी जले॥