युग निर्माण की शिक्षण प्रक्रिया-2


(५१) देशभक्त नव निर्माण के कार्य में जुट जायें

प्रश्न ——
(१) प्रजातंत्र में देश भक्तों के कर्तव्य क्या हैं? (२) युग निर्माण योजना द्वारा प्रसारित १० रचनात्मक नवनिर्माण के कार्यों का उल्लेख करते हुए युग की आवश्यकता पर लघु निबन्ध लिखिये। (३) लोकसेवक अपना सारा समय किन दो कामों में खर्च करते थे। (४) हमारे देश के उस प्रकार उन्नति न कर सकने के क्या कारण है जिस प्रकार एक स्वतंत्र राष्ट्र के नाते हमारी उन्नति हो सकती थी? (५) राष्ट्रीय प्रगति और सामाजिक उन्नति के लिये नवयुवकों को क्या करना चाहिये? (६) राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ता किस प्रकार अपना समय व्यय कर देते हैं? (७) ऐसे कौन से १० सूत्री कार्यक्रम हैं जिनके अन्तर्गत हम नवयुवक भी देश की प्रगति में सहायक बन सकते हैं? (८) एक-एक कार्यक्रम का अलग-अलग वर्णन करो ——

कथाएँ ——
(१) पं० जवाहरलाल ने एक दिन शास्त्री जी को जंगल का फूल कह दिया। इस पर शास्त्रीजी बोले-पंडित जी जंगल में जो आजादी है, स्वच्छता है वह बाग में कहाँ? नेहरू जी बोले-लेकिन देवताओं के सिर पर चढ़ते हैं बगीचे के ही फूल। स्वाभाविक हास परिहास में शास्त्री ने कहा-फूल देवताओं के लिये ही क्यों खिले क्या संसार में अन्य जीव तुच्छ हैं जो उन्हें सौन्दर्य और सुगंध से वंचित किया जाय? और पं० नेहरू को इसका कोई उत्तर न देते बना।
(२) सरदार वल्लभ भाई ने अपनी माँ से देश सेवा की आज्ञा माँगी। माँ ने कहा-बहुत कठिन काम है बेटा, देश-सेवा गद्दी पर बैठना और हुकूमत चलाना नहीं उसमें झाड़ू-बुहारी से लेकर दुष्टों से संघर्ष तक के कठिन काम करने पड़ते हैं जिस दिन मुझे यह विश्वास हो जायेगा कि तू कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है, उसी दिन आज्ञा दे दूँगी। सामने दीपक जल रहा था, सरदार पटेल ने उसकी लौ पर हथेली रख दी, हाथ जल गया, घाव पड़ गया पर पटेल ने सी तक न की। उनकी माँ ने हाथ हटाया और उन्हें छाती से लगाते हुए कहा-बेटा तू देश सेवा के लिये सहर्ष जा सकता है।
(३) एक बार ईसा ने देशवासियों से धन माँगा लोग मुक्त हस्त धन देने लगे। उन धन देने वालों की लिस्ट बन रही थी वहाँ बैठे हर आने वाले को देखते रहे। एक स्त्री आती, खुद आधा पेट रहकर एक पैसा दान पात्र में डाल आती। आखिरी दिन लोग सुनने आये सबसे बड़ा देश-भक्त कौन है तो ईसा ने कहा-जो तंगी में भी दे सकता है वही देश भक्त है।
(४) आजाद हिन्द सेना के लिए धन की आवश्यकता थी उसके लिये सुभाष बाबू की माला नीलाम की जाने लगी। तीसरा बोली, में एक व्यक्ति ने अपने घर का सारा सोना देते हुए कहा-नेताजी क्या हमारी पात्रता की परीक्षा धन से ही होगी। नेताजी चौंके और बोले-तुम सच कहते हो सबसे बड़ी शक्ति मनुष्य है इसलिए उन्होंने धन माँगने की अपेक्षा जवान माँगे। वह व्यक्ति पहला था जिसने आजाद हिन्द सेना में अपना नाम लिखाया।
(५) यहूदी समझते थे ईसा जादू से समुद्र के दो टुकड़े कर देंगे पर ऐसा नहीं हुआ ईसा बोले-तुम सब मेरे पीछे कूदो। यहूदी एक के पीछे एक कूदते गये और एक पंक्ति और साहस की यही भावना आज तक यहूदियों को विजयी बना रही है।
(६) शिवाजी से आत्म समर्पण कराने के बाद समर्थ गुरु रामदास ने कहा-ले यह तलवार राजगद्दी पर बैठ और शत्रु से संघर्ष कर आज से मैं महाराष्ट्र भर में घूमेगा व्यायामशालाएँ चलाऊँगा ताकि लोग स्वस्थ और बलिष्ठ बनें और तेरी फौज कम न हो। शिवाजी खड़े रामदास का मुँह ताकने लगे तो वे हँसकर बोले-अरे खड़ा क्या देखता है तू समझता है मेरा काम छोटा है? अपने देश और जाति के उत्थान की भावना से किया गया हर काम महान् होता है।
(७) सार्वजनिक चिकित्सालय के लिए लोग जमशेद जी टाटा के पास दान के लिये गये तो पर लोग हिचकिचा रहे थे कि वे सौ पचास रुपये दे दें तो ही बहुत है। पर जब जमशेदजी ने दस हजार दिया तो लोग बड़े आश्चर्य चकित हुए। उनका आश्चर्य दूर करते हुए टाटा जी ने कहा-कंजूस तो मैं व्यर्थ के कामों के लिये हूँ लोक-सेवा के लिये कंजूसी करूँ तो फिर मेरी देश भक्ति का क्या होगा।
(८) गाँधीजी ने सबको काम बाँट दिया सब लोग चले गये तो खुद ने झाड़ू उठाई और पड़ोस के गाँव की सफाई के लिए चल पड़े। उन्हें हाथ में झाड़ू लेकर जाते देखकर महादेव भाई के मुँह से अनायास ही निकल गया तुम सबसे बड़े ‘‘देश भक्त हो बापू’’।
(९) मुर्गे ने बाँग दी तो पड़ोसी मुर्गा भी बोल उठा, पहले मुर्गे ने डाँटकर कहा-मेरी नकल करता है दुष्ट, मार डालूँगा। पास बैठे बूढ़े मुर्गे ने कहा-तात संसार को जगाने को दायित्व अकेले तुम पर ही नहीं जो भी आगे आता है उसका स्वागत करो, उसे धिक्कारो मत, पहला मुर्गा बड़ा लज्जित हुआ।
(१०) वर्षा की बात है। गीली मिट्टी टिक नहीं रही थी एक बाँध का छेद बढ़ता जा रहा था, उससे देश के डूब जाने की आशंका थी। क्या किया जाए? एक आदमी आगे बढ़ा और जहाँ बाँध टूट रहा था वहाँ लेट गया। थोड़ी देर में ठंड में उसका शरीर अकड़ गया तो उसे लोगों ने उठाकर आग के पास पहुँचाया और दूसरा लेट गया। सारा-गाँव इसी तरह पानी को तब तक रोके रहा जब तक सरकारी कर्मचारी नहीं आ गये। इंजीनियर ने ग्रामीण भाइयों का त्याग देखकर कहा-जहाँ तुम्हारे जैसे त्यागी व साहसी हों उस देश का भी अहित नहीं हो सकता।


(५२) सच्चे नागरिक बनें और समाज में स्वस्थ परम्परा डालें

प्रश्न ——
(१) अपने देश के प्रति नागरिक का कर्तव्य क्या है? (२) दूसरों की सुविधा का ध्यान रखने से क्या लाभ होता है? (३) घर मुहल्ले एवं नगर में सफाई रखने के लिये क्या किया जाय? (४) नागरिकता किसे कहते हैं? सार्वजनिक स्थानों पर लोग किस प्रकार गन्दगी फैलाते हैं? (५) मनुष्यता की आरम्भिक शिक्षा क्या है? (६) ईश्वर भक्त से भी पहले नागरिक मर्यादाओं एवं जिम्मेदारियों को क्यों निभाना चाहिये? (७) मनुष्य का प्रामाणिक एवं नैतिक कर्तव्य क्या है? (८) समय की बरबादी धन की बरबादी से भी अधिक अहित कर है-सिद्ध करें? (९) व्यायाम में सफलता का रहस्य क्या है? (१०) मिलावट से क्या हानि है?

कथाएँ ——
(१) बात बंगाल के कुमिल्ला जिले की है। एक अतिथि के स्वागत में मेजबानों ने तरह-तरह के मिष्ठान्न व पकवान बनवाये, माननीय अतिथि भोजन के लिये बैठे और उतना सारा तरह-तरह का भोजन परोसा गया तो वह देखते ही उठ खड़े हुए और बोले-जिस देश में हजारों लोगों एक को समय भोजन मिलता हों वहाँ ऐसा भोजन करने का अधिकार नहीं। यह अतिथि सीमान्त गाँधी खान अब्दुलफ्फारखाँ थे।
(२) सतारा जिले का दौरा करने न्याय मूर्ति महादेव रानाडे तो पैदल गये पर अपने पत्नी को बैलगाड़ी कर दी। गाड़ी रवाना हुई तब उन्होंने हिदायत दे दी तुम अपने को जज की पत्नी नहीं, साधारण नागरिक मानकर चलना। श्रीमती रानाडे ने एक जगह पके आम देखे तो उनका खाने का मन कर आया। गाड़ी खड़ी कराकर, जैसे ही वे आम तोड़ने को हुई कि आम ऊपर से टूटा और उनके सोने के कंगन पर गिरा। कंगन चूर-चूर होकर छितर गया तभी वहाँ रानाडे पहुँच गये। धर्मपत्नी ने दुःखपूर्वक सारी बात कही तो उन्होंने इतना कही कहा-यह दूसरे के आम बिना पूछे तोड़ने का फल है।
(३) रेलगाड़ी आने का समय हो गया है इधर पुल टूटा पड़ा है। भेड़ चरा रहे बालक ने यह देखा तो उसका हृदय आशंका से भर गया। भेड़ों को छोड़कर वह रेल की पटरी के सहारे उधर ही भागा जिधर से रेल आनी थी। थोड़ी देर में रेल आती दिखाई दी उसने अपना कुर्ता उतार कर हिलाता और खतरे की सूचना देना शुरू किया। ड्राइवर कुछ समझा नहीं पर युवक को पटरी से हटाने के लिये वे बराबर सीटी देते रहे। युवक पीछे हटता भी जाता था और कपड़ा भी हिलाता जा रहा था। रेलगाड़ी रुकते-रुकते उसकी छाती पर चढ़ गई। ड्राइवर और अन्य सवारियों ने उतर कर देखा तो १० गज की दूरी पर पुल टूट पड़ा था। लोगों में उस नागरिक के प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ी।
(४) एक दिन तुलाधार वैश्य के पास एक साधु जाकर बोले-बेटा जा कुछ दिन तीर्थयात्रा भी करके आ उससे शान्ति मिलेगी। तुलाधार ने उत्तर दिया-मेरे गाँव में कितने ही लोग भूख से पीड़ित हैं कितनों को दवा-दारू की आवश्यकता है। चार पैसे कमाकर इन्हें रोटी-कपड़े और दवा-दारू की व्यवस्था करता हूँ यही मेरी तीर्थयात्रा है इसी में मुझे शान्ति मिलती है। साधु को अपनी मिथ्या आस्तिकता का अहंकार दूर हो गया और उस दिन से तुलाधार को अपना गुरु मान लिया।
(५) बच्चा तालाब में डूब रहा था और उसका पिता किनारे पर खड़ा उपदेश दे रहा था-ले मेरा कहना न मानने का फल भुगत तभी एक सज्जन उधर से आये और कूदकर बच्चे के प्राण बचाये। बाहर निकले तो पिता से बोले महोदय-उपदेश हमेशा अच्छा नहीं होता। कर्तव्य भी निबाहना चाहिए।
(६) एक अँगरेज ने सड़क पर बैठे एक मोची के लड़के से जूते गँठवाये। पैसे पूछने पर लड़के ने बताये १० पैसे। अँगरेज ने अपनी शान दिखाते हुए एक रुपया फेंका और चल पड़े तभी पीछे लड़का भागा और ९० पैसे वापस करता हुआ बोला श्रीमान् जी यह पैसे? अँगरेज बोला-हमने खुशी से दिये हैं पर बच्चे ने अधिक पैसे लेने से इनकार करते हुए कहा-महोदय अपने हक से अधिक लेना मेरे लिए पाप है-अँगरेज भारतीय बच्चे का मुँह ताकता रह गया।


(५३) व्यक्तिगत स्वार्थ भी सामाजिक सुव्यवस्था पर निर्भर है

प्रश्न ——
(१) मानव धर्म का मूल आधार क्या है? (२) मनुष्य को व्यक्तिगत स्वार्थ की अनेक सामाजिक सुव्यवस्थाओं पर ध्यान क्यों देना चाहिए (३) आधुनिक युग में एकाकी एवं अति सीमित जीवन जीना क्यों कठिन है। (४) सिद्ध कीजिये कि-सुरक्षा और व्यवस्था का सारा ढाँचा समाज की ही देन है। (५) व्यक्तिगत प्रगति एवं शान्ति के लिए क्या किया जाना चाहिए। (६) समाज के विकृत होने से मानव भी विकृत कैसे हो जाता है। (७) स्वार्थ एवं परमार्थ का समन्वय किसमें है। (८) सुविकसित समाज में क्या विशेषताएँ होती हैं। (९) व्यक्तिगत स्वार्थपरता, मानसिक ओछापन एवं बौद्धिक संकीर्णता क्यों है।

कथाएँ ——
(१) धारा नगरी में आग लग गई। दो सुकुमार बच्चे आग की लपट में घिर गये। महाराज भोज चिल्लाए जो इन बच्चों को बजाएगा उसे पुरस्कार दिया जायेगा। भीड़ में से कोई आगे नहीं बढ़ रहा था तभी एक ओर से एक व्यक्ति आया और आग में घुस गया। दोनों बच्चों को निकाल तो लाया पर स्वयं बुरी तरह जल गया। उपचार के बाद पहचान में आया कि वह तो महान् उदार और दयालु कवि माघ थे। भोज ने उन्हें शीघ्र शीश झुकाते हुए कहा-कविवर आज तो तुमने काव्य से भी अधिक अपनी कर्तव्य परायणता से सबको जीत लिया।
(२) ताना जी के पुत्र का विवाह था तभी कोंडण दुर्ग के लिए युद्ध की सूचना आ पहुँची ताना जी ने कहा-अपने देश और समाज के आगे व्यक्तिगत स्वार्थ तुच्छ हैं वह युद्ध के लिए चल पड़े। युद्ध में जीत उन्हीं की हुई पर उनका शरीर काम आ गया। उनकी स्मृति में ही इस दुर्ग का नाम सिंह गढ़ रखा गया।
(३) एक बार भीषण अकाल पड़ा मनुष्य और जीव-जन्तु भूख और प्यास से तड़प-तड़प कर मरने लगे। तब नरमेध यज्ञ की व्यवस्था की गई लेकिन अपने शरीर की बलि कौन दे यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ? तभी एक युवक सामने आया और बोला लाखों लोग की रक्षा के लिये मुझे प्राण गँवाने पड़े तो इसे मैं अपने शरीर की सार्थकता ही मानूँगा। युवक के त्याग देखकर भगवान् इन्द्र मुग्ध हो गये उन्होंने बिना बलि लिये ही जब बरसाया यह युवक शतमन्यु के नाम से परोपकारी आकाश का जगमगाता नक्षत्र बन गया।
(४) एक रोगी व्यक्ति एक गड्ढे को भर रहा था। एक आदमी ने पूछा-गड्ढा क्यों भर रहे हो? उसने बताया-मैंने सुना है यहाँ देश के सैनिक गुजरेंगे इसलिये भर रहा हूँ कहीं वे लोग अँधेरे में इस गड्ढे में न गिर जायें। उस आगन्तुक ने कहा-लेकिन तुम तो रोगी हो? इस पर उसने उत्तर दिया हाँ सम्भव है मैं मर जाऊँ पर सैकड़ों लोग मरे उससे तो मेरा अकेले का ही मर जाना अच्छा है।
(५) इटावा के एक अध्यापक पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखा चुके तो थानेदार ने उनके मुँह की ओर ताकते हुए कहा-चोरी करने वाला तो आपका ही लड़का है। तो क्या हुआ आपका मतलब यह है कि मैं अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए सामाजिक हित का परित्याग कर दूँ? उन अध्यापक ने कहा। थानेदार ने कहा-यदि हमारे देश में सभी ऐसे हो जायें तो यह अपराध ही क्यों हों?


(५४) प्रौढ़ शिक्षा युग की अनुपेक्षणीय माँग

प्रश्न ——
(१) साहित्य द्वारा होने वाले लोगों पर प्रकाश डालिये? (२) अशिक्षितों को अर्ध मनुष्य क्यों कहते हैं? (३) क्यूबा ने अपनी अशिक्षा की समस्या कैसे हल की! (४) सिद्ध कीजिये कि ‘‘भारत में साक्षरता की प्रगति बहुत ही धीमी है।’’ (५) निरक्षरता की समस्या को हल करने के लिए अशासकीय स्तर पर कौन से कदम उठाने चाहिये। (६) ‘‘ज्ञानऋण’’ से क्या समझते हो? प्रत्येक शिक्षित का इस युग में क्या कर्तव्य है? (७) साक्षरता प्रसार आन्दोलन कैसे चलाया जाय? (८) जनसाधारण में शिक्षा का महत्त्व प्रतिष्ठापित करने हेतु क्या किया जाना चाहिये? (९) देश में शत प्रतिशत साक्षरता कैसे लाई जा सकती है?

कथाएँ ——
(१) ‘‘तार’’ को किसी की मृत्यु की सूचना समझकर एक घर के अशिक्षित लोग रोने लगे इसी बीच पड़ोसी आ गये वे भी अशिक्षित थे जो भी आता रोने लगता। देखते-देखते आधा गाँव जा पहुँचा कोई किससे बिना कुछ रोने लगता मानो रोना कोई पुण्य हो। आखिर एक पढ़ा-लिखा लड़का आया उसने पूछा, बात क्या है। घर वालों ने तार हाथ में थमा दिया उसे पढ़ते ही लड़के को हँसी आ गई उसने कहा-मूर्खों पढ़े लिखे होते तो यह हँसी क्यों होती, यह तो खुशी का तार है मृत्यु का नहीं।
(२) एक जर्मन पर्यटक ने भारत से लौटकर एक लेख में लिखा कि कर्ज में पैदा होने, जीवन भर कर्ज चुकाने और कर्ज में ही मर जाने का उदाहरण देखना हो तो भारतवर्ष जायें जहाँ के अशिक्षित लोगों से अँगूठा निशान लेकर साहूकार लोग ५० रुपये का ऋण-पत्र ५ हजार का बना लेते हैं और उसी की ब्याज में जीवन भर उससे कीमत लेती हैं। मर जाने पर कर्ज का भुगतान उसके लड़के करते है।
(३) सेंट पिरये अफ्रीका गये उस समय के लोग अच्छी तरह बोलना भी नहीं जानते थे। वे लोग गुलाम बनाकर दूसरे देशों को ले जाये जाते जहाँ उन पर मनमाने अत्याचार होते। संत पियरे ने अनुभव किया कि यह सब अशिक्षा के कारण है उन्होंने लोगों को पढ़ाना शुरू किया इसमें उन्हें कठिनाई तो बहुत हुई पर अफ्रीकनों में बौद्धिक चेतना विकास हुआ उसी का फल है कि आज अफ्रीकी देश भी स्वतंत्रता का आनन्द ले रहे हैं।
(४) गाँधीजी से एक व्यक्ति ने पूछा-देश स्वतंत्र हो गया अब आपका अगला कार्यक्रम क्या होगा। प्रौढ़ शिक्षा का विस्तार गाँधीजी बोले-जब तक इस देश की अशिक्षित जनता को विचार करना नहीं आता तब तक आजादी निरर्थक है विचार ही कुसंस्कार काटते हैं पर वे बिना शिक्षा पैदा नहीं होते इसलिए हर प्रौढ़ को पढ़ाना आज की पहली आवश्यकता है।
(५) चालीस वर्ष तक निरक्षर रहने वाली अमेरिका की एक स्त्री मेरी एन को पढ़ने की रुचि जागृत हुई तो लगातार पढ़ती ही चली गई ६७ वर्ष की आयु में जब वे मरी तब ५ विषयों में एम. ए. थीं उन्होंने यह कहावत झूठी कर दी कि बूढ़े तोते पढ़ नहीं सकते।
(६) जवाहरलाल जी ने एक दिन श्री लालबहादुर शास्त्री से कहा-देश में शिक्षा बढ़ रही है क्या यह प्रसन्नता की बात नहीं-नहीं श्री शास्त्रीजी बोले-जब तक यहाँ के बुजुर्ग अशिक्षित हैं कुछ लड़कों के पढ़ जाने से भी तरक्की नहीं होगी क्योंकि शिक्षा की अपेक्षा जीवन में संस्कारों का महत्त्व अधिक है जो संस्कार अशिक्षित व्यक्तियों द्वारा दिये गये होंगे वह देश की कहाँ तक उन्नति कर सकते हैं? आप सोच सकते हैं।
जवाहरलाल जी ने कहा-तुम्हारा कहना सच है। प्रौढ़ शिक्षा, शिक्षा से भी बढ़कर है।


(५५) स्वास्थ्य शिक्षा की एक महती आवश्यकता

प्रश्न ——
(१) मनुष्य की अल्पायु एवं अस्वस्थता का मूल कारण क्या है? (२) सम्पदायें एवं विभूतियाँ कैसे उपलब्ध होती हैं? (३) श्रम की प्रतिष्ठा प्रतिपादित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए? (४) हिन्दू जाति के घटते जाने का मूल कारण क्या है? (५) व्यायामशालाओं की आवश्यकता क्यों है? (६) दिन भर लोहा पीटने वाले लुहार की अपेक्षा दो घण्टे कसरत करने वाला पहलवान अधिक ताकतवर क्यों होता है? (७) खेलकूद के लाभ बताओ? (८) व्यायाम आन्दोलन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए?

कथाएँ ——
(१) एक व्यक्ति कई-कई दिन तक बाहर रहता, लौट कर आता तो पड़ोसी पूछता आज कल आप क्या कर रहे हैं। बहुत कम दिखाई देते हैं। वह व्यक्ति बोला-भाई अब शरीर तीसरी अवस्था में है। भगवान् की सेवा और पूजा, परमार्थ भी तो करना चाहिए। एक दिन उस व्यक्ति ने छिपकर तलाश की तो पता चला कि वह सज्जन तो गाँव-गाँव जाकर व्यायामशालाएँ खुलवाते हैं लौटने पर पूछा-आप तो कहते थे आप पूजा पाठ करते हैं जबकि तथ्य यह है कि आप लोगों को व्यायाम की शिक्षा देते हैं। वह व्यक्ति बोला-कोई भी समाज सेवा ईश्वर का ही भजन है। आज इसी भजन की उपयोगिता भी हैं।
(२) सेक्रेटरी ने कहा-सर आप इस देश के मालिक हैं अपनी कुर्सी मेज़ अपने हाथ से बनायें यह अच्छा नहीं लगता। इस पर उन्होंने उत्तर दिया प्रश्न फर्नीचर का नहीं स्वस्थ रहने के लिये कोई भी हो श्रम आवश्यक हे। यह व्यक्ति था तुर्की का निर्माता कमाल पाशा।
(३) समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी से कहा-तू अत्याचारियों के खिलाफ सुदृढ़ सेना खड़ी कर इस पर शिवाजी बोले-ऐसे बलवान् सिपाही मिलेंगे कहाँ-देश तो विलासिता में डूबा पड़ा है, नवयुवक निष्क्रिय हो रहे हैं। समर्थ गुरु रामदास ने कहा-उसके लिये गाँव-गाँव व्यायामशालाएँ चलानी पड़ेंगी। यह कार्य स्वयं उन्होंने किया। महाराष्ट्र में छः हजार अखाड़े (व्यायामशालाएँ) खोलकर लोगों में स्वास्थ्य-संवर्धन की रुचि पैदा की साथ ही सेवा और राष्ट्रीयता के भाव भी।
(४) गाँधी व्यायाम की उपयोगिता समझा रहे थे तभी एक बूढ़ा व्यक्ति बोल पड़ा-बापू आप तो कहते हैं व्यायाम आबाल वृद्ध सबको करना चाहिए पर मैं कैसे कर सकता हूँ-गाँधी जी बोले-व्यायाम का अर्थ केवल दंड बैठक से नहीं स्त्रियाँ चक्की पीसती हैं उनके लिए यही सर्वोत्तम व्यायाम है, बच्चे दिनभर खेलते हैं उससे बढ़िया व्यायाम क्या हो सकता है। आप तो प्रतिदिन टहलने जाया कीजिये, बूढ़ों के लिए टहलना ही व्यायाम है। देखो मैं भी टहलने जाता हूँ उस पर लोग खूब हँस चुके तो बोले देखो! यह भी (हँसना) भी एक व्यायाम हो गया।
(५) समर्थ गणराज्य के लिए अपनी दृष्टि में कौन सी वस्तुएँ आवश्यक हैं एक व्यक्ति ने मदनमोहन मालवीय से प्रश्न किया। श्री मालवीयजी का उत्तर था-हर गाँव मैं पंचायत और पाठशाला के साथ मल्लशाला (व्यायामशाला) होना अनिवार्य है जहाँ युवक आएँ और नियमित व्यायाम का अभ्यास भी कर सकें।
(६) जेलर ने देखा कैदी को कल फाँसी होने वाली है आज कसरत कर रहा है उसने पूछा-महाशय आपको तो कल फाँसी लगने वाली है। कसरत करने से क्या लाभ? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-क्या आपका यह मतलब है जिस परमात्मा ने हमें स्वस्थ पैदा किया उसके पास अस्वस्थ होकर जाऊँ और अपना जीवन भर का क्रम बिगाड़ूँ। जेलर को स्तम्भित करने वाले-रामप्रसाद बिस्मिल थे।
(७) एक दुर्बल और रोगी लड़का अपने पिता से बोला-पिताजी मैं एक दिन पहलवान ही नहीं दुनियाँ के सबसे बड़े पहलवान बनोगे। पासवर्ती लोग हँस पड़े पर लड़का उपहास सहकर भी निराश न हुआ। नियमित व्यायाम प्रारम्भ किया और एक दिन सचमुच ही ने केवल अच्छा पहलवान ही बना वरन कसरत की अनेक विद्याएँ पी० टी० के अभ्यास बनाने के कारण सैंडो के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


(५६) अध्यापक अपने महान पद, गौरव और उत्तरदायित्व को निबाहें

प्रश्न ——
(१) ‘‘अध्यापक दायित्व केवल शिक्षा देना ही नहीं है’’ इस कथन की पुष्टि करते हुए दर्शाइए कि अध्यापक के प्रमुख कर्तव्य क्या हैं? (२) छात्रों के गुण, कर्म, स्वभाव पर विद्यालय का प्रभाव सर्वाधिक क्यों होता है? (३) प्राचीनकाल में शिक्षा पद्धति किन लोगों के हाथ में थी उससे क्या लाभ हुआ? (४) शिक्षक को राष्ट्र निर्माता क्यों कहा जाता है? (५) अध्यापकों के प्रमुख कर्तव्य बताइये? (६) अध्यापक में क्या २ गुण होना चाहिये? (७) अध्यापक का रहन-सहन ‘‘सादा जीवन-उच्च विचार’’ पर आधारित क्यों होना चाहिये? (८) उपदेश नहीं चरित्र का क्या प्रभाव पड़ता है सिद्ध करें? (९) ‘‘आत्म चिंतन’’ आत्म-सुधार एवं ‘‘आत्म निर्माण’’ से क्या समझते हो? (१०) अध्यापन कला के आवश्यक तत्त्व बताइए?

कथाएँ ——
(१) महर्षि अश्वलायन को इस बात का बड़ा गौरव था कि उनका पढ़ाया हुआ हर छात्र राष्ट्र का प्रतिभाशाली और यशस्वी व्यक्ति है प्रधानमंत्री, सेनापति से लेकर कुरुपद का कृषि-पंडित भी उन्हीं का छात्र था। तभी एक दिन उन्होंने सुना उन्हीं का एक छात्र देवदत्त दस्यु हो गया है। उसके क्रूर कर्मों के कारण समस्त कुरुपद में त्राहि-त्राहि मच गई है कोई भी सेना और सेनापति उसे वश में नहीं कर सका। महर्षि के लिये यह संदेश वज्र, घात के समान था। भीषण रात, आकाश में बादल घिरे हुए, महर्षि को रोका भी गया पर वे नहीं रुके सीधे वहाँ पहुँचे जहाँ देवदत्त दस्यु कर्म किया करता था। अँधेरे में एक छाया देखते ही देवदत्त ने ललकारा रुक जाओ नहीं तो खड्ग प्रहार करता हूँ किन्तु आगन्तुक रुका नहीं। देवदत्त का खड्ग छूटा और आगन्तुक में माथे पर जा घुसा। रक्त के फौवारे के साथ आकाश में बिजली चमकी और देवदत्त महर्षि के चरणों में गिर गया। गुरुदेव यह क्या हुआ तीव्र वेदना में देवदत्त चिल्लाया। महर्षि ने कहा-वत्स मेरे शिक्षण में कुछ कमी रह गई थी उस का दण्ड मुझे मिलना ही था। देवदत्त गुरु का आशय समझ गया फिर उसने कभी भी डकैती नहीं डाली।
(२) कर्नवाल परगने का ग्राम पेन्जान्स, एक लड़का पढ़ना चाहता था पर उसे डॉक्टर की नौकरी करनी पड़ी। उसके पिता ने कहा-बेटा आदमी पढ़ना चाहे तो हर घर स्कूल है। लड़का वहीं पढ़ने लगा। बचे समय का सदुपयोग वह स्कूल की किताबों के अतिरिक्त डॉक्टरी पढ़ने लगा और १८ वर्ष की आयु में उसने वनस्पति, भूगर्भ, सर्जरी तथा रसायन शास्त्र के एम. ए् से अधिक ज्ञान प्राप्त कर लिया। बाद में सर हम्फीडैवी के नाम से यही अध्यवसायी बालक महान् वैज्ञानिक के रूप में विख्यात हुआ।
(३) पिता इतना गरीब था कि बच्चे की फीस चुकाना भी मुश्किल और लड़का इतना लगनशील और परिश्रमी कि स्कूल में पढ़ने के साथ उसने क्लर्क की नौकरी भी कर ली। स्टेनोग्राफ़र और मुनीम का भी काम उसने किया, कामर्स पढ़ी और प्रति माह ७) बचाया भी। टोरंटो (कनाडा) के नाई परिवार में जन्मा टाक्सन नामक यही लड़का अपनी इस लगन दृढ़ निश्चय और परिश्रम के कारण एक सौ अट्ठाईस समाचार पत्रों व पत्रिकाओं, १५ रेडियो वे टेलीविजन स्टेशनों, १५० व्यापारिक व तकनीकी पत्रिकाओं, दो प्रकाशन संस्थाओं, दो यात्रा एजेन्सियों का मालिक है।
(४) एक लड़का कामर्स पढ़ रहा था, अभी कुछ ही दिन बीते थे कि उसे संगीत अच्छा जान पड़ा, अब वह संगीत सीखने लगा किन्तु इसी बीच उसकी रुचि दर्शन की ओर मुड़ गई इसलिये संगीत छोड़कर वह दर्शन पढ़ने लगा। दस वर्ष में वह दस विषय बदल चुका और एक भी नहीं सीख सका। एक साधु ने उसे समझाया-बेटा एक निश्चय कर फिर साँसारिक आकर्षण छोड़कर उसी में जुट जाओ तभी सफलता मिलेगी।
(५) रतलाम के महाविद्यालय में एम. ए. कक्षा खुलवाने की बात आई। पैसा कौन दे। सभी छात्रों ने निश्चय कर ‘‘बूट पालिश’ का काम प्रारम्भ किया और कुछ ही दिन में एम. ए. की कक्षा खुलने योग्य धन की प्राप्ति हो गई।
(६) एरिट्रायस की धार्मिक विषयों में रुचि थी अतएव उसके आग्रह पर पिता ने उसे जीनों की पाठशाला भेज दिया। एरिट्रायस बहुत दिन में घर लौटे तो पिता ने पूछा-बेटा वहाँ से क्या सीखकर आये हो? पुत्र ने उत्तर दिया-बाद में ज्ञात हो जायेगा। एक दिन पिता किसी बात पर रुष्ट हो गया उसने युवा पुत्र की बुरी तरह पिटाई की फिर भी पुत्र ने कुछ प्रतिवाद न किया और न उत्तर दिया। पिटने के बाद वह फिर शान्त चित्त अपने काम से लग गया न आत्म हत्या की धमकी दी, न घर से भागा। यह देखकर पिता का हृदय भर आया वह पुत्र से माफी माँगने लगा तो पुत्र ने कहा-पिताजी यह तो मेरी परीक्षा थी कि मुझे मेरे गुरु ने जो नैतिकता, सदाचार, सहिष्णुता और ध्येयनिष्ठा सिखाई उसका पालन भी कर सकता हूँ या नहीं। पिता का हृदय ऐसे शिक्षण के प्रति कृतज्ञता से भर गया।
(७) संस्कृत का उद्भट विद्वान् वरदराज कभी विद्यालय का सबसे बुद्धू लड़का था। बहुत पढ़ने पर भी उसे कुछ याद न होता। दुःखी होकर वह घर से भाग गया। रात एक सराय में बिताई। वहाँ उसने देखा एक टूटे पंखों वाला पतिंगा दीवार पर चढ़ता और गिर जाता है। बीस बार असफल रहने के बाद इक्कीसवीं बार वह दीवार पर चढ़ गया। इस दृश्य से वरदराज को एक नई हिम्मत मिली। वह घर लौटा और फिर पढ़ने में जुट गया इस बार उसकी असफलता सफलता में बदल गई।

 

 

 


(५८) नवयुवक सज्जनता और शालीनता सीखें

प्रश्न ——
(१) निकट भविष्य में यदि हमें अपने समाज को समुन्नत देखना है तो हमें क्या करना चाहिये? किस तरह करना चाहिये? (२) मनुष्य की प्रगति किन गुणों पर अवलम्बित है? दुर्गुणी व्यक्ति तथा सद्गुणी व्यक्ति किस प्रकार भिन्न कहे जा सकते हैं? (३) उठती आयु में हमें सद्गुणों के साथ-साथ और किन-किन गुणों को हस्तगत करना चाहिये? (४) सद्गुणों और अन्य गुणों में कौन-सा गुण श्रेष्ठ है? व क्यों? (५) दुर्गुणी व्यक्ति अपने स्वतः के लिये किस प्रकार हानिकारक है? (६) सच्चे अध्यापक और सच्चे अभिभावक कौन कहे जा सकते हैं? किस आधार पर? (७) क्या आप बता सकते हैं कि आज के होनहार बालकों में कौन से दुर्गुण अधिक पाये जाते हैं? (८) मर्यादा के उल्लंघन से क्या हानियाँ है? (९) आज के युवकों में अनुशासन हीनता क्यों है उन्हें कैसे सभ्य-नागरिक बनाया जा सकते है?

कथाएँ ——
(१) पिता ने पुत्र को कुछ फल लाने को पैसे दिये। लड़का वहाँ से चल पड़ा तो उसे एक कन्या दिखाई दी जिसकी धोती फटी हुई थी उसे अपने शरीर को ढके रखने में कष्ट हो रहा था। पुत्र ने पिता के दिए पैसे से एक धोती खरीदी और उस कन्या को देकर खाली हाथ घर लौटा। पिता ने पूछा-फल कहाँ है? लड़के ने सारी बात सच-सच बता दी। पिता बोला-बेटा तूने तो अमरफल ला दिया। यही लड़का संत रंगदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(२) भिक्षु कश्यप ने श्रावस्ती में योग के कई चमत्कार दिखाये तो उनका यश दूर-दूर तक फैल गया पर अब कश्यप को आत्म-कल्याण की साधनाओं के लिए समय ही न मिलता प्रशंसकों से घिरे रहते। यह देखकर भगवान बुद्ध वहाँ पहुँचे और बोले बेटा मनुष्य ने सदाचार का ध्यान न दिया लोगों को प्रभावित करने में ही लग गया तो उसकी उन्नति का द्वार ऐसे ही घिर जाता है जैसे तू अपने प्रशंसकों से घिर गया है।
(३) कलकत्ता में वेट लिफ्टिंग दल के खिलाड़ियों का चयन करने के लिये प्रतियोगिता हो रही थी। निर्णायकों ने रोजेरियों को प्रथम घोषित किया। तभी रोजेरिया दौड़ता हुआ पास पहुँच कर बोला महोदय मुझे प्रथम मान कर आपने भूल की यह अधिकार मुझसे पहले मित्र का है देखिये वजन उठाते समय मेरे घुटने जमीन से टिक गये थे उसकी मिट्टी मेरे पैरों पर अभी तक लगी है। रोजेरियों की इस सज्जनता और सत्यता पर सभी लोग मुग्ध हो गये।
(४) रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा में केशवचंद्र सेन ने एक लेख छपाया। रामकृष्ण परमहंस ने उसे पढ़ा तो बड़े नाराज हुए बोले हमें यश की नहीं अपने चरित्र को उज्ज्वल बनाने की बात सोचनी चाहिये। चरित्रवान् का यश तो अपने आप उसी प्रकार फैलता है जिस प्रकार फूलों की सुगन्ध।
(५) युवक विल्वमंगल को देखकर एक कामनासक्त तरुणी ने कहा तुम्हारी आँखों ने तो मेरा मन चुरा लिया है। युवक चुपचाप चला गया दूसरे दिन एक डंडे के सहारे उसी दरवाजे पर पहुँच कर बोला-माता जी यह लो जो आँखें तुम्हें प्रिय थी। वह अपने पास रख लो। युवक को अन्धा देखकर युवती की कामुकता दूर हो गई और वह भी ईश्वर भक्ति में लग गई। यह विल्वमंगल ही आगे चलकर सूरदास के नाम से प्रकाशित हुए।
(६) शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी कच को प्यार करने लगी। एक दिन उन्होंने कच से विवाह का प्रस्ताव किया तो कच ने कहा बहन तुम मेरे गुरु की पुत्री हो मेरी बहन के समान हो तुम से विवाह कैसे करूँ? देवयानी ने कहा-तुम मुझसे शादी नहीं करते तो शाप देती हूँ कि मेरे पिता की दी हुई सारी विद्या भूल जाओ। कच बोले बहन आदर्श रक्षा व चरित्र की रक्षा के लिये मुझे तुम्हारा शाप सहर्ष स्वीकार है।


(५९) उदार सहकारिता से हमारी उलझनें सुलझेंगी

प्रश्न ——
(१) पशु और मानव दोनों की प्रगति में इतना अधिक अन्तर क्यों है? सामाजिक आधार पर समझाइए? (२) सहकारितायुक्त की प्रवृत्ति में आध्यात्मिक आदर्श किस प्रकार जुड़े हुये हैं? (३) स्वार्थी व्यक्ति की परिभाषा कीजिये? (४) किस प्रकार इकाई-इकाई मिलकर एक विशाल समूह का निर्माण करते हैं? उदाहरणों के द्वारा समझाइए? (५) प्रजातंत्र युग में सहकारिता का महत्त्व किस तरह है। प्रतिपादित कीजिये? (६) कृषि, व्यवसाय, उत्पादन, उद्योग आदि में भी सहकारिता का महत्त्व कहाँ तक है। (७) युग निर्माण योजना इस समय सहकारिता का युग स्थापित करने के लिए प्रयत्न कर रही है? (८) सामाजिक शोषण, अशिक्षा आदि सहकारिता के द्वारा किस प्रकार हल हो सकेंगे।

कथाएँ ——
(१) किसान को मृत्यु समीप होने का दुःख नहीं था, उनकी वेदना का कारण यह था कि उसके चारों बच्चों में परस्पर वेदना का कारण यह था कि उसके चारों बच्चों में परस्पर बनती नहीं थी। एक दिन किसान ने उन सबको बुलाया और न कहा सूत का धागा लेकर आओ। उसने इकट्ठे कई धागे दिये और एक-एक लड़के को देकर तोड़ने को कहा पर उन धागों को कोई नहीं तोड़ सका।
इसके बाद उसने एक-एक धागा दिया और तोड़ने को कहा तो सबने ही तोड़ दिया। किसान बोला-बच्चों इन धागों की तरह जो लोग मिल-जुलकर रहते हैं उनका बड़ी-बड़ी ताकते भी मुकाबला नहीं कर सकतीं पर बिखरे और विसंगठित लोग तो इन अकेले धागों की तरह कभी भी नष्ट कर दिये जा सकते हैं। लड़के एकता का अर्थ समझ गये और मिल-जुलकर रहने लगे।
(२) सेठ जी ने बहुत अनुनय-विनय की पर लक्ष्मी जी रुकी नहीं, घर छोड़कर चली गईं। कल तक घर वाले धन के पीछे झगड़ते रहते थे आज जब धन न रहा और हाथ तंगी में आ गया तब सारी भूल का पता लगा। फिर से लोग प्रेमपूर्वक रहने और मिल-जुलकर काम करने लगे।
एक दिन सेठ ने स्वप्न में देखा, भगवती लक्ष्मी आई हैं और घर में प्रवेश कर रही है सेठ ने पूछा-अम्बे एक दिन आपकी इनकी प्रार्थना की थी फिर भी आप रुकी नहीं थीं आज स्वयं आने की कृपा की। सो क्यों? लक्ष्मी जी बोलीं-वत्स जहाँ लोग परस्पर मिल-जुलकर नहीं रहते वहाँ मैं भी नहीं रह सकती पर जहाँ सुमति होती है वहाँ तो मैं अपने आप पहुँचती हूँ।
(३) एक लड़का पढ़ने के उद्देश्य से बम्बई गया पर पास में कुल बीस रुपये उसी में खाना खर्च उसी में पुस्तकें और मकान किराया सब कैसे चले। बड़ी देर सोचने के बाद एक युक्ति ध्यान में आई। रहने के लिए एक किराये का मकान ढूँढ़ा और साथ-साथ ४ साथी भी खाने के लिए एक ऐसा ढाबा ढूँढ़ा जहाँ कई लोगों का सामूहिक खाना बन जाता था। पढ़ने के लिए १ रुपया देकर पीटर पुस्तकालय की सदस्यता स्वीकार की इस सहकारिता के फल-स्वरूप ही उसने बम्बई की पढ़ाई पास की यह बालक एक दिन उत्तर प्रदेश का गवर्नर तक बना नाम था के. एम. मुंशी।
(४) लड़का मचल रहा था मैं तो अपनी गृहस्थी लेकर अलग रहूँगा अपने उन्नति आप करूँगा। पिता ने कहा-ठीक है कल व्यवस्था कर दूँगा आज इस घर की सफाई तो कर डालो कहकर एक सींक हाथ में थमा दी। लड़का खीझकर बोला-कहीं एक सींक से सफाई होती है? बुहारी हो तो लाओ? पिता बोला-बेटा जिस तरह एक सींक अकेली सफाई नहीं कर सकती एक व्यक्ति अकेला उन्नति नहीं कर सकता सबको मिल-जुलकर ही काम करना चाहिए।
(५) सांसारिक दुःखों के अभावों से ग्रस्त देवता और राक्षस ब्रह्माजी के पास गये और दुःख निवारण का उपाय पूछा, ब्रह्माजी बोले-परस्पर संघर्ष ही तुम्हारे दुःख का कारण है मिल-जुलकर प्रयत्न करो तो सुख-शान्ति से भर जाओगे। देव-दनुजों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया और १ रत्न ढूँढ़ निकाले।


(६०) प्रगति के लिए श्रम, सम्मान एवं गृह-उद्योगों की आवश्यकता

प्रश्न ——
(१) आर्थिक कठिनाई हम क्यों उठा रहे हैं? (२) आर्थिक कठिनाई की समस्या को हल करने के लिये क्या करना होगा। (३) ‘जापान’ के आधार पर समझायें कि उन्नति किस तरह की जा सकती है? (४) तथा ‘जापान’ की तरह ही नीति अपनाने पर हमें क्या लाभ हो सकते हैं? (५) हमारे देश में ‘बेकारी हराम है’ यह युक्ति हमें किस प्रकार आर्थिक दुर्दशा में से उसे उबरने के लिए पतवार का काम कर सकती है? (७) शिक्षित नारी भी किस विधि से आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद दे सकती है? (८) शिक्षित युवकों की बेकारी समस्या किस प्रकार हल की जा सकती है? (९) ‘युग निर्माण विद्यालय’ यह आप किस आधार पर कह सकते हैं कि यह विद्यालय व्यक्ति को रोजगार, आर्थिक उन्नति प्राप्त करने में सहयोगी है? (१०) सरकार, जनता तथा पूँजीपति इसमें कहाँ तक सहायता दे सकते हैं!

कथाएँ ——
(१) एक युवक एक साधु के पास जाकर बोला-भगवन् कोई ऐसी आशीष दीजिये जिससे मालामाल हो जाऊँ? साधु ने कहा बेटा जा कोई उद्योग से ही पैसा बढ़ता है लेकिन युवक को तो अपनी धुन लगी हुई थी वह अपनी ही जिद करता रहा। साधु ने कहा-अच्छा जा तू जिस वस्तु को छुएगा वही सोना बन जायेगी। युवक प्रसन्न होकर घर लौटा। जो भी चीज छुई सोना बन गई। ध्यान रही नहीं उसके घर के किवाड़, लोटा, और खाना तक सोना बन गया। भूख से व्याकुल युवक ने स्त्री से कुछ कहने के लिये जैसे ही उसे छुआ वह भी सोना बन गई। युवक साधु के पास जाकर आशीर्वाद वापस कर आया और परिश्रम से कमाई करने लगा।
(२) एक दिन किसान की सेवा से प्रसन्न होकर एक तान्त्रिक ने उसे एक ताबीज देकर कहा-बेटा इससे जो कुछ भी माँगोगे वही देगी पर एक बार ही देगा इसलिए पहले तो तुम उद्यम और उद्योग करना, जब बहुत गाढ़ा समय हो तभी उसका उपयोग करना। किसान ताबीज लिये घर लौट रहा था कि उसकी भेंट स्वर्णकार से हो गई। स्वर्णकार ने धोखे से ताबीज खुद ले ली और किसान को दूसरी दे दी। रात में स्वर्णकार ने ताबीज आँगन में रखकर कहा-सोना की वर्षा हो’ सोने-चाँदी की इतनी वर्षा हुई कि सोनार उसमें दबकर मर गया उधर गरीब किसान ने तान्त्रिक की बात मान कर उद्योग किया उसी में मालामाल हो गया।
(३) बलदेव प्रसाद नामक एक व्यक्ति साधु के पास गये और कहा-महात्मन् कोई आशीर्वाद दो कि आर्थिक तंगी से मुक्ति मिले। मैं तो पढ़ा लिखा भी नहीं हूँ। साधु विचारशील थे लोगों को भ्रमित करने वाले नहीं। बोले-बेटा कमाना है तो आवश्यक नहीं तुम शिक्षित ही हो जाओ परिश्रम पूर्वक उद्योग करो उसी से धन मिलेगा। लेकिन मेरे पास पूँजी नहीं है, बलदेव प्रसाद ने कहा। उद्योग ५ रुपये से भी प्रारम्भ किया जा सकता है आवश्यक नहीं उसके लिये लाख रु० ही हों। बलदेव प्रसाद ने २५) में अपने बर्तन दिल्ली में गिरवी रखकर उद्योग प्रारम्भ किया और दुनिया के सबसे बड़े धनपति हो गये बलदेव प्रसाद बिरला-बिरलाओं के पितामह।
(४) एक चीनी सज्जन जापान गये। वहाँ एक दूध वाले के यहाँ ठहरे। एक दिन दूध वाले को चिन्तित देखकर चीनी महोदय ने पूछा-क्या बात है। दूध वाले ने बताया-आज एक गाय ने नहीं दिया दूध उससे दो घरों को दूध नहीं मिल पायेगा उनके बच्चे भूखे रहे जाएँगे यही सोचकर दुःख हो रहा है। चीनी सज्जन हँसकर बोले-अरे इसमें दुःख की क्या बात है? दूध में उतनी पानी मिला दो? जापानी ने कहा-महादेव हम उद्योग करते हैं धोखा नहीं देते? चीनी बहुत घबराये और समझ गये कि उद्योगी को ईमानदार भी होना चाहिए?
(५) महात्मा गाँधी के पास जाकर एक युवक ने कहा-बापू भूख से मर रहा हूँ कोई नौकरी भी नहीं देता अपने पास कोई साधन भी नहीं है। बापू ने कहा-अच्छा यह बताओ चींटी, मकड़ी मधुमक्खी और जंगल के लाखों जीव किस कारखाने में नौकरी करते हैं तथा उनके पास क्या साधन हैं फिर क्या वे लोग भूखे है? युवक समझ गया अभाव धन का नहीं मन का है उस दिन से वह परिश्रम में जुट गया।


(६१) अन्न संकट की चुनौती का सामना कैसे करें?

प्रश्न ——
(१) हमारा देश कृषि प्रधान होते हुए की विदेशों से अन्न क्यों मँगाता है? (२) खाद्य पदार्थों के उत्पादन की वृद्धि के लिए क्या किया जाना चाहिए? (३) शाक-भाजियों के उत्पादन से क्या लाभ होगा? (४) अन्न के अपव्यय को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए? (५) बड़ी दावतों से क्या हानि है? (६) जूठन छोड़ना अन्नदेव का अपमान करना है? सिद्ध कीजिए? (७) जूठन खाने से स्वाभिमान व स्वास्थ्य दोनों गिरते हैं? सिद्ध करो। (८) भोजन परोसने में क्या सावधानी रखनी चाहिए? (९) सप्ताह में एक उपवास क्यों आवश्यक है? उपवास के लाभ बताइये? (१०) चूहों व कीड़ों से अन्न की बरबादी बचाने के लिए क्या किया जाये? (११) अन्न संकट को उत्पादन वृद्धि से ही नहीं संरक्षण एवं उपयोग के विवेकपूर्ण तरीकों से भी टाला जा सकना है-सिद्ध करें।

कथाएँ ——
(१) श्री विट्ठल भाई पटेल उन दिनों बम्बई कारपोरेशन के अध्यक्ष थे। जब कोई बड़ा आदमी आता तो कारपोरेशन के अध्यक्ष को दावत देनी पड़ती उसमें शराब तो उड़ती ही मन अन्न बेकार जाता। विट्ठल भाई पटेल ने कहा-दावतें इस खाद्य की कमी वाले देश के लिये पाप है उन्हीं दिनों लार्ड रीडिंग भारत आ रहे थे पर उन्होंने तब भी दावत न दी और एक खराब परम्परा का अपने साहस से अन्त कर दिया।
(२) अन्न छत पर भी उगाया जा सकता है यह पढ़ कर महाराष्ट्र (बम्बई) के एक साधारण मजदूर लक्ष्मण मंडल ने अपनी छत पर ९ इंच मोटी मिट्टी डालकर मक्का बोई और पहली ही बार वर्ष में दो बार में ५४ किलो मक्का पैदा किया। उसके इस कार्य की राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन ने सराहना की और उसका मक्का भी खाया।
(३) भारतीय किसानों के लिए कृषि फार्म खोलने की आवश्यकता अनुभव हुई तो प्रो० हिगिन बोटाम अमेरिका गये लोगों ने कुल ५० रु० दिये। उन्हें अपने कुछ कमी जान पड़ी अपने पास थोड़ा साधन था उससे ओहियो के कृषि कॉलेज में भरती हो गये। और कृषि पंडित बन कर जब बाहर आये और भाषण दिया तो पहली ही बार में तीस हजार रुपये मिले प्रयाग के पास २७५ एकड़ भूमि में स्थापित उनका कृषि फार्म कृषि क्षेत्र में काम करने वालों को प्रेरणा देता है कि उन्हें विशेषता का घमण्ड करने की अपेक्षा कुछ परिश्रम और रचनात्मक काम का साहस करना चाहिए।
(४) बिहार में सूखा पड़ गया, बोने के लिए बीज की कमी समस्या मुँह बायें खड़ी थी। एक गाँव के किसानों ने प्रतिज्ञा को वे गाँव में एक भी दावत न करेंगे। मृतक भोज न करेंगे और प्रति सप्ताह एक दिन उपवास रखेंगे। फसल बोने का समय आ गया। दूसरे गाँव के लोग बीज के लिये इधर-उधर मारे-मारे डोल रहे थे तब इस गाँव के लोग बचाये हुए अन्न से खेती की बोआई कर रहे थे सूखा उनका कुछ भी न बिगाड़ सका।
(५) गाँधी के आश्रम में मोटे अन्न की रोटियाँ बनतीं कुछ लोग उन्हें पसन्द नहीं करते, दैवयोग से जेल हो जाने पर जो मोटा अन्न नहीं खाते थे। उन्हें हमेशा पेट की शिकायत रहती जब कि जिन्हें पहले से ही मोटी रोटियाँ खाने का अभ्यास था, जेल में भी उनका स्वस्थ पहले जैसा बना रहा।
(६) राशन की कमी के कारण कण्ट्रोल लगा दिया गया। गेहूँ बड़ी मुश्किल से मिलता उन्हीं दिनों श्री पुरुषोत्तमदास टंडन के यहाँ कुछ मंत्री ठहरे। रसोइया हैरान था गेहूँ का आटा नहीं है अतिथियों को क्या खिलायें। टंडन जी ने कहा-बेईमानी करने की अपेक्षा मोटा अन्न खिलाने में कोई हानि नहीं जौ की रोटियाँ बनीं और मंत्रियों को वही खिलाई गईं। उन्होंने मंत्रियों से कहा-हमें मोटा अन्न खाने की आदत हो तो अन्न की कमी कभी भी महसूस न हो।


(६२) शाक हमारी खाद्य समस्या का हल करेंगे

प्रश्न ——
(१) आज राष्ट्र की प्रमुख समस्या एवं चिंता की बात क्या है? (२) खाद्य समस्याओं को हल करने में प्रत्येक परिवार क्या योगदान दे सकता है? (३) शाकों का उपयोग अन्न से अधिक गुणकारी क्यों है? (४) सरलता से उगने वाले कंद, मूल, फलों के नाम बताइये? (५) किसानों को शाक सब्जी क्यों उगाना चाहिए? (६) खाली जगहों का उपयोग शाक उगाने में कैसे किया जा सकता है? (७) हर जगह कौन-कौन से शाक उगायें जा सकते हैं? (८) फूलों-उत्पादन से क्या लाभ है? (९) पौध एवं नर्सरी लगाने से क्या लाभ है? (१०) हरित क्रांति से क्या समझते हो? (११) कम खर्च में थोड़ी भूमि में कौन सा उद्योग पनप सकता है?

कथाएँ ——
(१) स्वामी विवेकानंद आहार में शाक-भाजी अधिक लेने की बात कहते। एक बार एक व्यक्ति ने पूछा-हम आहार शक्ति के लिए खाते हैं शक्ति अन्न और माँस से अधिक मिलती है फिर शाक भाजी क्यों अधिक खायें इस पर विवेकानंद ने बताया-१ शाक खाद्यान्न की कमी पूरा करते हैं? (२) जल्दी पच जाते हैं जितनी देर में १ पाव अन्न पचता है साग उतनी देर में १ किलो पचेगा (३) शाक में खनिज व विटामिन अधिक होते हैं। (४) अनाज और माँस में जितनी शक्ति अधिक होती है उतना ही अधिक मल उत्पन्न होता है जिससे शरीर में सुस्ती, भारीपन रहता है आयु क्षीण होती है। (५) शाक में जो स्वाद है वह अन्न में या माँस में नहीं।
(२) दो किसानों में बहस छिड़ गई। एक कहता था, अन्न उपजाने में लाभ है दूसरा कहता था शाक भाजी में। विवाद में कोई बात निश्चित न हो पाई तब दो बीघे खेतों में अपने पक्ष की पुष्टि में प्रयोग का निश्चय किया गया। अन्न में लाभ बताने वाले ने ४० रुपये का ४० किलो बीज लेकर क्वार कार्तिक के दिनों में फसल बोई चैत्र में काटी बैसाख में आठ माह बाद घर आई फसल से १० मन अनाज मिला जिसका मूल्य साढ़े तीन सौ रुपया था। शाक भाजी वाले ने २ रुपये के बीज लेकर २ बीघे खेत में गोभी, बैंगन और टमाटर बोये दो माह बाद फल लगने लगे। १ माह में उसे ५० मन भाजी मिली औसत पचास पैसे किलो से उसे एक हजार रुपये की आमदनी हुई, तीन महीने में दूसरी फसल तैयार करके उसने फिर एक हजार की कमाई करके उसने तीन गुना अधिक लाभ लिया और बहस में विजयी भी हुआ।
(३) उत्तर प्रदेश के हरदौना ग्राम के निवासियों ने शाक आन्दोलन चलाया। गाँव के भीतर की कोई भी बेकार पड़ी जमीन खाली न रहने दी सब जगह सब्जी ही सब्जी बोकर पहले ही वर्ष एक हजार की आबादी वाले ग्रामवासियों ने दस हजार मन सब्जी पैदा करके हजारों मन अन्न बचाया साथ ही हरी सब्जी का पोषण भी लोगों को दिया।
(४) लकड़ी के बक्सों में विलायती टमाटर उगाने के अभियान में लखनऊ के एक ओवरसियर ने अपने मकान में ही इतना टमाटर तैयार किया कि प्रतिदिन टमाटर की सब्जी खाने के बावजूद ५ किलो प्रतिदिन के हिसाब से बिक्री करके पैसा भी कमाया।
(५) आचार्य रामानुज जहाँ रहते थे शाक भाजियाँ साल भर उगाते रहते। एक दिन लोगों ने पूछा-आपको थोड़ी सी सब्जी चाहिये इतनी क्यों उगाते हैं। उन्होंने कहा-हमारे और भाई लोग खाते हैं और हमें यहाँ हरियाली बने रहने का लाभ मिलता है।
(६) अवकाश के समय भाजी उगाने वाले किसान के एक घंटा प्रतिदिन काम करके घर के सामने पड़ी जमीन से खेती का पाँचवाँश लाभ मिला हिमाचल प्रदेश के इस किसान हेमचन्द ने अब पूरी खेती शाक भाजी की करने का निश्चय किया है।


(६३) वृक्षारोपण और संवर्धन-एक अति आवश्यक कार्य

प्रश्न ——
(१) वृक्षारोपण क्यों आवश्यक है? (२) वृक्षों के संरक्षण से मानव समाज को क्या लाभ होते हैं। (३) वृक्षों की तुलना संतों से क्यों की जाती है? (४) वृक्ष बिना कारण ही मानव समाज का हित करते हैं-सिद्ध करो। (५) वन्य प्रदेश में वर्षा अधिक क्यों होती है। (६) वनों से नेत्रों की तेजी बढ़ती है-सिद्ध करो। (७) फल-फूल एवं हरियाली के लाभ बताइये। (८) वृक्षों से भूमि संरक्षण कैसे होता है। (९) पीपल, बड़ एवं आँवलेइ की पूजा क्यों की जाती हैं। (१०) वृक्ष हमारी खाद्य समस्या को हल करने में कैसे सहायक होते हैं।

कथाएँ ——
(१) मास्टर साहब ने प्रश्न किया बताओ सहारा में जल क्यों नहीं मिलता और अफ्रीका में अमोजन नदी जितना पानी क्यों है? छात्र ने उत्तर दिया सहारा रेगिस्तान है अफ्रीका में घने जंगल हैं। अध्यापक ने समझाते हुये कहा-अफ्रीका में घने वृक्ष हैं वे बादलों को आकर्षित कर लेते हैं इसलिये वहाँ जलवृष्टि खूब होती है पर रेगिस्तान में वृक्ष न होने से वर्षा नहीं होती।
(२) वृक्षों को शंकर क्यों कहते हैं एक पुत्र ने पिता से पूछा-पिता ने वृक्ष में जल डालते हुए कहा बेटा समुद्र मंथन हुआ तब देव और दनुजों ने सब कुछ बाँट लिया पर विष कोई लेने को तैयार न हुआ। तब उसे शंकर जी ने पीकर मानवता की रक्षा की। शंकर जी ने पीकर मानवता की रक्षा की। शंकर जी ने तो ऐसा एकबार किया पर मनुष्य गन्दी साँस धुँआ और सड़ादें उत्पन्न किया करते हैं उन्हें जीवन भर यह वृक्ष ही तो पान करके वायु शुद्ध रखते हैं बोलो यह क्या हुए? महाशंकर-पुत्र ने उत्तर दिया।

(३) एक व्यक्ति को स्वर्ग में देखकर महात्मा वपुष चिल्लाए और धर्मराज से बोले-महाराज मैं इसे अच्छी तरह जानता हूँ इसने कोई पुण्य नहीं किया फिर इसे स्वर्ग क्यों मिला धर्मराज हँसकर बोले-क्योंकि इसने बहुत से वृक्ष लगाये हैं। तुम्हारे पुण्य तो नष्ट हो गये किन्तु इसके पुण्यों का लाभ आज भी धरती वाले ले रहे हैं क्या यह सबसे बड़ा पुण्य नहीं? महात्मा सोचने लगे अब की पृथ्वी में जन्मा तो मैं वृक्षारोपण खूब करूँगा।
(४) चिलांगा के किसान राल्फऐन्डर को बाग लगाने का शौक हुआ। उनके पास जितनी जमीन थी उस सब में सुन्दर बाग लगा दिए। लोगों ने कहा-खेती करो नहीं तो भूखों मर जाओगे। किन्तु आज वही राल्फ सारी दुनियाँ में ‘‘चिलोंगा के बागबां’’ के नाम से प्रसिद्ध हैं उनकी आमदनी किसी भी किसान से अधिक है।
(५) पिता ने पुत्र कहा बेटा! कृषि के साथ बाग-बानी का पुण्य शास्त्रों में दस यज्ञों के समान बताया है। पुत्र ने कहा-पिताजी यज्ञ से तो वायु-प्रदूषण दूर होने का तात्कालिक लाभ मिलता है पौधों से क्या लाभ। पिता ने कहा जितने दिन तुम जिन्दा हो तुम फल खाओ लकड़ियाँ जलाओ फिर तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे बच्चों के भी बच्चे पेड़ जब तक जिन्दा हैं देता रहेगा मरने पर भी वह काम आता है।
(६) रिजिओ नामक एक ट्रेवलिंग जहाज पृथ्वी की परिक्रमा करने निकला। यात्रियों को सामान्य भोजन दिया गया। वापसी पर लगभग आधे व्यक्ति बीमार पाये गए। २५ तो मर भी गए। दुबारा फिर जहाज गया इस बार यात्रियों को आहार में अधिकांश फल दिये गये तो उसमें से एक दो को छोड़कर कोई बीमार नहीं हुआ।


(६४) तुलसी हमारे हर घर-घर में शोभायमान रहे

प्रश्न ——
(१) तुलसी के पत्ते का उपयोग पूजा में क्यों किया जाता है? (२) तुलसी के सेवन से क्या लाभ है? (३) हर घर में तुलसी का पौधा क्यों होना चाहिए? (४) तुलसी को औषधि के रूप में कैसे प्रयोग किया जा सकता है? (५) तुलसी की उपयोगिता पर एक लघु निबन्ध लिखें। (६) तुलसी के लाभ के ५ श्लोक सुनाओ और उनका अर्थ बताओ। (७) तुलसी चरणामृत क्यों लाभदायक है। (८) तुलसी के सम्बन्ध में किन-किन प्राचीन ग्रन्थों में वर्णन मिलता है।

कथाएँ ——
(१) भरतपुर के एक वैद्य ने अपनी तुलसी कल्प पुस्तक में लिखा है कि प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान से निवृत्त होकर पाँच तुलसी दल (पत्ते) खाने वाला व्यक्ति कभी रोगी नहीं हो सकता।
(२) यज्ञोपवीत, चोटी और तुलसी में से आप सबसे अधिक किसे महत्त्व देते हैं एक व्यक्ति ने मदन मोहन मालवीय से प्रश्न किया-मालवीय जी बोले-यह तो ऐसे ही हुआ जैसे कोई कहे तीन चाँदी के रुपयों में कौन रुपया अच्छा है? तीनों ही अच्छे हैं पर यह समझता हूँ कि यदि तुलसी को महत्त्व दिया जाये तो शेष दी की महत्ता को लोग अपने आप समझ जायेंगे क्योंकि तुलसी श्रद्धा और निर्मल बुद्धि का विकास करती है।
(३) शिष्य ने पूछा-गुरुवर तुलसी वृक्ष और तुलसी वन लगाने को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यदायक माना जाता है ऐसा क्यों? गुरु ने अलंकारिक वर्णन का रहस्य समझाते हुए बताया-तात यज्ञ धूम्र से रोग कीटाणु नष्ट होते हैं, वायु शुद्ध होता है उसी प्रकार तुलसी में ऐसे रसायन होते हैं जिनसे वायु शुद्ध होती और रोग-कृमि नष्ट होते हैं। तुलसी के पत्ते खाने से लेकर उसके समीपवर्ती वातावरण में जाने से आरोग्य बढ़ता है इसलिए एक तुलसी वृक्ष लगाने को सौ अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य-दायक कहा जाये तो भी कम है। शिष्य ने प्रतिज्ञा की और एक बड़ा तुलसी वन लगाने में जुट गया।
(४) संत तुकड़ो जी महाराज से एक व्यक्ति ने पूछा-हिन्दू जाति तुलसी को कन्या मानती है हिन्दू धर्म तुलसी के कन्यादान को पवित्र और आवश्यक मानता है क्या यह अन्ध श्रद्धा और उपहासास्पद बात न हुई। सन्त तुकड़ों हँसे और बोले —नहीं वरन यह भारतीय आचार्यों की वैज्ञानिक बुद्धि का परिचायक है। तुलसी इतनी उपयोगी है कि उसे कन्या की तरह पालन-पोषण की बात कही गई ताकि कोई भी व्यक्ति उसके समीप होने के लाभ से वंचित न रहे।
(५) माँ ने कहा-बेटा प्रतिदिन स्नान करके तुलसी में जल चढ़ाया करो। बालक ने तर्क किया उससे क्या होगा माँ? जल ही चढ़ाना है तो किसी भी पौधे में क्यों न चढ़ाया जाये? माँ बोली-तुलसी में जल चढ़ाना धर्म कृत्य माना है क्योंकि इन देवी की जड़ से लेकर पत्ते और बीज तक मनुष्य जाति के लिये बड़े हितकारक है, लोकमंगल में रत चाहे वृक्ष ही क्यों न हो श्रद्धा रखी जानी चाहिए। उससे अपनी ही महानता विकसित होती है।
बच्चे ने तुलसी वृक्ष में नियमित जल डालना प्रारम्भ किया और सचमुच उसी श्रद्धा ने उसे महान् बना दिया। यह थे महान् बिनोवा भावे।
(६) डॉ० पार्कर से एक पत्रकार ने पूछा-भारत की किस वस्तु ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया? पार्कर बोले-तुलसी ने। मैंने देखा कि पंजाब में हर घर में लोग तुलसी लगाते हैं पूछने पर ओर प्रयोग करने के बाद मैंने पाया कि तुलसी जैसा उपयोगी दूसरा कोई पौधा नहीं।
(७) एक बार आचार्य चरक से एक शिष्य ने पूछा-मृत्यु के समय भगवान् आपके समक्ष उपस्थित हों तो आप क्या माँगेंगे। चरक ने उत्तर दिया-नया जन्म जिसमें मैं घर-घर जाकर लोगों से तुलसी वृक्ष लगवा सकूँ। इस पुण्य के बदले में कोई भी यश और वैभव अर्जित कर सकता हूँ।


(६५) गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता

प्रश्न ——
(१) भारत में गौ पालन का क्या महत्त्व है? (२) गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ क्यों माना जाता है। (३) सिद्ध कीजिये कि गौ रस सर्वांगपूर्ण परिपुष्ट आहार है। (४) गौ रक्षा के महत्त्व दर्शाने वाले दो पर्वों का वर्णन करो। (५) राजा दिलीप ने गौ की सेवा क्यों की थी? (६) बैल की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये (७) गोवर्धन पूजा का महत्त्व स्पष्ट कीजिये। (८) गौवंश नष्ट होने के कारण बताइये। (९) गौ पालन के लाभ पर प्रकाश डालिए। (१०) गौ दुग्ध, गौ घृत के सेवन का व्रत क्यों लेना चाहिए।

कथाएँ ——
(१) गौ हत्या के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे कुछ स्वयं सेवकों से एक अधिकारी ने पूछा-बताइये लोगों में से कितनों ने गाय पाल रखी हैं? एक भी स्वयंसेवक मुँह न उठा पा रहा था। अधिकारी ने कहा-कितने खेद की बात है कि आप लोग गाय की बात कहते हैं और पालते हैं भैंस का ही पसंद करते हैं जबकि गुणकारी गाय का ही दूध है।
कुछ लोगों ने कहा गाय का दूध सस्ता बिकता है इस लिये भैंस पालने के लिए विवश होते हैं अधिकारी ने कहा-गाय का दूध, गाय का घी उपयोगी है तो आप लोग उसका दाम बढ़ाइये न दीजिये लोगों को सस्ते दाम पर उसका लाभ स्वयं लीजिये तो लोग अपने आप उसकी महत्ता समझेंगे।
(२) अरबीकालिज लखनऊ के प्रोफेसर मौलानासैयद मुहम्मद सादिक ने मुहम्मद साहब का विस्तृत जीवन परिचय लिखा और बताया कि जो लोग कहते हैं पैगम्बर गो माँस खाते थे वे गलत कहते हैं कुरान शरीफ में कहीं भी गौ माँस खाने का समर्थन नहीं है।
(३) भू० पू० सूचना मंत्री के० के० शाह से एक बार संसद सदस्य नारायण स्वरूप शर्मा ने पूछा-आपके पास कोई ऐसे आँकड़े हैं क्या जिनसे गाय की उपयोगिता सिद्ध होती हो। श्री शाह ने बताया-हाँ कुछ दिन पूर्व रूस के वैज्ञानिकों का शिष्ट मंडल भारत आया था उसके नेता डॉ० शिरोविच बहुत बड़े वैज्ञानिक हैं उन्होंने बताया कि गाय के दूध में एटामिक रेडिटेशन से रक्षा करने की सबसे अधिक शक्ति है अगर गाय के घी को आग में डालकर धुँआ उठाया जाय अर्थात् हवन किया जाए तो उससे रेडिटे-शन का प्रभाव बहुत कम हो जायेगा।
(४) डॉ० बुचनन हैमिल्टन से एक अँगरेज पत्रकार ने पूछा-आप अँगरेज होकर भी हिन्दुओं के गौ पालन का समर्थन करते हैं (श्री बुचनन ने १८८० में भारत में हो रहे पशु धन हृास के विरुद्ध आवाज उठायी थी) इस पर उन्होंने उत्तर दिया-भारत कृषि प्रधान देश इस देश की समृद्धि का कारण गाय ही रही है गाय की उन्नति के बिना यह देश उन्नति कर भी नहीं सकता।
(५) मिस्टर राल्फ ए० हेने से एक बार एक व्यक्ति ने प्रश्न किया बच्चे कभी अस्वस्थ न हों कोई ऐसा नुस्खा बनाइये (श्री हेने ने उत्तर दिया —संतानों को शक्तिशाली और बलवान देखना हो तो उन्हें गाय का दूध और मक्खन रोज दिन में तीन-चार बार खाने को दीजिये।)
(६) शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह ने पाण्डवों और कौरवों को बताया कि गाय मारना ही पाप नहीं वरन् गाय को मारने के लिए बेचना भी पाप है। गाय हत्या का अनुमोदन करने वालों को गाय की देह में जितने बाल होते हैं उतने वर्षों तक नरक में रहना पड़ता है।
(७) वाणिग्राम के विजयमित्र नामक व्यापारी के संतान तो होती थी किन्तु कुछ ही दिन में मर जाती थी। एक साधु ने उसे बताया उस पर पहले जन्म की गोहत्या का पाप चढ़ा है यदि वह सौ गौ पाले पति-पत्नी दोनों गौ कल्प करें तो श्रेष्ठ संतान के भागी हो सकते हैं। विजयमित्र ने गौ कल्प किया फलस्वरूप उसे श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।
(८) अमेरिका के पेसिंलवेनिया के एक वैज्ञानिक ने गौमूत्र की जाँच करके बताया कि भारतीयों ने गौमूत्र और गोबर को इतना महत्त्व दिया है वह निरर्थक नहीं रासायनिक विश्लेषण से पता चलता है कि गौमूत्र में भी विटामिन तत्त्व पाया जाता है।
(९) गाँधी ने एक बार सेठ जमनालाल बजाज से गायों पर विचार करने को कहा-मुझे दुःख है कि गाय का हमारे देश में सबसे अधिक महत्त्व होने पर भी यहाँ गौओं की दशा अत्यन्त गिरी हुई है जब कि नार्वे और हालैण्ड के कृषि-जीवन पर उसका सर्वाधिक प्रभाव है।


(६६) अधिकार गौण और कर्तव्य प्रधान माना जाय

प्रश्न ——
(१) उत्पादन के प्रमुख पक्ष कितने हैं और कौन-कौन हैं? (२) उत्पादन में उचित अंश श्रम जीवी को देना क्यों आवश्यक है? (३) कर्तव्य की उपेक्षा क्यों नहीं की जानी चाहिए? (४) मनुष्यता एवं देश भक्ति का सहज प्रमाण क्या है? (५) मतभेद सुलझाने का सही तरीका क्या है? (६) उदात्त भावना का क्या तात्पर्य है? (७) अधिकार से अधिक कर्तव्य का महत्त्व क्यों है? (८) जापान स्थित अमेरिकन फैक्टरियों के श्रमिकों ने काम के दो घंटा कम करने का सुझाव क्यों नहीं माना (९) श्रमिक एवं स्वामी के संघर्ष पर प्रकाश डालते हुए समस्या का यथार्थ हल सुलझाइए।

कथाएँ ——
(१) किसान तरबूज बेचने बाजार पहुँचा। एक आदमी ने एक रुपये में तरबूज लिया तभी एक सेठ पहुँचे और किसान को दो रुपये का लालच देने लगे। किसान ने कहा-श्रीमान् जी जो वस्तु एक बार बेच दी उसके लिए अब दो रुपये तो क्या हजार रुपये दो तो भी नहीं दे सकता।
(२) प्रसिद्ध वकील रामदास ने एक बार एक मुकदमा लड़ा उसमें उनके पक्ष की जीत हो गई पीछे पता चला कि उन्होंने झूठा मुकदमा लड़ा तो उन्हें हार्दिक दुःख हुआ और वकालत करना ही उस दिन से छोड़ दिया।
(३) दुकानदार अपने पैसे गिनने लगा तो देखा उसमें कई खोटे सिक्के भी लोग धोखे में दे गये। वह सिक्के नाली में फेंकने लगा तो पड़ोसी ने कहा-मूर्ख जैसे किसी ने तुझे धोखे से खोटे सिक्के दिये तू भी ऐसे ही किसी को भेड़ दे। किन्तु दुकानदार ने कहा-थोड़े से सिक्के कई लोगों को बेईमानी और धूर्तता सिखाएँ उससे अच्छा तो खोटे सिक्कों को फेंक देना ही अच्छा है। यह कहकर उसने सिक्के पानी में फेंक दिये।
(४) एक भारतीय अमेरिका गये। एक जूते वाले को अपना जूता दिखाकर बोले-भाई इसकी गठाई का क्या लोगे-एक रुपया’ ‘मोची बोली’ वह सज्जन बोले-किन्तु मेरे पास तो पैसे कम हैं। तो कोई बात नहीं लाइये आपका काम तो करूँगा ही। उन सज्जन ने जूते ठीक कराते हुए पूछा-क्यों भाई! कम पैसे लेने में तुम्हें हानि नहीं होगी? मोची बोली-होगी तो पर अपना कर्तव्य न पालन करने से जो हानि होती उससे यह हानि कम है।
(५) आजाद हिन्द सेना का एक साधारण जवान मर गया। आवश्यक काम बीच में रोककर सुभाष चन्द्र बोस अन्त्येष्टि के लिए चलने लगे तो जनरलों ने कहा-मामूली बात है आप क्या करेंगे चलकर? सुभाष बोले-जिस दिन अधिकारी अपना महत्त्व अधिक समझने लगेंगे उस दिन छोटे न ठीक अनुशासन से चलेंगे न बड़ों को आदर देंगे। वे अन्त्येष्टि में उपस्थित हुए और मृतक को सलामी दी।
(६) एक आदमी ने एक बिल्ली पाल रखी थी, उसे वह दूध पिलाता था। दूध के लालच में दूसरी बिल्लियाँ भी आ जाती थीं उन्हें भगाने के लिए एक कुत्ता भी पाल लिया। कुत्ता दूसरी बिल्लियों को देखते ही धर पटकता। एक दिन अँधेरे में उसने घर वाली बिल्ली को दबोच दी यह देखकर वह आदमी बड़ा दुःखी हुआ। उस दिन गाँव में नानक पधारे तो उसने अपना दुःख कहा। नानक बोले अपने पराये का भेद भाव रखने से यही दुःख होता है। उससे बचने के लिये सबके साथ समता का भाव रखा करो।


(६७) वोटरों की सतर्कता पर प्रजातंत्र का भविष्य निर्भर है!

प्रश्न ——
(१) प्रजातंत्र का क्या अर्थ है? इस प्रणाली में शासन तंत्र कैसे चलता है। (२) हमारे शासन में अपेक्षित कार्य कुशलता न होने का क्या कारण है? (३) प्रतिनिधि कैसा चुना जाना चाहिये? (४) आजकल नागरिक मतदान करते समय किन बातों से प्रभावित होकर मतदान करते हैं? क्यों? (५) वर्तमान परिस्थितियों से मतदान का अधिकार सीमित करना क्यों आवश्यक है। (६) शासकीय कर्मचारी अशिष्टता व भ्रष्टाचार, आचरण एवं अवरोध वृत्ति के शिकार क्यों बनते जा रहे हैं? (७) योजनाएँ समयावधि को बहकाया जाना सरल क्यों है। (९) लोकमानस का स्तर ऊँचा उठाने के लिए क्या किया जाना चाहिए। (१०) पार्टियाँ अपना गौरव क्यों खो चुकी हैं?

कथाएँ ——
(१) एक बार वन्य पशुओं ने प्रजातंत्र की स्थापना की। चुनावों भी घोषणा हुई। बाकायदा सिंह दल, श्वान दल शृंगाल दल चुनाव दंगल में उतरे और अपने-अपने पक्ष में प्रचार-प्रसार करने लगे। श्वान दल सबसे बातूनी और चालाक थे सो उनने जनता को खूब ठगा। पार्लियामेण्ट में उन्हीं का बहुमत हो गया। अब क्या था जो भी बिल रखा जाता कुत्ते भूँक-भूँक कर अपने पक्ष का तो समर्थन करते और दूसरे पक्ष का विरोध। सारे राज्य में उन्हीं की तूती बोलने लगी। पर अब क्या हो सकता था सत्ता उनके हाथ में आ गई थी अन्य जीव बिना विचारे कुत्तों के समर्थन पर घोर पश्चाताप करते रहे।
(२) चुनाव के दौरान शास्त्री जी अपनी जीप से एक गाँव जा रहे थे। रास्ते में हरे भरे खेतों में लदी मटर की फलियाँ देखकर साथियों का मन कर आया कि फलियाँ खायें। उन्होंने शास्त्री जी से कहा-शास्त्री जी ने किसान से फलियाँ तोड़ लाने को कहा-किसान गदगद होकर ढेर सारे पौधे उखाड़ लाये। यह देखते ही शास्त्री जी दुःखी हो गये और बोले-मैंने तुम्हें फलियाँ लाने को कहा था पौधे उजाड़ने को नहीं। इसके बाद वे मूल्य चुकाने लगे तो किसान मना करने लगा। शास्त्री जी बोले-मैं प्रजा की भलाई के लिए वोट लेने आया हूँ उनको उजाड़ने के लिये नहीं।
(३) त्रावणकोर के राजा गलराज वर्मा का दीवान जयनन्दन अपनी प्रजा का घोर उत्पीड़न करता। दीवान ही सख्त था तो अन्य कर्मचारियों को शोषक होना ही था। प्रजा बुरी तरह सताई जा रही थी। आखिर प्रजा ने वेलुथम्पी के नेतृत्व में विद्रोह कर सत्ता को पदच्युत कर दिया। अब दीवान थे वेलुथम्पी। एक दिन उन्हें पता चला कि कई राज कर्मचारी अभी भी गोलमाल करते हैं। वेलुथम्बी ने उसकी जाँच की और यह कहते हुए शासन कठोर, अनुशासन और दंड व्यवस्था से चलते हैं उसने उन कर्मचारियों के हाथ कटवा दिये। फलतः त्रावणकोर से शासन की सारी शिथिलता और बुराइयाँ दूर हो गई।
(४) कन्फयुशियम शिष्यों के साथ जा रहे थे जंगल में एक कुटिया में बैठी एक स्त्री रो रही थी। कन्फ्यूशियस ने रोने का कारण पूछा तो वह बोली-इस स्थान पर एक चीते ने मेरे श्वसुर को खा लिया, एक दिन मेरे पति को भी खा लिया आज तो उसने मेरे एक लड़के को भी खा लिया। कन्फ्यूशियस ने पूछा-जब ऐसी बात है तो तुम यहाँ क्यों रहती हो गाँव क्यों नहीं चली जातीं। स्त्री बोली-वहाँ का राजा बड़ा दुष्ट और स्वार्थी है। कन्फ्यूशियस ने शिष्यों से कहा-तात स्वार्थी और दुष्ट शासक चीते से भी भयंकर होते हैं।
(५) प्राचीनकाल की बात है। एक गाँव पंचायत ने न्याय व्यवस्था के लिए एक न्याय पालिका का चुनाव किया बीस सदस्य चुने गये। जब भी कोई मामला आता सब अपने डेढ़ खिचड़ी अलग पकाते। न्याय जमाना तो दूर पंचायत का सारा सुरक्षित कोष ही खा गये वे लोग। गाँव के बुजुर्गों ने तब परस्पर विचार किया कि सौ मूर्खों की अपेक्षा विचारशील पाँच नेता अच्छे। अगली बार ऐसा ही हुआ जिससे सब काम व्यवस्थित चलने लगा।


(६८) प्रबुद्ध नारी—महिला जागरण की कमान सँभालें!

प्रश्न ——
(१) वर्तमान स्त्री जाति को पददलित स्थिति में पहुँचाने का पापी-कार्य किसने किया है? (२) पद दलित स्थिति में पड़े रहने के कारण स्त्री जाति की क्या स्थिति हो गई है? (३) इस विपन्न परिस्थिति में स्त्री को निकालने के लिए क्या प्रयत्न होना चाहिए? (४) इस स्थिति से नारी जाति को निकालने के लिए स्वयं नारी को क्या प्रयत्न करना चाहिये? (५) इस समय स्त्री जाति कि तरह जीवन यापन कर रही है? (६) स्त्री जाति को उस अपमान भरे जीवन से निकाल कर ऊँचा उठाने के लिये पुरुषों को क्या करना चाहिये? (७) नारी जाति को ऊँचा उठाने में सहायक ऐसे कौन से कार्य हैं? (८) घर-घर में चलाये जा सकने योग्य ऐसे कौन से आन्दोलन हैं जिनमें स्त्री जाति की प्रतिष्ठा फिर स्थापित हो सकती है?

कथाएँ ——
(१) शिवदेवी शास्त्री जिस स्कूल में पढ़ती वहाँ की लड़कियों ने एक दिन शिकायत की कि जब वे गलियों से निकलती हैं तो दुष्ट युवक अश्लील आवाज कसी करते हैं। उनका प्रतिरोध करने की अपेक्षा दूसरे लोग भी वैसा ही करते हैं इस पर शिवदेवी ने लाठी उठाई और उस दिन लड़कियों के साथ स्वयं गई और गुण्डों ने जैसे ही आवाज कसी ही उन्होंने लाठी फटकारी, सैकड़ों लोग उनके सहायक उतर आये और गुण्डों की पिटाई की उस दिन से किसी ने भी लड़कियों को छेड़ने की हिम्मत नहीं की।
(२) पश्चिम घाट मैसौर के श्री अनन्त शास्त्री डोंगरे ब्राह्मण-को अपनी बहू-बेटियों को पढ़ाने और उन्हें भी पुरुषों के समान स्तर पर लाने का उपदेश देते तो जाति वाले बुरी तरह उनके खिलाफ हो गये यहाँ तक कि जान बचाने के लिए उन्हें घर भी छोड़ना पड़ा। उनकी यह दशा देखकर उनकी पुत्री रमाबाई सेवा क्षेत्र में आगे आई उनने स्वयं हिन्दी कन्नड़ और बँगला भाषाएँ सीखी और घर-घर जाकर स्त्रियों को शिक्षा, पर्दा-प्रथा के विरुद्ध, तैयार किया और उनमें नई चेतना पैदा की।
(३) बम्बई के सुप्रसिद्ध व्यापारी सेठ सोराबजी फ्राम जी पटेल ने अपनी पुत्री भी काजी कामा को खूब पढ़ाया-लिखाया और श्री रुस्तम जी कामा के साथ विवाह कर दिया ताकि वह सुखी जीवन बिता सकें किन्तु भीका जी कामा को विलासी जीवन पसन्द न हुआ उन्होंने सबके विरोध के बावजूद स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और पर्दे वाली स्त्रियों को रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्ति दिलाकर उन्हें भी लोक-सेवा के क्षेत्र में अग्रसर किया। तिरंगा-झण्डा भीकाजी कामा की ही देन है।
(४) तुर्की के अमीर उमराव नमाज के बाद आपसी चर्चा कर रहे थे तभी एक युवक बुर्के वाली स्त्री वहाँ कूदी और बोली-जब तक तुम लोग स्त्रियों को अशिक्षित पर्दे वाली गुड़िया और रुढ़ियों से जकड़े रहोगे देश उन्नति नहीं कर सकेगा। मुसलमान स्त्री के साहस से क्रुद्ध हो उठे पर उस अकेली जमीला ने ही नारी जागरण को जो शंख फूँका तो सैकड़ों स्त्रियाँ घर छोड़कर मैदान में आ डटीं। पुरुषों ने हार मानी और तुर्की में भी स्त्रियों को उन्नति का समान अवसर मिला।
(५) एक व्यक्ति स्त्री शिक्षा, स्त्रियों को पर्दे से बाहर लाने और उन्हें पूजा-पाठ की इजाजत देने का सख्त विरोधी था। वह महर्षि दयानन्द के पास गया और स्त्रियों के खिलाफ न जाने क्या-क्या बकने लगा। महर्षि ने कहा-मान्यवर क्या आप अपना एक पैर रस्सी से बाँध लेने देंगे। वह बोला-पाँव बँध दूँगा तो चलूँगा कैसे, घर कैसे पहुँचूँगा? अब दयानन्द हँसे और बोले-समाज का आधा भाग एक पैर स्त्रियाँ रूढ़ियों की रस्सी से बाँध दी जायें तो भारतीय समाज प्रगति कैसे कर सकेगा? वह आदमी बहुत प्रभावित हुआ और उस दिन से स्त्रियों की समान उन्नति का समर्थक बन गया।
(६) पति की छोटी बहन ने कहा-भाभी जी स्त्रियाँ सोचती हैं हम कुछ नहीं कर सकतीं, पर यदि करना चाहें तो उन्हें भगवान् ने पुरुष से कम शक्ति नहीं दी-इन शब्दों ने श्रीमती एलिजाबेथ स्टो को शक्ति से भर दिया-वे लिखने लगीं उनने एक पुस्तक लिखी जिसने अमेरिका में गृह युद्ध करा दिया और अमेरिका सरकार को वर्णभेद समाप्त करने को विवश होना पड़ा दुनियाँ की २२ भाषाओं में अनूदित होने वाली यह पुस्तक ‘‘ टाम काका की कुटिया’’ के नाम से प्रसिद्ध है।
(७) इंग्लैण्ड में १९९० तक स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त नहीं था। श्रीमती पैंचर्स्ट ने आन्दोलन छेड़ दिया जो शीघ्र ही सारे इंग्लैण्ड में फैल गया और सरकार को भी स्त्रियों की बात मानने को विवश होना पड़ा।


(६९) नारी उत्कर्ष के लिये विशेष प्रयत्न किये जायें

प्रश्न ——
(१) नारी का सम्मान क्यों किया जाना चाहिए। (२) विदेशियों ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को किस प्रकार गिराया? (३) भारत में नारियों की वर्तमान अवस्था पर प्रकाश डालिये? (४) पर्दा प्रथा से क्या हानियाँ हैं। (५) भारतीय समाज ने नारी को अबला व अपंग क्यों बना रखा है। (६) नारी जाति का नृशंस अपमान क्या है। (७) आज हमारे समाज की हालत कैसी है। (८) सिद्ध कीजिये कि अविकसित नारी एक समस्या है। (९) नारी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है। (१०) नारी को पुरुषों की अपेक्षा अधिक सुविधाएँ क्यों मिलनी चाहिए। (११) विचारशील व्यक्ति का नारी समाज के प्रति क्या कर्तव्य है।

कथाएँ ——
(१) एक व्यक्ति महर्षि कर्वे के पास आया और उनकी नारी उत्थान अभियान की आलोचना करने लगा। महर्षि ने कहा-एक बात बताओ गाड़ी में दोनों पहिये एक से हों तो अच्छी चलेगी या पहिये छोटे बड़े हों तो? वह व्यक्ति बोला-वाह यह तो साधारण आदमी भी जानता है असमान पहिये वाली गाड़ी चलना तो दूर लुढ़क-पुढ़क और जायेगी। कर्वे बोले-मेरे भाई जब असमान पहियों वाली काठ की गाड़ी ठीक यात्रा नहीं कर सकती दलित स्त्रियों वाले परिवार ही किस तरह उन्नति कर पायेंगे। वह व्यक्ति कर्वे का मुँह ताकता रह गया।
(२) आत्म हत्या के कारणों की शोध करने वाले नाडर्मन का कहना था कि अधिकांश हत्याएँ निजी कारणों से होती हैं फारबेरो का मत था पारिवारिक कारणों से। खोज की गई तो पाया गया कि फारबेरो की बात सच थी आत्महत्या करने वाले अधिकांश पारिवारिक जीवन से ऊब पाये गये और उसका कारण स्त्रियों की अशिक्षा थी या उनकी रूढ़िवादिता।
(३) आनन्द स्वामी पंजाब के एक गाँव में लोगों को स्त्री-शिक्षा के लाभ समझा रहे थे। एक बूढ़ा आदमी बोला-महाराज शास्त्र की आज्ञा है स्त्री को घर से नहीं निकलना चाहिए नहीं तो वह दूषित हो जाती है। आनन्द स्वामी ने पूछा-अच्छा यह बताओ पानी तालाब का अच्छा होता है या नदी का। बूढ़ा बोला-महाराज घिरा रहने के कारण तालाब का पानी गन्दा हो जाता है पर नदी का जल चलता रहता है इसलिये स्वच्छ रहता है। आनन्द स्वामी बोले-अब बताओ जो स्त्री घर में कैद रहेगी वह अच्छी होगी या जो सामाजिक जीवन में भाग लेने वाली होगी वह? बुड्ढे को कोई उत्तर देते नहीं बना।
(४) आज का सबसे बड़ा पुण्य क्या हो सकता है एक सज्जन ने महर्षि दयानन्द से पूछा-ऋषि ने उत्तर दिया-नारी जब तक इस देश की स्त्रियाँ शिक्षित नहीं होंगी तब तक यह समाज समर्थ नहीं बनेगा। वह सज्जन बड़े प्रभावित हुये। सासनी का कन्या गुरुकुल इन्हीं के परिश्रम का फल था जिसमें आज सारे उत्तरी भारत से कन्यायें पढ़ने जाती हैं।
(५) एक व्यक्ति अपनी कन्या से प्यार करता था पर उसे पढ़ाता नहीं था। लड़की ने बहुत कहा-पर वह आदमी यही कहता रहा बेटी मेरे पास बहुत धन है बड़े घर में विवाह कर दूँगा सो मौज करना। विवाह किया भी बड़े घर में अनपढ़ होने और ऊँचे कायदे न जानने के कारण बेचारी को गोबर थोपने का काम मिला। उसने कहा-निरर्थक है पिता का ऐसा प्यार जो अपनी कन्या को पढ़ा तक नहीं सकता।
(६) अवन्तिका बाई गोखले के विवाह की बात आई तो पिता ने पूछा-बेटी बोल तुझे कैसा पति चाहिए। अवन्तिका ने उत्तर दिया। भले ही हम निर्धन रहें पर पति ऐसा हो जिसके साथ रहकर हम अपने देश की पिछड़ी बहनों के उत्थान का काम बराबर कर सकें।
(७) एक स्त्री के चार लड़के थे। तीन लड़कों की बहुएँ आईं पर वे सभी अनपढ़ थीं इसलिए जब भी सास लड़ती वे उससे भी अधिक तेज हो जातीं बस घर अखाड़ा बन जाता। चौथे पुत्र की बहू आई शिक्षित वह झगड़े को नहीं झगड़े के कारण को ढूँढ़ती और उसे दूर करती। फलस्वरूप उससे सास की मित्रता हो गई। अब तो दूसरी बहुओं ने भी भूल समझी ये भी घर में रहकर पढ़ने लगीं। एक समझदार स्त्री ने घर को स्वर्ग बना दिया।


(७०) ऊँच-नीच की मान्यता अन्याय मूलक है

प्रश्न ——
(१) सिद्ध कीजिये कि ‘‘मनुष्य मात्र की जाति एक है।’’ (२) प्राचीनकाल में समाज को कितने वर्ग में बाँटा गया था व क्यों? (३) ऊँच-नीच का आधार गुण होना चाहिए या वंश? क्यों? (४) क्या पूर्वजों के कारनामों के कारण उनके वंशजों को ऊँच या नीच माना जाना चाहिए? कारण सहित बताओ। (५) आज भारतीय समाज की विचित्र दशा क्यों है? क्या प्राचीनकाल में जाति भेद था? (६) वर्णभेद की संकीर्ण नीति से देश का क्या अहित हुआ है? (७) हिन्दू समाज की संख्या निरंतर कम होने का क्या कारण है? (८) हिन्दू समाज संकीर्ण, अनुदार एवं अन्यायी क्यों कहा जाता है? (९) ऊँच-नीच के मामलों में हमारा कर्तव्य क्या है?

कथाएँ ——
(१) किसी ने विनोबा जी से पूछा-आप महाराष्ट्रीय ब्राह्मण हैं, कोकाणस्थ या देशस्य? उन्होंने कहा-मैं देश में रहता हूँ इसलिये देशस्थ हूँ काया में रहता हूँ इसलिये कायस्थ हूँ, और सबसे अधिक तो मैं स्वस्थ हूँ जो कि किसी एक धर्म जाति और देश से सम्बन्ध नहीं रखता। वे सज्जन अपनी जाति-पाँति मूलक संकीर्णता पर बहुत लज्जित हुए।
(२) पेशवा की सेना की और धुँआ उड़ता देखकर तैमूर लंग ने पूछा-यह क्या हो रहा है। खुफिया अफसरों ने बताया हिन्दू एक दूसरे का छुआ भोजन नहीं खाते इसीलिये सब अपना-अपना अलग-अलग भोजन पका रहे हैं उसी का धुँआ है। तैमूर ने कहा-जो जाति इस तरह विभक्त हो उसे जीतना क्या कठिन है। उसी समय हमला बोल दिया और पेशवा की सेना जीत ली।
(३) पूना के सरकारी जज श्री मदनकृष्ण जी की धर्मपत्नी का स्वर्गवास हो गया। जज साहब जरिजन थे, तथापि सम्मानित पद में होने के कारण लोग शर्मा-शर्मी दाह-संस्कार में सम्मिलित हो गये। दैवयोग से १५ दिन पीछे जज साहब की मृत्यु की गई। अब लोगों में डर भी न रहा सो दाह-संस्कार के लिये कोई भी नहीं गया। यह बात न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे ने सुनीं वे स्वयं जज थे और उसी दिन हारे थके दौरे से आये थे वह सब भुलाकर वे स्वयं गये और दाह-संस्कार का सारा प्रबन्ध खुद किया मानो वह कोई उनके घर वाले ही रहे हों।
(४) अस्पृश्यता उन्मूलन के संदर्भ में गाँधीजी बीजापुर में ठहरे थे। अभी वे मध्याह्न में विश्राम के लिए लेटे ही थे कि कई ब्राह्मण अस्पृश्यता के सम्बन्ध में शास्त्रार्थ करने आ धमके। गाँधीजी ने सोचा ये लोग देर तक खड़े रहेंगे अतएव विश्राम छोड़कर पहले उन लोगों को ही बुला लिया। वे लोग अपनी बातें शास्त्रीय श्लोक आदि सुनाकर स्पृश्यता का समर्थन करने लगे। सारी बातें चुपचाप सुन चुकने के बाद गाँधीजी बोले-भाइयों आपकी बातें सुन चुके अब एक मेरी बात सुनो-वह यह कि छुआछूत हिन्दू धर्म का कलंक है और मेरी इस निष्ठा को कोई काट नहीं सकता ब्राह्मण निरुत्तर लौट गये।
(५) हिन्दुओं की ऊँच-नीच और छुआछूत को मिटाने के लिए के सिख गुरु अमरदास ने सामूहिक चौके का प्रचलन किया। उनके लंगर में हर वर्ण का व्यक्ति सामूहिक भोजन करता था। एक दिन उनकी विद्वता से प्रभावित होकर अकबर उनसे मिलने गया। द्वार रक्षक ने गुरु को सूचना दी तो उन्होंने खबर भेजी यदि अकबर एक साधारण नागरिक की हैसियत से आना चाहते हैं तो ही आ सकते हैं। शहंशाह की दृष्टि से नहीं। अकबर उसी भाव से गया और सबके साथ लंगर में भोजन करके उनकी समतावादी नीति का समर्थन किया।
(६) गाँधीजी के आश्रम में दो साधु आये और गाँधीजी से बोले-हमें काई सेवा कार्य दो। गाँधीजी ने उन्हें रात को अतिथिशाला में विश्राम दिया। प्रातःकाल होते ही बुहारी और बाल्टी लेकर पहुँचे और बोले-यह लो आज टट्टियाँ आ लोग साफ करें। साधु बोले-यह क्या कहते हैं यह तो हरिजनों का काम है। गाँधीजी बोले-हाँ जो छोटे से छोटा काम करता हो वही सच्चा सेवक भगवान् का भक्त है। साधु चुपचाप खिसक गये उस दिन की सफाई बापू ने स्वयं की।
(७) महर्षि मातंग और उनके शिष्य जिस रास्ते से प्रातःकाल स्नान के लिए सरोवर जाते वहाँ काँटे बिखरे होने से उन्हें बड़ा कष्ट होता। यह देखकर भीलनी शबरी ने प्रतिदिन रास्ता बुहारना प्रारम्भ कर दिया। मातंग शबरी की सेवा से बहुत प्रसन्न होकर शबरी के लिये आश्रम में ही भोजन की व्यवस्था करा दी किन्तु शबरी ने उसे अस्वीकार करने हुए कहा-मैं अनाथ हूँ, हरिजन हूँ तो क्या? रोटी अपने परिश्रम की ही खाऊँगी अपना स्वाभिमान नष्ट न करूँगी। महर्षि ने नाराज होकर उसे आश्रम से निकाल दिया फिर भी शबरी ने पथ बुहारना बन्द न किया। भगवान् राम स्वयं ही शबरी से मिलने आये और उसके जूठे बैर खाये।


(७१) अश्लीलता की बाढ़ हमें पतित क्यों बना रही है!

प्रश्न ——
(१) अनेक रूपों में नर और नारी के बीच का संबंध हमारे भारतवर्ष में किस तरह का माना जाता रहा है? (२) वासना की चर्चा क्या सामाजिक जीवन में करना उपयुक्त होगा? (३) वासना की चर्चा सामाजिक जीवन में करने से हमें क्या हानियाँ हो सकती हैं? (४) मस्तिष्क में कामुकतापूर्ण विचार भरने से क्या हानियाँ होती हैं। (५) आज नारी जाति का किस प्रकार अपमान किया जा रहा है। (६) उपन्यास और चित्र तस्वीरें आज किस तरह पेश की जा रही हैं (७) पवित्र नारी को निर्लज्ज वेश्या के रूप में पेश करने में कौन-कौन से उद्योग बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं? (८) इस समय नारियों को क्या करना चाहिये पर वे क्या कर रही हैं? (९) अश्लीलता की बाढ़ से समाज को बनाये रखने के लिये हमें क्या करना चाहिये?

कथाएँ ——
(१) पाकिस्तान की बात है। एक लड़की बुर्के में कॉलेज से निकली एक मनचले युवक ने उसका पीछा किया। लड़की घूमकर देखती और हँसकर फिर चल देती महाशय ने उसका कुछ और ही अर्थ लगाया। पीछा करते चले गये पर जब देखा कि वह लड़की तो उन्हीं के घर जा रही है तो वह चौके, अब लड़की ने पर्दा उठाते हुए कहा-बरखुरदार चौंकते क्यों हैं अन्दर आइये। युवक यह देखकर स्तब्ध रह गया कि वह उसकी सगी बहन है। युवक ने उस दिन से कसम खाकर लड़कियों को छेड़ना छोड़ दिया।
(२) जोल छावनी की कुमारी अहिल्या रानाडे को एक गुण्डा धोखे से बहका ले गया। अस्पताल के पीछे पहुँचने पर लड़की को शक हो गया। गुण्डा जबर्दस्ती करने लगा तो अहिल्या को याद आया कि उसके सिलाई के बक्स में ब्लेड रखा है उसने निकाल कर गुण्डे की नाक काट ली। गुण्डा अपना मुँह छुपाकर भाग खड़ा हुआ।
(३) एक साम्प्रदायिक दंगे से पीड़ित दिल्ली की कुछ मुसलमान लड़कियाँ एक घर में घुस गईं। पर यह क्या यह तो एक सिख का घर था, कुलवन्तसिंह नामक यह सिख पाकिस्तान से लूटकर आया था लड़कियों को काटो तो खून नहीं तब तक शरारती लोग भी वहाँ आ पहुँचे। कुलवन्तसिंह ने दरवाजा खोलकर उन लोगों को यह कर भगा दिया कि यहाँ कोई नहीं आया। उनके चले जाने पर कुलवन्त ने डरी हुई लड़कियों को चाय पिलाई और टैक्सी करके उनके घर तक सुरक्षित पहुँचा दिया। अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच गाँधीजी इस युवक से मिलने उसके घर गये।
(४) गाँधीजी से कुछ लोगों ने शिकायत की कि उनकी लड़कियाँ जब पढ़ने जाती हैं तो लड़के अश्लील शब्द बकते हैं। गाँधीजी ने उनसे कहा-अपनी लड़कियों से कहना कि वे कल से सिर मुड़ाकर स्कूल जायें फिर बताना लड़के क्या करते हैं। अभिभावकों ने अनुभव किया सारा दोष लड़कों का ही नहीं पश्चिम-टाइप के उच्छृंखलता भड़काने वाले वेश-विन्यास का भी है सो वे लड़कियों को सादगी से रहना सिखाने लगे।
(५) रानी बाजार के युवकों ने अश्लीलता विरोधी संगठन बनाया है। स्थान-स्थान पर यह संगठन गुण्डा तत्त्वों से संघर्ष करता है फलस्वरूप कुछ ही दिनों में वहाँ की गुण्डागर्दी दूर हो गई। चरित्रवान युवकों को ऐसे संगठन हर स्थान पर बनाना चाहिये।
(६) दिल्ली में एक बाप-बेटे दोनों में मनचलेपन की दिलचस्प होड़ लगी। लड़का सबेरे अपने घर की दीवारों में सुरैया-सुरैया लिख जाता है उसकी दृष्टि से सुरैया सबसे अच्छी है शाम को लौटने पर वह सुरैया के स्थान पर निम्मी-निम्मी लिखा पाता है। उसके पिता निम्मी के आशिक हैं। एक दिन दोनों में हाथ पाई तक की नौबत आ गई।


(७२) भिक्षा वृत्ति का व्यवसाय न रहने दें

प्रश्न ——
(१) समर्थ होते हुए भी किसी के आगे हाथ पसारने पर हमें क्या-क्या हानियाँ हैं? (२) भारत में भिक्षा व्यवसाइयों की संख्या बतलाते हुए इनके भिक्षा माँगने की शैली को बतलाइये? (३) प्राचीन काल के साधुओं की स्थिति को स्पष्ट करें? (४) सारे साधु यदि जीविका उपार्जन के लिये भिक्षा वृत्ति के साथ-साथ ही रचनात्मक कार्यक्रमों में जुट जायें तो वे देश का भला किस प्रकार कर सकते हैं? (५) भिखारियों से देश और समाज को कैसे हानि है सिद्ध कीजिये? (६) विचारशील व्यक्तियों को भिक्षा वृत्ति को समाप्त करने के लिए किस प्रकार का कार्य करना पड़ेगा? (७) हमारी सरकार तथा धर्म संस्थाएँ भिक्षा उन्मूलन में किस प्रकार सहयोग दे सकती हैं। (८) यदि भिक्षा व्यवसाय खत्म कर दिया जाय तो समाज कैसे इनके बोझ से छूटेगा?

कथाएँ ——
(१) हजरत इब्राहिम के पास एक भिखारी आया और भीख माँगने लगा। इब्राहिम ने कहा-तुम्हारे पास जो सामान हो लाओ, भिखारी सब सामान लाया कम्बल छोड़ कर इब्राहिम ने सब सामान नीलाम कर दिया और एक कुल्हाड़ी खरीदकर उसे देकर कहा-बेटा समझदारी की बात यह है कि भगवान् ने दो-दो भुजाएँ सबको दी हैं इसलिये अपना पेट अपने परिश्रम से भरो, भिखारी चला गया और मेहनत करने लगा। १५ दिन बाद वापस आकर उसने दिखाया अब उसके पास २ दिरम बचत के थे।
(२) दया-भाव दिखलाते हुए एक सज्जन ने लड़के को पाँच पैसे की भीख देनी चाही, लड़के ने कहा-श्रीमान जी मैं भीख लेने नहीं आया मैं तो निवेदन करने आया हूँ कि अपने स्कूल में भरती करा दीजिये तो मैं भी पढ़ सकूँ। बच्चे से प्रभावित सज्जन ने उसे स्कूल में भरती करा दिया। पाँवों से लगड़ा यही बालक एक दिन कुशल हवाबाजसैंडर्स के नाम से विख्यात हुआ।
(३) महाराज रविशंकर सवा मन गुड़ बाँट रहे थे, एक लड़की ने इनकार करते हुए कहा-मेरी माँ ने बताया है आदमी को अपने परिश्रम की कमाई खानी चाहिए। रविशंकर के मन में ऐसी माता के दर्शनों की इच्छा हुई वे लड़की के साथ उसके घर गये तो पता चला उसने अपनी सारी सम्पत्ति बालिका-विद्यालय को दान दे दी है और स्वयं परिश्रम करके आजीविका चलाती है।
(४) महात्मा टालस्टाय के आगे एक भिखारी गिड़गिड़ाया दो पैसे दो। टालस्टाय ने कहा-अपना एक हाथ काटकर मुझे दे दो २० हजार रुपये दिलवा दूँगा, दोनों के चालीस हजार, पाँव भी दे दो तो पचास हजार, आँख, कान और नाक दे दो तो १ लाख रुपये दिला सकता हूँ। युवक ने कहा-महोदय यह कैसे हो सकता है। टालस्टाय बोले —यह नहीं हो सकता तो १ लाख रुपये का शरीर लेकर भी दो पैसे की भीख माँगते तुम्हें लाज नहीं आती। युवक ने उस दिन से भीख माँगनी छोड़ दी।
(५) कुछ दिन पूर्व कानपुर के एक सर्वे से मालूम हुआ कि कानपुर के भिखारियों की आय सात सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये मासिक तक है कितने ही तो ऐसे हैं जिनके पोस्ट ऑफिस और बैंकों में खाते भी है। जिन भिखारी परिवारों की सदस्य संख्या अधिक है उनकी आय उतनी ही अधिक है।
(६) सन्त इमर्सन के सामने एक आदमी ने हाथ फैलाकर भीख माँगी तो उन्होंने कपड़े से अपना चेहरा ढक लिया। किसी ने पूछा-आपको लाज क्यों आ रही है उन्होंने कहा-भीख माँग कर इसने मनुष्य शरीर को लजाया। दुर्भाग्य कि मैं भी हूँ उसी चोले में हूँ।
(७) एक अन्धा बालक सड़क के किनारे रेवड़ी की पुड़िया बनाकर बेच रहा था। एक आदमी को दया आई उसने बच्चे को कुछ पैसे देते हुए सहानुभूति प्रकट की तो बालक ने कहा-श्रीमान् जी मुझे भीख देकर लज्जित न करें। मेरी आँखें ही तो खराब हैं और शरीर तो काम कार आमद है।


(७३) मृतक भोज भी अविवेक पूर्ण न हों

प्रश्न ——
(१) मृतक भोज के कारण एवं प्रयोजन पर प्रकाश डालिये? (२) भारतीय आदर्श क्या रहा है? (३) हराम खोरी से क्या हानि है? (४) आत्मा की सद्गति कैसे होती है? (५) मृत्यु टैक्स क्यों लगाया जाता है? (६) हिन्दू समाज की सर्वाधिक भ्रमपूर्ण मान्यता क्या है? (७) बदली हुई परिस्थितियों में मृतक भोज अनावश्यक क्यों हो गया है? (८) मृतक भोज खाना स्वाभिमानी व्यक्ति के गौरव के सर्वथा विपरीत क्यों है? (९) सत्यानाशी कुप्रथाओं का अन्त कैसे होगा? (१०) मृतक की सम्पत्ति का सर्वोत्तम सदुपयोग किन २ कामों में करना चाहिए।

कथाएँ ——
(१) पं० गजाधर शास्त्री ने एक बार पंडितों की एक सभा बुलाई और यह प्रयत्न किया कि मृतक भोजों की अमान्यता की नई प्रतिस्थापनाएँ की जायें। उन्होंने बहु-तेरा कहा कि-यह देश कभी सम्पन्न था तब मृतक भोज पुण्य रहा होगा पर आज की निर्धनता में यह बिलकुल उचित नहीं पर पण्डित अपनी टाँग अड़ाते और शास्त्र की ही दुहाई देते रहे। दुःखी होकर शास्त्री जी ने सभा भंग कर दी पर चलते-चलते यह कहने से भी न रुके जिस देश में पंडितों में इतना विवेक न हो कि उचित अनुचित का निर्णय कर सकें उनसे तो गाँव के किसान अच्छे।
(२) बिहार के एक गाँव में एक स्त्री का पति मर गया, उस बेचारी के पास जो कुछ था पति की बीमारी में ही स्वाहा हो गया था इधर मृतक भोज भी करना पड़ा उसके जेठ ने कर्ज दिया और उसमें उसके हिस्से की सारी जमीन हड़प ली। पीछे विधवा को अपने बच्चों के लिये भीख माँगने पड़ी। अपनी करुणा कथा विधवा ने पटना में भिक्षा वृत्ति उन्मूलन समिति के सदस्य को बताई।
(३) कुँवरपुर (बदायूँ) के माहेश्वरी परिवार ने मृतक-भोज को अनैतिक कहकर उसे तोड़ा तो सारे गाँव ने विरोध किया और कहा कि इससे मृतात्मा दुःखी होगी। इस पर उन्होंने मृतक भोज में खर्च होने वाले धनराशि से पक्का श्मशान घाट बनवा दिया। इस पर गाँव वाले बड़े खुश हुए। माहेश्वरी परिवार के एक सदस्य ने कहा-मृतक भोजों में मृतात्मा की खुशी नाखुशी तो क्या होगी हाँ खाने वालों की खुशी-नाखुशी अवश्य जुड़ी हुई है।
(४) मालवीयजी एक बार एक मृतक भोज में सम्मिलित हुए। इधर खाना परोसा गया उधर घर की महिलायें मृतक की याद कर रोने लगी-मालवीयजी यह कहकर उठ खड़े हुए मृतक भोज! दुःखियों को और दुःखी बनाना और उनका उपहास करना है-इसके बाद वे कभी किसी मृतक भोज में शामिल नहीं हुए।
(५) एक ग्रामीण ने गाँधीजी से पूछा-मृतक भोज के बारे में आपका क्या ख्याल है। गाँधीजी बोले-एक प्रथा जिससे हिन्दू जाति बदनाम होती है और मूर्ख समझी जाती है।
(६) राजर्षि टण्डन जी से किसी सम्बन्धी के मृतक भोज में चलने को कहा तो वे बोले-जिस देश में हजारों लोग खाद्यान्न के लिए पीड़ित हों वहाँ लोग इस तरह अन्न बर्बाद करें और मैं उसका समर्थन करूँ यह हरगिज नहीं हो सकता तो भोज में नहीं ही सम्मिलित हुए।
(७) ईश्वरचंद्र विद्यासागर कभी किसी गाँव में जाते तो लोगों को भारतीय समाज में फैली बुराइयाँ छोड़ने को भी समझाते। एक गाँव में वे मृतक भोज के बहिष्कार की बात समझा रहे थे तो एक आदमी बोला-मृतक भोज न करेंगे तो मृतात्मा की सद्गति कैसे होगी। ईश्वरचंद्र विद्यासागर बोले-पहले कितने लोगों के पास अन्न नहीं होता था तो खिलाना पुण्य माना जाता था आज लोग अशिक्षित हैं तो अशिक्षा दूर करना ही पुण्य है। उस गाँव के लोगों ने मृतक भोज ने करने का निश्चय कर गाँव में एक पाठशाला खोल दी जो कुछ ही दिन में एक बड़ी शिक्षा संस्थान बन गई।


(७४) भूत पलीत और उद्भिज देवी देवताओं का जंजाल

प्रश्न ——
(१) श्रद्धा और विश्वास किस प्रगति के लिए आवश्यक हैं? (२) अन्ध विश्वास की परिभाषा कीजिये? (३) भारतीय जनता का एक बहुत बड़ा भाग अन्ध विश्वास में उलझा हुआ है क्या कारण है? (४) हम जिन्हें भूत-प्रेत आदि कहते हैं व उनसे डरते हैं वह वास्तव में क्या हैं तथा वस्तुस्थिति क्या है? (५) यदि कोई बीमारी आदि हो जाती है तो ओझाओं द्वारा उसे किस तरह का स्वरूप दिया जाता है? (६) यदि यह मान लिया जाये कि भूत-प्रेत हैं तो शिक्षित समाज पर उसका प्रभाव न होना क्या सिद्ध करता है? (७) ईश्वर कौन है, क्या ईश्वर अनेक हैं। (८) गाँवों के पिछड़े लोग किस प्रकार के देवी देवताओं को मानते हैं। तथा उनसे उन्हें क्या हानियाँ हैं। (९) भूत पलीत और इन उद्भिज देवी-देवताओं के जंजाल से छूटने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

कथाएँ ——
(१) एक आदमी बाहर तीर्थयात्रा पर जाने लगा तो उसने अपना धन एक स्थान पर छिपा दिया और पहचान के लिए एक झंडी गाड़ दी। गाँव वाले थे अन्ध विश्वासी उन्होंने समझा कहीं जाने पर झण्डी गाड़नी चाहिए फलस्वरूप किसी को मिल दो मिल जाना होता वह भी झंडी गाड़कर जाता। पहले वाला आदमी लौट कर आया तो उसने झण्डियाँ ही झण्डियाँ गढ़ी देखी तो बड़ा हैरान हुआ, उसका धन मुश्किल से मिला। अन्धविश्वास के कारण सभी को ऐसी ही परेशानी होती है।
(२) कानपुर का समाचार है एक गृहस्थ अपनी बीमार लड़की को दवा कराने के बजाय किसी मुसलमान ओझा के पास ले गये। ओझा लड़की को एक तरफ ले गया। शाम तक बैठे प्रतीक्षा करते रहने के बाद जब खोज की गई तो पता चला ओझा लड़की को लेकर रफू-चक्कर हो गया। बाप रोने लगा तो एक पढ़े-लिखे आदमी ने कहा-अब क्यों रोते हो? देवताओं से कामना सिद्धि का का विश्वास नहीं छोड़ेंगे तो यही सब होगा।
(३) विवेकानन्द जी के पास कलकत्ते की एक स्त्री आई और बोली —महाराज मेरे लड़के को भूत आता है। विवेकानन्द बोले-बहन जाओ लड़के का इलाज कराओ कहीं तुम्हारे मन का भूत ही बच्चे का जीवन न हर ले।
(४) गाँव के बीचो-बीच पेड़ था। रात में उससे पत्थरों की वर्षा होती लोग डर जाते इसमें भूत है इसलिये लोग रात में घर से बाहर न निकलते उन दिनों उनकी खूब चोरियाँ हुईं। लोगों को विश्वास हो गया सारी करतूत पेड़ वाले भूत की है। एक दिन एक युवक ने हिम्मत की और पेड़ पर चढ़ गया तो पता चला गाँव का चमार पत्थर बरसा रहा है। उसने उसे पकड़ कर नीचे उतारा और अच्छी पिटाई की गाँव वालों ने युवक के साहस की सराहना की।
(५) एक व्यक्ति सन्त नामदेव के पास जाकर पूछने लगा-भूत होता है या नहीं। नामदेव बोले-होता भी हो तो यह जान लो कि यह मनुष्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मनुष्य को तो उसका भय ही बिगाड़ता है।
(६) एक राजा ने देखा शालिग्राम की मूर्ति के ऊपर तो चूहे फुदक रहे हैं उसे लगा चूहा बड़ा देवता है। अतएव वह उसे दिन से चूहों की उपासना करने लगा। एक दिन एक बिल्ली चूहे को खा गई तो उसने बिल्ली की पूजा शुरू कर दी। एक दिन एक कुत्ते ने बिल्ली को धर पटका और तब से राजा कुत्ता का उपास्य बन गया। एक दिन किसी बात पर नाराज होकर रानी ने कुत्ते की टाँग तोड़ दी फिर क्या था राजा ने रानी की पूजा प्रारम्भ कर दी एक दिन किसी भूल पर उन्होंने रानी को डाँटा तो उन्हें ऐसा लगा कि मैं ही बड़ा देवता हूँ अतः वे अपनी उपासना करने लगे। एक दिन बुखार में पड़े राजा के मुँह से अनायास निकल गया है राम! और तब उन्होंने अनुभव किया भगवान् ही सबसे बड़ा देवता है उस दिन से वे देवताओं की उपासना छोड़कर भगवान् का भजन करने लगे।
(७) कॉलेज के लड़के अमरूद तोड़कर खा जाते। उनसे बचाव के लिए मालिक ने अफवाह फैला दी। इन पेड़ों में भूत रहता है। सब लड़के डर गये पर एक लड़का सबेरे से शाम तक बैठा रहा। बगीचे का मालिक पहुँचा और बोला यहाँ क्या कर रहे हो भूत आ जायेगा तो गिरा देगा। युवक ने उत्तर दिया सबसे से प्रतीक्षा कर रहा हूँ भूत तो अभी तक तो आया नहीं। अब देखता हूँ कब तक आता है। यह साहसी बालक विवेकानन्द थे जिन्होंने बगीचे के मालिक से वचन ले लिया कि वे फिर कभी इस तरह झूठ बोलकर बच्चों को डरायेंगे नहीं।


(७५) पशुबलि—भारतीय धर्म पर एक कलंक

प्रश्न ——
(१) देवता की परिभाषा कीजिये? (२) देवपूजन के समय उनके स्वागत सम्मान के लिए किन वस्तुओं का उपयोग किया जाना चाहिए? (३) बलिदान की प्रचलित प्रथा किस प्रकार अनुपयुक्त है? (४) यदि यह मान लिया जाय कि देवता पशुबलि से प्रसन्न होते होंगे तो उस ईश्वर का स्वरूप किस तरह का होगा (५) बलिदान की परिभाषा कीजिये? (६) पशुबलि के प्रचलन के क्या कारण हो सकते हैं? (७) क्या पशुबलि भारतीय देवताओं को प्रिय है? (८) पशुबलि समाप्त करने के लिये क्या प्रयत्न किये जाने चाहिए? (९) आधुनिक युग में बलि की प्रथा में कैसे संशोधन किया जावे। (१०) पशुबलि का समर्थन कौन करता है?

प्रश्न ——
(१) भगवान् बुद्ध जेतवन में ठहरे थे। कुछ लोग एक पशु को बाँधकर उसकी बलि देने जा रहे थे। बुद्ध ने उन्हें रोका-तो एक व्यक्ति ने कहा-महाराज बलि से देवता प्रसन्न होते हैं। बुद्ध बोले-देवों के नाम पर अपने सुख के लिये जो लोग पशुओं को मारते हैं वह दूसरे जन्म में घोर कष्ट पाते हैं। यह सुन कर ग्राम वासियों ने जीव हिंसा त्याग दी।
(२) एक व्यक्ति एक गधे पर इतना बोझा लादे था कि गधे का चलते न बनता था। बेचारा पिसा जा रहा था। महाप्रभु ईसा ने कहा बोझ हलका कर लो, तो वह आदमी बोला-महाराज यह तो गधा है। बोझ ही तो लदा है कोई मार तो रहे नहीं ईसा बोले पशु समझकर उस पर असह्य भार लादना भी हिंसा ही है। जिस तरह मनुष्य को अधिक बोझ से कष्ट होता है इसे भी होता है। उस मनुष्य ने बोझा हलका कर दिया।
(३) महावीर स्वामी एक गाँव से जा रहे थे। कुछ लोग एक पशु को बाँधे बलि की तैयारी कर रहे थे। महावीर स्वामी के मना करने पर ग्रामवासी बोले इससे देवता प्रसन्न होंगे, इस पर महावीर ने कहा-यदि देवता पशुबलि से प्रसन्न हो सकते हैं तो वे मनुष्य की बलि पाकर और अधिक खुश होंगे बोलो तुममें से कोई बलि के लिये तैयार है। सारे लोग एक-एक करके खिसक गये वह पशु पड़ा रह गया। महावीर ने उसके बंधन काटकर उसे मुक्त कर दिया।
(४) भावनगर की खेडियार माता के मन्दिर में चण्डी पाठ के अवसर पर बकरे की बलि दी जाती थी। एक बार जब बलि दी जाने को थी कस्तूरी नामक एक ब्राह्मण बालिका वध स्थल पर जा खड़ी हुई लोगों ने उसे हटने को कहा तो उसने कहा जो देवी बकरा खाकर प्रसन्न हो सकती है वह मनुष्य खाकर तो और भी प्रसन्न होगी। आप लोग मेरी बलि दीजिये। खबर महाराज तक पहुँची वे बालिका की इस जीव दया से बड़े प्रभावित हुए उन्होंने पशुबलि हमेशा के लिये बन्द करा दी।
(५) लोग माने नहीं प्लेटो को भी उत्सव में पकड़ ले गये पर वहाँ पशुबलि का दृश्य देखा तो उनकी आत्मा ही करा उठी। उन्होंने लोगों की पशुबलि न करने को कहा तो लोग पूछ बैठे जिन्होंने यह प्रथा चलाई क्या वे मूर्ख थे प्लेटो बोले मैं नहीं जानता वे मूर्ख थे या नहीं पर इतना अवश्य था कि उनके हृदय में दया और करुणा नहीं रही होगी लोग इस कथन से प्रभावित तो हुए पर बोले फिर बलि कैसे दें। प्लेटो ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसे काटते हुए कहा निर्जीव मूर्ति के लिए निर्जीव की ही बलि दी जा सकती है। यदि देवता को दिव्य भाव मानते हों तो फिर उसके आगे बुरे विचारों की बलि दो। उस दिन से लोगों ने पशु बलि त्याग दी।
(६) समर्थ गुरु रामदास एक गाँव में उपदेश दे रहे थे तभी पता चला। गाँव का पटेल देवी के आगे मुर्गे की बलि देने जा रहा है समर्थ उठे और पटेव व उसके साथी को जा पकड़ा। दोनों हाथों से उन्हें घसीटते हुए बोले-आज मुझे देवी ने स्वप्न दिया है कि मेरा पेट मुर्गे से नहीं दो मुस्टण्डों से भरेगा सो तुम्हारी बलि देंगे। पटेल घबड़ाया क्षमा माँगी और फिर कभी बलि न देने की शपथ ली तब कहीं समर्थ ने उन्हें छोड़ा।


(७६) प्राणियों के प्रति निर्मम और निष्ठुर न बनें

प्रश्न ——
(१) क्या यह उचित है कि जिस तरह अविकसित जीव परस्पर दुर्व्यवहार करते हैं हमें भी करना चाहिये? (२) धर्म अध्यात्म और दर्शन का प्रयोजन क्या है? (३) घोड़े, गधे तथा अन्य सवारी में काम आने वाले तथा वजन ढोने वाले पशुओं से हमें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये? (४) निर्दयता निवारक धारा के अनुसार पुलिस को क्या अधिकार दिये गये हैं? (५) घायल, अशक्त जानवरों के साथ किस प्रकार व्यवहार किया जाता है? (६) क्या हमें पक्षियों को निर्दयता पूर्वक पिंजड़ों से बन्द करना चाहिए? क्यों? (७) क्या रेशम के कपड़े पहनना ठीक है नहीं तो क्यों? (८) कस्तूरी, चँवर, मोती, बालों वाले बच्चों के कोट, मोजे, दस्ताना, टोपी आदि किस प्रकार प्राप्त किये जाते हैं? (९) चमड़े की जगह हमें किन वस्तुओं को उपयोग में लाना चाहिए कि निरीह प्राणियों का संहार न हो? (१०) क्या माँसाहार द्वारा हम अपने शरीर को सुदृढ़ बना सकते हैं?

कथाएँ ——
(१) कंधे पर लहू लुहान कुत्ते को बैठाये एक व्यक्ति शहर की ओर जा रहे थे। कई मोटर ट्रक वालों से कहा पर किसी ने जगह न दी अन्त में वे २२ मील दूर पैदल ही शहर पहुँचे और जानवरों के अस्पताल में कुत्ते का इलाज कराया। लोग उन्हें लौह पुरुष के नाम से याद करते हैं पर सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन की यह घटना बताती है कि प्राणियों के प्रति उनके हृदय में कितनी करुणा थी।
(२) आश्रम में एक कुतिया ने पिल्ले दिये पिल्ले दिन भर आश्रम में घूमते रहते और जहाँ तहाँ टट्टी कर देते। गाँधीजी से एक नजदीकी सज्जन ने कहा-बापू पिल्लों को मरवा देना चाहिए टट्टी करके फर्श खराब कर देते हैं। मरवा देने की बात सुनते ही उनकी आँखों में आँसू आ गये और बोले वह कुतिया बोल नहीं सकती तो भी माँ है उसे बच्चों के मरवाये जाने का पता चल जाये तो मालूम है उसे कितना दुःख होगा। उन सज्जन को इससे आगे कुछ बोलते नहीं बन पड़ा।
(३) इब्राहिम लिंकन कार में बैठे संसद जा रहे थे। रास्ते में देखा एक सुअर का बच्चा कीचड़ में फँसा तड़फड़ा रहा है-कपड़े खराब होने की आशंका का भी ध्यान न देकर उन्होंने पहले सुअर के बच्चे को निकाला पीछे गंदे कपड़ों में ही पार्लियामेण्ट गये।
(४) लोगों ने बहुतेरा कहा-कुत्ता पागल है इसे मत छोड़ो काट लेगा पर मदनमोहन मालवीय की दयालुता थी-कि ये माने ही नहीं कुत्ता गुर्राता रहा और वे उसका घाव धोते रहे। घाव धोकर दवा लगा दी। कुत्ते को आराम पड़ा और सो गया। जब तक पूरी तरह अच्छा नहीं हो गया मालवीयजी उसकी दवादारू करते रहे।
(५) भगवान बुद्ध समाधि में थे कभी धूप सिर को तपाती तो कभी मेह ठिठुरन पैदा करता। यह देखकर सर्पराज मुचलिन्द ने बुद्ध के शरीर में तीन फेरे डाल कर उनके सिर पर छाया कर दी। एक गाँव वाला आया उसने यह दृश्य देखा तो डर कर भाग गया। समाधि खुली तो सर्पराज वहाँ से हट कर अपने बिल की ओर चल पड़े यह देखकर ग्रामीण ने पूछा-भगवान साँप तो जहरीला और गुस्से वाला जीव है आपको काटा नहीं इसने? बुद्ध हँसकर बोले-तात जो प्राणियों को भी आत्मा और मित्र-भाव से देखता है। उसका प्राणी भी अहित नहीं करते।
(६) बाज़ कबूतर से कहा-अरे कबूतर भाग जा इस डाली से देखता नहीं मैं कितना शक्तिशाली हूँ चाहूँ तो तुझे अभी मारकर खा जाऊँ। कबूतर बोला-लेकिन श्रीमान् जी इसमें आपकी क्या विशेषता रही। हर शक्तिशाली अपने से कमजोर को मार सकता है, किसी को जिन्दा करके दिखाओ तो जानूँ कि तुम शक्तिशाली हो। बाज़ को अपना मुँह छुपाना मुश्किल पड़ गया।
(७) मित्र ने गुलेल बना दी और अपने साथ ले गया चिड़ियों का शिकार करने। जैसे ही उसने एक चिड़िया पर निशाना साधा कि उसने शोर मचा लिया, चिड़िया उड़ गई। मित्र दिन भर हैरान रहा एक भी चिड़िया न मार सका। मित्रता तोड़ने की कसम दी जीवमात्र में आत्मा देखने वाले युवक ने मित्रता तोड़ ली पर जीव-हिंसा न होने दी। कितने अच्छे थे वह अल्बर्ट स्वाहत्जर।


(७७) विवाहों के आदर्श ऊँचे रखे जायें

प्रश्न ——
(१) विवाह क्या है? आजकल विवाह सम्बन्ध किन आधारों पर तय किये जाते हैं? (२) विवाह सम्बन्ध का सच्चा आधार क्या होना चाहिए? (३) गृहस्थ के सुख शान्ति की आधार शिला क्या है? (४) विवाहोत्सव कैसा होना चाहिए? विवाहोत्सव में होने वाले अपव्यय पर प्रकाश डालिये। (५) विवाहों की रूपेरखा किस तरह की बनानी चाहिए? (६) आभूषण क्यों आवश्यक हैं? (७) विवाह में लड़के व लड़की वालों की मनोभूमि कैसे होती है? (८) कृतज्ञ किसे होना चाहिए व क्यों? (९) आज के युवकों के क्या कर्तव्य हैं? (१०) हिन्दू समाज के संगठित न होने के प्रमुख कारण क्या है?

कथाएँ ——
(१) विश्व भारती महिला कॉलेज श्री नगर के प्राध्यापक श्री माखनलाल खरे और गुजरात की नेत्रहीन युवती कु० गणेशी का विवाह दिल्ली के मॉडल टाउन में नगर निगम के प्रमुख पार्षद श्री जय प्रकाश गोयल के निवास स्थान पर सादगी पूर्वक सम्पन्न हुआ। गणेशी ने शगुन में मिला धन अंध विद्यालय को दान कर दिया इस विवाह का अभिनन्दन किया गया जिसमें नगर के गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुए और श्री खरे जी को हृदय से सराहा।
(२) निजामपुर के श्री राधिकाचरण ने अपने पिता और परिवार वालों की इच्छा पर उस समय पानी फेर दिया जब युवक ने स्पष्ट कह दिया कि वह किसी काली लड़की से ही शादी करेंगे। घर वाले दहेज के लालच में सौदा कर चुके थे, वह तोड़ना पड़ा। विवाह नगर के ही वकील कमलाकान्त की काली लड़की शशिकला के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ।
(३) शाहजहाँपुर में अनोखा विवाह हुआ शालिग्राम की बटिया का ‘तुलसी’ के पौधे के साथ धूमधाम से विवाह हुआ। खूब पैसा खर्च हुआ और चढ़ौती भी चढ़ी। पढ़े लिखे लोगों ने कहा-क्या बुरा है हिन्दुओं में विवाह का आदर्श भी तो अब फेरा मात्र रह गया है चाहे वह बटिया का हो मनुष्य शरीरों का आदर्श जो कभी थे अब कहाँ रह गये।
(४) सुकन्या के पिता ने बहुत मना किया पर उसने वृद्ध च्यवन से ही शादी की और कहा विवाह शरीरों का नहीं आत्माओं का मिलन है मैं इस दृष्टि से विवाह कर रही हूँ कि लोक सेवक को सहयोग मिलेगा और मुझे आत्मज्ञान।
(५) ३० जनवरी ७१ के ग्वालियर यज्ञ में श्री भूदेव शर्मा का विवाह प्रभा शर्मा के साथ आदर्श रीति से सम्पन्न हुआ। विवाह की विशेषता यह थी कि प्रभा के दोनों पैर कटे हैं वह काष्ठ के पैरों से चीलती है। श्री भूदेव ने कहा मैं यह विवाह इस भावना से कर रहा हूँ कि प्रभा को सहारे की आवश्यकता है। प्रभा ने अपनी पति के चरण स्पर्श किये उस समय उपस्थित सभी लोगों की आँखों पर आँसू आ गये। श्री शर्मा को सबने पूरी-पूरी बधाई दी।
ऐसा ही एक विवाह बम्बई में कुमारी प्रभावती ने एक अपंग सैनिक अधिकारी के साथ किया। सैनिक अधिकारी पंकज जोशी सेना में युद्ध के समय सुरंग फट जाने से घायल हो गये थे। प्रभावती के हृदय में विद्यमान सेवा, सहानुभूति, स्नेह और सहयोग की सबने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
(६) मेडागास्कर में युवक फिलिप्स और युवती एनन का विवाह हुआ। विवाह के कुछ ही दिन बाद अनबन रहने लगी। कुछ दिन पीछे एनन के बाबा उनको देखने आये। वह १० दिन उनके साथ रहे। बाबा को उनकी अनबन का पता न चल पाये। इसके लिये १० दिन दोनों एक दूसरे के प्रति नाटकीय प्रेम प्रदर्शन और समर्पण का भाव दिखाते रहे। वृद्ध ने चलते समय हार्दिक सन्तोष के साथ इन्हें इसी तरह सुखी रहने का आशीर्वाद दिया। १० दिन के परस्पर समर्पण ने कुछ ऐसा आनन्द दिया कि पति-पत्नी में पुनः प्रेम पैदा हो गया जो जीवन भर कभी नहीं टूटा।
(७) बोगोता (कोलम्बिया) में विवाह प्रशिक्षण के लिये विद्यालय खोला गया है जहाँ सुखी दाम्पत्य जीवन के नियमों का प्रशिक्षण दिया जाता है। यौन सम्बन्धों और शिशु पालन की भी शिक्षा दी जाती है। यहाँ से निकले स्नातकों के अधिकांश विवाह सफल होते हैं।


(७८) बाल विवाह—एक अति घातक कुप्रथा

(१) बाल विवाह के आधार पर सिद्ध कीजिए कि हम अभी तक पिछड़े हुए हैं। शारदा एक्ट तथा दूसरे बाल विवाह विरोधी कानून क्यों प्रभाव हीन हैं। बाल विवाह में मानसिक एवं शारीरिक हानियाँ क्या है? (४) बाल विवाह से उत्पन्न सन्तान किस तरह की होती है। (५) बाल विवाह लड़की के लिए किस प्रकार का घातक सिद्ध हो सकता है। (६) बाल विवाह का मनोवैज्ञानिक प्रभाव लड़कियों पर किस प्रकार बुरा पड़ता है। (७) बड़ी आयु में लड़कियाँ दाम्पत्य जीवन के अनुरूप क्यों हो जाती हैं। (८) क्या छोटी आयु में विवाह कर देने से लड़कियाँ शीलवान बनी रह सकती हैं। (९) उस कारण को समझाओ जिसके कारण लड़कियों का विवाह छोटी उम्र में ही कर दिया जाता था।

कथाएँ ——
(१) भारतीय समाज में बाल विवाह जैसी हानि कारक परम्परा देखकर श्रीहरि विलास शारदा का मन करुणा से भर उठा। उन्होंने बाल विवाह के विरुद्ध क्रान्ति खड़ी कर दी। रूढ़िवादी पंडितों ने उनका बड़ा विरोध किया पर वे अन्ततः ‘‘शारदा एक्ट’’ पास कराने में सफल हुये। इस तरह बाल विवाह पर कानूनी रोक लग सकी।
(२) गुरु नानक को पता चला कि पड़ोस के गाँव का एक धनी बूढ़ा एक १४ वर्षीय कन्या से विवाह कर रहा है जब कि उसके कई स्त्रियाँ पहले भी थीं। मजे की बात तो यह कि गाँव का कोई भी व्यक्ति विरोध नहीं कर रहा था।
नानक उस गाँव में पहुँचे और तमाम लोगों को इकट्ठा कर उस धनी बूढ़े को भी बुलाया और सबके सामने बोले-क्या यह सब लोग मर गये हैं जो अपनी अर्थी उठवाने के लिये गरीब कन्या को खरीद रहा है। गाँव वाले विरोध में खड़े हो गये और उस मनचले बूढ़े का मनसूबे सफल नहीं होने दिया।
(३) भरतपुर की घटना है एक विवाह हो रहा था, लड़की बहुत छोटी थी। जब पाणिग्रहण के समय पुरोहित ने लड़के को कहा-लड़की का हाथ पकड़ो। वर महोदय ने जैसे ही लड़की का हाथ पकड़ा लड़की ने तमाचा मारा और बोली-अब की हाथ पकड़ा तो पटककर चढ़ बैठूँगी। अबोध बालिका के इस व्यवहार पर कुछ लोग हँस पड़े कुछ भीतर ही भीतर बड़े दुःखी हुये कि यह विवाह है या भारतीय समाज की छीछालेदार।
(४) प्रसिद्ध समाज सुधारक श्री कर्वे ने एक बार पढ़ा कि दुनियाँ में सबसे अधिक बाल विधवाएँ भारतवर्ष में ही हैं। उन्हें भारतवर्ष में प्रचलित बाल विवाहों का बड़ा दुःख हुआ और उसी समय इस कुप्रथा को सुधारने की प्रतिज्ञा की अपना सारा जीवन इसी में लगाकर उन्होंने देश में विवाहों और विधवाओं का जीवन सुधारा।
(५) मद्रास की एक तेरह वर्षीय लड़की को प्रसव के लिये अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर के पूछने पर मालूम हुआ कि उसका विवाह नौ वर्ष की अवस्था में ही हो गया था। घर की दुष्टा स्त्रियों ने उसे बलात् गृहस्थ के लिये विवश किया। लड़की प्रसव पीड़ा सहन न कर पाई उसका वहीं देहान्त हो गया। ऐसी न जाने कितनी आत्म वयस्क मृत्यु भारतवर्ष में बाल विवाह के कारण होती हैं।


(७९) खर्चीली शादियाँ हमें बेईमान और दरिद्र बनाती हैं

प्रश्न ——
(१) विवाहोत्सव के परम्परा प्राचीन काम में कैसी थी? (२) आजकल विवाहोत्सव कमर तोड़ भार क्यों कहा जाता है? (३) हमारे देशवासियों की औसत आय क्या है? (४) विवाहोन्माद से दोनों पक्षों को कैसे हानि होती हैं? (५) विवाह भार का सामना करने के लिए समाज के विभिन्न अंग किस-किस प्रकार की बेईमानी करते हैं? (६) यदि विवाह में कम खर्च किया जाय तो समाज को क्या लाभ होगा? (७) बढ़ी हुई आमदनी का लाभ क्यों नहीं मिल पाता है? (८) विवेकशीलता का तकाजा क्या है? (९) विवाह प्रथा में सुधार का प्रारम्भ कैसे किया जाय। युग की माँग क्या है? (१०) विवाहोत्सव की योजना के सही आधार क्या हैं?

कथाएँ ——
(१) दिल्ली की अदालत में एक गबन की केस आया। बयान के समय लोग आश्चर्य चकित रह गये जब अभियुक्त ने बिना झूठ बोले बता दिया-मैंने गबन किया है क्योंकि मुझे अपनी कन्या के विवाह के लिए दस हजार रुपये चाहिये थे। हिन्दू समाज इतना कृतघ्न है कि बिना रुपये लिये लड़कों के विवाह नहीं करता। दो सौ रुपये मासिक से घर खर्च मुश्किल से चलता है फिर विवाह के लिए पैसे कहाँ से लाता। अदालत में उपस्थित हिन्दुओं को आँखें नीची हो गईं।
(२) ऊधमपुर के राव रईस उमराव सिंह के चार बेटियाँ थीं। उनकी शादियों के धूम धड़ाके में सारी पकी-पकाई जायदाद बिक गई। आखिरी कन्या की शादी की तब वे सारी जायदाद बेचकर २० हजार के कर्जदार हो गये। अब वे एक फर्म में चपरासी की नौकरी कर रहे हैं।
(३) सहारनपुर के एक इंजीनियर के पिता ने उसकी शादी में १० हजार का दहेज लिया। लड़की वालों को आखिर तो शादी करनी ही थी, अपना एक मात्र घर बेचकर दहेज चुका दिया लड़का समझदार था विवाह हो गया तो सारा दहेज पिता को देकर बोला-पिताजी सम्हाल लीजिये सारे रुपये ठीक मिल गये न। पिता ने कहा-हाँ मिल गये अब चलो घर तो चलें। लड़के ने कहा-अब घर किस वास्ते जायें दस हजार में बिक गये अब यहीं रहेंगे। लड़की और इनके पिता की सेवा करेंगे, आपकी तो मेरा मूल्य मिल गया। पिता सिर पटककर लौट गया पर लड़का टस से मस न हुआ। विचारशील लोगों ने लड़के की प्रशंसा की और कहा-हिन्दू धर्म का कोण ऐसे ही दूर होगा।
(४) एक उपदेशक भाषण दे रहे थे लोगों को मिलावट नहीं करनी चाहिये, रिश्वत नहीं लेनी चाहिये? एक व्यक्ति खड़े होकर बोले-महाराज विवाहों में जो लम्बी रकमें माँगी जाती हैं वह कहाँ से पूरी करें? उपदेशक ने अनुभव किया आज लोगों को विवाहोन्माद से बचाना सबसे बड़ा उपदेश है सो उस दिन से वे उपदेश करने के बजाय समाज सुधार में जुट गये।
(५) लंदन से एक सज्जन अपने पुत्र का चूड़ाकर्म संस्कार कराने भारत आये। यहाँ से लौटकर गये तो उन पर १० हजार डालर का कर्ज हो गया। एक अँगरेज ने हँसकर कहा-जो संस्कार दीन और दरिद्र बनायें उनकी उपयोगिता क्या है? वह सज्जन बहुत लज्जित हुये और सोचने लगे हमें संस्कारों के बाह्य रूप की नहीं उनके आदर्शों की रक्षा करनी चाहिये।


(८०) बेटे वाले व्यर्थ ही घाटा और बदनामी न उठाएँ

प्रश्न ——
(१) दहेज तथा शादियों का असह्य अपव्यय समाज को अधःपतन की ओर किस तरह ले जा रहा है? (२) पहले शादियों पर अपव्यय होने के क्या कारण थे? (३) अब अपव्यय करने पर समाज हमसे किस प्रकार का बर्ताव करता है? (४) विवाहोन्माद में होने वाले इस सारे अपव्यय का दोष बेटे वाले के सर पर क्यों थोपा जा रहा है? (५) हर बेटे वाला दहेज लेने के बाद भी घाटे में किस प्रकार रहता है? (६) यह आप किस तरह कह सकते हैं कि बेटे वाला दया का पात्र है? (७) इस आदर्शवादी विवाह पद्धति में बेटे वाले को किस तरह रोल अदा करना होगा? (८) बेटी वाले को किस प्रकार का बर्ताव करना चाहिए?

कथाएँ ——
(१) अमरेली (गुजरात) के भीलड़ी ग्राम में एक शादी हो रही थी। चौथी भँवर चल रही थी कि लड़के वालों ने दहेज की रकम माँगी। लड़की वालों ने असमर्थता प्रकट की तो वर के पिता तलवार लेकर हाथ पाई पर उतर आये। विवाह मंडप युद्ध अखाड़ा बन गया। विवाह किसी प्रकार हो गया पर दोनों सम्बन्धी एक दूसरे के हमदर्द बनने की अपेक्षा शत्रु बन गये।
(२) राजेन्द्रनगर में आई एक बरात में दो सौ से भी बड़ी कुमुक देखकर लड़की वाले घबरा गये किसी तरह एक दिन खिला दिया पर बराती तीन दिन ठहरने के लिए अड़ गये इस पर झगड़ा हो गया। बड़ी मुश्किल से झगड़ा शान्त हुआ था कि कुछ बराती ग्रामवासियों की लड़कियों से शरारत कर बैठे फलस्वरूप उन्हें पीटकर भगाया गया। गाँव वालों ने निश्चय किया है कि कोई विवाह हो बरात में १० आदमियों से अधिक न ले चले जायें और न ही बुलायें जायें।
(३) नई दिल्ली के बिलिंङ्गडन अस्पताल में २४ वर्षीया शान्तिदेवी का एसिड पी लेने के कारण देहान्त हो गया। शान्तिदेवी ने बयान देते हुए बताया कि उसके पति को विवाह में स्कूटर नहीं मिला था इसी कारण वह विवाह के बाद से ही उस पर अत्याचार करता आ रहा था। विवाह रजिन्दरनगर के महाराज कृष्ण से हुआ। पुलिस मामले की छानबीन कर रही थी।
इसी तरह पत्नी को जिन्दा जलाने का एक मामला आगरा सेशन जज की अदालत में फतेहाबाद से आया है। दहेज कम मिलने से जली भुनी सास ने उसे धोखे से गिरा दिये और आग लगा दी। बहू की अस्पताल में ही मृत्यु हो गई।
(४) सचेण्ठी थाना (कानपुर) के पीराजपुर ग्राम की मुन्नी देवी नामक कन्या का विवाह दहेज न दे सकने के कारण एक ऐसे परिवार में हुआ जहाँ सास उसे बहुत कष्ट देती थी। लड़की ने रस्सी बाँधकर आत्म हत्या कर ली कानपुर के ही मंडा नामक ग्राम की १९ वर्षीय जनकदुलारी ने इसलिये आत्महत्या करली क्योंकि दहेज कम मिलने के कारण उसके पति सास और ससुर उसकी पिटाई करते आ रहे थे। लड़की अपने घर वालों से बराबर शिकायत करती आ रहीं थी। बाद में उसने तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने अधजली लाश बरामद की।
(५) अम्बाला की एक शादी में वर महोदय के साथ रेडियो सिंगर लड़कियाँ भी आई उन्होंने लड़के को बताया कि लड़की कोई खास अच्छी नहीं। रूप के दीवाने वर भाग खड़े हुए। पिता उन्हें किसी तरह पकड़कर लाये तो लड़की ने रूप के सौदाई लड़के से विवाह करने से इनकार कर दिया। बारात वापस लौट गई।
(६) बाराबंकी से एक बारात कानपुर आई। वर का पिता १० हजार का दहेज पहले ही ले चुका था। विवाह के समय से ही वर महोदय ट्रांजिस्टर और मोटर साइकिल की माँग कर रहे थे। कलेवा के समय वे ऐसे अड़े कि भोजन ही नहीं किया। रातभर चकल्लस रही और उसका अन्त तब हुआ जब लड़की ने ऐसे लड़के के साथ जाने से ही इनकार कर दिया। अध्यापकी करके उसने अपना जीवन निर्वाह करना और आजीवन कुँआरी रहने का व्रत ले लिया।
(७) गोलावें (बिहार) में आई एक बारात में हुई आतिशबाजी ने एक युवक लड़के के प्राण ले लिये। ७-८ अन्य व्यक्ति घायल हो गये। गाँव वालों ने आतिशबाजी फिर कभी न बुलाने का निश्चय किया। आतिशबाजी लड़के वाले अपनी शान के लिये लाये थे।
(८) दरियागंज के श्री किशनलाल ने अपने पुत्र सुधारे की शादी में १० हजार दहेज लिया पर यह दहेज उस समय भारी पड़ा जब लड़की वालों ने दुगुने मूल्य के जेवर आतिशबाजी और वेश्या नृत्य की माँग की। विवाह का मजा बारातियों ने और गाँव वालों ने लूटा जब कि दोनों परिवार कर्ज ग्रस्त हो गये।


(८१) उच्च शिक्षित कन्या की विवाह समस्या का समाधान

प्रश्न ——
(१) मानव जाति का उज्ज्वल भविष्य नारी का स्तर ऊँचा उठाये जाने पर निर्भर है? सिद्ध कीजिये? (२) आजकल लड़कियों को शिक्षा दिलवाना क्यों आवश्यक है? (३) आज का युवक अपनी पत्नी को किस प्रकार धोखा दे सकता है। इसका कारण क्या है? (४) महँगाई के इस जमाने में नारी का क्या कर्तव्य हो जाता है? (५) उच्च शिक्षा कन्या के विवाह न होने के दो कारण बताइये? (६) उच्च शिक्षित कन्या को फिर किस तरह का जीवन शादी के बाद व्यतीत करना पड़ता है? (७) नारी के नेतृत्व से समाज का क्या कल्याण होगा? (८) शिक्षित नारी के विवाह की कठिनाइयों को दूर करने के लिए किन-किन धारणाओं को बदलना चाहिए? (९) शिक्षित लड़की खुद ही दहेज किस प्रकार से है?

कथाएँ ——
(१) ताजकुंडिया की एम. ए. पास कन्या ने कक्षा १० पास अध्यापक से विवाह कर लिया। अपने समकक्ष या अधिक पढ़े लिखे लड़के मिलते तो बहुत थे पर शिक्षित होने पर भी वे दहेज और विवाह की कुरीतियों से मुक्त न थे। तभी युवती ने यह निर्णय लेकर एक मिसाल कायम की कि कम पढ़े युवक खराब नहीं। कमला नामक इस लड़की ने स्वयं भी अध्यापन किया और अपने पति को अब अपने समकक्ष पढ़ा भी लिया।
(२) हजरत कलाँ के प्रिन्सिपल श्री गिरधारीलाल जी के सामने अपनी एम. ए, कन्या कृष्णा के सम्बन्ध की चिन्ता की। पढ़ाने के कारण कन्या सयानी हो गई थी यह समस्या उनके मित्र राजेश ने कम आयु के किन्तु अत्यन्त स्वस्थ लड़का ढूँढ़कर हल कर दी। वर-वधू दोनों अति सुखी है।
(३) वेमेतरा (दुर्ग) के इण्टर पास श्री प्रभाकर कृष्ण ठोके इन्टरमीडिएट ने बी. ए. पास कन्या कला से आदर्श विवाह किया। आदर्श में एक आदर्श यह भी है कि कन्या अध्यापिका थी और लड़के से अच्छा वेतन पाती थी। उन्होंने लड़के की अधिक योग्यता की मूढ़ मान्यता को ध्वस्त कर दिया।
(४) मथुरा की एक अध्यापिका ने अपने एक सम्बन्धी अनपढ़ युवक से विवाह कर लिया। विवाह में अनेक गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुए और वर-वधू को आशीर्वाद देते हुये कहा-ऐसे आदर्श ही वैवाहिक कुरीतियों को तोड़ेंगे। लड़का घर की देख भाल करता है और अध्यापिका जीविकोपार्जन करती हैं। शाम को युवक को पढ़ाने का भी नियम बनाया है।


(८२) विधुर तथा विधवाएँ समान न्याय के अधिकारी

प्रश्न ——
(१) सिद्ध करो नर-नारी भगवान् की दो भुजाएँ हैं? (२) क्या नारी भी कर्तव्य तथा अधिकार में पुरुषों के समान नहीं? (३) पति-पत्नी के प्रति वफादार कैसे रह सकता है? (४) हिमालय के जानसर बाबर की प्रथा का वर्णन करो उपयोगिता बताओ? (५) नारी को हीन मानने के क्या दुष्परिणाम हुए? (६) विधवा को समान न्याय किस प्रकार मिल सकता है? (७) विधवा विवाह के लिये क्या आवश्यक है? (८) विधवाओं के साथ क्या उदारता बरती जानी चाहिए?

कथाएँ ——
(१) समाज सुधारक महर्षि कर्वे से एक व्यक्ति ने कहा-विधवा विवाह नहीं करना चाहिये क्योंकि एक बार विवाह से स्त्री अपवित्र हो जाती हैं। कर्वे ने पूछा-पुरुष में ऐसी क्या बात है जो कई बार विवाह करने पर भी अपवित्र नहीं होता? उन सज्जन को कोई उत्तर देते न बन पड़ा।
(२) महात्मा गाँधी जी से एक गाँव के कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं थे कि विधवा विवाह होने चाहिये वे गाँधीजी से मिले और तरह-तरह के शास्त्रीय प्रमाण देने लगे-गाँधीजी बोले-मेरे पास सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आज के अश्लील वातावरण में जब पुरुष संयमित नहीं रह सकता तो बेचारी स्त्रियों से ही उसकी अपेक्षा क्यों की जाये। वे दुराचारियों बने इससे अच्छा है उनका पुनः विवाह हो हो जाये।
(३) अकोला के एक डॉक्टर एल. टी. शाह ने नलिनी शाह से विधुर विवाह किया। विशेषता यह थी कि दोनों की ही पहले विवाह के तीन-तीन बच्चे हैं। सभी बच्चे हिल-मिलकर रहते हैं।
(४) एक पंडित जी बोले-विधवा विवाह अशास्त्रीय है। एक प्रगति शील युवक ने पूछा-महाराज यह तो बताओ राम कौन थे। पण्डित जी बोले-इतना भी नहीं जानते वे तो अवतारी पुरुष भगवान थे। युवक बोला-सुना है उन्होंने तारा की शादी सुग्रीव और मन्दोदरी की विभीषण से करादी थी क्या यह विधवा विवाह नहीं थे? पंडित जी को कुछ बोलते नहीं बन रहा था।
(५) एक सर्वेक्षण के अनुसार सन् १९१५ से लेकर अब तक भारतवर्ष में विधवा विवाह में १५, १८, ३५, ३५ और ९६ के अनुपात से वृद्धि हुई। इससे पता चलता है कि लोग अब इस बुराई को समझ चुके हैं और विधवाओं के विवाह का औचित्य मानने लगे हैं।
(६) धनबाद के श्री ज्वालाप्रसाद जी अग्रवाल ने जाति भाइयों का विरोध ताक में रख दिया और अपनी पुत्री सुशीला का पुनर्विवाह एक पढ़े लिखे युवक के साथ कर दिया। शिक्षित व्यक्तियों ने श्री अग्रवाल जी और युवक सुरेश कुमार को बड़ी प्रशंसा की। सुशीला २१ वर्ष की आयु में विधवा हो गई उसे कोई संतान नहीं थी।
(७) परसदेपुर (फतेहपुर) के श्री कन्हैयालाल नामक एम. ए. पास युवक को दहेज में लम्बी धनराशि मिल रही थी तिस पर भी उन्होंने यह कह दिया कि कुँवारी लड़की से तो सभी शादी कर लेते हैं मैं किसी असह्य विधवा से क्यों न शादी करूँ, उन्होंने गाँव की की एक विधवा से जाति-पाँति के बन्धन तोड़कर शादी कर ली। शिक्षित व्यक्तियों ने उनके इस साहस की बड़ी प्रशंसा की।


(८३) मनस्वी-शूरवीर विवाहोन्माद से जूझें

प्रश्न ——
(१) बदले हुए जमाने में विवाह पर अधिक खर्च करना अनुचित है-सिद्ध करें? (२) दहेज की प्रथा नले अभिभावकों को बेईमान बना दिया है क्यों? (३) विवाह की कुरीतियों पर प्रकाश डालें तथा उनसे होने वाली हानियाँ दर्शाइए? (४) समय की पुकार क्या है? (५) शौर्य एवं साहस के साथ विवाहोन्माद के विरुद्ध आन्दोलन चलाना क्यों आवश्यक है। (६) ‘‘अनीति के विरुद्ध भगवान की भी अवज्ञा की जा सकती है’’ इससे क्या समझते हो? (७) विवाह के सम्बन्ध में युवकों के क्या कर्तव्य हैं? (८) भारतीय समाज में विवाह की प्रथा में क्या-क्या संशोधन होना आवश्यक है।

प्रश्न ——
(१) धुरियावाँ (उ०प्र०) के सेठ मुकुन्दीलाल तत्परतापूर्वक लड़की की तलाश कर रहे थे लोगों ने समझा वह अपने लड़के के लिये सम्बन्ध खोज रहे हैं। जब सम्बन्ध तय हो गया और वे अपने लिये कपड़े आदि बनवाने लगे तब पता चला कि उन्हें बुढ़ापे में शादी का शौक चर्राया है। गाँव के युवकों ने मिलकर उनके पुत्र श्रीकृष्ण गुप्ता को राजी कर लिया। पिता घर में तैयारी कर रहा था तब पुत्र की भाँवरें पड़ रही थी। बुड्ढा मन मसोस कर रह गया।
(२) गणेश शंकर विद्यार्थी पार्क कानपुर में औरैया और इटावा से आई दो बरातें इसलिये बैरंग लौटी कि धन के अभाव में पिता ने १२ और १४ वर्ष की लड़कियों का विवाह ५० और ५२ वर्ष के बूढ़ों से तैयार किया था। मुहल्ले वालों ने विरोध किया उसी समय दो युवक आगे आये उनकी वैदिक रीति से कन्याओं की शादी कर दी गई।
(३) हाथरस में १२ वर्ष की एक कन्या सुरजो का विवाह एक अधेड़ बूढ़े के साथ तय हुआ। बारात आई तो मुहल्ले वालों ने झगड़ा कर दिया। लड़की ने मुहल्ले वालों का साथ दिया फलस्वरूप पुलिस ने बूढ़े वर और उसके दुष्ट बारातियों को वापस लौटा दिया।
(४) दुमका (बिहार) के एक मध्यम परिवार की कन्या ने शराबी वर से विवाह करने से इनकार कर दिया। लड़का विवाह मंडप पर आया उस समय उसके मुँह से दुर्गन्ध आ रही थी पाँव लड़खड़ा रहे थे। लड़की ने कहा-जो विवाह मंडप में भी शराब पीकर आ सकता है वह कब क्या नहीं कर सकता। यह कहकर उसने विवाह रद्द कर दिया। बारात बैरंग लौटी।
(५) रामगढ़ में एक बूढ़ा दूसरे विवाह की तैयारी कर रहा था। तीन बच्चे पहले से ही हैं बच्चों को पता चला तो उन्होंने सत्याग्रह कर दिया। खाना खाने से इनकार कर दिया। लाचार होकर बूढ़े को अपनी हविश छोड़नी पड़ी।
(६) लेडी हार्डिग्स कॉलेज दिल्ली की प्रिन्सिपल डॉ० जी. के. कैम्पवेल का बयान है कि हिन्दुओं में बाल-विवाह क ही फल है कि अधिकांश बच्चे आपरेशन होकर निकाले जाते हैं। बाल विधवाओं की संख्या भी भारत में ही सर्वाधिक है?
(७) डॉ० ई. एस. डगलस का कथन है मैंने एक १२ वर्षीय लड़की को गर्भावस्था में देखा जो प्रसव के समय पागल हो गई यह सब उसके अभिभावकों के कारण हुआ जो बाल विवाह को परम्परा मानते हैं।
(८) गाँव के पास का लड़का स्वस्थ पढ़ा लिख केवल इसलिये रद्दी कर दिया गया कि उसकी कुंडली नहीं मिलती थी फलस्वरूप जनूथर के सरपंच पं० श्रीरामगोपाल ने कुंडली मिलायी लड़के से १०० मील की दूरी पर शादी धेनुगढ़ी में की। विवाह होकर बारात लौट रही थी रास्ते में लू लग जाने से घर पहुँचते-पहुँचते लड़के की मृत्यु को गई। घर वाले अब कुंडली को कोसते हैं कभी कुंडली बनाने वाले पंडितों को।
(९) कटक के एक विवाह में पिता को भारी अपमान तब सहना पड़ा जब कि उसके लड़के श्री कृष्णधर मिश्रा ने पिता द्वारा दहेज और नेगठेग वसूल करने के हर प्रयत्न को विफल कर दिया। लड़के के हठ और तर्क के आगे लालची पिता की एक न चली।


(८४) बिना खर्च विवाहों का प्रचण्ड आन्दोलन चल पड़े

प्रश्न ——
(१) राष्ट्र में प्रतिवर्ष विवाहों पर कितना खर्च होता है? (२) कैसे कह सकते हैं कि हमारी विवेक बुद्धि का दिवाला निकल गया है? (३) श्वास लेने वाले और किसे कहा जा सकता है? (४) आदर्श विवाह किसे कहते हैं? (५) सत्याग्रही स्वयं सेवक सेना से क्या समझते हो? (६) विवाहोन्माद के प्रतिरोध के लिये नयी पीढ़ी को क्या करना चाहिए? (७) सामूहिक विवाह करने से क्या लाभ है? (८) उपजातियाँ कैसे बनीं? दहेज से बचने के लिये क्या किया जाय? (९) युग निर्माण योजना द्वारा इस सम्बन्ध में किये जाने वाले कार्यों पर प्रकरण डालिये?

कथाएँ ——
(१) कोटा में नामदेव सम्प्रदाय के लोग प्रतिवर्ष सामूहिक विवाह करते हअैं जिनमें किसी प्रकार का लेन-देन नहीं होता। नामदेव समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति इकट्ठा होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। विवाह देखने के लिये बहुत दूर तक से लोग आते हैं।
(२) विटसून त्यौहार पर बर्लिन (पूर्वी जर्मनी) में ३६४ सामूहिक विवाह गिरजाघरों में सम्पन्न हुए ऐसे विवाह ईस्टर और क्रिसमस त्यौहारों पर भी सम्पन्न होते हैं। त्यौहारों पर सम्पन्न हुए विवाह शत-प्रतिशत सफल माने जाते हैं।
(३) तराटा (उज्जैन) के गौड़ मालवीय ब्राह्मण बलराम गोवर्धन तिवारी ने चितापद (इंदौर) के श्री केशव पटेल की पौत्री राधादेवी के साथ विवाह किया जिसमें दहेज जाति भोज आदि कुछ नहीं हुआ। बारात में वर के अतिरिक्त उसके दो मित्र दो भाई पिताजी नाई और पंडित कुल ७ व्यक्ति ही सम्मिलित हुए लड़की मिडिल पास है लड़का बैंक में सर्विस करता है।
(४) गोंदा (महाराष्ट्र) की एक कीर्तन मंडली ने केवल ऐसे ही भजन बनाने और गाने का नियम बनाया है जिसमें विवाह सम्बन्धी कुरीतियों पर प्रकाश पड़ता है और लोगों को आदर्श विवाहों की प्रेरणा मिलती है इसी तरह अन्य कुरीतियों के सुधार के भी भजन गाते हैं पर और किसी तरह के गीत यह लोग नहीं गाते।
(५) मुक्तसर (पंजाब) की श्रीमती रणधीरकौर और उनके पति ने विवाह में मिला दहेज और भेंट रक्षा कोष में दान कर देने का आदर्श उपस्थित कर लोगों का हृदय जीत लिया।
(६) पटियाला के एक युवक की दिल्ली में सगाई की बात चल रही थी लड़की वाले गरीब थे उन्होंने दहेज न माँगने की विनती की पर न तो लड़के के माता-पिता माने न सम्बन्धी लोग। लड़के ने समझाया तो उससे भी बिगड़ उठे। तब लड़के ने साहस किया। खुद ही दूल्हा खुद ही बराती बनकर दिल्ली गया। और लड़की ब्याह लाया। घरवालों ने मनसूबे धरे के धरे रह गये।
(७) सौराठ (मधुवनी) में सात दिन में सात हजार विवाह तय हुए। सौराठ सभा में प्रतिवर्ष लाखों मैथिली ब्राह्मण एक आम के घने बगीचे में इकट्ठा होते हैं और वहीं विवाह वार्ता करके विवाह तय कर लेते हैं इससे लड़का ढूँढ़ने में जो भाग दौड़ करनी पड़ती है लोग उससे बच जाते हैं इच्छित वर भी मिल जाते हैं।
(८) सुमेरगढ़ के श्री रतनलाल अग्रवाल ने निर्धारित तिथि से एक सप्ताह पूर्व ही लड़के की शादी के निमन्त्रण भेजकर सबको आश्चर्य में डाल दिया। जब लोगों को मालूम हुआ कि मुहूर्त प्रथा इसीलिये तोड़ी गई कि उस दिन बाजे पालकी के दाम बहुत बढ़ जाते हैं क्योंकि अन्धाधुन्ध शादियाँ होती हैं तो लोगों ने उनकी बड़ी सराहना की।
(९) नाइजीरिया में दहेज लड़की वाले लेते हैं वह इतनी अधिक होती है कि किसी-किसी विवाह के इच्छुक को ५-५ वर्ष की कमाई भेंट करनी पड़ती है। पिछले दिनों वहाँ बीबियाँ द्वारा दहेज प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन चलाया गया और सरकार से दहेज प्रथा रद्द करने की माँग हजारों नागरिकों ने की, उन्होंने इस प्रथा की भारतीयों से तुलना करते हुए उसे अर्थ व्यवस्था का घातक ठहराया।


(८५) आततायी उद्दण्डता का डटकर मुकाबला किया जाय

प्रश्न ——
(१) अपराध की वृद्धि का दुष्परिणाम लिखो? (२) व्यक्तिगत सदाचार और सामाजिक कर्तव्य क्यों आवश्यक हैं? (३) सिद्ध करो अपराध व्यक्ति के लिये स्वयं घातक होते हैं? (४) अपने देश की उन्नति नहीं हो रही है क्यों? (५) मनुष्य को सदाचार से किस तरह प्रशिक्षित किया जाय? (६) सदाचार और समाज सुधार के रचनात्मक कार्यक्रम बताओ। (७) सिद्ध करो अनीति करने की तरह अनीति सहना भी पाप है? (८) अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? (९) उन्हें कैसे रोका जाना चाहिए?

कथाएँ ——
(१) पाण्डव उन दिनों राजा विराट् के यहाँ छद्म वेष से रह रहे थे। विराट् के साले कीचक की कुदृष्टि द्रौपदी पर पड़ी और वह उनका शील भंग करने पर उतारू हो गया।
द्रौपदी ने अपने सभी पतियों से कहा पर सब इस बात के लिये डरते रहे कहीं ऐसा न हो कि भेद खुल जाये और फिर १४ वर्ष बन में रहना पड़े। पर जब भीम ने यह खबर पाई तो वे किसी भी संकट की चिन्ता किये बिना बोले-मृत्यु का भय हो तो भी दुष्टता सहन नहीं की जानी चाहिए। यह कह कर एक दिन उन्होंने कीचक का वध कर ही तो डाला।
(२) एक छोटी सी रियासत की राजकुमारी चंचलकुमारी पर औरंगजेब की कुदृष्टि पड़ गई। उसने चंचलकुमारी के पिता को धमकाया यदि चंचलकुमारी का विवाह नहीं किया तो कुचल कर रख दिया जायेगा।
जागीदार ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया पर वह आत्मरक्षा के लिये चिन्तित हो उठे। यह समाचार मेवाड़ के राणा राजसिंह ने सुना तो अपनी सेना जागीरदार की रक्षा के लिये भेज दी। अपनी हानि उठाकर भी निर्बल की रक्षा का जो आदर्श उन्होंने रखा उससे राजपूत शासकों को बड़ी प्रेरणा मिली।
(३) गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब ने धोखे से मरवा डाला और उनकी लाश खुली सड़क पर फिकवादी सिख उठा ने ले जायें इसलिये वहाँ पहरा बैठा दिया गया। यह खबर गुरुगोविन्द सिंह ने सुनी तो उन्होंने लाश को किसी भी कीमत पर वापस लाने का निश्चय किया। उनकी सेना के दो सिपाही तैयार हुए एक था बूढ़ा सूबेदार दूसरा उसका पुत्र। दोनों एक गाड़ी लेकर दिल्ली पहुँचे लाश के पास पहुँचे तो पिता ने कटारी निकाली और इससे पहले कि पुत्र रोके खुद को मार ली और कहा-लाश न देखकर सैनिक पीछा करेंगे तुम मुझे गुरु की लाश के स्थान पर लिटा दो और उनका शव ले जाओ। पुत्र ने ऐसा ही किया।
(४) हंस और हंसिनी उड़ते जा रहे थे तभी उन्हें नीचे ठंड से सिकुड़ता हुआ एक सर्प दिखाई दिया। हंस को दया आ गई उसने उसकी रक्षा करनी चाहिए इस पर मादा ने समझाया अत्याचारी की रक्षा और सहयोग पाप है तुम पाप को पोषण मत दो। क्या पता वह तुम्हारा ही अन्त कर दे।
हंस ने एक न सुनी वह नीचे उतरा और सर्प को अपने पंखों से ढक लिया। हवा रुक जाने से सर्प के शरीर में थोड़ी गर्मी आ गई उसने रेंगना शुरू कर दिया पर चारों तरफ पंख देखते ही उसे गुस्सा आ गया और उसने जीवन रक्षक हंस को ही डस लिया, हंस तड़प-तड़प कर वहीं मर गया पर अपने पीछे लोगों को चेतावनी देता गया-दुष्टों पर दया करना भी पाप है।
(५) बिच्छू बोला-तुम मुझे पार पहुँचा दो डंक नहीं मारूँगा। कछुए ने कहा-अच्छा और बिच्छू को पीठ पर बैठाकर पानी में तैर चला। अभी कुछ ही दूर चला था कि बिच्छू ने डंक मार दिया कछुए ने पूछा-यह क्या किया? बिच्छू बोला-यह तो मेरा स्वभाव है। कछुए ने कहा-अच्छा हुआ मैंने अपने को सुरक्षित किया हुआ है, पर तेरे आततायी पन का दंड तो मिलना ही चाहिए यह कहकर उसने डुबकी मार ली और बिच्छू पानी में डूब कर मर गया।
(६) दो मित्रों ने ईख की खेती की। एक दिन बँटवारे की बात आई तो अंगोला ईख जिसमें कम रस पड़ता है भोले आदमी के हिस्से पड़ी। उसकी स्त्री ने समझाया-देखो तुम्हारी जैसी सिधाई से ही दूसरे लोग बुराई करने का साहस करते हैं। उस भोले आदमी ने स्त्री की सीख न मानी। दूसरे वर्ष गेहूँ की खेती हुई। चालाक मित्र ने उसमें भी गेहूँ-गेहूँ तो खुद ले लिया और भूसा उन भोले मित्र के पल्ले बाँध दिया।
(७) एक अध्यापक कुछ दिन के लिये कहीं जा रहे थे उन्होंने अपना एक लोहे का बक्सा पड़ोसी को सौंपते हुए कहा-आपके यहाँ सुरक्षित रहेगा और लौटकर आऊँगा तो ले लूँगा। पड़ोसी की नियत खराब हो गई। लौटकर अध्यापक ने अपना सामान माँगा तो पड़ोसी बोल-बक्सा चूहे खा गये। अध्यापक बिना कुछ कहे लौट आया। उसी के स्कूल में पड़ोसी का लड़का पढ़ता था। उस दिन उसने लड़के को अपने घर में बन्द कर लिया। शाम तक लड़का घर न पहुँचा तो पड़ोसी पूछने आया-मास्टर साहब ने बताया-लड़के को चील उठा ले गई। पड़ोसी बोला-चील कहीं लड़के को ले जा सकती है। अध्यापक ने उत्तर दिया-क्या जाने भाई इस जमाने में तो चूहे लोहे का बक्स खा जाते हैं। पड़ोसी हार मान गया। उसने बक्सा लौटा दिया मास्टर साहब ने लड़का।


(८६) धर्मतंत्र को प्रगतिशील बनने दिया जाय

प्रश्न ——
(१) राष्ट्रोद्धार का प्रभावकारी माध्यम क्या हो सकता है राजनीति या धर्म? कारण सहित बताइये? (२) गाँधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम में धर्म को आधार कैसे बनाया? (३) देश की वर्तमान प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये? (४) क्या राष्ट्र में विचार क्रांति की आवश्यकता है यदि है तो क्यों? (५) भारत में साधु संन्यासियों की संख्या का सदुपयोग कैसे किया जा सकता है? (६) भारत में धार्मिक कार्यों पर होने वाले व्यय पर प्रकाश डालते हुए उसके सदुपयोग की योजना प्रस्तुत करें? (७) मन्दिर मठों की सम्पत्ति का सदुपयोग कैसे किया जा सकता है? (८) धर्म के नाम पर पाखण्ड एवं शोषण से जनता को कैसे मुक्त किया जा सकता है? (९) राजनीति से अधिक महत्त्व धर्म नीति का क्यों है? (१०) धर्म के सच्चे स्वरूप पर प्रकाश डालिए?

प्रश्न ——
मअद नेक और ईश्वर भक्त राजकुमार थे। ताजपोशी के समय पुरोहित ने प्रश्न किया-प्रजा का न्याय किस आधार पर करोगे मअद ने उत्तर दिया अपनी धर्म पुस्तक कुरान शरीफ के आधार पर। पुरोहित ने पूछा-पर यदि वह बात कुरान में न हो तब-तब अन्य विचारशील लोगों से पूछ कर निर्णय दूँगा। पर यदि धर्माचार्य और विचार शील लोग भी पक्षपात करें तब? तब मैं अपने विवेक से ही न्याय करूँगा मअद ने उत्तर दिया। राज पुरोहित ने ताजपोशी करते हुए कहा-राजकुमार तब तुम सच्चे धर्मनिष्ठ हो।
(२) परिव्राजक महानंद ने जितनी अधिक साधनायें की सिद्धियाँ और लोक श्रद्धा भी उतनी ही मिली पर शान्ति-शान्ति न जाने क्यों अब तक न मिल पाई। एक दिन से गाँव की ओर चल पड़े एक स्थान पर रोग से पीड़ित एक वृद्ध कराह रहा था। महानंद ने कमण्डल से जल निकाल कर उसका घाव धोया दवाई और मरहम पट्टी की। वृद्ध को आराम मिला नींद आ गई। आज की जैसी शान्ति महानंद को किसी दिन नहीं मिली इसलिये उन्होंने अनुभव किया कि सेवा ही सबसे बड़ी सिद्धि है।
(३) बोधिसत्व तालाब के किनारे बैठे पुष्पों की शोभा और उनकी सुगंध का आनन्द ले रहे थे। एक लड़की आई और बोली-तुम चोर हो?’’ बोधिसत्व चौंक कर बोले-पुत्री मैंने तो किसी का कुछ नहीं चुराया? चुराया क्यों नहीं, दुनियाँ की शान्ति और आनन्द चुराकर यहाँ बैठे हो, संसार पीड़ाओं में जल रहा है क्या तुम्हारा यह कर्तव्य नहीं कि तुम जाकर भटके लोगों को भी ज्ञान का प्रकाश दो। अभी यह वार्ता चल रही थी कि एक व्यक्ति आया और उन फूलों को बुरी तरह उजाड़ कर चला गया। बोधिसत्व ने कहा-बेटी तुमने मुझे इतना धिक्कारा पर इस व्यक्ति को कुछ न कहा। लड़की बोली-महात्मन् पाप और आसक्ति में डूबे हुए को धिक्कारना पाप को और बढ़ाना है। यह काम तुम धर्म-तंत्र वालों का है कि उन्हें ज्ञान देकर ठीक करो। बोधिसत्व को अपनी गलती मालूम पड़ी और वे समाज सेवा के लिए चल पड़े।
(४) मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एका-एक बच्चा चीखा तो मुझे लगा अब पत्नी जाग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जायेगा पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया बच्चा चुप हो गया। मैं चुपचाप निकल आया महात्मन् अब संसार की मोह माया में फँसना नहीं चाहता, मुझे भगवान् के दर्शन कराने का विधान बताइये। एक विरक्त ने साधु से कहा। साधु बोले-मूर्ख दो भगवान् तो तेरे घर में ही बैठे हैं जिन्हें तू छोड़ आया, जा जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं। विरक्त ने मानव-आत्मा में विश्वात्मा के दर्शन को समझा और घर लौट आया।
(५) एक साधु अपने शिष्यों के साथ एक मेले में जा रहे थे। एक स्थान पर बैठे कुछ बाबा माला फेर रहे थे, उन्हें देखकर साधु हँस पड़े, आगे एक तपस्वी शीर्षासन लगाये खड़े थे, उन्हें देखकर साधु फिर हँसे, और आगे एक पंडित जी भागवत् कह रहे थे उनके आगे चेलों की जमात बैठी थी उन्हें भी देखकर साधु फिर खिल-खिलाकर हँसे। उससे आगे एक कैम्प में एक डॉक्टर एक रोगी की परिचर्या में लगे थे। यह देखकर साधु की आँखों में आँसू आ गये। आश्रम लौटने पर एक शिष्य ने पहले तीन स्थानों पर हँसने और चौथे में रोने का कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया-बेटा आज माला, आसन, प्राणायाम और कथा-भागवत् को तो धर्म समझकर अधिकांश लोग ढोंग कर रहे हैं यह देखकर हँसी आ गई जबकि भगवान् का काम करने वाला एक ही डॉक्टर दीखा, यह देखकर दुःख हुआ कि लोग धर्म के वास्तविक अर्थ को न जाने कब समझेंगे। सच्चा धर्म संसार की सेवा और उसे सुधारना है। जप-तप नहीं।


(८७) साधु-ब्राह्मण अपना कर्तव्य और दायित्व समझें

प्रश्न ——
(१) भारतवर्ष में धर्मजीवियों की संख्या कितनी है? (२) धर्म जीवियों के कर्तव्य क्या हैं? (३) प्राचीनकाल के साधु-ब्राह्मणों की आज के साधु-ब्राह्मणों से तुलना करो? (४) लोक-अनुदान का अधिकार किसे है और क्यों? (५) साधु-ब्राह्मणों में फैली बुराइयाँ बताओ? (६) लोक-मंगल में अभिरुचि नहीं वे साधु ब्राह्मण क्या करें? (७) साधु-ब्राह्मण समाजोत्थान और देश की प्रगति में किस प्रकार सहायक हो सकते हैं।

कथाएँ ——
(१) राजकुमारी वासवदत्ता के पिता गौतम बुद्ध के पास जाकर बोले-भगवन् रूप शील और गुणों से आपके योग्य है, उसे पत्नी रूप में स्वीकार करें। भगवान् बुद्ध ने कहा-तात गिरे हुए समाज की शान्ति सुख और व्यवस्था लौटाने के लिए मैंने गृह और यशोधरा जैसी धर्मपत्नी का परित्याग किया क्या अब मुझे अपने व्रत से डिग जाना चाहिये? बुद्ध द्वारा प्रस्ताव ठुकरा दिये जाने पर वासवदत्ता बहुत रुष्ट हुई और जब कौशाम्बी नरेश उदयन की पटरानी हुई तो बुद्ध का बहुत तिरस्कार किया। अपने राज्य के नागरिकों को उनके खिलाफ भड़का दिया तो भी उन्होंने धर्म-सेवा से मुँह नहीं मोड़ा।
(२) एक बार द्रोणाचार्य से किसी ने पूछा-महाराज आप तो ब्राह्मण हैं ब्राह्मण का धर्म ज्ञान अर्जित करना, ज्ञान देकर समाज को सुव्यवस्थित रखना है सो ता आप करते ही हैं पर जो ज्ञान से नहीं मानता उसे कैसे ठीक करते हैं। द्रोणाचार्य ने उत्तर दिया ——
अग्रता चतुरो वेदा पृष्ठता सशरं धनुः।
इदं ब्राह्मण इदं क्षात्र शास्त्रादपि शराद पि।।

अर्थात् आगे से में मैं ब्राह्मण हूँ मुँह से ज्ञान देता हूँ किन्तु पीठ में मैंने धनुष कण भी धारण किया है अर्थात् जो लोग ज्ञान से मानते हैं उन्हें ज्ञान से ठीक करता हूँ जो ज्ञान से नहीं मानते उनके प्रति क्षात्र धर्म का पालन करता हूँ उन्हें फिर शस्त्र से ठिकाने लगाता हूँ।
(३) लोम मान्य तिलक ने राष्ट्रीय विचारधारा का एक स्कूल खोला उसमें कुल ३०) मासिक पर अध्यापन करने लगे। एक दिन एक सम्बन्धी ने कहा-इतने कम रुपयों में तो आप मरने के बाद दाह संस्कार के लिये भी पैसे नहीं बचा सकेंगे? तिलक ने हँसकर कहा-ब्राह्मण का काम समाज को निष्काम भाव से शिक्षित, और सदाचारी बनाने का है उसके निर्वाह की चिन्ता समाज करे। समाज चाहेगा तो शव दाह के लिये लकड़ियाँ दे देगा या फिर ऐसे ही बहा देगा तो क्या हर्ज है।
(४) पत्थर धार में लुढ़कता आ रहा था किनारों ने कहा-अरे इधर आ कुछ क्षण विश्राम कर ले किन्तु पत्थर चलता ही रहा। टकराता, संघर्ष करता पत्थर कुछ दिन पीछे घिस-घिस कर चिकना हो गया। एक दिन एक ब्राह्मण आया और उसे हृदय से लगाते हुए बोला-तात ब्राह्मण को तप की प्रेरणा देने वाले तुम साक्षात् भगवान् हो उस दिन से पत्थर की शालीग्राम रूप में पूजा होने लगी।
(५) श्री महादेव देसाई को पता चला कि गोधरा एक ऐसा गाँव है जिसके नागरिकों में झगड़ा तो क्या कभी फूट और वैमनस्य भी नहीं हुआ, उस गाँव में कोई अभावग्रस्त भी नहीं है। पूछने पर पता चला यह सब सन्त पुरुषोत्तम सेवकराम के प्रताप के कारण ही है। श्री देसाई एक दिन उनसे मिलने गये। सन्त ने देसाई का हार्दिक स्वागत किया उन्हें अपने हाथ से स्नान कराया, धोती धोई और प्रेमपूर्वक सारा गाँव दिखाया। महादेव ने कहा-आप जैसे साधु संत हर गाँव में हो जाते तो देश का भाग्य ही बदल जाता।
(६) साधु ने ब्रह्मचारी शिष्य से पूछा-बेटा जब तुम्हारा मित्र गंगाजी में डूबने वालों को बचा रहा था तब तुम क्या कर रहे थे? मैं नियम पालन कर रहा था-गुरुदेव वह समय मेरे जप का था जपकर रहा था। शिष्य की बात सुनकर साधु बड़े दुःखी हुए बोले-बेटा जिसने पीड़ितों की सेवा से जप को बड़ा माना उसने पूजा के मर्म को नहीं समझा ऐसा जानना चाहिये।
(७) साधु भगवान के ध्यान में बैठे थे तभी एक व्यक्ति ने उन पर पीछे से हथियार चलाकर घायल कर दिया और वहाँ से भाग निकला। कुछ लोगों ने दौड़कर उसे पकड़ा और मारने-पीटते साधु के पास लाये? साधु ने देखते ही कहा-अरे इसे क्यों मारते हो भाई। लोगों ने बताया-इसी ने तो आपको मारा है। साधु ने कहा ऐसे लोगों को ही प्यार करना और उन्हें सच्चा रास्ता दिखाना साधुओं का कर्तव्य है क्या तुम यह चाहते है कि मैं अपने धर्म का पालन न करूँ।
(८) राजा ने एक साधु को दरबार में आने का आग्रह किया। साधु ने सोचा कि मेरे प्रतिदिन दरबार में जाने से लोग यही सोचेंगे अब इसकी भगवान् पर श्रद्धा नहीं यह लोभी हो गया अतएव वह अपने मुँह में कालिख पोत कर राजा के पास पहुँचा। रोजा ने पूछा-आपने मुँह क्यों काला किया? साधु ने कहा-लोग मुझे कलंकित करें इससे अच्छा था मैं ही अपने आपको कलंकित कर लूँ ताकि साधु-वेष तो कलंकित होने से बच जाय। राजा साधु पर बड़ा प्रसन्न हुआ और उस दिन से उनके उपदेश सुनने कुटिया पर ही जाने लगा।
(९) महात्मा कैयट भाष्य लिखा करते उनकी पत्नी लकड़ी काट लातीं उसी से दोनों का गुजारा चलता। इस बात का पता राजा को चला तो वह बहुत सा धन लेकर कैयट के पास पहुँचे। महात्मा ने वह धन अस्वीकार करते हुए कहा-राजन्! धन पाकर हम लोग धन की उपासना में लग जायेंगे फिर ज्ञान जैसी अमूल्य सम्पत्ति का आदर कौन करेगा? राजा ने उन्हें प्रणाम किया और यह कह कर कि ‘‘तुम जैसे ब्राह्मणों से ही यह देश धन्य है—’’ वापस लौट आया।


(८८) मन्दिर, आस्तिकता और सत्प्रवृत्तियाँ जगाने में लगें

प्रश्न ——
(१) भगवान के मन्दिरों की स्थापना करने का मुख्य प्रयोजन क्या है? (२) आस्तिकता से क्या तात्पर्य होता है? (३) आस्तिक मनुष्य समाज को किस तरह लाभ पहुँचाता है? (४) मन्दिरों के निर्माण में इतनी अधिक धन सम्पत्ति लगाने का कारण क्या हो सकता है? (५) मन्दिरों में कथा प्रवचन किस हद तक सत्प्रवृत्तियों को जगाने में सहायक हैं? (६) मन्दिरों के पुजारी किस तरह के व्यक्ति होते हैं? (७) आज के मन्दिरों के रूप कार्यों पर प्रकाश डालिए? (८) हमारे मन्दिरों में लगी सम्पत्ति तथा व्यक्तियों के क्या पूजा और आरती के सिवाय भी कोई कर्तव्य हैं?

कथाएँ ——
(१) एक बार कबीर ने प्रसंग वश अपने एक अनुयायी से कहा मैं अभी एक मन्दिर से होकर आ रहा हूँ। वह सज्जन बहुत विस्मित हुए बोले-महात्मन् आप तो मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं, फिर मंदिर कैसे चले गये आप तो अभी अमुक व्यक्ति के घर से आ रहे हैं। कबीर हँसकर बोले-हाँ हाँ व घर ही मंदिर है-जहाँ नित्य ईश्वर भेजन होता हो, जिस घर के लोग स्वाध्याय सत्संग करते हों, बच्चों को अच्छा बनने की शिक्षा देते हों वह घर मंदिर ही कहे जाने योग्य हैं।
(२) एक बार गाँधी से एक सज्जन ने पूछा-बापू मंदिर की परिभाषा क्या है-बापू बोले-वह स्थान जहाँ से आस्तिकता, उपासना, श्रद्धा, अनुशासन, प्रेम, निर्भयता का पाठ पढ़ाया जाता हो-मंदिर ही है भले ही वहाँ कोई मूर्ति हो अथवा नहीं।
(३) एक बार सिकन्दर ने एक ऐसे गाँव पर चढ़ाई कर दी जहाँ के सभी आदमी युद्ध में मारे गये थे। स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ थीं। सिकन्दर भूखा था तो उसने भोजन माँगा स्त्रियों ने उसके सामने सोना, चाँदी इकट्ठा करके पटक दिया। सिकन्दर बोला-मुझे सोना नहीं रोटी चाहिए। स्त्रियाँ बोली-रोटियाँ चाहिये थीं तो यूनान से क्यों आये तुम्हें सोना चाहिये सो ले जाओ।
(४) मूर्ति को प्रणाम करने लोग दूर-दूर से आते फलस्वरूप उसे अहंकार हो गया, उसने किसी से अच्छी तरह बात करना भी बन्द कर दिया। यह देखकर आकाश बोला-बावरी मूर्ति यह लोग तुझे नहीं अपनी श्रद्धा को प्रणाम करने यहाँ आते हैं। तुझे प्रणाम लेना है तो उठ और इन सब के अन्तःकरण में ज्ञान के दीप जला।
(५) दानवीर सेठ जुगल किशोर बिरला की मृत्यु होने लगी तो उनकी आँखों में आँसू आ गये। पास ही खड़े एक विश्वास पात्र ने पूछा-सेठ जी अपने जीवन भर धर्म किया हजारों मन्दिर बनवाये आपको तो प्रसन्न होना चाहिये दुःख क्यों कर रहे हो? बिरला जी आँसुओं के बीच बोले-मैंने मंदिर बनवाये पर उनमें जन-जागरण की प्रवृत्तियाँ न चल सकीं मुझे इसी बात का दुःख है।
(६) मदनमोहन मालवीय जी एक धनी सेठ के पास हिन्दू विश्वविद्यालय के लिये दान लेने गये सेठ जी बोले कोई मन्दिर बनवाना हो तो हम से चन्दा ले लें-मालवीय जी बोलें-मंदिर पहले ही इतने बने हैं कि वे यदि अपनी सारी ताकत लोगों का मनोबल चरित्र और नैतिक बल जगाने में लगा दें तो सारा विश्व जाग जायें। अब मंदिरों की नहीं ज्ञान मन्दिरों की आवश्यकता है। सेठ जी मालवीय जी के कथन से बहुत प्रभावित हुए और यथेष्ट चन्दा दिया।
(७) पुजारी नियत समय पूजा करने आता और आरती करते-करते भाव विह्वल हो जाता घर आते ही वह अपनी पत्नी बच्चों के प्रति कर्कश व्यवहार करने लगता। एक दिन उसका नन्हा वाला बच्चा भी साथ लगा चला आया-पुजारी स्मृति कर रहा था हे प्रभु तुम सबसे प्यार करने वाले, सब पर करुणा लुटाने वाले हो, अभी वह इतना ही कह पाया था कि बच्चा बोल उठा-पिता जिस भगवान के पास इतने दिन रहने पर भी आप करुणा और प्यार करना न सीख सकें उस भगवान के होने न होने से क्या लाभ? पुजारी को अपनी भूल मालूम पड़ गई और वह उस दिन से आत्म निरीक्षण व आत्म सुधार में लग गया।


(८९) त्यौहार और संस्कार प्रेरणा पद्धति से मनाए जायें

प्रश्न ——
(१) प्रमुख नव पर्वों के नाम बताइये? (२) प्रत्येक पर्व की विशेषता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिये? (३) प्रमुख १० संस्कारों के नाम बताइये? (४) प्रत्येक संस्कार की उपादेयता पर प्रकाश डालिए? (५) पर्व और त्यौहार मनाने के पीछे हमारा प्रयोजन क्या होता है? (६) पर्वोत्सव एक वरदान हैं सिद्ध कीजिये? (७) पर्व और त्यौहार समाज शिक्षण की आवश्यकता किस प्रकार पूरी कर सकते हैं? (८) किस प्रकार कोई चतुर वक्ता कुरीतियों एवं विकृतियों का उन्मूलन करा सकता है?

कथाएँ ——
(१) आज शस्त्र पूजा क्यों होती है? एक ग्रामीण युवक ने पुरोहित से प्रश्न किया इसलिये कि मनुष्य को शक्तिवान होना चाहिए और आवश्यकता पड़े तो असुरता के दमन के लिए शस्त्र प्रहार की क्षमता भी। युवक के मन में बात बैठ गई। शत्रुओं पर विजय की कामना रखने वाले सरदार वल्लभ भाई ही वह युवक थे जिन्होंने अपने साहस से सभी त्यौहारों के आदर्श उतारने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें तो भारतीय विश्व में सर्वोपरि हो जाएँ।
(२) एक स्त्री का पुंसवन संस्कार कराते हुए-आचार्य ने बताया-सती मदालसा ने अपने पुत्रों को गर्भ से ही धर्म नीति और राजनीति सिखला दी थी-अर्जुन अपनी गर्भवती पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह वेध सुना रहे थे जितनी देर वे जागती रहीं उतनी सारी कथा गर्भस्थ शिशु ने सुनी और चक्रव्यूह वेध सीख लिया यही बालक अभिमन्यु था जिसने १४ वर्ष की आयु में अकेले आठ महारथियों से युद्ध चक्रव्यूह भेदन किया। यदि सभी माताएँ इसी तरह श्रेष्ठ जीवन जिएँ तो सन्तान को सुयोग्य बना सकती हैं-इस संस्कार का यही उद्देश्य है।
(३) घर के सभी लोग गंगा दशहरे का व्रत कर रहे हैं। यह सुनकर महात्मा को कुछ संदेह हुआ उन्होंने पूछा-बेटा घर में आज बन क्या रहा है, हलुआ, पकौड़ी, पाग, कोफ्ता, साबूदाने की खीर, बरफी और-लड़का अभी आगे और बताता तभी महात्मा ने बीच में काटकर कहा-बस बेटा! समझ गया तुम्हारे घर त्यौहार का अर्थ क्या है? ऐसे त्यौहार से तो बिना त्यौहार अच्छा जिसमें लोग उल्टा शिक्षण ग्रहण कर रहे हों।’’
(४) घर में चहल-पहल चल रही थी। चंचल पौत्र नें लोकमान्य से पूछा-बाबा आज क्या बात है अम्माजी, दादाजी सभी पूजा कर रही हैं-आज स्त्रियों का त्यौहार है तीजा-लोकमान्य ने समझाया आज सधवा स्त्रियाँ अपने पतियों की कल्याण कामना करती हैं और कुमारियाँ अच्छे पति की प्राप्ति के लिए व्रत। लड़का बोला मैं भी तीजा व्रत करूँगा बाबा! तिलक बोले बेटा! तू कोई स्त्री है? हूँ तो लड़का पर मुझे भी तो अच्छी स्त्री चाहिए। तिलक ने बच्चे को स्नेह से गले लगाते हुए कहा-बेटा स्त्रियों को इस एक त्यौहार ने ही पवित्र कर दिया भारतीय नारी कभी खराब नहीं होती यह तो यहाँ के मनुष्य ही हैं। जो अनेक व्रत और त्यौहार मना कर भी नहीं सुधरते।
(५) श्री बीज लगाकर जप कर रहे बुद्ध शिष्य से गुरु ने पूछा-क्या कर रहे हो बेटा! शिष्य ने कहा-गुरुदेव आज दीपावली है। लक्ष्मी का पर्व है। आज के जप से लक्ष्मी दौड़ी चली आयेगी। महात्मा बोले-बेटा सो तो ठीक है पर यह दीपक जल रहे हैं यह तो कह रहे हैं पहले अपना तन, मन प्रकाशवान् बनाओ। पवित्र करो और फिर परिश्रम करो तब लक्ष्मी आयेगी। इनका भी तो मतलब समझो।
(६) एक अँगरेज ने गाँधीजी से पूछा आपके यहाँ इतने अधिक व्रत त्यौहार मनाये जाते हैं फिर भी लोग सुखी क्यों नहीं? गाँधीजी ने पूछा-लोग त्यौहार नहीं मानते लकीर पीटते हैं। हमारे पर्व या त्यौहार तो कोई एक भी अच्छी तरह मना ले तो उसका जीवन धन्य हो जाये और समाज का भी बेड़ा पार हो जाये।


(९०) जन्म दिवस और विवाह दिवस मनाए जायें

प्रश्न ——
(१) इसे आप कैसे कह सकते हैं कि एक सामान्य मनुष्य भी अवतारी पुरुष बन सकता है? (२) मनुष्य शरीर पाकर जो काम हमें करने चाहिए वे हम किस कारण नहीं कर पा रहे हैं? (३) माया किसे कहते हैं? तथा ‘माया’ के चंगुल में फँसा व्यक्ति किस प्रकार व्यतीत करता है? (५) जीवन मिला है तो उसका लाभ किस प्रकार लेना चाहिए? (६) जन्म दिन से बढ़कर और कोई त्यौहार व्यक्तिगत जीवन में क्यों नहीं है? (७) जन्म दिन किस प्रकार मनाया जाना चाहिए? (८) जन्म दिन का वास्तविक लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है? (९) युग निर्माण योजना के अनुसार विवाह दिन किस प्रकार मनाया जा सकता है?

कथाएँ ——
(१) पिता को भगवान् कृष्ण की पूजा करते देखकर बालक ने पूछा-पिताजी कृष्ण को क्यों पूजना चाहिए? पिता ने बेटे से कहा-बेटा आज कृष्ण-जन्माष्टमी अर्थात् कृष्ण का जन्म दिन है। उनका जन्म दिवस मनाने का अर्थ है उनके ज्ञान, गुण, शक्ति और ईश्वरीय प्रकाश को हम भी अपने अन्दर धारण करें? पुत्र ने पिता की बातें अच्छी तरह समझ लीं और अपने जीवन में उन गुणों को धारण करने वाला यही बालक गीता का पण्डित लोकमान्य तिलक हुआ।
(२) शरीर से दुबले शिष्य को हनुमान को पूजते और तिलक करते देखकर गुरु ने पूछा-बेटा हनुमान जी को क्यों पूज रहे हो? शिष्य बोला-भगवन् आज इनका जन्म दिन है आशीर्वाद देंगे तो स्वस्थ हो जायेंगे। गुरु बोले-बेटा स्वस्थ होने के लिये हनुमान को पूजना ही काफी नहीं हनुमान बनना और हनुमान जैसे कर्म भी करना चाहिए तभी उनका जन्म दिवस मनाना सार्थक होगा।
(३) एक दिन दुःखी मनुष्य बैठा भगवान को कोस रहा था, कह रहा था भगवान ने किसी को को इतना दिया कि रखने को जगह नहीं, किसी को इतना कम कि दो वक्त भोजन के भी लाले। महात्मा टालस्टाय उसकी बात सुन रहे थे बोले-बेटा अपना एक हाथ एक हजार में बेचेगा क्या? वह युवक कुछ न बोला, टालस्टाय बोले-दूसरा हाथ भी काटकर देदे तो बीस हजार, आँखें देदे तो चालीस हजार, पाँव भी देदे तो साथ हजार, जीभ, कान, नाक, के भी दस-दस हजार ले ले? युवक बोला-महात्मन् आप पागल हुये हैं रुपयों के लिये शरीर कटवा दूँ? टालस्टाय बोले-नहीं बेटा! में यह कब कह रहा हूँ मैं तो समझा रहा हूँ कि एक लाख का शरीर लेकर भी तुम दुर्भाग्य का रोना रो रहे हो।
(४) एक मनुष्य बोला-भगवान ने शेर को कितना साहसी और शक्तिशाली बनाया, बल सारा हाथी को दे दिया, दूध गाय को, फल पौधों को, मनुष्य को उसने क्या दिया? गुरु बोले-बेटा वह बुद्धि, वह ज्ञान, जिसके उपयोग से वह शेर और हाथी से भी बलवान है उठ अपनी बुद्धि का उपयोग कर और अपना जीवन सार्थक बना?
(५) माँ पूजन आदि की तैयारी कर रही थी। बच्चे ने पूछा-माँ क्या कर रही है। तेरे जन्म दिन के पूजन की तैयारी? जन्म दिन के पूजन का क्या मतलब है माँ बच्चे ने पूछा। माँ बोली-बेटा आज से तू एक वर्ष और बूढ़ा हो गया आज तेरा विवेक जगायेंगे कि तूने अब तक कितना समय समझदारी से बिताया कितना बेखबरी से जन्म दिन मनाने का यही उद्देश्य है।
(६) शिष्य ने शिकायत की गुरुवर आप कहते हैं इन्द्रियों की निरर्थकता याद रखें पर जब वासनाएँ प्रबल हो उठती हैं तो सारा दर्शन का ज्ञान धरा रखा रह जाता है गुरु ने कहा-हाँ वत्स! संसार का स्वरूप कुछ ऐसा ही है। आज से तू शाम को सोया कर तो यह भावना किया कर ‘‘मर रहा हूँ’’ प्रातःकाल उठाकर तो यह मान कर मेरा नया जन्म हो रहा है? मुझे इसे समझदारी और विवेक से जीना चाहिए। मृत्यु को याद रहने और उद्देश्य पूर्ण जीवन जीने से वह शिष्य विकार मुक्त-संत एकनाथ हो गया।
(७) बूढ़ा हो रहा था कह रहा था घर वाले तंग करते हैं, शरीर काम नहीं देता, भगवान भी सहायता नहीं करता? पास से एक संत गुजर रहे थे बोले-यह बातें तब याद नहीं की जब बालक था। युवक हुआ तब रंगरेलियों के आगे न बुढ़ापा याद रहा न भगवान तीसरी अवस्था में उचित था गृहस्थी के झंझट कम करके अपना परलोक सुधारना और समाज सेवा का पुण्य लूटना तब भी मायाजाल में पड़ा रहा। अब जब सब कुछ हाथ से निकल गया तब क्यों रो रहा है।
(८) महात्मा कबीर के पास एक युवक दम्पत्ति पहुँचे और बोले महात्मन् हम दोनों में परस्पर प्रेम और एकता न होने से खींचतान बनी रहती हैं? कुछ समझ में नहीं आता गृहस्थ सुख कैसे पायें। कबीर बोले विवाह के समय जो प्रतिज्ञायें लिखकर घर की दीवारों में टाँग लो ताकि कर्तव्य याद रहें अभी तुम कर्तव्य का ध्यान नहीं रखते अधिकारों तक सीमित हो। कबीर की सिखावन मानने वाले युवक दम्पत्ति का जीवन निहाल हो गया।
(९) इंग्लैण्ड के धन कुबेर डोरिस और उसकी लिली में प्रगाढ़ प्रेम था। वर्ष में एक बार उनका जन्म-दिन आता तो वे एक-दूसरे को सर्वोत्तम भेंट दिया करते? दैवयोग से व्यापार में घाटा शुरू हुआ और यहाँ तक हुआ कि डोरिस दाने-दाने को मोहताज हो गया। फिर विवाह की वर्षगाँठ आई। पति-पत्नी दिन भर उपहार की खोज करते रहे। कुछ न मिला खाली हाथ, दोनों घर लौटे तो सोच रहे थे कैसे मिलें आँखें गीली किये आमने-सामने हुये। डोरिस ने लिली को हृदय से लगाकर कहा-लिली जब तक हमारे हृदय में प्रेम है किसी और उपहार की चिन्ता क्यों करें? वे गरीबी में भी प्रेम का सुख पाते हुए जिये।
(१०) दिल्ली के युवक दम्पत्ति भरतकुमार एम. काम. और सुधा बी. ए. के पाँच वर्ष अत्यन्त कलह में बीते। एक दिन वे गायत्री तपोभूमि आये। उनका विवाह का दिवसोत्सव सम्पन्न कराया गया। भूली हुई प्रतिज्ञायें याद आईं। कर्तव्य पालन का भाव जाग गया और तब पति-पत्नी में वह प्रगाढ़ प्रेम हुआ कि मुहल्ले वाले दाँतों तले उँगली दबा गये।


(९१) गायत्री और यज्ञ— भारतीय धर्म संस्कृति के माता-पिता

प्रश्न ——
(१) गायत्री और यज्ञ इन दोनों का भारतीय संस्कृति के साथ क्या नाता है? (२) शास्त्रकारों ने गायत्री जी के कितने मुख बताये हैं? तथा इनके लाभ प्राप्त करने की क्षमता किसमें है? (३) गायत्री महामन्त्र की उपासना करके मनुष्य क्या लाभ प्राप्त कर सकता है? (४) गायत्री की प्रतिमा माता के रूप में बनाकर क्या प्रतिपादित किया जाता है? (५) हमें अपने परिवार को किस प्रकार की आदत डालनी चाहिये? (६) निराकार गायत्री की उपासना करने वाले को वह किस प्रकार से करनी पड़ती है? (७) यज्ञ से मनुष्य को क्या प्रेरणाएँ ग्रहण करनी चाहिए।

कथाएँ ——
(१) महर्षि विश्वामित्र गायत्री की शोध कर रहे थे उन्होंने देखा यह सारा संसार ही सूर्य की चेतना से चेतन है सो वे सूर्य का चिन्तन-मनन करने लगे। सूर्य की शक्ति प्रदायिनी किरणों ने शरीर के मल विकार दूर कर दिये। तो उनकी प्राण बुद्धि निर्मल हो गई। एक दिन वे ध्यान में इतने लीन हो गये कि उनकी चेतना सूर्य चेतना से एकाकार हो गई। विश्वामित्र दृष्टा हो गये। गङ्गा दशहरा का शुभ दिन उस दिन-से महर्षि ने अपना सारा जीवन ही गायत्री महाविद्या के प्रसार में लगा दिया।
(२) महात्मा आनंद स्वामी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया महात्मन् आप कहते हैं सूर्य चेतन है इसका क्या प्रमाण? गायत्री उपासना से आत्म विकास किस प्रकार होता है।
प्रमाण? आनंद स्वामी बोले सूर्य के न रहने अर्थात् रात होते ही मूर्छा अर्थात् नींद आने लगती है। वैज्ञानिक कहते हैं सूर्य समाप्त हो जाये तो सौर मण्डल से जीवन समाप्त हो जाये। चेतन से चेतन को जोड़कर आत्म विकास वैसे ही होता है जैसे कोई नहर से नाली निकालकर तालाब को भी पानी से भर ले।
(३) महर्षि पाराशर ने व्यासदेव ने पूछा भगवन्! गायत्री को आयु, प्राण, बल, बुद्धि और प्रज्ञा प्रदान करने वाली कहा जाता है सो क्यों? पाराशर ने पुत्र की जिज्ञासाएँ शांत करते हुए कहा वत्स! प्राण-प्रकाश उष्णता और विद्युत रूपी संहति है, इसी के न रहने से शरीर निष्क्रिय हो जाता है और अधिकता से बौद्धिक एवं आत्मिक विकास गायत्री उपासना से उसका देवता यही तीन वस्तुएँ देकर प्राण का विकास करता है।
(४) पाण्डवों ने मरणोन्मुख भीष्म पितामह से प्रश्न किया-वह देव कौन सा है जिसमें समस्त देवता समाहित हों? भीष्म बोले-आद्यशक्ति गायत्री! गायत्री की उपासना न कर किसी और देव को पूजता है वह ऐसा ही है जो अपने घर में छिपे खजाने को नहीं जानता और बाहर धन की खोज में भटकता फिरता है।
(५) मदनमोहन मालवीय जी के पास एक व्यक्ति आया और बोला-महाराज मेरे माता-पिता कोई नहीं हैं। अनाथ ब्राह्मण हूँ कुछ कृपा कीजिये। मालवीय जी बोले-ब्राह्मण की माता गायत्री-यज्ञ पिता, जब तक यह देव माता-पिता हैं तब उसे साँसारिक माता-पिता की चिन्ता नहीं करनी चाहिये। वह व्यक्ति गायत्री उपासना करने लगा और निहाल हो गया।
(६) प्रजापति ब्रह्माजी ने मनुष्य को उत्पन्न किया। मनुष्य ने अपना सारा जीवन दुःख कष्ट और अभावों से घिरा देखा तो उसने पितामह विधाता से शिकायत की-भगवन् इस संसार में असहाय छोड़ें गये हम मनुष्यों की रख और पोषण और करेगा-पितामह बोले यज्ञ-तात यज्ञ द्वारा तुम देवताओं को आहुतियाँ प्रदान करना संतुष्ट हुए देवता तुम्हें धन सम्पत्ति बल और ऐश्वर्य से भर देंगे। और सच ही जब तक यह देश यज्ञ करता रहा धन-धान्य की कमी कभी नहीं रही।
(७) एक परीक्षण किया गया। १२ शीशियाँ अन्न, दूध, माँस आदि से भरी गई। ६ एक कमरे में रखी गई ६ दूसरे में वहाँ से जो काफी दूर। एक कमरे को ज्यों का त्यों रखा गया दूसरे में हवन किया जाता रहा। पाया गया कि जिस कमरे में हवन नहीं होता था उसमें रखी शीशियों का खाद्य शीघ्र सड़ने लगा और जल्दी बेकार हो गया।
(८) फ्रांस के वैज्ञानिक डॉ० टिलवटी मद्रास के सेनेटरी कमिशनर डॉ० करालकिंग डॉ० टाटलिट, फ्रांस के डॉ० हेफकिन जिन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार किया था-हवन पर प्रयोग किया और बताया कि अग्नि में विविध औषधियाँ लाने से क्षय चेचक तथा दूसरे अनेक रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। (यज्ञ चिकित्सा पेज १९९५ डॉ० फुन्दनलाल एम० डी०)।


(९२) गायत्री यज्ञ आन्दोलन— एक महान रचनात्मक अभियान

प्रश्न ——
(१) ‘यज्ञ’ शब्द का व्यापक प्रयोजन ‘गायत्री यज्ञ’ से किस प्रकार जुड़ा है? (२) क्या गायत्री और यज्ञ इन दोनों के समन्वय से हो परिपूर्ण मानवता का उद्भव हो सकता है? (३) गायत्री यज्ञ आन्दोलन किस तरह से पुराने और वर्तमान समय के यज्ञों में समानता ला रहा है? (४) यज्ञ की महिमा को बतलाइए? (५) यज्ञ शब्द का क्या अर्थ होता है? (६) यज्ञीय जीवन को अपनाने पर मानव महान् कैसे बन सकता है? (७) गायत्री यज्ञ आन्दोलन सामाजिक जीवन को यज्ञीय जीवन के अनुरूप ढालने में प्रयत्नशील है? किस तरह? (८) क्या गायत्री यज्ञ आन्दोलन अधिक दृष्टि से भी कम खर्चीला है? किस तरह? (९) नर और नारी समान गायत्री यज्ञ आन्दोलन से किस प्रकार लाभ प्राप्त कर सकते हैं?

कथाएँ ——
(१) अश्वमेध समाप्त कर बैठे महाराज युधिष्ठिर कुछ चिन्तित से थे। ज्ञानी शुकदेव ने चिन्ता कारण पूछा तो उन्होंने बताया-तात कुछ दिन में लोग यज्ञ करना छोड़ देंगे तब वायु मण्डल धूम्र विकारों से भर जाएगा उससे लोगों के मन दूषित होकर पाप कर्मों में लिप्त हो जायेंगे यही सोचकर दुःखी हो रहा हूँ। उससे बचाव का कोई उपाय नहीं है भगवन्। सहदेव ने पूछा-है के विस्तार से ही लोगों के मन स्वच्छ होंगे पर उस समय हम पाँच मिलकर भी वह काम पूरा न कर सकेंगे इसलिये मुझे अनेक अंशों में अवतार लेना पड़ेगा और जगह-जगह यज्ञों का आन्दोलन करना पड़ेगा।
(२) संसार के कल्याण की चिंता से भगवान कल्कि महेन्द्र पर्वत पर अपने गुरु परशुराम के पास विराजमान् थे। उन्हें चिन्तित देखकर परशुराम ने पूछा-भगवन् आप आनन्द के भी आनन्द हैं फिर चिन्ता का हेतु क्या है? निष्कलंक प्रभु ने उत्तर दिया देव! आनन्द स्वरूप होकर भी मैं संसार के हित के लिए दुःखी रहता हूँ। समझ नहीं पाता संसार का दुःखों से उद्धार कैसे करूँ? परशुराम ने हँसकर कहा-आप संसार में जाकर यज्ञ करायें यज्ञ से संस्कार शुद्ध होंगे आप बाजपेय यज्ञ करायें उससे लोगों की बुद्धि में अध्यात्म का उदय होगा तब फिर अश्वमेध करना उससे सारी दुनियाँ का कायाकल्प होगा। कल्कि बड़े प्रसन्न हुए और यज्ञ आन्दोलन की इच्छा लेकर मथुरा नगरी की ओर चल पड़े।
(३) एक बार महर्षि दयानन्द ने प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द से प्रश्न किया ऐसा कोई उपाय है जिससे संसार के सभी लोग रोग मुक्त और स्वस्थ रखे जा सकें दंडी स्वामी ने उत्तर दिया-यज्ञ यज्ञ से ही संसार में सुख-शांति आयेगी और उसी से लोग स्वस्थ होंगे यज्ञ से ही मनों का संस्कार होता है उस दिन से महर्षि गायत्री यज्ञों के प्रचार में फिर लग गये।
(४) स्वामी सत्यदेव विद्यालंकार के पास एक सज्जन आये और अख़बार दिखाते हुए बोले-देखो आज कल सारा संसार ही वायु प्रदूषण से चिन्तित है और अब तो समुद्र का जल भी प्रदूषित हो चला। स्वामी जी हँसे और बोले-आखिर अब तो लोग यज्ञ की महत्ता समझेंगे। उन्होंने उक्त सज्जन से कहा आप भी जाइये और गायत्री यज्ञों का प्रचार कीजिए।
(५) रूस के वैज्ञानिक डॉ० शिरोविच प्रयोग कर रहे हैं कि किस वस्तु के धुएँ से कौन से लाभ होते हैं।
(६) ‘‘कैमिकल प्रापरटीज’’ की सम्मति है कि जायभल, जावित्री, सूखा चंदन, इलायची आदि जलाने से उनका उपयोग भाग वायुभूत हो जाता है। उनके परमाणु ११०००० से लेकर १०००००००० सेंटीमीटर व्यास तक सूक्ष्म हो जाते हैं। यह किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म वायरस को मार सकते हैं।
(७) डॉ० हैनमैन से एक व्यक्ति ने पूछा-औषधि का सबसे अधिक प्रभाव किसी विधि से होता है अपनी पुस्तक ‘‘अर्गेनिक आफ मेडिसन’’ की धारा १९० में उन्होंने इसका उत्तर लिखा हैं औषधि का सबसे अच्छा प्रभाव सूँघने और श्वाँस लेने से होता है औषधि का यह स्वरूप हवन से ही प्रदान किया जा सकता है।


(९३) शिखा—भारतीय संस्कृति की धर्म ध्वजा

प्रश्न ——
(१) शिखा तथा यज्ञोपवीत हमारी संस्कृति का प्रतीक है? सिद्ध कीजिये पुराने समय के लोगों के आधार पर? (२) प्राचीनकाल में शिक्षा का क्या महत्त्व था? (३) आज कैसा व्यवहार हो रहा है शिक्षा तथा यज्ञोपवीत कैसा था हमारे यहाँ? (४) शिखा संरक्षण का वैज्ञानिक महत्त्व किस प्रकार है सिद्ध कीजिए? (५) हमारे भारतीय तत्त्ववेत्ताओं ने इसकी उपयोगिता क्या बताई थी? (६) शिखा बंधन का उद्देश्य क्या है? (७) शिखा रखवाने के लिये किस तरह का उपाय करना चाहिए!

प्रश्न ——
(१) गुरुगोविंद सिंह के पुत्रों को पकड़कर सरहिंद के किले में ले जाया गया और उनसे चोटी कटाने को कहा गया तो उन्होंने कहा-जब तक सिर है तब तक चोटी न कटेगी। उन्हें दीवार में जीवित चुन दिया गया पर उन्होंने शिखा के स्वाभिमान को गिरने न दिया।
(२) नंद वंश के राजा महानंद के दुष्कृत्यों को देख कर आचार्य चाणक्य ने अपनी शिखा खोल दी और कहा अब मैं दिखाऊँगा कि ब्राह्मण की शिखा का अपमान कितना भयंकर होता है। उन्होंने विचार शक्ति एकाग्र की अनेक राजकुमारों को एक सूत्र में संगठित कर महानंद पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया और चन्द्रगुप्त को सम्राट बना दिया।
(३) एक बार गाँधी जी से एक सज्जन ने पूछा-आप हिन्दू हैं क्या इसीलिए चोटी रखते हैं? गाँधी जी ने उत्तर दिया नहीं-चोटी हिन्दू धर्म की रक्षा करती है इसलिए चोटी रखता हूँ।
(४) शिवाजी से भेंट करने आये मुसलमान सरदार ने कहा-मैं तो आपकी सक्रियता और आपका शौर्य देखकर दंग हूँ यह शौर्य और सक्रियता कहाँ से आती है। शिवाजी ने सिर पर हाथ फिरते हुए कहा-इस चोटी और यज्ञोपवीत से। जब तक मेरे शरीर में यह दो वस्तुएँ हैं तब तक मैं निश्चिंत नहीं बैठ सकता क्यों कि मेरे गुरु ने मुझे इनकी रक्षा का भार सौंपा है।
(५) रामचन्द्र नामक एक भारतीय युवक केवल इसलिये चोटी नहीं रखते थे कि लोग उनकी हँसी उड़ायेंगे एक दिन उनके गुरु चले आ रहे थे कि रामचन्द्र अपने एक मुसलमान और एक ईसाई मित्र से बात करते मिल गये। समय देखकर गुरु ने पूछा-रामचन्द्र तू शिखा क्यों नहीं रखता इससे पूर्व कि रामचन्द्र कुछ कहे ईसाई और मुसलमान युवक ने पूछा-श्रीमान जी चोटी रखने से क्या लाभ? गुरु ने पूछा अच्छा आप बतायें गला कस देने वाली टाई और गला खुजलाने वाली दाढ़ी से क्या लाभ? ईसाई बोला-टाई हमें ईसामसीह के त्याग की याद दिलाती है और मुसलमान युवक बोला-दाढ़ी हमें अल्लाह की कुदरत की? तो फिर चोटी भी तो हमें अपने भगवान की अपने सनातन आदर्शों की याद दिलाती हैं हम उसे धारण करते हैं तो इसमें क्या बुरा है। रामचन्द्र की आत्महीनता दूर हो गई उसने मुंडन संस्कार करा कर चोटी धारण कर ली।
(६) एक साधु कह रहे थे शिखा देव शक्तियों से सम्पर्क का माध्यम एरियल है इस पर एक नास्तिक सज्जन हँसे और बोले चोटी सन्देश और प्रेरणाएँ कैसे ग्रहण कर सकती हैं साधु ने कहा-निर्जीव लोहे का एरियल पकड़ सकता है तो चोटी क्यों नहीं पकड़ सकतीं? उन्होंने कहा-एरियल का सम्बन्ध तो यन्त्र से, रेडियो से होता है। साधु बोले-यह शरीर किसी रेडियो से कम है। सारी मशीनें इसी की नकल हैं, उन सज्जन को कोई प्रतिवाद करते न बना।


(९४) यज्ञोपवीत धारण— नीति कर्तव्य अपनाने का व्रत करें

प्रश्न ——
(१) ‘शिक्षा’ का प्रयोजन क्या है? (२) यज्ञोपवीत धारण करने का क्या तात्पर्य है? (३) यज्ञोपवीत धारण द्विजत्व की प्रतिज्ञा किस प्रकार है (४) यज्ञोपवीत संस्कार न करवाने का कारण क्या है? (५) यज्ञोपवीत संस्कार को उसके स्थान पर पुनः प्रतिष्ठापित करने के लिये हमें क्या करना चाहिये? (६) यज्ञोपवीत के ९ धागे किन-किन सद्गुणों के प्रतीक है? (७) यज्ञोपवीत गायत्री माता का स्वरूप क्यों माना जाता है। तथा इसका तात्पर्य क्या है? (८) नर से नारायण, पुरुष से पुरुषोत्तम, लघु से महान और आत्मा से परमात्मा किस तरह बन सकता है? (९) उपनयन संस्कार करवाने की दक्षिणा के स्वरूप हमें क्या देना चाहिये। (१०) युग निर्माण योजना के उद्देश्यों की पूर्ति में बड़ी सहायता किस प्रकार मिल सकती है।

कथाएँ ——
(१) पिता ने स्वयं यज्ञोपवीत कराया। विद्वान पिता के विवेकवान् पुत्र ने पूछा-पिताजी यह कच्चे धागे गले में डालने का क्या मतलब है? पिता बोला-मनुष्य जीवन को विवेक से बाँधकर रखा जाये ताकि मनुष्य सांसारिक आकर्षणों में ही उलझ कर न रह जाये वरन् अपना पारमार्थिक लक्ष्य भी पूरा करने के लिये सजग रहे। जिसका यज्ञोपवीत धारण सार्थक हुआ यह बालक आगे चलकर जगद्गुरु शंकराचार्य के नाम से विख्यात हुआ।
(२) गुरुदेव आप तो कहते हैं द्विज ब्राह्मण को कहते हैं जब कि ‘‘द्विज’’ का अर्थ होता हैं ‘‘दूसरा जन्म’’। शिष्य ने आशंका व्यक्त की तो गुरु ने समझाया-वत्स दोनों अर्थ सही हैं। जन्म से सभी एक-सी परिस्थिति में हैं पर यज्ञोपवीत के बाद से व्रतधारी केवल साँसारिक बातें ही न सोचकर परलोक और परमार्थ की बात भी सोचता है, यह आध्यात्मिक जन्म है यह जन्म होने से ही मनुष्य द्विज होता है।
(३) श्री विष्णुयश शर्मा बोले-तात मैं अब तुम्हारा उपवीत संस्कार कराऊँगा। निष्कलंक प्रभु ने पूछा-पिताजी ‘‘यज्ञोपवीत संस्कार’’ क्या होता है? पिता बोले-वत्स जन्म से सभी शूद्र होते हैं किन्तु जब वही शूद्र कुछ संकल्प व व्रत लेकर उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने लगता और ब्रह्म की ओर उन्मुख हो जाता है तो ब्राह्मण हो जाता है ब्राह्मण बनाने का प्रतिज्ञा समारोह ही है यह यज्ञोपवीत संस्कार। कल्कि भगवान् बड़े प्रसन्न हुए और यज्ञोपवीत संस्कार के लिये तैयार हो गये।
(४) समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी से सिंहासन लेकर फिर उन्हें ही राज्य-भार सौंपा तो शिवाजी बोले-भगवान् राज्य तो अब आप कीजिये मुझे कोई और आज्ञा दीजिये। समर्थ बोले-शिवा जो काम मैं करना चाहता हूँ वह राज्य से भी कठिन है तू यह काम कर मैं हिन्दुत्व की शिखा और यज्ञोपवीत की रक्षा करूँगा अन्यथा सारा देश म्लच्छ हो जायेगा। शिवाजी ने गुरु की आज्ञा शिरोधार्य की और समर्थ गुरु रामदास वहाँ से धर्म जागृति अभियान के लिये चल पड़े।
(५) यज्ञोपवीत के साथ गायत्री उपासना की अनिवार्यता क्यों जुड़ी हुई है महात्मा आनन्द स्वामी से एक पंजाबी ने प्रश्न किया। आनन्द स्वामी बोले यज्ञोपवीत केवल परलोक की प्रेरणा नहीं देता वरन् वह इस लोक को सुखी सशक्त व समुन्नत बनाने की प्रेरणा देता है यही बात गायत्री उपासना के बारे में भी है उस महामन्त्र में परलोक के साथ लौकिक सुखों की भी कामना की गई है इसीलिये यज्ञोपवीत और गायत्री संस्कार जोड़कर रखे गये हैं।
(६) यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हुआ तो गुरु ने शिष्य से गुरु-दक्षिणा माँगी गुरु का नियम था कि वे यज्ञोपवीत के समय एक बुराई छुड़वाया करते शिष्य बड़ा चतुर था बोला-आज से कौवा नहीं मारा करूँगा। एक छोटी-सी प्रतिज्ञा में भी सावधान रहने वाला यही बहेलिया सन्त श्रमणक के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


(९५) ज्ञानयज्ञ का प्रकाश घर-घर पहुँचाया जाये

प्रश्न ——
(१) मनुष्य की महानता और निकृष्टता किस तरह उसकी मनः स्थिति पर निर्भर है? (२) विचार किस तरह मनुष्य के लिये उपयोगी हैं? (३) इस समय जो प्रगति की विविध विध चेष्टाएँ की जा रही हैं वे असफल क्यों हो रही हैं। (४) अब समाज की उन्नति के लिये किस तरह के प्रयत्न किये जायें? (५) राजनैतिक क्रान्ति के बाद सबसे पहली आवश्यकता क्या है? (६) युग निर्माण योजना द्वारा संचालित ‘‘ज्ञानयज्ञ’’ की कार्य पद्धति को समझाइए? (७) इस ज्ञान यज्ञ की प्रक्रिया को व्यापक बनाने के लिये क्या और किस तरह का सहयोग आवश्यक है? (८) झोला पुस्तकालय किस प्रयोजन की पूर्ति के लिये हैं?

कथाएँ ——
(१) लन्दन की एक सभा में स्वामी विवेकानन्द भाषण कर रहे थे मानव धर्म की प्रतिष्ठा के लिये सच्चे ज्ञान के प्रसार की आवश्यकता है ज्ञान प्रसार के लिये त्यागी और सेवाभावी आत्माएँ चाहिये। मुझे ऐसी छः आत्माएँ मिल जावे तो संसार का काया पलट हो सकता है। सभा में बैठी युवती नोबुल मार्गरेट ने सभा समाप्त होने पर स्वामी जी से कहा-मैं नहीं जानती आपको छः व्यक्ति मिलेंगे या नहीं पर सातवें की पूर्ति में करूँगी। इन्हीं मार्गरेट ने एक दिन भारत आकर लोगों के घर-घर प्रकाश पहुँचाया और सिस्टर निवेदिता के रूप में भारतवासियों से सच्चा प्यार पाया।
(२) कलकत्ता के एक अँगरेज जस्टिस की कन्या श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के घर पहुँची और उन्हें ईसाई धर्म की छोटी-छोटी पुस्तकें भेंट करती हुई बोली इनमें बड़ा ज्ञान भरा है आप इन्हें अवश्य पढ़े? श्री बनर्जी ने पूछा-मैंने सुना है आप यह पुस्तकें लेकर साधारण घरों में भी जाकर लोगों को पढ़ाती हैं इसमें आपको ग्लानि नहीं लगती। लड़की बोली-जिन्हें अपने धर्म की संस्कृति का स्वाभिमान नहीं होगा उन्हें इस कार्य से ग्लानि अनुभव होगी। ईसाई धर्म भारत जैसे देश में फैल गया वह इसी निष्ठा का प्रतिफल था।
(३) स्वामी रामतीर्थ गाँव में एक मौलवी जी से पढ़ा करते थे। मौलवी जी उन्हें ज्ञान धर्म की बातें भी बताया करते। जब पढ़ाई समाप्त हुई तो रामतीर्थ के पिताजी ने मौलवी साहब को मासिक वेतन के अतिरिक्त कुछ और भी देने की इच्छा की। रामतीर्थ पास ही खड़े थे बोले पिताजी-जीवन का सच्चा स्वास्थ्य ज्ञान है मौलवी जी ने हमें ज्ञान दिया है तो आप उन्हें गाय दीजिये जिससे मुझे दिये स्वास्थ्य के बदले इन्हें भी-स्वास्थ्य मिले। रामतीर्थ की इस श्रद्धा पर पिता और गुरु दोनों पुलकित हो उठे।
(४) बारह-तेरह वर्ष के एक लड़के ने बालक-दल की स्थापना की। इस दल का उद्देश्य लड़कों को इकट्ठा करना उन्हें दशहरा दीपावली आदि पर्वों पर रामायण व महाभारत की कहानियाँ सुनाता था। लोगों को यह कार्य बड़ा कौतूहल पूर्ण लगता पर पीछे लोगों ने देखा कि इसी बालक ने अपने छोटे से कार्य से अपने को संगठित बना लिया कि जहाँ भी गया लोगों ने हिन्दू संस्कृति की सर्वोपरिता स्वीकार की। यह बालक और कोई नहीं मदन मोहन मालवीय थे।
(५) खादरा के डिप्टी इनस्पेक्टर शिक्षा विभाग की धर्मपत्नी श्रीमती ज्ञानवती ५ वर्ष से लगातार झोला पुस्तकालय चला रही हैं इसे कस्बे का-कोई घर ऐसा नहीं जहाँ युग निर्माण साहित्य न पहुँचा हो।


(९६) ज्ञान यज्ञ— नव निर्माण का महानतम अभियान

प्रश्न ——
(१) युग की अशान्ति, आशंका एवं असन्तोष का मूल कारण क्या है? (२) वर्तमान नाटकीय वातावरण को स्वर्गीय सुषमा में कैसे बदला जा सकता है? (३) मानवीय सुख-शान्ति बढ़ाने के लिये आजकल क्या किया जाता है? वास्तव में क्या किया जाना चाहिये? (४) सद्बुद्धि के संस्थापन हेतु क्या किया जाना चाहिये? (५) ‘ज्ञानयज्ञ’ अभियान से क्या समझते हो। इसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कार्य पद्धति पर प्रकाश डालें? (६) ज्ञानयज्ञ का प्रयोजन समझाइए? (७) युग निर्माण योजना द्वारा किस प्रकार के विचार प्रसारित किये जाते हैं? (८) ज्ञान यज्ञ के होता उद्गाता कैसे लोग हैं? (९) हर घर की सच्ची सम्पत्ति क्या है? (१०) झोला पुस्तकालय के महत्त्व पर प्रकाश डालिये?

कथाएँ ——
(१) राष्ट्रीय विद्यालय को चलाने के लिये योग्य संचालन की नियुक्ति के बारे में टेढ़ी बात यह थी कि उस पद के लिये ७५) मासिक दिये जा सकते थे पर जिस योग्यता वाले व्यक्ति की आवश्यकता थी वह पाँच-सौ से कम का नहीं हो सकता था तो भी हिम्मत करके विज्ञापन दिया गया। दूसरे दिन जब एक साढ़े सात सौ रुपये मासिक पाने वाला व्यक्ति उपस्थित हुआ तो लोग आश्चर्य में डूब गये और कहने लगे देश समाज की आवश्यकता को समझने वाले त्यागियों की अभी-कमी नहीं यह व्यक्ति बड़ौदा कॉलेज के अध्यक्ष श्री अरविन्द थे जिन्होंने उस सम्मान को ठुकरा कर केवल ५७ रु० तक में काम किया।
(२) चीनी यात्री ह्वेनसाँग नालंदा से पढ़कर लौटा तो अपने साथ बहुत से धर्मग्रन्थ भी लेकर चला। उसे सिन्धु नदी के मुहाने तक पहुँचाने के लिए नालंदा के कुछ छात्र भेजे गये थे वह भी साथ थे। तभी तूफान आ गया और जहाज में पानी भरने लगा। यह देखते ही नालंदा के छात्र पानी में कूद गये पर ग्रन्थों को नष्ट होने से बचा लिया। ह्वेनसाँग इन भारतीयों के ज्ञान के प्रति त्याग और बलिदान भावना से इतना प्रभावित हुआ कि देश जाकर अपना सारा जीवन ही लोगों को सद्ज्ञान बाँटने में लगाया।
(३) मनु ने समझ लिया यह मछली अवतारी है उन्होंने बहुत प्रार्थना की फिर भी उन्हें मत्स्य भगवान ने दिव्य रूप में दर्शन न दिये। एक बार मनु नाव में वेद रखे हुए जा रहे थे कि समुद्र में तूफान आ गया। तूफान शान्त हुआ तो उन्होंने देखा कि एक बड़ी मछली उनकी नाव को सहारा दिये खड़ी है मनु ने विनीत भाव से पूछा-भगवन् आपने ही मेरी रक्षा की आप कौन हैं। मत्स्य भगवान् दिव्य रूप में प्रकट होकर बोले-वत्स तू ने ज्ञान की रक्षा का व्रत लिया इसलिये तेरी सहायता के लिये मुझे आना पड़ा।
(४) स्वामी रामतीर्थ छात्र थे। आर्थिक तंगी के कारण पढ़ने के लिये तेल की कमी पड़ी तो उन्होंने कपड़ों का खर्च कम करके पढ़ना जारी रखा। स्कूल के प्रधानाध्यापक को इस बात का पता चला तो रामतीर्थ की प्रशंसा करते हुये कहा-तुम्हारी जैसी ज्ञान-निष्ठा वाले व्यक्ति ही समाज को प्रकाश देते हैं। प्रधानाचार्य की भविष्य वाणी एक दिन सच हुई और स्वामी रामतीर्थ ने सारे संसार को आध्यात्म ज्ञान दिया।
(५) कांचनी नरेश की राजकुमारी भूत बाधा से पीड़ित थीं। योग्य मन्त्रकार भी राजकुमारी को अच्छा न कर सके तब श्री रामानुज बुलाये गये। उन्होंने प्रेत से पूछा-तुम कौन हो, क्यों तुम प्रेत योनि में आये-भूत ने बताया मैं पूर्व जन्म में विद्वान था पर अपनी विद्या औरों से छिपाई किसी को विद्यादान नहीं दिया उसी से कठिन ब्रह्मराक्षस योनि में पड़ा हूँ आप मुझे स्पर्श करें तो मुक्ति मिले क्योंकि आपने केवल विद्याध्ययन ही नहीं किया समाज को ज्ञान बाँटा भी है। श्री रामानुज ने राजकुमारी के मस्तक का हाथ से स्पर्श किया जिससे प्रेत की मुक्ति हुई।
(६) बड़े लड़के का शहर में विवाह किया गया। बहू आई तो देखा शाम हो गई है घर में अन्धकार घिरा है पर दीपक नहीं जला। उसने पूछा दीपक क्यों नहीं जलाते घर वालों ने पूछा-दीपक क्या होता है? बहू अपने साथ माचिस लाई थी उसने तेल बत्ती मिलाकर दीपक जलाया। अन्धकार मिट गया तो सब बड़े प्रसन्न हुए और नई बहू को देवी मानकर पूजा करने लगे। अज्ञानान्धकार में भटकते जन जीवन को ज्ञान का प्रकाश देते हैं उन्हें बहू की तरह प्रतिष्ठा मिलती है।


(९७) व्यक्ति और समाज का समग्र निर्माण कर सकने वाली शिक्षा-पद्धति

प्रश्न ——
(१) शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य कितने व कौन-कौन से हैं? (२) प्राचीनकाल में भारत की शिक्षा प्रणाली कैसी थी? (३) सिद्ध कीजिये कि प्रगति का मूल मन्त्र शिक्षा पद्धति है? (४) वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोष बताइये? (५) शिक्षा में परिवर्तन जन सहयोग से कैसे संभव है? (६) युग निर्माण शिक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिये। (८) छात्रों द्वारा सीखे जाने वाले गृह उद्योगों पर प्रकाश डालिए। (९) जीवन निर्माण की कला से क्या समझते हैं? (१०) रात्रि पाठशालाओं की आवश्यकता क्यों है?

कथाएँ ——
(१) गाँधी जी से एक व्यक्ति ने पूछा-आप बुनियादी शिक्षा पर इतना जोर क्यों देते हैं। गाँधी जी बोले यदि बुनियादी शिक्षा के माध्यम से बच्चों को दस्तकारी और उद्यम उद्योग न सिखाये गये तो शिक्षा बेरोजगारी की समस्या बन जायेगी। उस समय लोगों ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया पर आज उसी गलती का फल लाखों बेरोजगारों के रूप में दिखाई पड़ रहा है।
(२) ब्रिटिश सरकार ने देखा यदि भारतीयों पर देर तक शासन करना है तो उनके मस्तिष्क बदलने चाहिये फल स्वरूप यहाँ की शिक्षा पद्धति बदली गई। यह देखकर स्वामी श्रद्धानन्द बड़े दुःखी हुए उन्होंने अथक परिश्रम करके आदर्श शिक्षा वाली संस्था की नींव डाली जो आज गुरुकुल काँगड़ी के रूप में इस देश की संस्कृति को बचाये हुए हैं।
(३) राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने वृन्दावन में प्रेम महाविद्यालय खोला जिसमें पढ़ाई के साथ दरिया और चटाई बुनना दूसरे दस्तकारी के काम सिखाये जाते और देश-सेवा के भाव भी भरे जाते। इस विद्यालय ने देश को सम्पूर्णानन्द जैसे नेता दिये और आप भी पालीटेक्निक विद्यालय के रूप में सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रहा है।
(४) हाथ पर हाथ रखे बैठे पुत्र को देखकर पिता ने कहा बेटा तू तो इतना पढ़ा लिखा है बेकार क्यों बैठा है-लड़का बोला-पिताजी क्या करूँ कोई नौकरी नहीं मिलती पिता का हृदय धक कर के रह गया उसने कहा-जो शिक्षा हम को उद्यमी नहीं बना सकती उससे तो अनपढ़ किसान अच्छा जो सैकड़ों को पेट तो भर लेता है।
(५) कक्षा १० तक पढ़ा राजस्थान का एक छात्र नौकरी के लिए मारा-मारा घूम रहा था कहीं भी कोई सौ रुपये मासिक वेतन देने को तैयार न था तभी उसे युग निर्माण विद्यालय का पता चला। उसने एक वर्ष शिक्षण लेकर प्रेस उद्योग सीखा आज उसका निजी प्रेस है और अपने से अधिक पढ़े उसके नौकर।
(६) एक जापानी से एक हिन्दुस्तानी ने पूछा-हमारा देश खनिजों की दृष्टि से ज्यादा समृद्ध है पर उन्नति आप लोग कर रहे हैं यह क्यों? जापानी ने उत्तर दिया हम मेहनत करना जानते हैं। उद्योग करना जानते हैं आपके देश से एक रुपये का (कच्चा लोहा) खरीद कर उसका इस्पात बनाकर आपको ही तेरह रुपये में बेंच देते हैं। हिन्दुस्तानी समझ गया जब तक उद्योग विकसित नहीं होंगे तब यह देश उन्नति करेगा।
(७) दो युवकों में बड़ी मित्रता थी। कुछ दिन पीछे एक ने क्लर्क की नौकरी कर ली उसे दो सौ रुपये मासिक मिलने लगे दूसरे ने साबुन बनाना शुरू कर दिया तो उसके उत्पादन की बचत तीन सौ रुपये मासिक निकलीं। दस वर्ष बाद क्लर्क की तनख्वाह तीन सौ रुपये हो गई जब कि दूसरे ने एक साबुन-फैक्ट्री लगा ली। क्लर्क ने यह देखा तो उसके मुँह से यही निकला-उद्योगिन पुरुष सिंह मुपेति लक्ष्मी। उद्योगी व्यक्ति ही लक्ष्मी पैदा करते हैं।


(९८) कला लोकरंजन व भावनाओं का परिष्कार करे

प्रश्न ——
(१) कला एक संगीत का मुख्य प्रयोजन क्या है? (२) आजकल पैसा का दुरुपयोग अधिक हो रहा है सदुपयोग क्यों नहीं? कारण सहित समझाइए? प्राचीनकाल में कला का उपयोग किसलिए किया जाता था? (४) किन कला प्रयासों को सार्थक कहा जा सकता है? (५) मनोरंजन की सुरुचिपूर्ण योजनाएँ किस प्रकार चलाई जा सकती हैं? (६) वर्तमान फिल्मों में क्या त्रुटियाँ हैं फिल्म उद्योग का उपयोग सत्प्रवृत्तियों की प्रसन्नता हेतु कैसे किया जा सकता है? (७) न्यायालयों का मुख्य प्रयोजन क्या होना चाहिए? (८) कला का उपयोग युग निर्माण हेतु कैसे किया जा सकता है?

कथाएँ ——
(१) आचार्य धौम्य एक नृत्योत्सव में सम्मिलित हुए। उसमें उनका एक शिष्य भी था। दूसरे दिन पाठ चल रहा था उस समय शिष्य ने आचार्य पर आक्षेप किया तो आचार्य धौम्य ने बताया-तात कला और रस उपेक्षणीय नहीं उनकी विकृति की उपेक्षा की जानी चाहिए।
(२) हरिद्रुमत की कन्या निश्चला के सौन्दर्य से मोहित होकर राजकुमार कुशलाश्व ने उनसे विवाह का प्रस्ताव किया किन्तु निश्चला ने उसे ठुकराते हुए कहा-मैं राज्य भोग प्राप्त करने की अपेक्षा अपनी कला और संस्कृति को जीवन देने वाली साधना करना चाहती हूँ। उन्होंने गंधर्वराज अथर्व सेन के पुत्र से विवाह कर लिया और आजीवन शास्त्रीय संगीत का प्रसार-प्रचार करती रहीं।
(३) विष्णु दिगम्बर पुलुत्स्कर ने एक पत्रकार से पूछा-आपका शास्त्रीय संगीत प्रसार आज के सिनेमा-संगीत के सामने कहाँ टिक सकता है। इस पर पुलुत्स्कर ने कहा-मैं तब तक अपने प्रयत्नों से निराश नहीं हो जाऊँगा जब तक इस देश के लोग यह नहीं मान लेंगे कि कला का उद्देश्य लोकरंजन नहीं भावनाओं का परिष्कार है भले ही मुझे और भी जन्म क्यों न लेने पड़ें।
(४) एक विदेशी चित्रकार से एक व्यक्ति ने पूछा-आजकल कामोत्तेजक चित्र ही अधिक पसन्द किये जाते हैं वही छपते और बिकते भी अधिक हैं फिर आपके इन आदर्शवादी चित्रों को कौन खरीदेगा? सारी दुनियाँ खरीदेगी और लगायेगी चित्रकार ने उत्तर दिया आज न सही पर कामोत्तेजक चित्रों की बुराइयाँ जब पूरी तरह उभर उठेंगी तो लोगों को उन्हें जलाने और उनके स्थान पर अच्छे चित्र लगाने की उपयोगिता सूझेगी ही।
(५) अश्लील चित्रों, पोस्टरों और साहित्य की होली जलाई जा रही थी। कुछ लोग उछल-उछल कर ढेर में आग लगा रहे थे। तभी वहाँ पहुँचे बिनोवा जी और बोले-जितना उत्साह आप लोग बुरा साहित्य और बुरे चित्र जलाने में दिखाते हैं उतना ही श्रेष्ठ और नैतिक उत्थान के प्रेरक साहित्य सिनेमा और चित्रों के निर्माण में उत्साह दिखायें तो खराब साहित्य फूँकने की नौबत ही न आये।
(६) गाँधी जी सलाह पर एक नशा विरोधी प्रदर्शनी लगाई गई एक सज्जन ने पूछा-बापू इससे कितने लोग नशेबाजी छोड़ेंगे? इस पर बापू बोले यदि सिनेमा के पोस्टर लोगों को मुफ्त शिक्षा दे सकते हैं तो यह चित्र लोगों को प्रेरणाएँ क्यों नहीं देंगे। उस प्रदर्शनी के बाद सौ व्यक्तियों ने शराब ताड़ी और धूम्रपान का परित्याग किया।
(७) एक समाज सेवी नेता भाषण दे रहे थे और कह रहे थे यह बड़े दुःख की बात है कि आज के छात्र उपन्यास पढ़ते हैं अश्लील कहानियाँ पढ़ते हैं रामायण और गीता नहीं पढ़ते।
एक युवक ने खड़े होकर कहा श्रीमान् जी इसलिये कोसिए उन प्रकाशकों को जो बुरा साहित्य छापने का पाप करते हैं उन साहित्यकारों को जो अश्लील साहित्य तैयार करते हैं। उन दुकानदारों को जो ऐसा साहित्य बेचते हैं और उन समाज सेवियों को भी जो बुराइयाँ अधिक करने पर आदर्श कुछ नहीं रखते? उस दिन से वह सज्जन सभाओं में भाषण करने की अपेक्षा झोला पुस्तकालय चलाने लगे।


(९९) रचनात्मक कार्यक्रमों से ही देश समर्थ बनेगा

प्रश्न ——
(१) रचनात्मक कार्यक्रमों का क्या प्रयोजन है? (२) युग निर्माण योजना के रचनात्मक कार्य क्या हैं? (३) रचनात्मक कार्यक्रम के अन्तर्गत शिक्षा का प्रसार एवं फैलाव किस तरह किया जाना चाहिए? (४) कुटीर उद्योगों को किस प्रकार चलाना चाहिए? (५) अन्न की उपज बढ़ाने तथा खाद्य वस्तुओं में देश को आत्म निर्भर करने के लिये क्या प्रयत्न होने चाहिए? (३) स्वास्थ्य और मनोबल बढ़ाने के लिए किस तरह की कार्य प्रणाली अपनानी चाहिए? (७) लोक शिक्षण के लिए क्या-क्या कार्य किया जा सकता है? (८) सेवा दलों के संगठन का महत्त्व रचनात्मक कार्यों के अन्तर्गत क्यों है? (९) क्या पुस्तकालयों की आज के समय में अत्यन्त आवश्यकता है?

कथाएँ ——
(१) खान अब्दुल गफ्फार से एक पत्रकार ने प्रश्न किया-आप इतना कम भाषण क्यों देते हैं? सीमान्त गाँधी ने उत्तर दिया-अब भाषणों को नहीं रचनात्मक कार्यक्रमों का युग है किसी से कुछ कहने की अपेक्षा कुछ करके दिखाने से कहीं अधिक प्रेरणा मिलती है।
(२) महाराज युधिष्ठिर से कक्षा अध्यापक ने पूछा-पाठ याद कर लाये। पाठ था ‘‘सत्यंवद’’ युधिष्ठिर ने कहा अभी नहीं। दो तीन दिन तक यही उत्तर मिला तो अध्यापक ने खीझकर कहा-तुम इतना छोटा सा पाठ भी नहीं सीख सके। युधिष्ठिर बोले श्रीमान् जी पाठ तो याद हो गया है पर वह जीवन में उतरे नहीं तब तक उसकी क्या सार्थकता? अध्यापक और विद्यार्थी यह सुनकर अवाक् रह गये।
(३) ऑफिस सैनिकों को डाँटे जा रहा था फिर भी लकड़ी का लट्ठा नहीं उठ पा रहा तथा तभी उधर से निकला एक अश्वारोही। घोड़े से उतर कर उसने सिपाहियों से कहा लो हम भी हाथ लगायें आओ तो सभी एक साथ उगायें? और इस बार लट्ठा उठ गया। घोड़े पर चढ़ते हुए युवक ने अफसर से कहा-आज्ञा देना ही काफी नहीं खुद करके भी दिखाना चाहिए। अफसर ने पहचाना वह घुड़सवार और कोई नहीं विश्वविजेता नैपोलियन बोना पार्ट है।
(४) स्व० प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पार्लियामेण्ट से लौटकर आते तो घर की वाटिका में शाक-भाजी लगाते उसे पानी डालते गोड़ाई करते? नौकर ने कहा-श्रीमान् जी हम करेंगे यह काम आप क्यों करते हैं, इस पर शास्त्री ने कहा-उपदेश केवल वाणी से नहीं क्रिया से भी दिया जाता है हम परिश्रम करेंगे तो देश के किसानों में परिश्रम का भाव कैसे उत्पन्न होगा।
(५) ग्रामीणों को सफाई का महत्त्व समझाने के लिये गाँधीजी ने सफाई दल तैयार किया वे लोगों में जाते पर कोई उनकी बात नहीं सुनता। गाँधीजी ने दूसरे दिन से वर्धा के समीप गाँवों में जाना और झाड़ू लेकर सफाई करना शुरू कर दिया। देखते-देखते सारे गाँव वाले उमड़ पड़े और सफाई में जुट गये। गाँधीजी ने स्वयं सेवकों से कहा-जो कहना चाहते हो उसे करके भी दिखाओ।
(६) राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक गाँव है पार्लू। इस गाँव के सभी लोगों ने प्रतिज्ञा करके धूम्रपान छोड़ दिया। दुकानदारों ने बीड़ी, सिगरेट बेचना बन्द कर दिया। उससे हुई बचत इकट्ठी की गई तो गाँव की सम्मिलित वार्षिक बचत ६००० रुपये की हुई। इस समाचार ने ही हजारों अन्य लोगों को प्रभावित किया और सैकड़ों अन्य लोगों ने स्वतः ही धूम्रपान छोड़ दिया।
(७) महर्षि कर्वे ने स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रौढ़ पाठशाला चलाई। लोगों ने उसका विरोध किया पर वे अपने प्रयत्नों में जुटे रहे और अन्त में वही विद्यालय भारत वर्ष का पहला कन्या डिग्री कॉलेज बना।
(८) स्वतंत्रता आन्दोलन चला रहा था। गाँधीजी ने कहा-जब तक अँगरेज सरकार यह नहीं समझती कि भारतीय हमारी बात नहीं मानेंगे वे अपनी व्यवस्था आप जुटा सकते हैं झुकेगी नहीं अतएव रचनात्मक कार्यक्रम प्रारम्भ करना चाहिए। नमक सत्याग्रह पहना कार्यक्रम था जिससे सारे देश में सत्याग्रह की लहर जाग पड़ी।


(१००) अनीति, असुरता के विरुद्ध प्रबल संघर्ष किया जायेगा


प्रश्न ——
(१) गीता के रहस्यवाद से क्या समझते हो? मानव के आंतरिक शत्रु कौन-कौन से हैं (२) अनीति को रोकने के लिए कठोर कदम उठाना क्यों आवश्यक है। (३) समाज की वर्तमान स्थिति में किसी भी व्यक्ति पर सहज जी विश्वास करना खतरे से खाली नहीं है? इस वाक्य का मर्म समझाइए। (४) वर्तमान समाज की प्रगति में कौन-सी कुरीतियाँ आड़े आ रही हैे? उनके उन्मूलन हेतु सुझाव देवें (५) इस युग में बहादुर किस माना जायेगा (६) हमारे समाज के प्रमुख कलंक कौन से हैं? उनसे बचने के उपाय बताओ? (७) आगामी युग में कैसे परिवारों की स्थापना करनी होगी। (८) अवांछनीय तत्त्वों का उग्र प्रतिरोध कैसे किया जायेगा? (९) ठगी एवं हरामखोरी को बन्द करने के लिए कौन से कदम उठाये जायें। (१०) संघर्ष की बहुमुखी प्रचण्ड प्रक्रिया से क्या समझते हो।

कथाएँ ——
(१) अकबर ने राणा प्रताप को संदेश भेजा कि यदि आप हमसे शत्रुता छोड़ दें और सन्धि कर लें तो आपको यों जंगल-जंगल भटकना न पड़े। आप जो भी राज्य चाहें हम दे सकते हैं।
अकबर के प्रलोभन को ठुकराते हुए महाराणा प्रताप ने लिखा-अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये मुझे जंगल-जंगल भटकना तो क्या, प्राण देना पड़े तो भी स्वीकार पर पर किसी प्रलोभन के आगे झुकना स्वीकार नहीं।
(२) समर्थ गुरु रामदास से दीक्षा लेने के बाद शिवाजी ने कहा-गुरुदेव आदेश दीजिये आपकी गुरुदक्षिणा कैसे चुकाऊँ।
शिवा तू धर्म और संस्कृति के लिये आजीवन युद्ध कर यही मेरी गुरु दक्षिणा है। गुरु रामदास ने कहा। यह मानते हुए भी कि विदेशियों से लड़कर जीतना कठिन कार्य है शिवाजी ने गुरु का आदेश सहर्ष शिरोधार्य किया और आजीवन मुगलों से लड़ते रहे। उनके इस शौर्य से भारतीय इतिहास के पन्ने अनन्तकाल तक जगमगाते और अपनी संस्कृति की रक्षा की प्रेरणा देते रहेंगे।
(३) कुमारगुप्त मगध के राजा थे उन दिनों हूण मगध पर निरंतर आक्रमण करते प्रजा को कष्ट देते और उनका धन लूट ले जाते। कुमारगुप्त अनुभव कर रहे थे कि हूणों की संगठित-शक्ति का मुकाबला नहीं किया जा सकता तब उनके पुत्र राजकुमार स्कन्दगुप्त तैयार हुए और पिता से युद्ध की आज्ञा माँगी।
कुछ तो छोटी-आयु कुछ पुत्र स्नेह वश कुमारगुप्त आज्ञा नहीं दे रहे थे तब स्कन्द गुप्त ने कहा-पिताजी का डटकर मुकाबला करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है यदि उसमें प्राण भी चले जायें तो क्या होगा। पिता ने आज्ञा दे दी। समुद्र गुप्त ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद हूणों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें परस्त कर विजय प्राप्त की। जनता ने उनका जो स्वागत किया कहते हैं इतिहास मैं वैसा अभूत पूर्व स्वागत किसी को नहीं मिला।
(४) रावण ने एक और कूटनीतिक चाल फेंकी। बोला-अंगद जिस राम ने तेरे पिता को मारा तू उन्हीं की सहायता कर रहा है मेरे मित्र का पुत्र होकर भी तू मुझसे बैर कर रहा है।
अंगद हँसा और बोला रावण अन्यायी से लड़ना और उसे मारना ही सच्चा धर्म है चाहे वह मेरा पिता हो अथवा आप ही क्यों न हो?
अंगद के यह तेजस्वी शब्द सुनकर रावण को उत्तर देते न बना।
(५) समुद्र बाँधा जा रहा था तब तक एक गिलहरी भी अपनी पूँछ-में थोड़ी मिट्टी भरकर लाती और समुद्र में पटक देती। उसका यह श्रम देख राम ने पूछा-गिलहरी तेरे बालों में रत्तीभर मिट्टी आती हैं फिर परिश्रम से क्या लाभ। गिलहरी बोला भगवन् असुरता को मिटाने में यदि मैं थोड़ा भी सहयोग कर सकती हूँ तो उससे पीछे क्यों हटूँ। थोड़ा ही सही समुद्र कुछ तो पुरेगा।
अतिशय प्रसन्न हुए राम ने गिलहरी की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा-अनीति के विरुद्ध जहाँ तुम्हारी जैसा निष्ठा होगी वहाँ असुरता कभी ठहर न सकेगी।
(६) दुष्ट अलाउद्दीन खिलजी को संधि वार्ता के अनुसार पद्मिनी का चित्र दर्पण में देखकर लौट जाना था पर उसका असुर जाग उठा उसने राणा भीम सिंह को धोखे से बन्दी बना लिया।
राजपूत अब यह निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि राणा को कैसे छुड़ाया जाये तब १२ वर्षीय वीर बालक बादल और गोरा ने दुश्मन से निबटने की ठानी उन्होंने खिलजी को संदेश भेजा कि महारानी पद्मिनी का डोला आ रहा है स्वयं डोले में बैठकर और साथ में कहारों के रूप में अपने सैनिक लेकर उन्होंने खिलजी पर आक्रमण कर दिया। स्वयं शहीद हो गये पर उन्होंने राणा भीमसिंह को कैद से छुड़ा लिया और अलाउद्दीन को डेरा समेट कर भाग खड़े होने का विवश कर दिया।
(७) सीता की करुण पुकार सुनते ही जटायु बाहर निकल आया और महाबली रावण पर आक्रमण कर दिया। रावण ने तलवार से उसके पंख काटते हुए कहा-तुच्छ गिद्ध! रावण से टकराने का परिणाम क्या होता है ले उसे भुगत।
धराशायी जटायु ने कहा-दुष्ट रावण मरना तो मुझे था ही कल नहीं आज ही सही पर याद रख जो भी लोग यह घटना सुनेंगे वह छोटे और मेरी तरह कम शक्ति वाले होंगे तो भी अपनी आँखों के आगे अनीति और अत्याचार होते न देखेंगे।
(८) तुर्की ने कीशूट को कैद कर दिया। जेल में पड़े कीशूट के सामने शर्त रखी गई यदि आप इस्लाम स्वीकार कर लें तो आपको मुक्त किया जा सकता है।
कीशूट ने विचार किया और हँसकर उत्तर दिया-मृत्यु और लज्जा इन दोनों से किसे स्वीकार किया जाये आज तक मेरे सामने ऐसी उलझन नहीं पड़ी। मृत्यु जीवन का अनिवार्य रुख है तो फिर उससे डरकर अपना सिर क्यों नीचा करूँ।’ जब मेरे पास सब कुछ था तब मैंने अपना धर्म न बदला, आज केवल वही मेरा साथी है तो मैं उसे कैसे छोड़ दूँ? ईश्वर की आज्ञा पूरी करो। मरने के लिये तैयार हूँ कलंक लगाने के लिये नहीं।
(९) चलते-चलते शाम हो गईं तो गुरुनानक पास के गाँव में एक निर्धन किसान के यहाँ ठहर गये। उस गाँव के सेठ ने यह सुना कि आज रात्रि को गुरु नानक यहीं विश्राम कर रहे हैं तो वह भी उनके दर्शन के लिए गया। उस समय नानक भोजन कर रहे थे।
भोजन में सूखी रोटी और दाल थी। ऐसा रूखा-सूखा भोजन करते नानक को देखा तो उस सेठ को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा-आप ऐसा भोजन क्यों कर रहे हैं? इस गाँव मे तो जो भी कोई सन्त महात्मा आता। है वह मेरे यहाँ ही ठहरता है। नानक ने बड़ी शान्ति से उत्तर दिया-महोदय मैं तो श्रम की कमाई से उत्पन्न अमृत खा रहा हूँ।’’ निर्धन व्यक्ति के शोषण से बने पकवान मुझे पसन्द नहीं हैं।
(१०) सन् १८८५ पूना के न्यू इंग्लिश हाईस्कूल में समारोह के समय प्रमुख द्वार पर एक स्वयं सेवक को इसलिये नियुक्त किया गया कि वह आने वाले अतिथियों के निमन्त्रण पत्र देखकर सभास्थल पर यथास्थान बिठाल सके। उस समारोह के मुख्य अतिथि थे चीफ जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे। जैसे ही वह विद्यालय के फाटक पर पहुँचे वैसे ही स्वयं सेवक ने अन्दर जाने से रोक दिया और निमन्त्रण पत्र की माँग की। ‘बेटे! मेरे पास तो कोई निमन्त्रण पत्र है नहीं।’ रानाडे ने कहा। ‘तब आप अन्दर प्रवेश न कर सकेंगे।’ स्वयं सेवक ने आपत्ति की। द्वार पर रानाडे को रुका देख स्वागत समिति के कई सदस्य आ गये। और उन्हें अन्दर मंच की ओर ले जाने का प्रयास करने लगे। पर स्वयं सेवक ने आगे बढ़कर कहा-श्रीमान् मेरे कार्य में यदि स्वागत समिति के सदस्य ही रोड़ा अटकाएँगे तो फिर मैं अपना कर्तव्य कैसे निभा सकूँगा? भेदभाव की नीति मुझसे नहीं बरती जायेगी। उस स्वयं सेवक की कर्तव्य निष्ठा, साहस और निर्भीकता से रानाडे बहुत ही प्रभावित हुए। यह छात्र आगे चलकर गोपाल कृष्ण गोखले हुआ।