शान्तिकुञ्ज द्वारा महिला जागरण अभियान का सूत्र संचालन
महिला जागरण अभियान सूत्र संचालन का प्रारम्भिक प्रयास शान्तिकुञ्ज, सप्त सरोवर, हरिद्वार से हुआ है । अभी उसका श्रीगणेश करने के लिये युग-निर्माण योजना सङ्गठन के सृजन सैनिकों पर उत्तरदायित्व डाला गया है । उन्होंने अपनी उच्चस्तरीय लोक-मङ्गल की निष्ठा भरी तत्परता का पिछले दिनों जो परिचय दिया है उसे देखते हुए यह विश्वास कर लिया गया है कि वे इस अभिनव उत्तरदायित्व को भी अपने सुदृढ़ कन्धों पर वहन कर लेंगे । सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में पिछले बीस वर्ष से अनवरत रूप से संलग्न रहने के आधार पर उनका परिपक्व स्तर तथा अनुभव यह स्वीकार कर लेने का उपयुक्त आधार है कि वे विश्व की—मानव जाति की आधी जनता से सम्बन्ध रखने वाली—नारी पुनरुत्थान की अति महत्त्वपूर्ण समस्या को सुलझाने की आवश्यकता पूरी गम्भीरता के साथ समझेंगे और कन्धों पर आई इस नई जिम्मेदारी का भी तत्परतापूर्वक निर्वाह करेंगे ।
सङ्गठन का ढाँचा खड़ा करने के उपरान्त साप्ताहिक सत्सङ्गों की परम्परा चल पड़नी चाहिए ताकि सदस्याएँ परस्पर मिल-जुलकर घनिष्ट बनें और मिशन को आगे बढ़ाने के लिए एक-दूसरे को सहयोग-प्रोत्साहन देने लगें । इसके पश्चात् घर-घर में परिवार निर्माण का प्रशिक्षण करने के लिये प्रचार अभियान चल पड़ेगा । जन्म दिन, पर्व-संस्कार, रामायण कथा, सत्य नारायण कथा इसके प्रधान माध्यम रखे गये हैं । इन आयोजनों के सहारे जन-मानस के नव-निर्माण की—बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक क्रान्ति की प्रकाश प्रेरणाएँ घर-घर में पहुँचाई जा सकेंगी । धर्म परम्पराओं के पुनरुत्थान के साथ-साथ नारी जागरण का—परिवार निर्माण का यह अनूठा समन्वय कितना अधिक सफल होगा इसे कुछ ही दिनों में प्रत्यक्ष देखा जा सकेगा ।
महिला प्रौढ़ पाठशालाओं का संचालन तथा सदस्य परिवार में आदर्श परम्पराओं का प्रचलन यह दो रचनात्मक कार्य ऐसे हैं जिनका प्रभाव-परिणाम अत्यन्त दूरगामी होगा । राष्ट्र निर्माण की दृष्टि से यह छोटे दीखने वाले किन्तु अत्यन्त उपयोगी प्रयास अगले दिनों कैसे चमत्कारी परिवर्तन प्रस्तुत करते हैं इसे अगले ही दिनों हम सब भली-भाँति देखेंगे ।
इस सङ्गठित अभियान का सूत्र संचालन करने की धुरी फिलहाल हरिद्वार है । पीछे तो वह अत्यन्त व्यापक बनेगी और बहमुखी होगी । उसकी अगणित प्रवृत्तियाँ विभिन्न स्थानों से संचालित होंगी किन्तु आरम्भ तो यहीं से किया गया है । सङ्गठन को दिशा शान्तिकुञ्ज से मिलेगी । इसलिये आवश्यक समझा गया है इसके लिये अभीष्ट साधन भी यहीं से जुटाये जाँय । इतने बड़े आन्दोलन के लिये तीन माध्यमों की जरूरत रहेगी । तीन उपकरण अनिवार्य प्रयुक्त होंगे । (१) लेखनी (२) वाणी (३) क्रियाशीलता । अस्तु साहित्य निर्माण—गायन एवं भाषण शक्ति का विकास एवं रचनात्मक कार्यक्रमों का विस्तार कर सकने की समग्र व्यवस्था जुटानी पड़ेगी । अपने स्वल्प साधनों के अनुरूप इन तीनों ही प्रयोजनों के लिए शान्तिकुञ्ज की युगान्तर चेतना पूरी शक्ति के साथ जुट गई है ।
लेखनी शक्ति का उपयोग करते हुए साहित्य निर्माण का कार्य सुदृढ़ आधार पर खड़ा किया गया है । १ जुलाई ७५ से महिला जागरण हिन्दी मासिक पत्रिका आरम्भ की गई है । समयानुसार वह अन्य भाषाओं में भी युग-निर्माण योजना की तरह ही छपने लगेंगी । इसके माध्यम से शाखा सङ्गठनों का तथा अनेकानेक रचनात्मक प्रवृत्तियों का सूत्र संचालन मार्गदर्शन सुविस्तृत क्षेत्र में भली प्रकार हो सकेगा, ऐसी आशा की जा सकती है ।
साथ ही मिशन के विभिन्न पक्षों का साहित्य प्रकाशित करने के लिए भी तन्त्र खड़ा किया गया है । जन-जन तक जागृति का सन्देश पहुँचाने के लिए २० प्रचार पुस्तिकाएँ छापी गई हैं तथा शाखाओं की तात्कालिक गतिविधियों को अग्रगामी बनाने वाला साहित्य इन्हीं दिनों छाप दिया गया है । अब अगले दिनों प्रौढ़ महिला पाठशालाओं का प्रचार सारे देश में होने जा रहा है । उसकी पाठ्य पुस्तकों में व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के सारे सूत्र गूँथे जा रहे हैं । इसके लिये नितान्त नई पुस्तकें प्रस्तुत की जानी थीं । वह इन्हीं दिनों लिखी और छापी जानी हैं । अस्तु वह तैयारी अति उत्साहपूर्वक आरम्भ की गई है । आशा की जानी चाहिए कि यह पाठ्य पुस्तकें सन् ७५ के अन्त तक छपकर तैयार हो जायेगी और मिशन द्वारा स्थापित प्रौढ़ विद्यालयों में वे ही पढ़ाई जाने लगेंगी ।
महिलाओं के लिए—बच्चों के लिए—परिवारों में स्वस्थ परम्पराओं की स्थापना के लिये बड़े पैमाने पर अभिनव विचारणाएँ सुविस्तृत की जानी है । वे निबन्धों, कथाओं, कविताओं और चित्र मालाओं के रूप में पुस्तकाकार छपनी हैं । मिशन ने इस तरह का छोटा किन्तु सुदृढ़ तन्त्र खड़ा कर लिया है । कितना उपयोगी और कितना महत्त्वपूर्ण साहित्य कितने अधिक परिमाण में इस छोटे से तन्त्र द्वारा प्रस्तुत कर दिया गया इसे लोग अगले ही दिनों एक चमत्कार की दृष्टि से देखेंगे । यह कहना न होगा कि यह साहित्य अधिकाधिक सुन्दर और लागत मूल्य पर प्रकाशित किये जाने के कारण सहज ही लोकप्रिय होकर रहेगा ।
इसके लिये शान्तिकुञ्ज में अपना युगान्तर चेतना प्रेस लगा दिया गया है । साधनों के अभाव में आरम्भ छोटा है, पर उसके मूल में वे तत्त्व मौजूद हैं जो विकास के अनुरूप अपनी आवश्यकताएँ सहज ही पूरी करते हुए बढ़ा करते हैं ।
साहित्य प्रकाशन के साथ-साथ प्रचार का दूसरा दृश्य माध्यम भी अपनाया गया है । वह है स्लाइड प्रोजक्टर (प्रकाश चित्र यन्त्र ) की सहायता से घर-घर जाकर महिला जागरण की—व्यक्ति, परिवार और समाज निर्माण की—समस्त समस्याओं का स्वरूप एवं समाधान सिखाया, समझाया जाना है । इसके लिये अभी १०० स्लाइडें बनाई गई हैं । भविष्य में और भी अधिक बनती रहेंगी । मशीनें बड़ी संख्या में बनाने और खरीदने-बेचने के आधार खड़े कर लिये गये हैं । स्लाइडों के माध्यम से प्रवचन करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है । इस आकर्षक माध्यम से जनता को इकट्ठे करने और प्रेरणाएँ भरने का कार्य अधिक सुविधापूर्वक हो सकेगा और इसके सहारे सहस्रों प्रचारिकाएँ अपने-अपने क्षेत्र से नव-जीवन संचार कर सकेंगी ।
शाखा-सङ्गठनों की संख्या इतनी बड़ी होने जा रही है कि नारी पुनरुत्थान जैसे अति जटिल और अति कठिन कार्य में आशाजनक सफलता मिलने की सम्भावना दृष्टिगोचर होने लगे । उनमें सङ्गठन, प्रशिक्षण, प्रवचन, अध्यापन, गायन आदि में निष्णात महिलाओं की आवश्यकता पड़ेगी । वे न तो वेतन देकर रखी जा सकती हैं और न कहीं बाहर से आयात की जा सकती हैं । युग-निर्माण मिशन के सृजन सैनिक ही अपनी माताओं, बहिनों, पत्नियों और पुत्रियों को आगे धकेल कर इस प्रयोजन की पूर्ति कर सकने वाली महिलाओं की आवश्यकता पूरी करेंगे । युग का नेतृत्व कर सकने वाले नारी रत्न अपने युग-निर्माण परिवार के स्वजनों के घरों से ही निकलेंगे ।
शान्तिकुञ्ज में स्थान बहुत थोड़ा है । कुल मिलाकर २०० शिक्षार्थियों के निवास का स्थान है । इसी में पुरुषों के (१) जीवन साधना सत्र (२) वानप्रस्थ सत्र (३) रामायण कथा प्रवचन सत्र (४) अध्यापन एवं लेखन सत्र चलते रहते हैं । यह सत्र भी लगातार नहीं चलते । एक को बन्द करके दूसरा चलाना पड़ता है । शिक्षार्थियों की कमी नहीं है, उन्हें तो प्रवेश पाने के लिये एक-एक साल प्रतीक्षा करनी पड़ती है । स्थान सीमित होने से एक को बन्द करके दूसरे चलाने का चक्र घुमाने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं । सामाजिक कार्यक्रम सृजन सेना के सैनिक नर और नारी दोनों को ही तैयार करने का लक्ष्य है । सो उनका विभाजन १००-१०० की सीमा में बाँटा हुआ है ।
नारी के हिस्से में प्रशिक्षण की १०० सीट ही आती हैं । इतने में ही कभी महिलाओं का, कभी कन्याओं का सत्र चलाना पड़ता है । महिलाओं की शिक्षा तो आगे भी तीन महीने की ही रहेगी, पर कन्याओं का प्रशिक्षण एक वर्ष से घटा कर छै महीने कर दिया गया है ताकि उन्हें उतने ही स्थान और उतने ही समय में दूनी संख्या में प्रशिक्षित किया जा सके । यों वह शिक्षण एक वर्ष से कम का नहीं होना चाहिए था, पर प्रस्तुत साधनों को देखते हुए वह समय आधा कर देने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रहा है ।
तीन महीने महिला शिक्षणों में वे नारियाँ आती हैं जिनके कन्धों पर घर परिवार का उत्तरदायित्व है । बाल-बच्चे वाली हैं किन्तु अपना, अपने परिवार का, बच्चों का, सर्वतोमुखी विकास करने के लिये उत्सुक हैं । अपने क्षेत्र में महिला जागरण के लिये भी कुछ करना चाहती हैं । उन्हें स्वास्थ्य संरक्षण, मानसिक सन्तुलन, संयुक्त परिवार से सघन सहयोग—घर में हँसी-खुशी का वातावरण, गृह व्यवस्था, स्वच्छता, सुसज्जा एवं गृह उद्योगों की उपयोगी जानकारी इसी छोटी अवधि में दे दी जाती है । सङ्गीत द्वारा स्वल्प मनोरंजन तथा भावनात्मक नव-निर्माण के भाषण तथा सम्भाषण के आवश्यक सूत्र उनके हाथ में थमा दिये जाते हैं । जीवन की अनेकानेक समस्याओं का स्वरूप तथा समाधान उन्हें बता दिया जाता है, जिसके सहारे वे अपने घरों में गृह लक्ष्मी की भूमिका सम्पादित करती हैं और समीपवर्ती क्षेत्र में महिला जागरण के लिये भी कुछ न कुछ करती रहती हैं ।
छः महीने के कन्या शिक्षण में अब वे सभी तत्त्व जोड़ दिये गये हैं जिनके आधार पर वे अपने यहाँ की प्रौढ़ महिला पाठशाला में अध्यापिका का उत्तरदायित्व सँभाल सकें । वे पाठशालाएँ अब सर्वत्र स्थापित की जानी हैं और निरक्षरों को साक्षर तथा साक्षरों को सुयोग्य बनाने का कार्य उन्हीं के द्वारा सम्पन्न किया जाना है । इन पाठशालाओं में सङ्गीत की इतनी शिक्षा जुड़ी रहेगी ताकि वे घरों में मनोरंजन के साथ-साथ भावनाएँ उभारने का—कथा कीर्तन का वातावरण बना सकें । गृह उद्योगों का इतना समावेश रखना है कि कोई भी महिला गृह कार्यों के अतिरिक्त कम से कम अपना पेट भरने लायक
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के महत्वपूर्ण अङ्ग हैं । भाषा और साहित्य के साथ-साथ व्यक्ति, परिवार और समाज की समस्याओं का स्वरूप और समाधान जोड़कर रखा गया है । सामान्य ज्ञान में स्वास्थ्य संरक्षण, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, गणित, भूगोल, इतिहास, विज्ञान, शिशु पालन, धातृ विद्या आदि की आवश्यक जानकारियाँ जोड़ी गई हैं । प्रत्येक महिला प्रौढ़ पाठशाला में (१) सङ्गीत (२) गृह उद्योग (३) जीवन समस्या (४) सामान्य ज्ञान जोड़कर रखा गया है । जूनियर हाईस्कूल स्तर की शिक्षा का लक्ष्य लेकर चला गया है । शान्तिकुञ्ज में छः महीने की ट्रेनिंग के लिये आने वाली कन्याओं को यह चारों ही विषय इतने पढ़ा दिये जायेंगे जिससे वे अपने पितृगृह में तथा पतिगृह में जहाँ भी रहें, वहीं अपने तथा पड़ोस के परिवारों में इस सद्ज्ञान का उपयोग करके प्रगतिशील परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकें ।
महिला जागरण का नेतृत्व करने के लिए प्रवचन, सङ्गठन एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों का संचालन कर सकने की क्षमता होनी चाहिए । इसके लिए बहुत पढ़ने, समझने, सीखने और अभ्यास में लाने की आवश्यकता होगी । शान्तिकुञ्ज की शिक्षा में हर दिन आठ घण्टे का व्यस्त कार्यक्रम रखा गया है ताकि एक वर्ष का निर्धारित कोर्स वे छः महीने में ही पूरा कर सकें । इतने पर भी उन्हें खेलकूद, व्यायाम, ड्रिल तथा लाठी चलाने की अतिरिक्त शिक्षा दे दी जाती है । अति व्यस्त शिक्षण भी इतना मनोरंजक है कि उसमें किसी को ऊबने, उकताने की नौबत नहीं आती ।
इन दोनों विद्यालयों का प्रशिक्षण देने के लिये शान्तिकुञ्ज में कुछ ऐसी लड़कियाँ रहती हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही नारी उत्कर्ष के लिए महान यज्ञ में समर्पित कर दिया है । इन्हीं को शाखाओं में समय-समय पर होने वाले शिविर सम्मेलनों का उद्वोधन-प्रशिक्षण करने के लिए भेजा जाता है । नव-निर्मित शाखा सङ्गठनों को अपनी गतिविधियाँ अधिक सुनियोजित रीति से चलाने के लिए अनुभवपूर्ण मार्ग-दर्शन और व्यावहारिक सहयोग की जरूरत पड़ती है । इसके लिए शाखायें अपने-अपने यहाँ दस दिवसीय शिविर कार्यक्रम रखती हैं । उसी में वार्षिकोत्सव भी जुड़ जाता है । इन आयोजनों का अनुभव भरा संचालन-मार्गदर्शन शान्तिकुञ्ज में रहने वाली वे देवियाँ ही करती हैं जो हरिद्वार रहने पर अध्यापन का, सम्पादन का, साहित्य निर्माण का, व्यवस्था का कार्य करती हैं और बाहर जाने पर प्रचारिका का ।
यह पंक्तियाँ मार्च ७५ में लिखी जा रही हैं । इन दिनों विद्यालयों से लेकर प्रेस, प्रकाशन, पत्रिका, शाखा सङ्गठन आदि का कार्य जोरों से चल रहा है और सारे आवश्यक साधन उपकरण बड़ी तेजी से अनवरत दौड़धूप के साथ सुव्यवस्थित किये जा रहे हैं । आशा की गई है कि ३० जून ७५ तक उपरोक्त सभी कार्यक्रम अपने समग्र रूप में खड़े होकर गतिशील हो रहे होंगे और सन् ७५ का अन्त होते-होते महिला जागरण अभियान की शाखा, सङ्गठन तथा शान्तिकुञ्ज की प्रकाशन एवं प्रशिक्षण व्यवस्था प्रौढ़ स्थिति तक पहुँच चुकी होगी ।
अभी मानव जाति को अपङ्ग स्थिति से उबारने के इस महान कार्यक्रम में प्रत्येक न्याय और विवेक के समर्थक तथा मानव जाति के उज्जवल भविष्य पर विश्वास करने वाले भावनाशील नर-नारी का समग्र सहयोग आमन्त्रित किया जा रहा है । आशा की जानी चाहिए कि वह मिलेगा भी ।