शान्तिकुञ्ज की जीवनचर्या - स्व-मूल्यांकन के आधार


शान्तिकुञ्ज की जीवनचर्या - शान्तिकुञ्ज की जीवनचर्या pdf file

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। - बोना और (१०० से १००० गुना) काटना शुरू कीजिए। - करिष्ये वचनम् तव।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥2-47॥
अनजान होना उतनी लज्जा की बात नहीं, जितना सीखने के लिए तैयार न होना। आत्मबोध - तत्त्वबोध साधना।
सीखने की इच्छा रखने वालों के लिए पग-पग पर शिक्षक हैं। - सीखना-उपासना - बनना-साधना - बनाना-आराधना-सेवा।


प्रातः जागरण आत्मबोध - नित्य नया जन्म - सविता ईष्ट, लक्ष्य, उपास्य - सविता रूप में विद्यमान पूज्य गुरुसत्ता/ईश्वर/परमात्मा को आज के जीवन के लिए धन्यवाद और आज मिलने वाले सभी परिजनों को भी उनके सहयोग के लिए धन्यवाद। दिन भर की मानसिकता और कार्यों की संक्षिप्त रूपरेखा-योजना। मानवीयता का प्रथम गुण - कृतज्ञता।
प्रार्थना ईष्ट ध्यान - सविता देवता से प्रार्थना - हम क्या चाहते हैं? - दीक्षा में लिए गए व्रत के अनुरूप जीवन जीने का संकल्प।
तीर्थक्षेत्र की पवित्रता, प्रखरता व प्रेरणाएँ गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित, यज्ञ ऊर्जा से ऊर्जित, स्वर्णिम किरणों से ओत-प्रोत प्रत्येक श्वाँस - पूज्य गुरुसत्ता का प्राण भरा स्नेह और गीतों-प्रवचनों-सद्वाक्यों के माध्यम से स्नेह भरी प्रेरणाएँ।
उषापान, ताड़ासन आदि स्वस्थ शरीर भगवान का मंदिर।
स्वच्छता घर - शरीर - मन - अन्तःकरण की नियमित सफाई।
आरती विवेक की देवी गायत्री माता की आरती - विश्व में सभी के लिए सद्बुद्धि-सद्भाव की प्रार्थना।
सविता देवता की उपासना सविता देवता की गुणों-विशेषता का वर्णन और सभी के लिए पवित्रता - पात्रता की प्रार्थना।
मौन अन्तर्मुखी अभ्यास।
ध्यान मैं क्या हूँ? का प्रयोग रूप - गायत्री मंत्र से तीनों शरीरों का - पंचकोषों का जागरण और अभिमंत्रित होना।
प्रणाम व तीर्थ दर्शन अखण्ड दीप, गायत्री मंदिर, भटका हुआ देवता, ऋषि-क्षेत्र, समाधि स्थल व देवात्मा हिमालय दर्शन - दिव्य सत्ताओं की अनुभ्ूति और उनके जीवन मूल्यों के प्रति आदर व कृतज्ञता के भाव।
सद्वाक्य दिव्य प्रेरणाएँ - सूक्ष्म शरीर की साधना। जीवन की समस्याओं का समाधान।
गीत प्रेरणा, प्रार्थना, प्रतिज्ञा-संकल्प - गीतों में जीवन की समस्याओं का समाधान।
यज्ञ सहयजन, सामूहिक मन, सद्भावों का सामूहिक जागरण, कर्मकाण्डों से प्रेरणा।
जप सहभजन, सविता देवता से प्रार्थना, अनुशासन, प्रतिज्ञा-संकल्प - गायत्री मंत्र के तत्त्व दर्शन को (भगवान् के अनुशासन को - ईश्वर-स्वयं-प्रकृति क्या-कैसा है? - क्या, क्यों, कैसे, कहाँ, कब करें?) बार-बार समझना-स्वीकारना - जीवन में अपनाना।
व्यायाम आसन, प्राणायाम, प्रज्ञायोग, मुद्रा, बन्ध - स्वस्थ शरीर भगवान का मंदिर।
उदीयमान सूर्य का दर्शन प्रणाम - आत्म स्वरूप की अवधारणा - मैं क्या-कैसा हूँ? लक्ष्यबोध - साधक सविता एक - भक्त भगवान् एक।
‘‘अपने अंग-अवयवों से’’ चिन्तन प्रतिदिन स्वाध्याय-स्वीेकारना - पूज्य गुरुसत्ता से आत्मीेयता के भाव का बढ़ना - एकत्व बोध - सजल श्रद्धा।
‘‘युग निर्माण सत्संकल्प’’ चिन्तन प्रतिदिन स्वाध्याय-स्वीेकारना - पूज्य गुरुसत्ता के अनुशासन से स्वयं को अनुबंधित करना - प्रखर प्रज्ञा।
अंकुरित अन्न जीवन्त भोजन - चलें प्रकृति की ओर।
सत्संग - सत्य का संग दिव्य प्रेरणाओं और सद्भावनाओं से अभिभूत होना - प्रवचन, ऑडियो-वीडियो या पुस्तकोंके माध्यम से।
सहभोजन सहभोजन, सामूहिक भोजन एक जैसा, भेदभाव रहित - भोजन परसना - आत्मीयता का विस्तार।
स्वाध्याय जीवन की मार्गदर्शक प्रेरणाएँ - महापुरुषों का सत्संग - आत्म निरीक्षण-परीक्षण व समीक्षा।
ध्यान दोपहर गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित होना, सवेरे से अभी तक की आत्मसमीक्षा - आत्म निरीक्षण-परीक्षण - चिंतन-मनन।
श्रमदान सुव्यवस्था-स्वच्छता का व्यक्तिगत व सामूहिक अभ्यास, झूठे अहंकार का स्वयंसेवक भाव में परिवर्तन।
आरती साकार उपासना - ईष्ट गुणगान-चिन्तन और वैसा ही बनने-बनाने का संकल्प।
नादयोग मौन अन्तर्मुखी ॐकार नाद - भाव संवेदनाओं का - उदार आत्मीयता का जागरण-विस्तार।
रात्रि प्रार्थना तत्त्वबोध - दिन भर की मानसिकता व कार्यों की कठोर समीक्षा - क्षमा प्रार्थना - सभी के प्रति कृतज्ञता-आभार के भाव - अगले दिन की मानसिकता और कार्यों की संक्षिप्त रूपरेखा-योजना, प्रतिदिन प्रगति पथ पर चलने की चाह-संकल्प।

अन्य प्रक्रियाएँ

गायत्री मंत्र दीक्षा पूज्य गुरुसत्ता के जीवन का अनुकरण-अनुगमन का संकल्प - सविता रूप में पूज्य गुरुसत्ता का वरण - गायत्री मंत्र दीक्षा में लिए गए व्रत-अनुशासन-अनुबन्धों के अनुरूप महान जीवन जीने का संकल्प।
ज्ञानघट - अंशदान ज्ञान-यज्ञ के लिए उपार्जित धन-साधन का एक अंश लगाना।
अन्नघट ज्ञान-यज्ञ के लिए उपार्जित अन्न का एक अंश लगाना।
बलिवैश्व यज्ञ अन्न से बने मन - विश्व के सभी प्राणियों को देकर यज्ञ प्रसाद के रूप में भोजन प्रसाद ग्रहण करना।
जल अर्घ्य लघु का विभु में समर्पण-विसर्जन-विलय, व्यष्टि का समष्टि में समर्पण-विसर्जन-विलय।
दीपयज्ञ दैनिक, साप्ताहिक, पूर्णिमा - सविता देवता के प्रतिनिधि दीपकों के साथ यज्ञ।
जन्म दिन जीवन की महत्ता व लक्ष्य का चिंतन-मनन।
विवाह दिन समूह जीवन की महत्ता व लक्ष्य का चिंतन-मनन।
विभिन्न संस्कार - पुंसवन आदि। जीवन की महत्ता व लक्ष्य का चिंतन-मनन और सामयिक मार्गदर्शन।
विभिन्न त्यौहार समूह जीवन की महत्ता व लक्ष्य का चिंतन-मनन और सामयिक मार्गदर्शन।
हेमाद्रि संकल्प कर्मफल और पुनर्जन्म के सिद्धान्त को समझना, नए निर्धारण और प्रायश्चित करना - जैसा बोओ - वैसा काटो।


व्यक्तिगत जीवनचर्या

क्या-कैसा है? - क्या, क्यों, कैसे, कहाँ, कब करें? - गायत्री मंत्र और यज्ञ का तत्त्वदर्शन।
इस तथ्य को हजार बार समझा और लाख बार समझाया जाना चाहिए कि मनःस्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है।
इक्कीसवीं सदी भाव-सम्वेदनाओं के उभरने-उभारने की अवधि है।
पुनरावृत्ति-स्मृति, कृतज्ञता-आस्वस्ति-श्रद्धा-ग्रहणशीलता-स्वीकृति, अभ्यास-अनुभूति (स्मरण, स्वीकार और अनुभव करना)
सब अपने और अपने को सबका मानने की आस्था उभरती और परिपक्व होती रहे।
गुण अपने आप में शक्ति के पुंज हैं, कर्म अपने आप में शक्ति के पुंज हैं और स्वभाव अपने आप में शक्ति के पुंज हैं।
हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा -- स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन, सभ्य समाज।
जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। - कर्मकाण्ड - विचारकाण्ड - भावकाण्ड में एकरूपता।
आत्मिक प्रगति के चार चरण - आत्मसमीक्षा (स्व-मूल्यांकन), आत्मसुधार, आत्मनिर्माण, आत्मविकास।
सेवा है सच्ची पूजा, सेवा सत्कर्म रे। -- पर-सेवा पर-उपकार में हम यह जीवन सफल बना जाएँ।
कृतज्ञतायुक्त प्रशंसा, उज्ज्वल भविष्य (समर्पण, प्रेम, श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा व स्वास्थ्य) की शुभकामना-प्रार्थना-प्रोत्साहन के लिए सन्तुष्टि और प्रसन्नता से भरी-पूरी अभिव्यक्ति और परस्पर संवाद। - सहकारिता- सहभजन, सहभोजन, सहयजन (सहचिंतन-जीवन)
व्यक्ति निर्माण - व्यक्तिगत सेवा परिवार निर्माण - परिवार सेवा समाज निर्माण - समाज सेवा
अभ्यास की एक बूँद सिद्धान्तों, सलाहों और अच्छे संकल्पों के समुद्र से कहीं अच्छी है।
कृतज्ञता/विनयपूर्वक प्रार्थना/निवेदन - १ बार, ध्यानपूर्वक निर्देश सुनना/समझना/वरण/ग्रहण/अनुभव करना - १०० बार,
प्रेरणा/मार्गदर्शन को कृतज्ञता/प्रसन्नता/सरलतापूर्वक स्वीकारना/अपनाना/जीवन में धारण/अमल करना - १००० बार
अन्य प्रक्रियाएँ
अन्य प्रक्रियाएँ
अन्य प्रक्रियाएँ


स्व-मूल्यांकन आधारित जीवनचर्या
व्यक्ति निर्माण - व्यक्तिगत सेवा परिवार निर्माण - परिवार सेवा समाज निर्माण - समाज सेवा
हर समय
प्रतिदिन
साप्ताहिक
पाक्षिक
मासिक
अर्धवार्षिक
वार्षिक