उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में (विचारों में) ढूँढ़ेगी।’’ — वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। — पूज्य गुरुदेव
१. आध्यात्मिक कायाकल्प
के मूलभूत सिद्धान्त
२. कैसे हो आध्यात्मिक कायाकल्प?
३. अनुग्रह
के लिए अन्तराल का सुविकसित होना..
४. कायाकल्प का मर्म और दर्शन
५. कल्प साधना और उसकी
तात्विक विवेचना
६. प्रायश्चित क्यों? कैसे?
७. तीर्थयात्रा बनाम
प्रायश्चित प्रक्रिया
८. तीर्थसेवन का महत्त्व
और प्रयोजन
९. साधना
में श्रद्धा की महत्ता और वातावरण की उपयोगिता
१०. पारस को छूकर सोना
बनने का तरीका
११. जीवन-साधना
आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी
१२. शक्तिपात
एवं कुण्डलिनी जागरण का तत्त्वदर्शन
१३. आत्मावलोकन का सरल
उपाय-एकान्तवास
१४. तपस्वी जीवन
और उसके मूलभूत सिद्धान्त
१५. तपकर कुंदन बनने की प्रक्रिया
१६. दृष्टिकोण-परिवर्तन
ही वास्तविक कायाकल्प
१७. आध्यात्यिक
सिद्धान्तों का आत्मसात करना ही जीवन का लक्ष्य हो
१८. आन्तरिक अमीरी
ही वास्तविक सम्पन्नता है