बोना और काटना

भाइयो! लगभग 60 वर्ष हो गए। 60 वर्ष पहले हमारे गुरुदेव घर पर आये थे और उन्होंने कई बातें कहीं। शुरू में तो कुछ डर जैसा मालूम पड़ा। पीछे जब मालूम पड़ा कि ये हमारे तीन जन्मों में हमारे साथ रहे हैं। जो उन्होंने पहले जन्मों का दृश्य दिखा दिया तो हमारा भय दूर हो गया और फिर बातचीत शुरू हो गई। उन्होंने कहा, ‘‘अपनी पात्रता को विकसित करने के लिये तुम्हें चौबीस लक्ष के चौबीस साल तक चौबीस पुरश्चरण करने चाहिए।’’ एक साल में एक, जौ की रोटी और छाछ पर रह करके किस तरीके से चौबीस साल काटने पड़ेंगे।

ये पूरी विधि बताने के बाद में एक और नई बात बताई। ‘‘बोना और काटना।’’ तुम्हारे पास जो कुछ भी चीज है, बोना शुरू करो भगवान् के खेत में और वो सौ गुना होकर के तुम्हें मिल जायेगा। ऋद्धि और सिद्धि का तरीका यही है। फोकट में नहीं मिलती कहीं से। कोई ऐसा नियम नहीं है कि कोई ऋद्धि बाँट रहा हो, सिद्धि बाँट रहा हो, कहीं से मिल रहा हो, इस तरह का नहीं है।

किसान बोता है और काटता है, ठीक इसी तरीके से तुमको भी ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ बोनी पड़ेंगी और काटनी पड़ेगी। उन्होंने कहा—‘‘तुम्हारे पास क्या-क्या वस्तुएँ हैं।’’ मालूम नहीं क्या वस्तुएँ हैं। तो उन्होंने कहा देखो, समय और श्रम तुम्हारे पास है, यह भगवान् के खेत में बोओ। कौन-सा भगवान्, ये विराट् भगवान् जो चारों ओर समाज के रूप में विद्यमान है। इसके लिये तुम अपना श्रम और शरीर को सब खर्च कर डालो और तुम्हें सौ गुना होकर के मिल जायेगा, एक नम्बर। नम्बर दो, बुद्धि तुम्हारे पास है, भगवान् की दी हुई सम्पदाओं में अकल से बजाय इसका चिन्तन करने के, उसका चिन्तन करने के, अहंकार का चिन्तन करने के, वासनाओं का चिन्तन करने के, बेकार की बातों का चिन्तन करने की अपेक्षा अपने चिन्तन करने की जो सामर्थ्य है, उसको सारी की सारी को भगवान् के निमित्त लगा दो। उनके खेत में बोओ। ये तुम्हारी शक्ति सौ गुनी होकर के तुमको मिल जायेगी, दो। तीसरी चीज, तुम्हारे पास हैं, भावनाएँ। भावनाएँ हमारे पास हैं, हाँ! आपके पास भी हैं। तीन शरीर हैं—स्थूल, सूक्ष्म और कारण। जिसमें से स्थूल शरीर में श्रम होता है, सूक्ष्म शरीर में बुद्धि होती है और कारण शरीर में भावनाएँ होती हैं। ये तीन चीजें वो हैं, जो भगवान् ने हमको दी हैं।

श्रम और शरीर भगवान् ने हमको दिया है। बुद्धि किसी आदमी ने नहीं दी है, भगवान् ने दी है। और भावनाएँ जो हैं, भगवान् ने दी हैं, इसीलिये भगवान् की दी हुई चीजों को बोना चाहिए और एक चीज इस तरह की है, जो तुम्हारी कमाई हुई है। या पहले जन्म से कमाया हुआ हो या इस जन्म में कमाया हो। बहरहाल वो तुम्हारा कमाया हुआ है। भगवान् का दिया हुआ नहीं है। वो क्या? धन। धन, भगवान् किसी को नहीं देता। जो कोई चाहे ईमानदारी से, बेईमानी से, मेहनत से, हरामखोरी से चाहे कमा लो, चाहे मत कमा लो। भगवान् को इससे कोई लेना-देना नहीं है। धन जो तुम्हें मिला है, तुम्हारा कमाया हुआ तो शायद नहीं है। मैंने कहा—‘‘मेरा कमाया हुआ कहाँ से हो सकता है? चौदह-पन्द्रह वर्ष का बच्चा कहाँ से धन कमा के लायेगा। पिता जी का दिया हुआ धन है’’। इस सारे के सारे धन को भगवान् के खेत में बो दो, और यह सौ गुना होकर मिल जायेगा। बस मैंने गाँठ बाँध ली और वो 60 वर्ष से बँधी हुई गाँठ मेरे पास ज्यों की त्यों चली आ रही है।

जो कुछ भी कमाया था हमने सब बो दिया। हमारे पास जो जमीन थी। उसकी जब जमींदारियाँ खतम हुईं तो उसका जो पैसा आया, गायत्री तपोभूमि बनाने के लिये हमने दान दे दिया। हमारी बीबी के पास सोना था, 60 तोले के करीब, वो भी हमने बेच कर उसी को दे दिया। जो कुछ भी हमारे पास था, सब खाली कर दिया और वो गायत्री तपोभूमि के बनाने में, भगवान् का घर बनाने में, भगवान् का मन्दिर बनाने में हमने खर्च कर दिया। फिर 80 बीघा जमीन कुल काश्त की हमारे पास रह गई थी, फिर उसको भी खर्च कर डाला। उसको काहे में खर्च किया? उसको जहाँ हमारा जन्म हुआ है, उस गाँव में हमने एक हायर सेकन्डरी स्कूल बना दिया। कभी आप जाएँ तो देखना, आपकी तबियत बाग-बाग हो जायेगी और फिर वहाँ पर दूर-दूर तक कोई अच्छा अस्पताल नहीं है। सैकड़ों आदमी बीमार हो जाते हैं। उनकी मृत्यु हो जाती है। स्त्रियों की मृत्यु हो जाती है, गर्भवतियों की मृत्यु हो जाती है। तो वहाँ एक अच्छा अस्पताल बने तो अच्छी बात है। वहाँ शानदार अस्पताल हमने बना दिया है।

ये कहाँ से बनाया? जो पैसा, पिताजी का छोड़ा हुआ था, उसको हमने खाया नहीं। छोटी उमर में खा लिया होगा तो हम नहीं कह सकते। लेकिन इसके बाद में हमने किसी का दिया हुआ धन खाया नहीं है। सब खर्च कर डाला। एक-एक पाई खर्च कर डाली। हमारे पास उनका दिया हुआ कुछ भी नहीं। आपके पास कितना धन है? हमारे पास कुछ भी नहीं है। तो फिर, तो आप तो नुकसान में रहे। अरे! आप नुकसान की बात कहते हो।

हमारे गाँव कभी आप जाएँ तो हमारा कच्चा मकान था, सारे गाँव के कच्चे मकान थे, हमारा भी कच्चा मकान था। फूट-टूट के बराबर हो गया। लेकिन यहाँ जहाँ कहीं भी हम रहते हैं, पक्के मकानों में रहते हैं। बड़े शानदार मकानों में रहते हैं।

गायत्री तपोभूमि हमने बनाया, आप जरा देखिए न, कैसा शानदार मकान है। लाखों रुपया उसमें लग गया और हमारा मकान देखिए न, अखण्ड ज्योति कार्यालय देखिए, उसका प्रेस देखिये और आप यहाँ आइए, शान्तिकुञ्ज देखिए, गायत्री नगर देखिए, ब्रह्मवर्चस देखिए, चौबीस सौ गायत्री शक्तिपीठों को देखिये। ये मैं बिल्डिंगों का किस्सा सुना रहा हूँ। ये तो बिल्डिंग हैं और बिल्डिंगों के अलावा इनमें जो आदमी रहते हैं, उन पे जो खर्च होता है वो, गायत्री तपोभूमि में कितने आदमी काम करते हैं। दो सौ आदमी वहाँ काम करते हैं। दो सौ आदमी (इस समय लगभग दो हजार) करीब यहाँ भी रहते हैं। इन सबका खाने का, पीने का, कपड़े का, रोटी का जो खर्चा निकलता है, ये कहाँ से आ जाता है? जाने कहाँ से आ जाता है।

धन हमारे पास कुछ कम नहीं पड़ता। जरूरत होती है, तो भगवान् की तरफ इशारा कर देते हैं और वो हमारे लिये जो कुछ भी चीजें हैं, सब ज्यों का त्यों भेज देते हैं। भगवान् के लिये सब आदमी एक से हैं। जो नियम हमारे ऊपर लागू हैं, वही आपके ऊपर भी लागू हो सकते हैं। भगवान् न हमारे साथ में रियायत करने वाले हैं और न आपके साथ में उनका कोई वैर-विरोध है। तरीके वो ही हैं, जो हमारे जीवन में हमको बताये गए। हमारे गुरु ने हमको तरीका बताया था और हमने अख्तियार कर लिया और गुरु को हम बहुत धन्यवाद देते हैं और आपको हम सिखाते हैं, समझाते हैं और बताते हैं कि आप भी उसी रास्ते पर चलिये, जिस रास्ते पर हम चले हैं। आप भी निहाल हो जाएँगे, धन्य हो जाएँगे और क्या कहूँ मैं आपसे? बस। आज की बात समाप्त।

॥ॐ शान्तिः॥