प्रथम चरण का उत्तरदायित्व पुरुषों पर

यह तथ्य हमें भली प्रकार हृदयंगम कर लेना चाहिए कि आज की वैयक्तिक और सामूहिक क्षेत्रों में खड़ी हुई अगणित विभीषिकाओं से जूझने के लिए अकेला पुरुष पर्याप्त नहीं, समय की विषम समस्याओं का समाधान तब ही निकलेगा जब उसमें नर और नारी का समान सहयोग अनिवार्य रूप से जुड़ा होगा । यह स्थिति लाने के लिए आज की अवांछनीय स्थिति को उलटना और उसके स्थान पर स्वस्थ परम्पराओं को प्रतिष्ठापित करना नितान्त आवश्यक है । इस आवश्यकता की पूर्ति जितनी जल्दी की जा सके उतना ही श्रेयस्कर है ।

दूसरा तथ्य यह भी हृदयंगम कर ही लिया जाना चाहिये, कि हजार वर्ष के अज्ञानान्धकार युग की फैलाई गई विकृतियों को, अवांछनीयताओं को साफ करने के लिए ऐसी मजबूत झाड़ू चाहिये जो कचरे के ढेर को कुरेदने, उखाड़ने, हटाने में समर्थ हो सके । यह झाड़ू एक दो सींकों से नहीं बनेगी, उसमें सैकड़ों तीलियों का सम्मिलित सहयोग होना चाहिए । इतना महत्त्वपूर्ण किन्तु इतना कठिन प्रयोजन संघ शक्ति का उदय किये बिना और किसी भी तरह सम्भव नहीं हो सकता । छुट-पुट वैयक्तिक प्रयत्नों की कुछ बूँदें इस जलते तवे को ठण्डा करने में कुछ कारगर सिद्ध न होंगी । इस दावानल को शांत करने के लिए घटाओं की अनवरत बूँद-वर्षा ही कारगर होगी । नारी को पद्दलित स्थिति से उबारकर उसके सहज स्वाभाविक उच्च स्थान पर पहुँचाने का युगान्तरकारी प्रयत्न संघ शक्ति के सहारे ही सफल हो सकेंगे ।

महिला जागरण अभियान, जिन हाथों से आरम्भ किया जा रहा है; उनकी समर्थता सर्व विदित है । कालचक्र अपनी धुरी पर द्रुत गति से परिभ्रमण कर रहा है । नारी का पुनरुत्थान अगले दिनों की सुनिश्चित सम्भावना है । इस महापरिवर्तन के समय चक्र को अवरुद्ध कर सकना अब किसी के लिए भी सम्भव नहीं । अच्छा यही है कि प्रत्येक जागृत आत्मा समय की गति को पहचाने और उदीयमान सूर्य को अपना श्रद्धान्वित अभिवन्दन प्रस्तुत करे । जागृत आत्माएँ सदा अग्रिम मोर्चे पर रहती हैं । आँधी में पत्ते तो विवश होकर भी उड़ते हैं, सराहना उनकी है जो अपने शौर्य साहस का परिचय अग्रिम मोर्चे पर खड़े होकर प्रस्तुत करते हैं । राष्ट्र के स्वतन्त्रता आन्दोलन में लाखों ने बलिदान दिये, पर जो अग्रणी रहे, यश उन्हीं को दिया जाता रहा, श्रेय उन्हीं ने पाया । यह उचित भी था, वातावरण बनाने, आगे रहने और शुभारम्भ कराने में असाधारण आत्म-बल चाहिये । उपहास, व्यंग, असहयोग और विरोध रहते हुए भी जो बढ़े, वे मनस्वी इसी योग्य हैं कि उन्हें भरपूर सराहा जाय । चलती गाड़ी पर तो कोई भी सवार हो सकता है । बहती नदी में तो तिनका भी बहने लगता है ।

युग की महती आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रत्येक जाग्रत आत्मा को समय की सबसे बड़ी माँग—नारी पुनरुत्थान के लिए सामर्थ्य भर प्रयत्न करना चाहिए । इस दिशा में प्रथम चरण महिला जागरण अभियान का समर्थ ढाँचा खड़ा करना है । युग निर्माण योजना के सदस्यों को यह शुभारम्भ अपने घरों से अपने हाथों करना चाहिए । पीछे तो वह आँधी-तूफान की तरह आगे बढ़ेगा और दावानल की तरह अपने आपही क्षेत्र का विस्तार होगा ।

आरम्भ यहीं से होना है कि जाग्रत आत्मा स्वयं आगे बढ़ें । अपने साहस का परिचय अपने निजी परिवार में उस तरह का वातावरण बना कर दें, जिसकी माँग नवयुग ने प्रत्येक विवेकशील और न्यायनिष्ठ व्यक्ति से की है । घर परिवार में नारी को उचित सम्मान और सहकार मिलना चाहिये । अपने पिछड़ेपन से पिण्ड छुड़ाने और आगे बढ़ने के लिए अवसर देना चाहिए और साधन जुटाने चाहिए, साथ ही उस संघ शक्ति के साथ मिलकर नयी चेतना ग्रहण करने और नई प्रेरणा प्रस्तुत कर सकने की स्थिति में ही पहुँचना चाहिए । इसके लिए यह आवश्यक है कि वह अभियान में सम्मिलित होकर बहुत कुछ पाने और बहुत कुछ देने का दुहरा लाभ प्राप्त कर सकें । उन्हें महिला जागरण अभियान की सदस्या बनने से लेकर प्रत्येक साप्ताहिक सत्संग में सम्मिलित हो सकने की सुविधा दी जानी चाहिए । वस्तु स्थिति से परिचित न होने के और झिझक एवं आत्महीनता में ग्रसित होने के कारण यदि उनमें इसके लिए आवश्यक उत्साह एवं साहस न हो तो नारी को यह देना प्रत्येक विवेकशील पुरुष का काम है ।

इसके लिए पुरुष वर्ग को अपने दृष्टिकोण में मौलिक परिवर्तन करना होगा । परिवर्तन हुआ—इसके कुछ महत्त्वपूर्ण चिन्ह प्रकट होने चाहिये । दृष्टिकोण बदला इसके कुछ प्रमाण प्रस्तुत होने चाहिए । हमारे घरों में पिछली रीति-नीति में प्रारम्भिक परिवर्तन यह होना चाहिए कि पुरुष वर्ग अपने घर की स्त्रियों को घूँघट की निरर्थकता समझायें । स्वयं आगे बढ़ कर उसे छोड़ने की चर्चा चलायें और वधुओं को धीरे-धीरे करके उसे कम करते चलने और जैसे-जैसे बड़े-बूढ़ों को सह्य होता चले, वैसे-वैसे उसे समाप्त कर देने का प्रोत्साहन दें । पर्दे की हानि और उसे छोड़ने के लाभ बड़े-बूढ़ों से लेकर बालकों तक को समझाये जाने चाहिये । घर के सभी सदस्य परस्पर जी खोल कर बात कर सकें, ऐसा वातावरण घर में रहना चाहिये । लज्जा आँखों में होती है, दृष्टि नीची रहे, सिर ढका रहे तो इतना पर्दा पर्याप्त है । शील और शालीनता चेष्टाओं पर निर्भर है । घूँघट रहते हुए भी उच्छृंखलता का प्रदर्शन हो सकता है, और मुँह खुला रहने पर भी व्यक्तित्व का स्तर ऊँचा रखा जा सकता है । पर्दे के प्रतिबन्ध से मुक्त हुए बिना, नारी संगठन की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर सकती ।

घर का वातावरण ऐसा बनाया जाना चाहिये कि परिवार की, घर की महिलायें, महिला जागरण के कार्यक्रमों में सुविधा पूर्वक भाग ले सकें । इसके लिए उनकी दिनचर्या ऐसी व्यवस्थित की जानी चाहिये कि परिवार के सब लोग जुटकर घरेलू कामों को हँसते-खेलते मिल-जुलकर निपटा लिया करें । इससे सबको घरेलू कामों की उपयोगिता प्रतीत होगी, उनमें रुचि बढ़ेगी, अनुभव होगा और प्रवीणता प्राप्त होगी, घर में रहने वाले को घर के हर कार्य में रुचि और दक्षता रहे, इसलिये उन्हें घटिया, हेय मानने की मान्यता का अन्त होना चाहिये । घरेलू श्रम को मनोरंजन का, पारस्परिक सहयोग और सम्मिलित उत्तरदायित्व का विषय बनाया जाना चाहिये । श्रमिकों को अछूत बना दिया गया और घरेलू कामों को औरतों का धन्धा ठहरा कर उपहासास्पद बना दिया गया । श्रम की प्रतिष्ठा जीवन के लिए नितान्त उपयोगी गृह कार्यों में प्रवीणता और पारस्परिक सहयोग का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि घर का सारा बोझ वधुओं पर ही न लदा रहे, दूसरे लोगों को अवकाश का समय भी उसमें लगाना चाहिये । इससे नीच-ऊँच की, मालिक-नौकरों की पिछली मान्यता का अन्त करने में मनोवैज्ञानिक सहायता मिलेगी और नये वातावरण का सृजन होगा ।

स्त्रियों की दिनचर्या ठीक रहेगी तो उनका स्वास्थ्य न बिगड़ेगा, रात को देर से घर आना और गर्म भोजन की फरमायश करना पुरुषों के लिए सुविधाजनक हो सकता है, पर स्त्रियाँ तो देर में सोने और जल्दी उठने की मजबूरी में अपना स्वास्थ्य ही गँवा बैठती हैं और बेमौत मरती हैं । जल्दी उठना हर दृष्टि से उत्तम है । इसलिए जल्दी भोजन करने की भी प्रथा होनी चाहिये । देर में ही आना हो तो समय पर बना हुआ भोजन रखा रहने दिया जा सकता है । कुछ समय रखा हुआ ठण्डा भोजन, स्वास्थ्य के सिद्धान्तों के अनुसार किसी भी प्रकार हानिकारक नहीं होता । मन पसन्दगी की बात दूसरी है । इस तनिक सी मन पसन्दगी के लिए स्त्रियों का समय और स्वास्थ्य बेतरह नष्ट हो, यह सर्वथा अनुचित है ।

हर विचारशील व्यक्ति अपने-अपने घरों में महिलाओं को प्रेरित करे, यह आवश्यक तो है, किन्तु इतना मात्र पर्याप्त नहीं । कार्य बड़ा है इसलिए उसे बड़े पैमाने पर ही करना होगा । इसके लिए संगठित रूप से प्रयास किये जाने चाहिए । बड़े कार्य सदा संगठित रूप से ही होते रहे हैं । भगवान राम ने लंका विजय के लिये रीछ-वानरों की सेना संगठित की थी । भगवान कृष्ण ने गोवर्धन उठाने के लिए ग्वाल-बालों को लाठी का सहारा लगाने के लिए सहमत किया था । महाभारत लड़ने के लिए कृष्ण ने सुदूर देशों के शक्तिशाली लोगों की सेनायें पाण्डवों के पक्ष में खड़ी की थीं । समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी के लिए साधन जुटाने के लिए सैकड़ों महावीर-स्थान बनाये और प्रयुक्त किये थे । गुरु गोविन्दसिंह ने एक बड़ी सेना संगठित की थी । जन मानस का परिष्कार करने के लिए भगवान बुद्ध ने लाखों भिक्ष-भिक्षुणी एकत्रित एवं प्रशिक्षित किये थे । महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह संग्राम लोक शक्ति को साथ लेकर ही जीता था ।

नारी पुनरुत्थान जैसा आधी जनसंख्या को गहरे गर्त में से उठा कर प्रगति के उच्च शिखर तक पहुँचाने का कार्य संगठित शक्ति से ही हो सकता है, विशालकाय क्रेन से ही उतना बड़ा वजन उठेगा । यह क्रेन लोक शक्ति का सामूहिक उपयोग संगठित करने से ही बनेगी ।

संगठिन प्रयास की दृष्टि से महिला जागरण अभियान का शुभारम्भ हुआ है । इसे युग परिवर्तन का अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण कदम माना जाना चाहिये । इसके पीछे महाकाल की—युग पुरुष की प्रचण्ड प्रेरणा सन्निहित समझी जानी चाहिए ।

शक्ति का उद्भव किये बिना और कोई मार्ग नहीं । इस संघ शक्ति का सृजन कर सकना पूर्णतया पुरुष के ही हाथ में है । नारी घरों में कैद है, उन्हें इतनी सुविधा नहीं कि घर-घर जाकर संगठन का शंख बजा सकें । फिर उन में उतनी योग्यता एवं कुशलता भी कहाँ रह गई है । अनुभव के अभाव में साधारण कार्य भी ठीक तरह पूरा नहीं हो सकता, फिर नारी संगठन तो बहुत ही कठिन कार्य है । घर के कामों से ही फुरसत नहीं, फिर संगठन के लिए समय कौन निकालेंगी ? जहाँ बिना संरक्षक के घर की देहरी पार करना जुर्म समझा जाता है वहाँ घर-घर जाकर संगठन का कार्य कैसे हो सकेगा । फिर जिन घरों में वे जाँयगी वहीं आशंका की दृष्टि से देखा जायगा, कोई हमारे घरों की औरतों को बहकाने तो नहीं आया है, यह सोच कर संगठन कर्ताओं की उपेक्षा और अवज्ञा ही होगी, नारी स्वयं भी दबी हुई और सभीत है । घर के लोगों की अप्रसन्नता का एक और कारण खड़ा करने का वे कैसे साहस कर सकेंगी ? पहले से ही आये दिन डाँट-डपट के अनेक आधार खड़े रहते हैं, फिर एक और नया कारण उसमें क्यों जोड़ा जाय ? ऐसे-ऐसे अनेक कारण हैं जिनकी वजह से न नारियाँ संगठन के लिए घर पर जा सकती हैं और न जिन घरों में वे जायगी वहाँ उन्हें स्वागत-सहयोग मिल सकता है । यदि नारी के जिम्मे नारी संगठन का, नव जागरण अभियान के लिए अभीष्ट क्रिया-प्रक्रिया आरम्भ करने का काम छोड़ दिया गया तो समझना चाहिये कि वह सम्भावना ही समाप्त होगई ।

नवयुग की सर्वोपरि माँग पूरी करने के लिए प्रत्येक पुरुष को अपने घरों की नारियों को ही महिला जागरण अभियान की संघ शक्ति में सम्मिलित होने के लिए, आगे धकेलना चाहिये । उन्हें इसकी उपयोगिता, आवश्यकता और प्रतिक्रिया से परिचित कराना चाहिए । संगठन के लिए उत्साह पैदा करने से पूर्व उन्हें कठिनाई से ही नव जागरण का सन्देश समझाया जा सकेगा । जिस बात की उन्होंने कभी कल्पना तक नहीं की, जिस सम्बन्ध में कभी सुना, समझा-देखा भी नहीं, उसके लिए एकाएक तत्पर कर लेना बहुत कठिन है । पहली कठिनाई यही है, जिसे हल करके संगठन के लिए दूसरा कदम उठेगा ।

पुरुष पर्दे के पीछे रहें और अपने घरों की स्त्रियों को नव जागरण की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहन दें, प्रशिक्षित करें और घसीट-पकड़ कर मोर्चे पर खड़ा कर दें । उनके लिए आवश्यक परिस्थितियाँ उत्पन्न करें और सुविधा जुटायें, तभी यह आशा की जा सकेगी कि अभीष्ट संघ शक्ति का उद्भव हो सकेगा । संघ शक्ति के सहारे ही यह सम्भव है कि सुविस्तृत क्षेत्र में फैली हुई सघन निशा जैसी अवांछनीयता को कम समय में निरस्त किया जा सकेगा । व्यक्तिगत, एकाकी और पृथक-पृथक प्रयत्न चलते रहेंगे तो उनका परिणाम बहुत धीमा और परिमाण में नगण्य होगा । इतने बड़े कार्य के लिए जनशक्ति का साधन जुटाये बिना और कोई उपाय हो ही नहीं सकता, इसलिए इस दिशा में कारगर कदम उठाये जाने में तनिक भी विलम्ब नहीं किया जाना चाहिए ।

युग निर्माण परिवार जन-मानस के भावानात्मक नव-निर्माण में सही पृष्ठभूमि साथ लेकर जिस साहस, उत्साह और दूरदर्शी कार्यक्रमों के साथ सफलतापूर्वक चलता आ रहा है उसे ध्यान में रखते हुए यह विशिष्ट उत्तर दायित्व भी उसी के कंधे पर आ पड़ा है, यह भी उसे निभाना पड़ेगा । समुद्र लाँघने में प्रामाणिक सिद्ध होने के उपरान्त हनुमान को छुट्टी नहीं मिली वरन् संजीवनी बूटी वाला पर्वत उखाड़ कर लाने का नया उत्तरदायित्व भी उन्हीं के कंधों पर आगया । युग निर्माण परिवार के परिजनों की सूजन सेना के सैनिकों को यह भी करना होगा कि वे अपने घरों की प्रतिभाशील महिलाओं को धकेल कर आगे की पंक्ति में खड़ा करें और उन्हें महिला जागरण के लिए नितान्त आवश्यक संघ शक्ति विकसित करने में अपना अंश दान करने में हिचकिचाने न दें । किसी समय युद्ध भूमि में मातायें पुत्रों को और पत्नियाँ पतियों को तिलक लगाकर आरती उतार कर गर्वोन्नत मस्तक और पुलकित अन्तःकरण से शुभकामना करती हुई विदाई देती थीं । आज पुरुष को विशेषतया युग निर्माण योजना के सदस्यों को उसी विस्मृत परम्परा को पुनर्जीवित करना है । उन्हें अपनी नारियों को नवयुग की महती आवश्यकता पूरी करने के लिए कुछ न कुछ करने का अवसर देना ही होगा । इसके लिए वे आवश्यक प्रोत्साहन, प्रशिक्षण, मार्ग दर्शन करेंगे, अवसर देंगे और साधन जुटा देंगे, तो नारी अनुभवहीन होने पर भी उस क्षेत्र में बहुत दूर तक आगे बढ़ सकेगी और इस असहाय स्थिति में भी इतना कर सकेगी, जिसे देखकर आशा की किरणें फूट पड़ें ।