हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ

हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥
हे सकल सृष्टि मा व्यापि रही, सावित्री तारूँ ध्यान धरूँ॥
हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥

धरु हँसनु वाहन सा माटे, जे सात्विक नित आहार करे।
गुण-दोष समाजे निर में क्षीर तजि दोष, गुण स्वीकार करे॥
हूँ पात्र बनूँ तुझ वाहन में बस, एकज उर अरमान धरूँ॥
हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥

कहिं एक मुँख कहिं पाँच मुँख, विविध स्वरूप तारूँ दी से।
कहिं पंच कोष के पंच प्राण के, पंच तत्त्व ना रूप दी से॥
त्वीं तत्त्व रूप आत्मा स्वरूप, मुझ अन्तर मा तुझ ध्यान धरूँ॥
हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥

तुम अमृत छौं तारा पावे सो, अमर तत्त्व पावीं जाता।
ले विविध तापती मुक्ति बनी, थैं देव सवा सौ गीत गाता॥
तुम ज्ञान रूप अमृत धारा, हूँ एद सुधा रस पान करूँ॥
हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥

तुम पारस छौ तारा इस पर, लो फन्न सुबाण बनी जातूँ।
होए पतीत मानव ते पर, देवन ने ते पामी जातूँ॥
तुम कामधेनु छौ जगदम्बे, तुम बालक तव पयपान करूँ॥
हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥

तू कल्पवृक्ष छौ तुझ छाए, पेसीने से संकल्प करे।
भौतिक तो तू अध्यात्म पराते, उच्च शिखर ले पार करे॥
ना साधक माँगतो कँग दीजू, बस हर पल तुझ गुण-गाल करूँ॥
हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥
हे सकल सृष्टि मा व्यापि रही, सावित्री तारूँ ध्यान धरूँ॥
हे हँसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ॥