उद्बोधन हेतु गेय वाक्य पुलिस-अदालत है आसान, किन्तु अटल है ईश विधान। ईश न्याय दृढ़ खरा अटल, वहाँ न रिश्वत-घूस सफल। भारत माँ की असली जय, शोषित-दलित समाज उदय। शिल्पी-श्रमिक-किसान-जवान, ये हैं पृथ्वी पुत्र महान्। शुभ शासक की यह पहिचान, शोषक शमन सृजन सम्मान। मानव मात्र एक समान, एक पिता की सब संतान। जिसने बेच दिया ईमान, करो नहीं उसका गुणगान। अनाचार बढ़ता है कब, सदाचार चुप रहता जब। अधिकारों का वह हकदार, जिसको कर्त्तव्यों से प्यार। करते वही राष्ट्र उत्थान, जिनको है चरित्र का ध्यान। बहुत सरल उपदेश सुनाना, किन्तु कठिन करके दिखलाना। जीवन यज्ञ विश्व हित धर्म, आहुतियाँ दैनिक शुभ कर्म। अपना-अपना करो सुधार, तभी मिटेगा भ्रष्टाचार। बना इंद्रियों का जो दास, उसका कौन करे विश्वास। जब तक नहीं चरित्र विकास, तब-तब कर्मकाण्ड उपहास। हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। सद्गृहस्थ का साधक जीवन, संयम-सेवा भरा तपोवन। धर्मक्षेत्र में पूज्य वही नर, त्यागे लोभ स्वार्थ आडम्बर। यही सिद्धि का सच्चा मर्म, भाग्यवाद तज करो सुकर्म। करो नहीं ऐसा व्यवहार, जो न स्वयं को हो स्वीकार। सिर अनीति को नहीं झुकाएँ, चाहे प्राण भले ही जाएँ। बनो न फैशन के दीवाने, करो आचरण मत मनमाने। जाति-पाँति का घातक रोग, करता विफल एकता-योग। धुत्त नशे में जो रहता है, संकट खड़े रोज करता है। पिटती पत्नी बिकते जेवर, छोड़ शराबी ऐसे तेवर। यदि सुख से चाहो तुम जीना, कभी भूलकर मद्य न पीना। नशे को दूर भगाना है, खुशहाली को लाना है। मदिरा, मांस, तामसी भोजन, दूषित करते तन-मन-जीवन। नशा बड़ा ही है शैतान, हमें बना देता हैवान। मदिरा पीने में क्या शान, गली-गली होता अपमान। सोचो समझो बचो नशे से, जीवन जियो बड़े मजे से। नशा नाश की जड़ है भाई, इससे दूर रहो हे भाई। नारी का असली शृंगार, सादा जीवन उच्च विचार। जेवर नहीं बैंक का खाता, संचित धन को सफल बनाता। अगर रोकनी है बर्बादी, बंद करो खर्चीली शादी। नारी का सम्मान जहाँ है, संस्कृति का उत्थान वहाँ है। जागो शक्ति स्वरूपा नारी, तुम हो दिव्य क्रान्ति चिनगारी। सद्गुण है सच्ची संपत्ति, दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति। जो कुछ बच्चों को सिखलाते, उसे स्वयं कितना अपनाते? गंदे चित्र लगाओ मत, नारी को लजाओ मत। हर नारी देवी कहलाए, अबला क्यों ? सबला कहलाए। गन्दे गाने गाओ मत, नारी को लजाओ मत। रहे जहाँ नारी सम्मान, बनता है वह देश महान्। नारी के हैं रूप अनेक, ब्रह्मा, विष्णु और महेश। जाति-वर्ण जंजाल जहाँ है, समता नहीं बवाल वहाँ है। नारियो जागो-अपने को पहचानो। मांस मदिरा बीड़ी-पान, असुर तत्त्व की है पहचान। एक बनेंगे नेक बनेंगे, स्वस्थ बनेंगे सभ्य बनेंगे। गन्दे गाने गाओ मत, बच्चों को भटकाओ मत। कथनी करनी भिन्न जहाँ है, धर्म नहीं, पाखण्ड वहाँ है। वृक्षारोपण युग अभियान, प्रजनन-संयम पुण्य महान्। वृक्ष सभी का स्वागत करते, दे फल-फूल पंथ-श्रम हरते। वन रोपें, उद्यान लगाएँ, हरा-भरा निज देश बनाएँ। वृक्ष प्रदूषण-विष पी जाते, पर्यावरण पवित्र बनाते। हरियाली भूतल-शृंगार, जहाँ वृक्ष हैं, वहीं बहार। लकड़ी छाया दवा फूल फल, देते वृक्ष विशुद्ध वायु-जल। लघु सेवा तरु हमसे लेते, अमित लाभ जीवन भर देते। करते वृक्ष प्रदूषण दूर, देते हैं वर्षा भरपूर। वन-उपवन कह रहे पुकार, देते हम जल की बौछार। जीव और वन से जीवन है, बस्ती का जीवन उपवन है। वृक्ष और हितकारी सन्त, हैं इनके उपकार अनन्त। सिर पर बाँध कफन लड़ेंगे, दुष्वृत्तियाँ दफन करेंगे। नियमित और संयमित जीवन, हमको देता है चिर यौवन। सात्विक भोजन जो करते हैं, रोग सदा उनसे डरते हैं। व्यसनों की लत जिसने डारी, अपने पैर कुल्हाड़ी मारी। मान मिटा संपत्ति नशानी, नशेबाज की यही कहानी। एक पिता की सब संतान, नर और नारी एक समान। मानवता की यही पुकार, रोको नारी अत्याचार। चित्र काव्य संगीत कला, रहें स्वस्थ, है तभी भला। घर में टँगे हुए जो चित्र, घोषित करते व्यक्ति-चरित्र। गंदे फूहड़ गीत न गाओ, मर्यादा समझो, शरमाओ। वही व्यक्ति है चतुर सुजान, जिसकी हो सीमित संतान। पाण्डव पाँच हमें स्वीकार, सौ कौरव धरती के भार। फूहड़ गाने, गंदे चित्र, इनसे दूर रहो हे मित्र। गंदे फूहड़ चित्र हटाओ, माँ-बहिनों की लाज बचाओ। बढ़ते जिससे मनोविकार, ऐसी कला नरक का द्वार। शुभ अवसर का भोजन ठीक, मृतक-भोज है अशुभ अलीक। पूत-सपूत वही कहलाता, जो स्वदेश का मान बढ़ाता। ईश्वर ने इन्सान बनाया, ऊँच-नीच किसने उपजाया। चाटुकार को जिसने पाला, उस नेता का पिटा दीवाला। दुर्गुण त्यागो बनो उदार, यही मुक्ति सुरपुर का द्वार। शासक जहाँ चरित्र विहीन, वहीं आपदा नित्य नवीन। परम्पराएँ नहीं प्रधान, हो विवेक का ही सम्मान। जो उपहास-विरोध पचाते, वे ही नया कार्य कर पाते। शिक्षा समझो वही सफल, जो कर दे आचार विमल। बने युवक सज्जन शालीन, दें समाज को दिशा नवीन। ईश्वर तो है केवल एक, लेकिन उसके नाम अनेक। मिलता है उसको प्रभु प्यार, जो करता है आत्म-सुधार। ईश्वर के घर लगती देर, किन्तु नहीं होता अन्धेर। ईश्वर बंद नहीं है मठ में, वह तो व्याप रहा घट-घट में। मंदिर में युगधर्म पले, जन जागृति की ज्योति जले। वही दिखाते सच्ची राह, जिन्हें न पद-पैसे की चाह। जनमानस बदलेंगे कौन, जो कर सकते सेवा मौन। खोजें सभी जगह अच्छाई, ऐसी दृष्टि सदा सुखदायी। जहाँ हृदय परमार्थ परायण, वहाँ प्रकट नर में नारायण। वृक्षारोपण कार्य महान्, एक वृक्ष दस पुत्र समान। कदम क्रान्ति के नहीं रुकेंगे, बेटे-बेटी नहीं बिकेंगे। प्रजनन रोकें वृक्ष लगायें, शिक्षा औ सहकार बढ़ायें। जिसने बेच दिया ईमान, उनका करें नहीं गुणगान। अपनी गलती आप सुधारें, अपनी प्रतिभा आप निखारें। जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल। महाकाल की यही पुकार, बन्द करो सब भ्रष्टाचार। अधिक कमायें अधिक उगायें, लेकिन बाँट-बाँटकर खाएँ। जो करता है आत्म सुधार, मिलता उसको ही प्रभु प्यार। लोभ स्वार्थ भोजन का धंधा, करता धर्मक्षेत्र को गंदा। सही धर्म का सच्चा नारा, प्रेम एकता भाई चारा। परहित सबसे ऊँचा कर्म, ममता-समता मानव धर्म। जीवन उनका बना महान् , जिनका हर क्षण रत्न समान। प्रभु के बेटे प्रेम सिखाते, निहित स्वार्थ दंगे भड़काते। वही व्यक्ति है सच्चा संत, जिसके स्वार्थ अहं का अन्त। संभाषण के गुण हैं तीन, वाणी सत्य सरल शालीन। जुआ खेलने का यह फल, रोते फिरे युधिष्ठिर-नल। मानवता के दो आधार, सादा जीवन उच्च विचार। जहाँ जन्म से जाति जुड़ी है, वहाँ मनुजता ध्वस्त पड़ी है। जाति पाति का घातक रोग, करता विफल एकता योग। सफल ज्ञान का फल आचार, कोरा ज्ञान बुद्धि का भार। सतयुग आयेगा कब, बहुमत चाहेगा जब। इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य। कौन हरे धरती का भार-निष्कलंक प्रज्ञावतार। हमारा है यह लक्ष्य महान्, बने यह धरती स्वर्ग समान। संकट हो या दुःख महान्, हर क्षण ओठों पर मुस्कान। हँसना सीखें सृजन विचारें, आशा रखें भविष्य सुधारें। सुधरें व्यक्ति और परिवार, होगा तभी समाज सुधार। दुर्व्यसनों से पिण्ड छुड़ायें, स्वस्थ बनें सुख-संपत्ति पायें। जो न कर सके जन कल्याण, उस नर से अच्छा पाषाण। धनबल जनबल बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार। सद्गुण है सच्ची संपत्ति, दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति। पशुबलि झाड़ फूंक जंजाल, इनसे बचे वही खुशहाल। हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। मानव-समता के प्रिय मानक, बुद्ध मुहम्मद ईसा नानक। अहं प्रदर्शन झूठी शान, ये सब बचकाने अरमान। मानवता की ज्योति जलाएँ, जाति-धर्म मत-भेद भुलाएँ। धर्म का उद्देश्य मानव को पथ भ्रष्ट होने से बचाना है । मानव मात्र एक समान , एक पिता की सब संतान । जिसने बेच दिया ईमान , करो नहीं उसका गुणगान । अनाचार बढ़ता है कब , सदाचार चुप रहता जब । अधिकारों का वह हकदार , जिसको कर्त्तव्यों से प्यार । करते वही राष्ट्र उत्थान , जिनको है चरित्र का ध्यान । बहुत सरल उपदेश सुनाना , किन्तु कठिन करके दिखलाना । अपना -अपना करो सुधार , तभी मिटेगा भ्रष्टाचार । बना इंद्रियों का जो दास , उसका कौन करे विश्वास । बईमान को भी ईमानदार साथी चाहिए । अनियंत्रित आंखें अपवित्र हृदय की परिचायक है । हम बदलेंगे युग बदलेगा , हम सुधरेंगे युग सुधरेंगा। करो नहीं ऐसा व्यवहार , जो न स्वयं को हो स्वीकार । बनो न फैशन के दीवाने , करो आचरण मत मनमाने । धुत्त नशे में जो रहता है , संकट खड़े रोज करता है । यदि सुख से चाहो तुम जीना , कभी भूलकर मद्य न पीना । नशे को दूर भगाना है , खुशहाली को लाना है । नशा बड़ा ही है शैतान , हमें बना देता हैवान । मदिरा पीने में क्या शान , गली-गली होता अपमान । सोचो समझो बचो नशे से , जीवन जियो बड़े मजे से । नशा नाश की जड़ है भाई , इससे दूर रहो हे भाई । नारी का असली श्रृंगार , सादा जीवन उच्च विचार । अगर रोकनी है बर्बादी , बंद करो खर्चीली शादी । नारी का सम्मान जहाँ है , संस्कृति का उत्थान वहाँ है । जागो शक्ति स्वरूप नारी , तुम हो दिव्य क्रान्ति चिन्गारी । सद्गुण हैं सच्ची संपत्ति , दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति । जो कुछ बच्चों को सिखलाते , उसे स्वयं कितना अपनाते ? गंदे चित्र लगाओ मत , नारी को लजाओ मत । गन्दे गाने गाओ मत , नारी को लजाओ मत । रहे जहाँ नारी सम्मान , बनता है वह देश महान् । नारी के हैं रूप अनेक , ब्रह्मा ,विष्णु और महेश । नारियो जागो -अपने को पहचानो । एक बनेंगे नेक बनेंगे , स्वस्थ बनेंगे सभ्य बनेंगे । गन्दे गाने गाओ मत , बच्चों को भटकाओ मत । कथनी करनी भिन्न जहाँ है , धर्म नहीं , पाखण्ड वहाँ है । वन रोपें , उद्यान लगाएँ , हरा - भरा निज देश बनाएँ । करते वृक्ष प्रदूषण दूर, देते हैं वर्षा भरपूर । नियमित और संयमित जीवन , हमको देता है चिर यौवन । सात्विक भोजन जो करते हैं , रोग सदा उनसे डरते हैं । व्यसनों की लत जिसने डारी , अपने पैर कुल्हाड़ी मारी । मान मिटा संपत्ति नशानी , नशेबाज की यही कहानी । एक पिता की सब संतान , नर और नारी एक समान । मानवता की यही पुकार ,रोको नारी अत्याचार । गंदे फूहड़ गीत न गाओ , मर्यादा समक्षो ,शरमाओ । वही व्यक्ति है चतुर सुजान , जिसकी हो सीमित संतान । गंदे फू हड़ चित्र हटाओ , माँ - बहिनों की लाज बचाओ । बढ़ते जिससे मनोविकार , ऐसी कला नरक का द्वार । ईश्वर ने इन्सान बनाया , ऊँच -नीच किसने उपजाया । दुर्गुण त्यागो बनो उदार ,यही मुक्ति सुरपुर का द्वार । परम्पराएँ नहीं प्रधान , हो विवेक का ही सम्मान । ईश्वर तो है केवल एक , लेकिन उसके नाम अनेक । मिलता है उसको प्रभु प्यार , जो करता है आत्म -सुधार । ईश्वर के घर लगती देर , किन्तु नहीं होता अन्धेर । ईश्वर बंद नहीं है मठ में , वह तो व्याप रहा घट-घट में। वही दिखाते सच्ची राह , जिन्हें न पद -पैसे की चाह । जहाँ हृदय परमार्थ परायण , वहाँ प्रकट नर में नारायण । प्रजनन रोकें वृक्ष लगायें , शिक्षा और सहकार बढ़ायें । जिसने बेच दिया ईमान , उनका करें नहीं गुणगान । जैसी करनी वैसा फल , आज नहीं तो निश्चय कल । अधिक कमायें अधिक उगायें , लेकिन बाँट-बाँटकर खाएँ मानवता के दो आधार , सादा जीवन उच्च विचार जो न कर सके जन कल्याण , उस नर से अच्छा पाषाण । धनबल जनबल बुद्धि अपार , सदाचार बिन सब बेकार । सद्गुण है सच्ची संपत्ति , दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति । पशुबलि झाड़ फूँक जंजाल , इनसे बचे वही खुशहाल । मानव -समता के प्रिय मानक , बुद्ध मुहम्मद ईसा नानक। मानवता की ज्योति जलाएँ , जाति -धर्म मत -भेद भुलाएँ । हम बदलेंगे युग बदलेगा , हम सुधरेंगे युग सुधरेगा । इक्कीसवीं सदी -उज्ज्वल भविष्य ।