चल रहा अन्तःकरण में, रात-दिन चिन्तन तुम्हारा

चल रहा अन्तःकरण में, रात-दिन चिन्तन तुम्हारा।
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा, समय का हर क्षण तुम्हारा॥

यह शरीरी कार्य सारे, यंत्रवत ही चल रहे हैं।
आचरण सब आपके अनुशासनों में ढल रहे हैं॥
आपके उद्देश्य हित लग जाए यह जीवन हमारा॥
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा, समय का हर क्षण तुम्हारा।
चल रहा अन्तःकरण में, रात-दिन चिन्तन तुम्हारा॥
चल रहा अन्तःकरण में॥

कामनाएँ सब तुम्हारी याद में ही खो गई हैं।
भावनाएँ सब तुम्हारी भावना में खो गई हैं॥
हो रहा है रात-दिन शुभ भावमय अर्चन तुम्हारा॥
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा, समय का हर क्षण तुम्हारा।
चल रहा अन्तःकरण में, रात-दिन चिन्तन तुम्हारा॥
चल रहा अन्तःकरण में॥

दिख रहे हैं मस्तकों में आपके सुविचार पलते।
और प्रतिभा रूप में प्रभु आपके उपहार ढलते॥
बीज बन बिखरे तुम्हीं यह जग बना उपवन तुम्हारा॥
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा, समय का हर क्षण तुम्हारा।
चल रहा अन्तःकरण में, रात-दिन चिन्तन तुम्हारा॥
चल रहा अन्तःकरण में॥

प्यार था तुमको जगत से वह हमें प्रिय लग रहा है।
और उनके हित सतत ही प्राण तिल-तिल जल रहा है॥
सार्थक कर दो प्रभु यों बीज सा गलना हमारा॥
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा, समय का हर क्षण तुम्हारा।
चल रहा अन्तःकरण में, रात-दिन चिन्तन तुम्हारा॥
चल रहा अन्तःकरण में॥

पास आकर भी तुम्हें तन-मन विकल ही रह रहे हैं।
निकटतम सान्निध्य पाने हेतु प्राण मचल रहे हैं॥
अब तुम्हीं इनको संभालो बस नहीं चलता हमारा॥
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा, समय का हर क्षण तुम्हारा।
चल रहा अन्तःकरण में, रात-दिन चिन्तन तुम्हारा॥
चल रहा अन्तःकरण में॥