सिहर-सिहर मन तुम्हें पुकारे, प्रभु दर्शन बिन बड़ा क्लेश है

सिहर-सिहर मन तुम्हें पुकारे, प्रभु दर्शन बिन बड़ा क्लेश है।
उर को समझाने को प्रभुवर, केवल तेरा ध्यान शेष है॥

मिली झलक थोड़ी सी तेरी, वे क्षण सचमुच अमर हो गए,
आँखों में चुभते रहते हैं, वे सपने जो शेष रह गए।
नयन पुतलियों में अंकित हैं, तेरे नयनों की परछाई,
फिर से वह दर्शन हो कैसे, खोज रही आँखें ललचाई॥
दृष्टि निछावर कर दी तुम पर, दर्शन का अनुदान शेष है।
उर को समझाने को प्रभुवर, केवल तेरा ध्यान शेष है॥

तेरा वह स्पर्श क्षणिक था, पर वह मन को इतना भाया,
पाँव पखारे जब तेरे प्रभु, हाथों में था प्राण समाया।
अभी पोरुओं में अंकित है, तेरा वह स्पर्श हृदय धन,
वह रोमांच सरस इतना था, डूब गया उसमें ही तन-मन॥
यह जीवन तुममें घुल जाये, केवल यह अरमान शेष है।
उर को समझाने को प्रभुवर, केवल तेरा ध्यान शेष है॥

कहूँ कहानी कैसे उर की, क्षण-क्षण कथा नयी बनती है,
यादों के बादल में तेरी, प्रतिक्षण नयी झलक मिलती है।
हृदय देश में अंकित है प्रभु, तव पावन पद-चिन्ह सुनहले,
नहीं हटाये हटते मन से, प्रभु तेरे संकेत रूपहले॥
आँसू बनकर बह जाने को, दो क्षण का वह भान शेष है।
उर को समझाने को प्रभुवर, केवल तेरा ध्यान शेष है॥

माना रहते हो आत्मा में, बनकर दिव्य ज्योति प्रभु तुम ही,
थिरक रहे हो रोम-रोम में, प्राण-चेतना बनकर तुम ही।
और बुद्धि में अंकित है प्रभु, परम तत्त्व तेरी ही झाँकी,
अपनी यह काया भी तो है, हे प्रभु तेरी ही परछाईं॥
जब हम तुमसे तुम हममें हो, दूरी का क्यों भान शेष है।
उर को समझाने को प्रभुवर, केवल तेरा ध्यान शेष है॥

सिहर-सिहर मन तुम्हें पुकारे, प्रभु दर्शन बिन बड़ा क्लेश है।
उर को समझाने को प्रभुवर, केवल तेरा ध्यान शेष है॥