हे प्रभु! ध्यान में तुम समाए हुए, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं

हे प्रभु! ध्यान में तुम समाए हुए, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं।

लक्ष्य हर हास-उल्लास के हो तुम्हीं, हो उमंगें तुम्हीं चाह में हो तुम्हीं।
हर क्रिया में तुम्हीं तो समाए हुए, औ हृदय के हरेक भाव में हो तुम्हीं॥
हर समय जल रही ज्योति बनकर प्रभो, कर रहे वास अन्तःकरण में तुम्हीं॥
हे प्रभु! ध्यान में तुम समाए हुए, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं॥

मात्र तुम हर तरफ दीखते हो मुझे, व्यक्ति में वृक्ष में वायु में गन्ध में।
प्रभु तुम्हारा सुविस्तार पाकर यहाँ, डूब जाती व्यथा मेरी आनन्द में॥
प्रेरणा हर प्रबल यत्न की हो तुम्हीं, चेतना हो मेरे हर चरण में तुम्हीं॥
हे प्रभु! ध्यान में तुम समाए हुए, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं॥

शक्ति दो काम निबटा सकूँ शीघ्र मैं, सौंपकर जो मुझे सूक्ष्म तुम हो गए।
खिल सकें फिर कमल दिव्य गन्धें लिए, नाथ जिसके स्वयं बीज तुम हो गए॥
देखकर काम पूरा मुझे ले सको, शान्ति सुखदायिनी निज शरण में तुम्हीं॥
हे प्रभु! ध्यान में तुम समाए हुए, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं॥

जन्म-जन्मान्तरों से रहे साथ हम, मेरे भगवन सदा साथ देते रहो।
हाथ अपनी कृपा का दिया जो सदा, हर जनम में मुझे साथ देते रहो॥
भोर हो मुझे सूर्य से मिल सको, सत्य-युग के सुखद अवतरण में तुम्हीं॥
हे प्रभु! ध्यान में तुम समाए हुए, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं।
हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं॥