युग निर्माण की शिक्षण प्रक्रिया-1

आज के व्यक्ति और समाज के सामने अगणित समस्याएँ, उलझनें और जिज्ञासाएँ उपस्थित हैं। पिछले अज्ञानान्धकार युग की विकृत परिपाटियाँ आज की यथार्थवादिता की अपेक्षा कराने वाले बुद्धिवादी युग में निरर्थक और अवांछनीय सिद्ध हो रही हैं। वस्तुस्थिति को समझने और उसका सही समाधान ढूँढ़ने के लिए मनुष्य व्याकुल एवं आतुर हो रहा है।
इन परिस्थितियों में ज्वलन्त प्रश्नों का उचित समाधान प्रस्तुत करने वाले प्रशिक्षण की नितान्त आवश्यकता थी। युग-निर्माण योजना के अन्तर्गत इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए एक परिष्कृत विचारधारा प्रस्तुत की है और उसका प्रकाश सर्वसाधारण तक पहुँचाने का निश्चय किया है।
इस विचार पद्धति को पुरुषों को रात्रि पाठशालाओं और महिलाओं के लिये अपराह्न शालाओं के रूप में लोक-शिक्षण के लिए प्रस्तुत किया है। १०० पाठ इसके लिए प्रस्तुत किये गये हैं और उनको छः मास में सिखाने का कार्यक्रम बनाया है।
प्रस्तुत पुस्तक उन अध्यापकों के लिए लिखी गई है जो उपरोक्त पाठशालाएँ चलायेंगे। सौ पाठों में से प्रतिदिन एक पाठ पढ़ाया जाएगा। अध्यापक या कोई छात्र इस पाठ को पढ़कर सुनाएँगे। छात्र उसे मनोयोग पूर्वक सुनेंगे एवं पढ़ेंगे। अध्यापकों को यह देखना है कि पढ़ाये पाठ को छात्र ठीक तरह हृदयंगम कर सके या नहीं? इसके लिए हर पाठ के साथ दस प्रश्न जोड़े गये हैं। उन्हें छात्रों से पूछने पर पता चल जाता है कि शिक्षण का किस छात्र ने कितना हृदयंगम किया? जो पूरी बात न समझ सके हों उन्हें बार-बार पूछने और बताने का क्रम तब तक चलाना चाहिए जब तक कि छात्र वस्तुस्थिति को ठीक तरह समझ न लें।
इसके अतिरिक्त हर पाठ को और भी अच्छी तरह समझाने के लिये उसके साथ जुड़ी हुई कथा, कहानियों, घटनाओं को मनोरंजक ढंग से समझाना चाहिए। इस प्रकार की कथाएँ हर पाठ के साथ इसी प्रयोजन के लिए जोड़ी गई हैं। यदि इन्हें अध्यापक अच्छे ढंग से कह सकें और छात्र मनोयोग पूर्वक सुन समझ सकें तो निश्चय ही पाठ को ठीक तरह समझाया जा सकेगा।
एक छः माही में इन १०० पाठों को पढ़ाकर उनकी परीक्षा व्यवस्था, प्रमाण पत्र देने का दीक्षान्त संस्कार किस प्रकार किया जाय इसका विवरण पूर्व, पुस्तकों के भूमिका भाग में बताया जा चुका है।
नव निर्माण की विचारधाराओं के जन-मानस में प्रतिष्ठापित करने से ही भावनात्मक नव निर्माण का लक्ष्य पूरा होगा। विचार क्रान्ति, नैतिक क्रान्ति और सामाजिक क्रान्ति के लिये यह शिक्षा-पद्धति कितनी अधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली सिद्ध होगी यह समय ही बतायेगा। संक्षेप में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि मनुष्य में देवत्व और धरती पर स्वर्ग का अवतरण कर सकने में प्रस्तुत विचार पद्धति अनुपम भूमिका प्रस्तुत कर सकने में समर्थ होगी।
विश्व-मानव के उज्ज्वल भविष्य-निर्माण में योगदान देने के इच्छुक प्रबुद्ध व्यक्तियों को ऐसी रात्रि -पाठशालाएँ और अपराह्न-शालाएँ सर्वत्र स्थापित करनी चाहिए, जिनमें यह नव निर्माण की शिक्षा-पद्धति सिखाई-पढ़ाई जाती रहे। संसार की यह एक अनुपम सेवा-साधना होगी।
—श्रीराम शर्मा आचार्य

* युग निर्माण योजना के ये आदर्श एवं सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं। इन्हें ही प्रशिक्षण प्रक्रिया में सम्मिलित किया गया है। इनकी संख्या सौ है।

1. आस्तिकता एवं उपासना का प्रयोजन-प्रतिफल

2. देववाद और पूजा-अर्चा का महत्त्व

3. जीवन लक्ष्य समझें और उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करें

4. स्वर्ग और मुक्ति का आनन्द इसी जीवन में सम्भव

5. कर्मफल आज नहीं तो कल भोगना ही पड़ेगा

6. दुष्कर्मों के दण्ड से प्रायश्चित ही छुड़ा सकेगा

7. हम कामना ग्रस्त न हों, प्रगतिशील बनें

8. भाग्यवाद हमें नपुंसक और निर्जीव बनाता है

9. बौद्धिक परावलम्बन का जुआ उतार फेकें

10. ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग की महान साधना

11. आध्यात्मिक जीवन के पाँच कदम

12. हर दिन को एक नया जन्म समझें और उसका सदुपयोग करें

13. स्वाध्याय दैनिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता

14. अपना महान महत्त्व समझें और अपने को सुधारें

15. कर्तव्य परायणता—मानव जीवन की आधारशिला

16. असत्य व्यवहार—सद्भावना और सामाजिकता पर कुठाराघात

17. बेईमानी का नहीं, ईमानदारी का मार्ग अपनायें

18. हँसती और हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है

19. अपना ही नहीं, कुछ समाज का भी हित साधन करें

20. सज्जनता और मधुर व्यवहार—मनुष्यता की पहली शर्त

21. साहस जुटायें, औचित्य अपनायें

22. आलस्य त्यागें, सुसम्पन्न बनें

23. समय का सदुपयोग—सफलता के लिए अमोघ वरदान

24. अवरोध हमें अधीर न बनाने पाएँ

25. आवेशग्रस्त न हों, शान्ति और विवेक से काम लें

26. विचार शक्ति का महत्त्व समझें और सदुपयोग करें

27. आरोग्य रक्षा के लिए सन्तुलन आवश्यक है

28. स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रकृति का अनुसरण आवश्यक

29. आहार और विहार में असंयम न बरतें

30. संयम बरतें, सुखी रहें

31. हम अस्वच्छ न रहें, घृणित न बनें

32. ढलती आयु का सदुपयोग इस तरह करें

33. अनीति से सतर्क रहें, अन्याय को रोकें

34. जो अनुचित है, उससे सहमत न हों

35. औचित्य की प्रशंसा और अनौचित्य की भर्त्सना की जाए

36. सुव्यवस्था ही परिवारों को सुविकसित रख सकेगी

37. दाम्पत्य जीवन—एक आध्यात्मिक योग-साधना

38. पतिव्रत ही नहीं, पत्नीव्रत भी निभाया जाए

39. संयुक्त परिवार प्रणाली—एक श्रेयस्कर परम्परा

40. संतान कितनी और क्यों पैदा करें?

41. सुसंस्कृत संतान के लिए पूर्व तैयारी आवश्यक

42. बालकों को जन्म ही न दें, उनका निर्माण भी करें

43. संतान को स्वावलम्बी भर बनाना ही पर्याप्त है

44. पर्दा प्रथा—नारी के साथ बरती जाने वाली एक नृशंस अनीति

45. अपव्यय एक पाई का भी न करें

46. धन का उपार्जन ही नहीं, सदुपयोग भी ध्यान में रहे

47. अपव्यय और फैशनपरस्ती—एक ओछापन

48. जेवरों का भौंड़ा फैशन—हर दृष्टि से हानिकारक

49. माँस मनुष्यता को त्याग कर ही खाया जा सकता है

50. तम्बाकू का दुर्व्यसन छोड़ा ही जाना चाहिए

51. देशभक्त नव निर्माण के कार्य में जुट जायें

52. नागरिक कर्तव्य पालें और समाज में स्वस्थ परम्परा डालें

53. व्यक्तिगत स्वार्थ भी सामाजिक सुव्यवस्था पर निर्भर है

54. प्रौढ़ों को साक्षर बनाया जाना युग की अपेक्षणीय माँग

55. व्यायाम एवं स्वास्थ्य शिक्षा समाज की एक महती आवश्यकता

56. अध्यापक अपने महान पद, गौरव और उत्तरदायित्व को निबाहें

57. छात्र अपने भविष्य का निर्माण आप करें

58. नवयुवक सज्जनता और शालीनता सीखें

59. उदार सहकारिता से हमारी उलझनें सुलझेंगी

60. प्रगति के लिए श्रम, सम्मान एवं गृह-उद्योगों की आवश्यकता

61. अन्न संकट की चुनौती का सामना कैसे करें?

62. शाक हमारी खाद्य समस्या का हल करेंगे

63. वृक्षारोपण और संवर्धन—एक अति आवश्यक कार्य

64. तुलसी हमारे हर घर में शोभायमान रहे

65. गौ संरक्षण—हमारी एक महती आवश्यकता

66. अधिकार गौण और कर्तव्य प्रधान माना जाये

67. वोटरों की सतर्कता पर प्रजातंत्र का भविष्य निर्भर है

68. प्रबुद्ध नारी—महिला जागरण की कमान सँभालें

69. नारी उत्कर्ष के लिए कुछ विशेष प्रयत्न किये जायें

70. ऊँच-नीच की मान्यता अन्यायमूलक है

71. अश्लीलता की बाढ़ हमें पतित बना रही है

72. भिक्षावृत्ति को व्यवसाय न रहने दें

73. मृतक भोज भी अविवेकपूर्ण न हों

74. भूत-पलीत और उद्भिज देवी-देवताओं का जंजाल

75. पशुबलि—भारतीय धर्म पर एक कलंक

76. प्राणियों के प्रति निर्मम और निष्ठुर न बनें

77. विवाहों के आदर्श ऊँचे रखे जायें

78. बाल-विवाह—एक अति घातक कुप्रथा

79. खर्चीली शादियाँ हमें बेईमान और दरिद्र बनाती हैं

80. बेटे वाले व्यर्थ ही घाटा और बदनामी न उठायें

81. उच्च शिक्षित कन्या की विवाह समस्या और उसके नये हल

82. विधुर और विधवाएँ समान न्याय के अधिकारी

83. मनस्वी-शूरवीर विवाहोन्माद के असुर से जूझें

84. बिना खर्च के विवाहों का प्रचण्ड आन्दोलन चल पड़े

85. आततायी उद्दण्डता का डटकर मुकाबला किया जाय

86. धर्मतंत्र को प्रगतिशील बनने दिया जाये

87. साधु-ब्राह्मण समाज अपना कर्तव्य और दायित्व समझें

88. मन्दिर, आस्तिकता और सत्प्रवृत्तियाँ जगाने में लगें

89. त्यौहार और संस्कार प्रेरणाप्रद पद्धति से मनाये जायें

90. जन्म-दिवस और विवाह-दिवस मनाये जायें

91. गायत्री और यज्ञ—भारतीय धर्म-संस्कृति के माता-पिता

92. गायत्री यज्ञ-आन्दोलन—एक महान रचनात्मक अभियान

93. शिखा—भारतीय संस्कृति की धर्म-ध्वजा

94. यज्ञोपवीत धारण—नीति और कर्तव्य अपनाने का व्रतबन्ध

95. ज्ञान-यज्ञ का प्रकाश घर-घर पहुँचाया जाये

96. ज्ञान-यज्ञ—नवनिर्माण का महानतम अभियान

97. व्यक्ति और समाज का समग्र निर्माण कर सकने वाली शिक्षा-पद्धति

98. कला लोकरंजन ही नहीं, भावनाओं का परिष्कार भी करे

99. रचनात्मक कार्यक्रमों से ही देश समर्थ बनेगा

100. अनीति, असुरता के विरुद्ध प्रबल संघर्ष किया जायेगा



(१) आस्तिकता एवं उपासना का प्रयोजन-प्रतिफल

प्रश्न ——
१. ऋषि मुनियों द्वारा धर्म की रचना क्यों की गई? २. धर्म का प्रथम आधार क्या है? उसकी पृष्ठभूमि बतायें? ३. ईश्वर के सामने हमारी चतुरता क्यों नहीं चल सकती? ४. आस्तिकता को ही धर्म का प्रथम आधार क्यों माना गया है? ५. आज के युग में आस्तिकता किस तरह विकृत हो गई है? ६. भगवान की उपासना व्यक्ति किस कारण करते हैं? ७. आस्तिकता की आस्था को परिपक्व करने के लिए किन-किन बातों का आश्रय लिया जाता है? ८. उपासना का क्या अर्थ होता है। तथा उस समय हमें मन में क्या अनुभव करना चाहिए। ९. उपासना करते समय हम भगवान से क्या माँगा करें? १०. सर्वत्र श्री, समृद्धि, प्रगति एवं शान्ति की परिस्थितियाँ उत्पन्न करते रहने के लिए हमें क्या करते रहना चाहिए।

कथाएँ ——
(१) संसार बुराई में जल रहा है और आप राम नाम का उपदेश दे रहे हैं एक नास्तिक ने गाँधी से कहा। गाँधी जी ने उत्तर दिया-सोचो जब थोड़ी आस्तिकता शेष है तब तो लोगों का यह हाल है। जब आस्तिकता बिलकुल न रहेगी तब क्या होगा।
(२) एक व्यक्ति बड़ा नास्तिक था, कहता था, कि यह सारा संसार संयोग मात्र है, प्रकृति अपने आप सब कुछ रचती है। एक दिन उसका लड़का सुन्दर चित्र बनाकर लाया और उसे दिखाते हुए बोला पिताजी यह तस्वीर कैसी है? नास्तिक बोला बहुत अच्छी। मगर यह शक्ल खींची किसने? लड़का बोला-मेरे स्कूल में स्याही, कागज, रंगीन पेंसिलें सब कुछ रखा है आप तो जानते हैं प्रकृति में हलचल होती सब चीजें उठीं, चलीं और झट तस्वीर बन गई। यह सुनकर वह नास्तिक बोल पड़ा-यह भी कभी हो सकता है? लड़के ने तुरन्त उत्तर दिया-यदि यह तस्वीर बिना बनाये नहीं बन सकती तो इतना बड़ा संसार बिना कर्ता के कैसे बन सकता है?
(३) अपने साथी को मेंड़ पर खड़ा लड़का चिल्लाया-भागो खेत का मालिक खड़ा है। दोनों भागे दूर जाकर रुके तब पहले लड़के ने पूछा-कहाँ था खेत का मालिक? दूसरे लड़के ने कहा भाई भगवान सारे संसार का मालिक है वह तो हर जगह है, उस खेत में हम लोगों को चोरी करते क्या वह न देख रहा होगा।
(४) एक व्यक्ति एक दिन एक साधु के पास जाकर बोला भगवन् मुझे भगवान की अनुभूति क्यों नहीं होती? साधु ने कुछ उत्तर नहीं दिया बोला-बेटा यह पाँच सात पत्थर लेकर मेरे साथ ऊपर पहाड़ों पर आओ, वहीं तुम्हारी बात का उत्तर देंगे। वह आदमी सिर पर पत्थर रखकर साधु के साथ चल पड़ा पर थोड़ी ही दूर चढ़कर हाँफने लगा। साधु ने एक पत्थर फेंक दिया। वजन कुछ हलका हो जाने से वह थोड़ा और चढ़ गया पर फिर थकान के मारे उसका चढ़ना मुश्किल हो गया। एक पत्थर और निकाल देने से वह कुछ और चढ़ सकने योग्य हो गया। इसी तरह करते-करते ऊपर तक पहुँचने में सारे पत्थर फेंकने पड़े। ऊपर जाकर साधु बोला-बेटा जिस तरह पत्थरों के भार के कारण तुम ऊपर नहीं चढ़ सके उसी तरह काम, क्रोध, लोभ, मोह, आदि सांसारिक आकर्षणों के रहते कोई ईश्वर अनुभूति नहीं कर सकता।
(५) सन्त एकनाथ दो घड़ों में गंगाजल लिये रामेश्वरम् जा रहे थे। मार्ग में बीमारी और प्यास से तड़पता एक गधा पड़ा उनने एक नाथ की ओर देखकर कहा-महाराज प्यास के मारे मर रहा हूँ पानी पिला दो एक नाथ ने एक-एक कर दोनों घड़े गंगाजल, पीड़ा से छटपटाते गधे को पिला दिये। गंगाजी पीकर गधा बोला-एक नाथ आओ हम तुम गले मिलें। एक नाथ बोले-गधे दयावश मुझे गंगाजल पिला दिया इसका यह अर्थ नहीं कि तेरे शरीर से अपने शरीर का स्पर्श भी करूँ। गधा हँसा और बोला-एक नाथ में गधा नहीं रामेश्वरम् हूँ। यहाँ पड़ा-पड़ा लोगों की परीक्षा कर रहा था कि लोग मेरे पत्थर के शरीर पर ही पानी चढ़ाते हैं या प्राणिमात्र की चेतना में समाये मुझ चेतना आत्मा के प्रति भी आस्था रखते हैं।
वाल्मीकि डाकू थे प्रतिदिन पाँच व्यक्तियों का वधकर लूटना उनके लिए आवश्यक था। एक दिन महर्षि नारद वहाँ आये उन्होंने कहा-तुम्हारी पाप की कमाई सभी खाते है पर वे पाप के भागीदार भी होंगे या नहीं। वाल्मीकि पूछने गये तो परिवार वालों ने मना कर दिया इससे उन्हें संसार की असारता का पता चल गया। वे सन्त हो गये और रामायण जैसे आस्तिकता के प्रताप ग्रन्थ के प्रणेता बने।
(७) एक बार कबीर से किसी ने पूछा आप स्कूल तक नहीं गये, कलम तक नहीं छुई फिर इस असाधारण बौद्धिक प्रतिभा का कारण क्या है? कबीर बोले-आस्तिकता ईश्वर में विश्वास का, मनुष्य में आत्मिक क्षमता के साथ बौद्धिक प्रतिभा का भी विकास अनिवार्य है।


(२) देववाद और पूजा अर्चा का महत्त्व

प्रश्न ——
प्रश्न १. विभिन्न देवता क्या हैं? उनकी अलंकारिक कल्पना क्यों की गई? २. ‘एक सद् विप्रः बहुधा वदन्ति’ से क्या समझते हो। ४. शंकर जी की गंगा, चन्द्रमा, विष, सर्प, मुण्डमाला, सिंह चर्म, वृषभ, का मर्म समझाइए। ५. दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुईं? ६. पूजा में प्रयुक्त होने वाले ‘पुष्प’ क्या शिक्षा देते हैं। ७. चन्दन एवं प्रसाद का क्या महत्त्व है? ८. सिद्ध कीजिये कि पूजा उपासना का प्रयोजन भावनात्मक परिष्कार है। ९. किस आधार पर मनुष्य देव शक्तियों के अनुकूल बनता है और कैसे?

कथाएँ ——
एक बन्दर और सियार में दोस्ती थी एक दिन वे दोनों जा रहे थे तब रास्ते में एक कब्रिस्तान मिला। बन्दर एक कब्र के पास जाकर खड़ा हो गया और आँख मूँदकर कुछ स्तुति सी करने लगा। उसका ख्याल था इससे सियार प्रभावित होकर उसकी विद्वता का लोहा मानेगा। पर सियार ने समझा इसे बीमारी हो गई है। सो उसने पूछा-क्यों भाई क्या पेट में दर्द हो गया है? बन्दर झुँझला कर बोला-नहीं यार यह मेरे पूर्वजों की समाधि है मैं उनके ज्ञान, बल, पौरुष की महानता का गुणानुवाद गा रहा था ताकि में भी वैसा ही बनूँ।
सियार बोला-महोदय गुण गाने से ही नहीं आचरण में लाने से ही तुम महान बन सकते हो।
यहूदियों का ‘‘प्रायश्चित पर्व’’ आया किसी ने एक अनपढ़ युवक को झुठला दिया कि उस दिन खूब शराब पीनी चाहिये। युवक ने ऐसा ही किया शराब पीकर नशे में धुत्त हो गया। जब नशा उतरा तो देखा दूसरे लोग पूजा जप ध्यान कर रहे हैं। युवक बड़ा दुःखी हुआ। उसे मन्त्र भी याद नहीं था सो वह वर्णमाला के अक्षर ही दोहराने लगा और मन ही मन अपनी भूल की क्षमा माँगते हुए भगवान् से कहने लगा प्रभु इन अक्षरों को जोड़कर तुम्हीं कोई अच्छा सा मन्त्र बना लेना।
धर्म गुरु रबी उस युवक के पास पहुँचे तो युवक ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए क्षमा माँगी। रबी ने उसे हृदय से लगाते हुए कहा तात! उपासना तो तुम्हारी ही फलित हुई।
सभी इन्द्रियाँ झगड़ रही थी और अपनी-अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रही थीं तब आत्मा बोली तुम सब मेरे ही शरीर के अंग हो लड़ने की अपेक्षा परस्पर हित की बात सोचो तो मंगल होगा। शरीर की यह कहानी सुन कर गुरु ने कहा-सभी देवता परमात्मा की ही शक्तियाँ हैं उनके छोटे बड़े के झगड़े में न पड़कर जो उनके आदर्श अपने जीवन में धारण करते हैं उन्हीं का देवाराधन सार्थक होता है।
मूर्ति को अहंकार हो गया लोग कितनी दूर से आ आकर मुझे शीश झुकाते हैं। अभी वह अहंकार में फूल ही रही थी कि आकाश बोला-बावरी मनुष्य तुझे शीश नहीं झुकाते इन्हें तो अपनी श्रद्धा को दूर जाकर प्रणाम करने की आदत है।
सोमनाथ लुटा तब भी शंकर भगवान कुछ न कर सके। फिर भी आप मूर्ति पूजा को महत्त्व देते हैं? एक आदमी ने मदन मोहन मालवीय से प्रश्न किया-मालवीय जी बोले ‘क’ माने कबूतर और ‘ख’ माने खरगोश भी तो नहीं होता फिर भी छोटे बच्चों को यही क्यों पढ़ाया जाता है। यह तो प्रारम्भिक शिक्षण की विधि है अल्प बुद्धि बच्चे इसी से शिक्षा की ओर आकर्षित होते हैं। उस व्यक्ति ने बताया। मालवीय जी बोले-उपासना और ध्यान की उच्चस्तरीय साधना के लिये इसी प्रकार मूर्ति पूजा भी प्रारम्भिक अनिवार्य आवश्यकता है।
हिन्दुओं के देवता विचित्र क्यों होते हैं, एक अँगरेज पादरी लोक मान्य तिलक से पूछ बैठे-तिलक बोले-क्योंकि हर देवता एक शक्ति होता है शक्ति के रहस्यों को अलंकारिक रूप से न प्रस्तुत किया जाता तो लोगों को उनकी उपयोगिता नहीं भयंकरता ही याद रहती।



(३) जीवन का लक्ष्य समझें और उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करें

प्रश्न ——

(१) मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ क्यों है? उसे अधिक सुविधाएँ क्यों दी गई हैं। (२) मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य क्या है। (३) आत्म बोध किसे कहते हैं। (४) यह कब समझा जाना चाहिए कि ईश्वर का प्रकाश चमकने लगा है। (५) समर्पित जीवन से क्या समझते हो। (६) ईश्वर दर्शन किसे कहते हैं? वह किन्हें होता है (७) अधिकांश लोग किस प्रकार के कर्मकाण्डों से आत्म-संतोष किये बैठें? क्या उनसे कुछ लाभ है। (८) पूजा उपासना का सच्चा मतलब क्या है। (९) ईश्वर की प्रसन्नता के कौन-कौन केन्द्र बिन्दु हैं। (१०) भगवान की इच्छापूर्ति का साहस कैसे किया जाता है?

(१) एक मनुष्य को पढ़ लिख कर अपनी शिक्षा का घमंड हो गया। वह घर वालों पर रौब जमाया करता मैं बड़ा ज्ञानी हूँ। नन्ही सी बालिका एक नन्हा सा कीड़ा लेकर आई बोली-पिताजी इसका क्या नाम है? उन सज्जन को उस मकोड़े के नाम का ही नहीं पता था। उसे अपने शिक्षा के अहंकार पर बड़ी ग्लानि हुई।
(२) एक डॉक्टर धर्म, कर्म को नहीं मानता था पर स्त्री बड़ी साधना शील और धर्म परायण थी। डॉक्टर कहता मैं हजारों लोगों को बचा लेता हूँ भगवान क्यों आकर नहीं बचा लेता। स्त्री तब तो कुछ न बोली पर कुछ दिन पीछे जब डॉक्टर के बाल सफेद हुए, दाँत टूटे नये दाँत, नई मूँछें कब तक निकलेंगी? डॉक्टर साहब कुछ उत्तर न दे सके-जो ज्ञान जीवन का अर्थ न समझा सके निरर्थक है।
(३) वासना के उपक्रम में पड़कर महाराज ययाति असमय ही वृद्ध हो गये उनकी इन्द्रियाँ शिथिल पड़ गई पर मन में वासना का भूत नहीं उतरा अतएव वे अपने पुत्रों से यौवन की याचना करने लगे। तीन पुत्रों ने तो इनकार कर दिया पर चौथे पुत्र ने कहा-पिताजी मनुष्य संसार में इन्द्रिय सुख व भोगों के लिए नहीं आत्मोत्थान के लिए आया है आप मेरा यौवन लेकर अपनी जरा मुझे सहर्ष दे दें। मैं थोड़े से सुख लेकर क्या करूँगा मुझे जीवन लक्ष्य अभीष्ट है सो उसके लिये वृद्ध शरीर से भी काम चल जायेगा। पुत्र की इस अनासक्ति ने केवल अन्य भाइयों की ही नहीं वरन् ययाति की भी आँखें खोल दीं।
(४) मनुष्य बन गया तो उसे विदा करते हुए विधाता ने कहा-तात जाओ और संसार के प्राणियों का हित करते हुए स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग करो पर ऐसा कुछ न करना जिससे तुम्हें मृत्यु के समय पछतावा हो। आदमी ने विनय कि भगवन् आप एक कृपा और करना मुझे मरने से पहले चेतावनी अवश्य दे देना। ताकि यदि मैं मार्ग भ्रष्ट हो रहा होऊँ तो सँभल जाऊँ? तथास्तु कह कर विधि ने मनुष्य को धरती पर भेज दिया। पर यहाँ आकर मनुष्य इन्द्रिय भोगों में पड़ कर अपने लक्ष्य को भूल गया। जैसे-तैसे आयु समाप्त हुई कर्मों के अनुसार यमदूत उसे नरक ले जाने लगे तो उसने विधाता से शिकायत की आपने मुझे मृत्यु के पूर्व चेतावनी क्यों नहीं दी। विधाता हँसे और बोले (१) तेरे हाथ काँपे , (२) दाँत टूट गये, (३) आँखों से कम दिखने लगा, (४) बाल पक गये चार संकेत देने पर भी तू न सम्भला तो इसमें मेरा क्या दोष?
(५) दो पड़ोसी -एक ईमानदार और ईश्वर भक्त दूसरा छल कपट से धन कमाता और सांसारिक सुख भोगता। पहला आदमी यह देखकर दिन भर ईर्ष्या से कुढ़ता रहता। एक दिन वह भगवान् से जाकर बोला-प्रभु आपसे जो कुछ माँगा धन, सम्पत्ति, स्त्री, पुत्र सब कुछ मिला फिर भी सुखी नहीं हो पाया सो क्यों? भगवान् हँसे और बोले इसलिए कि तू भी वही चाहता है जो कोई भी सांसारिक सुखों में आसक्त चाहता है। अब तू आत्म सुख, आत्म-शान्ति की कामना कर उसी से सुख मिलेगा। धन सम्पत्ति से नहीं।
(६) मीठे फल खाने की इच्छा से दो मित्र एक बगीचे में गये। माली ने कहा इस बगीचे के मालिक की आज्ञानुसार यहाँ एक ही दिन ठहर सकते हो सो शाम तक जितने खा सको फल खा लो। दोनों अपनी रुचि के आम खाने चल दिये। एक तो उछल कर पेड़ों पर चढ़ा और पेट भर फल खा लिये दूसरा देखता रहा पौधों के लिए कैसी मिट्टी चाहिए। थाले कैसे बनाये जाते हैं, पानी कैसे लगाया जाता है। शाम तक उसने एक नया बाग लगाने की सारी बातें जान लीं अलबत्ता फल नहीं खा पाया पर घर जाकर उसने दूसरा बाग लगा लिया-इतनी कथा कहने के बाद दरवेश ने अपने शागिर्दों से कहा-यह संसार भी ऐसा ही है मनुष्य एक निश्चित अवधि के लिये आता है जो सांसारिक आकर्षणों में पड़े हैं वे तो पहले युवक की भाँति है, समझदार वो हैं जो दूसरे की तरह परिस्थितियों का अध्ययन कर जीवन का सच्च लक्ष्य प्राप्त करते हैं।
(७) पत्थर गुस्से से बोला-फूल जानता नहीं तुझे अभी पीस कर रख दूँगा।
फूल मुस्कराया और बोला-तब तो आप बड़े उपकारी हैं मुझे कुचल कर आप मेरी सुगन्ध और भी दूर-दूर तक फैलाने में ही सहायक होंगे। पत्थर अपनी अकड़ पर बड़ा लज्जित हुआ और अनुभव किया कि फूल का जीवन ही सच्चा और सार्थक है।
(८) बूँद सागर में घुलने लगी तो उसे अपना अस्तित्व समाप्त होने का बड़ा दुःख हुआ। सागर ने समझाया-बेटी तुम्हारी जैसी असंख्य बूँदों का ही तो मैं सम्मिलित रूप हूँ यहाँ तो तुम लघुतम में विराटतम की अनुभूति करोगी। बूँद को यह सब अच्छा नहीं लगा बूँद फिर जमीन में नदी में होती हुई सागर पहुँची तो बड़ी पछतायी और समझ गई कि अपने उद्गम में लीन होना ही सच्ची शान्ति सच्चा जीवन लक्ष्य है।


(४) स्वर्ग और मुक्ति का आनन्द इसी जीवन में सम्भव है

प्रश्न ——
(१) स्वर्ग क्या है? उसका वास्तविक अर्थ बताओ। (२) मुक्ति क्या है? वह कितने प्रकार की होती है? (३) क्या स्वर्ग एवं नरक की मान्यतायें सही है? (४) सूक्ष्म व स्थूल शरीर में क्या भेद है। (५) क्या मुक्ति आत्मा नाश का ही दूसरा नाम नहीं है? (६) चिरस्थाई आनन्द किसे कहते हैं? वह कैसे मिलता है। (७) आत्मा का अवतरण धरती पर किस कारण हुआ है? (८) आत्म शांति एवं सन्तोष किन्हें मिलता है? (९) नरक क्या है? क्या वह इसी लोक में नहीं है? (१०) ‘भवबंधन’ की मान्यता कहाँ तक सही है? (११) जन्म-मरण क्या है? (१२) सबसे बड़ी दुर्बलता कौन-सी है?

कथाएँ ——
(१) साधु कह रहे थे यह संसार मिथ्या है, स्त्री, पुत्री छोड़ कर आत्म कल्याण की बात सोचनी चाहिए। एक बालक ने पूछा-महात्मन् मैं कौन हूँ-साधु बोले-आत्मा अच्छा तो अब यह बताइये लड़के ने पूछा-मेरी माँ मेरी सेवा सहायता करती है, मेरे हित की बात सोचती है क्या वह आत्म-कल्याण न हुआ।
साधु को कोई उत्तर देते न बना। उन्होंने समझा संसार खराब नहीं अपना दृष्टिकोण खराब होता है। उसे ठीक कर लिया जाये तो समाज में रहकर ही मुक्ति का आनन्द लिया जा सकता है।
(२) मनुष्यों के व्यवहार में क्रुद्ध होकर देवताओं ने दुर्भिक्ष को भेजा। दुर्भिक्ष धरती में आकर एक स्थान पर छुपकर देखने लगा यहाँ के लोग आखिर किस तरह खराब हैं। तभी वहाँ एक परिवार आकर रुका। खाने के लिये उन्होंने रोटियाँ निकाली। रोटी एक ही थी। पत्नी ने रोटी पति को देते हुए कहा-आप खा लीजिए मुझे तो भूख नहीं है। पति ने पुत्री को देते हुए कहा-बेटी तू खा ले मैंने तो पानी पीकर पेट भर लिया। तभी वहाँ एक अपंग दिखाई दिया लड़की ने रोटी उसे देते हुए कहा-भाई तुम बहुत भूखे दिखाई देते हो लो रोटी खा लो। दुर्भिक्ष यह देखकर चुपचाप लौटकर देवताओं के पास जाकर बोला आप लोगों ने मुझे भूल से स्वर्ग भेज दिया था। देवता कहने जा रहे थे कि वही मृत्युलोक है पर तभी विधाता बोल पड़े-सचमुच तात! जहाँ लोग प्रेम पूर्वक रहें स्वर्ग वहीं रहता है।
(३) एक सम्पन्न व्यक्ति बड़ा दुःखी रहता था पर उसे अपने दुःख का कोई कारण समझ में न आ रहा था। एक रात एक संत ग्रामवासियों में बैठे बात-चीत कर रहे थे। पास ही दीपक जल रहा था, आकाश में चन्द्रमा खिला हुआ था। उस व्यक्ति ने प्रश्न किया-महाराज दीपक के नीचे अँधेरा और चन्द्रमा के कालिख क्यों है? संत ने हँसकर कहा-वत्स अँधेरा पक्ष तो दुनियाँ की हर वस्तु में है क्या ही अच्छा होता यदि तुम दीपक और चन्द्रमा में कालिमा और अन्धकार न देखकर प्रकाश देखते। मनुष्य अपने दुःख का कारण समझ गया उस दिन से वह हर वस्तु का उजला पक्ष देखने लगा।
(४) पं० जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन पर आयोजित एक बाल सभा में एक छोटी सी बच्ची ने पूछा-आपका वजन सबसे ज्यादा कब था और सबसे कम कब था। जवाहरलाल जी ने उत्तर दिया। सबसे अधिक तब जब में जेल में था और कम तब जिस दिन में पैदा हुआ था। लड़की ने आश्चर्य से पूछा-अरे जेल में तो वजन कम होना चाहिये। पंडित जी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-उस समय मेरा वजन देश-सेवा में कष्ट सहन करने की खुशी में बढ़ गया था।
(५) संत अनाम एक गाँव से जा रहा था। एक स्त्री और पति में झगड़ा हो रहा था। उन्होंने झगड़े के कारण का पता लगाया तो मालूम हुआ पति देव काम नहीं करते वैराग्य की आड़ लेकर स्वर्ग के चक्कर में पड़े हैं। संत अनाम बोले जिसको इस जीवन में स्वर्ग न मिला वह पर-लोक में क्या स्वर्ग प्राप्त होगा।
(६) विधाता ने घोषणा कर दी-एक सप्ताह के लिये कर्मों का प्रतिबन्ध नहीं रहेगा जो भी चाहे स्वर्ग आ सकता है चित्रगुप्त छुट्टी पर चले गये हैं। अब क्या था स्वर्ग के इच्छुक लाखों व्यक्ति स्वर्गलोक की ओर दौड़ पड़े। एक व्यक्ति सिर पर लकड़ियाँ लिये घर जा रहा था उसे ऐसी कोई आतुरता न देखकर विधाता विमान से नीचे उतरे और उससे पूछा क्यों भाई-तुमने स्वर्ग के समाचार नहीं सुने क्या? सुने हैं महाराज! वृद्ध ने कहा-पर मुझे तो अपने हँसते हुए बच्चों, प्यार देती हुई पत्नी, मिलकर काम करते भाइयों और परस्पर सहयोग और मैत्री का व्यवहार करने वाले पड़ोसियों में ही स्वर्ग दिखाई देता है। इस स्वर्ग को छोड़कर कहाँ आकाश में मारा-मारा फिरूँ?
(७) अन्धे भिखारी के हाथ में किसी ने पाँच का नोट रख दिया, भिखारी ने समझा किसी ने मजाक में कागज थमा दिया है सो उसने नोट वहीं फेंक दिया। पास ही खड़े अन्य व्यक्ति ने नोट वापस देते हुए कहा-श्रीमान् यह कागज नहीं नोट है। ज्ञान चक्षुओं के अभाव में अन्धे भिखारी के समान ही लोग इस संसार में भ्रमपूर्ण स्थिति में पड़े रहते हैं जबकि स्वर्ग-सूख ज्ञान रूप में हमारे चारों ओर बिखरा पड़ा है।
(८) एक अमीर तमाम सम्पत्ति इकट्ठा कर इस प्रयत्न में था कि वह सारी सम्पत्ति कब्र में गाड़ लेगा और स्वर्ग में आनन्द से रहेगा महापुरुष ईसा ने कहा-मूर्ख अपनी सम्पत्ति अपने साधन इसी दुनियाँ में दीन और दुखियों के लिये खर्च कर देख तुझे यही स्वर्ग मिलता है या नहीं।


(५) कर्मफल आज नहीं तो कल भोगना ही पड़ेगा

प्रश्न ——
(१) सज्जनता की परीक्षा कैसे की जाती है? (२) कर्मफल के परिणाम में विलम्ब क्यों होता है? (३) मानवीय अन्तःकरण की विकसित चेतना का अनुभव कैसे किया जाता है? (४) मनुष्य का आत्मिक स्तर विकसित होने की कौन सी दो कसौटियाँ है? (५) दुष्कर्म करने से हानि अपार है लाभ कुछ भी नहीं सिद्ध करें। (६) कानून में ऐसी कौन सी कमी है कि सही अपराधी पकड़ में ही नहीं आते? (७) उन्नतिशील बनने का रहस्य क्या है? (८) अनैतिक व्यक्ति को लोग प्यार क्यों नहीं करते? (९) सामाजिक तिरस्कार एवं असहयोग भी क्षण के लिये भी शान्ति का अनुभव क्यों नहीं करता है।

कथाएँ ——
(१) किसी ओझा ने एक बाँझ स्त्री को बहका दिया यदि किसी पड़ोसी के घर आग लगा दे तो तू शीघ्र सन्तानवती हो सकती है। उसके पति ने समझाया भी मुझे ऐसे पुत्र नहीं चाहिए जो दूसरों को यातना देकर मिलें पर मूर्ख स्त्री मानी नहीं एक घर को आग लगा दी। उस मकान के ५ जानवर आग में जल मरे।
दैव योग से उसे पाँच पुत्र हुए। स्त्री बड़ी खुश हुई पर जैसे-जैसे वे बड़े हुए और विवाह के दिन पास आते गये एक-एक कर सबकी मृत्यु हो गयी स्त्री निःसंतान की निःसंतान रह गई।
पति ने कहा-देख लिया कर्मफल इसे कहते हैं-यह पाँचों पुत्र वह पाँच जीव थे जिन्हें तूने आग लगाकर जला दिया था।
(२) भगवान् कृष्ण एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ाये हुए बहेलिये ने उसे किसी हिरण की आँख समझ कर ‘बाण’ चला दिया पर पास जाकर देखा तो भगवान् कृष्ण थे, उनके प्राण निकलते देखकर बहेलिया अपने दुष्कर्म के लिये रोने लगा-भगवान् कृष्ण ने समझाया-तात् दुःख मत करो-भगवान् हुआ तो क्या, कर्मफल से मैं भी नहीं बच सकता। पिछले जन्म में मैं राम था तुम थे बलि, तुम्हें मैंने छिपकर मारा था उसी कर्म का फल मुझे अब मिल रहा है। कोई भी कर्मफल से कभी बच नहीं सकता।
(३) रावण की मृत्यु देह में छेद ही छेद देखकर हनुमान जी ने लक्ष्मण से पूछा-तात रावण के शरीर में यह असंख्य छिद्र कहाँ से आ गये। लक्ष्मण कहने जा रहे थे कि यह सब भगवान् राम के बाणों का प्रताप है। तब तक राम स्वयं बोल पड़े-पवनसुत यह असंख्य छिद्र रावण की असंख्य बुराइयाँ है। रावण उन्हें स्वयं नहीं निकाल सकता तो ये स्वतः निकल भागी निकलते-निकलते रावण को भी नष्ट कर गईं।
(४) नहुष ने अपने पुरुषार्थ से इन्द्र पद प्राप्त कर लिया पर इससे उनका अहंकार इतना बढ़ गया कि इन्द्र की धर्मपत्नी शची को ही अपने रानी बनाने और उनका सतीत्व नष्ट करने की बात सोचने लगे। काम वासना की आग ने उनकी सारी बुद्धि भ्रष्ट कर दी उन्होंने सप्तऋषियों को ही पालकी में जोत दिया और शची के महल की ओर चल पड़े। ऋषियों को पालकी उठाने का अभ्यास था नहीं-जबकि कामातुर नहुष चिल्ला रहा था और तेज चलो, और तेज चलो।
(५) महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या का सौन्दर्य देख कर इन्द्र और चन्द्रमा दोनों का काम विकार जाग उठा। महर्षि प्रतिदिन मुर्गे की आवाज सुनकर स्नान करने जाते थे उस दिन इन दोनों ने छल किया। स्वयं मुर्गे की बाँग दे दी। और जब गौतम आश्रम से चले गये तो अहिल्या का सतीत्व नष्ट किया।
गौतम यह बात जान गये। उन्होंने इन्द्र और चन्द्रमा दोनों को शाप दे दिया। कामुकता का ही फल है कि देवता होकर इन्द्र और चन्द्रमा दोनों आज तक कलंकित हैं।
(६) कल्याण पाद की तनिक सी भूल पर ऋषि पुत्र प्रचेता ने शाप दे दिया ‘‘तू राक्षस हो जा’’ प्रचेता में साधना की शक्ति तो थी ही। वाणी सिद्ध हुई।
(७) वसु अपने पत्नियों के साथ धरती पर विचरण के लिये आये। महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में नंदी गाय बँधी थी उसे देखकर छोटे बसु की पत्नी का मन उसे लेने का हो गया उसके लिये वसु को चोरी करनी पड़ी। उसी का दण्ड था कि उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। भीष्म पितामह वह वसु ही थे।
(८) एक बुढ़िया ने बड़े धर्म कर्म किये। अन्त समय विष्णु के दूत उसे लेने आये बुढ़िया उन्हें देखकर डर गई और बोली-देखो मुझे अभी कई आवश्यक काम करने हैं मुझे एक वर्ष के लिये छोड़ जाओ। विष्णु के दूत ‘‘तथास्तु’’ कह कर लौट गये। बुढ़िया ने एक वर्ष धन कमाने में लगाया अनुचित लोभ के कारण उसने नीति अनीति कुछ भी न देखी एक वर्ष पीछे यमदूत वहाँ पहुँचे तो बुढ़िया बोली-पहले तो विष्णु दूत आये थे अब तुम लोग कैसे आ गये? इस पर उन्होंने कहा-बुढ़िया पहले तूने अच्छे कर्म किये थे सो विष्णु दूत भेजे गये। भगवान् के यहाँ तो कर्मों का हिसाब है एक वर्ष में तूने पाप ही पाप किये हैं। सो उठ और नरक की तैयारी कर।

(६) दुष्कर्मों के दण्ड से प्रायश्चित ही छुड़ा सकेगा

प्रश्न ——
१-कौन सी वस्तु मनुष्य को महत्त्वपूर्ण काम नहीं करने देती? २-पाप और आन्तरिक दुर्बलताएँ किस तरह पतित करती हैं? ३-कष्ट साध्य रोगों का कारण क्या है? ४-दुष्कर्म और कुविचार किस प्रकार प्रभाव डालते हैं? ५-पाप से छुटकारा कैसे मिल सकता है? ६-आत्मा को बल किस प्रकार मिलता है? ७-प्रायश्चित के नाम फैली विकृतियाँ बताओ? ८-आत्म शोधन का शुद्ध स्वरूप क्या है? ९-क्या सस्ते कर्मकाण्ड प्रायश्चित की आवश्यकता पूरी करते हैं? १०-आत्म की ईश्वरीय व्यवस्था की जानकारी दो।

कथाएँ ——
(१) वृद्धावस्था के कारण एक बूढ़े के हाथ पाँव काँपा करते। इससे खाने को दी गई चीजें बिखर जाती, फर्श खराब हो जाता, बर्तन टूट जाते। उसका लड़का और बहू दोनों बड़े नाराज होते! आखिर उनने बूढ़े के लिये घर के बाहर लकड़ी के बर्तनों में खाने का प्रबन्ध कर दिया। एक दिन उनका लड़का लकड़ी का टुकड़ा काट छाँट रहा था। उसके माता-पिता उसके पास आये और बोले-यह क्या कर रहा है? लड़का बोला-पिताजी आप लोग बूढ़े हो जायेंगे तब बाहर खाना देना पड़ेगा उसी के लिये लकड़ी के बर्तन बना रहा हूँ। यह सुनकर दोनों बहुत शर्मिन्दा हुए और अपने बूढ़े पिता के साथ दुर्व्यवहार करना बन्द कर दिया।
(२) अब्राहम लिंकन को बचपन में महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ने का शौक था। गरीबी के कारण वे पुस्तकें खरीद नहीं पाते थे माँग कर पढ़ते थे एक दिन वह पड़ोस के एक सम्भ्रान्त व्यक्ति से एक पुस्तक माँगने गये। पुस्तक कीमती थी। उन्होंने दे तो दी पर यह स्पष्ट कह दिया कि पुस्तक खराब हुई तो उसकी कीमत वसूल कर लूँगा। लिंकन पुस्तक ले आये रात बहुत देर तक पढ़ते रहे। हवा के शीतल झोंकों के कारण नींद आ गई पुस्तक जमीन में गिर गई। रात में मेह आया उसमें पुस्तक खराब हो गई। लिंकन बहुत दुःखी हुए। कीमत चुकाने को पैसे थे नहीं अतएव उन्होंने उन सज्जन के खेतों पर तीन दिन तक धान काट कर पुस्तक का मूल्य चुकाया।
(३) बहादुर शाह जफर रंगून में निर्वासित जीवन जी रहे थे। अँगरेज उनके साथ बड़ा बुरा व्यवहार कर रहे थे। एक दिन उनके एक सम्बन्धी ने सुझाया आपको इतनी तंगी में रखा जा रहा है आप विरोध क्यों नहीं करते-जफर हँसे और बोले-अभी तो मुझे और कठोर दण्ड मिलना चाहिए ताकि देशवासियों की रक्षा के कर्तव्य से गिर जाने का पाई-पाई दण्ड इसी जीवन में भुगत लूँ।
(४) ‘‘माँ यह कौवा काला क्यों है’’ एक बच्चे ने छत पर बैठे कौवे की ओर इशारा करके अपनी माँ से पूछा-माँ बोली-बेटा जो भक्ष्य-अभक्ष्य का ध्यान दिये बिना चाहे जो खा जाये, चाहे जिसकी छीन कर खा जाये, कोई न हो तो चोरी कर ले इन सब कारनामों को तुम क्या कहोगे? ‘‘काली करतूत’’ बच्चे ने कहा। बस तो बेटा इसकी काली करतूतों के कारण ही भगवान ने इसे काला बनाया।
(५) बुद्ध धर्म की नास्तिकतावादी विचार धारा का खंडन करने के लिये बुद्ध धर्म का ज्ञान आवश्यक था इसलिये कुमारिल भट्ट ने तक्षशिला में प्रवेश तो ले लिया पर वहाँ के नियम के अनुसार उन्हें पहले बुद्ध धर्म में निष्ठा की सौगन्ध लेनी पड़ी। वहाँ का अध्ययन समाप्त करने के बाद कुमारिल भट्ट ने बुद्ध धर्म को नया जीवन देने में सफल भी रहे पर झूठ के प्रति उनकी आत्मा में अन्तर्द्वन्द्व उठ खड़ा हुआ यद्यपि उन्होंने सत्य की प्रतिष्ठा के लिये झूठ बोला था तथापि झूठ लोगों के जीवन का ध्येय न बन जाये इसके लिये उन्होंने अग्नि में जलकर अपने पाप का प्रायश्चित किया।
(६) पाण्डवों ने एक नियम बना लिया था कि जब एक भाई द्रौपदी के साथ सहवास कर रहा होगा तब दूसरा भाई उधर नहीं जायेगा यदि गया तो उसे एक वर्ष का अज्ञातवास करना पड़ेगा। एक बार हस्तिनापुर में शेर घुस आया। उसे मारने के लिये अस्त्रों की आवश्यकता पड़ी। अस्त्र वहाँ रखे थे जहाँ धर्मराज युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ एकान्तवास में थे। इधर गायों की रक्षा का प्रश्न उधर मर्यादा की बात आखिर अर्जुन अन्दर चले गये और अस्त्र उठा लाये। शेर को मारकर वे अज्ञातवास के लिये चल पड़े। घर वालों ने बहुतेरा समझाया कि यह तो आपत्ति धर्म की बात थी आपको जंगल नहीं जाना चाहिए। इस पर अर्जुन ने कहा भूल कैसी भी क्यों न हो उसका दण्ड भुगतना ही चाहिये कहकर वे जंगल चले गये।
(७) श्रावस्ती ने नागर सेठ ने तथागत से प्रश्न किया-भगवान् बिना तप किये क्या भगवान् नहीं मिल सकता। तथागत चुप रहे एक दिन वह सेठ के घर आमन्त्रित हुए। सेठ ने बढ़िया खीर बनाई। भोजन के लिये उपस्थित तथागत ने अपना कमण्डल आगे कर दिया बोले खीर इसी में डाल दो। ‘‘लेकिन’’ इसमें गोबर है-सेठ बोला-इससे खीर खराब नहीं हो जायेगी? तथागत हँसे बोले वत्स! अपने को शुद्ध न करो तो ईश्वर प्रकाश मनुष्य में आकर भी उसे आनन्द नहीं दे सकता।


(७) हम कामना ग्रस्त न हों, प्रगतिशील बनें

प्रश्न ——
१. प्रगति किसे कहते हैं? २. प्रगति का मूल तथ्य क्या है? ३. सच्ची प्रगति क्या है? ४. भारत विदेशी शासकों से क्यों परास्त हुआ। ५. कामनाग्रस्त व्यक्ति अशक्त क्यों रहते हैं? ६. एषणाएँ कितनी प्रकार की होती हैं? ये अवांछनीय एवं खतरनाक क्यों कही जाती हैं। ७. वाहवाही के लोभी किस प्रकार के ढोंग रचते हैं? ८. बुद्धि व्यभिचारिणी कैसे हो जाती है? ९. आनन्द किस में है? १०. यशस्वी बनने का सच्चा उपाय कौन सा है? ११. समर्थता कैसे प्राप्त होती है?

कथाएँ ——
(१) भोज ने सारे राज्य को दावत दी। चारों ओर से नर-नारी आ-आकर दावत का आनन्द लेने लगे। कोई रह तो नहीं गया यह देखने के लिये भोज वेष बदल कर राज पथ पर जा रहे थे तभी सामने से आता हुआ एक वृद्ध लकड़हारा दिखाई दिया। भोज ने पूछा-भाई भोज ने दावत दी है तुम क्यों नहीं गये। बूढ़े लकड़हारे ने उत्तर दिया-मुफ्त का खाना खाकर मैं अपने बच्चों को निकम्मा नहीं बनाना चाहता। भोज यह सुनकर अवाक् रह गये।
(२) पुरुष अपनी पत्नी को पतिव्रत की शिक्षा दे रहा था-इस तरह वह अपने कर्तव्य से हटना चाहता था। स्त्री बोली-जाओ देश पर दुश्मन चढ़ते आ रहे हैं। पहले उन्हें मारकर कर्तव्य पालन करो फिर मुझसे पूछना पतिव्रत किसे कहते हैं।
(३) सरदार भगत सिंह ने अपने देश को देश सेवा में सौंप दिया। अपने भरण पोषण के लिए उन्होंने अपने परिवार का आश्रय भी त्याग किया। उनको इस त्यागवृत्ति को देखकर काँग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य श्री शार्दूल सिंह ने उन्हें १५०) लेने से मना करते हुए कहा-जीवन निर्वाह के लिये ३०) काफी हैं मुझे कमाई नहीं देश की सेवा करना है।
(४) धीमर की कन्या योजनगंधा को देखकर महाराज शान्तनु उस पर आसक्त हो गये उन्होंने निषादराज से कन्या उन्हें विवाह देने का आग्रह किया। निषाद ने कहा यदि आप वचन दें कि इस कन्या के गर्भ से उत्पन्न बालक की राज्य का उत्तराधिकारी होगा तो मुझे विवाह करने में कोई आपत्ति न होगी। शान्तनु यह सुनकर बड़े असमंजस में पड़ गये पर जैसे ही उनके पुत्र भीष्म ने यह सुना उन्होंने राज गद्दी का मोह त्याग कर प्रतिज्ञा की वे आजीवन अविवाहित रहेंगे। इस तरह पुत्र की प्रगति शीलता से एक कठिन समस्या सुलझ गई और समाज को भीष्म की शक्तियों का लाभ जन उत्थान के लिये मिल गया।
(५) स्वामी रामतीर्थ के भाषणों से अमेरिका इतना प्रभावित हुआ कि जिन्हें एक ही साथ १२ यूनिवर्सिटियों ने डाक्ट्रेट की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव को अमान्य करते हुए स्वामी जी ने कहा-सेवा का मूल्य आत्मानुभूति, आत्म सुख है उपाधि लेकर मैं अपना अहंकार बढ़ाना नहीं चाहता। मेरे साथ लगी स्वामी जी और एम० ए० यह दो उपाधियों ही बहुत हैं।
(६) स्वामी रामतीर्थ तब पढ़ते थे। अध्यापक ने एक लकीर खींच कर कहा इसे बिना काटे छोटा कर दो। सब लड़के हैरान थे तब रामतीर्थ ने जाकर बगल में उससे बड़ी लकीर खींचकर कहा लो पहली लकीर छोटी हो गई। असामान्य कार्य करने से मनुष्य बड़ा बनता है।
(७) महाराज संजय ने पुत्र प्राप्ति हेतु तप किया। तप से प्रसन्न हुए नारद जी ने पूछा-तात आपको कैसा पुत्र चाहिए। संजय बोले-स्वर्णबिष्टी भगवन् जिसका मलमूत्र भी सोना हो, थूक, लार निकले वह भी सोना हो। नारद संजय के इस लोभ पर मुस्कराये और एवमस्तु कहकर चले गये।
कुछ दिन पीछे संजय को सचमुच ऐसा ही पुत्र पैदा हुआ। इस विचित्र बालक की खबर दूर-दूर तक फैली। कुछ डाकुओं ने यह बात सुनी तो वे बच्चे का अपहरण कर ले गये। स्वर्ग का बटवारा कैसे हो इस बात पर डाकुओं में परस्पर कहा सुनी हो गई। तय हुआ कि उसे मारकर एक बार में ही सारा सोना निकालकर बाँट लिया जाये। लड़का काट डाला गया, पेट में सोना नहीं निकला इस पर डाकू हैरान थे तभी राजा के सिपाही वहाँ पहुँच गए और उन्होंने डाकुओं को मार डाला। सारी खबर महाराज संजय ने सुनी तो उनके मुँह से सहसा यही निकला-पाप और सर्वनाश की जड़ लोभ ही है।
(८) पारसी धर्मगुरु रबि मेर्हर के तीनों पुत्र बीमार होकर मर गए। शाम को मेर्हर घर लौटे तो पत्नी ने पानी दिया और हाथ मुँह धुलाकर खाना परोसा। भोजन करते समय मेर्हर ने पूछा-भद्रे बच्चे नहीं दिखाई दे रहे? इस पर पत्नी ने कहा-स्वामी कल हम लोग जिस स्त्री से जेवर लाए थे वह आज माँगने आई थी? रवि मेर्हर बोले-दे क्यों नहीं दिए पराई वस्तु की कामना क्यों की जाए? ठीक है कहकर वह उन्हें शयनागार में ले गई जहाँ तीनों बच्चों के शव पड़े थे। मेर्हर फूट-फूट कर रोने लगे तो पत्नी ने कहा-स्वामी आप अभी-अभी तो कह रहे थे कोई अपनी वस्तु लेते तो उसका दुःख नहीं करना चाहिए। पुत्र भगवान् के थे उसने ले लिए तो दुःख क्यों कर रहे हैं। मेर्हर का चित्त यह सुनकर हलका हो गया।
(९) कौशाम्बी का विश्वकर्मा चम्पक अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध था उसकी पत्नी हव्या भी बड़ी ईमानदारी थी। एक बार कौशाम्बी में अकाल पड़ा। एक दिन चम्पक अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहा था। रास्ते में एक सोने का कंगन पड़ा दीखा। चम्पक ने सोचा कहीं हव्या को उसका लोभ न आ जाए, वह उस पर धूल डालकर उसे ढकने लगा। हव्या पति का अभिप्राय समझ गई उसने कहा-स्वामी नाहक धूल पर धूल डाल रहे हैं। उनकी यह ईमानदारी देखकर इन्द्र का हृदय द्रवित हो गया उन्हें वृष्टि के लिए विवश होना पड़ा।
(१०) भगवान् बुद्ध उपदेश देकर उठे तो एक परिव्राजक ने पूछा-भगवन् आपके उपदेशों पर थोड़े लोग चलते है फिर भी आप कभी निराश क्यों नहीं होते? तथागत ने उत्तर दिया-सफलता और यश की कामना करने वाला कभी महान कार्य नहीं कर सकता। महान कार्य सदैव निष्काम भाव से किए जाते हैं।


(८) भाग्यवाद हमें नपुंसक और निर्जीव बनाता है

प्रश्न ——
(१) भाग्यवाद और पुरुषार्थ में जिस प्रकार अन्तर है उसी तरह किन्हीं और दो भिन्न उदाहरणों को बतायें? (२) पुरुषार्थ के असफल होने पर क्या हानि है तथा तब भाग्यवाद से क्या लाभ है? (३) भाग्यवाद किस प्रकार व्यक्ति को अकर्मण्य बना देता है? (४) भाग्यवाद का प्रचारक कौन था तथा उसका कारण क्या था? (५) विदेशी शासक भारतीय जनता पर किस प्रकार शासन किया करते थे? (६) भाग्यवाद से हमें विदेशी शासकों के राज्य के समय क्या हानियाँ उठानी पड़ी? (७) यह आप कैसे कह सकते हैं कि भाग्यवाद ने हमें नपुंसक बना दिया है? (८) विदेशी शासकों के जाने के बाद भी २३ वर्ष बीत जाने पर भी हम उन्नति क्यों नहीं कर सके? (९) भाग्यवाद उपयोगी भी है। कब? कैसे? (१०) कर्म भाग्य कब बनता है?

कथाएँ ——
(१) एक युवक को नौकरी के लिए इण्टरव्यू देने २५ तारीख को बुलाया गया। युवक २१ तारीख को चलने को हुआ तो घर वालों ने कहा आज शनिवार है अच्छा दिन नहीं कल जाना, दूसरे दिन पंडित जी बोले रवि, शुक्र पश्चिम की यात्रा वर्जित है सो वह दिन भी गया। तेईस तारीख को योगिनी बाएँ पड़ेगी’’ कहकर ज्योतिषी ने चक्कर में डाल दिया। चौबीस को कपड़े पहन कर वह चलने को हुआ कि एक बच्ची ने छींक दिया, यद्यपि लड़की को जुकाम था पर घर वालों ने नहीं जाने दिया। पच्चीस को घर से बाहर निकलते ही बिल्ली रास्ता काट गई। अपशकुन टालने के लिए जब तक लड़के को रोक कर रखा गया रेलगाड़ी निकल गई। युवक २६ को ऑफिस पहुँचा तो दरवाजे पर लिखा पाया- नो वैकेन्सी ‘‘अब कोई खाली स्थान नहीं।’’
(२) स्वामी सत्यदेव परिव्राजक ने सिमेटल शहर घूमते हुए एक आठ वर्षीय बच्चे को अख़बार बेचते देखा। स्वामी जी ने पूछा-तुम तो किसी सम्पन्न घर के लगते हो अख़बार क्यों बेचते हो? लड़के ने उत्तर दिया-हाँ श्रीमान् जी मेरे घर वाले सचमुच सम्पन्न हैं पर हम किसी के आश्रित नहीं रहना चाहते अपना भाग्य अपनी मुट्ठी में रखते हैं। स्वामी जी के मुँह से इतना ही निकला-तभी तो तुम सब इतने सम्पन्न हो।
(३) नारद जी पृथ्वी पर लोगों की कुशल देखने आये। वे जिससे भी मिले सबने दुःखों का ही रोना रोया। कोई अन्न के लिए कोई वस्त्र के लिए कोई स्त्री, पुत्र और मकान के लिए। एक स्थान पर साधुओं की जमात लगी थी उन्होंने नारद जी को फटकारा भगवान् हमारे लिये मिष्ठान्न भोग क्यों नहीं देते? नारद जी हैरान होकर लौटे और भगवान् से कहा-भगवन् आपने इन लोगों को अभावग्रस्त क्यों बनाया। भगवान् ने हँसकर कहा नारद! मैं कर्म करने वाले को ही कुछ दे सकता हूँ जो दीनता और दरिद्रता से खुद नहीं लड़ सकता उसका तो मैं भी भला नहीं कर सकता।
(४) पाँच अपंग खड़े भगवान् को दोष दे रहे थे अन्धा कह रहा था-मेरी आँखें होतीं तो जहाँ भी पाप ताप देखता उसे ठीक करता, लँगड़ा बोलो-मैं दौड़ --दौड़ कर दुखियों की सेवा करता। बहरा बोला-किसी दुःखी की आवाज मेरे कानों तक पहुँचती तो मैं उसके दुःख दूर करने तक चैन न लेता। पास ही खड़े वरुणदेव ने उनकी बातें सुनीं तो बड़े प्रसन्न हुए और सबकी शारीरिक त्रुटियाँ दूर कर दीं। फिर क्या था-आँखों वाला सिनेमा देखने, बहरा लाउडस्पीकर के गाने सुनने, लँगड़ा शहर घूमने के लिए निकल पड़े लोक कल्याण दूर आत्म कल्याण तक भूल गये। वरुण यह देखकर पछताए और अनायास कृपा का यही फल होता है कहकर अपनी दी वस्तुएँ वापस कर लीं।
(५) लक्ष्मी जी कृपा अनायास ही हुई थी सो लोगों ने सोने चाँदी से अपने घर भर लिये तो उद्यम उद्योग, कृषि आदि सभी छूट गये सब लोग सोना चाँदी लिये घूम रहे थे पर किसी को पेट भरने के लिए एक मुट्ठी अन्न भी नहीं मिल रहा था। धरती माता ने लक्ष्मी से कहा-बहन अपनी माया समेटो, मेरे बच्चों को परिश्रम और पुरुषार्थ पर विश्वास करने दो। ये उसी से जिन्दा रहेंगे।
(६) पहाड़ की चोटी पर खड़े तीन व्यक्ति प्यास से पीड़ित हुए। एक ने कहा घाटी उतरने का ही तो श्रम है चलो नीचे उतर कर पी आते हैं। शेष दो इस परिश्रम में नहीं पड़ना चाहते थे अतएव वे कभी इन्द्र कभी वरुण तो कभी भगवान् की स्तुति कर कह रहे थे भगवन् पानी बरसाओ अन्यथा जान जाती है। जब तक ये दोनों खड़े स्तुति करते रहे तीसरा नीचे उतर कर झरने के शीतल जल से अपनी प्यास बुझा आया।
(७) टालस्टाय के पास खड़ा एक युवक बड़ा दुःख व्यक्त कर रहा था-कह रहा था-मेरी नौकरी नहीं लग रही, घर में कुछ नहीं भगवान् ने मेरे साथ बड़ा अन्याय किया मुझे कुछ नहीं दिया। टालस्टाय बोले चाहो तो एक-एक हजार रुपये में अपने पैर, पाँच हजार में हाथ, दस हजार में नाक और २० हजार में आँखें मैं बिकवा सकता हूँ युवक भौचक्का सा खड़ा बोला यह आप क्या कह रहे हैं क्या मैं अपना शरीर कटवाऊँ। टालस्टाय हँसे और बोले-नहीं जी शरीर कटवाने की बात नहीं कह रहा मैं तो यह कह रहा हूँ ५० हजार के तुम्हारे इतने ही अंग है कुल शरीर तो लाखों का है। इतना मूल्यवान शरीर पाकर भी तुम भगवान् को, भाग्य को दोष देते हो?


(९) बौद्धिक परावलम्बन का जुआ उतार फेकें

प्रश्न ——
(१) ज्योतिष कितने प्रकार का होता है। उसमें कौन सा श्रेष्ठ है। (२) फलित ज्योतिष की हानियों पर प्रकाश डालते। (३) विवाह के पूर्व कुंडली मिलाने से लाभ है या हानि? (४) ग्रह दशा में डरा कर जनता को गुमराह करना वहाँ तक उचित है। क्यों? (५) दो हजार वर्ष की गुलामी का भयंकर दुष्परिणाम क्या हुआ? (६) सिद्ध कीजिये ‘‘भाग्यवाद निरर्थक है?’’ (७) उन्नति या प्रगति का आधार स्वतन्त्र चेतना है या भाग्य? (८) स्वतन्त्र चिंतन एवं पुरुषार्थ पूर्ण कर्तृत्व ही सुख के सारे द्वार खोलता है सिद्ध कीजिये। (९) सिद्ध कीजिये शकुन, मुहूर्त कुंडली, राशिफल मनुष्य को भयभीत व कमजोर बनाते हैं? (१०) असफलता का मूल कारण क्या है?

कथाएँ ——
(१) गधे तब जंगल में खूब मौज से रहते थे एक लोमड़ी ने उन्हें बहका दिया-कहा ने सेना बनाली है और तुम पर शीघ्र ही आक्रमण करने वाले हैं। गधे घबड़ा गये और बिना सोचे विचारे जंगल छोड़कर गाँव में धोबियों की शरण चले आये। सीधा सादा जीव बौद्धिक परावलम्बन के कारण धोबी का गुलाम बना और भारवाहक भी, उसी दिन से उसका नाम गधा पड़ा।
(२) बच्चा दिन भर चारपाई पर पड़ा सोता रहा-पिता ने पूछा-क्यों बेटा क्या बात है-बेटे ने उत्तर दिया पिता जी गाँव के उपदेशक कह रहे हैं-मनुष्य को शान्ति का जीवन बिताना चाहिये सो शान्ति चित्त पड़ा रहा। पिता ने कहा बेटे उपदेश के अर्थ को न समझने से यही होता है।
(३) साहूकार ने अपने सिक्कों में से खोटों को निकाल डालने के लिए उनकी जाँच शुरू की। खोटे सिक्के जोर से चमक रहे थे साहूकार पहचान नहीं पाया। उसकी पुत्री बोली-बाबा खरे खोटे की पहचान देखने से नहीं पटकने से होती है। साहूकार ने सिक्कों को पटकना शुरू किया-जो खरी आवाज करता था वह खरा और जिसमें आवाज ही नहीं खोटे सिक्के निकाल दिये और समझ लिया कोई भी बात हो उसकी परख बाहर से नहीं भीतर से करनी चाहिये।
(४) एक पहाड़ पर दो चींटियाँ रहती थीं एक चीनी की खान में दूसरी नमक की खान में। चीनी की खान वाली चींटी ने नमक वाली को भोज दिया। दूसरे दिन नमक की खान व ली चींटी आई और दिन भर चीनी की खान में रही पर उसे चीनी का एक कण भी न मिला। चलते समय उसने शिकायत की बहन तुमने नाहक तंग किया। चीनी का एक टुकड़ा भी तो नहीं है तुम्हारे यहाँ। पास में ही चीनी की खान वाली चींटी का लड़का खड़ा था। नमक वाली चींटी के मुँह में ऊँगली डालते हुए उसने कहा-मौसी जी पहले यह जो मुँह नमक का टुकड़ा लिये हो इसे तो निकालो वह टुकड़ा निकालते ही उसने भर पेट चीनी खाई। जो लोग पूर्वाग्रह में पड़े हैं वे नमक वाली चींटी के समान हैं।
(५) लोकमान्य तिलक समुद्री यात्रा पर जाने वाले थे पंडितों ने टोका-समुद्र यात्रा धर्म विरुद्ध है। तिलक काशी जी गये और महो-महापाध्याय से कहा-कोई उपाय निकालिये जिससे समुद्री यात्रा में धर्महानि न हो। महो-महापाध्याय ने कहा-उपाय है पर पाँच हजार रुपये लगेंगे। तिलक हँसे और बोले जो इतना स्वार्थी और संकीर्ण हो वह धर्म नहीं हो सकता। वे वहाँ से लौट आया और बिना व्यवस्था के काम चलाया।
(६) दिल्ली सार्वजनिक निर्माण विभाग से पूछा गया कि बस स्टैण्डों पर बने प्रतीक्षा घरों में छाया क्यों नहीं की गई तो अधिकारी बोले-ऐसा इंग्लैण्ड में कहीं नहीं होता। इस तरह की बौद्धिक पराधीनता ही मनुष्य को गुलाम बनाती है।
(७) एक थे पंडित जी, प्रतिदिन पूजा के बाद शंख बजाते। शंखध्वनि सुनते ही पड़ोसी धोबी का गधा जोर-जोर से रेंकने लगता। पंडित जी बड़े खुश होते और कहते-गधा पूर्व जन्म का योगी है उसका नाम भी उन्होंने शंखराज रख लिया था। एक दिन शंखराज नहीं बोले, पता चला गधा मर गया है। पंडित जी ने इस दुःख में अपने बाल मुड़ा डाले। शंखराज मर गया है यह खबर और पंडित जी के सिर मुड़ाने की खबर पाकर उनके यजमानों को भी सिर मुड़ाना पड़ा। उसी दिन गाँव में एक सिपाही आया था, उसने शंखराज के मरने की बात सुनी तो खुद भी बाल मुड़ाए धीरे-धीरे पूरी फौज घुट-मुंड हो गई। हैरान अफसरों ने पता लगाया तो मालूम हुआ शंखराज कोई व्यक्ति नहीं गधा था लोगों ने तो अंध विश्वास वश सिर मुड़ाए किसी ने वस्तु स्थिति जानने का प्रयत्न नहीं किया। अन्धविश्वास ऐसे ही फैलता है।


(१०) ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग की महान साधना

प्रश्न ——
(१) योग की परिभाषा बताओ। (२) शारीरिक योग कितने हैं उनसे क्या लाभ मिलता है? (३) मानसिक योग कितने प्रकार के होते हैं? (४) योग का प्रयोजन और सदुपयोग क्या हैं? (५) ज्ञान योग किस प्रकार बन्धन खोलता है? (६) कर्मयोग की व्याख्या करो। (७) सादगी श्रेष्ठता का कैसे निर्माण करती है? (८) भक्ति योग का क्या अर्थ है? (९) वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना कैसे जागती है? (१०) आत्मा परमात्मा में किस प्रकार मिलता है?

कथाएँ ——
(१) इंग्लैण्ड की कामन्स सभी में वाद-विवाद चल रहा था। एक सदस्य ने दूसरे से कहा-महोदय वह दिन याद करिये जब आप जूतों पर पालिश किया करते थे। माननीय सदस्य ने उत्तर दिया-बन्धु मैंने पालिश भी पूरी ईमानदारी और भगवान का काम समझ कर की है।
(२) भक्त कवि पोतना ने भागवत् का संस्कृत अनुवाद किया। लोगों ने सलाह दी इसे आन्ध्र महाराज को समर्पित कीजिये वो बहुत सा धन मिलेगा। पोतना उस समय तो मुस्करा भर दिये। पीछे ग्रन्थ छपा तो लिखा था-प्राणियों की भलाई की इच्छा से लिखी गई यह भगवान् की प्रेरणा भगवान को ही अर्पण करता हूँ।
(३) सूफी सन्त बीबी राबिया जिन दिनों अपनी ईश्वर भक्ति के लिये विख्यात थीं उन्हीं दिनों इबलीस नामक प्रबल नास्तिक भी हुआ जो दिन-रात राबिया की बुराई किया करता। एक दिन बीबी राबिया से एक व्यक्ति ने कहा-इबलीस तो आपकी दिन-रात बुराई करता है आप क्यों नहीं करतीं? इस पर राबिया ने उत्तर दिया वह भी तो उसी भगवान् का पुत्र है जिसकी मैं हूँ अपने भाई की बुराई मैं कैसे करूँ। इबलीस को इसका पता चला तो वह राबिया के चरणों में नत मस्तक हो गया।
(४) संत शुकदेव ने अपने पिता वेद व्यास के समस्त ग्रन्थों का अध्ययन अनुशीलन प्रारम्भ कर दिया उससे वे मुक्ति के अधिकारी बन गये। एक दिन व्यास देव से एक शिष्य ने पूछा-आपने पुत्र को कौन सी साधना सिखाई तो उन्होंने कहा-कोई नहीं शुक अपनी ज्ञान साधना से मुक्ति हुए।
(५) स्वामी विवेकानन्द ने अपनी साधना, उपासना छोड़ दी और कलकत्ता में फैले प्लेग के प्रकोप से लोगों को बचाने में जुट गये। एक भाई ने पूछा-महाराज आपकी उपासना, साधना का क्या हुआ? स्वामी जी ने कहा-भगवान् के पुत्र दुःखी हों और मैं उनका नाम-जप रहा होऊँ क्या तुम इसे ही उपासना समझते हो?
पैसे की कमी के कारण जब वे रामकृष्ण आश्रम की जमीन बेचने को तैयार हो गये तो फिर एक शिष्य ने पूछा-महाराज आप गुरु-स्मारक बेचेंगे क्या? विवेकानन्द ने उत्तर दिया मठ-मंदिरों की स्थापना संसार की भलाई के लिये होती है। यदि उसका उपयोग भले काम में होता है तो इसमें हानि क्या है?
(६) कहीं राग, कहीं द्वेष, कहीं रोष, कहीं क्लेश देख कर पिप्पल का मन सामाजिक जीवन से विरक्त हो गया। वे वन में जाकर योगाभ्यास करने लगे। एक दिन वे अत्यन्त-अशांत चित्त बैठे थे तभी उधर से सारसों का एक जोड़ा निकला। मादा सारस ने नर से पूछा-स्वामी महर्षि पिप्पल और सुकर्मा की साधना में किसकी साधना श्रेष्ठ है? नर ने उत्तर दिया-सुकर्मा की क्योंकि वह विरक्त होकर भी संसार की सेवा में जुटा हुआ है, भगवान् भक्ति से ही नहीं कर्तव्य पालन से कहीं अधिक प्रसन्न होते हैं।
पिप्पलाद पक्षियों की भाषा जानते थे वे उठकर सुकर्मा के पास गये तो देखा वह अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा में तल्लीन है। पिप्पल ने सुकर्मा के मन में अद्भुत शान्ति देखी उस दिन से उन्होंने भी सामाजिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना प्रारम्भ कर दिया।
(७) अपने साथ वहाँ के राजा को भी पाकर एक संत के हजारों शिष्य बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने राजा से कहा अब तो आप हमारे गुरु भाई हो गये गुरु भाई होकर भी हम से माल गुजारी लेंगे क्या?
राजा ने द्विविधा में आकर सबका टैक्स माफ कर दिया पर उसके शासन के प्रबन्ध के लिये आर्थिक व्यवस्था में दबाव पड़ने लगा। संत ने यह सुना तो राजा को पास बुलाया और कहा-राजन् जो शिष्य दीक्षा लेकर कर्म न करें, आलसी हो जायें उन्हें तू नकली शिष्य जान। राजा ने भूल समझी और फिर से कर लगा दिया। तब कहीं शिष्यों का आलस्य छूटा और शासन व्यवस्था सँभली।
(८) सिक्खों के चौथे गुरु रामदास के अनेक शिष्य थे वे सब एक से एक बुद्धिमान और तार्किक थे। अर्जुन देव नाम का एक दूसरा लड़का भी था जो केवल गुरु के आदेश पालन और उनके प्रति श्रद्धा को ही अपनी सच्ची शिक्षा व सम्पत्ति मानता था। उसे आश्रम के बर्तन माँजने का काम दिया गया था इसलिये दूसरे लड़के उसे सदैव ही उपेक्षा की दृष्टि से देखते। पर जब एक दिन उत्तराधिकार की बात आई तो गुरु ने यह कहते हुए-लोक सेवक की सबसे बड़ी योग्यता श्रद्धा और अनुशासन है—’’ उन्होंने अर्जुन देव को ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। अन्य शिष्य यह देखकर आश्चर्य चकित रह गये।
(९) स्वर्ग में तरह-तरह के सुखोपभोग मिलने पर भी विद्रूप प्रसन्न नहीं थे। इन्द्र उनके पास गये और पूछा-महाराज यहाँ आपको कुछ त्रुटि दिखाई दे रही है क्या? हाँ देवराज-विद्रूप ने कहा-यहाँ और सब कुछ तो है पर यहाँ कर्म का अभाव है बिना कर्म के मुझे स्वर्ग भी पसन्द नहीं इसलिए मुझे तो कर्म लोक धरती में पहुँचा दो जहाँ लोगों की सेवा का फिर से आनन्द ले सकूँ।
इन्द्र बोले-सच है महाराज जिसे कर्म से स्वर्ग मिलता है उसे स्वर्ग से भी महान् होना ही चाहिए।
(१०) जिस व्यक्ति को स्वयं भगवान् ने ही कहा था कि इसे पुत्र नहीं हो सकता उसे एक साधारण साधु के आशीर्वाद से पुत्र हो गया-यह देखकर देवर्षि नारद के विस्मय का ठिकाना न रहा वे सीधे स्वर्ग लोक पहुँचे और भगवान् से उसका रहस्य पूछा ——
भगवान् विष्णु ने उनका समाधान करते हुए कहा-नारद जो मेरे दिये आदेशों को पूरा करते और लोक-कल्याण में तत्पर रहते हैं। वही मेरे सच्चे भक्त हैं। उन्हें मेरी व्यवस्था में परिवर्तन का भी अधिकार हो तो इसमें आश्चर्य की क्या बात?
(११) खलीफा उमर नमाज पढ़कर खड़े हुए तो उन्हें एक फरिश्ता दिखाई दिया उसके हाथ में एक छोटी सी पुस्तक थी। खलीफा ने पूछा-इस पुस्तक में क्या लिखा है? फरिश्ते ने जवाब दिया-उनके नाम जो भगवान् की भक्ति किया करते हैं। उमर ने पूछा इसमें मेरा भी नाम है क्या? फरिश्ते ने सारी पुस्तक पलट डाली पर उसमें उमर का नाम न निकला। उमर दुःखी खड़े थे तभी दूसरा फरिश्ता आया। उसके हाथ में भी एक पुस्तक थी-उमर ने पूछा इसमें क्या लिखा है-फरिश्ता बोला-उनके नाम जिनका जप खुदा स्वयं करता है। उमर ने आश्चर्य चकित होकर पूछा क्या दुनियाँ में ऐसे भी लोग हैं जिनकी खुद भगवान् उपासना करते हैं? फरिश्ते ने कहा-हाँ जो संसार की सेवा में लगे हैं उनकी इबादत भगवान् खुद करता है यह कहकर फरिश्ता अपनी किताब वहीं छोड़ कर गायब हो गया। उमर ने पुस्तक उठाकर देखी तो उसमें पहला नाम उन्हीं का था।


(११) आध्यात्मिक जीवन के पाँच कदम ——

प्रश्न ——
१ —अध्यात्मवादी की आकांक्षाओं एवं प्रेरणाओं का मूल स्रोत क्या होता है। २ —अध्यात्मवादी या देव जीवन किसे कहते हैं? ३ —भौतिकवादी जीवन को पशु जीवन क्यों कहते हैं? ४ —अध्यात्मवादी जीवन क्यों महत्त्वपूर्ण है? ५-जीवन में सदाचार, नम्रता, सादगी एवं साधना की क्यों आवश्यकता है? ६ —आध्यात्मिक जीवन के पाँच प्रमुख तत्त्वों पर प्रकाश डालिये। ७ —दृष्टि दोष दूर करने के लिये क्या करना चाहिए? ८ —दृष्टि शोधन से क्या समझते हो? ९-मितव्ययिता एवं ईमानदारी क्यों आवश्यक है? १० —आत्मा को परमात्मा के रूप में परिणित करने का प्रत्यक्ष आनन्द कब व कैसे मिलता है?

कथाएँ ——
(१) आइजन हावर के राष्ट्रपति चुने जाने पर उन्हें बहुत से मित्रों प्रशंसकों ने उपहार दिये। उन उपहारों की प्रदर्शनी लगाई गई। उपस्थित मेहमानों को सम्बोधित कर उन्होंने उपहार में मिले एक झाड़ू को हाथ मे उठाते हुए कहा-यह है मेरा सर्वोत्तम उपहार जो मुझे सदैव सेवा और कर्तव्य पालन की याद दिलाता रहेगा।
(२) चम्पारन के किसानों के साथ ब्रिटिश सरकार ने बहुत अत्याचार किये गाँधी जी उसकी जाँच कर रहे थे तब उनके कैम्प सेक्रेटरी का काम आचार्य कृपलानी कर रहे थे। कैम्प से बहुत सी डाक कलेक्टर के पास जाती थी। वह डाक श्री कृपलानी स्वयं लेकर जाते थे ताकि सरकारी कर्मचारी कोई गोलमाल न कर सके। कलेक्टर को पता चला कि डाक लाने वाले आचार्य कृपलानी हैं तो उसने पूछा-आप सेक्रेटरी होकर डाक लाते हैं? इस पर कृपलानी ने कहा-मैं सेक्रेटरी नहीं मैं तो बापू का चपरासी हूँ। कलेक्टर यह सुनकर स्तब्ध रह गया।
(३) आचार्य रामानुज उपदेश दे रहे थे-भगवान् प्राणिमात्र में समाये हुये हैं सबमें अपना ही आत्मा देखना चाहिये। उपदेश एक चाण्डाल भी सुन रहा था। जैसे ही प्रवचन समाप्त हुआ, वह आचार्य प्रवर के पैर छूने को बढ़ा। आचार्य ने उसे देख क्रुद्ध हो उठे और डाँटा-मुझे छुएगा क्या? चाण्डाल ठिठक गया और बोला-महाराज तो फिर बताइये मैं अपने भगवान् को कहाँ ले जाऊँ? आचार्य की आँखें खुल गईं। चाण्डाल को अंक में अंक में भरते हुए उन्होंने कहा-तात क्षमा करो। आज तुमने मेरी आँखें खोल दी।
(४) रामकृष्ण परमहंस युवक थे, माता शारदामणि साथ रहती थीं तथापि वे पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहते थे। रानी रासमणि के जमाई मथुरादास को उनकी परीक्षा लेने की बात सूझी। एक दिन परमहंस देव को ले जाकर उन्होंने एक सुन्दर वेश्या के कोठे पर छोड़ दिया, खुद छुप कर बैठ गये। सुन्दरियाँ उन्हें कुत्सित हाव-भाव द्वारा आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगीं तो रामकृष्ण माँ-माँ कह कर भाव विभोर हो गये। कामनियाँ यह देखकर अत्यधिक लज्जित हो गई। मथुरादास जी अपने इस कृत्य पर बहुत पछताए।
(५) मुगलों के साथ हुए युद्ध में मराठों की विजय हुई उन्होंने मुगलों के खजाने के साथ उनकी बहुत सी वस्तुएँ भी लूट लीं। सैनिक मुगल खानदान की एक रूपवती कन्या को भी पकड़ लाये। उसे शिवाजी के सामने इस ख्याल से उपहार स्वरूप प्रस्तुत किया गया कि उससे शिवाजी बहुत प्रसन्न होंगे और बहुत सा इनाम देंगे पर बात उल्टी निकली। शिवाजी ने कहा-मुगल है तो क्या नारी सर्वत्र पवित्र है। फिर उन्होंने उस युवती की ओर देखकर कहा-तुम्हारी जितनी सुन्दर मेरी माता होती तो मैं कितना सुन्दर होता यह कहकर उन्होंने युवती को सादर मुगलों के डेरे तक पहुँचा दिया।
(६) अर्जुन तब इन्द्रलोक में शस्त्र विद्या सीख रहे थे। उनके सौन्दर्य पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी मोहित हो गई वह एक रात चुपचाप अर्जुन के पास गई और बोले-मुझे आपकी तरह का एक सुन्दर बालक चाहिये। अर्जुन उसके काम-विकार को ताड़ गये। एक क्षण चुप रहकर बोले-भद्रे संभोग से तो संभव नहीं पुत्र ही हो पुत्री भी हो सकती है फिर तुम्हें तो पुत्र अभी चाहिए सो यह लो अब से मैं ही तुम्हारा पुत्र हूँ।
(७) एक व्यक्ति तीर्थ यात्रा पर जा रहा था सुरक्षा की दृष्टि से उसने अपने पाँच हजार के सिक्के संत रैदास सौंप दिये। रैदास ने रुपयों की पोटली वहीं छप्पर में खोंस दी। कुछ ऐसा हुआ कि वह आदमी तीर्थ यात्रा से ५ वर्ष बाद लौटा। उसने जाकर रैदास से कहा-मेरे रुपये कहाँ हैं। रैदास ने छप्पर की ओर इशारा करते हुए कहा-जहाँ तुमने रखे थे वहीं से उठा लो। पराये धन को मिट्टी की तरह देखने वाले संत की इस सच्चाई को देखकर वह व्यक्ति दंग रह गया।
(८) बाजीराव पेशवा और नवाब हैदराबाद के बीच युद्ध छिड़ गया। नवाबी सेना हार गई। और बचाव कर किले के अन्दर चली गई मराठों ने उस पर घेरा बन्दी डाल दी। नवाब की सेनाएँ भूख से मरने लगीं। मंत्रियों ने खबर बाजीराव पेशवा को दी और कहा यह उपयुक्त समय है हमें उन पर आक्रमण कर देना चाहिए तो पेशवा ने उत्तर दिया-भूखों पर आक्रमण करना वीरता नहीं कायरता है। अभी तो उन्हें अन्न की जरूरत है कह कर उन्होंने अपने भण्डार से बहुत सी रसद नवाब के किले में भिजवा दी। नवाब इस आत्मीयता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने युद्ध का इरादा छोड़ कर पेशवा से संधि कर ली।
(९) इधर परीक्षाएँ चल रही थीं उधर विद्यार्थी का पड़ोसियों की चिट्ठी पत्री लिखने का काम जारी था। एक दिन उनकी माता ने कहा-पढ़ाई का भी कुछ ध्यान है या यूँ ही बेकार में समय बर्बाद करते रहोगे। बच्चे ने विनम्र उत्तर दिया-माँ यदि पढ़ाई से दूसरों का कुछ हित न हुआ तो ऐसी पढ़ाई लिखाई से क्या लाभ? यह उत्तर देने वाला छात्र ही आगे चल कर महात्मा हंसराज के नाम से प्रख्यात हुआ।
(१०) गेरुआ वस्त्र पहने स्वामी विवेकानन्द की ओर इशारा करके एक अमेरिकन स्त्री ने एक अमेरिकन से कहा-जरा इन महोदय की पोशाक तो देखो? विवेकानन्द ने अँगरेजी में कहा-देवी आपके देश में सभ्यता के उत्पादक दर्जी और सज्जनता की कसौटी कपड़े माने जाते हैं पर मैं जिस देश से आया हूँ वहाँ के लोगों के पहचान सरलता और चारित्रिक उत्कृष्टता से की जाती है।


(१२) हर दिन को एक नया जन्म समझें और उसका सदुपयोग करें

प्रश्न ——
(१) जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या क्या है? (२) जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में प्रमुख बाधा क्या है। (३) जीवन को क्या माना जाना चाहिए? विवेक शीलता का तकाजा क्या है? (४) किस जीवन को सार्थक माना जा सकेगा? (५) आध्यात्मिक प्रगति के कौन-कौन से पक्ष हैं? (६) दिनचर्या बनाने व डायरी लिखने की आवश्यकता क्यों हैं? (७) ऋद्धि-सिद्धियों एवं सफलतायें पाने का रहस्य क्या है? (८) प्रगति का सोपान क्या है। (९) स्वयं को सुधारने में किस-किस प्रकार के प्रयोग करने चाहिये? (१०) जीवन की सार्थकता कैसे अनुभव की जा सकती है।

कथाएँ ——
(१) आलिवार क्रामदेव की वीरता में मुग्ध होकर एक चित्रकार ने उसका सुन्दर तैल चित्र बनाया। चित्र देखकर क्रामवेल बड़ा प्रसन्न हुआ पर बोला-अभी इसमें थोड़ी कमी रह गई। क्रामवेल के मुँह पर एक मस्सा था। जिसके कारण उसका मुँह असुन्दर लगता था। इसी कारण चित्रकार ने उस पर मसा नहीं काढ़ा था पर जब क्रामवेल ने ही कमी बताई तो उसने कहा-सच है जो अपनी बुराइयों को देखने का अभ्यासी है वही सच्चा वीर हो सकता है-यह कहकर उसने चित्र में मस्सा भी काढ़ दिया। क्रामवेल बड़ा प्रसन्न हुआ और चित्रकार को बहुत सा पुरस्कार देकर विदा किया।
(२) नौशेखाँ ने एक वृद्ध से पूछा-आपकी आयु क्या होगी? ‘‘पाँच वर्ष’’ वृद्ध ने उत्तर दिया। नौशेखाँ ने समझा बूढ़े को मजाक सुझ रही है सो उसने थोड़ा नाराज होकर कहा-बाल पक गये, शरीर हिल रहा है और अपने को पाँच वर्ष का बता रहे हैं। वृद्ध ने कहा-महाराज पिछली जिन्दगी तो मैंने यों ही बेसमझी में बिता दी पिछले ५ वर्ष से ही जीवन में नियमित आई है इसलिये मैं पाँच वर्ष का ही तो हुआ। नौशेखाँ इस उत्तर से बहुत प्रसन्न हुआ और उस दिन से युक्ति पूर्वक जीवन जीने लगा।
(३) गरुड ने हंस से पूछा-बन्धु राजा परीक्षित ने एक बार भागवत् सुनी और स्वर्ग चले गये पर आज तो लोग हजार बार भागवत् सुनकर भी नरक में पड़े हैं। हंस ने हँसकर कहा-भाई गरुड परीक्षित ने कथा सुनी ही नहीं थी मन में बिठायी आत्मा में उतार भी ली थी इसलिये वे मुक्त हो गये पर आज तो लोग मनोरंजन के लिये कथा सुनते हैं आत्म-कल्याण की इच्छा से नहीं।
(४) अब्राहम लिंकन ने एक बार उनके जन्म दिन पर एक पत्रकार ने पूछा आप साधारण मनुष्य से राष्ट्रपति बने इस सफलता का रहस्य क्या है? लिंकन बोले मैं अपने जीवन की पग-पग पर परीक्षा की हर असफलता से कुछ सीखा, सँभला और नये नाश्ते बनाता चला गया।
(५) ७० वर्ष की आयु का आदमी अपनी अवस्था के औसत २४ वर्ष सोने, ११ वर्ष नौकरी करने उद्योग करने, ८ वर्ष खेल, कूद, मनोरंजन, ६ वर्ष खाने, ६ वर्ष भ्रमण, ६ वर्ष ३ वर्ष शिक्षा ३ वर्ष बातचीत और कुल ६ महीने ईश्वरीय प्रयोजन व आत्म कल्याण में लगाता है इसी से समझा जा सकता है कि आज लोग कितना बे समझदारी का जीवन जी रहे हैं।
(६) एक मनुष्य ने अरस्तू से पूछा सबसे मूर्ख मनुष्य कौन है-अरस्तू ने कहा-जो पिछले अनुभवों के आधार पर अपना जीवन नहीं सुधारता?

(१३) स्वाध्याय दैनिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता

प्रश्न ——
(१) सिद्ध कीजिये कि मनुष्य संवेदनशील प्राणी है। (२) मनुष्य में विचारों एवं आकांक्षाओं का सृजन कैसे होता है? (३) मानवीय विकास की आधारभूत आवश्यकता क्या है? (४) प्राचीनकाल में छात्रों को ऋषिकुल में क्यों भेजा जाता था? (५) व्यक्तित्व की उत्कृष्टता किन-किन तत्त्वों पर निर्भर हैं? (६) स्वाध्याय क्यों आवश्यक है? (७) प्रेरक साहित्य के अध्ययन से क्या लाभ है? (८) स्वाध्याय के लिए कैसा साहित्य होना चाहिए? (९) युग निर्माण योजना के साहित्य पर प्रकाश डालें। (१०) स्वाध्याय को नित्य कर्म क्यों मानना चाहिए?

कथाएँ ——
(१) एक बच्चे को देश का बड़ा भारी नेता बनने की इच्छा थी पर कैसे बना जाये? यह बात समझ में नहीं आती थी। एक दिन फ्रेंकलिन की जीवनी पढ़ते समय उसने ज्ञानार्जन की महत्ता पढ़ी बच्चा उस दिन से स्वाध्याय में एक मन जुट गया और अपने मस्तिष्क में ज्ञान का भाण्डागार भर लिया। यही लड़का एक दिन अर्जेण्टाइना का राष्ट्रपति बना नाम था-डोमिंगो फास्टिनो सारमिन्टो।
(२) बालजक एक वकील के क्लर्क थे। एक दिन उन्होंने एक मित्र से थोड़े पैसे उधार माँगे तो मित्र ने इनकार कर दिया। बालजक को बड़ा दुःख हुआ। सोचने लगे मेरी आर्थिक स्थिति खराब क्यों है-निःसन्देह मेरे पास ज्ञान का अभाव है यह सोचते ही वे पढ़ने में लग गये और एक मूर्धन्य साहित्य कार के रूप में नाम भी कमाया और नामा भी ।।
(३) भारतीयों का ज्ञान कमजोर होता है जब सरदार वल्लभ पटेल को अंग्रेजी की इस आलोचना का पता चला तो उन्होंने अपने जीवन की दिशा बदल दी। प्रातः काल नहा धोकर इनर टैम्पुल लाइब्रेरी निकल जाते और लगातार १७ घन्टे तक स्वाध्याय कर घर लौटते। परीक्षा में वे उत्तीर्ण हुए तो अंग्रेज दंग रह गये।
(४) स्वामी रामतीर्थ रास्ते में एक पुस्तक पढ़ते जा रहे थे। एक दिन एक व्यक्ति ने टोका महाराज यह कोई पाठशाला थोड़े ही है कम से कम चलते समय तो पुस्तक रख दिया करें। तो स्वामी जी बोले-बन्धु यह सारा संसार ही मेरी पाठशाला है बताइये इसमें कहाँ पुस्तक रखूँ ?? कहाँ पढूँ?
(५) क्लंग-क्लंग घाटी पर एक सौ अंग्रेजों का मुकाबला आजाद हिंद सेना के कुल ३ जवान कर रहे थे। खबर आई क्या सैनिक पीछे हटा लिए जायें? सुभाष बोस को समझ में नहीं आया क्या किया जाये? जब भी कोई ऐसा अवसर आता वे पुस्तकों की शरण जाते। विवेकानन्द की पुस्तक खोली, पढ़ने लगे एक स्थान पर लिखा था-सिर पर संकटों के बादल मँडरा रहे हों तब भी धैर्य नहीं खोना चाहिए’’ बस सुभाष को परामर्श मिल गया। उन्होंने तीनों सैनिकों को आदेश दिया डटे रहो। अंग्रेजों की टुकड़ी ने समझा यहाँ आजाद हिंद सेना का भारी जमाव है अतएव ने चौकी छोड़कर भाग गये।
(६) सन्त इमर्सन से उनके एक मित्र ने पूछा-आपको अभी स्वर्ग जाने को कहा जाये तो आप क्या तैयारी करेंगे? सबसे पहले अपनी सारी पुस्तकें बाँध लेंगे इमर्सन बोले-ताकि स्वर्ग में हमारा समय बेकार न जाये।
(७) लोकमान्य तिलक से एक मित्र ने पूछा-आपको नरक जाना पड़े तो क्या करेंगे-अपने साथ पुस्तकें लेता जाऊँगा, ताकि स्वाध्याय द्वारा नरक को भी स्वर्ग में बदलने वाले विचार इकट्ठा कर सकूँ।

(१४) अपना महान महत्त्व समझें और अपने को सुधारें

प्रश्न ——
(१) हमारा सीखा जाना और सिखाया जाना किस तरह निरर्थक है? (२) हमको अपना महत्त्व समझना था पर हमने किस चीजों का महत्त्व समझा? (३) हम किन चीजों के प्राप्त होने से सुविधा अनुभव करते हैं? (४) हम हमारे में ही उपस्थित किन चीजों का महत्त्व भूल गये हैं। (५) सिद्ध कीजिये अपना आप सबसे महत्त्वपूर्ण है। (६) जो कुछ संसार में है उसकी अनुभूति हम अपने ही माप दंड से करते हैं? उदाहरण से समझाइए? (७) बीमारियाँ कैसे आती हैं? तथा उनसे निपटने का क्या रास्ता है? (८) विद्वानों की पंक्ति में किस तरह बैठा जा सकता है? (१०) हमें अपना महत्त्व ज्ञात करने के लिए क्या करना चाहिए।

कथाएँ ——
(१) वैद्य जी ने रोगी को दवा दी और कहा बेटा इन्हें खाने से दो दिन में खाँसी अच्छी हो जावेगी। अभी वे अपनी बात पूरी तरह कह नहीं पाए थे कि उन्हें जोर की खाँसी आ गई। रोगी न देखा वापस लौटाते हुए कहा-वैद्य जी पहले अपनी खाँसी अच्छी कर लो पीछे हमें बता देना।
(२) बुरी संग में पड़ कर एक लड़के ने किसी से कर्ज ले लिया। कर्ज चुकाने के लिए उसने घर से सोना चुराया पर इससे उसका हृदय पश्चाताप से झुलसने लगा। सीधे कहने की तो हिम्मत नहीं हुई पर उसने पत्र में लिखकर अपने पिता को सारी बातें लिखकर क्षमा माँगी। पिता ने समझ लिया लड़के का हृदय शुद्ध है तो उन्होंने क्षमा कर दिया। यही लड़का आगे चलकर गाँधी जी के नाम से विश्व विख्यात हुआ।
(३) बगल में खड़े दो गुलामों की ओर इशारा करते हुए तैमूर लग ने कवि अहमदी से प्रश्न किया-बता सकते हैं इन गुलामों की कीमत क्या होगी? पाँच टके अहमदी मुस्करा कर बोले-तैमूर गुस्सा होकर बोला-मैंने इन्हें चार हजार अशर्फियों में खरीदा है। अहमदी बोले-खरीदा होगा पर संसार में जो साँसारिक बुराइयों का सामना नहीं कर सकता उस आदमी का मूल्य पाँच टका से ज्यादा नहीं हो सकता? तैमूर अभिमान में आकर बोला-अच्छा बताओ मेरी कीमत क्या होगी? इस पर अहमदी हँसे और बोले-दो टके! तैमूर आग बबूला हो उठा तो अहमदी ने स्पष्ट किया-जो अपनी ही बुराइयों का सामना नहीं कर सकता वह इन गुलामों से गया बीता ही होगा।
(४) जो खुद को जीत लेता है वह सारे संसार को जीत लेता है, ‘‘संत सुकरात अरस्तू को उपदेश कर रहे थे। पास ही एक गुफा में घुसे सिकन्दर ने यह सुना तो उसके हर्ष का ठिकाना न रहा। अरस्तू इस उपदेश से जहाँ विश्व के महान दार्शनिक बने वहाँ सिकन्दर को इस संक्षिप्त उपदेश ने ही विश्व विजयी बना दिया।
(५) श्रावस्ती के दो गिरहकट वहाँ पहुँचे जहाँ भगवान बुद्ध के उपदेश सुनने के लिये भीड़ एकत्र थी। एक गिरहकट तो लोगों की जेबें काटता रहा दूसरा बुद्ध के उपदेश सुनने लगा। भगवान् बुद्ध कह रह थे-जो अपनी बुराइयों को ढूँढ़ना और उन्हें निकालने का साहस करता है वही सच्चा पंडित है। बात हृदय में उतर गई गिरहकट ने अपनी बुराइयाँ निकालनी प्रारम्भ की और सचमुच एक दिन भगवान् बुद्ध का परम प्रिय शिष्य बना।
(६) शेखशादी नमाज पढ़ने जा रहे थे, पाँव में जूते न होने के कारण पाँव बुरी तरह जल गये तभी उन्हें एक साहूकार दिखा जिसके पैर में चमकती जूतियाँ थी। शेखशादी ने कहा-वाह अल्लाह! तू भी कितना पक्ष-पाती है एक को तो चमकाते जूते और मुझे फटे पुराने भी नहीं। शेख अभी यह सोच ही रहे थे कि पीछे खटखट की आवाज सुनाई दी मुड़कर देखा तो एक अपंग बैसाखी के सहारे चला आ रहा था। शेख ने अपने को तमाचा मारा और कहा-भगवान् यह क्या कम है कि तूने मुझे पैर तो दिये?
(७) ब्रह्मा जी ने कुत्ता, बिल्ली, बैल भेड़, हाथी, साँप एक-एक कर अनेक जीव बनाये और सबसे पूछते गये तुम्हारा जीवन कैसा है सबने यही कहा-पितामह कष्ट और अभावों के अतिरिक्त हमारे जीवन में और कुछ भी तो नहीं है इस पर पितामह ने एक सर्वांगपूर्ण मनुष्य शरीर की रचना की। कुछ दिन बाद मनुष्य को बुलाकर पूछा-कहो तुम्हें तो कोई अभाव नहीं हैं पर मनुष्य ने भी वही कष्ट कह सुनाये जो अन्य प्राणियों ने कहे थे। पितामह बहुत दुःखी हुआ और बोले तात! मनुष्य शरीर, मनुष्य का हृदय, मनुष्य की आत्मा देने के बाद मेरे पास कुल एक उपदेश बचा है-जाओ और अपनी सब बुराइयों ठीक करो तो तुम्हारे सब कष्ट दूर होंगे, और कोई उपाय नहीं।


(१५) कर्तव्य परायणता—मानव जीवन की आधारशिला

प्रश्न ——
(१) आकाश में अधर में लटके हुए ग्रह नक्षत्र किस कारण गिर नहीं पाते? (२) मनुष्य जीवन की स्थिरता एवं प्रगति का आधार क्या है? तथा उसको भुला देने से क्या हानियाँ हो सकती हैं। (३) अपने ही शरीर के प्रति हमारी कर्तव्य परायणता को हमें किस प्रकार निबाहना चाहिए? (४) परिवार के प्रत्येक सदस्य की क्या-क्या जिम्मेदारियाँ परिवार के प्रमुख पर होती है। (५) परिवार के आनंद को कौन ले सकता है। (६) धन का उपार्जन किन गुणों के होने पर मनुष्य कर सकता है? (७) सार्थक सम्पन्नता का लाभ किस व्यक्ति को प्राप्त होता है? (८) गैर जिम्मेदार व्यक्ति किस प्रकार हानि कारक है? (९) शासन तन्त्र की गैर जिम्मेदारी ने भारत देश को किस तरह हानि पहुँचाई है? (१०) समाज के सदस्य किस प्रकार समाज के लिए हानि पहुँचाते हैं?

कथाएँ ——
(१) तब रतलाम के शासक श्री सज्जन सिंह थे। किसी अपराध में श्री श्रीनिवास शास्त्री को सिपाहियों ने पकड़ लिया। संयोग से मुकदमा जिस अदालत में गया उसके न्यायाधीश श्री शास्त्री के ही पुत्र थे। कानून के अनुसार पुत्र ने श्री शास्त्री को अपराधी पाया अतएव उन्हें ६ माह की सजा और ५००) रुपये आर्थिक दण्ड की सजा सुना दी। उनकी माँ इस पर पुत्र से बिगड़ी तो उन्होंने कहा-माँ जब सत्ताधिकारी ही न्याय न करेंगे तो सामान्य प्रजा का क्या होगा। महाराज ने सारा समाचार सुना तो बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने पिता को कैद मुक्त करा दिया और पुत्र को बड़ा स्थान दिया।
(२) उदयसिंह तब छोटे थे इसलिये उनके बड़े न होने तक के लिए बनवीर को राज्य का उत्तराधिकारी सौंप दिया गया पर उसके मन में लोभ आ गया उसने उदयसिंह और विक्रमसिंह और मार डालने का निश्चय किया।
उदयसिंह की माँ का देहान्त हो चुका था उनका पालन-पोषण पन्नाधाय ने किया था। पन्ना का अपना पुत्र भी था जो उदयसिंह के साथ ही रहता था। एक दिन बनवीर ने विक्रम सिंह की हत्या कर दी पन्ना को इसका पता चला तो उसने उदयसिंह को वहाँ से सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। क्रोध से भरा बनवीर उसके पास पहुँचा तो उसने अपने बच्चे को ही उदयसिंह बताकर उसका शीश कटा दिया पर कर्तव्य पर आँच नहीं आने दी।
(३) पृथ्वीराज युद्ध क्षेत्र में मूर्छित पड़े थे उनके समीप ही उनके प्रधान सेनापति संयमराय भी घायल अवस्था में पड़े थे। रात हो चली थी। संयमराय ने देखा कुछ भेड़िये और सियार सम्राट पृथ्वीराज की ओर लपक रहे हैं। वे सम्राट को शिकार बनायें इससे पूर्व ही संयमराय ने अपने शरीर का माँस काटकर गीदड़ों की ओर फेंका। गीदड़ उसी माँस को खाने लगे। जब तक एक टुकड़ा समाप्त होता तब तक संयमराय शरीर काट कर दूसरा टुकड़ा फेंक देते इस तरह उन्होंने गीदड़ों को महाराज के शरीर से तब तक दूर ही रखा जब तक सैनिक वहाँ आकर मूर्छित पड़े महाराज को उठा नहीं लें गये। आज पृथ्वीराज अमर हैं पर उनकी नीति के साथ अपने अद्वितीय त्याग के कारण संयमराय का यश भी जुड़ा हुआ है और युगों तक जुड़ा रहेगा।
(४) पाण्डव तक अज्ञातवास में थे। एक दिन एक ब्राह्मणी के घर रुके उसे दुःखी देखकर भीम ने दुःख का कारण पूछा। ब्राह्मणी ने बताया इस नगर में एक भयंकर दैत्य रहता है। उसे प्रतिदिन नगर का एक व्यक्ति आहार के लिये भेजा जाता है। आज तो मेरे पुत्र की बारी है यह सोचकर दुःखी हो रहा हूँ कि आज वह मेरे इकलौते बेटे को ही खा जायेगा।
भीम जानते थे कि दैत्य को मारने से कौरवों को पता चल जायेगा कि यह कृत्य केवल भीम का है उसके फलस्वरूप फिर से १४ वर्ष वन में रहना पड़ सकता है तो भी वे न डरे और न कर्तव्य विमुख हुए। अपने को खतरे में डालकर भी उन्होंने उस दैत्य का वध कर डाला।
(५) एक सुअर के शिकार पर महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह में झगड़ा हो गया दोनों ने तलवारें म्यान से निकाल लीं। राज पुरोहित ने देखा राजवंश का अन्त हुआ चाहता है फलतः वे दौड़ कर दोनों के बीच खड़े हो गये तलवारें दोनों ओर से चल चुकी थीं राजपुरोहित का शीश धड़ से अलग हो गया पर वे मरते-मरते भी सिखा गये कि परस्पर संघर्ष में अपनी ही हानि है।
(६) इधर सरदार चूड़ावत विवाह करके लौटा उधर औरंगजेब ने मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी। जब सारे राजपूत युद्ध के लिए चल पड़े तब चूड़ावत इस मोह में पड़ा था कि वह अपनी नव-विवाहिता को छोड़ कर युद्ध में जाये या नहीं। हाड़ा रानी को पता चला कि मेरे आकर्षण के कारण सरदार कर्तव्यच्युत हो रहे हैं तो उसने अपना सिर काटकर एक सिपाही के हाथ सरदार के पास भेज दिया। सरदार ने रानी का कटा सिर देखा तो उसके शरीर मे बिजली कड़क उठी। सारी द्विविधा मिट गई और ऐसा घोर युद्ध किया कि मुगलों को लेने के देने पड़ गये।
(७) रात के बारह बजे एक सेनापति ने सैनिक को सोते से जगाकर पूछा तुम्हें इसी समय शत्रु के मोर्चे पर भेजा जाये तो-तो मैं इसे अपना परम सौभाग्य मानूँगा ‘‘सैनिक ने उत्तर दिया।’’ सेनापति बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला तुम कहीं भी पराजित नहीं हो सकते। यह सैनिक और कोई नहीं नेपोलियन बोनापार्ट था जो नियम कर्तव्यों का भली-भाँति पालन करने के कारण २३ वर्ष की आयु में ही ब्रिगेडियर जनरल बना दिया गया था।


(१६) असत्य व्यवहार—सद्भावना व सामाजिकता पर कुठाराघात

प्रश्न ——
(१) मनुष्य का सर्वप्रथम गुण कौन सा है? २. सज्जनता की परख क्या है? ३. मिथ्या बोलने से क्या हानि है असत्य कितने प्रकार का होता है। ४. प्रतिष्ठा किसकी स्थिर रहती है? ५. धन क्यों निन्दनीय है? ६. कायर किसे कहा जाना चाहिये? ७. ठगने वाला अधिक घाटे में कैसे रहता है? (८) सिद्ध कीजिये ‘‘दूसरों को धोखा देना अपने आपको धोखा देना है।’’ ९. बहादुरी कहाँ से प्रारम्भ होती है? १०. झूठ को सबसे बड़ा पातक क्यों माना गया है?

कथाएँ ——
(१) एक अंग्रेज युवती ने इटली में घड़ी खरीदी। इंग्लैण्ड आने पर मालूम हुआ उसे ठग लिया गया उसने इस बात का उल्लेख करते हुए इटली के अधिनायक मुसोलिनी को एक पत्र लिखा! मुसोलिनी ने अपने देशवासी द्वारा धोखा देही की क्षमा याचना की, क्षतिपूर्ति के पैसे भी भेज दिये। कुछ दिन पीछे दूसरा पत्र दुकानदार का मिला जिसमें क्षमा याचना के साथ लिखा था-मुझे अपने कृत्य पर बड़ी लज्जा है। मेरी दुकान सील बंद कर दी गई है जब तक आप सिफारिश नहीं करेंगी दुकान नहीं खुल पायेगी। युवती ने अनुभव किया राष्ट्रों के चरित्र ऐसे ही सुरक्षित रखे जा सकते हैं उसने सिफारिशी पत्र लिख दिया।
(२) बम्बई के एक डॉक्टर ने एक मरीज को आम का अचार खाने की सलाह दी और कहा जब अचार लाना तो मुझे दिखाकर जाना। मरीज थोड़ी देर में एक शीशी लेकर लौटा और डॉक्टर को दिखाया डॉक्टर ने सारा अचार फिंकवा दिया और कहा-अच्छा होना है तो विलायती अचार खाओ, हिन्दुस्तानी कंपनियाँ तो अचार में भी मिलावट करने से नहीं चूकतीं। पास ही खड़े एक अचार वाले ने यह सुना तो उसका दिन धक से रह गया। हिन्दुस्तान में विदेशी माल की साख? उसने उस दिन से शुद्ध और उम्दा अचार बनाकर बेचने का निर्णय किया। उस अब्दुल हुमेन की ईमानदारी ऐसी फली कि आज उसके अचार की धूम सारी दुनियाँ में है।
(३) तीन चारों ने चोरी में बहुत सा धन प्राप्त किया। घर लौट रहे थे तब मार्ग में उन्हें भूख लगी। एक भोजन लेने गया, दूसरा पानी, तीसरा अकेला धन के पास रहा। तीनों के मन में पाप आ गया कि क्यों न दोनों को मारकर धन हड़प कर लिया जाये। फलतः खाना लेने गया था वह खाने में विष मिला लिया, पानी वाला पानी में, इधर जो धन के पास बैठा था उसने एक-एक कर दोनों को तलवार से काट कर फेंक दिया। अकेला रह गया तो सोचो पहले खाना खा लूँ, तब चलूँ यह सोचकर वह खाना खाने बैठा और विषाक्त होने के कारण खुद भी वहीं ढेर हो गया।
(४) गाँधीजी स्कूल देर से पहुँचे अध्यापक ने कारण पूछा तो उन्होंने बताया बादल होने के कारण समय का पता नहीं चल पाया। इस उत्तर से अध्यापक सन्तुष्ट न हुआ उसने उन पर एक आना जुर्माना कर दिया। इस पर गाँधीजी रोने लगे। लड़कों ने कहा-अरे तुम एक आने के लिये रो रहे हो। गाँधीजी थे तो बालक पर बोले-मैं एक आने के लिये नहीं रो रहा इसलिये रो रहा हूँ कि मुझे झूठा समझा गया।
(५) दो भाई थे बँटवारा हुआ तो एक ने सट्टेबाजी में अपार धन कमाया, दूसरा खेती करके गुजारा करने लगा। एक दिन गरीब भाई के स्त्री ने कहा-देखो तुम्हारे भैया ने कितनी सम्पत्ति कमाई है और तुम कुछ न कर सके। उन दिन पाँसा कुछ ऐसा पलटा कि वह सट्टे में सब कुछ हार कर भिखारी बन गया जब कि पहले वाले के पास अब भी अपनी सम्पत्ति सुरक्षित थी। बेईमानी की कमाई देर तक नहीं टिकती।
(६) श्री चिमनलाल सोतलवाड़ बम्बई की किसी फर्म में काम करते थे। एक मामले में बेचने के लिये एक आदमी उनके पास आया और एक लाख रुपये की रिश्वत देने लगा। पर श्री सीतलवाड़ ने उसे अस्वीकार कर दिया। उस व्यक्ति ने कहा-समझ लीजिये इतनी बड़ी रकम कोई देगा नहीं। श्री सीतलवाड़ हँसे और बोले-देने वाले तो बहुत होंगे पर इनकार करने वाला तुम्हें कोई मुझ जैसा ही मिलेगा। यही सीतलवाड़ एक दिन बम्बई विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए।

 

 

 


(१८) हँसती और हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है

प्रश्न ——
(१) वह क्या वस्तु है जो धन दौलत की जगह दूसरे को दे सकते है? जिससे सन्तोष व पुण्य दोनों प्राप्त हों? (२ )) प्रसन्न रहने के दो आधार है? (३) क्या साधन सम्पन्न और अमीर ही केवल प्रसन्न रहते हैं? यदि नहीं तो समझायें? (४) व्यक्ति अपने को यदि अप्रसन्न समझता है तो क्यों? (५) प्रसन्नता किस प्रकार प्राप्त किया जा सकती है? (६) किस प्रकार की मनःस्थिति वाला व्यक्ति प्रसन्न रह सकता है? (७) किस प्रकार की मनःस्थिति वाला व्यक्ति अप्रसन्न रहते है? (८) हमेशा हँसते-हँसाते रहने वाले व्यक्ति खुद को तथा परिवार को किस प्रकार लाभ पहुँचाते हैं? (९) हँसना किस प्रकार अमीरों की दौलत से भी बढ़कर हैं?

कथाएँ ——
(१) एक बार गाँधीजी से एक लड़का मिलने आया। गाँधीजी नियमित रूप से प्रतिदिन घूमने जाया करते थे, बातचीत के लिये लड़के को साथ ले लिया। उन्होंने पूछा-तुम कौन लोग हो-अग्रवाल उत्तर मिला तो वे हँस कर बोले-अग्रवाल तो मैं हूँ आगे-आगे चल रहा हूँ तुम तो पीछे चलने वाले ‘‘पिछवाल’’ हो। यह सुनते ही साथ में चलने वाले सभी लोग हँस पड़े।
(२) एक बार पत्रकारों की घिरी भीड़ में गाँधीजी से एक विदेशी पत्रकार ने पूछा-आपको विश्वास है कि मृत्यु के बाद आप स्वर्ग जायेंगे? गाँधीजी मुस्कराए और बोले-मालूम नहीं स्वर्ग जाऊँगा या नरक, पर जहाँ भी जाऊँगा आप लोग वहाँ अवश्य होंगे।
(३) संत सुकरात की पत्नी बड़े कर्कश स्वभाव की थी। एक दिन सुकरात अपनी बैठक में सम्भ्रान्त लोगों से आवश्यक मंत्रणा कर रहे थे उधर उनकी स्त्री को उन्हें निठल्ले बैठना अखर रहा था। पहले तो वे सभी को गालियाँ देती रहीं पर किसी न उधर ध्यान नहीं दिया इस पर वे और भी क्रुद्ध हो उठीं और जिस गन्दे पानी से बर्तन धो रही थीं वहीं उठ कर सभी लोगों पर पटक दिया। जब तक दूसरे लोग कुछ कहें, सुकरात ने पत्नी की ओर देखा-थोड़ा मुस्कराये और बोले-भाइयों मैंने तो सुना था जो बादल गरजते हैं वे बरसते नहीं पर आज तो बादल गरज भी रहे हैं और बरस भी। यह सुनते ही ऐसे कह कहे छूटे कि लोग हँसी के मारे लोट-पोट हो गये।
केरल के भूतपूर्व मुख्य मंत्री श्री नम्बदरीपाद से एक पत्रकार ने पूछा-आप हमेशा हकलाते हैं नम्बूदरीपाद बोले-जी नहीं केवल बोलते समय हकलाता हूँ।
(४) एक बार एक अमेरिकन दम्पत्ति बापू से मिलने आये बोले-बापू जी आप अमेरिका कब चल रहे हैं वहाँ के लोग आप के लिये पागल हो रहे हैं। बापू मुस्कराये और बोले-अरे तुम क्या मुझे पागल खाने ले चलने आये हो। चारों ओर हँसी फूट पड़ी।
(५) एक बार एक स्त्री आई और बर्नार्ड शा के सामने ही उनकी आलोचना करती हुई बोली-आपकी यह रचना बहुत खराब है मुझे बिलकुल पसन्द नहीं आई। उसी तेजी में बोलते हुए बर्नार्ड शा ने कहा-बहन जी आप बिलकुल ठीक कहती हैं पर मुसीबत यह है कि लोग न तो आपकी बात मानते हैं और न ही मेरी।
(६) तुकाराम की पत्नी बड़े कर्कश स्वभाव की थीं। एक दिन तुकाराम को किसी मित्र ने गन्ने दिये। तुकाराम गन्ने लेकर चले तो रास्ते भर लड़के गन्ने माँगते और वे गन्ने बाँटते रहे। रह गया गन्ने १ तुकाराम उसे ही लेकर घर पहुँच। उनकी पत्नी ने एक गन्ना देखा तो आग बबूला हो उठीं वह गन्ना उठा कर तुकाराम पर दे मारा। गन्ना बीच से दो टुकड़े हो गये। तुकाराम ने दोनों टुकड़े उठाये और हँस कर बोले-जो एक टुकड़ा तुम खाओ एक मैं, इस गजब की सहिष्णुता और प्रेम भाव पर पत्नी पानी-पानी हो गई और अपना कटु स्वभाव छोड़ दिया।
(७) आइन्स्टीन के पास तीन चश्मे देखकर एक सज्जन ने पूछा-आप तीन चश्मा क्यों रखते हैं। आइन्स्टीन बोले-एक दूर की वस्तुएँ देखने के लिये दूसरे से पास और तीसरा इन दोनों को ढूँढ़ने के लिये।
(८) प्रसिद्ध शायर शौकत थानवी एक मुशायरे में भाग ले रहे थे। भारी दाढ़ी वाले अनवर शाबरी जब शेर पढ़ने लगे तो फोटोग्राफर फोटो खींचने लगे। उन्होंने गज़ल पढ़ना रोककर पूछा-भाई मेरी फोटो खींचकर क्या करोगे। फोटोग्राफर कुछ कहे इससे पूर्व ही थानवी बोले-बच्चों को डराया करेंगे? फिर क्या था खूब कह-कहे लगे।
(९) सेट जमनालाल भारी भरकम शरीर के थे एक दिन बोले बापू-आप मुझे गोद ले लीजिये गाँधीजी बोले-ठीक है, तुम मुझे गोद में लेकर खिलाया करना।


(१९) अपना ही नहीं, कुछ समाज का भी हित साधन करें

प्रश्न ——
(१) अन्य पशुओं से मनुष्य आर्थिक, निवास, एवं आहार के आधारों पर अलग है। (२) मनुष्य किस तरह सामाजिक प्राणी है? (३) सामाजिक जीवन जीने के लिये मनुष्य को क्या करना चाहिये? (४) समाज के कई ऋण हमारे पर हैं इसे चुकाने के लिये हमें क्या करना चाहिये? (५) क्या हम अपना सारा समय, सारी सम्पत्ति देकर समाज का भला कर सकते हैं? (६) सामाजिक जीवन के उत्कर्ष के लिये हमें क्या करना होगा? (७) आज के सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी सेवा क्या है? (८) विचार क्रान्ति के आदर्श वारी विचारधारा का प्रतिपादन करने के लिए किस प्रकार से कार्य-किया जाना चाहिये? (९) समय की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता शिक्षा के प्रचार के लिये हमें किस तरह अपना कर्तव्य पूरा करना होगा? (१०) समाज के हित में हित में विचार गोष्ठियों का आयोजन किस हद तक अपना महत्त्व रखता है।

कथाएँ ——
(१) एक शिष्य दाँया पैर दबाता दूसरा बाँया। संयोग वश गुरु ने करवट ली तो दाहिना पैर बायें पैर के ऊपर चढ़ गया। बायें पैर वाले शिष्य ने गुस्से में आकर डंडा उठाया और दाहिने पैर को पीटना प्रारम्भ कर दिया। दूसरा शिष्य भला इसे कैसे सहन करता उससे बायें पैर की पिटाई शुरू कर दी। मना करते-करते दोनों पैरों की अच्छी खासी धुनाई हो गई गुरु ने कहा-मूर्खों देखते नहीं पैर दायें-बायें हैं तो क्या? हैं तो वह मेरे ही शरीर के अंग। पास ही खड़े अन्य संत ने अपने शिष्यों से कहा-तात मनुष्य शरीर की भाँति संसार के सभी लोग ईश्वरीय सत्ता के अभिन्न अंग हैं सब के हित का ध्यान रखना ही सच्ची आस्तिकता है।
(२) अमेरिकन विद्वान वैंजामिन फैंकलिन को अख़बार निकालने के लिये बीस डालर कम पड़ रहे थे। उन्होंने २० डालर एक मित्र से उधार लिये। अख़बार अच्छी तरह चल निकला तो वे २० डालर वापस करने मित्र के पास पहुँचे। मित्र ने कहा फैंकलिन जरूरतमन्दों की सहायता पर समाज टिका हुआ है। मैंने तुम्हें कर्ज नहीं दिया यदि देना ही है तो आप यह २० डालर किसी निर्धन को दे दीजिये। वैज्ञानिक ने ऐसे ही किया। कहते हैं यह २० डालर अभी भी अमेरिकन में एक से दूसरे जरूरत मन्द के पास पहुँच कर सहायता करते रहते हैं इस धन को कोई पास नहीं रखता।
(३) अणु वैज्ञानिक नील्स बोहर ने प्रतिज्ञा की कि वे अपनी बौद्धिक सामर्थ्य का उपयोग केवल मानव कल्याण में ही करेंगे। अभी प्रतिज्ञा किये कुछ ही दिन बीते थे कि उन्हें नाजी पकड़ ले गये और अणु अस्त्र बनाने का दबाव डालने लगे। उन्होंने पहले तो प्रलोभन दिये पर जब नीलस बोहर नहीं झुके तो उन्हें भूखा रखा, मारा, पीटा और मशीनों में बाँधकर खिंचवाया तक पर वे अपने प्रण से जरा भी विचलित न हुए। अन्त में मछुआरों ने उन्हें कोपेन्हेगेन से अमरीका पहुँचाया। वहाँ वे आजीवन मानव की भलाई के काम में लगे रहे।
(४) बेंजबुड बन नेताओं से समझौते के लिए भारत पधारे। गाँधीजी से भेंट के दौरान उन्होंने व्यंग किया आप तो धार्मिक व्यक्ति हैं राजनीति में क्यों फँस गये? गाँधीजी बोले-धार्मिक व्यक्ति का अर्थ होता है अधर्म से लड़ने वाला फिर वह अधर्म चाहे रहन-सहन का हो या विचारों का अथवा राजनीति का। आज राजनीति अधर्म पर है पहले उसे ठीक करेंगे पीछे अपनी अन्य सामाजिक बुराइयाँ भी? बेंजबुड बन इस कथन से बहुत प्रभावित हुए।
(५) श्रावस्ती में भयंकर अकाल पड़ा। निर्धन लोग भूख से मरने लगे। भगवान बुद्ध ने सम्पन्न व्यक्तियों को बुलाकर कहा भूख-पीड़ितों को बचाने के लिये कुछ उपाय करना चाहिये। सम्पन्न व्यक्तियों की कमी न थी पर कोई कह रहा था मेरा तो सब खर्च हो गया कोई कह रहा था मुझे घाटा हो गया फसल ही पैदा नहीं हुई आदि। उस समय सुप्रिया नामक लड़की खड़ी हुई और बोली मैं दूँगी सबको अन्न। लोगों ने कहा-लड़की तू तो भीख माँगकर खाती है दूसरों को क्या खिलाएगी। सुप्रिया ने कहा-हाँ मैं आज से इन पीड़ितों के लिये घर-घर जाकर भीख माँग-कर लाऊँगी पर किसी को मरने न दूँगी। उसकी बात सुनकर दर्शक स्तब्ध रह गये और सबने ही धन देना प्रारम्भ कर दिया।
(६) बम्बई में एक व्यापारी ने प्रसिद्ध जौहरी राम-चन्द्र से सौदा किया। पेशगी देकर माल सातवें दिन उठाने का वादा किया। लिखा पढ़ी हो गई पर सातवें दिन तक भाव इतने बढ़ गये कि उसकी कीमत चुका सकना व्यापारी के लिये सारी सम्पत्ति बेचकर भी संभव न था। वह दुःखी जेल जाने की तैयारी में बैठा था तभी रामचन्द्र को इसका पता चला वे खुद व्यापारी के घर गये और लिखा पढ़ी का कागज फाड़ते हुए कहा-मेरी माँ ने मुझे दूध पीना सिखाया है खून पीना नहीं।
(७) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर को शिक्षा विभाग में ५००) मासिक की सर्विस मिल गई। पर पहले ही महीने ५०) खर्च करके जब उनने ४५०) बचाकर उन्हें शिक्षा प्रसार कार्यों के लिये दे दिया तो एक अँगरेज ने पूछा वेतन आपकी सुख-सुविधा के लिये मिलता है फिर अपने लिये इतना कम खर्च क्यों? ईश्वरचंद्र विद्यासागर बोले महाशय! यह सारा समाज ही मेरा घर है। मुझे यार है मैंने कितने कष्ट उठाकर विद्या पाई है अब मेरा यह कर्तव्य है कि मेरे जो भाई इस अभाव में पिछड़ रहे हैं। उनके लिये कुछ करूँ। वे अपनी कमाई आगे भी शिक्षा प्रसार में खर्च करते रहे।
(८) वैज्ञानिकों का अनुमान था कि रेडियम कैंसर का इलाज हो सकता है पर इसके लिये प्रयोग की आवश्यकता थी पर इस प्राण-घातक प्रयोग के लिये कोई तैयार नहीं हुआ। एना रावर्ट्स ने सुना तो वे वैज्ञानिकों के पास गई और बोलीं-एक मेरे मर जाने से यदि संसार का भला हो सकता है तो मैं सहर्ष प्रस्तुत हूँ। उनके ही त्याग का फल है कि आज संसार के लाखों कैन्सर रोगी इस इलाज से बच जाते हैं।
(९) महर्षि दधीचि की पैनी दृष्टि से इन्द्र छिप न सके फिर भी उन्होंने कहा-ब्राह्मण यह देवत्व की रक्षा का सवाल है इसलिये मैं आत्मोत्सर्ग के लिये प्रस्तुत हूँ यह कहकर उन्होंने देह से अपने प्राण निकाल लिये और अपनी हड्डियाँ वज्र बनाने हेतु दान कर दीं।


(२०) सज्जनता व मधुर व्यवहार—मनुष्यता की पहली शर्त

प्रश्न ——
(१) मित्रों की संख्या बढ़ाने का सर्वोत्तम उपाय कौन सा है? (२) मनुष्य का वास्तविक बड़प्पन किसमें है? (३) कटु व्यवहार की कैसी प्रतिक्रिया होती है? (४) मनुष्यता का सच्चा स्वरूप किसमें है? (५) संभाषण में शिष्टाचार के नियम बताइये। (६) अपरिचित व्यक्ति से मिलने पर कैसा व्यवहार करना चाहिये? (७) बच्चों को शिष्टाचारी बनाने का उपाय क्या है? (८) जीवन की प्रथम परीक्षा में उत्तीर्ण होने का उपाय क्या है? (९) सज्जनता की सामान्य परिभाषा क्या है? (१०) आदर्श जीवन के कौन-कौन से गुण अपनाना अनिवार्य है?

कथाएँ ——
(१) महाराज अम्बरीष पर क्रुद्ध दुर्वासा उन्हें शाप देने की तैयारी करने लगे। क्रोध किसी को भी अच्छा नहीं लगता फिर भगवान् ही को क्यों अच्छा लगता। उन्होंने अम्बरीष की रक्षा और दुर्वासा को अनुचित क्रोध करने का दंड देने के लिये अपना सुदर्शन चक्र भेजा। दुर्वासा बड़े-बड़े देवताओं की शरण गये पर सबने यही कहा क्रोधी व्यक्ति को पास रखना अपना अहित करना है। अन्ततः दुर्वासा ने अम्बरीष से क्षमा माँगी और तब कहीं सुदर्शन के कोप से बचे। दुर्वासा ऋषि थे पर आवेश ग्रस्तता के दुर्गुण ने उनकी भी यह दुर्गति करा दी।
(२) एक जंगल में एक शेर रहता था। उसे अपनी शक्ति का बड़ा घमंड था। उसके त्रास से तंग आकर एक खरगोश ने उसे मार डालने का निश्चय किया। खरगोश ने जिस रास्ते से सिंह आया जाया करता वहीं एक छोटी सी गुफा बनाई जिनमें दो दरवाजे रखे एक दरवाजा तो पास ही था दूसरा बहुत दूर जाकर निकलता था।
शेर उधर से निकला तो खरगोश ने भीतर से गाली दी। अहंकारी शेर तड़पा पर उस नन्ही सी माँद में घुसना उसके बस की बात नहीं थी। खरगोश उसे बार-बार गाली देता शेर गुस्से में भरा उसे मार डालने को बैठा रहा। उधर खरगोश दूसरे रास्ते से निकल कर खाना खा आता और फिर माँद में आकर शेर को गाली देने लगता। अहंकारी शेर बदले की भावना से वहाँ सो हटा नहीं और तड़प-तड़प कर वहीं मर गया।
(३) डॉ० महेन्द्रनाथ सरकार अपनी कार से कहीं जा रहे थे। मार्ग में परमहंस स्वामी रामकृष्ण का आश्रम पड़ता था। जब वे पास से निकले तो एक व्यक्ति को शान्त चित्त बैठे देखा उन्होंने समझा माली है सो उससे फूल तोड़कर लाने को कहा उस व्यक्ति ने बड़ी प्रसन्नता के साथ फूल तोड़कर दे दिये। डॉ० महेन्द्रनाथ चले गये। दूसरे दिन वे परमहंस से मिलने गये तो यह देखकर अवाक् रह गये कि जिस व्यक्ति ने उन्हें बिना किसी अभिमान के आदर पूर्वक फूल दिये थे वह माली नहीं स्वयं रामकृष्ण परमहंस ही थे।
(४) सुप्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बड़े उदार थे यहाँ तक कि दूसरों की सेवा में ही वे कंगाल हो गये एक दिन तो उनके पास आवश्यक पत्र भेजने को भी पैसे न बचे तब एक मित्र ने पाँच रुपये दिये। कुछ दिन पीछे भारतेन्दुजी की आर्थिक स्थिति फिर सँभल गई। वे उन मित्र को जब भी आते जेब में पाँच रुपये रख देते। एक दिन मित्र महोदय बहुत नाराज हुए तो भारतेन्दुजी भरे हृदय से बोले-आपने गाढ़े समय मेरी सहायता की थी उस ऋण से तो मैं कभी भी उऋण नहीं हो सकता।
(५) आश्चर्य है द्रौपदी! सत्यभामा ने एक दिन पूछा-तुम पाँच पतियों को एक साथ वश में रखती हो और मैं कृष्ण अकेले को ही सन्तुष्ट नहीं कर पाती। दौपद्री बोली-बहन पति तो निःस्वार्थ और अहंकार रहित प्रेम से सन्तुष्ट होते हैं मेरे जीवन का इतना ही रहस्य हैं मैं अपने सभी पतियों को हृदय से प्रेम करती हूँ अहंकार दर्शन नहीं। सत्यभामा को अपनी भूल का पता चल गया। उस दिन के बाद फिर उन्होंने कभी भी घमण्ड नहीं किया।
(६) महाभारत युद्ध का पहला दिन दोनों सेनाएँ संग्राम के लिये आमने-सामने आ डटीं। युद्ध शुरू होने को ही था कि युधिष्ठिर रथ से उतर कर कौरवों की सेना में घुस गये और जाकर गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म आदि को प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लिया। इधर चिन्तित अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-भगवन् महाराज युधिष्ठिर ने गुरुजनों के प्रति हार्दिक सम्मान व्यक्त कर आधा महाभारत जीत लिया। आधा शेष रहा उसे जीतने के लिये अब तुम सब युद्ध प्रारम्भ करो।
(७) ऋषि कुमार सहस्रपाद से दूसरों को उपहास करने में बड़ा आनन्द आता। लोगों ने समझाया भी विनोद जब तक निर्दोष हो तभी तक ठीक रहता है किसी को बुरा लगे ऐसा उपहास नहीं करना चाहिये। सहस्रपाद ने सुनी अनसुनी कर दी। आश्रम में एक और ऋषि बालक कदर्भ रहते थे वह बड़े तपस्वी, नेक और सुशील थे पर उन्हें सर्प से बड़ा डर लगता था। एक दिन सहस्रपाद ने घास का सर्प बनाकर उन्हें डरा दिया। कदर्भ इतने डर गये कि मूर्च्छित होकर गिर पड़े। होश आने पर उन्होंने सहस्रपाद को शाप दे दिया जिससे उन्हें सर्प की योनि में जाना पड़ा।
(८) जापान के सम्राट हिरोहितों के १९ वर्षीय पौत्र हिमा शिकुनी ने ओलम्पिक खेलों के दौरान अपना नाम खिलाड़ियों को खाना खिलाने वाले बैरों में लिखाया। राज्य-परिवार के लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो राजकुमार ने उत्तर दिया-सेवा और सज्जनता द्वारा दूसरों को जो प्रेरणा दी जा सकती है वह पद और प्रतिष्ठा द्वारा नहीं दी जा सकती।


(२१) साहस जुटायें, औचित्य अपनायें

प्रश्न ——
(१) भय हमारी प्रगति में किस प्रकार बाधक है? (२) क्या भय की निरर्थक कल्पना करके मनुष्य अपना अहित कर रहा है? (३) अवरोध हमें किस प्रकार सज्जन बनाते हैं (४) प्रतिकूलता को अनुकूलता, निर्धनता को सम्पन्नता में बदलने के लिए कौन से प्रयत्न करने पड़ते हैं। (५) हिम्मत वाले की सभी कोई सहायता करते हैं किस तरह? (६) मनुष्य क्या प्रयत्न न करे तो ओछा का ओछा बना रहेगा? (७) अनुचित कही जाने वाली क्या दुष्प्रथाएँ हमारे पीछे लगी हैं? (८) अवांछनीय स्थितियाँ किस तरह बदली जा सकती हैं? (९) हिम्मत क्या है? इसे अपनाने से क्या लाभ होते हैं? (१०) किस दुश्मन ने हमारी मनोभूमि का ढाँचा ही बदल दिया है?

कथाएँ ——
(१) अकबर के सामने एक मुकदमा आया। एक पक्ष कहता था, जो ईश्वर की शरण में आता है ईश्वर उसी की सहायता करता है दूसरा पक्ष कहता था-जो अपनी सहायता आप करते है ईश्वर भी उसी की सहायता करता है। बीरबल से उत्तर माँगा गया इस पर उन्होंने कहा ——

आपु न रक्षा कर से ताको राखन हार।
जो आपनि रक्षा करे सो राखै करता॥


अकबर की समझ में बात नहीं आईं। कुछ दिन पीछे मराठों से युद्ध हुआ। उसमें एक सेना की कमान एक ऐसे सेनापति को दी गई जो ईश्वर पर विश्वास करता था उसे कोई अस्त्र नहीं दिया गया पर दूसरे को अस्त्र देकर भेजा गया। पहली टुकड़ा तो हार कर वापस लौटी जब कि अपनी सहायता आप करने वाला सेनापति विजयी होकर लौटा।
(२) श्रावस्ती का मृगारी श्रेष्ठ धन की एषणा में ही डूबा रहता। एक दिन भोजन परोस कर उसकी पुत्र वधू ने पूछा-तात भोजन कैसा है कोई त्रुटि तो नहीं? मृगारी श्रेष्ठ ने कहा-आयुष्यमती तुमने मुझे सदैव ताजा और स्वादिष्ट भोजन दिया है। इस पर पुत्र वधू ने हँसकर कहा-तात यही तो आपकी भूल है मैं तो तुम्हें सदैव बासी भोजन देती रही। इस पर मृगारी श्रेष्ठ चौंके और बोले धन की कमाई के कारण मैंने तो इधर कभी ध्यान ही नहीं दिया। पुत्र वधू ने कहा-आर्य इसी तरह मनुष्य का जीवन निरर्थक कार्यों में बीत जाता है और सच्चाई का पता नहीं चल पाता। मृगारी श्रेष्ठ ने भूलमानी और उस दिन से धर्म-कर्म में रुचि लेने लगा।
(३) गोपाल कृष्ण गोखले को गणित में सबसे अधिक नम्बर पाने के लिए इनाम दिया गया। इनाम पाकर उन्हें प्रसन्न होना चाहिए था पर वे रोने लगे और इनाम वापस करने लगे तो अध्यापक ने पूछा गोखले रो क्यों रहे हो? गोखले ने एक लड़के की ओर इशारा करते हुए कहा-यह इनाम इन्हें मिलना चाहिए मैंने तो सवाल इनसे नकल किये। अध्यापक ने इनाम उन्हीं को सौंपते हुए कहा अब यही इनाम तुम्हारी सच्चाई के लिये दिया जा रहा है।
(४) जो भी शिष्य आता यही विश्वास दिलाता-भगवन् धर्म की स्थापना और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष से हम कहीं भी पीछे नहीं हटेंगे।
शिवजी को उतने से सन्तोष नहीं हुआ। परीक्षा के लिये वे शिष्यों के सामने ही अकारण पार्वती जी को भला-बुरा कहने लगे। पर शिष्यों में से एक ने भी उनका प्रतिरोध नहीं किया। तब शिष्यों के मध्य खड़े परशुराम जी आगे बढ़े और शिवजी के सिर पर फरसा चला ही तो दिया।
अन्य शिष्य परशुराम जी को बुरा भला कहने लगे तो शिवजी बोले-बस करो! देख ली तुम्हारी निष्ठा, जो हिम्मत और सच्चाई परशुराम ने दिखाई तुममें से उसका एक को भी तो साहस नहीं हुआ।
(५) रवीन्द्रनाथ टैगोर एक परीक्षा में कम नंबरों से पास हुए। दूसरी परीक्षा के लिये उन्होंने जो तोड़ श्रम किया और परीक्षा में अच्छे नम्बर पाये। शिक्षक को सन्देह हुआ कि श्री टैगोर ने कहीं नकल तो नहीं की इस पर टैगोर ने कहा-श्रीमान् मेरी योग्यता अविश्वस्त रह जाये यह में हरगिज नहीं चाहता। उन्होंने फिर से परीक्षा दी और अपनी योग्यता प्रमाणित कर दिखाई।


(२२) आलस्य त्यागें, सुसम्पन्न बनें

प्रश्न ——
(१) मानव-जीवन की महान संभावनाएँ किसमें छिपी हैं! (२) विजय लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय बताइये? (३) सफलता की कुँजी क्या है? (४) उज्ज्वल भविष्य कैसे बन सकता है? (५) मानव का सबसे बड़ा शत्रु कौन है? उनसे कैसे बचा जाय? (६) महान बनने का सर्वश्रेष्ठ साधना क्या है? (७) प्रगति का रहस्य क्या है? (८) निरन्तर प्रगति एवं उन्नति का ‘गुरु मन्त्र क्या है?’ (९) सिद्ध कीजिये कि आलसी हरामखोर या परिश्रमी प्रतिष्ठावान होता है। (१०) समृद्ध एवं समुन्नत बनने का रहस्य क्या है?

कथाएँ ——
(१) स्वामी सत्यदेव परिव्राजक अमरीका के सिपेटेल नगर में घूम रहे थे। एक लड़का अख़बार बेच रहा था। स्वामी जी ने अख़बार खरीदते समय उसकी वेशभूषा देखकर कहा तुम तो किसी सम्पन्न घर के से लगते हो फिर अख़बार क्यों बेचते हो। लड़के ने कहा-श्रीमान जी मेरे घर वाले सम्पन्न हैं क्या इसका मतलब यह है मुझे परिश्रम नहीं करना चाहिए। मैंने अपने ही-हाथों से कमा कर ५० डालर बैंक में जमा किये हैं स्वामी जी को कहते ही बना कि ऐसे न होते तो तुम लोग इतने समृद्ध कैसे हो जाते?
(२) तितली हँसकर बोली-मधुमक्खी बहन तुम्हारा जीवन भी व्यर्थ है दिनभर-काम से ही फुरसत नहीं। मेरी ओर तो देखो कैसे दुनिया का आनन्द ले रही हूँ। मधुमक्खी कुछ न बोली दिनभर काम में लगी रही। शाम को दोनों घर लौटी तो मधुमक्खी के पास मधु का ढेर जमा था पर तितली खाली हाथ थी।
(३) दक्षिण अफ्रीका में एक आन्दोलन के सिलसिल में एक सत्यग्राही को जोहान्स वर्ग की जेल में बंद कर दिया गया। जेल में जो काम दिया जाता अन्य साथी तो धींगा-मुश्ती करते पर वह वहाँ भी पूरा परिश्रम करते। कोई काम न मिलता तो वे पुस्तकें ही पढ़ा करते एक बार गवर्नर का मुआइना हुआ उसने पूछा-आपको कोई कष्ट तो नहीं है। वे बोले-और तो सब ठीक है पर यहाँ पूरी तरह काम नहीं मिलता-हैरान गवर्नर ने पूछा-यहाँ दूसरे लोग काम से जी-चुराते हैं तब भी आप काम क्यों करना चाहते हैं? उन्होंने उत्तर दिया-इसलिये कि कहीं मेरी जीवनी शक्ति नष्ट न हो जाये? गवर्नर बड़ा प्रभावित हुआ। यह व्यक्ति गाँधी जी थे।
(४) यूनान के महापुरुष डायोजनीज़ का नौकर बिना सूचना दिये कहीं भाग गया। तब वे अपने घर की झाडू-बुहारी से लेकर कपड़े धोने का काम स्वयं करने लगे। एक दिन एक मित्र ने कहा-आप इतना कष्ट क्यों उठा रहे हैं नौकर को ढूँढ़ मँगाइए। डायोजिनीज हँसकर बोले-भाई मेरा नौकर मेरे बिना रहता है और मैं उसके बिना न रह पाऊँ यह शर्म की बात है न? मुझे दासानुदास बनना स्वीकार नहीं।
(५) शैतान का संन्यास लेना सबको आश्चर्यजनक लग रहा था उधर शैतान जी अपनी नशेबाजी चुगली ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि सम्पत्तियों का दान कर रहे थे। एक डिबिया बची शैतान ने कुछ सोचकर उसे जेब में रख लिया।
इसमें क्या है? एक मनुष्य के यह पूछने पर शैतान ने बताया इसमें वह वस्तु है जिससे मैं अपनी सारी सम्पत्ति और विशेषताएँ पुनः प्राप्त कर सकता हूँ। ‘‘लेकिन बहुत आग्रह करने पर भी वह उसे दिखा नहीं रहा था तभी डिबिया जेब से खिसक गई और गिरकर खुल गई-लोगों ने देखा उसके भीतर आलस्य’’ बैठा हुआ था।
(६) जापान की एक अमरीकी फर्म के मालिक ने जापानियों को खुश करने के लिये सप्ताह में एक दिन की छुट्टी बढ़ा दी। इस पर जापानियों ने सत्याग्रह कर दिया। मालिक बड़ा हैरान हुआ-उसने सत्याग्रह-प्रमुखों से पूछा-भाई बात क्या है। क्यों सत्य ग्रह कर रहे हो-एक युवक बोला-एक दिन की छुट्टी बढ़ाकर आप हमारी परिश्रम की आदत बिगाड़ना चाहते हैं और हम पर अपव्यय, मटरगस्ती की बुराइयाँ लादना चाहते हैं। आखिर एक दिन की छुट्टी का आदेश फर्म मालिक को वापस ही लेना पड़ा।


(२३) समय का सदुपयोग—सफलता के लिए अमोघ साधन

प्रश्न ——
(१) मनुष्य जीवन की सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु क्या है? (२) हर क्षेत्र में सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचने का रहस्य क्या है? (३) जीवन में एकीकरण एवं केन्द्रीय करण की आवश्यकता क्यों है? (४) थोड़े समय में अभीष्ट प्रगति करने का मूल मन्त्र क्या है? (५) एण्डरसन ने संसार की सभी भाषा कैसे सीखी? (६) क्या कारण है कि कुछ लोग जीवन में महान बन जाते हैं जब कि उन्हीं परिस्थितियों में अन्य व्यक्ति सामान्य बने रहते हैं? (७) नियमित एवं निरन्तर काम करने से क्या लाभ है? (८) आदर्श दिनचर्या बनाइये? (९) लगन एवं मनोयोग से ही बड़े काम होते हैं? सिद्ध करें। (१०) फुरसत न मिलने का बहाना बे बुनियाद कैसे है? सिद्ध करें।

कथाएँ ——
(१) त्रिचनापल्ली के एक विद्यालय में प्रवेश के लिये छात्रों की परीक्षा ली गई। एक छात्र के प्रश्न पत्र देखकर परीक्षक ने उसे इकट्ठे दो कक्षाओं में पदोन्नति की सिफारिश की। पर उससे इनकार करते हुए लड़के ने कहा-श्रीमान् जी! मैं छलाँग नहीं लगाना चाहता क्रमवार उन्नति ही करना चाहता हूँ स्वल्प श्रम से मिलने वाली सफलता को ठुकराने वाला यह बालक ही भारत का महान् वैज्ञानिक श्री चन्द्रशेखर वैंकट रमन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(२) एक लड़के ने एक धनी व्यक्ति को देखकर धनवान बनने का निश्चय किया और उद्योग करने लगा। तभी एक दिन उसने एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ का गीत सुना। अब एक कुशल संगीतज्ञ बनने के लिए उसने उद्योग छोड़कर संगीत का अभ्यास प्रारम्भ कर दिया। फिर एक लेखक से भट हुई तो उसे पत्रकारिता में सबसे अधिक यश और सम्मान मानकर लेखन शुरू कर दिया। २४ वर्ष तक २४ धंधे बदले और वह युवक कुछ भी न सीख सका हाँ वानप्रस्थ का समय अवश्य आ गया पर उससे आत्म-कल्याण की साधना भी न करते बनी।
(३) एक राजा एक साधु के पास जाकर बोला-महाराज किसी काम के लिये उपयुक्त समय कौन सा है? यह कैसे जाना जाये। साधु क्यारी गोड़ते रहे बोले कुछ नहीं। राजा दूसरे दिन भी और वही प्रश्न किया। साधु फिर भी कुछ न बोलकर पौधे लगाते रहे। शाम को राजा फिर साधु के पास जाकर बोले-महाराज आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। पौधों को पानी लगाते हुए साधु बोले-पहले भी उत्तर दिया अभी भी दे रहा हूँ तुम समझते नहीं तो क्या करूँ। राजा ने समझा जो काम सामने है उसे अभी पूरा करना सबसे अच्छा अवसर है।
(४) चार्ल्स डिकन्स को निबंध लिखने का शौक था। वे उन्हें लिखते और फाड़ देते इसी बीच उन्हें कर्ज न चुका सकने के कारण जेल हो गई। जेल में सब सो जाते तब वे चुपचाप खिलते-लिखने का अभ्यास उन्होंने नहीं छोड़ा। एक दिन किसी ने इनका निबन्ध पढ़ा तो वह बहुत अच्छा लगा उसे एक पत्रिका में छपने भेज दिया। सम्पादक ने लेखक का नाम अज्ञात होने पर भी उस कलम की भूरि-भूरि प्रशंसा की फलतः डिकन्स का हौसला बढ़ गया अब वे प्रकाश में आ गये और विपुल धन तथा यश अर्जित कर दिखा दिया। समय का सदुपयोग कितनी कीमती वस्तु है।
(५) एक लड़के को पढ़ने को बहुत कहा जाता पर वह ध्यान ही नहीं देता किन्तु एक दिन अकस्मात् दुर्घटना हो गई उसमें एक टाँग टूट गई। अब इस लड़के के प्रति कोई सहानुभूति व्यक्त करने आता तो वह उससे जल्दी ही छुटकारा लेकर पढ़ने में लगा रहता। फिर उसने लेखनी उठाई तो विश्व-विख्यात साहित्यकार एच. जी. वेल्स के नाम से विख्यात हुआ।
व्यापार में हानि, उद्योग में घाटा, मुकदमें में हार, और लगातार चार-पाँच चुनावों के बाद भी जब अब्राहम लिंकन फिर सीनेट के चुनाव में खड़े हुए तो एक व्यक्ति ने पूछा-जब आपको कोई सफलता नहीं मिलती तो क्यों परेशान होते हैं लिंकन बोले-जब समय नहीं थकता तो हम अपने प्रयत्न से क्यों थके। लिंकन चुनाव तो वह भी हार गये पर एक दिन उन्हें अमरीका का राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य मिला।
(६) एक व्यक्ति सुकरात के पास आता और कभी कहता कल से दुकान शुरू कर रहा हूँ कभी कहता, खेती करूँगा, कभी समुद्री व्यापार की बात कहता और सफलता का आशीर्वाद माँगता। सुकरात हँस देते कुछ कहते नहीं। एक दिन वह मनुष्य सामने से फलों की टोकरी लिये आता दिखाई दिया, सुकरात दौड़कर गये और आशीर्वाद देकर बोले-भाई तुम खूब उन्नति करोगे। उस आदमी ने पूछा-मैं जिस आशीर्वाद के लिये पहले कई बार आपके पास गया उसे आज आप खुद देने आये, सुकरात बोले-हाँ भाई आज तुमने समय की पहचान जो कर ली।
(७) क्यूबा के एक गाँव में केवल एक ही युवक साक्षर था उसे भी प्रतिदिन शहर जाना पड़ता था पर लगन के धनी इस युवक ने शहर से लौटकर प्रतिदिन एक घंटा प्रौढ़ शिक्षण का क्रम बनाया और १० वर्ष में ५०० आबादी वाले सारे गाँव को साक्षर ही नहीं विचारशील लोगों का गाँव बना दिया।


(२४) अवरोध हमें अधीर न बनाने पाएँ

प्रश्न ——
(१) क्या आप बता सकते हैं कि क्यों ईश्वर ने सुविधा के साथ असुविधा और संतोष के साथ असंतोष को बनाया है। (२) केवल सुविधा संतोष अनुकूलता ही यदि बनाये गये होते तो उससे हमारी क्या हानि होती। (३) प्रगति का मार्ग संघर्ष होता है सिद्ध कीजिये। (४) यह हम किसी महान कार्य को कर रहे हैं और यदि कार्य में कोई रुकावटें आ जायें तो हमें क्या करना चाहिये। (५) जिन्हें केवल सफलता, केवल लाभ अनुकूलता ही चाहिये क्या वे इस संघर्ष शील संसार में अपने को दृढ़ बनाये नहीं रख सकते। (६) चिन्तित व्यक्ति और साहसी व्यक्ति में क्या अन्तर है स्पष्ट कीजिये? (७) क्या आप ऐसे कोई उदाहरण बता सकते हैं किसी व्यक्ति के सामने कई बार अवरोध आये पर वह आखिर में बराबर जीता हो। (८) इस संसार में संतोष और आनन्द का जीवन कौन व्यतीत कर सकते हैं। (९) ‘‘सफलता की बड़ी आशाएँ रखना’’ किस प्रकार हमारे लिये लाभदायक सिद्ध होगा।

कथाएँ ——
(१) श्री रफी अहमद किदवई का अपने एक मित्र से राजनीतिक विरोध हो गया। उन्हीं दिनों उन सज्जन की पुत्री का विवाह था। उन्होंने सबको निमंत्रण दिया पर किदवई जी को जान बूझकर निमंत्रण न दिया फिर भी किदवई जी विवाह में पहुँचे और कन्या को आशीर्वाद दिया। यह देखकर वह सज्जन आत्म ग्लानि और पश्चाताप से भर गये उन्होंने किदवई जी से निमंत्रण न देने की भूल पर क्षमा माँगी तो किदवई जी बोले-अपनी बेटी के विवाह पर भी कहीं निमन्त्रण की जरूरत होती हैं। इस पर तो उन सज्जन का हृदय पानी-पानी हो गया इस घटन से आपसी मनमुटाव भी दूर हो गया।
बिहार का एक किसान गाँधी जी के दर्शन करना चाहता था। तभी उसने सुना कि गाँधीजी बेतिया आ रहे हैं। वह रेलगाड़ी से बेतिया चल पड़ा। जिस डिब्बे में वह घुसा दुबला-पतला व्यक्ति सीट पर लेटा हुआ था। यद्यपि डिब्बे में बहुत जगह खाली पड़ी थी उठाते हुए बोला-ऐसे लेटे हो जैसे गाड़ी तुम्हारे बाप की हो’’ साथ से इशारा करके सबको चुप कर दिया। वह व्यक्ति वहीं से बगल में बैठकर गाने लगा-धन गाँधीजी महाराज दुखियों के दुःख मिटाने वाले’’ सब लोग मुस्करा रहे थे गाड़ी चल रही थी। बेतिया आया तो सब लोग गाँधीजी की जय कहकर उसी डिब्बे में घुस पड़े और उन सज्जन को फूल माला पहनाने लगे, किसान हक्का-बक्का रह गया और गाँधीजी के पैरों में गिरकर क्षमा माँगने लगा, गाँधीजी बोले-तुम्हारा कोई दोष नहीं मुझे ही नहीं लेटना चाहिये था।
(३) श्री विश्वनाथ शास्त्री कुछ प्रतिक्रियावादी ब्राह्मणों की आशंकाओं व तर्कों का उत्तर दे रहे थे। उनके अकाट्य प्रमाणों के आगे ब्राह्मण टिक नहीं पा रहे थे तभी प्रतिपक्षी दल के एक सदस्य ने शास्त्री जी की नाक में सुँघनी घुसेड़ दी। शास्त्री जी तनिक भी बिना उत्तेजित न हुए, नाक रगड़ी और बोले-थोड़ी देर के लिए यह प्रहसन भी खूब अच्छा रहा अब हमें फिर मूल विषय पर आ जाना चाहिए। शास्त्री जी की इस सहनशीलता के कारण ब्राह्मणों ने अपनी हार मान ली।
(४) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग ले रहे थे। घर के प्रबंधक श्री महेन्द्र प्रसाद का देहान्त हो जाने पर घर की देख रेख करने वाला न रह गया। कर्ज इतना बढ़ गया कि घर के शाल-दुशाले बिक जाने पर भी सारा ऋण १४ वर्ष में भर पाई हो पाया तब भी वे देश सेवा के कार्य से विमुख नहीं हुए।
(५) एक दिन क्रोध गुस्सा होकर बोला-यह संसार बहुत खराब हो गया है इसका नाश करके छोड़ूँगा। धीरे से शान्ति बोली-तुम्हें जल्दबाजी हैं इसलिए ऐसा सोचते हो-जो लोग मानते हैं कि भगवान् की सृष्टि हमेशा बनी रहेगी वे न तो ऐसा क्रोध करते हैं न ऐसी जल्दबाजी।
(६) पाण्डव अज्ञातवास कर रहे थे एक दिन उन्हें बेहद प्यास लगी, पानी के लिये नकुल को भेजा गया। नकुल एक सरोवर के पास पहुँचे जिसमें एक यक्ष रहता था। यक्ष वहाँ जो भी पहुँचता उसी से कुछ प्रश्न पूछता। जो प्रश्नों का उत्तर नहीं देता वह पानी नहीं पी सकता था।
यक्ष ने नकुल से भी प्रश्न किया पर नकुल बेहद प्यासे थे वे अधीर हो उठे और जैसे ही पानी पीने के लिये झुके शापवश अचेत होकर गिर पड़े। यही दशा सहदेव, भीम और अर्जुन की भी हुई अन्त में युधिष्ठिर गये और शान्तिपूर्वक यक्ष के प्रश्नों का उत्तर दिया, स्वयं पानी पिया, भाइयों को जिलाया और द्रौपदी के लिये भी जल ले आये।
(७) गड़रिये ने सभी भेड़ों को तो बाड़े में बन्द कर दिया पर जिस बच्ची भेड़ को वह कंधे पर उठा कर लाया था उसे नहलाया, धुलाया, हरी घास खाने को दी। पास की चौपाल में शिष्यों सहित ईसामसीह बैठे थे। उन्होंने पूछा-तात तुमने और भेड़ों को तो बन्द कर दिया इसी बच्चे से इतना प्यार क्यों? गड़रिया बोला-महाराज यह रोज भटक जाता है, इसे इसलिये इतना प्यार देता हूँ ताकि वह फिर न भटक जाये।
ईसामसीह ने शिष्यों की ओर मुड़कर कहा-तात प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर आते हैं यह तुम इस गड़रिये से सीखो।


(२५) आवेशग्रस्त न हों, शान्ति और विवेक से काम लें

प्रश्न ——
(१) शरीर में बुखार आने पर क्या-क्या लक्षण उत्पन्न होते हैं? तथा उससे क्या हानियाँ होती हैं? (२) मस्तिष्क को बुखार आ गया ऐसा हम कब कह सकते हैं। (३) आवेशित होने के कारण क्या हैं? (४) आवेशित होने से हम में क्या परिवर्तन हो जाते हैं? तथा इससे क्या हानियाँ होती हैं? (५) क्या आवेशित व्यक्ति अपने स्वतः को भी पहुँचाता है? यरि हाँ तो किस तरह? (६) हमें अपना स्वभाव सन्तुलित बनाये रखने के लिये क्या-क्या उपाय करने चाहिये? (७) दूरदर्शी और विवेकवान व्यक्ति की पहचान क्या है? (८) सामने वाले व्यक्ति से हमें क्रोध न करके किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये? (९) क्रोध करने से हमें शारीरिक कठिनाइयाँ क्यों होती हैं!

कथाएँ ——
(१) भगवान् बुद्ध एक ऐसे गाँव में पहुँचे जहाँ अधिकाँश प्रतिक्रियावादी ब्राह्मण रहते थे। एक आदमी को पता चला तो वह बुद्ध के पास पहुँचा और उन्हें गालियाँ बकने लगा। बुद्ध दूसरे लोगों से बात करते रहे। बड़ी देर तक गाली बककर वह ब्राह्मण चुप हो गया तो बुद्ध ने पूछा-महोदय आप किसी को कुछ देना चाहें और वह न ले तो क्या आप हर वस्तु फेंक देंगे। ब्राह्मण बोला नहीं-तब बुद्ध भगवान शान्ति और निश्चिन्तता से बोले-तो फिर मैं आपकी गालियाँ स्वीकार नहीं करता।
(२) बंगाल में कृष्ण नगर राज्य के महाराज ने श्री ताराकान्त की योग्यता व ईमानदारी से प्रभावित होकर उन्हें अपना सचिव नियुक्त किया। एक दिन राजा साहब किसी आवश्यक काम से बड़े सवेरे स्वयं ही राय साहब के घर पहुँचे। उन्होंने जाकर देखा कि उनका नौकर तो पलंग पर सोया है खुद रायसाहब नीचे जमीन में बिछी चटाई पर। धृष्टता के लिये वे नौकर को जगाकर डाँटने लगे तो रायसाहब की नींद टूट गई उन्होंने कहा-महाराज देर तक काम करने से थक कर यह गरीब मेरे बिस्तर पर सो गया तो क्या हुआ-राजा साहब राय साहब की शान्तचित्तता से प्रभावित हुए बिना न रह सके।
(३) आग बोली मूर्ख पानी, यहाँ से हट नहीं तो जलाकर नष्ट कर दूँगी। पानी कुछ नहीं बोला शान्त-चित्त अपने काम से लगा रहा। इस पर अग्नि और भी आग बबूला होकर झपटी पानी से टकरा कर आप ही नष्ट हो गई। यह है आवेशग्रस्त होने का परिणाम।
(४) एक व्यक्ति आया और शेख शादी से कहने लगा-श्रीमान् जी अमुक व्यक्ति आपको गाली दे रहा था। इस पर शेख शादी बिना किसी उत्तेजना या आवेश के बोले-श्रीमान् जी शत्रु बुरा न कहेगा तो क्या अच्छा कहेगा, पर आप तो मित्र होकर मेरे सामने ही मेरी बुराई कर रहे हैं। अपने दोष-दर्शन पर वह व्यक्ति बड़ा लज्जित हुआ।
(५) एक व्यक्ति महावीर स्वामी के पास आया और परीक्षा के तौर पर उन्हें अपशब्द कहने लगा ताकि उनको क्रोध आ जाये। जितनी देर वह अपशब्द कहता रहा-जिनेन्द्र चुप रहे, जैसे ही चुप हुआ उन्होंने कहा-अबुस आओ पहले भोजन कर लें ताकि आपका चित्त हलका हो जाये।
(६) रावण दुर्वचन बोल रहा था तब तक राम चुप-चाप खड़े रहे। विभीषण ने कहा-भगवन् आप शस्त्र प्रहार क्यों नहीं करते। राम बोले-क्षत्रिय मृतकों पर शस्त्र प्रहार नहीं करते। लेकिन रावण तो जीवित है भगवन् विभीषण बोले। इस पर राम ने हँसकर उत्तर दिया-आवेश ग्रस्त मनुष्य और मृतक में कोई अन्तर नहीं क्योंकि उस समय भी मनुष्य मृत्यु के समान ही ज्ञान शून्य हो जाता है।
(७) मोहम्मद साहब युद्ध में एक योद्धा से भिड़े थे उसे पटक कर वे उसका सिर काटना ही चाहते थे कि उसने गाली दे दी मोहम्मद साहब तलवार को मियान में कर खड़े हो गये। उनके एक सिपाही ने पूछा-आपने उसे मारा क्यों नहीं इस पर मोहम्मद साहब बोले-इसने गाली दी तब मुझे क्रोध आ गया उस समय अपने आवेश को ही मारना आवश्यक हो गया क्योंकि वह अपना घोर शत्रु है।


(२६) विचार शक्ति का महत्त्व समझें और सदुपयोग करें

प्रश्न ——
(१) मनुष्य का विकास किस बात पर निर्भर है? (२) विचार धन से भी बड़ी शक्ति है-सिद्ध करो। (३) कर्तृत्व की प्रेरणा कहाँ से आती है? (४) मनुष्य शरीर का जादू किसे कहते हैं, क्यों? (५) ‘‘विचार’’ शक्ति का आध्यात्मिकता से क्या सम्बन्ध है? (६) विचारों की परख किस तरह की जाये और उन्हें कैसे सुधारा जाए? (७) आत्मलोचन क्यों आवश्यक है? (८) बुरे विचारों से किस तरह बचा जा सकता है? विचारों के उत्पादन का स्रोत क्या है? (९) विचारों की भूल का प्रायश्चित परिमार्जन कैसे किया जाये।

कथाएँ ——
(१) एक तहसीलदार देखने में तो बदसूरत था पर उसकी बौद्धिक क्षमता, असाधारण थी, एक दिन एक कलेक्टर ने व्यंग करते हुए कहा-जिस समय भगवान् के यहाँ सुन्दरता बँट रही थी। उस समय आप कहते थे? तहसीलदार ने कहा-जहाँ बुद्धि बँट रही थी वहाँ? कलेक्टर इस उत्तर से बहुत लज्जित हो गया।
(२) एक संत के पास जाकर एक जिज्ञासु ने कहा-महात्मन् बुरे विचार मेरा पीछा ही नहीं छोड़ते? कोई उपाय बताइए? साधु बोला-अपनी स्त्री से जाकर पूछो। वह मनुष्य घर लौटा तो देखा स्त्री गोबर से घर की लिपाई कर रही है। आदमी ने पूछा-गन्दगी दूर करने के लिये। मनुष्य यह उत्तर सुनकर समझ गया विचारों की गन्दगी दूर करने के लिये स्वस्थ विचारों को मस्तिष्क में भरना आवश्यक है।
(३) अति ज्वर से तप रहे शरीर वाले एक बीमार मनुष्य ने देखा आग का एक टुकड़ा पानी में गिरकर बुझ गया। हाथ डालकर देखा तो आग बुझ गई थी। कोयला ठंडा पड़ गया था। उसने स्त्री से कहकर एक टब भरवाया और जाकर खुद उसी में बैठ गया। ठण्ड के कारण सन्निपात हो गया। वैद्य ने आकर देखा और सारी बात मालूम हुई तो कहा-गुण कर्म और स्वभाव की परख किये बिना जो निर्णय लिये जाते हैं वह ऐसे ही संकट पूर्ण होते हैं।
(४) बन्दर नदी में तैर रहा था तभी मगर ने उसकी टाँग पकड़ ली। बन्दर हँसा और बोला-बहुत खूब मगर जी लकड़ी का ढूँठ पकड़ कर सोच रहे हो मैंने बन्दर पकड़ लिया। मगर ने अपनी बेवकूफी समझ कर पाँव छोड़ गया। जो विपत्ति में धैर्य रखकर विचार करते हैं वह कि संकटों से भी पार पा लेते हैं।
(५) एक घर में चोर घुसे और गृहपति को मार-मार कर पूछने लगे, तुम्हारा खजाना कहाँ है। घर का मालिक पिट रहा था और तरह-तरह की अनुनय विनय कर रहा था। यह देखकर उसकी बुद्धिमान स्त्री बोली-आओ तुम्हें मैं खजाना दिखाती हूँ यह कहकर वह उन्हें तहखाने में लग गई। वहाँ पहुँच कर बोली-अरे चाबी तो ऊपर ही रह गई। पुलिस को बुलाकर उसने चोरों को पकड़वा दिया। पुलिस वालों ने संकट में भी धैर्य और बुद्धि से काम लेने से स्त्री के गुण की बड़ी प्रशंसा सा की।
(६) एक बन्दर पकड़ में नहीं आ रहा था। अन्त में एक मदारी ने एक युक्ति निकाली, उसने एक संकरे मुँह का घड़ा लिया और उसमें बन्दर को दिखा-दिखाकर तमाम रोटियाँ भर दीं और घड़े को खुला छोड़कर आप छिपकर बैठ गया। बन्दर ने आकर घड़े में हाथ डाला और मुट्ठी भर रोटी पकड़ कर हाथ निकालना चाहा तो हाथ घड़े के मुँह से बाहर न निकला। बन्दर इसी तरह खीझ-खीझ कर हाथ निकालने का प्रयत्न करता न निकलने पर अपने ही हाथ को चबाता रहा। थक गया तो मदारी ने आकर पकड़ लिया। यह था विचार शीलता और अबुद्धिमत्ता का अन्तर।


(२७) आरोग्य रक्षा के लिए सन्तुलन आवश्यक है

प्रश्न ——
(१) स्वास्थ्य की सुरक्षा के सम्बन्ध में हमें सावधानी बरतना चाहिये? (२) बीमारी और कमजोरी से अपनी रक्षा कौन कर पाता हैं? (३) आराम तलबी एक अभिशाप है सिद्ध कीजिये? (४) सार्वजनिक स्वास्थ्य रोज-रोज गिरते जाने के कारण क्या हैं? (५) स्वास्थ्य रक्षा का नितान्त आवश्यकता क्यों है? (६) जिस दिन से शारीरिक श्रम का महत्त्व हमारी समझ में आ जावेगी हमें क्या लाभ होगा? (७) मेहनत न करने का दण्ड मनुष्य किस प्रकार से चुकाता है? (८) स्वास्थ्य रक्षा के लिये मनुष्य और स्त्रियों को क्या-क्या शारीरिक श्रम करना चाहिये? (९) हमारे मनोविकारों का हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? (१०) स्वास्थ्य रक्षा के लिये हमें मानसिक रूप से क्या प्रयत्न करना चाहिए?

कथाएँ ——
(१) बापू ने अपनी सारी सम्पत्ति सार्वजनिक उपयोग के लिये दान कर दी। इन्हीं दिनों गोर्की की बहन की एक मात्र पुत्री भी विधवा हो गई। वे खुद भी विधवा थीं और गाँधीजी की आश्रिता थीं। उन्होंने गाँधीजी को पत्र लिखा-अब तो उदर पोषण के लिये पड़ोसियों का अनाज पीसना पड़ता है। कोई उपाय बताइये जिससे हम अपना और अपनी पुत्री का पेट पाल सकें। गाँधीजी ने उत्तर में लिखा-किसी पड़ोसी की चक्की मत पीसो, यहीं आ जाओ मैं भी आजकल चक्की पीसता हूँ। अब दोनों साथ-साथ पीसा करेंगे तो मन भी लगेगा और मेरे साथ तुम भी स्वस्थ और निरोग रहोगी।
(२) वाशिंगटन कार्यालय से लौटकर प्रतिदिन दो घंटे खराद का काम करते और कुर्सी मेजें बनाया करते एक दिन वे खराद चला रहे थे कि उनके एक मित्र वहाँ पहुँचे और बोले-बाजार में बहुत अच्छा फर्नीचर मिल सकता है फिर इस छोटे से काम में समय गँवाने से क्या फायदा। वाशिंगटन ने उत्तर दिया-भाई अच्छे सामान की बात नहीं, मैं आफिर की सुस्ती दूर किया करता हूँ देखो न इसीलिये तो मैं स्वस्थ और निरोग हूँ।
(३) इंग्लैण्ड की विश्व सुन्दरी से पूछा गया। आपकी सुन्दरता और सुगठित शरीर का रहस्य क्या है? उन्होंने बताया-दिन में कई वार शुद्ध जल पीना और परिश्रम से जी न चुराना।
(४) एक किसान के चार बेटे थे पर थे चारों आलसी और काम चोर। पिता मरने लगा तो उसे एक ही चिन्ता थी कि इन आलसी बेटों का पालन कौन करेगा? आखिर उसे एक उपाय सूझा। उसने चारों लड़कों को बुला कर कहा-उस खेत में मैंने धन गाड़ रखा है। खोदकर निकाल लेना। यह कहते हुए उसके प्राण पखेरू उड़ गये।
दूसरे दिन लड़कों ने सारा खेत गोड़ डाला पर कहीं धन न निकला, तभी एक माली उधर से गुजरा उसने कहा-धन नहीं निकला तो क्या हुआ इस खेत में बीज बोकर तो देखो, लड़कों ने शाक-भाजी के पौधे लगा दिये उससे इतनी शाक-भाजी हुई कि उनका वर्ष भर का खर्च निकल आया। लड़के बाप के मन्तव्य को समझ कर उस दिन से परिश्रमशील बन गये।
(५) तब बीमारियाँ एक पहाड़ पर रहा करती थी। उन दिनों की बात है एक किसान को जमीन की कमी महसूस हुई अतएव उसने पहाड़ काटना शुरू कर दिया। पहाड़ बड़ा घबराया। उसने बीमारियों को आज्ञा दी-बेटियों टूट पड़ो इस किसान पर और इसे नष्ट भ्रष्ट कर डालो। बीमारियाँ दण्ड बैठक लगाकर आगे बढ़ी और किसान पर चढ़ बैठी, किसान ने किसी की परवाह नहीं की डटा रहा अपने काम में। शरीर से पसीने की धारा निकली और उसी में लिपटी हुई बीमारियाँ भी बह गईं। पहाड़ ने क्रुद्ध होकर शाप दे दिया-मेरी बेटी होकर तुमने हमारा इतना काम नहीं किया अब जहाँ हो वहीं पड़ी रहो। तब से बीमारियाँ परिश्रमी लोगों पर असर नहीं कर पातीं गन्दे लोग ही उनके शिकार होते हैं।


(२८) स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रकृति का अनुसरण आवश्यक है

प्रश्न ——
(१) वन्य जीव स्वस्थ न निरोग क्यों रहते हैं? (२) निरोग रहने के उपाय लिखो-३ उपयुक्त भोजन की परीक्षा कैसे की जाय? (४) हमारा सर्वोत्तम भोजन क्या है? (५) आहार में सबसे हानिकारक वस्तु क्या होती है? (६) तले व भुने पदार्थ स्वास्थ्य के लिये अहित कर क्यों होते हैं? (७) स्वास्थ्य के लिये कैसा वातावरण जरूरी है? (८) परिश्रम के क्या लाभ हैं, शारीरिक श्रम कितना किया जाए? (९) ब्रह्मचर्य जीवन के लिये क्यों आवश्यक है? (१०) हमारा जीवन किस प्रकार का हो?

कथाएँ ——
(१) प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक डॉ० जैफर्सन से एक आदमी ने पूछा-तमाम रोगों की एक औषधि क्या हो सकती है। जैफर्सन का उत्तर था-कुछ दिन जंगल में किसी नदी के किनारे का एकान्तवास और कच्चे फल-फूल अन्न का आहार।
(२) महाराज अजातशत्रु एक बार एक यात्रा के समय बीमार पड़ गये। वह बीमार पड़ गये पर वहाँ कोई वैद्य नहीं था। महाराज ने एक वैद्य बुलाकर ग्रामवासियों के लिए औषधि की व्यवस्था कर दी-पर लम्बे समय तक वैद्य के पास एक भी रोगी न आया-आखिर वैद्यराज को दिन काटना कठिन पड़ गया तब उन्हें वापस बुला लिया गया।
(३) सर्वेक्षण से पता चला कि रूप से अजरबेजान क्षेत्र के लोग दुनियाँ में सबसे अधिक दीर्घ जीवी होते हैं इस पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने उसके कारणों की खोज की तो पता चला कि-वहाँ के लोग अधिकांश समय खुले खेतों में काम करते, पहाड़ों पर चढ़ते, झरनों का पानी पीते और आहार में भी शाक और दूध आदि प्राकृतिक तत्त्वों को ही प्रमुखता देते हैं इसी कारण वे दीर्घ जीवी होती हैं। ये लोग इन्द्रिय निग्रह का भी पालन करते हैं।
(४) गुरुवर! एक शिष्य ने पूछा-मनुष्य इतनी सुविधा में रहता है अच्छी-अच्छी चीजें खाता है फिर भी उसे हमेशा बीमारी लगी रहती हैं। हमेशा दवा खाता रहता है पर जिन्हें घर मकान औषधि उपलब्ध नहीं वह जंगल के जीव हमेशा नीरोग रहते हैं सो क्यों? आचार्य ने बताया वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं इसलिए-कपड़े पहनना, प्रकृति के विपरीत आचरण करना, परिश्रम से जी-चुराना चाहे जो कुछ चाहें जैसे तल भूनकर खाना यह अप्राकृतिक आचरण ही-मनुष्य को रोगी और प्राकृतिक आचरण ही अन्य जीवधारियों को स्वस्थ रखते हैं।
(५) अमरीकी दार्शनिक थोरी शराब व सिगरेट नहीं पीते थे। एक बार एक भोजन में मित्रों ने शराब पीने का बहुत आग्रह किया-बोले आप पीकर तो देखें इसमें कितनी मस्ती है। थोरी ने कहा-जो मस्ती जो शक्ति पानी में है वह बेचारी शराब में कहाँ-आप तो हमें एक गिलास जल दे दीजिए-उन्होंने जल को ही सर्वोत्तम पेय माना और उसकी अतिरिक्त कभी कुछ नहीं पिया।


(२९) आहार और विहार का असंयम न बरतें

प्रश्न ——
(१) ‘शारीरिक सामर्थ्य’ बनाये रखना हमें क्यों आवश्यक है? (२) अस्वस्थ रहने के कारण हमें क्या हानियाँ हैं? (३) शारीरिक स्वास्थ्य रक्षा के लिये कौन-कौन से कार्य हमें करना चाहिए? (४) आहार के क्या नियम हमें पालन करना चाहिए? (५) आहार हमें किस दृष्टि से ग्रहण करना चाहिए? (६) किस तरह की वस्तुएँ खानी चाहिये, किस तरह की नहीं। तथा हमारी मनः-स्थिति उस समय किस तरह की होनी चाहिये? (७) एक बार भोजन करने के बाद फिर भोजन कब और कैसे करना चाहिए? (८) भोजन किस तरह से किया जाना चाहिये? (९) आहार के सिवा और किस पर नियंत्रण रखा जाना चाहिये? किस तरह? (१०) नियमित दिनचर्या किस प्रकार श्रेष्ठ, शक्तिशाली बनाती है?

कथाएँ ——
(१) प्रसिद्ध अमरीकी-उद्योगपति हेनरी फोर्ड जिनके कारखाने में ५ सेकेण्ड में एक फोर्ड कार बनती है। एक बार फैक्टरी घूमने आये वहाँ मजदूरों को मोटी-मोटी रोटियाँ खाते देखकर बोले-मेरी मृत्यु होगी तब भगवान् से एक ही वरदान मागूँगा कि वह मुझे भी मजदूर बनाये? साथी ने साश्चर्य पूछा ऐसा क्यों तो उन्होंने बताया-स्वाद के असंयम के कारण मेरा पेट इतना खराब गया है कि चाय और सिगरेट के अतिरिक्त कुछ पचा ही नहीं पाता-मुझे सिगरेट के अतिरिक्त कुछ पचा ही नहीं पाता-मुझे मजदूरों को इस तरह खाते देख ईर्ष्या होती है।
(२) कण्व ऋषि के पुत्र सौभरि-ऋषिपद प्राप्त करने के समीप ही थे तब की बात है एक दिन वे एक नदी के किनारे गये और एक मच्छ राज की काम क्रीड़ा देखने लगे उस दृश्य की उपेक्षा करने चाहिये थी कुचेष्टा में रस लेने का परिणाम यह हुआ कि उनकी वासना जग गई। तप छोड़कर उन्होंने प्रसदस्यु की कन्या से विवाह कर पुत्रैषणा में डूब गये और एक साधारण गृहस्थ मात्र रह गये। काम वासना ने उनका सारा ओज, तेज, और ब्रह्मवर्चस नष्ट कर दिया।
(३) सुन्द और उपसुन्द सगे भाई थे दोनों के पराक्रम का कोई ठिकाना न था। पर सबसे बड़ी बात थी-दोनों का प्रेम और संगठन’’ इसी बूते पर दोनों ने बड़े-बड़े देवताओं तक को जीत लिया था।
पर तिलोत्तमा नामक-सुन्दरी को देखते ही दोनों की कामवासना भड़क उठी। दोनों ही उसे प्राप्त करने के प्रयत्न में आपस में ही लड़ मरे और जो किसी के द्वारा नष्ट नहीं ही सके थे वह अपने आप नष्ट हो गये।
(४) दमयंती अकेली वन में भटक रही थीं तब एक दुष्ट बहेलिया उन पर झपटा और बलपूर्वक उनका शील अपहरण करने पर तुल गया।
दमयंती न डरी न भयभीत हुईं। क्षत्राणी ने मुकाबला किया और बहेलिये को धर पटका। व्याध सती की झटक सह नहीं सका उसकी वहीं मृत्यु हो गई।
(५) महर्षि गौतम अभी सोये थे कि मुर्गे ने बाँग दी वे उठकर स्नान के लिए चल पड़े। स्नान व संध्या हो चुकी फिर भी सूर्य न निकला तो वे समझ गये कोई छल हुआ। घर आये तो देखा कि इन्द्र और चन्द्रमा ने उनकी पत्नी अहिल्या का सतीत्व नष्ट कर दिया है। उन्होंने ही मुर्गे की बाँग दी थी महर्षि ने तीनों को शाप दे दिया। इन्द्रियसक्ति रोक न सकने के कारण इन्द्र को हजार-भग चन्द्रमा को कलंकी और अहिल्या को पत्थर हो जाना पड़ा। आज भी उनके इस कुकृत्य पर लोग उन्हें अश्रद्धा से देखते हैं।
(६) भस्मासुर ने शिव को प्रसन्न कर यह वरदान पाया कि जिसके ऊपर हाथ रख देगा वही भस्म हो जायेगा। वरदान पाकर वह बड़ा शक्तिशाली हो गया किंतु कामुकता के कारण अपने इष्टदेव की ही अहित की बात सोच बैठा। भगवान विष्णु स्त्री वेश बनाकर पहुँचे और बोले एक हाथ कमर और दूसरा हाथ सिर पर रखकर नाचो तो विवाह कर लूँ। कामुक ने अपने विवेक बुद्धि खो दी। वैसे ही नाचने के उपक्रम में खुद ही जलकर भस्म हो गया।


(३०) संयम बरतें, सुखी रहें

प्रश्न ——
(१) संयम का अर्थ समझाते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश डालिये? (२) संयम कितने प्रकार का होता है? (३) किसी संयम के प्रकार एवं लाभ बताओ। (४) अपच का मूल कारण क्या है? ब्रह्मचर्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिये। (६) दृष्टि संयम से क्या लाभ है? (७) श्रवण संयम का तात्पर्य क्या है? (८) नासिका संयम का ध्यान कैसे रखा जाय? (९) समृद्धि का सदुपयोग क्या है? (१०) सबसे कल्याण का राज मन्त्र क्या है?

कथाएँ ——
(१) पड़ोस की एक स्त्री नैपोलियन से बहुत छेड़-छाड़ करती, पर नेपोलियन उसकी ओर ध्यान न देकर अपनी पढ़ाई में जुटा रहता। कुछ दिन पीछे नैपोलियन अपने देश का सेनापति बन गया। वह अपने सम्बन्धियों से मिलने घर गया तो उस स्त्री से भी मिला और पूछा-यहाँ कोई नैपोलियन नामक लड़का पढ़ता था, आप उसे जानती है? इस पर स्त्री बोली-हाँ था एक नीरस किताबी कीड़ा। नैपोलियन हँसकर बोला-श्रीमती जी! यदि वह उन दिनों नीरस न रहा होता तो आज देश का प्रधान सेनापति बनकर आपके सामने न खड़ा होता।
(२) सप्तर्षियों की बैठक होने वाली थी उससे पूर्व ही वेदव्यास को महाभारत लिखकर देना था समय कम था तो भी उन्होंने गणेश जी की मदद ली और महाभारत लिखना प्रारम्भ कर दिया। महाभारत समय से ही पूर्व लिखा गया। अंतिम श्लोक लिखाते हुए हुए व्यास जी ने कहा-गणेश आश्चर्य है कि पूरा महाभारत लिख गया और बीच आप एक शब्द भी नहीं बोले। गणेशजी ने कहा-भगवन् इस संयम के कारण ही हम लोग वर्षों का कार्य कुछ ही दिन में सम्पन्न करने में समर्थ हुए हैं।
(३) कौम्स ने मार्ग में पड़ी एक घायल स्त्री को देखा, एक क्षण ठहरे फिर कुछ सोच कर आगे चल पड़े। पीछे उनके गुरु कण्व आये उन्होंने उस स्त्री को देखा तो करुणा उभर आई। कर आश्रम में उपचार किया। कौत्स को बुलाकर उन्होंने पूछा-तात क्या तुमने इस घायल स्त्री को नहीं देखा था? देखा था गुरुवर, सिर नीवा किए, कौत्स ने कहा-किन्तु स्त्री का सौन्दर्य मुझे विचलित न कर दे इसी भय से इसे उठाया नहीं। महर्षि कण्व ने कहा-तात जिस प्रकार पानी से बाहर तैरना नहीं सीखा जा सकता उसी प्रकार सामाजिक कर्तव्यों से बाहर रहकर संयम का भी अभ्यास नहीं हो सकता।
(४) स्वामी विवेकानन्द उन दिनों साधक जीवन यापन कर रहे थे। एक दिन एक सुन्दरी युवती उनके कमरे में आई उत्तेजक हाव-भाव प्रदर्शित करने लगी। विवेकानन्द को लगा जैसे उन्हें मन पर वश करना कठिन हो तो उन्होंने धोती खोली और जलते तवे पर बैठ गए। युवती यह देखते ही भाग गई पर स्वामी जी का चूतड़ बुरी तरह जल गया। एक महीना अस्पताल में इलाज कराना पड़ा पर स्वामी जी ने मन की वासना स्वीकार न की।
(५) शर शैया पर पड़े भीष्म पितामह कौरवों पाण्डवों को धर्मोपदेश दे रहे थे। तभी द्रौपदी को हँसी आ गई। द्रौपदी हो हँसते देख पितामह ने पूछा-तात असमय हँसने का कारण क्या है?
द्रौपदी बोली-पितामह क्षमा करें आज तो आप इतने ज्ञान की बातें कर रहे हैं एक दिन कौरवों की सभा में मेरा अपमान हो रहा था-वस्त्र खींचे जा रहे थे, तब आपका ज्ञान कहाँ चला गया था। भीष्म पितामह बोले-बेटी तब मेरे मन पर कुधान्य का प्रभाव था जो कई दिन के उपवास के कारण अब दूर हो गया है।


(३१) हम अस्वच्छ न रहें, घृणित न बनें

प्रश्न ——
(१) गन्दा आदमी किस कारण घृणित माना जाता है? (२) बीमारी किस जगह में अधिक होती है? (३) हमें भारतवर्ष में स्नान किस प्रकार करते रहना चाहिए? (४) अपने दाँतों को अधिक टिकाने तथा मुँह में बदबू न आने देने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (५) अपने कपड़े जो कि हम रोज व्यवहार में लाते हैं किस प्रकार स्वच्छ किये जाना चाहिए? (६) अपने घरों को अपने कमरों को किस प्रकार जमाना चाहिये? (७) मलमूत्र से सफाई रखने के लिए क्या उपाय किये जाना चाहिए? (८) स्वच्छ रहने का प्रतिफल हमें क्या मिलेगा?

कथाएँ ——
(१) धूल धूसरित वेश और अस्त-व्यस्त केश एक व्यक्ति संत सुकरात के पास जाकर बोला-महाराज धर्म दीक्षा दीजिये। सुकरात बोले-जाओ और साबुन लेकर कपड़े साफ करो-यही तुम्हारी दीक्षा है।
(२) साधु ने मल्लाह के लड़के को देखा सारे शरीर में फोड़े, दाद फुंसी हो रही थीं। बोले-क्यों स्नान नहीं करता क्या? उसका पिता बोला-महाराज हम लोग मल्लाह हैं हम तो पानी में काम काम करते हैं कई बार स्नान होता है साधु बोले-एक बार स्नान करो पर मैल छुटाकर करो तो वही सौ स्नान के बराबर है।
(३) आइजन हावर अमरीका के राष्ट्रपति चुने गये तो उन्हें बहुत से लोगों ने उपहार दिये। एक महिला ने झाड़ू दी। आइजन हावर ने एक भोज में वह झाड़ू दिखाते हुए कहा-यह है मेरा शरीर और मन की सफाई सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है मैं इसका पूरा ध्यान रखूँगा।
(४) वर्धा गाँधीजी के आश्रम में दो साधु आये और बोले-हमें सेवा का काम दीजिये। गाँधीजी ने उस समय तो उन्हें खिला पिला कर सुला दिया पर सवेरे ही झाड़ू लेकर पहुँचे और बोले-आज आश्रम की सफाई आपको करनी है। साधु मौन-मेख निकालने लगे तो बापू बोले-जो सफाई नहीं कर सकता वह सेवा क्या करेगा।
(५) एक गाँव का युवक ऋषि दयानंद के पास जाकर बोला-महाराज मुझे स्वर्ग जाने से कोई नहीं रोक सकता, मैंने १०८ बार गंगाजी का स्नान किया है मेरे सभी पाप धुल गये। महर्षि हँसकर बोले-तेरे शरीर का मैल छूटा नहीं मन का मैल क्या छूटेगा-बेटा जा और पहले स्नान का ही स्वरूप सीख कर आ।
(६) गाँधीजी अपने कार्यकर्ताओं के साथ गाँव वालों को सफाई का महत्त्व समझा रहे थे और उन्हें मूत्रालयों तथा संडासों की सफाई की योजना बता रहे थे तभी एक आदमी ने कहा-महाराज यह काम आप भंगियों को सिखाइए हमें क्यों सिखाते हैं। गाँधीजी बोले-गन्दगी आप करें और सफाई भंगी करें यह अनीति अधिक दिन च चलेगी। अपनी सफाई की व्यवस्था सबको आप करनी पड़ेगी।


(३२) ढलती आयु का उपयोग इस तरह करें

प्रश्न ——
(१) पुरानी भारतीय परम्परा के अनुसार मानव-जीवन कितने भागों में विभक्त है तथा उनमें उन्हें क्या-क्या कार्य करना होता हे? (२) जब तक हम पुरानी भारतीय परम्परा के अनुसार जीवन निर्वाह करते रहे हमें क्या लाभ होता रहा। (३) जीवन का प्रारम्भिक चौथाई भाग क्या कहलाता है? इसका क्या महत्त्व है। (४) गृहस्थाश्रम के बारे में लिखिये? (५) वानप्रस्थाश्रम में मनुष्य घर के लिये क्या काम करता रहता था? (६) वानप्रस्थाश्रम में मनुष्य समाज के लिए किस प्रकार लाभ दायक होता था? (७) अन्तिम आश्रम क्या है तथा इसके कार्य क्या हैं? (८) वानप्रस्थ आश्रम परम्परा के लोप हो जाने से हमारे भारतीय समाज को क्या हानियाँ उठानी पड़ी हैं? (९) आपके विचार में इन चारों आश्रमों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आश्रम (समाज के लिये) कौन सा है? तथा क्यों?

कथाएँ ——
(१) ५५ वर्ष की आयु में अध्यापक से रिटायर एक व्यक्ति ने विद्या की साधना प्रारम्भ की। लोगों ने कहा-यह भी कोई पढ़ने की आयु है इस पर उन्होंने कहा-यदि मनुष्य घर गृहस्थी के मोह का परित्याग कर सकें तो इस आयु जैसा बौद्धिक और आत्मिक विकास किसी आयु में भी नहीं हो सकता। उन्होंने अपनी साधना प्रारम्भ की सारी दुनियाँ में वेदों का पहला विद्वान होने का गौरव पाया। यह और कोई नहीं शतजीवी पं० दामोदर सातवलेकर थे।
(२) महर्षि याज्ञवल्क्य की आयु ढलने लगी। एक दिन उन्होंने अपनी धन सम्पत्ति का अपनी दोनों पत्नियों मैत्रेयी और कात्यायनी में बँटवारा शुरू कर दिया। मैत्रेयी ने पूछा-स्वामी आज यह बँटवारा क्यों आवश्यक हो गया। याज्ञवल्क्य बोले-भद्रे अब मेरी आयु ढल रही है, इस अवस्था में साँसारिक मोह कम करके लोक सेवा और आत्म-कल्याण की बात सोचनी चाहिए। चतुर मैत्रेयी ने पति की आकांक्षा की गहराई को ताड़ लिया और अपने हिस्से की सारी सम्पत्ति कात्यायनी को सौंप कर स्वयं भी आत्म कल्याण की साधना में जुट गई।
(३) राचरण अपनी वृद्धावस्था में गुरु बालानन्द जी के साथ वैद्यनाथ धाम में रहकर साधना करने लगे। रामचरण को एक दुशाला दे दिया। एक दिन रामचरण ने ठण्ड से सिकुड़ते एक गरीब को देखा। उन्होंने दुशाला उस व्यक्ति को दे दिया। बालानन्दी जी को इसका पता चला तो उन्होंने-जो लोग लोभ, मोह त्याग देते हैं, रामचरण की तरह वही मोक्ष के अधिकारी होते हैं।
(४) शव अड़ गया बोला-यह तो मेरा घर मैं यहाँ से नहीं हटूँगा, घर चाहे तो मुझे छोड़कर हट जाए। दो दिन तक शव पड़ा रहा बन्दूक उठ खड़ी हुई तो बच्चों ने जबरन उठाकर शव को श्मशान घाट पर जा पटका। शरीर के साथ आत्मा भी चली गई पर अनावश्यक मोह का पश्चाताप लेकर गई।
(५) एक साधु ने एक सद् गृहस्थ को समझाया-तात यही अवस्था है जब तुम्हें आत्मोत्थान की साधना में जुट जाना चाहिये घर का मोह त्याग कर समाज को अपने अनुभवों का लाभ श्रद्धा का आनन्द लेना चाहिये लेकिन बुड्ढे के मन में नाती, पोतों का मोह समाया था। बोला-महात्मन् मेरी बिना बच्चे कैसे रहेंगे। वृद्ध घर लौटा, वृद्धावस्था का शरीर रात नींद जल्दी टूट गई उसे लगा बगल के कमरे में कोई बात कर रहा है। ध्यान देकर सुना तो पता चला उसी का लड़का और बहू बात कर रहे हैं, कह रहे हैं बुड्ढा दिन-रात खाँसता है मरता भी नहीं, अपनी टाँग अड़ाता रहता है। अपमान सहकर बुड्ढे को समझ आई और तब उसने घर त्यागा।


(३३) अनीति से सतर्क रहें, अन्याय को रोकें

प्रश्न ——
(१) अच्छाई हो अथवा बुराई हो वे किस कारण अधिक बढ़ती हैं? (२) हम वस्त्र क्यों पहनते हैं? हम सारा कमाया हुआ पैसा बैंकों में क्यों रखते हैं? हम सारा कमाया हुआ पैसा बैंकों में क्यों रखते हैं? यदि हम ऐसा न करें तो क्या होगा? (३) अन्याय और पुण्य दोनों ही किस प्रकार मानवीय प्रगति में सहायक हैं? (४) यह ठीक है कि हमें किसी को ठगना नहीं चाहिये पर क्या यह यह ठीक है कि हम किसी से ठगे जाएँ। नहीं तो इसके लिये क्या किया जाय? (५) क्या यह ठीक है कि हमें सब कोई पर विश्वास करना ही चाहिये? नहीं तो क्यों? (६) इस समय देवत्व से असुरता का, सज्जनता से दुर्जनता का पलड़ा क्यों भारी है? (७) मित्रों के रूप में शत्रुता करना इस युग का नया फैशन है। किस तरह? सिद्ध कीजिये? (८) हमारी किन दुर्बलताओं के कारण अनीति करने वाले हमें ठग जाते हैं? (९) अनीति से ठगे जाने से बचने के लिये हमें क्या-क्या सावधानियाँ रखना चाहिये? (१०) क्या अनीति का प्रतिरोध करने से जो हानि होती है उसके डर से हमें अनीति का प्रतिरोध नहीं करना चाहिए?

कथाएँ ——
(१) चार्ल्स डार्विन बीमार थे तो घर वालों ने एक पादरी को बुलाया और उनसे धर्म संस्कार करा देने का आग्रह किया। पादरी बोला-जो व्यक्ति जीवन भर धर्म का विरोध करता रहा उसका धर्म संस्कार तभी कराया जा सकता है जब वह ईश्वर में आस्था व्यक्त करे। डार्विन की पुत्री मार्था ने कहा-मेरे पिता जो आजीवन संत की तरह रहे क्या उसमें उन्हें बिना धर्म संस्कार ही स्वर्ग में स्थान नहीं मिल जाएगा। इस पर पादरी बोला-स्वर्ग तो ईश्वर का घर है वह अपने विरोधियों को कैसे प्रवेश देगा-कहकर वहाँ से चल दिया।
(२) काला काँकर के राजा रामपाल सिंह ने ‘‘हिन्दुस्तान’’ नामक पत्र निकालना प्रारम्भ किया। उसके लिये २५०) जो उस समय २०००) के बराबर थे वेतन देकर राजा साहब ने मालवीय जी को नियुक्त किया। राजा साहब शराब पीते थे इस कारण पहले तो श्री मालवीय जी तैयार नहीं हो रहे थे पर जब राजा साहब ने वचन दिये कि वे उनसे कभी भी मिलेंगे बिना शराब पिये ही मिलेंगे। एक दिन भूल से राजा साहब शराब पिये ही उनके पास जा पहुँचे। मालवीय जी-ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया और हजार आग्रह करने पर भी दुबारा काम नहीं किया।
(३) समुद्र टिटहरी के अंडे बहा ले गया। इससे उन्हें बड़ा दुःख हुआ दोनों पति-पत्नी रेत भर-भर कर समुद्र में डालने लगे। महर्षि अगत्स्य ने पूछा-टिटहरी तुम रेत से समुद्र तो नहीं पाट सकतीं? टिटहरी बोलीं-न पटे न सही पर अन्याय के प्रतिकार ही परम्परा को नष्ट नहीं होने दूँगी। अगत्स्य का मन भर आया और वे सहायता के लिये उद्यत हो गये और अपने तपोबल से समुद्र के तीन चुल्लू में पी गये। अनीति के विरुद्ध छोटे लोग खड़े हो जाते हैं तो उन्हें चमत्कारी शक्तियों का सहयोग मिले बिना नहीं रहता।
(४) शिवाजी के पिता शाह वीजापुर नवाब के दरबार में कर्मचारी थे। एक बार पिता-बच्चे को लेकर दरबार में गये और शाह को सलाम करने को कहा-शिवाजी ने कहा में आततायी को सलाम नहीं करता। उन्होंने पिता के रोष का भी-ख्याल नहीं किया। उनकी इस दृढ़ता का ही फल था कि समर्थ रामदास ने उन्हें चुना और अन्यायी शासकों के विरुद्ध एक शक्ति के रूप में खड़ा कर दिया।
(५) लोकमान्य तिलक विदेश जाना चाहते थे उन्होंने पंडितों को बुलाकर राय ली सबने उसे धर्म विरुद्ध बताया। तभी-काशी के महोमहापाध्याय ने कहा कहा-पाँच हजार रुपये दें तो कोई व्यवस्था निकाली जा सकती है तिलक ने कहा पैसों से जो व्यवस्था निकाली जा सकती है तिलक ने कहा पैसों से जो व्यवस्था बदल सकती है उन्हें उसकी कोई खास जरूरत नहीं है।
(६) एक स्त्री अपने बच्चे को पीट रही थी। पड़ोस के एक आदमी ने जाकर रोका तो स्त्री बोली इसने मंदिर में चढ़ौती के पैसे चुराये हैं। लड़का रोते-रोते बोला-मैंने तो एक ही दिन पैसे चुराये यह तो रोज दूध में पानी मिलाकर बेचती हैं। आदमी हँसा और बोला स्वयं अनीति पर चलकर दूसरों सदाचारी बनाने की बात सोचने से यही-होता है।
(७) कबूतर को देखकर बाज़ गुर्राया बोला भाग जा नहीं तो नोचकर टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा कबूतर हँसकर बोला-महोदय इसमें क्या बड़ी-बात शक्ति और सत्ता पाकर तो कोई अनीति कर सकता है। जानूँ तो तब जब अपनी शक्ति से दुनिया की अनीति रोक सकें। बाज़ का कोई उत्तर न देते बना।
(८) श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर की विद्वता से प्रभावित होकर अँगरेज ने उन्हें ‘‘सर’’ की उपाधि दी। उन दिनों स्वतंत्रता आन्दोलन की हवा चल रही थी अतएव अँगरेज सरकार एक प्रभाव-शील व्यक्ति को अपने पक्ष में करना चाहती थी। किन्तु श्री टैगोर ने यह कर कि जब हमारे देश के साथ अनीति बरती जा रही हो मेरा यह उपाधि ग्रहण कर सकना असंभव है-उन्होंने उस सम्मान को ठुकरा दिया जिसे हजारों लोग पैसा देकर प्राप्त करने को लालायित थे।
(९) गुरु गोविन्द सिंह का १५ वर्षीय पुत्र अजीत युद्ध करते समय काम आया तो गुरु गोविन्द सिंह ने द्वितीय पुत्र जुझार सिंह को बुलाकर युद्ध की आज्ञा दी। पुत्र ने कहा-प्यास लगी है पानी पी लूँ तब युद्ध में जाऊँगा इस पर गुरुगोविन्द सिंह बोले अनीति और अत्याचार की आग सुलग रही हो तो उसे बुझाने की आवश्यकता सर्वोपरि होती है। पुत्र ने पानी नहीं पिया युद्ध के लिए चल पड़ा और भाई का बदला लेते हुये मारा गया।
(१०) एक आततायी एक स्त्री के साथ छेड़खानी कर रहा था तो उस पर मुक्का जमाने के लिये एक युवक आगे बढ़ा उसके पिता ने रोका-बेटा तुझे क्या पड़ी है घर चल। युवक ने पिता को डाँटते हुए कहा तुम्हारी जैसी खुदगर्जी ने ही अन्याय बढ़ाया उसने बढ़कर गुण्डे को धक्का दिया और जमीन पर पटक दिया।


(३४) जो अनुचित है, उससे सहमत न हों

प्रश्न ——
(१) आपके अनीति के पोषण करते रहने से क्या हानियाँ होती हैं? (२) आज के समाज में हम क्यों देख रहे हैं कि अत्याचार अनीति आदि करने वाले काफी साहस से यह कार्य करते जा रहे हैं? (३) जो मनुष्य अनीति का प्रतिरोध नहीं कर सकता क्या वह मनुष्य कहलाने के काबिल है? (४) हमें मनुष्यता के उत्तरदायित्व का मूल्य किस प्रकार चुकाना चाहिए? (५) लोक श्रद्धा के अधिकारी कौन-कौन हैं? (६) सन्त, सुधारक, शहीद, हम किस प्रकार के व्यक्तियों को कह सकते हैं? (७) अनीति का प्रतिकार करो। यह भावना मनुष्यों में जाग्रत करने के लिये हमें क्या प्रयत्न करना चाहिए? (८) यह कभी आपको पिता-माता या परिवार वालों की तरफ से अनीति को मानने का आग्रह किया जाय तो क्या आप आग्रह मान लेंगे? यदि नहीं तो आपको उस समय क्या आवश्यक है। (९) क्या आप कुछ पुराने समय के ऐसे उदाहरण दे सकते हैं कि परिवार वालों की अनीति पूर्ण बातें मानने की अपेक्षा उन व्यक्तियों ने उनसे विद्रोह ही ठीक समझा। (१०) अनीति और अविवेक का सामना करने के लिये हमें किन अस्त्रों का उपयोग करना चाहिए।

कथाएँ ——
(१) अलाउद्दीन ने देगिरि के राजा रामदेव पर चढ़ाई करने से पहले उनके सरदार कृष्णराव को अपनी ओर मिला लिया और आक्रमण कर दिया। जब सारी सेना लड़ रही थी तब देशद्रोही कृष्णराव अलाउद्दीन के लिये जासूसी कर रहा था इसका पता कृष्णराव की धर्म-पत्नी वीरमती को चला तो उसने अपने पति की ही हत्या कर दी। मरते हुए पति ने कहा-यह क्या किया वीरमती तुमने? भारतीय स्त्रियाँ ऐसा तो कभी नहीं करतीं।
हाँ तुम ठीक कहते हो पर भारतीय पुरुष भी तो कभी देश द्रोही नहीं करते। इस समय राष्ट्र की रक्षा ही मेरा धर्म है रही पतिव्रत की बात सो वह अब लो-यह कह कर उसने खुद को भी कटार भोंक ली और पति के साथ ही सती हो गई।
(२) हड्डियों का ढेर लगा देखकर राजकुमार जीमूत वाहन ने मित्रावसु से पूछा-तात इतनी हड्डियों का ढेर कहाँ से आ गया इस पर मित्रवसु ने बताया यहाँ प्रतिदिन गरुड नाग का भक्षण करता है आज वह नागराज शंखचूड़ का वध करेगा। जीमूतवाहन यह सुनकर बहुत दुःखी हुए। वे स्वयं शंखचूड़ का रूप बनाकर वहाँ उपस्थित हो गये। गरुड आया और उन्हें बुरी तरह क्षत-विक्षत करने लगा तभी उधर से शंखचूड़ आ गया उसने कहा अरे गरुड तुमने राजकुमार जीमूतवाहन को ही घायल कर दिया। गरुड सारी बात समझ कर बड़ा दुःखी हुआ उस दिन से उसने नागों को मारना बन्द कर दिया।
(३) राज वेन राज्य मद के कारण अत्यन्त दुराचारी हो गये। वह चाहे किसी को कष्ट देने से न चूकते यहाँ तक कि उनने ऋषियों को भी सताना न छोड़ा। इस तरह असुरता बढ़ी तो ऋषियों ने प्रजा से कहा तुम लोग संगठित होकर ही अन्याय का मुकाबला कर सकते हो। प्रजा ने संगठित होकर बगावत कर दी और राजा वेन को काट कर अत्याचारों से मुक्ति पाई।
(४) शंकराचार्य साधना द्वारा आत्मिक शक्तियों का जागरण और धर्म एवं संस्कृति की सेवा करना चाहते थे जब कि उनकी माँ उन्हें गृहस्थ देखना चाहती थीं। उस समय सनातन धर्म मृत प्रायः हो चला था। दोनों परिस्थितियों की तुलना करने पर शंकराचार्य को धर्म-सेवा की ही सर्वोपरिता जान पड़ी सो एक दिन नदी में स्नान करते समय वे झूठ-मूठ चिल्ला उठे माँ मुझे शंकर को सौंप दो तभी बचूँगा नहीं तो मगर खाये जा रहा है माँ ने बेटे की बात मान ली। शंकराचार्य बाहर आ गये और समाज की तत्कालीन आवश्यकता की पूर्ति के लिये चल पड़े।
(५) दीनबन्धु ऐंड्रूज स्टीफेन्स कॉलेज में पढ़ाते थे। तब प्रत्येक विद्यार्थी के लिये बाइबिल पढ़ना अनिवार्य था यह श्री ऐंड्रूज जो अच्छा न लगा इसलिये वे स्वयं ही हिन्दू दर्शन का अध्ययन करने लगे। इन्हीं दिनों एक हिन्दू लड़का भी आया जो इस कॉलेज में पढ़ना तो चाहता था पर वह अपने धर्म की पुस्तक पढ़ने के अतिरिक्त बाइबिल पढ़ने को राजी नहीं था। उसे प्रवेश नहीं मिल रहा था। इस पर ऐंड्रूज ने सरकार से लिखा पढ़ी प्रारम्भ की और तब तक नहीं माने जब तक बाइबिल-पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त नहीं करा दी।
(६) पिता ने कुछ पैसे दिये और कहा सौदा ले आ दुकान करेंगे। बच्चा गया और धन, परमार्थ में लगा आया। पिता ने डाँटा तो उसने कहा-पिता जी मनुष्य जिस उद्देश्य को लेकर संसार में आया है उसे पूरा करना पहला कर्तव्य है यही बालक आगे नानक के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(७) हिरण्य कश्यपु ने प्रह्लाद से कहा तुम भी मेरी तरह धन सम्पत्ति अर्जित करो-मैं तुम्हारा पिता हूँ मेरी हर बात तुममें माननी चाहिए। प्रह्लाद ने उत्तर दिया-पिता के नाते आप मुझसे शारीरिक सेवा ले सकते हैं पर आपकी अनुचित बातों का समर्थन करूँ यह मुझसे नहीं होगा। उन्होंने अपार संकट सहे पर अनौचित्य से कभी सहमत नहीं हुए।


(३५) औचित्य की प्रशंसा और अनौचित्य की भर्त्सना की जाए

प्रश्न ——
(१) मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा क्या होती है। (२) प्रशंसा द्वारा किस प्रकार लोगों को अच्छे या गलत मार्ग पर चलाया जा सकता है? (३) बुरे लोगों की प्रशंसा से क्या होता है? (४) समाज सुधार के लिये क्या किया जाये (५) बुरे लोगों की प्रशंसा से आज क्या बुराइयाँ फैली हैं (६) अच्छाई को किस तरह प्रोत्साहित किया जाये (७) सम्पत्ति को प्रतिष्ठा मिलने से क्या हुआ? (८) दुष्टता के प्रतिरोध में क्या किया जाए?

कथाएँ ——
(१) तुर्की क्र प्रसिद्ध फकीर जकीर नदी के किनारे रहते थे। एक दिन एक सेव बहा चला आ रहा था। जकीर ने उसे पकड़ लिया पर खाने को ही थे कि आत्मा से आवाज आई-जो वस्तु तेरी नहीं है, तैने कमाई नहीं उसका उपयोग करना क्या पाप नहीं? जकीर सेव लेकर उसके मालिक का पता लगाने चल पड़े। सेव बुखारा की राजकुमारी के बाग का था। राजकुमारी को पता चला तो उन्हें बुलाकर कहा-अरे बाबा! इसको वहीं रख लेते एक सेव यहाँ क्यों लाये। फकीर ने उत्तर दिया-आपके लिये इस सेव का कोई मूल्य नहीं पर इसने मेरा तो धन और ईमान ही नष्ट कर दिया होता।
(२) शास्त्री जो रेलवे मन्त्री थे तब उनके लिये एक विशेष बोगी तैयार की गई जिसमें खाना बनाने खाने से लेकर स्नान तक की सारी सुविधाएँ थीं। शास्त्री जी को उसका पता-चला तो वह बोगी अस्वीकार कर दी और यह कहकर कि मैं मन्त्री हूँ तो क्या मुझे विलासी जीवन जीना चाहिए कह कर उन्होंने एक साधारण बोगी ही से अपना काम चलाया।
(३) छोटी बहन इलाइज के साथ एक लड़का घूमने निकला। मार्ग में नटखट बहन ने एक अमरूद वाले को धक्का दे दिया उसके सारे अमरूद कीचड़ में फैल कर बेकार हो गये। लड़का अमरूद वाले को लेकर घर आया और माँ से बोला-इस अमरूद वाले को उसके अमरूद के पैसे दे दो। माँ बहुत झल्लाई पैसे दिये नहीं तो उस युवक ने अपने नाश्ते के पैसे देकर दण्ड की भरपाई की और खुद ने डेढ़ महीने तक नाश्ता नहीं किया यही बालक आगे चलकर नैपोलियन बोनापार्ट बना।
(४) सबेरे-सबेरे एक १४ वर्षीय बच्चे ने ‘‘माचिस चाहिए माचिस’’ की आवाज लगाई! एक सम्पादक ने उसे बुलाकर माचिस लेकर सिगरेट जला ली पर जेब में देखा तो पैसे फूटे नहीं थे बच्चे पर हिम्मत से विश्वास करके सौ का नोट देते हुए कहा-९९ रुपये और शेष पैसे शीघ्र लाना। बच्चा वहाँ से गया तो सम्पादक जी शाम तक प्रतीक्षा करते रहे लड़का आया ही नहीं। सम्पादक जी कहते जा रहे थे बच्चे भी धोखे बाज़ होने लगे तभी पीछे से एक लड़के ने पुकारा क्या अमुक बाबू का मकान यही है। हाँ-हाँ आओ क्या बात है-सम्पादक जी बोले। लड़का ऊपर आया ९९) रुपये और पैसे वापस करते हुए बोला-बाबूजी मेरा बड़ा भाई आप को प्रातः काल माचिस बचे गया था पर जैसे ही नोट तुड़वाने वह बाजार गया एक मोटर से उसका ऐक्सीडेंट हो गया। उसे अभी-अभी होश आया है। होश आते ही आपका पता बताकर यह पैसे भेजे हैं। सम्पादक बहुत प्रभावित हुआ और ऐसे बच्चों के दर्शनों के लिये अस्पताल चल पड़ा पर वहाँ पहुँचने तक वेदमूर्ति बालक के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। उसका छोटा भाई रोने लगा। सम्पादक को पता चला इनके माँ-बाप तो क्या परिवार में भी कोई नहीं है। उन्होंने छोटे बच्चे को घर चलने को कहा तो उसने घर जाने से इनकार कर कहा-मेरे भैया ने जो आदर्श रखा मैं उसे कायम रखूँगा। सम्पादक बच्चों की सत्यता से बड़े प्रभावित हुए। उस दिन से समाचार पत्रों में ऐसे समाचार उभार पाने लगे उसी का फल है कि आज जापान दुनिया का सबसे बड़ा ईमानदार देश माना जाता है।
(५) रावण, राम की बुराई कर रहा था। और सब सभासद उसकी हाँ में हाँ मिला रहे थे तब विभीषण ने कहा-भैया आप राम की बुराई करें इससे पहले आपको यह भी देखना चाहिए कि आपने उनके साथ कितनी बुराइयाँ बरती हैं। रावण ने क्रुद्ध होकर विभीषण को घर से निकाल दिया पर विभीषण ने जो बात उचित थी वही कही।


(३६) सुव्यवस्था ही परिवारों को सुविकसित रख सकेगी

प्रश्न ——
(१) परिवारों को विघटन से क्या हानियाँ हैं? (२) भारतवर्ष में संयुक्त कुटुम्ब प्रणाली क्यों आवश्यक है? (३) बड़े परिवारों में सुव्यवस्था कैसी रखी जाये? (४) छोटों के बड़ों के प्रति तथा बड़ों के छोटों के प्रति कर्तव्य लिखो? (५) उपार्जन करने वाले लोग कौन से दायित्व अनिवार्य रूप से निबाहें ?? (६) बच्चों में पारिवारिक व्यवस्था के कौन से संस्कार डाले जायें? (७) घरेलू व्यवस्था में क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं? (८) संतान सीमित हो क्यों आवश्यक है? (९) कुरीतियों और अन्ध-परम्पराओं की हानियाँ बताओ? (१०) परिवार के भावनात्मक विकास तथा अनुभव में वृद्धि के लिए क्या करें?

कथाएँ ——
(१) एक गृहस्थ एक साधु के पास गया और बोला-महात्मन् मैं दिन रात कमाई करता हूँ धन की कमी नहीं, परिवार भरा पूरा है तो भी शान्ति नहीं है? साधु ने पूछा-तात यह तो बताओ घर में सब लोगों में परस्पर एकता, अनुशासन और प्रेम भाव तो है? गृहस्थ बोला-महाराज यही तो कमी है उसी से तो अशान्ति फैल रही है। साधु ने कहा-तो जाओ और कल से दो घण्टा समय परिवार की व्यवस्था में भी लगाना, धन कमाने में ही मत जुटे रहना।
(२) माली ने देखा काफी उग गई तो भी उसने उपेक्षा की दूसरे दिन घास बड़ी हो गई पर फिर भी उसने ध्यान नहीं दिया। फूलों के पौधों की बाढ़ मारी गई बगीचे में काँटेदार झार-झंखाड़ का अम्बार लग गया। माली बड़ा पछताया और सोचने लगा पहले से ही सावधानी रखता, काँटा छाँट करता रहता तो ऐसा बढ़िया बगीचा नष्ट क्यों होता।
(३) एक आदमी ने एक महात्मा से शिकायत की-भगवन् यह लड़का गुड़ बहुत खाता है कहने से मानता ही नहीं। साधु ने धीरे से उसकी पत्नी से पूछा-क्यों जी! आपके पति तो गुड़ न खाते होंगे। पत्नी बोली-महाराज ये तो लड़के से भी ज्यादा खाते हैं। साधु अब उन सज्जन की ओर देखकर बोले-बन्धु कहने से नहीं अब पहले तुम ही गुड़ खाना छोड़ो, तुम्हारे न खाने से ही लड़का गुड़ खाना छोड़ेगा।
(४) सन्त दादू के पास स्त्री आई और अपने पति को वश में करने का कवच माँगने लगी। दादू ने कवच देते हुए कहा-देख कवच तो बाँधना पर आज से प्रतिदिन पति के पैर भी छूना और उसे प्यार भी करना। पत्नी ने वैसा ही किया। एक दिन स्त्री दादू के पास आई और कवज की प्रशंसा करने लगी तो दादू ने कहा-बेटी यह सब कवच का नहीं तेरी शिष्टता और सज्जनता का फल था। उन्होंने वहीं पर कवच खोलकर दिखाया उसमें लिखा था ——


दोष देखि मति क्रोध कर, मन की शंका खोय।
प्रेम भरी सेवा लगन, से पति वश में होय॥


(५) जंगल में कुछ लकड़हारे कुल्हाड़ी लिये बैठे थे। एक वृक्ष ने दूसरे से कहा-बन्धु अब अपनी खैर नहीं, इस पर दूसरा वृक्ष बोला-बन्धु मस्त रहो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। थोड़ी देर में कुल्हाड़े उठे और बेंट काटकर कुल्हाड़ी ठीक करने लगे। अब की बार दूसरे वृक्ष ने ही कहा-बन्धु सावधान हो जाओ अब अपनी खैर नहीं। पहले वृक्ष ने पूछा-अब क्या बात हो गई? इस पर दूसरा वृक्ष बोला-फूट पड़ गई देखते नहीं अपने ही शरीर का अंग इन कुल्हाड़ियों का बेंट बन गया। फूट से तो रावण का अन्त हो गया था।
(६) श्री जगदीशचंद्र बोस कलकत्ता यूनीवर्सिटी में विज्ञान पढ़ाते थे। अँगरेज अध्यापक जो उनके समकक्ष थे उन्हें अधिक वेतन मिलता था यह देखकर उन्होंने कहा-जब तक मेरा वेतन भी उतना नहीं होगा? तब तक वेतन ही नहीं लूँगा। इसी से उन्हें आर्थिक तंगी हुई। वे प्रतिदिन हुगली नदी पार करके यूनीवर्सिटी जाते थे। अब तो नाव के पैसे भी चुकाना मुश्किल था। इनकी पत्नी अवला बसु ने अपनी अँगूठी बेचकर एक छोटी किश्ती खरीद ली और जब तक अँगरेजों ने उनकी बात न मान ली, अवला वसु खुद ही पति को हुगली के पार नाव से कर, ले जाती और लाती रहीं।
(७) एक आदमी शाम को बैठता और घर के सभी सदस्यों को पास बैठाकर दिन भर की बातों का लेखा-जोखा लिया करता फिर कहानियाँ सुनी-सुनाई जातीं बड़ा मनोरंजन होता, यह देखकर एक धनी पड़ोसी सदा हँसा करते पर कुछ ही दिन में धनी महोदय के घर सब सदस्यों में परस्पर झगड़े फसाद हो गये मार पीट हो गई और कई जेल चले गये। तब उस धनी आदमी ने समझा कि परिवारों को सुव्यवस्था रखना कितना आवश्यक होता है।


(३७) दाम्पत्य जीवन—एक आध्यात्मिक योग-साधना

प्रश्नर ——
(१) आध्यात्मिक प्रगति का आधार क्या है? (२) सिद्ध कीजिये कि दाम्पत्य जीवन आध्यात्मिकता की प्रयोग-शाला है। (३) अपनी त्रुटियों को सहज ही कौन सुधार लेता है? (४) योग का अर्थ क्या है? योग कितने प्रकार के होते हैं? (५) क्लेश एवं कलह मिटाने का क्या उपाय है? (६) संतानें किन लोगों की कुपात्र नहीं होतीं? (७) विवाह की सफलता का आधार क्या है? (८) पाणिग्रहण की महत्ता क्या है? (९) दाम्पत्य जीवन में स्वर्ग उतारने की व्यवहारिक योजना बनाइये।

कथाएँ ——
(१) च्यवन समाधि में लीन था उनकी आँखें किसी कीड़े की तरह चमक रही थीं शरीर में दीमकों ने बाँबी लगा ली थी। सुकन्या अपने पिता के साथ वन बिहार के लिये आई हुई थी। उसने खेलवश ऋषि की आँखें फोड़ दीं। पीछे पता चलने पर उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने प्रायश्चित स्वरूप वृद्ध ऋषि से विवाह का निश्चय किया यह बात महाराज को मालूम पड़ी तो उन्होंने सुकन्या का विरोध किया। इस विरोध के बावजूद सुकन्या ने च्यवन से ही शादी की और यह दिखा दिया कि विवाहों का उद्देश्य शारीरिक सुख नहीं आत्माओं के विकास में सहयोग देना है। उसकी इस साधना से अश्विनी कुमार बहुत प्रभावित हुए उन्होंने च्यवन की आँखें भी अच्छी कर दीं और बुढ़ापा भी दूर कर दिया।
(२) सावित्री ने सत्यवान को निश्चित रूप से वरण कर लिया। यह समाचार सुनते ही देवर्षि नारद सावित्री के पिता अश्वपति के पास पहुँचे और बताया कि सत्यवान की जन्म कुंडली के अनुसार उसकी आयु अब एक वर्ष ही शेष रही है। अश्वपति ने सावित्री को बुलाकर यह संबंध ठुकरा देने को कहा इस पर सावित्री ने कहा-नेकी और ईमानदारी का जीवन एक वर्ष ही हो तो काफी है पर मैं किसी अयोग्य व्यक्ति से विवाह नहीं करूँगी।
सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह किया और कठोर पतिव्रत धर्म के प्रभाव से यमराज को भी अपने पति की आयु बढ़ाने को बाध्य कर दिया।
(३) विवाह-दिवस मनाने का निश्चय हुआ पत्नी मेरी ने सोचा पति की घड़ी की चैन खराब हो गई है उस दिन उपहार में चैन दूँगी और पति ने निश्चय किया पत्नी के बालों को सँवारने के लिए बढ़िया कंघा नहीं है कंघा लाने चाहिए। पर पास में पैसे दोनों में से किसी के नहीं थे अब क्या हो? पति बाजार गया और घड़ी बेचकर हाथी दाँत का कंघा खरीद लिया। मेरी पत्नी गई तो उसने अपने बाल कटवा दिये और पति की घड़ी के लिए चैन खरीद ली। दोनों घर आये और अपना-अपनापन उपहार देने लगे तो चैन के लिये घड़ी थी न कंघे के लिये बाल। एक क्षण दोनों चुप रहे पर परस्पर प्रगाढ़ प्रेम की बात स्मरण करते ही दोनों मुस्करा उठे।
(४) कबीर अपने दरवाजे पर बैठे ग्राम-वासियों को उपदेश दे रहे थे। तभी एक युवक ने पूछा-महाराज यह तो बताइये कि विवाह करना ठीक होता है या नहीं। कबीर एक क्षण चुप रहे फिर अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया और कहा-देख यहाँ बड़ा अन्धकार फैला है दीपक तो जलाकर ले आ। धर्मपत्नी घर गई और दीपक जलाकर ले आई। युवक हँसकर बोला-महाराज आप तो विलक्षण हैं ही आपकी पत्नी भी खूब हैं। आप दिन को रात बताते हैं तो पत्नी ने दीपक लाकर आपकी बात का समर्थन भी कर दिया। क्या खूब नाटक रहा।
कबीर हँसे बोले नाटक नहीं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर था यदि युवक-युवती एक-दूसरे पर इतना प्रगाढ़ विश्वास रख सकें उन्हें ही विवाह करना चाहिए।
(५) स्वामी श्रद्धानन्द तब युवक थे। दुर्भाग्य वश उन दिनों उन्हें शराब और वैश्या वृत्ति की लत लग गई। इन्हीं दिनों इनका विवाह हुआ। पत्नी असाधारण पतिव्रता और सेवा भामिनी निकली। श्रद्धानन्द (तब मुंशीराम नाम था) उसे तरह-तरह के कष्ट देते तो भी वह अपने कर्तव्य से एक इंच भी न डिगी।
एक दिन श्रद्धानन्द रात दो बजे शराब पिये हुये लौटे। पत्नी उनकी प्रतीक्षा में ही बैठी थी दरवाजा जैसे ही खोला श्रद्धानन्द ने उसी पर उल्टी कर दी। तो भी उसको जरा भी घृणा नहीं हुई रात भर श्रद्धानन्द की सेवा करती रही। प्रातःकाल होश आने पर श्रद्धानन्द को पता चला कि उनकी पत्नी रात भर न सोई, न कुछ खाया तो उसका मन अपने आपसे घृणा कर उठा। उन्होंने सारी बुराइयाँ उतार फेंकी और आत्म-विकास में जुट गये। वही एक दिन आर्य समाज के सुप्रसिद्ध नेता हुए।
(६) माण्टुंगा के एक फैक्ट्री के मजदूर को उसकी पत्नी प्रतिदिन ताजा भोजन पहुँचाती। पति की सेवा में एक दिन भी न चूक पड़ी। किन्तु एक दिन मजदूर मध्याह्न में बाहर आया तो पत्नी को न पाकर मशीन चलती छोड़कर घर चला आया। पत्नी तेज बुखार के कारण अचेत पड़ी थी। पति ने उसकी दवादारू की। बिना बताये ऑफिस छोड़ देने पर उसे नौकरी से निकाल दिया गया पर मालिक को पति-पत्नी के अदम्य प्रेम की बात का पता चला तो उसे वेतन बड़ा कर फिर सर्विस में रख लिया गया।


(३८) पतिव्रत ही नहीं, पत्नीव्रत भी निभाया जाए

प्रश्न ——
(१) मानवत्व की सबसे उत्कृष्ट विभूति क्या है? (२) दाम्पत्य सुख का सच्चा आधार क्या है? (३) धन्य एवं सफल रहस्य किसे कहा जा सकता है? (४) विवाह योग साधना कैसे है? (५) सन्तान का सद्गुणी होना किन तत्त्वों पर निर्भर है? (६) छोटे घरों में स्वर्ग का वातावरण कैसे बनाया जा सकता है! (७) पत्नीव्रत की आवश्यकता पतिव्रत से अधिक क्यों हैं? (८) पतिव्रत का महान आदर्श क्या है? (९) गृहस्थी को सुखी बनाने में पति का दायित्व अधिक क्यों है। (१०) गृहस्थ जीवन का मूल आधार क्या है?

कथाएँ ——
(१) गान्धारी ब्याह कर-आई तब पता चला कि पति धृतराष्ट्र अन्धे हैं। एक बार वरण कर लिया तो फिर पति की अनुकूलता ही श्रेयष्कर है-गान्धारी ने प्रतिज्ञा करके अपनी आँखों में पट्टी बाँध ली और आजीवन कभी-भी पट्टी नहीं खोली। उनकी इस पतिव्रत-तपश्चर्या का ही फल था कि एक बार युधिष्ठिर के कहने पर जब इन्होंने अपने पुत्र दुर्योधन को पट्टी खोलकर देखा तो उसका सारा शरीर वज्र का हो गया।
(२) बुंदेल सम्राट छत्रसाल वेश बदलकर अपनी प्रजा की भलाई देखने जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक रूप सी युवती ने रोकर कहा-मुझे आप जैसा ही सुन्दर व स्वस्थ पुत्र चाहिए। छत्रसाल-युवती का काम विकार ताड़ गये। एक क्षण चुप रह कर बोले-आज से मैं ही तुम्हारा पुत्र हूँ।
(३) पूर्वजन्म के किसी कुकृत्य के कारण, कौशिकी को जो पति मिला वह कुष्ठ का रोगी हो गया। कौशिकी ने फिर भी उसकी सेवा में रत्ती भर अन्तर न आने दिया। एक दिन वह अपने पति को कंधे पर बिठाये अँधेरे में गंगा स्नान के लिए ले जा रही थी उनका पैर साधना लीन ऋषि माण्डव्य के शरीर से टकरा गया। ऋषि ने कुपित होकर शाप दे दिया-इसकी सूर्योदय होते ही मृत्यु हो जायेगी। किन्तु कौशिकी ने अपने पतिव्रत के बल से सूर्य को भी रोक कर जग में यश पाया। बाद में अनुसूया के आग्रह पर उसने तब सूर्योदय होने दिया जब उसके पति को जराजीर्ण देह समाप्त होकर दिव्य देह पाने का वरदान मिल गया।
(४) किसी साधारण बात पर रुष्ट होकर महाराज प्रसिचेत ने अपनी पत्नी को परित्याग कर दिया। उनके इस अहंकार पूर्ण कृत्य से दुःखी होकर राजप्रोहित ने उनका साथ छोड़ दिया। धीरे-धीरे बात प्रजा के कानों में पहुँची। लोग स्पष्ट कहने लगे जो व्यक्ति अपने स्वजन सम्बन्धी की रक्षा नहीं कर सकता वह प्रजा की क्या रक्षा करेगा। लोग राजाज्ञाओं का उल्लंघन करने लगे। इस स्थिति में पड़ौसी राजा ने प्रसिचेत पर आक्रमण कर दिया।
प्रसिचेत सेना लेकर मुकाबले के लिए चल पड़े। मार्ग में महर्षि उद्दालक का आश्रम पड़ता था वे महर्षि से मिलने को रुके पहले तो महर्षि ने शासकोचित स्वागत की तैयारी की पर तभी उन्हें पता चला कि महाराज ने अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया है तो उन्होंने स्वागत की सारी तैयारी स्थगित कर दी और उनसे एक साधारण नागरिक की तरह मिले।
राजा ने इसका कारण पूछा तो महर्षि ने कहा राजन् पत्नी का परित्याग करना अधर्म है और धर्म से पतित कोई भी क्यों न उसकी मान मर्यादा वैसे ही नष्ट हो जाती है जैसे आपकी। राजा ने भूल समझी और पत्नी को फिर बुला लिया उससे उनकी शासन व्यवस्था भी संभल गई।
(५) अर्जुन इन्द्र के पास युद्ध विद्या का अभ्यास कर रहे थे। इन्द्र की अप्सरा उर्वशी उन पर मोहित हो गई। एक दिन सामने काम-प्रस्ताव भी-प्रस्तुत कर दिया। अर्जुन ने उसे ठुकराते हुए कहा-भद्रे जिस प्रकार पति पत्नी से एक निष्ठा की अपेक्षा रखता है उसी प्रकार मेरी द्रौपदी भी मुझसे पत्नी व्रत की अपेक्षा रखती होगी। उर्वशी ने शाप दे दिया पर अर्जुन अपने व्रत से विचलित न हुये।
(६) छोटी आयु में बच्चे के विवाह पर पीछे माता-पिता बहुत पछताए लड़की में कुछ बौद्धिक कमी थी वह बाद में समझ में आई तो माता-पिता दूसरी शादी की बात सोचने लगे। युवक को पता चला तो उसने माँ-बाप को फटकारते हुए कहा-इसका मतलब यह है कि यदि मुझ में कुछ नुक्शा आ जाये तो मेरी पत्नी भी मुझे छोड़ दे। अभिभावकों को जबाब देना मुश्किल पड़ गया। यह लड़का और कोई नहीं दादाभाई नौरोजी थे।


(३९) संयुक्त परिवार प्रणाली—एक श्रेयस्कर परम्परा

प्रश्न ——
(१) संयुक्त परिवार प्रणाली समाप्त क्यों होती जा रही है। (२) संयुक्त परिवार प्रणाली की उपादेयता पर प्रकाश डालें। (३) संयुक्त परिवार प्रणाली सहकारी व्यवस्था है? सिद्ध कीजिए? (४) कृषि पशुपालन एवं उद्योग धन्धों में संयुक्त परिवार को अधिक लाभ क्यों होता है। (५) वृद्ध का मान सम्मान एवं गौरव संयुक्त परिवार में सुरक्षित है प्रमाणित कीजिये। (६) वसुधैव कुटुम्बकम् से क्या समझते हो? (७) संयुक्त कुटुम्ब के कतिपय दोष बताइये? (८) संयुक्त परिवार की आचार संहिता का आधार क्या हो? (९) संयुक्त परिवार की परम्परा को कैसे जीवित रखा जाय।

कथाएँ—
(१) एक किसान के चारों बेटों में झगड़ा हो गया चारों बँटवारे की जिद करने लगे। पिता ने एक लकड़ी को इशारा करते हुए कहा-तुम लोग इसे उठाओ। सभी लड़कों ने उसे उठा लिया। फिर उसने लकड़ी का बोझ रखकर कहा अब इसे एक-एक करके उठाओ तो कोई लड़का नहीं उठा पाया। फिर उसने कहा सब मिलकर उठाओ इस बार पहले की तरह ही लकड़ी का गट्ठा तत्काल उठ गया साथ ही लड़कों को संयुक्त शक्ति का पता चल गया अतएव उन्होंने बँटवारे का आग्रह छोड़ दिया।
(२) एक नन्हा सा गड्ढा आकाश से आ रही एक बूँद को देखकर हँसा बोला तुम्हारे आघात से डरता थोड़े ही हूँ आओ मैं तुम्हें अभी उदरस्थ कर दिखाता हूँ। बूँद निडर चली आई और उसका सारा परिवार उतरता ही चला आया। बरसात समाप्त हुई तब वह गड्ढा मिट चुका था वहाँ एक तालाब बन चुका था। शक्ति का केन्द्रीय करण जहाँ भी होता है वहीं ऐसा उपलब्धियाँ देखी जा सकती है।
(३) गोपाल कृष्ण गोखले बाल्यावस्था में बहुत गरीब थे पर उनकी पढ़ने की इच्छा थी अतः उनकी एक भाभी (गोविन्द राव की पत्नी) ने अपने आभूषण बेच दिये और फीस भर दी। गोपाल कृष्ण बोले-भाभी जी आपने यह क्या किया? वे बोली-यदि हम एक दूसरे के प्रति त्याग का भाव न रखें तो संयुक्त कुटुम्ब का क्या अर्थ। घर के सब खर्चों में कमी करके भी गोपाल कृष्ण गोखले को पढ़ाया गया। गोखले अपने भाई साहब व भाभी के प्रति देव तुल्य श्रद्धा रखते थे।
(४) स्कूल के दरवाजे से लौटते देखकर साथी ने पूछा क्यों लौटे जा रहे हो। किशोर ने उत्तर दिया अरे भाई। आज मैं अपने माता-पिता के पैर छूना भूल गया। कहकर वह तेजी से घर की ओर बढ़ा। साथी ने याद दिलाई-देर हो जाने से स्कूल बंद मिलेगा। उस बच्चे का उत्तर था-अपने माता-पिता के आशीर्वाद की तुलना में स्कूल का दण्ड बिलकुल नगण्य है।
(५) एक लड़का रूठकर माँ बाप से अलग हो गया। जब उसके सन्तान हुई तो बेचारी पत्नी को बच्चे की भी देख रेख करनी पड़ती, खाना भी बनाना पड़ता पति की सेवा भी करनी पड़ती, जब कि दूसरा लड़का अपने माता-पिता के ही पास रहा। बच्चा होने पर उसे माँ-बाप खिलाते और स्त्री तब भी घर वालों की सेवा में आनन्दित रहती। यह देखकर पड़ोसी ने बच्चों को समझाया देख लो बँटवारा करने की हानियाँ और संयुक्त कुटुम्ब के लाभ तुम्हारे सामने है।


(४०) संतान कितनी और क्यों पैदा करें?

प्रश्न ——
(१) प्राचीनकाल में सन्तान की संख्या वृद्धि पर जोर क्यों दिया जाता था? (२) आजकल परिवार नियोजन कर सन्तान की संख्या कम करने की क्यों आवश्यकता है? (३) आज के बालक समाज के लिए समस्या क्यों बनते जा रहे हैं? (४) अपने देश में स्त्रियों के निरन्तर गिरने वाले स्वास्थ्य का मूल कारण क्या है? (५) विवाह की आयु में वृद्धि क्यों आवश्यक है? (६) वानप्रस्थ आश्रम का पुनः प्रारम्भ किस लिये जरूरी है? (७) जनसंख्या कम करने के व्यावहारिक उपाय क्या हैं? (८) सिद्ध कीजिये कि आधुनिक युग में सन्तान वृद्धि की कामना एक मूढ़ मान्यता है।

कथाएँ ——
(१) एक जंगल में चींटियों का झुण्ड रहता था। उनके पास ही चींटियों का भेड़िया रहता था। चींटियाँ, भेड़िया को हमेशा धमकाया करतीं अब भेड़िये ने एक गोल-गोल दुर्ग बना लिया। उधर से जो भी चींटी निकलती दुर्ग में गिर जाती भेड़िया उसे भीतर ही भीतर खा जाता। देखते-देखते चींटियों का कुनबा समाप्त हो गया।
जंगल में एक सियार रहता था उसे अपने सौ पुत्र होने का बड़ा घमण्ड था। एक दिन सबके सब सियार के बच्चे पड़ोसियों को गाली बक रहे थे उधर से निकला सिंह, उसने समझा यह सब मुझे गाली दे रहे हैं, एक ही झपटे में उसने बीसियों को पाँव से, दसियों को हाथ से कुचल कर मार डाला जो बचे भी वह अपाहिज और जख्मी।
दोनों कथाएँ सुनाने के बाद साधु ने गृहस्थ को समझाया-सो हे तात! बुद्धिमान और समर्थ एक संतान हो वह काफी है मूर्ख और कमजोर सौ नहीं।
(२) गान्धारी ने कहा-मुझे संक्रान्ति पर पूजन के लिये हाथी चाहिये। कौरव महीनों इधर-उधर घूमे जो भी हाथी मिला किसी को छोटा, किसी को कमजोर, किसी के पूँछ न होने का दोष लगाते रहे। मकर संक्रान्ति आ गई पर एक भी हाथी वे न ढूँढ़ पाये।
कुन्ती ने अर्जुन को बुलाया और कहा-बेटा पूजन के लिये हाथी चाहिये और अभी चाहिये। अर्जुन ने बाणों की बौछार लगाकर धरती और इन्द्रलोक को एक कर दिया। इन्द्र ने देखा आज मकर संक्रान्ति है तो उन्होंने ऐरावत हाथी भेज दिया। गान्धारी और कुन्ती दोनों ने ही उसका पूजन किया। पूजन करते हुए गान्धारी ने कुन्ती से पूछा-बहन मैंने तो अपने सौ बेटों से एक महा पूर्व ही हाथी लाने को कहा पर आपने अर्जुन से आज ही क्या कहा कुन्ती हँसी और बोली-बहन संख्या में वे पाँच हैं तो क्यों? मुझे अपने बच्चों की समर्थता पर पूरा भरोसा है।
(३) आस्ट्रेलिया में कोई हिंसक जानवर नहीं पाया जाता तो भी वहाँ खरगोशों की संख्या अधिक नहीं है। ऐसा क्यों एक जीव शास्त्री से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वहाँ के खरगोश पानी के छोटे-छोटे गड्ढों के पास पानी के लिये, खाने, पीने के लिए लड़ते रहते हैं और लड़ मर कर अपनी संख्या आप घटाते रहते हैं।
(४) अमेरिका का बिल्ली की सी शक्ल का ओपोसम जन्तु बहुत बच्चे पैदा करता है। अपना पूरा कुनबा लेकर वे समुद्र की ओर चल पड़ते हैं दिन में कौवे, चील आक्रमण करके उन्हें नष्ट करते हैं इसलिये वे रात में छिपते हुए चलते हैं तो भी शिकार होने से नहीं बच पाते जो किसी तरह बच जाते हैं वे मारे प्यास के समुद्र में कूद पड़ते हैं और डूब कर मर जाते हैं।
(५) आचार्य काहोड़ अपनी धर्मपत्नी सुजाता को जितने दिन वे गर्भवती रहीं प्रतिदिन वेद-उपनिषद् सुनाया करते थे। काहोड़ एक दिन भूल से अशुद्ध उच्चारण कर गये इस पर गर्भस्थ शिशु ने टोक दिया। काहौड़ ने नाराज होकर बच्चे को टेढ़ा-मेढ़ा कुरूप होने का शाप दे दिया। वाचालता के कारण शाप भले ही भुगतना पड़ा हो पर माता-पिता के इन संस्कारों ने बच्चे को महान विद्वान बनाया। यही बालक अष्टावक्र नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(६) एक साधु के पास बैठे एक जिज्ञासु ने पूछा-महात्मन् शास्त्रों में बहु सन्तान का आशीर्वाद दिया जाता हैं आप क्यों कहते हैं कि सन्तान कम होनी चाहिए। साधु ने आकाश की ओर देखा चन्द्रमा निकलने में थोड़ी देर थी। उन्होंने पूछा-आकाश में क्या है? असंख्य तारे वह सज्जन बोले-अभी चन्द्रमा निकलेगा तब? तब तो महाराज चन्द्रमा के सामने सभी नक्षत्र प्रभाव हीन हो जायेंगे। बस यही उत्तर है तुम्हारी बात का, समर्थ हो तो एक ही सन्तान हजार के बराबर होती है।


(४१) सुसंस्कृत सन्तान के लिए पूर्व तैयारी आवश्यक

प्रश्न ——
(१) सिद्ध करो सन्तानोत्पादन इन्द्रिय लिप्सा नहीं एक महान उत्तरदायित्व है। (२) सन्तानोत्पादन के साथ-साथ पिता के दायित्व क्या हैं? (३) बच्चे समस्या कब बनते हैं? (४) बच्चों को सुसंस्कारी बनाना क्यों आवश्यक है। (५) अभिभावक को शान्ति व प्रसन्नता कैसे मिल सकती है। (६) बच्चों को सुसंस्कृत बनाने के लिये माता-पिता क्या करें। (७) कहते हैं कुसंस्कारी बालक देना राष्ट्रीय अपराध है क्यों? (८) राष्ट्र समृद्ध और यशस्वी कैसे बनता है। (९) प्रजनन की जिम्मेदारी के निर्वाह के लिये कौन सी तैयारियाँ आवश्यक हैं।

कथाएँ ——
(१) एक स्त्री ने सन्त सुकरात के पास जाकर पूछा-महाराज अपने पुत्र को पढ़ाना कब से प्रारम्भ करूँ? सुकरात ने पूछा-कितने वर्ष का हुआ है वह बालक! स्त्री बोली-पाँच वर्ष का। तब तो आपने ६ वर्ष की देर कर दी बच्चे की पढ़ाई तो उसके गर्भ में आने से पहले ही करनी चाहिए।
(२) महाराज दुष्यंत ने शकुन्तला को शाप वश घर से निकाल दिया। शकुन्तला गर्भवती थीं अतएव कण्व ने कहा-बेटी तुम मेरे आश्रम में रहो। पितामह के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए शकुन्तला ने कहा-तात मेरा पुत्र परीक्षित और उपेक्षित समझा जाये मैं यह स्वप्न में भी नहीं चाहती यह कहकर वे अकेले ही जंगल में रहकर तप करने लगीं और ऐसे बच्चे को जन्म दिया जिसके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
(३) मदालसा की कोख में पुत्र आता और वे नियम-संयम पूर्वक रहतीं। पुत्र के उत्पन्न होते ही वे कहतीं-शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि संसार माया परिवर्जनोऽसि। संसार स्वप्नं मोहनिद्रां मदालसा वाक्य-मुवाच पुत्र॥
यह संसार माया मोह का घर है वत्स! तू तो शुद्ध, बुद्ध निरंजन आत्मा है अपने आप का कल्याण कर। सभी बच्चे सन्त, संन्यासी होते गये यह देखकर राजा बड़े दुःखी हुये उन्होंने कहा-एक पुत्र तो ऐसा दो जो राज-काज कर सके। उस दिन से मदालसा ने राजनीति पढ़ना, राजनीति का चिंतन करना, राज काज में भाग लेकर राजनैतिक संस्कारों का अभिवर्द्धन किया। और उसी का फल था कि अगला पुत्र राज्य का उत्तराधिकारी बना।
(४) रुक्मिणी को सन्तान की इच्छा हुई। अपनी इच्छा उन्होंने भगवान् कृष्ण से व्यक्त की तो उन्होंने कहा-यदि ऐसी बात है तो चलो हम कल ही हिमालय तपश्चर्या के लिए चलेंगे। तप की बात सुनकर रुक्मिणी ठिठकी तो कृष्ण ने कहा-प्रिये किसी आत्मा को संसार में लाने का अधिकार तभी मिल सकता है जब उसे संस्कारवान बनाने की क्षमता भी हो। रुक्मिणी ने वस्तुस्थिति को समझ लिया और तप के लिए हिमालय चल दीं। तप के प्रभाव से उन्हें प्रद्युम्न जैसे वीर बालक की माता होने का सौभाग्य मिला।
(५) एक महात्मा के पास एक सती गई और बोली-महाराज चरणोदक दें तो मेरे गर्भ का बालक भी महान् बने। सन्त ने कहा-बेटी चरणोदक और आशीर्वाद से नहीं तुम्हारे रहन-सहन आहार-बिहार और आत्मिक शुद्धता से सन्तान महान् बनेगी।
(६) कपिल मुनि जिस रास्ते से गुरुकुल जाते, उसमें एक विधवा का घर पड़ता, विधवा की निर्धनता से दुःखी होकर वे एक दिन उसके पास जाकर बोले तुम चाहो तो आर्थिक सहायता का प्रबन्ध करा दूँ। विधवा ने कहा-मुनिवर आपने भूल की, मेरे तो एक अत्यन्त अमूल रत्न है? मुनि ने चारों तरफ दृष्टि दौड़ाई, कुछ दिखा नहीं। वे पूछ बैठे क्या वह रत्न मुझे भी दिखायेगी। अभी यह बात हो ही रही थी कि उसका पुत्र पढ़कर लौटा उसने माँ के पैर छूकर कहा-माँ आज भी मैंने अपना पाठ ठीक तरह पढ़ा लाओ कुल्हाड़ी अब लकड़ियाँ ले आऊँ? कपिल बच्चे के संस्कारों से बड़े प्रभावित हुए उन्होंने कहा-सचमुच संस्कारवान् पुत्र और रत्न में कोई अन्तर नहीं।


(४२) बालकों को जन्म ही न दें, उनका निर्माण भी करें

प्रश्न ——
(१) अभिभावकों के प्रमुख कर्तव्य क्या हैं? (२) बच्चों का विकास किन बातों पर निर्भर रहता है? (३) शिशु निर्माण के सम्बन्ध में रहस्य की बात क्या है? (४) व्यक्ति की सुख शान्ति के लिए किन तत्त्वों की आवश्यकता है? (५) बच्चों को संस्कारवान् बनाने के लिये माता-पिता को क्या करना चाहिये। (६) गर्भवती के आस-पास कैसा वातावरण रखना चाहिये। (७) शिशु जन्म के बाद माता-पिता को अपना आचरण कैसा रखना चाहिये? (८) बच्चों का सच्चा शिक्षण कहाँ होता है-वह किस पर निर्भर है? (९) विवाह प्रचलन की सार्थकता किसमें हैं? (१०) प्रयत्न पूर्वक कैसी चेष्टा की जानी चाहिये।

कथाएँ ——
(१) बेटी-बेटे ने शरारत की, एक फल वाले के फल कीचड़ में गिरा दिये। माँ ने फल वाले के पैसे तो चुका दिये पर लड़के को ३ माह तक नाश्ते के पैसे न मिले। इस कढ़ाई का ही फल था कि यही बच्चा आगे चल कर नैपोलियन बोनापार्ट बना।
(२) एक स्त्री अपने बच्चे को पीटे जा रही थी लोगों के पूछने पर उसने बताया इसने मंदिर से पैसे चुराये हैं। अभी स्त्री यह बता भी नहीं पाई थी कि लड़का बोला-तू तो रोज ही आधा पानी मिला कर दूध बेचती है मैंने एक दिन पैसे चुरा लिये तो क्या हुआ। भीड़ में खड़ा एक वृद्ध बोला-जैसे जिसके माँ-बाप तैसा उनका बेटा।
(३) दार्शनिक इम्पानुएल काँट एक मोची परिवार में जन्मे पर उनकी माँ तथा पिता ने उनमें ईश्वर निष्ठा, सदाचार, संकल्प शक्ति के तीव्र विचार भरे। एक दिन कान्ट चर्च गये वहाँ जाकर देखा कि पादरी कहते तो कुछ हैं पर करते कुछ हैं। बालक का मन झूठे अध्यात्म के प्रति घृणा से भर गया तब उन्होंने माँ की प्रेरणा से ‘‘क्रिटिक आफ फोर रीजन’’ और ‘क्रिटिक आफ प्रैक्टिकल रीजन’ लिखे उन्होंने सारी दुनियाँ में तहलका मचा दिया।
(४) गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे। अन्य लोगों की तरह पुत्र देवदास को भी आश्रम के नियमों का कड़ाई से पालन करना पड़ता। एक दिन कढ़ी बनी। कुछ लोगों का उस दिन व्रत था उनमें देवदास भी थे। उन सबका कढ़ी खाने को मन कर आया। उन्होंने देवदास को आगे कर दिया। देवदास पिता से जिद्द कर बैठे। बापू ने अपने गाल पर दो तमाचे मारकर कहा-बेटा बचपन में मेरी आदत ऐसी न रही होती तो तू आज व्रत तोड़ने की हिम्मत न करता। बापू की दृढ़ता के आगे परास्त बच्चे ने व्रत का पालन किया और कभी वचन भंग नहीं किया।
(५) रामकृष्ण परमहंस की माता जी वृद्धावस्था में गंगाजी के किनारे रह कर भगवान् की उपासना करने लगीं। उनके दामाद ने एक बार बहुतेरा पूछा-आपकी कुछ आवश्यकता हो तो लाऊँ। पर वे मना ही करती रहीं। बहुत आग्रह करने पर उन्होंने कहा-बेटा नहीं मानते तो एक पैसे का पान ले आ। दामाद अवाक् रह गये। बोले-इतना त्याग न होता तो तुम्हारी कोख से रामकृष्ण कैसे जन्म लेते?
(६) पाण्डव मन मारे बैठे थे। कौरवों ने चक्रव्यूह का निमन्त्रण भेजा था। उसे भेदन करना केवल अर्जुन ही जानते थे जो उस समय उपस्थित न थे तब अभिमन्यु ने आगे बढ़कर कहा-मेरे पिता ने मुझे गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन बता दिया था पर जब वे बाहर निकलने की विधि बताने लगे तो माँ को नींद आ गई इसलिये निकलने की विधि नहीं जानता। इतिहास प्रसिद्ध घटना है कि बड़े-बड़े महारथियों को परास्त कर १४ वर्षीय अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदन करने में सफलता पाई।


(४३) सन्तान को स्वावलम्बी भर बनाना ही पर्याप्त है

प्रश्न ——
(१) मनुष्य की अपनी सन्तान के प्रति क्या जिम्मेदारियाँ हैं? (२) अभिभावक अपनी सन्तान का पालन-पोषण किस प्रकार करें कि वह विलासी, चटोरी, एवं अहंकारी न बने? (३) अपने देश में विदेशों की अपेक्षा दो जिम्मेदारियाँ और क्या बढ़ जाती हैं? (४) संतान के पालन-पोषण के अलावा मनुष्य के और क्या कर्तव्य हैं? (५) मनुष्य को सन्तान के स्वावलम्बी होने के बाद अन्य क्या कर्तव्य करते रहना चाहिए? (६) स्वावलम्बी सन्तान को अपनी बची खुची सम्पत्ति किस प्रकार अपराध है? (७) प्राचीनकाल में सन्तान किस प्रकार अपना कर्तव्य पूरा करती थी? (८) आज का मानव किस प्रकार का व्यवहार कर रहा है?

कथाएँ ——
(१) राजा महेन्द्रप्रताप के कोई संतान नहीं थी। उनकी धर्मपत्नी ने लड़का गोद लेने की इच्छा की। राजा साहब ने कुछ दिन पीछे सब जगह घोषणा करा दी कि उन्हें पुत्र हुआ है नामकरण के लिये उन्होंने मालवीय जी को बुलाया। सबने पूछा-लड़के को लाओ, राजा साहब ने एक कागज निकाल कर दिया जिसमें एक विद्यालय की रूपरेखा थी और सारी सम्पत्ति उसी में लगाने का प्राविधान। प्रेम महाविद्यालय लव वृन्दावन के नाम से इसी विद्यालय ने अनेक राष्ट्रीय नेता दिये।
(२) श्रावस्ती के नगर सेठ चेट्ठियार ने अपने पुत्रों के लिये अपार सम्पत्ति इकट्ठा करने के उद्देश्य से अपना उद्योग खूब बढ़ाया, अनुचित तरीके से धन कमाने के कारण अपयश का भागी बना। एक दिन उसके एक वेश्यागामी पुत्र ने उसकी चुपचाप हत्या कर दी। सभी भाइयों में सम्पत्ति के बँटवारे पर झगड़ा। हो गया। बन्दी बनाकर उन्हें जेल भेज दिया गया और सारी सम्पत्ति राज्य कोष में जमा कर दी गई।
(३) एक बच्चे ने पिता से शिकायत की पिताजी मेरे सभी मित्रों को उनके पिता अभी भी पैसा देते हैं आप तो उनके लिये भविष्य के लिये इकट्ठा करते हैं और भविष्य के लिये कुछ करना तो दूर अभी भी मुझसे मेहनत कराते हैं। पिता बोला ——
बेटा मैं यह नहीं चाहता कि तू भी दूसरे लोगों की तरह मुफ्त धन पाकर शराबी, जुआरी और व्यभिचारी बने, बिना परिश्रम की कमाई ऐसे ही पाप कराती है। पिता की इस कड़ाई का ही फल था कि यह लड़का इंग्लैण्ड का धन कुबेर एलियस स्टो बना। (४) एक सद्गृहस्थ के तीन लड़के थे। गृहस्थ यह नहीं चाहता था कि लड़कों को अनावश्यक धन देकर उनका भविष्य चौपट कर और उन्हें परावलम्बी बनाये अतएव उसने सबसे बड़े लड़के को एक हजार बतौर ऋण देकर बी. ए. तक पढ़ाया, सर्विस में लग जाने पर उसे किश्तवार लेकर दूसरे को पढ़ाया, और उससे भी एक हजार का ऋण पत्र लिखा लिया जो तीसरे लड़के के काम आया। तीसरा लड़का भी पढ़कर नौकरी से लग गया तो उसको दिया एक हजार का ऋण लेकर अपनी वृद्धावस्था सुख पूर्वक काटी। लड़के भी बुराइयों से बच गये।
(५) संदीपन के शिष्य सुदामा गुरुकुल चलाते थे पर आर्थिक अभाव के कारण उनको बड़ा कष्ट उठाना पड़ता था। विद्यार्थियों को बैठने की समुचित जगह भी नहीं थी। यह बात भगवान् श्री कृष्ण ने सुनी तो उन्होंने अपने पुत्र को मिलने वाली अधिकांश सम्पत्ति उस विद्यालय को यह कहते हुये-कुछ लोग अपने पुत्रों के लिये धन संचय करके रखे और कुछ निर्धन पढ़ भी न सकें —दान कर दिया।
(६) इटली की विशाल अब्रोशियन लाइब्रेरी के अध्यक्ष एचिले ने तीन विषयों में डाक्ट्रेट प्राप्त की, आजीविका के लिये नौकरी कर ली। लोगों ने कहा-तुम्हारा धन किसके काम आयेगा विवाह कर लो तो उन्होंने कहा-कमाई पुत्रों को ही मिले यह क्या बात? उन्होंने कहा-समाज का हर बच्चा मेरा बच्चा है। यह कहकर उन्होंने एक अनाथ विद्यालय खोल दिया और अपना सारा धन उसी में लगा दिया।


(४४) पर्दा प्रथा—नारी के साथ बरती जाने वाली एक नृशंस अनीति

प्रश्न ——
(१) नर और नारी किस तरह एक दूसरे के सहयोगी हैं? (२) अपने समाज में नारी जाति की स्थिति कैसी है? तथा इससे क्या हानियाँ हैं? (३) पर्दा प्रथा कहाँ से प्रारम्भ हुई? तथा उसके प्रचलित होने के कारण क्या हैं? (४) अपने यहाँ पर्दा प्रथा प्रचलन के कारणों पर प्रकाश डालिये? (५) नासमझ वर्ग के लोगों के दिमाग में क्या बात घर कर गई है? (६) अमीरी न होते हुए भी अमीरी वे किस तरह व्यक्त करते हैं? (७) विवाहों के अवसर पर अमीरी दिखने की उत्कंठा चरम सीमा पर पहुँच जाती है? कैसे? (८) अमीरी प्रदर्शित करने वाले स्त्री और पुरुष का समझदार वर्ग पर क्या असर पड़ता है? (९) ठाठ-बाट और अपव्यय के बजाय बचत का पैसा हमें कहाँ खर्च करना चाहिये? (१०) सादगी सज्जनता का प्रतिनिधित्व करती है सिद्ध कीजिये?

कथाएँ ——
(१) श्री लाल बहादुर शास्त्री उन दिनों उत्तर प्रदेश में गृह मंत्री थे। एक दिन वे ऑफिस में थे तब सार्वजनिक निर्माण विभाग वाले उनके घर कूलर लगा गये। शास्त्री जी लौटकर घर आये तो बोले-मंत्री होने का यह अर्थ नहीं कि मैं देश की सम्पत्ति को विलासिता में उपयोग करूँ-यह कहकर उन्होंने कूलर हटवा दिया।
(२) कौशल नरेश वेतन के अतिरिक्त अपने पाँच सौ कर्मचारियों को कीमती वस्त्र भी बाँटा करते एक दिन भिक्षु आनन्द का उपदेश हुआ उन्होंने बताया मनुष्य को वस्तुओं का सीमित-उपयोग करना चाहिये। अधिकार है तो भी विलासिता पूर्ण वस्तुओं का संग्रह न करे। यह सुनकर सभी कर्मचारियों ने अपने राज्य प्रदत्त वस्त्र न लेने का निश्चय किया। कौशल नरेश आनन्द से मिले और पूछा-महात्मन् आप शास्त्र के ज्ञाता हैं फिर आपने-अपने भिक्षुओं के लिये ५-५ चीवरों का संग्रह क्यों कर लिया। आनन्द बोले तात! कोई भी भिक्षु अधिक वस्त्र नहीं रखता। उन्हें एक चीवर पहनने के लिये एक उत्तरीय वस्त्र एक अन्तर वासक और बिछौने के लिये एक बचती है वह इनमें से कोई फटे उसकी स्थानापित्त कर सकता है। यह सीमित उपयोग ही जीवन की सच्ची नीति है।
(३) गाँधी जी का भाषण समाप्त हुआ। लोग तो उठ-उठ कर चल दिये पर गाँधी जी स्टेज से नीचे कुछ ढूँढ़ने लगे। पूछने पर पता लगा दो पैसे का सिक्का नीचे गिर गया है। उन्हें पैसा ढूँढ़ने में परेशान देखकर एक सज्जन बोले-छोड़िये बापू। दो पैसे के लिये यदि सम्हाल न पाऊँ तो यह मेरे लिये पाप होगा यह कर कर वे फिर पैसा ढूँढ़ने लगे, सिक्का मिल गया तभी वहाँ से हटे।
(४) रोजन्द्रबाबू काँग्रेस के अध्यक्ष चुने जा चुके थे इलाहाबाद में उनका भाषण थे वहाँ गये तो ‘‘लीडर—’’ के लिये सम्पादक श्री सी. बाई. चिन्तामणि से मिलने चले गये। चपरासी को परिचय कार्ड देकर वे बाहर बैठ गये। चपरासी ने बिना कुछ कहे कार्ड टेबल पर जाकर रख दिया। श्री चिन्तामणि की दृष्टि कार्ड पर देर से गई। जैसे ही देखा दरवाजे की ओर भगे आये और राजेन्द्र बाबू से क्षमा याचना करने लगे। राजेन्द्र बाबू बोले और इसमें क्षमा याचना की क्या बात? इतनी देर में अपने कपड़े सुखा लिए। क्योंकि बदलने के लिए दूसरे कपड़े न थे।
(५) जेल में गाँधीजी के साथ-साथ शंकरलाल जी बैैंकर भी थे। उन्होंने किसी तरह गाँधीजी से उनके कपड़े धोने की अनुमति ले ली और कपड़ों में कई बार साबुन लगाकर उन्हें चमकाने लगे। गाँधीजी ने यह देखा तो बड़े दुःखी हुए और दूसरे दिन से कपड़े स्वयं धोते हुए कहा-तुम दो कपड़ों में उतना साबुन मसल देते हो जितने से चार कपड़े धोए जा सकते हैं।
(६) घड़े में पानी भर कर नीचे एक छेद कर दिया गया। पानी बूँद-बूँद कर दिन भर में हौज में टपक गया। एक बूढ़े सद्गृहस्थ ने बच्चों को समझाया बच्चों जिस प्रकार एक-एक बूँद रिसने से यह घड़ा खाली हो गया। न समझ में आने वाला अपव्यय परिवार की अर्थ व्यवस्था को खोखला कर देता है।

(४५) अपव्यय एक पाई का भी न करें

प्रश्न ——
(१) धन का उपार्जन किन-किन बातों पर निर्भर करता है? (२) क्या आर्थिक क्षेत्र के अनुसार वह व्यक्ति बुद्धिमान कहला सकता है जो अधिक धन उपार्जन करे? नहीं तो कौन व्यक्ति बुद्धिमान कहला सकता है? (३) जिस प्रकार हम उस व्यक्ति को जो काफी अधिक धन उपार्जन करता है तथा काफी अधिक खर्च करता है मूर्ख कह सकते हैं? (४) लोग फिजूल खर्ची किस धारणा के आधार पर करते हैं? (५) कैसे हम किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का स्तर परख सकते हैं? (६) वे कौन से आवश्यक कार्य हैं जिन पर हमें खर्च करना अनिवार्य ही होता है? (७) परिवार के प्रति हमारे क्या आर्थिक कर्तव्य हैं? (८) धन का व्यय करने से पहले हमें क्या सोचना चाहिए? (९) आज के युग में अपव्यय के क्या साधना हैं? (१०) पारिवारिक उत्तरदायित्व के अतिरिक्त और हमारे ऐसे कौन से कार्य हैं जिन पर हमें पैसे व्यय करना अनिवार्य है?

कथाएँ ——
(१) हजरत मोहम्मद अपनी पुत्री फातिमा से मिलने गये। पुत्री वेश कीमती वस्त्र और आभूषण पहने उनसे मिलने द्वार पर आई तो हजरत मोहम्मद दुःखी हुए और वहाँ से लौट कर चल दिये। फातिमा पिता के हृदय की बात समझ गई। उसने अपने सारे बहुमूल्य वस्त्राभूषण बाँधकर पिता के पास पहुँचा दिये। पिता ने उस धन को गरीबों में बाँट दिया और अपनी पुत्री से मिलने उसके घर की ओर चल दिये।
(२) अमेरिका दार्शनिक थोरो को एक महिला ने चटाई भेंट की चटाई बहुत सुन्दर थी पर थोरो ने उसे अस्वीकार करते हुए कहा-बहन अपने घर को संग्रहालय बनाऊँ इससे अच्छा है आप इसे किसी जरूरतमन्द को दे दें ताकि इसका उपयोग तो हो जाए।
(३) स्व० राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्रप्रसाद राँची प्रवास पर थे। पैर में जूते की कील गड़ रही थी अतएव उन्होंने अपने सक्रेटरी से गौ रक्षक जूता मँगाया। सचिव उन्नीस रुपये का जूता लेकर आया तो राजेन्द्र बाबू चिन्ता में पड़ गये बोले-दस रुपये के जूते से काम चल सकता है तब फिर इतना मँहगा जूता क्यों लाये? सचिव उसे लौटाने चल पड़े तो उन्होंने कहा-अब वहाँ जाने में मोटर का पेट्रोल और खर्च करोगे अब ऐसा करो जब गाड़ी उधर से निकले तभी इन्हें बदल लेना। राष्ट्रपति की इस किफायत शारी पर उपस्थित सभी लोग बहुत प्रभावित हुए।
(४) गाँधीजी ने रेल में सफर कर रही एक स्त्री से कहा-बहन अच्छे कपड़े नहीं पहन सकतीं तो कम से कम इन्हें साफ तो कर लिया करें। स्त्री बोली-क्या करूँ बापू! धोती एक ही है इसी को आधी धोकर निचोड़ लेते हैं फिर स्नान करके आधी सुखा लेते हैं आप ही बताइये इसे धोये कैसे? गाँधीजी की आँखों में आँसू आ गये। वे बोले-जिस देश में इतनी निर्धनता हो वहाँ फैशन परस्ती नहीं चल सकती। यह कहकर उन्होंने आधी धोती पहन कर कम्बल ओढ़ने की प्रतिज्ञा की और मरते दम तक उसी सरलता से जीवन बिताया।
(५) बड़ी देर से कुछ ढूँढ़ रहे गाँधीजी से काका कालेलकर ने पूछा-बापू किस बात के लिये परेशान हैं। पेन्सिल के टुकड़े के लिये। काका कालेलकर बड़ी पेन्सिल देते हुये बोले-छोड़िये उसे यह लीजिये। गाँधीजी ने कहा-अपव्यय किसी भी वस्तु का नहीं करना चाहिये। वही पेन्सिल ढूँढ़कर उन्होंने काम किया।
(६) करनाल में नादिरशाह से हारने के बाद मुहम्मद शाह ने संधि कर ली। बादिरशाह दिल्ली आया। किसी परामर्श के बीच नादिरशाह ने पीने का पानी माँगा इस पर मुहम्मद शाह ने शादी अदा के साथ नगाड़ा बजवाया दस-बारह नौकर एक कटोरे में जल लेकर कोई उसे पकड़े, कोई मखमली कपड़े से ढके, कोई हवा करते हुए वहाँ पहुँचे। नादिरशाह ने घबराकर पूछा-यह क्या नाटक है। मुहम्मद शाह ने कहा-हुजूर आला आपके स्वागत में जल लाया जा रहा है। नादिरशाह ने कहा-इस तरह पानी पीते तो ईरान से भारत नहीं आ पाते। कहकर उसने अपने भिश्ती को बुलाया और लोहे के टोप में भरकर भर पेट पानी पिया।


(४६) धन का उपार्जन ही नहीं, सदुपयोग भी ध्यान में रहे

प्रश्न ——
(१) आजीविका प्राप्त करने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण क्या है? (२) पैसा खर्च करने में किन-किन गुणों का होना अनिवार्य है? (३) उन गुणों के न होने से क्या हानियाँ होती हैं? (४) किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता किस बात पर परखी जा सकती है? (५) व्यक्ति धनवान किस प्रकार बन सकता है? (६) सामान्य आजीविका से भी अपना खर्च किस प्रकार चलाया जा सकता है? (७) अपना बजट हमें किस प्रकार का बनाना चाहिये? (८) हम किन-किन अनावश्यक खर्चों को कम करके बचत कर सकते हैं? (९) जेब में रुपया रख के घूमना और उधार लेना किस प्रकार हानि कारक है? (१०) अमीरों के रहन-सहन की नकल करना किस प्रकार हानिकारक है?

कथाएँ ——
(१) सरदार वल्लभभाई पटेल विलायत पढ़ने जाना चाहते थे पर तभी उनके भाई की भी इच्छा हो आई कि हम भी विलायत जायें जब कि पैसा बहुत ही थोड़ा था। आखिर वल्लभभाई पटेल ने अपने बड़े भाई को विलायत भेज दिया और खुद किफायत शारी का जीवन जीने लगे। कुछ दिन में भाई पढ़कर आ गये तब भाई साहब किफायत शारी का जीवन जीने लगे और वल्लभभाई पटेल विलायत पढ़ आये। धन का सदुपयोग ऐसे ही सत्परिणाम देता है।
(२) एक दिन एक मनुष्य आकर साधु को अपना दुखड़ा सुनाते हुए बोला-महात्मन् मेरे पास धन की अथाह राशि है फिर भी मैं सुखी नहीं हूँ। मुझे हमेशा यही डर बना रहता है कहीं ऐसा न हो मैं भिखारी हो जाऊँ। साधु ने पूछा-यह तो बताओ तुम्हारे खर्च के क्या तरीके हैं। उन मनुष्य ने बताया-जितना लड़का चाहते हैं लड़के ले जाते हैं स्त्रियाँ चाहती हैं स्त्रियाँ लें जाती हैं फिर मुझे भी हजार खर्च लगे हैं अपनी शान शौकत वर-करार रखने के लिये। साधु बोला-बस अभी तक तुमने धन कमाने की कला सीखी अब जाकर खर्च करना भी सीखो तो सुखी रहेंगे।
(३) चिड़िया दिन भर के खाने भर को इकट्ठा कर लेती और दिन भर खेलती रहती। चींटी उसे समझाती देख बहन! कभी अकाल पड़ जाए। कुछ और हो जाए इसलिये कुछ भविष्य के लिये भी बचाकर रखा करो। चिड़िया ने चींटी का मजाक उड़ाकर कहा-बहन भविष्य की चिन्ता तुम्हीं करो। चींटी तो चुपचाप अपने काम में लगी रही। चिड़िया खेलती रही। आ गई बरसात खेतों में दाना बचा नहीं तब भी चींटी के पास अन्न था। पर चिड़िया भूख न सह सकी और मर गई।
(४) सेठ के पास अपार सम्पत्ति थी तो भी वह दुःखी था पर एक मजबूर थोड़ा पाता था उसी में सारा परिवार मस्त रहता था। सेठ ने एक दिन एक प्रसिद्ध महात्मा से जाकर यही बातें कहीं और पूछा, मैं दुःखी और मजबूर सुखी क्यों है। महात्मा ने उससे ९९ रुपये लेकर रात में चुपचाप मजदूर के आँगन में टपका दिये। दूसरे दिन मजदूर ने ९९) की पोटली देखी तो सोचा १००) करना चाहिये फलस्वरूप उन्होंने इस दिन उपवास रखा घर के बच्चे कुड़-मुड़ाते रहे। एक दिन में ही खींचतान मच गई। साधु ने समझाया-देख सेठ! पैसा पैदा करना समझदारी नहीं समझदारी उसका उपयोग है। मजदूर कल तक इसी पैसे से कितना सुखी था पर आज पैसे पाकर भी दुःखी है।
(५) बसरा का एक व्यापारी रेगिस्तान में भटक गया। कई दिन तक मारा-मारा घूमा तब तक नखलिस्तान दिखाई दिया। भूख से प्राण निकल रहे थे। तभी उसे एक पोटली दिखाई दी। उसने लपक कर पोटली खोली आशा थी उसमें चने होंगे पर खोलने पर निकले मोती। व्यापारी भूख से तड़प-तड़प कर मर गया और अपने पीछे एक शिक्षा छोड़ गया कि धन जीवन की मूल आवश्यकता नहीं है। ठीक प्रकार चले तो मनुष्य थोड़े धन में ही सुखी रह सकता है।
(६) एक सेठ धन जमा करते गये खर्च के नाम पर कानी कौड़ी भी मुश्किल से निकालते एक दिन तिजोरी में बैठे रुपया गिन रहे थे कि उधर झटके के कारण खटका गिर जाने से तिजोरी अपने आप बन्द हो गई। सेठ चिल्लाते रहे पर बन्द होने के कारण किसी ने उनकी आवाज न सुनी। सातवें दिन लड़के ने तिजोरी खोली तो सेठ की सड़ी लाश निकली, जिसने भी सुना कहा-अति संचय का यही फल होता है।


(४८) जेवरों का भौंड़ा फैशन—हर दृष्टि से हानिकारक

प्रश्न ——
(१) पिछले समय में जेवरों के बनवाने के कारणों पर प्रकाश डालिये? (२) अब पैसे को जेवरों के रूप में बदलना हानिकारक क्यों है? (३) वर्तमान समय में भी यदि जेवरों का प्रचलन रहा तो हमारे देश को किस तरह हानि उठानी पड़ेगी? (४) स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जेवरों का पहनना हानिकारक है सिद्ध कीजिये? (५) जेवरों के बनवाने के कारण हमारे परिवारों को क्या हानियाँ होती हैं। (६) क्या ऐसे कोई कारण हैं कि जिनके आधार पर हमें यह जेवरों को भोंडा फैशन छोड़ना चाहिये? (७) जेवरों से खुद हमें क्या हानियाँ होती है? (८) जेवर प्रथा बन्द होने से विवाहों की अवस्था में क्या सुधार हो सकता है?

कथाएँ ——
(१) रामलाल और श्यामलाल का बँटवारा हुआ रामलाल स्त्री के कहने में आ गया और सारी पूँजी जेवरों में फँसा दी श्यामलाल भी वैसा ही करना चाहता था पर स्त्री ने समझाया मुझे जेवर बनवाकर बच्चों का भविष्य नष्ट न करो, इन पैसों से कोई उद्योग करो। श्यामलाल ने दुकान खोल ली उसके लड़के भी पढ़ गये मकान भी बन गया, उद्योग भी चलता रहा जब कि रामलाल अपनी स्त्री के जेवर ही लिये बैठा था।
(२) स्त्री के कहने पर एक आदमी ने उसे एक तोले की जंजीर बनवा दी, कुछ दिन पीछे स्त्री बोली इस जंजीर की बिंदिया बनवा दो, दुबारा तुड़ाने में १ आना सोना जल गया और बिंदिया भी कुछ ही दिन पहनी गई अब स्त्री ने अँगूठी का आग्रह किया बिंदिया तुड़वाई गई तब फिर एक आना सोना बेकार गया तब स्त्री ने कानों के कुंडल की बात रखी, एक तोले सोने का बाहर आना रह गया तब कुंडल बने एक दिन स्त्री कहीं जा रही थी कि एक कुंडल खिसक कर गिर गया और शेष पूँजी ६ आने बची आदमी ने माथा ठोका और कहा-जेवर ने हमारा विवेक ही नष्ट कर दिया।
(३) श्री रामानुज शास्त्री मैसूर महाराज के दीवान होकर भी अत्यन्त सादगी से रहते। अपनी आय वे पिछले लोगों की शिक्षा आदि में लगा देते। एक दिन महाराज के घर की स्त्रियाँ उनके घर आईं। श्री शास्त्रीजी की धर्मपत्नी को सादी वेषभूषा में देखकर उन्हें दुःख हुआ। वे उन्हें अपने साथ ले गईं और अपने घर से कीमती आभूषण पहना कर पालकी में बैठाकर भेजा। श्री शास्त्री ने देखा तो घर के दरवाजे बन्द कर लिये बहुत आग्रह पर भी उन्होंने दरवाजा न खोला बोले-विचारशील होकर भी हम जेवर-जकड़े को महत्त्व देंगे तो सामान्य प्रजा का क्या होगा। धर्मपत्नी वापस जाकर गहने लौटा आईं तभी शास्त्रीजी ने दरवाजा खोला।
(४) एक व्यक्ति के पास पूँजी थोड़ी थी पर पति-पत्नी खूब प्रसन्न रहते थे। पड़ोसी को देखकर उन्हें भी जेवर बनवाने की सूझी। जेवर के लिए जा रहे थे तब निगाह एक चोर की पड़ गई उसने समझा यह धनी आदमी हैं रात सेंध काटी तो जेवर के साथ यह भी ले गये। वह आदमी बोला जेवर न बनवाते तो चोरी की नौबत क्यों आती।
(५) हरिजन-फंड के लिये कुछ पैसों की आवश्यकता थी बापू चिन्ता में थे कि पैसा कहाँ से लायें तथा कस्तूरबा ने अपने मंगल-आभूषण उन्हें सौंपते हुए कहा-जेवर की प्रथा कभी इसलिये बनी थी कि वह पूँजी समय पर काम आये सो आप इन्हें ले जाइये और अपना काम चलाइये।


(४९) माँस मनुष्यता को त्याग कर ही खाया जा सकता है

प्रश्न ——
(१) आमिष आहार की हानियों पर प्रकाश डालिये? (२) जार्ज बर्नाड शा के शब्दों में माँस खाना अपराध क्यों है? (३) मानव प्राणी की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? (४) सिद्ध कीजिये माँसाहार मानव की प्रकृति के विरुद्ध है? (५) माँसाहार के विरुद्ध विदेशी डॉक्टरों के कथन देते हुए सिद्ध कीजिए कि असाध्य रोगों का कारण माँसाहार है। (६) क्या यह सत्य है ‘‘जैसा खाये अन्न वैसा बने मन।’’ सप्रमाण सिद्ध कीजिये। (७) विभिन्न धर्मों-उपदेशकों के मतों को उद्धृत करते हुए सिद्ध कीजिये कि माँसाहार पाप है। (८) ‘‘ने केवल शरीर अपितु मन की पवित्रता के लिए भी माँसाहार नहीं करना चाहिए—’’ इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिये। (९) माँसाहार निष्ठुरता एवं क्रूरता का प्रतीक है, विवेचन कीजिये। (१०) शाकाहारी दीर्घजीवी होते हैं-सिद्ध कीजिये।

कथाएँ ——
(१) इंग्लैण्ड में दोस्तों के बहुत दबाव के कारण गाँधीजी ने एक दिन बकरी का माँस खा लिया। उस दिन रात भर उन्हें दुःस्वप्न दिखाई देते रहे और यह लगा कि पेट में बकरी बोल रही है उन्होंने अनुभव किया-माँस खाना अनैतिकता और जीव हिंसा का पाप है फिर कभी उन्होंने माँस को हाथ न लगाया।
(२) वसई कलाँ आगरे के भिश्ती सुन्नूखाँ ने एक दिन एक बकरे को कटते देखा तो उनकी आत्मा काँप उठी और लगा कि माँस खाना दुनिया का सबसे बड़ा पाप है उस दिन से सुन्नूखाँ से चाहे हिन्दू हो या मुसलमान सभी को माँस खाना छुड़ाना प्रारम्भ कर दिया। जिन घरों में वह पानी भरते थे कोई भी माँस नहीं खा सकता था। दसे की बीमारी से ५८ वर्ष की आयु में मरे तब तक सुन्नूखँ ने सारे गाँव को निरामिष भोजी बना दिया।
(३) जार्ज वर्नार्डशा एक भोज में सम्मिलित हुए। वे शाकाहार करते थे पर परोसा गया माँस। सब लोग खाने लगे तब वे चुपचाप बैठे रहे। परोसने वाले ने पूछा-आप क्यों नहीं खाते? इस उप उन्होंने उत्तर दिया-मेरा पेट कोई कब्रिस्तान नहीं है। आखिर उन्हें दूध फल और सब्जी दी, तब उन्होंने वही खाया।
(४) गुजरात के प्रतिष्ठित कवि झबेर भाई के पिता ने पुलिस वालों को खीर की दावत दी। गाँव वालों ने सारा दूध ले लिया गया बछड़ों के लिए भी दूध न बचा। सब लोग खीर खाने बैठे, खीर झबेर को भी पड़ोसी गई पर उन्होंने उसकी उँगली तक नहीं लगाई। पिता ने पूछा क्यों बेटा खीर नहीं खा रहे। झबेर भाई ने कहा-पिताजी गाँव के सारे बछड़े इस समय भूख से तड़प रहे होंगे और हम सब खीर खा रहे हैं ऐसी खीर गले से नीचे नहीं उतरती यह भी तो एक प्रकार का माँसाहार ही है। सब लोग लड़के की करुणा से द्रवित हो उठे। उसी समय ग्रामवासियों को दूध का पूरा पैसा चुकाया गया और फिर किसी दिन उस तरह का दूध वसूल नहीं किया गया।
(५) सन्त राघवदास एक घर में गये तो देखा एक महिला एक स्तन में अपने बच्चे को दूध पिला रही है दूसरे में एक बकरी के बच्चे को। पूछने पर पता चला कि बकरी बाढ़ के कारण बह कर मर गई है और बच्चा ऊपर से दिया दूध पीता ही नहीं। महिला की करुणा से राघवदास बहुत प्रभावित हुये उस दिन से उन्होंने घूम-घूम कर जीव दया का प्रचार कराना शुरू कर दिया।
(६) एक पौण्ड माँस में यूरिक एसिड विष ——

काँर्ड मछली में-४ ग्रेन
सुअर में-६ ग्रेन
भेड़ व बकरी में-६ ग्रेन
बछड़े में-८ ग्रेन
चूजे में-९ ग्रेन
गाय विभिन्न अंगों के माँस में-९ से १९ ग्रेन तक
माँस के शोरबे में-५० ग्रेन
यह विष दिल की जलन, टी. बी., जिगर की खराबी, साँस रोग, गठिया, हिस्टीरिया, अधिक नींद, अजीर्ण, जुकाम आदि रोग पैदा करता है।
डॉ० अलेक्जर हेग-लंदन की रिपोर्ट


(५०) तम्बाकू का दुर्व्यसन छोड़ा ही जाना चाहिए

प्रश्न ——
(१) बुद्धिमानों एवं शिक्षकों के व्यसनों में प्रमुख कौन-सा व्यसन है? इसे मिटाना क्यों आवश्यक है? (२) तंबाकू में कौन २ से विष होते हैं? (३) तंबाकू के सेवन से कौन-कौन से रोग होते हैं? (४) तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानि क्या करता है? (५) तंबाकू खाने वाला अल्प जीवी क्यों होता है? (६) तंबाकू पीने वाले के आर्थिक व्यय पर प्रकाश डालिये? (७) तंबाकू के व्यसन से राष्ट्रीय क्षति कितनी होती है? (८) विनाश के उत्पादन से क्या समझते हो? इस व्यय को अन्य उद्योगों में कैसे लगाया जा सकता है? (९) तंबाकू से अपराध वृत्ति कैसे पनपती है? (१०) ‘‘सभी धर्मों ने नशेबाजी की निन्दा की है’’ सिद्ध कीजिये? तंबाकू का सेवन अप्राकृतिक है?

कथाएँ ——
(१) एक महात्मा ने जागीरदार को शराब न पीने का उपदेश दिया। जागीरदार बोला-शराब पीता हूँ किसी की बहू बेटी तो नहीं ताकता, किसी की हत्या तो नहीं करता। साधु ने कोई उत्तर नहीं दिया, सोचा नशेबाजी तो अपने आप ठिकाने लगता है। जागीरदार एक दिन शहर गया और एक धर्मशाला में टिक गया साथ में उसकी स्त्री और एक बुड्ढा यात्री भी था। धर्मशाला में उसने शराब पी। शराब पीते ही उसे माँस खाने की इच्छा हुई उसने होटल से मँगाकर माँस खाया अब विषय भोग की इच्छा हुई पर स्त्री ने कहा-साथ में बुड्ढा है मुझे लज्जा आती है। शराबी ने तलवार से बुड्ढे को काट डाला और अपनी इन्द्रिय लिप्सा शान्त की। सबेरे सिपाहियों ने पकड़ कर उसे जेल में बन्द कर दिया तब पता चला नशा सारे पापों की जड़ है।
(२) दो शराबी ताश खेल रहे थे। एक मक्खी आकर एक ही नाक पर बैठ गई। दूसरे शराबी ने चाकू से उसकी नाक काट ली। पहला शराबी बोला-अरे यह क्या कर दिया, दूसरा बोला-मक्खी का अड्डा साफ कर दिया। तब तक मक्खी दूसरे के कान पर बैठ गई। अब पहले शराबी ने अपने छुरी निकाल कर दूसरे का कान काट लिया। इस पर उसने पूछा, क्या किया? पहले शराबी का उत्तर था वह दूसरा अड्डा जमा रही थी।
(३) एक सेठ अफीम खाते थे उन्होंने अपने नौकर को भी यह लत लगा दी। एक बार दोनों शहर चले। रास्ते में एक स्थान पर दोनों ने खाना खाया, अफीम के नशे में याद नहीं रहा घोड़ा वहीं छोड़कर चलते बने शहर पहुँचे नशा कम हुआ एक स्थान पर बैठे को पता चला कि घोड़ा रास्ते में ही छूट गया। फिर दोनों घोड़े की तलाश में लौटे पसर इस बार अपनी पोटली कहीं भूल गये उसी में उनके रुपये थे। वापस जाकर देखा तो वहाँ घोड़ा न पाया, तब पोटली की याद आई। दोनों रोने लगे एक ग्रामीण स्त्री बोली-तुम्हारी ही नहीं हर नशेबाज की यह हालत होती है।
(४) एडवर्ड नामक एक ४० वर्षीय इटैलिन मजदूर को खाँसी हो गई। उसने डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने बताया-तुम्हें कैंसर होने को है यदि तुमने तंबाकू पीना न छोड़ा तो कुछ दिन में ही मर जाओगे। एडवर्ड ने कैंसर का नाम सुनते ही बीड़ी पीना छोड़ दिया। वह चालीस वर्ष और जिया इस बीच उसने एक हजार मजदूरों की बीड़ी पीने की आदत छुड़ाई।
(५) स्वामी दयानन्द ने एक ठाकुर साहब को शराब न पीने का उपदेश दिया। ठाकुर साहब बोले-स्वामीजी क्या करूँ शराब छोड़ती ही नहीं, आप ही कोई उपाय बतायें। स्वामी जी बोले-कल डेरे पर आना वहीं उपाय बताऊँगा। दूसरे दिन ठाकुर साहब स्वामी जी के पास गये तो देखा स्वामी जी एक खम्भे में चिपके खड़े हैं। बहुत देर तक वैसे ही खड़े देखकर ठाकुर साहब बोले-स्वामी जी यह क्या कर रहे हैं। स्वामी जी बोले-क्या करूँ भाई यह खम्भा छोड़ता ही नहीं। ठाकुर साहब हँसकर बोले-यह आप क्या कहते हैं। निर्जीव खम्भा भी पकड़ सकता है। स्वामी जी बोले-शराब पकड़ सकती है तो खम्भा क्यों नहीं पकड़ सकता। ठाकुर साहब सारी बात समझ गये और शराब पीना छोड़ दिया।

जारी रखें