सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान

सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

तन की सीमा के आ-पार, बिल्कुल अछोर मेरा प्रसार।
मैं अखिल विश्व का स्वयं मूल, मैं ही कारण मैं ही निदान॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

मैं स्वयं धैर्य, मैं हूँ अधीर, मैं स्थूल-सूक्ष्म कारण शरीर।
मैं सुगम अगम हूँ एक साथ, मैं लघुतम हूँ मैं हूँ महान॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

मैं आदि-मध्य हूँ और अन्त, मैं ही अनादि मैं हूँ अनन्त।
मैं सुबह और दुपहर मैं ही, मैं ही संध्या दिवसावसान॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

मैं चाहूँ तो बढ़ चले सूर्य, मेरी इच्छा से ढले सूर्य।
पाकर मेरा संकेत मात्र, रुक जाता नभ में अंशुमान॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

मैं सविता का स्वर्णिम प्रकाश, प्राणों में बहता हुआ श्वाँस।
जन-जन अणु-अणु में विद्यमान, चेतनता ही मेरा प्रमाण॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

मेरी इच्छा से बनी सृष्टि, मेरी समष्टि प्यारी समष्टि।
मैं अन्धकार मैं दिशाज्ञान, हर संशय का मैं समाधान॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

मैं स्वयं बना नश्वर शरीर, हरने को जग की गहन पीर।
संघर्ष असुरता से करके, करने धरती का परित्राण॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥

मेरे वंशज! मेरे सपूत!, बढ़ चलो क्रान्ति के अग्रदूत।
पुरुषार्थ तुम्हारा सावधान, लाएगा कल नूतन विहान॥
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान।
मैं उद्गम मैं ही विलय स्वयं, फिर क्या मेरा उद्भव प्रयाण॥