ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए

ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए।
जड़-चेतन में कण-कण में, आभास तुम्हारा होता जाए॥

हे करुणाकर करुणा दे दो, दुनिया दुःख-दर्द बटाएँ।
शुष्क भावनाहीन जगत में, भावों की रसधार बहाएँ॥
हे युगदेव तृषित हृदयों को, प्यार तुम्हारा मिलता जाए।
जड़-चेतन में कण-कण में, आभास तुम्हारा होता जाए॥
ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए।
प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए॥

वेदमूर्ति वह ज्ञान हमें दो, भ्रम के सारे बन्धन काटें।
सद्विवेक पाकर तुमसे प्रभु, वह प्रसाद सब जग को बाँटें॥
हे प्रभु दैवी अनुशासन में, सबका जीवन ढलता जाए।
जड़-चेतन में कण-कण में, आभास तुम्हारा होता जाए॥
ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए।
प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए॥

हे युग-दृष्टा हे युग-सृष्टा, नवल सृजन की शक्ति हमें दो।
सब विभूतियाँ तुम्हें सौंप दें, ऐसी निर्मल भक्ति हमें दो॥
केवल तुम्हें वरण करने का, भाव हृदय में पलता जाए।
जड़-चेतन में कण-कण में, आभास तुम्हारा होता जाए॥
ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए।
प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए॥

महाकाल इस कालचक्र को, नवल सृजन हित प्रेरित कर दो।
हम सबका पुरुषार्थ एक कर, अपने साथ नियोजित कर लो॥
विध्वंसों को काट सृजन का, चक्र तीव्र गति चलता जाए।
जड़-चेतन में कण-कण में, आभास तुम्हारा होता जाए॥
ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए।
प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए॥

जड़-चेतन में कण-कण में, आभास तुम्हारा होता जाए।
ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए।
प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए॥