तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे

तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे।
साथ नहीं कुछ जाना॥

खाली हाथ गए सब जैसे, खाली हाथों आये।
गया सिकंदर भी धरती से, सिर्फ हाथ फैलाये॥
दल-दल में फँस गया अगर तो, मुक्ति नहीं पायेगा।
लगा रहेगा इसी तरह से, तेरा आना-जाना रे॥
तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे।
साथ नहीं कुछ जाना॥

तुझे मिली जो फसल क्यारियाँ, वे हैं तुझे रखानी।
उन्हें निराना है देना बस, उन्हें खाद और पानी॥
मगर समझ बैठा तू उनका, अरे स्वयं को स्वामी।
मत कर इनसे मोह बावले, तेरा नहीं खजाना रे॥
तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे।
साथ नहीं कुछ जाना॥

जो सारी संपदा और, सुख-साधन तूने पाया।
ज्ञान-कोष जो बड़े जतन से, तूने यहाँ जुटाया॥
सदुपयोग उन सबका कितना, किया प्रभु देखेंगे।
वहाँ नहीं चल पायेगा फिर, झूठा कोई बहाना रे॥
तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे।
साथ नहीं कुछ जाना॥

सबको अपना समझ सभी का, है दुःख-दर्द बाँटना।
सुख औरों को बाँट, स्वयं भी सुख-उमंग पा जाना॥
यही स्नेह-सद्भाव मधुरता, हृदयों में भरनी है।
तभी तुम्हारे जीवन का फिर, होगा सफर सुहाना रे॥
तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे।
साथ नहीं कुछ जाना॥

किए अगर सत्कर्म लोकहित, साथ वही जायेगा।
युग उनका सम्मान करेगा, आत्म-तोष पायेगा॥
वे जाएँगे जहाँ वहाँ पर, सगे स्वजन सब होंगे।
नहीं अजाना होगा कोई, ना कोई बेगाना रे॥
तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे।
साथ नहीं कुछ जाना॥