प्रातःकालीन ध्यान — स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों शरीरों का
प्रातःकालीन ध्यान — स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों शरीरों का
ऑनलाइन वीडियो देखें — https://www.youtube.com/watch?v=ddF78Fe9mnM
प्रातःकालीन शक्ति संचार ध्यान-साधना (वं० माताजी व पू० गुरुदेव द्वारा निर्देशित)
वं० माता जी—
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलें।
ध्यान एक ऐसी विधा है कि जिसके माध्यम से अपनी अंतःचेतना को परमात्म चेतना के साथ जोड़ने-एकरूप करने का प्रयास किया जाता है। भाव भूमिका बनने पर परमात्म चेतना साधक के स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों को शुद्धता और तेजस्विता जैसे अनेक अनुदान प्रदान करती है। आप सब युग ऋषि के तप से जागृत युग तीर्थ में बैठे हैं।
भावना करें कि आपके चारों ओर तीर्थ चेतना, गुरु सत्ता और परमात्म सत्ता का प्राण-भरा स्नेह लहरा रहा है। आपका शरीर, मन, बुद्धि, चित्त सब उसमें डूबे हुए हैं। पू० गुरुदेव जो कुछ निर्देश दें उसके अनुसार अपनी मनोभूमि बनाते चलें। कोई दृश्य दिखे या न दिखे, इन्द्रियों को कोई अनुभूति हो या न हो। आप पू० गुरुदेव के निर्देशों का अनुसरण करें। सूक्ष्म चेतना पू० गुरुदेव के कहे अनुसार अपना कार्य कर रही है। आपके अन्दर दिव्यताओं के जागरण और स्थापना का क्रम चल रहा है।
पहले जब वे गायत्री मंत्र बोलें, आप भी उनके साथ-साथ मन ही मन गायत्री मंत्र दोहराते चलें। भावना करें कि उनके द्वारा भेजे गये सूक्ष्म कंपनों के साथ-साथ हमारे शरीर का कण-कण झंकृत हो रहा है। शरीर, मन, अन्तःकरण सभी अभिमन्त्रित हो रहे हैं। फिर ध्यान निर्देशों के अनुसार अपने भावों को बनाते चलें। दिव्य चेतना के प्रभाव को श्रद्धा पूर्वक अपने अन्दर धारण करते रहें। अन्त में पूज्यवर द्वारा की गई असतो मा सद्गमय आदि प्रार्थना और ओंकार ध्वनि को भी मन ही मन दोहरायें। भावना करें जो शक्ति प्राप्त हुई है वह शरीर, मन आदि में स्थिर हो रही है। वह हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जायेगी। ध्यान समाप्ति के बाद कुछ देर तक शान्त-मौन रहें तथा मानसिक जप करें। शान्ति से बैठे रहें, जिससे ध्यान का अधिक लाभ प्राप्त होगा। अब शान्त मन से, श्रद्धा भरे अन्तःकरण से ध्यान करें।
पू० गुरुदेव ध्यान—
सावधान
शान्त चित्त
स्थिर शरीर
कमर सीधी
दोनों हाथ गोदी में
आँखें बन्द
एकाग्रचित्त
ध्यान मुद्रा
भाव समाधि
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गायत्री मंत्र हमारे साथ, मन ही मन
ध्यान उगते हुये सूर्य का
पू० गुरुदेव — १२ बार गायत्री मंत्र
दिव्य साधना लोक
गंगा की गोद
हिमालय की छाया
सप्त ऋषियों की तपोभूमि
शान्तिकुञ्ज
गायत्री-तीर्थ
अखण्ड-दीप
दिव्य वातावरण
दैवी शक्तियों का संरक्षण
दिव्य साधना लोक
शान्तिकुञ्ज
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शरीर शान्त
वासना शान्त
तृष्णा शान्त
अहंता शान्त
उद्विग्नता शान्त
मन शान्त
शान्त मन
भाव-समाधि
शान्त
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दिव्य दर्शन
हिमालय का सर्वोच्च शिखर
बरफ से ढका हुआ
हिमाच्छादित
अध्यात्म का ध्रुव केन्द्र
दिव्य दर्शन
कल्पना कीजिये
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उगता हुआ सूर्य
हिमालय के सर्वोच्च शिखर
स्वर्णिम
सोने के समान
सूर्य — सविता
सविता — सूर्य
साधक का इष्ट, लक्ष्य, उपास्य
सूर्य — सविता
दिव्य प्रेरणा स्रोत — सविता
दिव्य चेतना स्रोत — सविता
स्वर्णिम प्रकाश से ओत-प्रोत — सविता
स्वर्णिम सूर्य — हिमालय के सर्वोच्च शिखर पर, ध्यान दीजिए
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साधक का सविता को समर्पण
ईधन आग की तरह समर्पण
साधक — ईधन
सविता — आग
आग-ईधन का समर्पण
विसर्जन
साधक का आत्म-विसर्जन
साधक-सविता एक
भक्त-भगवान एक
एकत्व
अद्वैत
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सविता के स्वर्णिम प्रकाश का साधक के शरीर में प्रवेश
सविता के प्रकाश का प्रवेश
नाभि चक्र में
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स्थूल शरीर में, नाभि चक्र में
सविता के प्रकाश किरणों का प्रवेश
नाभि चक्र विकसित
नाभि कमल विकसित
रोम-रोम पुलकित
कण-कण पुलकित
पुलकित
साधक ओजस्वी, तेजस्वी, प्राणवान
स्थूल शरीर प्राणवान
कण-कण प्राणवान
प्राणवान, ओजवान — स्थूल शरीर, नाभि चक्र
प्राण केन्द्र विकसित
विकसित नाभि चक्र
प्राण कमल, नाभि कमल विकसित
पंखुड़ियाँ विकसित
प्राण विकसित
ओज विकसित
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स्थूल शरीर विकसित, विकसित, विकसित
पुलकित, विकसित
साधक विकसित
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सूक्ष्म शरीर
हृदय कमल
सूक्ष्म शरीर का स्थान
हृदय चक्र, हृदय कमल
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सविता की दिव्य किरणों का सूक्ष्म शरीर में प्रवेश
विचार संस्थान में प्रज्ञा का संचार
विचार क्षेत्र में, हृदय कमल में, सूक्ष्म शरीर में प्रज्ञा का संचार
कण-कण में प्रज्ञा
रोम-रोम में प्रज्ञा
सूक्ष्म शरीर तेजस्वी
प्रज्ञावान, विवेकवान
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कारण शरीर
कारण शरीर का स्थान
मस्तिष्क मध्य, सहस्त्रार कमल
ब्रह्मरन्ध्र
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सविता की दिव्य किरणों का प्रवेश
सहस्त्रार कमल में दिव्य किरणों का प्रवेश
सहस्त्रार कमल विकसित
कारण शरीर विकसित
ब्रह्मरन्ध्र विकसित
श्रद्धा का स्रोत
भावना का स्रोत
आस्था का स्रोत
सहस्त्रार कमल, कारण शरीर
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प्रकाशवान, श्रद्धावान
वर्चस्वी, कारण शरीर
कारण शरीर में सविता की दिव्य किरणों का प्रवेश
सहस्त्रार कमल विकसित
श्रद्धा विकसित
ब्रह्म-तेज विकसित
कारण शरीर — श्रद्धा का स्रोत
विकसित
सविता की दिव्य किरणों से विकसित
कारण शरीर
सहस्त्रार दल विकसित
श्रद्धा का स्रोत विकसित
ब्रह्मतेज विकसित
सविता की दिव्य किरणों से कारण शरीर विकसित
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सविता के दिव्य प्रकाश से तीनों शरीर जागृत
स्थूल शरीर जागृत
सूक्ष्म शरीर जागृत
कारण शरीर जागृत
तीनों शरीर जागृत
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स्थूल शरीर प्राणवान, ओजस्वी
ओजस्वी, प्राणवान स्थूल शरीर, नाभि चक्र
सूक्ष्म शरीर प्रज्ञावान
तेजस्वी
हृदय कमल तेजस्वी
विकसित
सूक्ष्म शरीर विकसित
हृदय चक्र विकसित
प्रज्ञा केन्द्र विकसित
तेजस विकसित
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कारण शरीर विकसित
सहस्त्रार कमल विकसित
ब्रह्म-रन्ध्र विकसित
श्रद्धा विकसित
ब्रह्मतेज विकसित
कारण शरीर विकसित
साधक का इष्ट, लक्ष्य — स्वर्णिम सविता
नमन सविता को
समर्पण सविता को
साधक विभूतिवान, सिद्धिवान, ऋद्धिवान, वृद्धिवान
ऋद्धिवान, सिद्धिवान, वृद्धिवान, विभूतिवान साधक — सविता सम्पर्क से
स्थूल शरीर के जागरण से
सूक्ष्म शरीर के जागरण से
कारण शरीर के जागरण से
विभूतिवान, शक्तिवान, सिद्धिवान, भक्तिवान, शान्तिवान साधक
ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी साधक
पुलकित, विकसित साधक
साधक-सविता एक
समर्पण, विसर्जन, विलय
साधक का सविता में विसर्जन — विलय
सविता की दिव्य किरणों से साधक ओत-प्रोत
नाभि कमल जागृत
हृदय कमल जागृत
सहस्त्र कमल जागृत
साधक की सत्ता जागृत
श्रद्धावान, प्रज्ञावान, निष्ठावान
साधक विभूतिवान
काया-कल्प साधक का
शान्ति पाठ — समापन
आप लोग भी मन ही मन हमारे साथ कहिए
ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय
असतो मा सद्गमय
मृत्योर्मा अमृतमगमय
मृत्योर्मा अमृतमगमय
तमसो मा, तमसो मा, तमसो मा
ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
शान्ति
गति
सविता की ओर गति
प्रकाश की ओर गति
तमसो मा ज्योतिर्गमय
प्रकाश की ओर चलिए
सविता के प्रकाश की ओर चलिए
कदम बढ़ाइए
सविता की ओर चलिए
तमसो मा ज्योतिर्गमय
असतो मा सद्गमय
मृत्योर्मा अमृतमगमय
प्रकाश की ओर
सत की ओर
अमृत की ओर
गमन, आपका
ॐ — ॐ —— ॐ ——— ॐ ———— ॐ —————
समाप्ति — शान्ति।
ध्यान की समाप्ति — शान्ति।