प्राणवान संगठनों की सुनियोजित प्रक्रिया प्रारम्भ हो

नारी पुनरुत्थान के प्रयास व्यक्तिगत रूप से अपने निजी परिवार से तो आरम्भ किये ही जाने चाहिए पर उतने मात्र में सन्तोष न करके प्रयत्नों को सामूहिक रूप से व्यापक भी बनाया जाना चाहिए । नारी समस्या एक घर की नहीं, समस्त समाज की है । एक घर के समझदार लोग अपना सुधार कर लें तो उतने भर से काम नहीं चलेगा, समूचा वातावरण ही बदला जाना चाहिए । आलोक इतना व्यापक होना चाहिए कि किसी भी कोने में अन्धकार को आश्रय मिलने की गुंजाइश न रहे ।

महिला जागरण अभियान का संगठन सूत्र युगान्तर चेतना शान्तिकुञ्ज हरिद्वार से संचालित हो रहा है, उसकी शाखाएँ उन सभी स्थानों पर स्थापित होनी चाहिए, जहाँ अखण्ड ज्योति का प्रकाश पहुँचता है, जहाँ युग निर्माण आन्दोलन के लिए उत्साह है । पहले अपने ही कार्यकर्ताओं को अपने घरों की महिलाओं को उस संगठन की सदस्या बनाकर पहल करनी चाहिए । सदस्यता के २५-२५ प्रतिज्ञा पत्रों और स्वीकृति के प्रमाण पत्रों की सदस्य पुस्तिकाएँ छपी हैं, उन्हें भरने पर प्रामाणिक सदस्या बन जाती हैं । संघ महिलाओं का है उन्हीं के द्वारा उन्हीं से सम्बन्धित प्रवृतियों के संचालन के लिए है, इसलिए सदस्या तो वे ही बन सकती हैं, पर सहायकों के रूप में पुरुषों के लिए भी उस संघ में सम्मिलित रहने की सुविधा रखी गई है । वे सहायक सभ्य कहे जायेंगे । सहायक सभ्य महिला जागरण कार्यक्रमों की सहायक भूमिका निभायेंगे । इसके लिए पृष्ठ भूमि बनाने और साधन जुटाने में अधिक से अधिक प्रयत्न करेंगे पर रहेंगे पीछे ही ।

संगठन का कलेवर बनायें—सदस्यता की कोई आर्थिक फीस नहीं है । श्रम, समय और मनोयोग का अधिकाधिक अनुदान देने में परस्पर प्रतिस्पर्धा करना ही सदस्यता शुल्क है । यों तो आवश्यकता तो पैसे की भी पड़ेगी पर वह अपनी-अपनी श्रद्धा और स्थिति के अनुरूप सभी सदस्य और सभ्य प्रस्तुत करेंगे । वह स्वेच्छा सहयोग होगा । इसके लिए दैनिक अनुदान की परम्परा बहुत ही उपयोगी है, उससे यह स्मरण रहता है कि अन्य नित्य कर्मों की तरह इस पुनीत कार्य के लिए भी हमें कुछ न कुछ नित्य ही करना है । एक डिब्बे में अनाज की एक मुट्ठी या दस-पाँच पैसा डालने जैसे छोटे अनुदान को भी यदि दैनिक अनुदान में सम्मिलित रखा जाय तो श्रम, समय, मनोयोग की भाँति ही इस नितान्त आवश्यक संगठन को सजीव रखने के लिए आवश्यक धन की भी कमी न रहेगी ।

आरम्भिक प्रयास में जितने भी सदस्य और सभ्य बन सकें उन्हीं से शाखा स्थापित कर लेनी चाहिए । सबसे उत्साही, लगनशील, प्रामाणिक तथा समय दे सकने वाली महिला को कार्यवाहक नियुक्त कर लेना चाहिए, उसका नियुक्ति पत्र हरिद्वार से मँगा लेना चाहिए । आवश्यकता हो तो एक दूसरी महिला कोषाध्यक्ष भी चुनी जा सकती है । बाकी प्रधान, उप प्रधान मन्त्री, उपमन्त्री आदि पदाधिकारों को नहीं चुनने चाहिए । पद लोलुपता का विष जहाँ भी घुसता है वहाँ संगठनों का अंत करके ही छोड़ता है । उनमें चढ़ा ऊपरी तो इसी अहम्मन्यता के आधार पर खड़ी हो जाती है । इसलिए अभियान का स्वरूप सर्वथा परिवार पद्धति के अनुरूप रखा गया है । इसमें नेता बनने का कोई प्रयत्न नहीं करता ।

संगठन का ढाँचा इस प्रकार खड़ा हो जाता है और उसके लिए अगले काम करने का द्वार खुल जाता है । सदस्यों और सभ्यों की संख्या अधिकाधिक बढ़ाई जाती रहे । शाखा का कार्यालय यों किसी सार्वजनिक या सुविधाजनक स्थान पर भी रखा जा सकता है, पर यदि स्थान सम्बन्धी असुविधा न हो तो कार्यालय कार्यवाहक के घर पर रहना ठीक रहता है । एक अलमारी में सारा सामान सुरक्षित रहे । घर का एक कमरा इस प्रयोजन के लिए भी काम आता रहे तो इतने से भी बात बन जायगी । संगठन का ढाँचा खड़ा होते ही साप्ताहिक सत्संगों का क्रम चल पड़ना चाहिए । जीवित शाखा की यह अनिवार्य शर्त है कि उसके सत्संग नियमित रूप से चलते रहें । सामान्यतया वे साप्ताहिक होने चाहिए । मर्दों की छुट्टी का दिन इसके लिए अधिक सुविधाजनक रहता है । वे उतने समय घर सँभाल सकते हैं और महिलाओं को सत्संग में जाने का अवकाश मिल सकता है । स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कोई अन्य सुविधा का दिन भी रखा जा सकता है ।

शाखा के सदस्यों और सभ्यों की, कार्यवाहक की नामावली तथा पता हरिद्वार भेजकर संगठन को सम्बद्ध पंजीकृत करा लेना चाहिए । शाखा के लिए कुछ अत्यन्त उपयोगी साधन वहाँ तैयार करा लिये गये हैं, उन्हें आवश्यकतानुमार मँगा लेना चाहिए । (१) शाखा के नाम का टीन का सुन्दर साइनबोर्ड, साइज १०x१५ (२) २५ पृष्ठों की सदस्य पुस्तिकाएँ (३) २५ पृष्ठों की सभ्य पुस्तिकाएँ (४) चन्दा इकट्ठा करने की रसीद बही (५) प्रत्येक सदस्य को लगाकर चलने के लिए महिला जागरण अभियान का लाल मशाल वाला सुन्दर बिल्ला (६) सहगान कीर्तन पुस्तक (७) रामायण पारायण पुस्तक (८) हवन विधि (६) सदस्यों और सभ्यों द्वारा झोला पुस्तकालय की तरह सम्बद्ध क्षेत्र में पढ़ाये जाने योग्य २० विज्ञप्तियों का सैट जिसमें से एक यह है जो पढ़ी जा रही है । यह सभी वस्तुएँ अत्यन्त सस्ते मूल्य पर प्रस्तुत की गई हैं ताकि हर शाखा को कम मूल्य में सभी साधन सुविधापूर्वक मिल सके । शाखा संगठनों को यह साधन अपनी आवश्यकता के अनुरूप मात्रा में हरिद्वार से मँगा लेने चाहिए । टीन का बोर्ड तथा बिल्ले तो किसी आते-जाते के हाथ ही मँगाना चाहिए । अन्य साहित्य डाक से भी जा सकता है, पर इन दिनों बढ़े हुए डाक खर्च को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त यही है कि सभी वस्तुएँ किन्हीं आते-जाते के हाथों मँगाई जायें ।

संगठन के कलेवर में प्राण यों फूँके जायें—महिलाओं को सदस्य और पुरुषों के अभियान का सहायक सभ्य बन जाने से, कार्य वाहक नियुक्त हो जाने से, शाखा कार्यालय नियत हो जाने से शाखा संगठन का ढाँचा खड़ा हो जाता है । उसमें प्राण भरना साप्ताहिक सत्संगों के आधार पर सम्भव होता है । कागजी संस्थाएँ तो रोज बनती और रोज बिगड़ती हैं—संघ-शक्ति विकास करने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि संगठन के सभी सदस्य जल्दी-जल्दी मिलते रहें, घनिष्ठता विकसित करें । मिल-जुलकर कदम बढ़ाने की योजना बनायें और एक-दूसरे को प्रोत्साहन-सहयोग देकर वैसा वातावरण बनायें जिसमें कुछ ठोस काम बन पड़ना सम्भव हो सके । यह तभी सम्भव है जब महिला जागरण शाखायें अपने साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम को यथावत् चालू रखने पर उसे अधिकाधिक समृद्ध सुविस्तृत करने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाएँ । इसके लिए प्राणप्रण से चेष्टा करें ।

शाखा सदस्याएँ तो साप्ताहिक सत्संग में सम्मिलित होना एक प्रकार से अपना अनिवार्य कर्तव्य ही मानें । कोई अत्यन्त ही आवश्यक और अपरिहार्य कारण आ जाय तो ही अनुपस्थित हों । सदस्याओं में से प्रत्येक का यह भी प्रयत्न होना चाहिए कि अपने घर, परिवार, पड़ोस, रिश्ते तथा परिचय क्षेत्र में से अधिक महिलाओं को साथ लाने के लिए छै दिनों में प्रयास करती रहें और जिस दिन सत्संग हो उस दिन प्रयत्न करके उन लोगों को साथ ले चलने की नये सिरे से दौड़-धूप करें । यदि यह प्रयास जारी रखा जा सका तो सत्संगों की उपस्थित घटने नहीं पायेगी, वरन बढ़ती ही रहेगी । अधिक महिलाओं तक, अधिक मात्रा में अधिक व्यवस्थित रूप से प्रकाश पहुँचाना और उत्साह भरना इसी प्रकार सम्भव हो सकता है । जो महिला इस दिशा में जितनी दौड़ धूप कर सके उसे उतनी ही प्रशंसा पात्र समझा जाना चाहिए ।

साप्ताहिक सत्संग एक ही स्थान पर होते रहें या बदल-बदल कर । यह स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर है । यदि संख्या कम रहती है तो उन्हें घरों पर चलाया जा सकता है, पर यदि उपस्थिति बढ़े तो किसी बड़े सार्वजनिक स्थान को चुनना पड़ेगा ।

सत्संगों में चार कार्यक्रम रहेंगे (१) गायत्री मन्त्र का सस्वर सामूहिक पाठ । यह पाठ चौबीस बार किया जाना चाहिए (२) गायत्री यज्ञ इसमें भी चौबीस आहुतियाँ होनी चाहिये, आधा घंटे में पूर्ण हो सकने वाले हवन की संक्षिप्त विधि नई बना दी गई है । (३) सहगान सामूहिक कीर्तन, आधा घंटा इसके लिए रामायण परायण पुस्तक छपी हैं जिसमें चुनी हुई चौपाइयाँ हैं । सहगान कीर्तन पुस्तक में गीत भी इसी प्रयोजन के लिए छपे हैं । एक-एक पंक्ति दो महिलायें मिलकर बोलें और शेष सब उसे दुहरायें, सहकीर्तन की यही पद्धति है । इसमें हारमोनियम, तबला आदि का समावेश हो सके तो और भी उत्तम है (४) प्रवचन एक घंटा । इसमें महिला समस्याओं के स्वरूप तथा उसके समाधान पर प्रवचन रहें । एक महिला बोले या कई यह सब स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर है । बोलने के लिए मिशन के छपे साहित्य तथा महिला जागरण पत्रिका में छपे लेखों से सहारा लिया जा सकता है । प्रवचन अभ्यास की दृष्टि से थोड़ा-थोड़ा पर कई महिलाएँ बोला करें तो उसमें अभ्यास खुलने और विचार मिलने का दुहरा लाभ भी हो सकता है ।

गायत्री मन्त्र पाठ के साथ आरम्भ और शान्ति पाठ के साथ समाप्ति की जानी चाहिए । प्रयत्न करना चाहिए कि गायत्री मन्त्र और शान्ति पाठ के दो मन्त्र सभी को याद हों । यों हवन विधि के श्लोक, रामायण पारायण की चुनी हुई चौपाइयाँ, सहगान कीर्तन के गीत जिन्हें जितनी अधिक अच्छी तरह अभ्यास हो सके उतना ही अच्छा है । बार-बार पाठ करने से सब कुछ सरल हो जाता है । हवन विधि की जानकारी तथा प्रवीणता सभी को मिल सके इसलिए एक सत्संग में एक महिला को संचालक बनाया जाय तो उस बदलते हुए क्रम के आधार पर कितनों को अभ्यास हो जायगा । यही बात रामायण पारायण एवं कीर्तन के सम्बन्ध में भी हो सकती है ।

यदि सत्संगों के स्थान बदलने हैं तो उसकी सूचना भी अंत में दे देनी चाहिए । किन्हीं के घरों पर जन्म दिन पुंसवन, नामकरण, अन्नप्राशन, विद्यारम्भ, मुण्डन संस्कार होने हैं तो उसकी सूचना भी इसी अवसर पर दे दी जानी चाहिए । यदि शाखा के पास पुस्तकालय है । तो पुरानी पुस्तकें जमा करने और नई लेने का कार्य भी इसी समय हो सकता है । शाखा सम्बन्धी यदि कोई कार्य आरम्भ करना हो, विचार-विनिमय अभीष्ट हो तो उसके लिए भी यह ही समय अधिक उपयुक्त है । कार्यवाहक अथवा अन्य कोई प्रभावशाली महिला इस प्रकार की जानकारियाँ देती रहें तो सदस्यों को संगठन के लिए क्या करना है यह जानने का अवसर मिलता रहेगा ।

यदि सम्भव हो तो सत्संग के अन्त में उपस्थित महिलाएँ जुलूस के रूप में सत्संग भवन से विदा हो सकती हैं और निर्धारित सड़क-गलियों में प्रेरणाप्रद गीत गाती हुई निकल सकती हैं । इससे मिशन के अस्तित्व, स्वरूप एवम् कार्यक्रम की जानकारी अधिक लोगों को मिलेगी अथवा क्षेत्र विस्तृत होगा और अधिक जन सहयोग सम्पादित कर सकना सम्भव होगा । प्रचार का यह सुगम किन्तु प्रभावशाली तरीका है । आगे-आगे महिला जागरण अभियान का कपड़े पर बना और दो बाँसों में लगा हुआ बोर्ड रहे । बीच-बीच में अपने उद्घोष रहें, गीतों में मिशन का लक्ष्य बताया जाये तो इससे देखने और सुनने वाले इस अभियान की जानकारी एवम् प्रेरणा प्राप्त कर सकने में समर्थ होंगे । मिशन के प्रख्यात नारे बहुत ही प्रेरक हैं—

(१) हम बदलेगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ।
(२) नया समाज बनायेंगे—नया जमाना लायेंगे ।
(३) नर और नारी एक समान—जाति वंश सब एक समान ।
(४) अत्याचार का अंत हो, दहेज प्रथा बन्द हो ।
(५) लड़की लड़के नहीं बिकेंगे, नहीं बिकेंगे नहीं बिकेंगे ।

इन आदर्श वाक्यों को जलूसों में ले चलने योग्य पोस्टरों पर अंकित किया जा सकता है और सुविधा अनुसार दीवारों पर भी लिखाया जा सकता है ।

प्रभात फेरी निकालने की जहाँ व्यवस्था बन सके, वहीं उसके लिए प्रयत्न किया जाना चाहिए । शिक्षित लड़कियाँ इस कार्य को अधिक अच्छी तरह कर सकती हैं । सूर्योदय से एक घण्टा पूर्व से लेकर सूर्य निकलने के समय तक का समय इसके लिए अधिक उपयुक्त रहता है । लड़कियाँ, महिलाएँ भजन गाती हुई निर्धारित गली-मुहल्लों से होकर निकलें तो लोगों के कानों में मिशन का सन्देश पहुँचेगा ।

इन शाखाओं द्वारा वर्ष में एक बार दस दिवसीय शिविर कार्यक्रम सहित वार्षिकोत्सव रखा जाय । इसमें कार्यकर्ता महिलाओं को अभियान की भावी गतिविधियों के सम्बन्ध में प्रशिक्षित करने के लिए शान्तिकुञ्ज से दो कार्यकर्ता भेजी जा सकती हैं । वे स्थानीय महिलाओं को यह सिखायेंगी कि अभियान को अधिक व्यवस्थित एवं गतिशील बनाने के लिए क्या किया जा सकता है । तुलसीकृत रामायण, वाल्मीक रामायण, भागवत की सप्ताह कथा, कार्यक्रम चलाना इन कार्यकारियों को भली प्रकार आता है । वे कथा सप्ताह आयोजन, पाँच कुण्डीय गायत्री यज्ञ, बच्चों एवं महिलाओं के संस्कार तथा अन्यान्य कार्यक्रमों के साथ वार्षिकोत्सव आयोजनों को भली प्रकार सम्पन्न करा सकती हैं । जिन शाखाओं की गतिविधियाँ ठीक चल रही होंगी, सत्संगों की प्रक्रिया विधिवत चल रही होंगी, उनके लिये यह शिविर आयोजनों समेत वार्षिकोत्सव कार्यक्रम चलाना भी कुछ कठिन न पड़ेगा ।

उपरोक्त सभी कार्यक्रम महिलाओं द्वारा ही चलेंगे, पर इस सबका सूत्र संचालन सहायक सभ्यों को करना होगा । अपने घर की महिलाओं को प्रोत्साहित करना, प्रशिक्षित करना, अवकाश देना और शाखा व्यवस्था के लिये आर्थिक साधन जुटाना तथा दूसरी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा कठिनाइयों का हल करना, सहायक सभ्यों का ही काम है । महिलाएँ आरम्भिक स्थिति में सामान्य भूमिकाएँ ही निभा सकती हैं । यदि पुरुष सूत्र संचालन न करेंगे और यह आशा करेंगे कि महिलाएँ स्वयं ही अपने आयोजनों का प्रबन्ध स्वयं कर लें तो भी प्रगति की आशाजनक संभावना कम ही रहेगी । विश्वास किया जाना चाहिये कि विचारशील व्यक्ति इस प्रयास में उत्साहवर्धक सहयोग देंगे और महिला जागरण अभियान अपने लक्ष्य की दिशा में द्रुतगति से अग्रसर होगा ।