साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले

साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले।
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥

साजन का है बाग अनूठा, सब कुछ सच्चा सब कुछ झूठा।
रीझा सो पछताता लौटा, पाया मीठा फल जो रूठा॥
खुला खेल है देखे जब तू, घूँघट का पट खोले रे॥
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥

चटक चाँदनी चार दिनों की, शीतल रजनी थोड़ी बाकी।
चुन ले सुमन सजा ले डाली, प्याली भर ले शेष सुधा की॥
तेरी कथा कहेंगे कल, पैरों के फूट फफोले रे॥
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥

आशा और पन्थ का मारा, हाट-हाट घूमा बनजारा।
अब भी रहे लाज जो मनुवा मन से मन को तोल रे॥
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥