सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा, यही कामना है यही याचना है

सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा, यही कामना है यही याचना है।
चरण में तुम्हारे समर्पित रहें हम, यही कल्पना है यही भावना है॥

मिला प्यार निर्मल हमें तो तुम्हारा, भले ही विमुख हो तुम्हीं से रहे हम।
तुम्हीं हो हमारे हितैषी सदा से, मगर प्यार तुमसे भी कर ना सके हम॥
हमारे हृदय में जगे प्रेम निश्चल, अनुष्ठान हमको यही ठानना है॥
चरण में तुम्हारे समर्पित रहें हम, यही कल्पना है यही भावना है॥

तुम्हारी निगाहें रहीं नित्य हम पर, मगर हम तुम्हें क्यों नहीं देख पाये।
कला जिन्दगी की सिखाते रहे तुम, मगर हम उसे क्यों नहीं सीख पाये॥
चलें किस तरह हम तुम्हारी नजर में, समझना यही है यही जानना है॥
सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा, यही कामना है यही याचना है॥

हमें मान-पद-यश सताने न पाए, कि पैसे की झिलमिल लुभाने न पाये।
हमें दुष्ट-दुर्गुण डराने न पाये, कि श्रद्धा हमारी डिगाने न पाये॥
तुम्हीं नाव हो प्रभु तुम्हीं हो खिवैया, यही सत्य हमको तो पहचानना है॥
चरण में तुम्हारे समर्पित रहें हम, यही कल्पना है यही भावना है॥

मिले दृष्टि ऐसी तुम्हें जो निहारे, सधे स्वर वही बस तुम्हें जो पुकारे।
जगे बुद्धि ऐसी तुम्हें जो विचारे, बहे आँख में जल चरण जो पखारे॥
कि जो भी है अपना बने सब तुम्हारा, हमारे लिए प्रिय यही साधना है॥
चरण में तुम्हारे समर्पित रहें हम, यही कल्पना है यही भावना है॥

सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा, यही कामना है यही याचना है।
सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा, यही कामना है यही याचना है॥
यही कामना है यही याचना है, यही कामना है यही याचना है, यही कामना है यही याचना है॥