स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर

स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर।
स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर॥
स्नेह से तुम दीप सी मैं॥

साँस चलती है निरत पर, साँस की प्रभु! गति तुम्हीं हो।
है अनिश्चित काल गति इस, जन्म की परिणति तुम्हीं को॥
आदि हो प्रति आत्म उद्गम, के तुम्हीं तो चिर अनश्वर।
तुम गगन से मैं धरा सी, चल रहे दोनों निरन्तर॥
स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर।
स्नेह से तुम दीप सी मैं॥

तुम्हीं हो धड़कन हृदय के, चेतना तन में तुम्हारी।
दब गया आभार से उर, वन्दना मन में तुम्हारी॥
भीग कर बोझिल बने हैं, प्यार के रस से करुण स्वर।
प्राण से तुम मैं प्रणय सी, पल रहे दोनों निरन्तर॥
स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर।
स्नेह से तुम दीप सी मैं॥

जल रही बड़वाग्नि उर में, प्रबल झंझावात भी है।
सिहरते तब प्राण केवल, अब प्रकम्पित गात भी है॥
दूर हैं दोनों किनारे, बीच में है काल निर्झर।
तुम क्षितिज से मैं सजल क्षिति, छल रहे दोनों निरन्तर॥
स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर।
स्नेह से तुम दीप सी मैं॥

रूप तव प्रभु! सुदृढ़ हिमगिरि, साधना गोमुख हमारी।
दीप्ति से आभास से तुम, मैं वही आभा तुम्हारी॥
चिर अजेयी प्रिय! तुम्हीं तो, चेतना मय प्रभु अनश्वर।
हिम सदृश तुम नीर सी मैं, गल रहे दोनों निरन्तर॥
स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर।
स्नेह से तुम दीप सी मैं॥

स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर।
स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर॥
स्नेह से तुम दीप सी मैं॥