गायत्री मन्त्र की अद्भुत शक्ति
परमवन्दनीया माताजी की अमृतवाणी
गायत्री मन्त्र की अद्भुत शक्ति
आज गायत्री परिवार का जो भी वृहद् स्वरूप दिखाई पड़ता है, उसके पीछे परमवन्दनीया माताजी का तप एवं समर्पण छिपा हुआ है। अश्वमेध यज्ञों की शृंखला के माध्यम से गायत्री परिवार को जो विस्तार उन्होंने प्रदान किया, वह सर्वविदित है। उन्हीं शृंखलाओं के मध्य परमवन्दनीया माताजी द्वारा दिए गए उद्बोधन आज भी अनेकों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। अपने एक ऐसे ही प्रस्तुत उद्बोधन में वे गायत्री मन्त्र की अद्भुत एवं विलक्षण शक्ति के विषय में बताते हुए कहती हैं कि गायत्री मन्त्र के भीतर इतनी शक्ति है कि वह मानव को महामानव बना सकती है। वन्दनीया माताजी गायत्री परिवार के समस्त विस्तार का आधार भी गायत्री मन्त्र की इसी विशाल शक्ति को बताती हैं। आइए हृदयंगम करते हैं उनकी अमृतवाणी को.......
गायत्री मन्त्र की अद्भुत शक्ति
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
हमारे आत्मीय परिजनो! गायत्री मन्त्र में अपूर्व शक्ति है। जिस किसी ने भी श्रद्धा के साथ, विश्वास के साथ और निष्ठा के साथ इसकी उपासना की है, वे मानव ही नहीं; बल्कि देवमानवों की श्रेणी में आ गए, महामानवों की श्रेणी में आ गए।
वे देवताओं की श्रेणी में आ गए, ऋषियों की श्रेणी में और सन्तों की श्रेणी में आ गए। यदि निष्ठा और श्रद्धा के साथ इस मन्त्र का मनन-चिन्तन और उपासना की जाए, तभी यह सब सम्भव है।
गायत्री में चौबीस अक्षर होते हैं और उसके तीन चरण होते हैं। इस महामन्त्र के चौबीसों अक्षरों में इतनी प्रेरणा भरी हुई है कि प्रत्येक अक्षर को यदि अपने जीवन में उतारा जाए तो व्यक्ति मानव से महामानव, महामानव से सन्त और सन्त से ऋषि हो सकता है। हमने यहाँ पर वही प्रक्रिया लागू की है।
गुरुजी ने चौबीस-चौबीस लक्ष के चौबीस पुरश्चरण किए थे। जौ की रोटी खाकर के और छाछ पीकर के उन्होंने यह दिखाया कि गायत्री मन्त्र में कितनी शक्ति भरी हई है। उस शक्ति का स्वरूप यदि आपको देखना है, तो आपको आमन्त्रित किया जाता है कि कभी आप भारतवर्ष आएँ और यहाँ आप देखिए कि गायत्री मन्त्र की कितनी विशाल शक्ति है, जो इस शक्ति के रूप में यहाँ फैली पड़ी है।
यहाँ हम मानव को महामानव बनाने के लिए उसको प्रेरणा देते हैं और उसको बनाते हैं। यह हमारी भट्ठी है, यह हमारी प्रयोगशाला है, जहाँ कि हम देवमानवों के रूप में एक सेना तैयार करते हैं और वह सेना जिसे मोर्चे पर जहाँ लगा दिया जाता है, वहीं वह सफल होकर के आती है। लोग भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं और यह कहते हैं कि यह कौन-सी संस्था है, जो कि त्याग और तपस्वी का रूप धारण किए हुए है।
बेटे! जहाँ देखो, वहीं ऐसा मालूम पड़ता है कि यहाँ साक्षात् देवताओं का निवास है। यहाँ जितने व्यक्ति निवास करते हैं, वे देवता हैं। आखिर ये किसने बनाए हैं? तब आपको मालूम पड़ेगा कि उस महामानव ने, उस सन्त ने और उस ऋषि ने बनाए हैं, जिसने कि अपने को तपा-तपा करके हड्डी-हड्डी गला दी। वही श्रद्धा आप लोगों में भी काम कर रही है। फरक इतना ही है, थोड़ा-सा ही अन्तर है कि उस श्रद्धा को ज्यादा-से-ज्यादा अमल में नहीं लाया गया। यदि अमल में लाया गया होता, तो यही भावना, यही प्रेरणा आप लोगों के अन्दर भी काम करती।
शक्ति के दो स्वरूप
आप लोगों को जो सौंपा गया है, उस शक्ति के दो स्वरूप होते हैं। एक तो प्रत्यक्ष और एक परोक्ष। परोक्ष वह है, जो तपश्चर्या से ताल्लुक रखता है और प्रत्यक्ष वह है, जो क्रिया के रूप में लागू है। जो क्रिया के रूप में दिखाई पड़ता है, वही रूप हमने आपको भी सौंपा है कि आप भी इस दिशा में लग जाइए जो प्रत्यक्ष स्वरूप है। प्रत्यक्ष ही दिखाई पड़ता है, परोक्ष रूप दिखाई नहीं पड़ता। परोक्ष रूप उनको दिखाई पड़ता है, जो परोक्ष शक्ति को जानते हैं।
जिन्होंने जाना नहीं, समझा नहीं, वे परोक्ष रूप की शक्ति को क्या पहचानेंगे, उस तक तो हम व्यक्ति को नहीं ले जाते; वरन हम व्यक्ति को व्यावहारिक अध्यात्म सिखाते हैं और यह कहते हैं कि आप इस रास्ते पर चलिए, जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं। हमने चलकर के दिखाया है कि यह घाटे का रास्ता नहीं है; वरन नफे का रास्ता है। इस रास्ते पर जो कोई भी चला है, उसका स्वयं का कल्याण होता है और उससे जुड़ने पर दूसरों का कल्याण होता है।
बेटे! अभी मैं यह निवेदन कर रही थी कि अपने बच्चों में संस्कार डालिए, महिलाओं में संस्कार डालिए, पुरुषों में संस्कार डालिए। आज ये संस्कारविहीन हैं। इनमें संस्कार नहीं पाए जाते हैं। लबादा तो पाया जाता है। फैशनपरस्ती से लेकर के अन्य जो प्रसाधन हैं, उसके बहाव में बहते तो जा रहे हैं।
कोई जमाना था, जबकि हमारे भारतवर्ष में लोग शिक्षा लेकर के जाते थे। यहाँ नदियों को माँ के रूप में और प्रतिमाओं को भगवान के रूप में पूजा जाता था। इस बात को सारा संसार मानता था; लेकिन आज तो न मालूम हमारे दिमागों में क्या छा गया है, जिससे हम पतन के रास्ते पर जा रहे हैं। पतन के रास्ते पर न जाएँ, बल्कि ऊँचाई की ओर देखें, नीचाई की ओर नहीं देखें।
यदि नीचाई की ओर देखेंगे, तो हम नीचे गिरते हुए चले जाएँगे। अगर हम ऊँचाई की तरफ देखेंगे, तो हम हिमालय से ऊँचे हो सकते हैं और उन ऊँचाइयों को छू सकते हैं, जो आज तक विज्ञान ने भी नहीं छुई थीं।
मानसिक विकृति का परिणाम
विज्ञान जिस तेजी से बढ़ता हुआ चला जा रहा है, आपको मालूम है। एटम बमों से लेकर जो विनाशकारी सामान, जो सरंजाम जुटाया जा रहा है, आपको मालूम है। लेकिन सहजता नहीं है, भावनाएँ नहीं हैं, मिलनसारिता नहीं है, प्यार नहीं है। भाई-भाई के प्रति, बहन-बहन के प्रति, सबके प्रति निष्ठुरता पैदा होती जा रही है। जातिवाद के नाम पर, सम्प्रदायों के नाम पर, मजहबों के नाम पर मनुष्य बँटता जा रहा है। जबकि सारे संसार में जो कौम है, वह एक ही कौम है। वह मानवतावादी कौम है। सबके अन्दर एक ही खून, एक ही माँस, एक ही मज्जा पैदा हुआ है, फिर एकदूसरे भाई को, एकदूसरे भाई से अलग क्यों किया जा रहा है?
उसमें एक ही कारण छिपा हुआ मालूम पड़ता है और वह है—हमारे दिमागों की विकृति। हमारे दिमागों का विकृत चिन्तन। हमारे दिमाग में सही चिन्तन नहीं आता। हमें एकदूसरे को ऊँचा उठाना नहीं आता। हमको आना चाहिए। आइए, आप और हम मिलकर के यह प्रयास करें कि हम इनको ऊँचा उठाएँ। इनको भावनात्मक दृष्टि से ऊँचा उठाएँ। उनकी श्रद्धा को परिपक्व करें। उनकी श्रद्धा जब तक परिपक्व नहीं होगी, तब तक यही नरसंहार होता रहेगा। होता रहा है और आगे भी होता ही रहेगा।
इसे रोका कब जाएगा? तब रोका जाएगा, जब उनकी श्रद्धा उभारी जाएगी। उनके अन्दर उदारता और प्यार जगाया जाएगा। उनके अन्दर यह समाया जाएगा, यह कहा जाएगा कि भगवान की शक्ति कहीं है। उस शक्ति को आप पहचानिए। यदि आपने उसका पल्ला पकड़ा है श्रद्धा के साथ, तो वही पार लगाएगा। गायत्री मन्त्र की बाबत मैंने शुरू में कहा था कि उसी का सम्बल हम लेकर के चले हैं और उसी से यहाँ तक इतनी बड़ी मंजिल पार करके आए हैं और वही मंजिल हम आप सबको दिखाते हैं और यह कहते आए हैं कि आप भी इसी रास्ते पर चलिए, आपका कल्याण होगा और आपके समीपवर्ती जो भी आपसे जुड़े हुए हैं, उनका भी कल्याण होगा।
बेटे! ऐसे कितने ही व्यक्ति हैं, जिनका नाम मैं बताना नहीं चाहती हूँ। इस मन्त्र से कितना-कितना उनको लाभ पहुँचा है, यदि नाम गिनाने लगूँ तो सम्भव है, पूरा ग्रन्थ लिख जाएगा और यह लिखा जाएगा कि अमुक-अमुक व्यक्तियों को इससे क्या-क्या लाभ मिला, वह लाभ क्यों नहीं मिला?
गुरुदेव की शक्ति
उसका एक लाभ गायत्री मन्त्र की शक्ति से और गुरुजी की शक्ति से मिला; क्योंकि उन्होंने सारी जिन्दगी अपने को तपाया है और तपाने के पश्चात जो भी कुछ मुँह से कहा है, वह सफल होता रहा है। इसमें अहंकार नहीं है। यह शेखी नहीं है, अहंकार नहीं है, बल्कि सच्चाई है। वह यथार्थ है कि जो भी कुछ कहा वह सत्य हो जाता है; क्योंकि उन्होंने अपनी जिह्वा पर संयम, अपनी इन्द्रियों पर संयम, अपने शरीर पर संयम, अपने विचारों पर संयम किया है। सारे विश्व के कल्याण के अतिरिक्त चिन्तन में उनको कुछ भी नजर नहीं आता कि घर-परिवार कहाँ है? यह सारा विश्व हमारा परिवार है। विश्व मानव यही हमारा परिवार है, यही हमारा घर है, यही हमारा भाई है, यही हमारा भतीजा है, यही हमारा कुटुम्बी है, यही हमारा बेटा है। आप सबको हम अपना भाई, भतीजा, बेटा, कुटुम्बी, चाचा, ताऊ मानते हैं। आप हमारे और हम आपके हैं।
भारतीय संस्कृति के लिए जितना कुछ किया जाए, उतना ही थोड़ा है। किसी जमाने में सात ऋषि थे और सात ऋषि सारे विश्व में छाए हुए थे। आज देवमानवों के रूप में इतनी बड़ी सेना और इतनी बड़ी संख्या हमारे पास है। यह कितना बड़ा संगठन है। यदि आप यह देखें और मिलकर के कार्य करेंगे, तो कुछ ही दिनों में यह चमत्कार देखने को मिलेगा कि किस तेजी से परिवर्तन होता हुआ चला जा रहा है।
यह क्रान्ति है। क्रान्ति जीवन में आती है, तो जो कोई भी उठा है, वह आगे बढ़ता, उठता हुआ चला जाता है और जो गिरता है, वह गिरता हुआ चला जाता है। आपने शीरीन-फरहाद का किस्सा तो सुना ही होगा। जब भीतर से उत्साह होता है, तो व्यक्ति कुछ भी कर गुजरने को तत्पर हो जाता है। अकेला ही फरहाद नहर को निकाल करके लाया था और शीरी के साथ उसकी शादी हो गई थी। हम आपको कितने-कितने उदाहरण सुनाएँ कि जब भी भीतर से व्यक्ति की इच्छाशक्ति जाग्रत होती है, तो वह क्या-क्या नहीं बन जाता है।
विदेश में लुइस ब्रेल नाम की एक महिला हुई है। जो गूँगी भी थी, अन्धी भी थी और सुनती भी नहीं थी लेकिन कितने ही विषयों में उसने डी0लिट किया था और उसने अन्धे व्यक्तियों के लिए ब्रेल लिपि का प्रादुर्भाव किया था। उस महिला ने, जो कि स्वयं प्रज्ञाचक्षु थी। यदि इस उत्तर से अपनी शक्ति को जगाएँ, तो शक्ति की कोई कमी है क्या? कोई कमी नहीं है।
आपके अन्दर भी शक्ति की कोई कमी है क्या? नहीं। हमको दिखाई पड़ता है कि आपके अन्दर भी कितनी अपार शक्ति भरी हुई पड़ी है। लेकिन आप उस शक्ति को पहचान नहीं पा रहे हैं। उस शक्ति को जगाने के लिए हमने संकल्प लिया है।
प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर इतनी शक्ति, इतना खजाना भरा पड़ा है। उस खजाने को फैलाना चाहिए। उसकी शक्ति को जगाना चाहिए, उसको ऊँचा उठाना चाहिए; ताकि वह अपने भी काम में आए और दूसरों के काम भी आए। उसका स्वयं का विकास हो और दूसरों का भी विकास हो। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खतम करती हूँ। यहाँ जो भी महानुभाव बैठे हैं, उनको हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ।
॥ॐ शान्तिः॥