महाकाल की पुकार सुनें और जीवन को धन्य बनाएँ
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
भाइयो! देवियो!!
समय सभी के पास है। उसको, ठीक मौके को कोई-कोई समझ पाते हैं, कोई-कोई देख पाते हैं। उस मौके को जो देख लेते हैं, समझ लेते हैं, उसका ठीक उपयोग कर लेते हैं वे ही मजे में रहते हैं। बाकी लोगों की जिन्दगियाँ तो ऐसे ही व्यतीत हो जाती हैं, जानवरों के तरीके से पेट भरने में और बच्चे पैदा करने में। इन दो कामों में ही चिड़िया का, जानवरों का, मनुष्यों का, पशुओं का, सबका समान रूप से समय व्यतीत हो जाता है; लेकिन उसका सुयोग और सौभाग्य उठाना उन्हीं लोगों के हिस्से में आया है, जो मौके को ठीक तरीके से समझ पाते हैं और ठीक तरीके से इस्तेमाल कर लेते हैं।
रेलगाड़ी टाइम पर आती है। आप टाइम पर प्लेटफार्म पर पहुँचें तो उसमें सवार हो सकते हैं और अगर समय चूक जाते हैं तो चौबीस घण्टे तक इन्तजार कीजिए। कल गाड़ी आयेगी, तब देखा जाएगा और टिकिट भी बेकार हो जाएगी। कल नयी टिकिट खरीदनी पड़ेगी। इस तरीके से समय को ध्यान में रखना हमेशा आवश्यक है। फसल का, बीज बोने का एक खास समय आता है। उस समय को आप चुका दें और किसी भी वक्त बहुत-सा बीज बो दें, ठीक है बो दीजिए, लेकिन यह पैदावार नहीं हो सकती, वह आमदनी नहीं हो सकती, जो ठीक समय पर बीज बोये जाने पर हुआ करती है। फसल काटने का भी एक निश्चित समय होता है। उस समय पर अगर फसल काट ली, तो अनाज आपके घर आ जाएगा और आपने महीना-पन्द्रह दिन ऐसे ही गँवा दिये तो बाद में थोड़ा-सा अनाज ही हाथ लग पाएगा।
जिन्दगी में बहुत-से ऐसे मौके आते हैं जैसे-आपके पड़ोस में किसी की मृत्यु हो गयी है और वहाँ से बुलावा आया है कि हमारे घर में गमी हो गयी है, जरा श्मशान घाट तक चलिए। आपने कहा-नहीं साहब, अभी समय नहीं है। परसों देखा जाएगा, परसों आयेंगे। फिर वह व्यक्ति जिन्दगी भर ख्याल रखेगा कि हमारे घर में हमारी माताजी की मृत्यु हुई थी और ये नहीं आये। ‘ये नहीं आए’ जिन्दगी भर यह कलंक आपके साथ लगा ही रहेगा। समय चूक जाने पर आप उसको पूरा नहीं कर पायेंगे। किसी के यहाँ शादी-ब्याह हो और वह कहे, हमारे यहाँ सब मेहमान आये हैं, आप भी आइए! अरे साहब, पन्द्रह दिन बाद आयेंगे। इस वक्त तो हम नहीं आ सकते, अभी छुट्टी नहीं है; इस वक्त तो हमें बहुत काम है। ठीक है, फिर आपसे जिन्दगी भर कहने को रह जाएगा कि आप ब्याह के मौके पर नहीं आये थे। घर में बच्चा पैदा होता है। सारे घरवाले, पड़ोसी महिलाएँ सब इकट्ठी हो जाती हैं और देखती हैं कि बहू को कोई परेशानी न पैदा हो जाए। समय पर जा पहुँचती हैं तो ठीक है। बच्चा पैदा हो गया और उसके बाद में वे कहें अरे साहब, हमें खबर तो हो गयी थी, पर हम सो गये थे, हम आये नहीं।
समय का बड़ा महत्त्व है। समय की कीमत है। समय पर सही काम कर लेना मनुष्य की सबसे बड़ी बुद्धिमानी और सबसे बड़ी खुशहाली है। आपके लिए भी यह समय खास समय है। इस समय को अगर आप पहचान लें और उसका ठीक उपयोग कर लें, तो समझिये आप बड़े भाग्यवान निकले और आपने अपने जीवन को सार्थक कर लिया। समय रूपी सम्पदा को पाकर आप निहाल हो गये, अगर आप मौके को समझ नहीं पाये, देख नहीं पाये और किस समय में आपको क्या करना चाहिए, इस बात को भुला दिया तो आपको पश्चाताप के अलावा और कुछ हाथ लगने वाला नहीं है। ये बड़ा कीमती समय है। कैसा कीमती समय है? ये ऐसा कीमती समय है जैसे—एक बार रामचन्द्रजी के ऊपर मुसीबत आयी। उन्होंने बन्दरों से कहा, हनुमान जी से कहा, सुग्रीव से कहा था— ‘‘भाइयो, हमारी मदद करो।’’ हनुमानजी चले गये मदद करने के लिए रामचन्द्र जी की। थे तो हनुमान भी एक बन्दर। वे सुग्रीव के यहाँ नौकरी करते थे। किसी तरीके से अपना गुजारा करते थे, लेकिन जब रामचन्द्रजी के पुकारने पर चले गये, मौके को उन्होंने पहचान लिया तो क्या परिणाम हुआ? फिर वे ऐसे बड़े हो गये जैसे सारी जिन्दगी में कभी नहीं हुए थे। उन्होंने पहाड़ को उखाड़ा, समुद्र को लाँघा, लंका को जलाया और सीताजी की खोज की। रामराज्य की स्थापना के लिए उन्होंने सारे का सारा जीवन लगाया और अपने आप में धन्य हुए। अब उनकी पूजा हर जगह की जाती है। उस समय को हनुमान जी चूक गये होते और रामचन्द्रजी से यह कह दिया होता कि साहब, अभी तो समय नहीं है, साल भर बाद देखा जाएगा। इस समय तो हमें नौकरी से छुट्टी नहीं मिल रही है। अभी तो लड़की का ब्याह नहीं हुआ है। अभी तो ये काम करने को पड़ा हुआ है। तब तो हनुमानजी उस मौके को चुका देने के बाद में सुग्रीव के यहाँ नौकरी ही करते रहते। बन्दर के बन्दर बने रहते और हनुमानजी देवता के रूप में शायद फिर पूजित न हो पाते।
जिन्होंने भी मौके का लाभ उठाया, वे धन्य हो गए! मगर वह समय कौन-सा होता है? वह असामान्य समय होता है जब भगवान पुकारता है और सामान्य समय वह होता है, जब मनुष्य भगवान को पुकारता है। यह मनुष्य अपनी मुसीबतें दूर करने के लिए भगवान को पुकारता ही रहता है, पैसा दीजिए, बाल-बच्चे दीजिए, मुकदमे से छुड़ा लीजिए, झगड़े से बचा लीजिए, बीमारी दूर कर दीजिए। उसके पुकारने पर भगवान भी कुछ दिया ही करता है। ये बात नहीं कि मना कर देता हो। भिखारी हमारे दरवाजे पर आते हैं तो उन्हें मना नहीं कर देते। किसी को रोटी, किसी को पैसा, किसी को कुछ और वस्तु दे करके विदा कर देते हैं। लेकिन, एक मौका ऐसा भी आता है जब माँगने के लिए कोई शक्ति आती है और शक्ति से भी कोई बड़ी शक्ति आ जाए तो, उसे कुछ देने के बाद व्यक्ति धन्य हो जाता है। दशरथ जी के यहाँ विश्वामित्र आये। क्यों आये मालूम है न? माँगने के लिए आये। क्या माँगने के लिए आये? बच्चे माँगने के लिए आये। उन्होंने कहा— यज्ञ की रक्षा के लिए हमको इनकी बड़ी आवश्यकता है। स्वयं विश्वामित्र असुरों से लड़ सकते थे। राजा थे वे भी। पहले भी उन्होंने सैकड़ों लड़ाइयाँ लड़ी थीं, अपनी जिन्दगी में। वे सभी राक्षसों को मार सकते थे, पर स्वयं तो नहीं मारा, क्योंकि ऋषिधर्म अलग है। ऋषि को अपने-आप पर मानसिक सन्तुलन बनाये रखना चाहिए। ऋषि को अपनी क्षमाशीलता कायम रखनी चाहिए, लेकिन राक्षसों से लड़ने के लिए तो कोई चाहिए था। उसके बिना तो काम नहीं चलेगा न? ऋषि नहीं लड़ेगा तो दूसरे तो लड़ेंगे।
दशरथ जी के मन में पहले तो यह आया कि हमारे बच्चे हैं, हमारे पास रहेंगे, बड़े होंगे, हमारी सेवा करेंगे, हमारा घर देखेंगे, राज-पाठ सँभालेंगे। क्यों हम ऋषि के यहाँ भेजें? पीछे उनके गुरु वशिष्ठ ने उनको सलाह दी। उनकी समझदारी ने कहा—नहीं इस समय विश्वामित्र माँगने के लिए आये हैं। ये बार-बार नहीं आयेंगे। महर्षि को सहायता देने के लिए सिपाही-सहयोगी तो कहीं और भी मिल जाएँगे, लेकिन आप इस वक्त अपने बच्चों को देकर के धन्य हो सकते हैं। ऐसा मौका दोबारा नहीं आयेगा। इसलिए आप इन्हें खुशी से दे दीजिए और राजा दशरथ ने अपने दोनों बच्चों को विश्वामित्र के हवाले कर दिया।
परिणाम क्या हुआ? परिणाम ये हुआ कि विश्वामित्र के साथ जाने के बाद दोनों का भला हुआ। ऋषि ने उन्हें अनेकों विद्याएँ सिखायीं, अमोघ अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये। शंकरजी का धनुष जिसे तोड़ना बहुत मुश्किल था। उस धनुष को तोड़ने में रामचन्द्रजी सफल हुए। परशुरामजी नाराज हुए थे कि हमारे गुरुजी का धनुष किसने तोड़ दिया? सीताजी के साथ रामचन्द्रजी का विवाह हुआ। लंका का विनाश करने में, सारी असुरता का निवारण करने में रामचन्द्रजी सफल हुए। ये सब कैसे हुआ? अगर राम राजकुमार रहे होते तो शायद इतना न हो पाता। विश्वामित्र की शक्ति और दशरथ की बुद्धिमानी से ही सम्भव हुआ। ठीक समय पर अगर किसी ठीक काम के लिए अपने बच्चे तक देने पड़ें तो हर्ज की क्या बात है? ऐसा राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से किया, फिर गुरु निहाल हो गये, दशरथ जी निहाल हो गये, विश्वामित्र निहाल हो गये, रामायण लिखने वाले बाल्मीकि जी और रामचन्द्रजी निहाल हो गये और वे सब निहाल हो गये थे, जो भगवान राम का नाम लेकर भवसागर से पार हो गये। राम अगर विश्वामित्र जी के साथ नहीं गये होते और उन्होंने अपनी अयोध्या में ही समय काटा होता तो राजा बन जाते और नाती-पोतों को खिला रहे होते तब परशुराम और रामचन्द्र जी का हम और शायद ही नाम ले पाते, शायद ही जान पाते। सम्भव है कि उनके मन्दिर भी नहीं बनते और रामायण भी नहीं लिखी जाती। मौका था, जिसको गुरु वशिष्ठ ने पहचान लिया और राम-लक्ष्मण ने भी पहचान लिया। सबने पहचान लिया और उस मौके का ठीक लाभ उठा लिया गया। लाभ उठाने का परिणाम यह हुआ कि सब के सब धन्य हो गये और एक बड़ा काम सम्पन्न हुआ।
सुनिए और भी कुछ हुआ। क्या-क्या हुआ? बड़े गजब की बातें हुईं। देवमानव थे राजा इन्द्र। महर्षि दधीचि के पास हड्डियाँ माँगने आये। दधीचि ने ठीक मौका देखा, सोचा ये हड्डियाँ तो देनी ही पड़ती हैं। बुखार में आदमी मर जाते हैं। ऐक्सीडेण्ट में कई बार मोटरों के आगे आ जाते हैं, रेलगाड़ियों के आगे आ जाते हैं, हड्डियों का कचूमर निकल जाता है। रोज हत्याएँ होती हैं। उन्होंने खुशी-खुशी ठीक मौके पर उच्च उद्देश्य के लिए अपनी हड्डियों का दान कर दिया। उसका क्या शानदार परिणाम हुआ? ऐसा शानदार परिणाम हुआ कि महर्षि दधीचि धन्य हो गये। राजा इन्द्र धन्य हो गये और वृत्तासुर जैसी मुसीबत से त्राण पाने के बाद सारी दुनिया अपने आप में धन्य हो गयी। देवता धन्य हो गये, क्योंकि दधीचि ने ठीक मौके पर ठीक काम किया।
और कोई घटना बताइए! मैं आपको कौन-कौन सी घटनाएँ बताऊँ? जिन्होंने सही समय पर सही काम किया। एक थे रामकृष्ण परमहंस। वे एक लड़के के पास गये। वह उनके यहाँ आया करता था बार-बार। सो उसके पास जा पहुँचे। उन्होंने कहा—नरेन्द्र, इस समय मुझे बहुत सख्त जरूरत है और तू इम्तहान देने में लगा हुआ है, पढ़ाई में लगा हुआ है। मेरा कितना काम हर्ज हो रहा है, तुझे समझ में नहीं आता। उसने कहा—अच्छा स्वामीजी। मैं आपके साथ चलता हूँ। आप जहाँ कहीं भी लगा देंगे वहीं जा पहुँचूँगा और वे स्वामीजी के पास चले गये। विवेकानन्द स्वयं नहीं गये, वरन् रामकृष्ण परमहंस उन्हें बुलाने के लिए उनके घर गये और कहने लगे वत्स, हमारे साथ चल। हमारा बहुत जरूरी काम पड़ा हुआ है। भगवान भी माँगने आते हैं कई बार। इनसान तो माँगते ही रहते हैं, भिखारियों के तरीके से। हमको ये दीजिए, हमको वो दीजिए! लेकिन कभी-कभी ऐसे भी मौके आते हैं जब भगवान माँगने आते हैं।
राजा बलि के यहाँ भगवान माँगने गये थे। आपको मालूम है कि नहीं! तब बलि राजा बना अपने सिंहासन पर बैठा रहा और भगवान बावन के रूप में, छोटे-से होकर के, बच्चे के रूप में, बौने के रूप में गये थे। भगवान छोटे रह गये। बलि बड़े हो गये। माँगने के लिए जो भी जाता है, छोटा हो जाता है और देने वाला बड़ा हो जाता है। इसी तरह के मौके कितने सारे आये? चाणक्य ने भी ऐसा ही किया था। वे चन्द्रगुप्त को तलाशते उसके घर जा पहुँचे थे और कहने लगे—बेटा, हमारा बड़ा काम हर्ज हो रहा है। तुझे चक्रवर्ती शासक बनना है और भारत को बहुत ऊँचा उठाना है। हमारे उद्देश्य के लिए, बड़े काम के लिए जीवन देना पड़ेगा। उस समय चन्द्रगुप्त ने कहा होता—अरे साहब, मुझे नौकरी करनी है, शादी करनी है, बाल-बच्चे पैदा करने हैं, दुकान चलानी है। तो सम्भव है, न वह मौका चन्द्रगुप्त के जीवन में आया होता और न वह मौका चाणक्य को मिला होता। वह सौभाग्य सबको इसलिए मिला कि उन्होंने ठीक मौके को पहचान करके ठीक-ठीक बात की और अपने आपको ठीक तरीके से समर्पित कर दिया।
और कौन-कौन सी घटनाएँ हैं? मैं ढेरों घटनाएँ, ढेरों कहानियाँ सुना सकता हूँ। कौन-कौन घटनाएँ सुनेंगे आप? चलिए आपको सुनाता हूँ। रामदास ने एक लड़के को पकड़ लिया। वह इधर-उधर घूम रहा था। उससे कहा—बेटा, तुझे छत्रपति बनना है। तुझे बड़ा काम करना है। नहीं साहब, मेरी माँ इन्तजार कर रही होगी, मुझे घर का कुछ काम करना है। मुझे फुर्सत नहीं है, दो महीने बाद आऊँगा। अगर ये बहानेबाज़ी बनायी होती, तो शिवाजी को ये सौभाग्य नहीं मिला होता, जो उनको जीवन में मिला। शिवाजी की घटना आपको बतायी। चाणक्य और चन्द्रगुप्त की घटना आपको बतायी और विवेकानन्द और रामकृष्ण परमहंस की घटना सुनायी। दशरथ और रामचन्द्र जी की और ऋषि की बात बतायी। ये सब बातें इसलिए आपको बतायीं कि ठीक उसी तरह का मौका इस समय भी है। इस तरह के मौके पर आप चूक जाते हैं तो फिर हमेशा पछताना ही पछताना आपके हाथ में रह जाएगा। फिर आप यह सौभाग्य दोबारा जब प्राप्त करना चाहेंगे, तो नहीं कर सकेंगे।
और किन-किन ने समय को पहचाना और भगवान का काम किया? रीछ-वानरों की घटनाएँ तो आपको याद ही हैं। गाँधीजी की कल-परसों की बात है। स्वाधीनता संग्राम में जिन-जिन लोगों ने भाग लिया, उन स्वतन्त्रता सेनानियों को आप जानते ही हैं कि वे कौन-कौन हैं? उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी होने का सर्टीफिकेट मिला है; उन्हें पेंशन मिलती है। उनको सम्मान मिलता है। उन्हें हर जगह बुलाया जाता है। यात्रा के लिए ‘फ्री पास’ मिला हुआ है। यदि उस समय उनको ध्यान नहीं आया होता, उस समय वे चूक गये होते, तो ये सुविधाएँ और ये सम्मान उन्हें थोड़े ही मिलता। नहीं साहब, अब हमें भी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी बना लीजिए। भाईसाहब, अब कैसे बना लें, वह मौका तो उसी वक्त था। उस वक्त जो आ गया सो आ गया, जो नहीं आया वह रह गया। भगवान गौतमबुद्ध के साथ में जो भिक्षुसंघों में शामिल हो गये थे, उन्होंने उस समय के धर्म-चक्र के लिए बड़ी भूमिकाएँ निभायीं, जो उस समय नहीं आये, वे रह गये। इसी प्रकार से अन्यान्य लोग हैं। उनमें से जो आ गये रीछ-बन्दर, वे रामचन्द्रजी की सेना में भर्ती हो गये सो हो गये। उनको कितना श्रेय और सौभाग्य मिला, यह आप सभी जानते हैं। उनका नाम लिया जाता है, वे अमर हो गये। जो नहीं आये, ऐसे ढेरों रीछ-बन्दर रहे होंगे, लोमड़ियाँ रही होंगी, खरगोश रहे होंगे, हाथी और शेर रहे होंगे जो अपनी-अपनी माँदों में, अपने-अपने घरों में बैठे रहे होंगे। उन्होंने समय को नहीं पहचाना और युद्ध में भाग नहीं लिया। फिर क्या हुआ उनका? वे बेचारे वैसे के वैसे जानवर के जानवर ही रह गये, पर जो अपनी जान हथेली पर रखकर उसमें शामिल हो गये, वे रीछ और बन्दर देवता हो गये और वे रामचन्द्रजी के साथ विमान में बैठकर अयोध्या चले गये। देवलोक चले गये। ऐसा मौका बार-बार नहीं आता।
हनुमान की तरह अर्जुन की भी ऐसी ही कहानी है। गीता में अर्जुन यह कहता था कि ‘‘मैं भीख माँगकर खा लूँगा और अपना गुजारा कर लूँगा। मुझे क्या अधिकार मिलने से—राज्य मिलने से?’’ लेकिन भगवान ने कहा—नहीं हमको आवश्यकता है। तुम्हें आवश्यकता नहीं है तो न सही। तुम तो दुकान खोलकर भी अपना गुजारा कर लोगे, पर हम कैसे गुजारा कर लेंगे? हमें तो भारत को महाभारत बनाना है। छोटे-से भारत को विशाल भारत के रूप में परिणत करना है। उसमें तुम्हारी आवश्यकता है। अर्जुन पहले तो आनाकानी करते रहे, पीछे विवेक-बुद्धि जाग्रत होने पर उन्होंने कहा—‘‘करिष्ये वचनं तव’’ आपका कहना मानूँगा, आपके आदेशानुसार चलूँगा। बस यही घटना हमारे जीवन की भी है। हमारा जीवन जो आज वसन्त पंचमी के दिन आप लोगों के सामने आया, इसकी क्या विशेषता है? इसकी कोई विशेषता नहीं है। मात्र एक विशेषता है— ‘करिष्ये वचनं तव’ की। एक ऐसी सर्वशक्तिमान सत्ता ने हमारा आह्वान किया और यह कहा कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वह हमारे हवाले कर दो। हमारे पास क्या था? कुछ भी नहीं था। समय था खाली, सो समय को हमने उनके चरणों पर रख दिया और ये कहा— ‘‘हम आपके साथ-साथ चलेंगे। जो आप आज्ञा देंगे, हम वही करेंगे।’’ और वैसा ही हुआ। सारी जिन्दगी उसी प्रकार से बीत आयी। हमने क्या पाया? क्या खोया? आप समझते हैं न हमने क्या गँवाया? कुछ भी नहीं गँवाया हमने। आप हमारे गाँव चले जाइये, देखिए सारे साथ पैदा हुए लोग, दूसरे लोग कोई दुकान कर रहा है, कोई व्यापार कर रहा है, कोई खेती कर रहा है। सभी जैसे-तैसे मामूली आदमी की जिन्दगी जी रहे हैं, लेकिन हम अच्छी जिन्दगी, शानदार जिन्दगी जी रहे हैं। ये कैसे सम्भव हुआ? यह इसलिए कि ठीक समय पर, ठीक वस्तु का, ठीक पात्र के हाथ में समर्पण हुआ।
आज इसी की माँग है। युग बदल रहा है। सबेरा निकलने वाला है। रात्रि समाप्त होने वाली है। फूल खिलने वाले हैं। चिड़ियाँ चहचहाने वाली हैं। उषाकाल सन्निकट है। ऐसे पुण्य समय में प्रातःकाल में आपको उठने की जरूरत है। चेतने की जरूरत है। मुर्गा बाँग लगाता और कहता है कि ‘प्रातःकाल हो गया उठिए।’ मंदिरों में शंख-घड़ियाल बजते हैं और कहते हैं उठिये। मस्जिदों में आवाज लगायी जाती है, कहती है उठिये, सोइये मत। यह सोने का समय नहीं है, पड़े रहने का समय नहीं है, यह समय गँवाने का नहीं है। यह समय अपने पेट भरने का नहीं है। यह समय बहानेबाज़ी करने का नहीं है। यह समय लोभ-मोह का नहीं है। यह समय इसका है कि हम नये विश्व की नयी संरचना के लिए अपने समय को और शक्ति को लगा दें। बस एक ही माँग है—अगर आप मौके को समझ पाएँ, अपने समय को दे पाएँ तो आपका कुछ काम हर्ज होने वाला नहीं है। ये आपका बेकार का भय है कि हम चले जाएँगे तो हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जाएँगे। हम पर मुसीबत आ जाएगी, हमारा काम हर्ज हो जाएगा। ये सब आपके मन की कमजोरी है। ‘‘क्षुद्रं हृदय दौर्बल्यं’’ आपके हृदय की दुर्बलता के अलावा और कुछ भी नहीं है।
इस समय, समय की माँग ये है कि आप अपने समय का, श्रम का, अपनी शक्ति का बड़े से बड़ा भाग समाज की संरचना के लिए, महाकाल की पुकार को पूरा करने के लिए, युग की चुनौती स्वीकार करने के लिए लगाएँ, अपने आप को पेश करें। फिर क्या काम करें? ढेरों के ढेरों काम करने के लिए पड़े हैं। आप जहाँ रहते हैं, वहाँ पेट भरने के लिए काम करने के अतिरिक्त थोड़ा समय बचाना चाहिए। उस बचे समय से आप अपने क्षेत्र में कुछ महत्त्वपूर्ण काम कर सकते हैं। आप ज्यादा समय लगाना चाहें तो हमारी शक्तिपीठें हैं। हमारे पेट का हर्जा होगा। बाबा, पेट-पेट मत चिल्लाइए। पेट नहीं, आदमी की नीयत खराब है। आदमी के पेट की कोई समस्या नहीं है। चिड़िया के सामने, हाथी के सामने पेट भरने की कोई समस्या नहीं है, फिर इनसान के सामने क्या आयेगी? आप ये बहानेबाज़ी मत बनाइये कि हमारा गुजारा कैसे होगा, घर का क्या होगा? हमारी जिम्मेदारियाँ कौन पूरी करेगा? आप नहीं भी रहेंगे, मर जाएँगे, तो भी आपके बच्चों का, घरवालों का पालन-पोषण होगा। आपके बिना कोई भूखा नहीं मरने वाला, न हो तो आप विश्वास करके देख लीजिए।
और कुछ कहना है आपसे? बस एक ही बात कहनी है कि आप अपने समय का थोड़ा हिस्सा अपने लिए रखिए और ज्यादा हिस्सा समाज के लिए, देश के लिए, धर्म के लिए, जन-जाग्रति और लोकमंगल के लिए लगाइये। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप नफे में रहेंगे। हम नफे में रहे हैं, यकीन कीजिए। हमें देख लीजिए और महापुरुषों की गवाहियाँ देख लीजिए। गाँधीजी ने वकालत की होती, तो वकील के वकील रह गये होते। बिनोवा भावे ने अगर उसी तरह की जिंदगी जी होती तो शायद कहीं अध्यापक बन गये होते। जवाहर लाल नेहरू भी कहीं वकालत कर रहे होते। सरदार वल्लभ भाई पटेल मामूली वकील थे, वकील ही रहे होते, लेकिन इन सारे के सारे महापुरुषों ने अपने आपको लोक मंगल के लिए आगे बढ़ाया तो मजे में और नफे में रहे। एक भी नुकसान में नहीं रहा। आज लोगों में यदि साहस हो, हित-त्याग की, देशभक्ति की भावना हो, अगर आप मौके को पहचानते हों, तो समझ लीजिए यह युगसन्धि की बेला है। युग बदल रहा है। इस समय आप जैसे भावनाशील व्यक्तियों की बेहद आवश्यकता है। आप जन-जागरण के लिए खड़े हो जाइए, कार्यक्रम क्या करने पड़ेंगे? कार्यक्रम तो बहुत सरल हैं और हमने सबको बता दिये हैं। इस वक्त के लिए बस चार कार्यक्रम रखे हैं।
नारी जागरण के लिए आपको समय लगाना है। नारी जागरण के बिना पुरुष जाति अधूरी है। पुरुष अधूरा रहेगा तो दुनिया अधूरी रहेगी। आधी दुनिया कैदखाने में पड़ी रहे तो बाकी दुनिया किस तरीके से उठेगी? गरीबी उन्मूलन के लिए हमको बड़ा काम करना है। हमारे यहाँ अधिकांश लोग केवल खेती पर निर्भर हैं और खेतिहर मजदूर बेचारे थोड़े दिनों के लिए मेहनत-मजदूरी पाते हैं। फिर उनके लिए कोई काम नहीं रह जाता, अतः कुटीर उद्योगों का विकास करना है। कुटीर उद्योग हमारे देश में कृषि के सहायक बन सकते हैं। आज हर आदमी कमजोर-बीमार होता चला जा रहा है, क्योंकि रहन-सहन, खान-पान, आहार-विहार के बारे में उसको जानकारी ही नहीं है। स्वास्थ्य ठीक हो, इसके लिए स्वास्थ्य संगठन हमारा कार्यक्रम है। अतः स्वास्थ्य संगठन के लिए खड़े होना है। चौथा कार्यक्रम है जन-जागरण। इसका अर्थ है—हर आदमी के विचारों को बदल देना, चेतना को बदल देना, भावना को बदल देना। लोगों को देखा है आपने, कैसी घटिया और गंदगी से भरा जीवन जी रहे हैं। आदमी को कुरीतियों और लोक-मान्यताओं ने किस तरीके से जकड़ रखा है। नशेबाजी और दहेज जैसी प्रथाओं में कितना पैसा बर्बाद होता है? फैशन-परस्ती में लोग कितना पैसा लगा देते हैं? ये ऐसी मुसीबतें हैं जिनसे हमें स्वयं निकलना पड़ेगा और जनता को निकालना पड़ेगा। सरकार मदद करेगी, ठीक है। सरकार अपना काम करेगी, लेकिन ये जन-मानस की, घर-घर में जाने की, लोक-चिंतन बदलने की बात है। जन-जागरण की बात है। इसके लिए आपको ही आगे आना पड़ेगा। इसे कोई और नहीं कर सकता, आप ही कर सकते हैं। आपको करना भी चाहिए।
मैं ये अनुरोध लेकर आपके सामने हाजिर हुआ हूँ कि आप समय को पहचानिए और उसे भगवान के काम में लगाइये। भगवान ने—महाकाल ने आपको पुकारा है। इसलिए आपको पुकारा है कि आप दुनिया की समस्याओं को सुलझाने के लिए, गये-गुजरे लोगों को ऊँचा उठाने, आगे बढ़ाने के लिए कदम बढ़ाएँ। अपने आपको त्याग के लिए, बड़े कामों के लिए समर्पित कीजिए। फिर देखिये आप कितने मजे में और कितने खुशहाल रहते हैं? कितने प्रसन्नचित्त रहते हैं? कितना आपको सन्तोष मिलता है, सम्मान मिलता है, कितना आपको भगवान का अनुग्रह मिलता है। यही तो परीक्षा का समय है। अगर आपमें हिम्मत है और आपका विवेक साथ देता है, तो मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि आप जरूर कदम बढ़ाइये। नये युग के निर्माण जैसे बड़े कामों में अपना समय लगाइए—हिम्मत कीजिए। यह हिम्मत आपके लिए इतनी बड़ी साबित होगी जैसे हनुमानजी के लिए साबित हुई थी, अर्जुन के लिए साबित हुई थी और वे धन्य हो गये थे। बस, यही आपसे अनुरोध करना था। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्तिः॥