इस युग के भगीरथ
(पूर्वार्द्ध)
परमवन्दनीया माताजी अपने इस भावपूर्ण एवं मौलिक उद्बोधन में सभी गायत्री परिजनों का परिचय उस अलौकिक सौभाग्य से कराती हैं, जो गायत्री परिवार का अंग बनने के नाते उन्हें मिल सका। वन्दनीया माताजी कहती हैं कि परमपूज्य गुरुदेव से जुड़ पाना ही हममें से प्रत्येक के जीवन का एक अविस्मरणीय सौभाग्य है और उस सौभाग्य का सतत स्मरण अनिवार्य हो जाता है। परमपूज्य गुरुदेव की तुलना वे इस युग के भगीरथ से करती हुई कहती हैं कि गुरुदेव ने इस युग में ज्ञान की गंगा का अवतरण करके वह कर दिखाया, जो युगों-युगों तक सम्भव न हो पाता। वन्दनीया माताजी मथुरा की विदाई का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए हर गायत्री परिजन को याद दिलाती हैं कि गुरुसत्ता ने कितने प्रेम व आत्मीयता से इस परिवार का निर्माण किया है। आइए हृदयंगम करते हैं उनकी अमृतवाणी को.......
इस युग के भगीरथ
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
हमारे आत्मीय परिजनो! आज गायत्री जयन्ती है। माँ गायत्री का अवतरण आज के दिन हुआ था। आज ही गंगा दशहरा भी है। भगीरथ ने तपस्या की थी और माँ गंगा को लाने में आज के ही दिन सफल हुए थे। वही कथा, वही कहानी गुरुजी के बारे में भी चरितार्थ होती है कि ज्ञान की गंगा बहाने में और ज्ञान की गंगा को लाने में जितना श्रम उन्होंने किया है, मैं समझती हूँ कि यह कहने में अत्युक्ति न होगी कि भगीरथ ने जो तपस्या की थी, वो सम्भव है दो-पाँच साल की होगी, दस साल की होगी, बीस साल की होगी, लेकिन एक भगीरथ ने जो जन्म लिया है, उस भगीरथ ने सतहत्तर वर्ष तक निरन्तर तप किया है और ज्ञान की गंगा को लाने में वे सफल हो गए। जो जनमानस अग्नि में धधक रहा था, सुलग रहा था, उनके ऊपर शीतलता, उनके मनों में शीतलता लाने के लिए उन्होंने वह कदम उठाया, जिसको ज्ञानगंगा कहते हैं।
अभी लड़के गा रहे थे। ज्ञान की गंगा बहाने में कितना उन्होंने तप किया है कि अपनी हड्डियों को गला डाला है। जिन्होंने कभी 5 साल पूर्व देखा होगा और अब जो देख रहे होंगे, कितना अन्तर आ गया। अब तो बहुत अन्तर आ गया। उन्होंने तपस्या से सारा शरीर जर्जर कर लिया। किनके लिए? सगरसुतों के लिए किया है।
सगरसुतों को तारने के लिए उन्होंने यह बीड़ा उठाया है कि हम ज्ञान की गंगा बहाएँगे। घर-घर पहुँचेंगे, जितनी भी सामर्थ्य है, उसके अनुसार हर हालत में, हर दिमाग तक, हर हृदय को छूने के लिए हमको जाना है। एक माँ ने शरीर से जन्म दिया और दूसरी माँ ने दिव्यता से जन्म दिया। किस माँ ने? गायत्री माँ ने। माँ हर समय आँचल की छाया करती रहती है, हर समय अपने प्राणों से लगाए रहती है किसको? अपने बेटे को। किस बेटे को?
जिसने कि अपने जीवन को निछावर कर दिया, उस बेटे को अपनी छाती से लगाया है और उस बेटे ने क्या किया है? उस बेटे ने भी कहा है कि माँ हमें तेरे चरणों की सौगन्ध है, हम तुम्हारे लिए बलिदान हो जाएँगे। जो आपका आदेश, जो आपकी प्रेरणा है, वह निरन्तर हमारे जीवन में प्रवाहित होती रहेगी और दूसरों के लिए हम निरन्तर गंगा के तरीके से बहते रहेंगे।
मथुरा से विदाई
अखण्ड ज्योति कार्यालय से जब हम आए थे, तो हम दो जन आए थे। यह एक बहुत बड़ी घटना है। कैसे? बच्चे बिलख रहे थे कि शायद जिन्होंने वह माहौल देखा होगा, तो मैं समझती हूँ कि उनके भी हृदय द्रवित होने में देर नहीं लगी होगी। यह कहें कि सीता और राम जा रहे थे। चलिए ये न कहें, पर यह तो जरूर कहेंगे कि कोई ऋषि जा रहा है, जिसने कि पलटकर के अभी तक मथुरा को नहीं देखा है, चले आए, तो चले आए। उसका क्या परिणाम हुआ? चलिए, आज मैं आपको बताने आई हूँ कि तपश्चर्या से उनको क्या-क्या मिला?
देखिए, आज मैं आपसे निवेदन करने आई कि माँ की सच्चे हृदय से आराधना करने से व्यक्ति का व्यक्तित्व ऊँचा उठता है, हृदय का परिष्कार होता है और जो कमीनापन होता है, वह हट जाता है। मनुष्य के जीवन में जो क्षुद्रपन होता है, वह हट जाता है। जब हम यहाँ आए तब शुरू में ऐसा लगा कि अरे यह क्या हुआ? बच्चों को, कुटुम्बियों को रोते हुए छोड़ आए, यह क्या हुआ? कहते हैं कि जब राम वनवास गए, तो सारी अयोध्या रो रही थी, बिलख रही थी। आप सही मानना, बिलकुल वही स्थिति मथुरा में थी।
जब हम लोग चले, फिर क्या हुआ? जब हम यहाँ आए, थोड़े दिन हमको अपने मन में जरूर ऐसा कुछ लगा, मुझे स्वयं लगा, उनको तो नहीं लगा और जिस दिन 20 जून को वे अज्ञातवास को जाने लगे थे, सन् 1971 की बात आपको बता रही हूँ। यह हमारा 16वाँ वर्ष है, जिसको हम सोलहवीं जयन्ती कह सकते हैं। 20 तारीख को हमको यहाँ आए 16 वर्ष हो जाएँगे। गुरुजी जिस समय अज्ञातवास को जाने लगे, तो जितने सारे हमारे परिजन थे, जितनी गाड़ियाँ यहाँ आई थीं, उन्होंने यह कह रखा था कि चाहे जो हो जाए, जहाँ गुरुजी जाएँगे, वहीं हम जाएँगे। बेचारे बाहर सड़कों पर पड़े थे, बरामदे में पड़े थे। तब सारी जमीन खुली हुई थी। वे सारे में पड़े हुए थे कि गुरुजी जाएँगे, तो हम जरूर जाएँगे। हम जरूर दर्शन करेंगे। हम उनके साथ जाने की कोशिश करेंगे। कौन कर रहा है? उनके हृदय में वेदना थी न, अपने पिता को छोड़ने में उनको वेदना हो रही थी।
मणिमुक्तकों का हार
उन बच्चों को ऐसा मालूम था कि गुरुजी चार बजे जाएँगे कि पाँच बजे जाएँगे, लेकिन ढाई बजे सुबह जब सब अचेत हो करके सो रहे थे, वो उठकर के, नीचे उतरकर आए, मैं साथ-साथ आई और आ करके उनके चरण छुए, उनको विदा किया। मैं स्वयं तो नहीं गई थी, क्योंकि मेरे लिए आज्ञा नहीं थी।
यह आज्ञा थी कि बच्चों को सँभालना है। कौन से बच्चे? जो आप लोग बैठे हैं, इनको सँभालना है, गायत्री तपोभूमि को सँभालना है और शान्तिकुञ्ज को सँभालना है। तुमको तो अडिग हो करके रहना है, लोहे की हो करके रहना है, धातु की हो करके रहना है, तुम पिघलना मत, पिघल जाओगी, तो ये बच्चे भी पिघल जाएँगे।
तुम कठोर रहना, यह हमारा आदेश है। वे चले गए। दो बच्चों को छोड़कर आए थे, हमें कितने बच्चे मिल गए? बेटे! हमारी अखण्ड ज्योति जो छपती थी, तो मैं समझती हूँ 18,000 थी और युग निर्माण योजना 12,000 थी, सब मिलाकर 30,000 थी और अब इतनी विशालता अहा! क्या कहने के। बेटा! मैं समझती हूँ 5,00,000 से ज्यादा हो गई। शक्तिपीठें हो गईं। गायत्री तपोभूमि बनाई थी कि गायत्री माँ के लिए कोई स्थान तो होना चाहिए न, माँ को फैलाना चाहिए।
बेटे! सब जगह सब व्यक्ति नहीं जा सकते। सब व्यक्ति मथुरा नहीं आ सकते, तो क्या करना चाहिए? अब फैलाना चाहिए, तो उन्होंने शक्तिपीठों का निर्माण कराया। कितनी शक्तिपीठें हैं? मैं समझती हूँ कि 4000 के आस-पास होंगी और 14,000 स्वाध्याय मण्डल हैं।
कितनी संख्या हो गई? सबको मिलाकर मैं समझती हूँ कि बहुत जनसंख्या हो गई और कौन से हो गए? वे बेटे और बेटियाँ हो गए। कौन से बेटे-बेटी हो गए। वे हो गए, जो हमने भावनाओं से और सिद्धान्तों से सँजोकर के रखे हैं।
जैसे गोताखोर समुद्र में जाता है और मणिमुक्तक निकालकर लाता है और उन मुणिमुक्तकों का हार बनाता है। आप सही मानना कि आपको गोताखोर ने समुद्र में से निकाला है और उन मणिमुक्तक का हार पिरोया है। आप कौन हैं? आप मणिमुक्तक हैं। आप कौन हैं? आपके अन्दर वो देवत्व है, अभी जो लड़के गीत गा रहे थे—देवत्व।
बेटे! आपके हृदय में गुरुजी ने देवत्व पैदा किया है। आप स्वयं कुछ नहीं थे, स्वयं कहाँ थे? स्वयं तो जैसे थे, वैसे ही थे, लेकिन गुरुजी ने आपके अन्दर ज्ञान की गंगा को प्रवाहित करके आपको देवताओं की श्रेणी में खड़ा कर दिया। हमारे कितने ही बच्चे हैं, जो कि नौकरी छोड़कर आए।
आज के युग में जो अय्याशी का युग है, कोई नौकरी छोड़ने के लिए तैयार होता है? नहीं, छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता है। लेकिन कितने ही लड़के ऐसे हैं, जिन्होंने ऐसा कदम उठाया। कितने ही क्यों? मैं तो सभी को कहूँगी कि हमने जो भी आवाज उठाई, वह कभी अपूर्ण नहीं रही, पूरी हुई।
सहस्त्रकुण्डीय यज्ञ का चमत्कार
कौन-कौन सी पूरी हुई? जब हमने किसी जमाने में 1000 कुण्डीय यज्ञ किए थे, तो लोग यह कहते थे कि आप कर लेंगे, 1000 कुण्डीय यज्ञ? आप तो जरा से हैं, आपकी क्या हैसियत है, जो आप कर लेंगे।
आचार्य जी आप यह मत करिए, पण्डित जी आप यह मत करिए, गुरुजी आप यह मत करिए। आप काहे को अपना घर नीलाम करने पर उतारू हैं; लेकिन उनका विश्वास था, किस पर? उस सत्ता पर, जिसके बल पर उन्होंने संकल्प लिया और देखते-ही-देखते 1000 कुण्डीय यज्ञ सफल हो गया और लोग दाँतों तले उँगली दबाने लगे।
उन्होंने यह कहा कि—आज के युग में हमने कभी ऐसा सुना था कि महाभारतकाल में ऐसा यज्ञ हुआ था। इसमें 4,00,000 व्यक्ति आए थे और इसमें कितने ही ऋषियों के नाम पर नगर बसाए गए थे। रात और दिन चौका चलता था। सही मानना कि पाँच दिन जिस किसी ने भी देखा होगा, आज से 30-35 साल पहले, तो मैं समझती हूँ उनको मालूम होगा कि पाँच दिन तक हमको खड़े ही रहना पड़ा।
हमारे मुँह में अन्न का एक दाना भी नहीं गया। स्टेज पर ही खड़े रहते थे, दोनों के पैर सूज कर ढोल हो जाते थे। रात को आते थे, फिर सुबह जाते थे। पैदल आना, पैदल जाना, किस सत्ता ने इतना बड़ा काम करा लिया? उनको विश्वास था और श्रद्धा थी। उस श्रद्धा और विश्वास ने सारा काम करा लिया। सारे भारतवर्ष में 1000 कुण्डीय के पाँच आयोजन हुए थे। पहला यज्ञ हुआ था—मथुरा में, दूसरा महासमुन्द में हुआ था, तीसरा बहराइच में हुआ था, चौथा टाटानगर और पाँचवाँ पोरबन्दर में हुआ था। ऐसे पाँच-छह जगह यज्ञ हुए थे।
बेटे! हजार यज्ञ किसे कहते हैं? अभी बस और सुनते जाइए। 1000 यज्ञ इस साल हुए हैं और गुरुजी ने कहा है कि अगले वर्ष और उससे आने वाले वर्ष 1,00,000 यज्ञ होंगे तो अभी तक जितने संकल्प लोगों ने लिए हैं पिछले वर्ष के आप देख लेना, समझती हूँ कि 2000 के आस-पास तो पिछले वर्ष के संकल्प हैं और इस वर्ष के संकल्प हैं, जिन्होंने कि जनवरी के बाद से संकल्प लिए हैं और जो अब लेने वाले हैं, जो फिर लेने वाले हैं, ये पूरे होंगे?
हाँ बेटे! बिलकुल पूरे होंगे। आप देखते जाइए कि पूरे होते हैं कि नहीं होते हैं। अभी हमारे पास कितनी गाड़ियाँ हैं; और हो जाएँ, तो आप यह मानकर चलिए कि हम जाने कितने यज्ञ कर लेंगे। हमारे पास कार्यकर्ता हों, तो देखना हम करते हैं कि नहीं करते हैं।
तो कार्यकर्ता कहाँ से आएँगे माताजी? बस, बेटे! यही मत पूछ कि कहाँ से आएँगे? इनको हम पैदा करेंगे? गुरुजी रानी मक्खी हैं, वे इतनी सन्तान पैदा कर देते हैं कि पूछो ही मत।
भरोसा और विश्वास रखें
वे आप में से निकालेंगे, जो भी आप में से समय दे सकता हो, तो आप समय देना। आप निकलकर आना, बाहर काम कराएँगे। आपसे यहाँ काम कराएँगे, पर निकलना तो सही बेटे, संकीर्ण तो मत बनना। उदार बनिए। पैसा ही सब कुछ नहीं होता, पैसा भी होता है। ये सारा का सारा जो संचालन होगा, वो किससे होगा? पैसे से ही होगा न। गाड़ियाँ किससे आएँगी?
बेटे! गाड़ियाँ और खरीदनी हैं। हमने जयपुर गाड़ियाँ भेज दी थीं। एक लड़के से कह दिया था कि जरा बेच दे इनको, फिर हमने कहा कि वापस ला, अभी तो हमको और खरीदनी हैं। इस साल हम 20-25 गाड़ियाँ और खरीदेंगे।
ये सारे-के-सारे छोटे से लेकर बड़े आयोजन होंगे। ये किसका है? एक अदृश्य सत्ता है, जिसके ऊपर हमारा भरोसा और विश्वास है। जिसने अब तक नैया पार लगाई है, वही लगा रही है और वही लगाएगी।
बेटे! जब तक हम जिन्दा रहेंगे, तब तक और जब नहीं रहेंगे, तब भी वही पार लगाएगी। हम ऐसा किए जा रहे हैं। हमारी भूमि ऐसी संस्कारवान है कि यह देती है और देती रहेगी। आप यह मत समझिए कि गुरुजी-माताजी नहीं रहे तो हम अनाथ हो जाएँगे, फिर कहाँ से पैदा होंगे? नहीं बेटे! हमारी रूह रहेगी, हमारी शक्ति रहेगी और समस्त संसार में व्याप्त रहेगी।
एक-एक कण में, शान्तिकुञ्ज की हर ईंट में, हर व्यक्ति के दिल में, दिमाग में व्याप्त रहेगी। जो हमारे बच्चे हैं, उनके अन्दर वह चिनगारी हमने पैदा कर दी है कि वह चिनगारी लगी रहेगी, तो उन्हीं में से वे पौधे निकल निकलकर आएँगे। बेटे! कितना काम करना है?
इसी वर्ष आपका नैतिक शिक्षा का प्रशिक्षण हो चुका है। मैं समझती हूँ कि 5000 से ज्यादा शिक्षक यहाँ नैतिक शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करके गए हैं। अन्य; जिसमें बिहार है, गुजरात है, ओडिशा है, उन सरकारों के हमारे पास पत्र आए हुए पड़े हैं कि आप हमारा नैतिक शिक्षण करिए। यह कौन कर रहा है? यह कौन-सी शक्ति कर रही है?
बेटे! वही शक्ति करा रही है, जिसका कि गुरुजी ने संकल्प लिया है। जो कदम उठाया, वह हर पल प्रेरणा देती रहती है। हर समय प्रेरणा देती रहती है। कितना विशाल काम करने को पड़ा है, वह कौन पूरा करेगा?
वही शक्ति पूरा करेगी। माँ गायत्री ही पूरा करेंगी, लेकिन हाथ हमारे काम करेंगे, दिमाग हमारा काम करेगा। आलस्य और प्रमाद में पड़े रहे, तो माँ क्या कर सकती हैं? माँ तो प्रेरणा देती हैं न कि बेटे उठो, जागो, हम आपकी उँगली पकड़ते हैं, हम आपका सर सहलाते हैं, हम वायदा करते हैं।
अभी एक लड़के ने गीत गाया था कि 'छाती से लगा लो, चाहे आँचल से हटा लो।' माँ कभी आँचल से हटाती है क्या? वह कभी नहीं हटाती। उसकी तो आँचल की छाया हर समय बनी रहती है। उसके तो वरदहस्त ऐसे बने रहते हैं कि बस, हम धन्य हो जाते हैं। जो उसके आँचल को पकड़ता है, वह धन्य हो जाता है और उससे अनेकों लोग धन्य हो जाते हैं।
(क्रमशः अगले अंक में समापन )
परमवन्दनीया माताजी की अमृतवाणी
इस युग के भगीरथ
[ उत्तरार्द्ध ]
विगत अंक में आपने पढ़ा कि परमवन्दनीया माताजी अपने इस हृदयस्पर्शी उद्बोधन में समस्त गायत्री परिजनों को यह स्मरण दिलाती हैं कि परमपूज्य गुरुदेव ही इस युग के भगीरथ हैं । वन्दनीया माताजी कहती हैं कि जिस तरह से भगीरथ ने धरती पर गंगा के अवतरण का अलौकिक पुरुषार्थ सम्पन्न कर दिखाया था, ठीक उसी तरह से इस युग में परमपूज्य गुरुदेव ने ज्ञान की गंगा को अवतरित करने का महती पुरुषार्थ सम्पन्न किया है। परमवन्दनीया माताजी मथुरा से गुरुसत्ता की विदाई का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि अनेकों भावनाशील परिजन पूज्य गुरुदेव और वन्दनीया माताजी के पीछे न जाने कितने दिनों तक चलते हुए आए, ताकि उनको जाने से रोक सकें | वन्दनीया माताजी कहती हैं कि इतना प्रेम मात्र उन्हीं को मिल सकता है, जिन्होंने अपने जीवन को तपाया हो और हमें भी पूज्य गुरुदेव की तरह अपने जीवन को तपाने का पुरुषार्थ करना चाहिए। आइए हृदयंगम करते हैं उनकी अमृतवाणी को ..........
हमारे बच्चे हैं आप
इसके लिए आप लोगों को जो सर्वत्र लाखों की संख्या में फैले हुए हैं, एकत्रित किया है, बुलाया है। लाखों की संख्या में कहूँ या करोड़ की संख्या में कह दूँ तो क्या अतिशयोक्ति है? जितने यज्ञ हुए हैं, उनमें ज्यादातर मैंने सुना है कि दो-दो लाख की उपस्थिति हुई है, तो ये कितने हो गए? एक करोड़ व्यक्ति हो गए कि कुछ ज्यादा ही हो गए होंगे। अभी तो आप देखते जाइए, जो पंजीकृत साधक हैं, वे इतने हैं कि दो लाख से ज्यादा तो वे हैं, जो नियमित उपासना करते हैं।
वे कौन से हैं? वे हमारे बेटे हैं, वे हमारी बेटियाँ हैं, जो हमने पैदा किए हैं। अरे! आपके माँ-बाप ने पैदा किया होगा? हाँ, हम कब कहते हैं कि नहीं किया। आपके माँ-बाप ने पैदा किया; लेकिन आप यह क्यों नहीं मानते कि आपको हमने पैदा किया है। आपके माँ-बाप ने पैदा किया होगा, लेकिन हमने विचारों से और सिद्धान्तों से, भावनाओं से आपको पैदा किया है। आपके अन्दर वह चिनगारी जलाई है, वह देवत्व पैदा किया है, जो आपके माता-पिता नहीं कर सकते थे। एक लड़का इन्हीं में बैठा है जरा आ गया हड़बड़ में। उसने कभी आज्ञा सुनी, सो भागा आया। इस बात को बहुत दिन हो गए।
गुरुजी ने कह दिया कि तू चिन्ता मत कर, बेटे! हम तेरे साथ हैं और अब नहीं, जन्म-जन्मान्तरों तक साथ हैं, देखें तेरा क्या बिगड़ता है? मैं समझती हूँ कि भूखा तो रहा नहीं होगा और वह रहने वाला भी नहीं है। वह एक ही नहीं है। मैं तो आप सबके लिए कह रही हूँ। जो हमसे जुड़े हैं, उनसे हमारा वायदा है कि बेटे! आपके लिए हम कहीं से भी लाएँगे, जरूर लाएँगे, इसमें कोई शक नहीं।
पहले दिन मैंने इन बच्चों से यह कहा था कि बेटे! हमने दो काम के लिए आपको बुलाया है। पहला तो यह कि हम आपको पहलवान बनाएँगे, कैसा पहलवान? बड़ा मोटा-तगड़ा पहलवान कि जिधर आप जाएँ, बस पछाड़ते जाइए, आप कुश्ती में पछाड़ते जाइए। ऐसा पहलवान बनाएँगे माताजी? हाँ बेटे! बिलकुल ऐसा ही पहलवान बनाएँगे। मैंने जरा हँसकर यह भी कह दिया तो फिर आप ये अन्दाजा लगाते होंगे कि माताजी जैसे हो जाएँगे?
जीवात्मा मजबूत बनाएँगे
मैंने कहा बेटे! फिर तू शरीर की बात ले आया, अरे शरीर नहीं आत्मा की दृष्टि से, जीवात्मा की दृष्टि से आपको हम पहलवान बनाएँगे। आपको हम शक्ति देंगे, आपको ज्ञान देंगे, आपको न मालूम हम क्या-क्या देंगे? आपको पहलवान बनाएँगे कि आप जहाँ जाएँगे, वहाँ आपका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। आपका कोई मुकाबला कर जाए, तो आप हमसे कहना।
आप हिम्मत तो रखिए, विश्वास तो रखिए। गुरुजी ने विश्वास किया, हमने विश्वास किया है, यह विश्वास हमारे जीवन में काम कर रहा है कि हमारा कोई भी संकल्प अधूरा नहीं रहता। सारे संकल्प हमारे पूरे होते रहे। आपके भी होंगे। जिस उद्देश्य के लिए यह शक्तिपीठें और प्रज्ञापीठें बनाई गई हैं और जो निरन्तर खून-पसीने से इनको सींचा जा रहा है, बनाया जा रहा है। उन्होंने जाने क्या-क्या आडम्बर खड़ा कर लिया है, जाने क्या-क्या ढोंग-ढपाड़े उसमें शुरू कर दिए हैं। इसके लिए इन्हें नहीं बनाया गया। इसके लिए बनाया है कि हर व्यक्ति आए और प्रेरणा लेता हुआ जाए। रोता हुआ आए और हँसता हुआ वापस जाए। उसमें क्रियाकलाप होने चाहिए, जैसा कि आपके शान्तिकुञ्ज में हो रहा है, हूबहू हमने इसी के लिए बनाया था।
गायत्री माता का अवतरण
अब घुमा-फिराकर ज्यादा मैं समय नहीं लूँगी, बस, मुझे तो इतना कहना था कि आज गायत्री माता का जन्म है, माँ गायत्री का अवतरण दिवस है। उस जननी का अवतरण दिवस है। जिसका कि जिस किसी ने भी आँचल पकड़ा, वो धन्य हो गया। जैसे हम धन्य हो गए, आप भी हमारे तरीके से धन्य हो सकते हैं।
उस माँ के आँचल की छाया के नीचे आप भी धन्य हो सकते हैं। आपको भी गायत्री माता इसी तरीके से छाती से लगा सकती है, जैसे कि हमको लगाती है। हर दुःख-मुसीबत में आपको सहारा मिलता रहेगा, आपको प्रेरणा मिलती रहेगी, आपको मार्गदर्शन मिलता रहेगा। आप कभी निराश मत होना। आप हमारी सन्तान हैं, तो आप हमारे तरीके से रहिए न। फिर निराशा का क्या काम? निराश क्यों होंगे? आप बुज़दिल क्यों होंगे? आप हमारी तरह से उदार होइए। हमारी तरह से पिघलने वालों में से रहिए, हमारी तरह से आप करुणामय रहिए और आप सर्वत्र बिखर जाइए। जिसके लिए गुरुजी ने बीड़ा उठाया है कि अनाचार और अत्याचार हट करके ही रहेंगे।
जो हमारी बालिकाएँ आएदिन दहेज के कारण मरती रहती हैं, कोई आग लगा लेती हैं, कोई फाँसी लगा लेती हैं, किसी को घर में ही ससुराल वाले मार देते हैं। क्या होता है? बेटे! हमारे हृदय में अग्नि जैसी धधकती है और हमको यह मालूम पड़ता है कि उनकी बेटियों के ऊपर नहीं, हमारी बेटियों के ऊपर आपत्ति आ गई है। हमारी बेटियाँ हैं, क्या इसके लिए आप लोग यह नहीं कर सकते कि आप गायत्री परिवार के लोग आपस में अपनी बच्चियों की, लड़कों की शादी कर लें।
नहीं साहब! लड़की है, तब तो हम दीन-हीन हैं, भिखारी हैं। हमारी लड़की की शादी कैसे होगी? लड़का होगा तो नहीं साहब! ऐसा है हमारी बुआ यों कहती थीं कि हमारा जो फलाना लड़का था, उसकी शादी में तो इतने लाख रुपये आए थे, हम कैसे कम ले लेंगे? अरे भिखारी! तुझे ऐसे ही रहना आता है क्या? छोड़ इस दीनता को, भिखारीपन को छोड़।
सन्त की सन्तान हैं आप
जो कुछ भी आप कर सकते हैं, करें। आपकी जबान काम नहीं देती है तो क्या? हाथ-पाँव तो काम देते हैं, आपका श्रम काम देता है, आपका पसीना काम देता है। अभी हमको एक जमीन खरीदनी है, उसे हम चार-छह दिन में खरीदेंगे। दस-पाँच दिन की देर है, खरीद लेंगे। संकल्प पूरा हो जाएगा। अरे! तुझे मालूम नहीं है, अब तक के संकल्प पूरे हुए हैं, तो क्या अब पूरे नहीं होंगे? बिलकुल होंगे। अब देखना होता है कि नहीं होता है, कुछ तो होंगे।
हम तो चाहते हैं कि आपको भी श्रेय मिले। आप उस सन्त की सन्तान हैं कि गर्व से सिर ऊँचा करके यह कह सकें कि किसके बच्चे हैं? अरे साहब! हम उन गुरुजी के बच्चे हैं, कौन से? वे जिन्होंने तपश्चर्या की थी, उनके ये बच्चे हैं। उन्होंने जो तपश्चर्या की है, वह कोई लाखों में एक करता है। ऐसी तपश्चर्या गिने-चुनों ने की होगी। किसने की होगी? जिनको अरविन्द ऋषि भी कह सकते हैं और भी कह सकते हैं और दो-पाँच का नाम ले सकते हैं, बस, खतम। बेटे! गुरुजी ने वह तपश्चर्या की है, जो राष्ट्र की कुण्डली जागरण के लिए है, उसमें हर हालत में आपका योगदान मिलना चाहिए।
आज का दिन आत्मचिन्तन का दिन है। गुरुजी ने गायत्री तपोभूमि का निर्माण किया। यहाँ का निर्माण किया। सबका उद्देश्य एक ही था कि गायत्री माता के बारे में सबको जानकारी देना। जानकारी ही नहीं देना; बल्कि माँ को इनके हृदयकमल पर बैठाना, इनको विश्वास दिलाना कि हमको देख लीजिए। नहीं साहब! हम जप करेंगे, तो हमारी औरत विधवा हो जाएगी। अच्छा तेरी औरत विधवा हो जाएगी? लड़के-लड़कियाँ कहते रहते हैं कि साहब! जो कोई जप करती है, सो विधवा हो जाती है, अतः ब्राह्मण करेगा और कोई नहीं करेगा।
ब्राह्मण की बपौती है, जो ब्राह्मण ही करेगा, क्यों? माँ की उपासना कोई और क्यों नहीं करेगा? माँ के लिए, भगवान के लिए, तो बेटे और बेटी बराबर होते हैं। उसमें कोई जाति-बिरादरी नहीं होती। यह मनुष्य ही ऐसा कमीना है कि इसके ही अन्दर जाति-बिरादरी होती है। न मालूम क्या होता है?
इसी ने सब चौपट किया है। चौपट इनसान ने नहीं किया है, देवत्व ने नहीं किया है, उसे हैवान ने चौपट किया है। औरत विधवा हो जाती है? बिलकुल नहीं होती और होती है, तो बेटे आगे-पीछे तो सबका ही होता है, किसका नहीं होता? किसी का साथ होगा, किसी का साथ नहीं होगा। आपके सामने हम बैठे हैं, कितनी बड़ी जिन्दगी पार कर ली है।
बेटे! उसी गायत्री माता के सहारे कर ली है। एकनिष्ठ और श्रद्धा के साथ जीवन नैया को पार लगाते हुए चले गए। थोड़ा-सा समय और रह गया है, सो वह भी पूरा हो जाएगा। आप भी इस सम्बल को मत छोड़ना। इस आँचल को मत छोड़ना और उस गोद को मत छोड़ना, जिससे कि आप निहाल होते हों, उस गोद को ठुकराना मत। उस माँ के आँचल को छोड़ मत देना, छोड़ दिया, तो आप डूब जाएँगे।
गुरुजी की नाव में बैठ जाएँ
आप उसी तरीके से उठिए और नाव में बैठ जाइए। किसकी नाव में बैठ जाइए? बेटे! गुरुजी की नाव में बैठ जाइए। यह मल्लाह न कभी डूबता है, न किसी को डूबने देता है। कोई खुद डूबेगा, तो बेटे! हम क्या कर सकते हैं। हम किसी के भाग्य के विधाता हैं, भगवान हैं? नहीं बेटे! भगवान तो जड़ और चेतन में, सारे में समाया हुआ है। हम वह बात कैसे कह सकते हैं? लेकिन शायद एक सच्चे इनसान जरूर हैं, हम लाखों-करोड़ों के पिता और माता हैं।
आप माँ के हृदय की पीड़ा को, पिता के हृदय की पीड़ा को नहीं जान पाएँगे। बच्चे के ऊपर कोई दुःख कष्ट आता है, तो माँ तिलमिला जाती है और बाप बच्चे को लिए-लिए घूमता है। जहाँ कहीं भी कोई कहेगा—हकीम, डॉक्टर, बड़े-से-बड़ा जो भी औकात होती है, वह कभी चूकती नहीं है और माँ-बेटे को कलेजे से लगाकर सारी रात बैठी रहती है। दिन को चैन नहीं आता, रात को नींद नहीं आती है, मेरा बच्चा-मेरा बच्चा कहती रहती है।
बेटे! हम भी इसी तरीके से कहते हैं कि पीड़ा-पतन से जो हमारे बच्चे ग्रसित हैं, हमारी भी जीवात्मा यही कहती रहती है कि इनको निकालना चाहिए।
ये फँस गए, दलदल में चले गए। ये कीचड़ में फँस गए इनको निकालो। किस तरीके से निकालें? हम बड़े साहस और उम्मीद के साथ उन बच्चों को निकालते हैं, खड़ा करते हैं। तब भी तू कीचड़ में जाए, तो तेरी मरजी, जा बेटा! तुझे कीचड़ ही पसन्द है, तो तू कीचड़ में जा, हमको कुछ नहीं करना।
हम सोच लेंगे कि यह था ही नहीं, या होते ही मर गया? सब्र करते हैं कि नहीं करते? हम तो कर लेंगे, पर तू नहीं कर पाएगा। तू उस पिता का विश्वास और उस पिता का अनुदान, उस पिता की करुणा और दया तथा माँ का प्यार और दुलार और वह शक्ति तू नहीं पा सकता, जो पाना चाहिए। इसी के लिए आप लोगों को आज यहाँ एकत्रित किया है।
आज गंगा दशहरा है। आप उस ज्ञान की गंगा में भावनात्मक स्नान करना, जो गुरुजी ने बहाई है। आप भावना करना कि हम पवित्र हो रहे हैं, हम स्वच्छ हो रहे हैं और हम निर्मल हो रहे हैं। ऐसे, जैसे कि निर्मल गंगा जो कि पापों को अपने ऊपर ले लेती है और सबके पापों को दूर करती है। आप गंगा नहाने जाना चाहें तो जाना, चाहे मत जाना, यह आपकी इच्छा है, पर इस गंगा में जरूर नहाना, जिसमें कि आपकी जीवात्मा का परिष्कार है। इसमें आपका बौद्धिक परिष्कार है। ये दोनों ही इसमें जुड़े हुए हैं। आज का दिन आपका भावनात्मक समर्पण का दिन है, आपके चिन्तन का दिन है। इसमें सारे दिन आप सराबोर रहिए और उस आनन्द का लाभ लीजिए, जिसका कि आनन्द अब तक इतनी बड़ी जिन्दगी में हमने लिया है और लेते रहेंगे और ले करके आप सबको बाँटते रहेंगे। बस इन शब्दों के साथ गुरुजी की और हमारी ओर से बार-बार आपको प्यार, दुलार और आशीर्वाद।
आज की बात समाप्त