शान्तिकुञ्ज—कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी

अब हमने सारे के सारे शान्तिकुंज को विश्वविद्यालय के रूप में परिणत कर दिया है।...आज मनुष्य को जीना कहाँ आता है? जीना भी एक कला है। सब आदमी खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं और मौत के मुँह में चले जाते हैं, किन्तु जीना नहीं जानते। जीना बड़ी शानदार चीज है। इसको संजीवनी विद्या कहते हैं-जीवन जीने की कला। यहाँ हम अपने विश्वविद्यालय में-शान्तिकुंज में जीवन जीने की कला सिखाते हैं और यह सिखाते हैं कि आज गए-बीते जमाने में आप अपनी नाव पार करने के साथ-साथ सैकड़ों आदमियों को बिठाकर पार किस तरह से लगा पाते हैं?...हमने अपने जीवन के इस अन्तिम समय में सारी हिम्मत और शक्ति इस बात में लगा दी है कि शान्तिकुंज को हम एक विश्वविद्यालय बना देंगे।...हमने स्वयं का महान् और शानदार जीवन जीने के लिए शिक्षण देने का प्रबन्ध किया है। न केवल स्वयं का जीवन बल्कि समाज की सेवा का शिक्षण। न केवल समाज की सेवा बल्कि यह भी कि आज की समस्याएँ क्या हैं? गुत्थियों का हल और समाधान निकालने के लिए क्या कदम बढ़ाए जाने चाहिए और किस तरीके से काम करना चाहिए? यह सिखाने का प्रबन्ध किया है।...हमने यह हिम्मत की है कि कानी कौड़ी की भी फीस किसी के ऊपर लागू नहीं की जाएगी। यही विशेषता नालन्दा-तक्षशिला विश्वविद्यालय में भी थी। वही हमने भी की है, लेकिन बुलाया केवल उन्हीं को है, जो समर्थ हों, शरीर या मन से बूढ़े न हो गए हों, जिनमें क्षमता हो, जो पढ़े-लिखे हों। इस तरह के लोग आयेंगे तो ठीक है।...जो लायक हों वे यहाँ की ट्रेनिंग प्राप्त करने आएँ और हमारे प्राण, हमारे जीवट से लाभ उठाना चाहें, चाहे हम रहें या न रहें, वे लोग आएँ। प्रतिभावानों के लिए निमन्त्रण है, बुड्ढों, अशिक्षितों, उजड्डों के लिए निमन्त्रण नहीं है।...यह धर्मशाला नहीं है। यह कॉलेज है, विश्वविद्यालय है। कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी है। हमारे सतयुगी सपनों का महल है। आपमें से जिन्हें आदमी बनना हो, इस विद्यालय की संजीवनी विद्या सीखने के लिए आमन्त्रण है। कैसे जीवन को ऊँचा उठाया जाता है, समाज की समस्याओं का कैसे हल किया जाता है? यह आप लोगों को सिखाया जाएगा। दावत है आप सबको। आप सबमें जो विचारशील हों, भावनाशील हों, हमारे इस कार्यक्रम का लाभ उठाएँ। अपने को धन्य बनाएँ और हमको भी।

वाङ्मय-नं-६८ पेज-१.४०-४१