अत्यन्त व्यस्त, असमर्थ लोगों के लिए एक प्रतीक साधना

अत्यन्त व्यस्त, असमर्थ लोगों के लिए एक प्रतीक साधना भी है। प्रातःकाल आँख खुलते ही पाँच मिनट की इस मानसिक ध्यान धारणा को सम्पन्न किया जा सकता है। अपने स्थान से ध्यान में ही हरिद्वार पहुँचा जाए। गंगा में डुबकी लगाई जाए। शान्तिकुञ्ज में प्रवेश किया जाए। गायत्री मन्दिर और यज्ञशाला की परिक्रमा की जाए। अखण्ड दीपक के निकट पहुँचा जाए। कम से कम दस बार वहाँ बैठकर जप किया जाय। माताजी से भक्ति का और गुरुदेव से शक्ति का अनुदान लेकर अपनी जगह लौट आया जाए। इस प्रक्रिया में प्रायः पाँच मिनट लगते हैं एवं महापुरश्चरण की छोटी भागीदारी इतने से भी निभ जाती है। जिसके पास समय है वे गायत्री का जप और उगते सूर्य का ध्यान सुविधानुरूप अधिक समय तक करें।

क्रान्तिधर्मी साहित्य पुस्तकमाला-22 (इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण) पृष्ठ-19, (live.awgp.org पर शान्तिकुञ्ज की दैनिक यात्रा आप कर सकते हैं।)

 

पू. गुरुदेव के साथ २४ बार गायत्री मंत्र २४००० गायत्री मंत्र के बराबर शक्तिशाली हैं

परम पूज्य गुरुदेव स्वयं कहते हैं—‘‘हमारे साथ २४ गायत्री मंत्र बोलने से आप लोगों को गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण आ जाएगा और आप लोगों के बोलने के साथ-साथ में हमारी वाणी का भी समावेश हो जाएगा। हमारी कई वाणियाँ हैं। आपके तो एक ही वाणी है—बैखरी। हमारे पास मध्यमा वाणी भी है, परावाणी भी है, पश्यन्ति वाणी भी है। इन चारों वाणियों को मिलाकर के हम मंत्र बोलते हैं, तो २४ मंत्र हम बोलेंगे, हमारे साथ-साथ आप भी बोलना शुरू कर दीजिए। इस तरीके से २४ मंत्र समझिए कि २४ हजार मंत्रों के बराबर शक्तिशाली होंगे, क्योंकि उसमें हमारी वाणी का समावेश है।’’ —यज्ञ की महत्ता एवं वातावरण का परिशोधन, प्रवचन से।

परम पूज्य गुरुदेव प्रातःकालीन साधना के निर्देशों में बोलते हैं—‘‘गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बारह बार बोलें।’’ जब हम गायत्री मंत्र का उच्चारण उनके साथ करते हैं तो प्रत्येक मंत्र के साथ हमें एक हजार मंत्रों के बराबर लाभ मिल जाता है। यदि नित्य बारह हजार मंत्रों का पुण्य लाभ लेना हो तो अपनी चेतना को उन ब्रह्मर्षि के साथ एकाकार कर जप करना चाहिए; जिनने उस मंत्र को सिद्ध कर स्वयं को गायत्रीमय बना लिया। —अखण्ड ज्योति जुलाई-२००८, पृष्ठ ६ से।

 

बलिवैश्व महायज्ञ की महत्ता

1. बेटे! गायत्री और यज्ञ को विश्व के घर-घर में पहुँचा दो। यही मेरी अंतःकरण की कामना है।...जहाँ भी गायत्री यज्ञ होता है, वहाँ हम और हमारे गुरुदेव आ जाते हैं।

2. गायत्री यज्ञ से सद्विचारों और सद्भावनाओं की शक्ति कई गुनी हो जाती हैं।

3. बेटे! मैंने बहनों के हाथ में बलिवैश्व यज्ञ के रूप में परिवार-निर्माण का रिमोट कंट्रोल थमा दिया है। वे अपने परिवार को जैसा चाहें, वैसा बना सकतीं हैं।

4. बलिवैश्व यज्ञ करने से परिवार में प्यार-सहकार और शालीनता का समावेश होता है। यह नशेबाजी और पारिवारिक कलह से छुटकारा पाने की भी अचूक दवा है।

5. गायत्री मंत्र-दीक्षा के समय स्वीकार किए गये अनुशासन-अनुबंध में बलिवैश्व यज्ञ करना-कराना भी अनिवार्य अनुबंध है।

6. जो नित्य प्रातः-सायं बलिवैश्व यज्ञ करते हैं, वे लक्ष्मी, दीर्घजीवन, यश तथा सुसन्तति प्राप्त करते हैं।

7. बलिवैश्व यज्ञ से (सभी जीवधारियों के प्रति कृतज्ञता-प्रेम-सेवा की भावना के कारण) इस युग की सभी सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान होता है।

 

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा इदं ब्रह्मणे इदं न मम।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा इदं देवेभ्यः इदं न मम।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा इदं ऋषिभ्यः इदं न मम।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा इदं नरेभ्यः इदं न मम।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा इदं भूतेभ्यः इदं न मम।

 

यदि विचार बदल जाएँगें तो कार्यों का बदलना सुनिश्चित है।

मित्रो! यदि विचार बदल जाएँगें तो कार्यों का बदलना सुनिश्चित है। कार्य बदलने पर भी विचारों का न बदलना सम्भव है, पर विचार बदल जाने पर उनसे विपरीत कार्य देर तक नहीं होते रह सकते। विचार बीज हैं, कार्य अंंकुर..विचार पिता हैं, कार्य पुत्र। इसलिए जीवन परिवर्तन का कार्य विचार परिवर्तन से आरम्भ होता है। जीवन-निर्माण का, आत्म-निर्माण का अर्थ है—‘विचार-निर्माण’।युग निर्माण का सत्संकल्प नित्य दुहराना चाहिए। स्वाध्याय से पहले इसे एक बार भावनापूर्वक पढ़ना और तब स्वाध्याय आरम्भ करना चाहिए। सत्संगों और विचार गोष्ठियों में इसे पढ़ा और दुहराया जाना चाहिए। एक व्यक्ति संकल्प का एक-एक वाक्य पढ़े और बाकी लोग उसे दुहरावें। इस सत्संकल्प का पढ़ा जाना हमारे नित्य-नियमों का एक अंग रहना चाहिए।...मानव-जीवन का आदर्श, कर्तव्य, धर्म और सदाचार का इस संकल्प मंत्र में भावनापूर्वक समावेश हुआ है। इसका पाठ करना किसी धर्म ग्रन्थ के पाठ से कम प्रेरणा और पुण्यफल प्रदान करने वाला नहीं है।

आत्म-निर्माण की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक पाँच कार्यक्रम—

1. अपने दैनिक जीवन में उपासना को स्थान देना चाहिए।
2. स्वाध्याय के लिए निश्चित समय निर्धारित करना चाहिए।
3. नित्य युग निर्माण का सत्संकल्प याद रखना चाहिए।
4. सोते समय नियमित रूप से आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
5. समय-समय पर कुविचारों से लड़ते रहने की तैयारी करनी चाहिए। ... युग-निर्माण अपने आप से ही आरम्भ करना है।