थोड़ी सी साँसें पायी हैं, इनको नहीं गँवाना है

थोड़ी सी साँसें पायी हैं, इनको नहीं गँवाना है।
पता नहीं किस पल में बंदे, तुझे यहाँ से जाना है॥


घर-परिवार, समाज त्यागकर, घाट-घाट बन-बन भटका।
तन से किया पलायन पर मन, रहा मोह में ही अटका॥
कर्तव्यों का त्याग करे जो, कभी न होता त्यागी है।
कर्म करे परिणाम प्रभु पर, छोड़े वह वैरागी है॥
करने है सब काम मगर मन, उनमें नहीं रमाना है।
पता नहीं किस पल में बंदे, तुझे यहाँ से जाना है॥
थोड़ी सी साँसें पायी हैं, इनको नहीं गँवाना है॥

राम रसायन पिया कि जिसने, वही मस्त होकर झूमा।
नहीं पराया दीखा कोई, जहाँ-जहाँ भी वह घूमा॥
सभी तरफ उसको अपना ही, घर-परिवार नजर आया।
हर प्राणी में उसे छलकता, प्रभु का प्यार नजर आया॥
मन न राम के रंग में रंगा तो, चोला व्यर्थ रंगाना है॥
पता नहीं किस पल में बंदे, तुझे यहाँ से जाना है॥
थोड़ी सी साँसें पायी हैं, इनको नहीं गँवाना है॥


कल के लिए न टालो बिल्कुल, जन मंगल की राह चलो।
तपन बहुत फैली है सेवा, की है शीतल छाँह चलो॥
नश्वर सुख के लिए न भागो, यहाँ सुबह से सोने तक।
कर लो तुम सत्कर्म अभी भी, शाम उमर की होने तक।
पुण्य और परमार्थ कमा लो, सुख का यही खजाना है॥
पता नहीं किस पल में बंदे, तुझे यहाँ से जाना है॥
थोड़ी सी साँसें पायी हैं, इनको नहीं गँवाना है॥

थोड़ी सी साँसें पायी हैं, इनको नहीं गँवाना है।
पता नहीं किस पल में बंदे, तुझे यहाँ से जाना है॥