कामधेनु है गायत्री

गायत्री महामंत्र से संबंधित विभिन्न विषयों का प्रतिपादन करने हेतु जितनी विपुल मात्रा में परमपूज्य गुरुदेव ने लिखा-बोला एवं प्रचारित किया है, उतना भारतीय संस्कृति के इतिहास में शायद ही किसी महामानव के द्वारा संपन्न किया गया होगा। उनके विशिष्ट उद्बोधनों की यह एक विशेषता है कि वे गायत्री मंत्र से संबंधित समस्त विषयों का प्रतिपादन अपने श्रोताओं के लिए अत्यंत ही सहजता के साथ कर देते हैं। प्रस्तुत उद्बोधन में भी परमपूज्य गुरुदेव गायत्री महामंत्र के एक ऐसे ही पक्ष को साधकों के लिए उद्घाटित करते नजर आते हैं। वे कहते हैं कि गायत्री मंत्र के अंदर सभी शक्तियाँ समाहित हैं, परंतु उनकी प्राप्ति करने के लिए साधक में प्रचंड पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है। इसी को वे एक तरह का कर्मयोग बताते हैं। आइए हृदयंगम करते हैं उनकी अमृतवाणी को........

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

एक प्रचंड पुरुषार्थ की आवश्यकता

मित्रो, देवियो, भाइयो! कीमती चीजें-बहुमूल्य चीजें प्राप्त करने के लिए समद्रमंथन जैसा संयुक्त पराक्रम करना पड़ता है। प्रयत्न ही नहीं, प्रचंड पुरुषार्थ करना पड़ता है। कहते हैं कि देवता और असुरों के सहयोग से समुद्रमंथन संपन्न हुआ, जिससे अनेक बहुमूल्य रत्न मिले। प्रस्तुत समय की भी बहुत बड़ी आवश्यकता है—अध्यात्म और विज्ञान के बीच ऐसा सहयोग पैदा किया जाए। आग और पानी के बीच फिर से सहयोग पैदा किया जाए और सहयोग पैदा करने के बाद में दुनिया के लिए नई शानदार चीजें पैदा की जाएँ। नई परंपराएँ पैदा की जाएँ।

आजकल हमारा ब्रह्मवर्चस रिसर्च संस्थान इसी काम में लगा हुआ है और आप देख पाएँगे कि शायद नई पीढ़ी के लोग इसी तरह से रिसर्च किया करें, जैसा कि कार्लमार्क्स की बाबत सोचा जाता है। जिसने साम्यवाद के बारे में एक ऐसा फॉर्म्यूला पेश किया कि इससे पहले किसी ने पेश नहीं किया।

मित्रो! रूसो के बारे में कहा जाता है कि डेमोक्रेसी की बाबत उसने ऐसे फॉर्म्यूले पेश किए, जो इससे पहले कभी नहीं पाए गए। जनता पर जनता का राज्य—यह भी कोई बात है ? हर आदमी को आर्थिक क्षेत्र में समान अधिकार मिलना चाहिए, भला यह भी कोई बात है? पाँचों उँगलियाँ छोटी-बड़ी होती हैं और हरेक को अलग रहना चाहिए: लेकिन उसके फॉर्म्यूले अपने थे। जिंदगियाँ उसकी कायल हो गईं और कायल होती चली जा रही हैं।

साथियो! हम अपना फॉर्म्युला पेश करने जा रहे हैं, जो विज्ञान और अध्यात्म को लड़ाई नहीं लड़ने देगा। अब नास्तिक और आस्तिक मिलकर के एक नई दिशा में चलेंगे और दोनों मिलकर के कदम उठाएँगे। आप देखना, अभी हमको मरने में कुछ देर है। मरने से पहले हमारी ब्रह्मवर्चस की रिसर्च का ऐसा शानदार अनुभव होगा, जिसे न केवल आप; वरन सारी दुनिया यह याद करती रहेगी कि एक शानदार आदमी आया था, जो ऐसे फॉर्म्यूले पेश करके गया है। जिससे विज्ञान और अध्यात्म की लड़ाई खतम हो गई और दोनों ने एकदूसरे के साथ में अपने को ऑपरेट करना शुरू कर दिया। यह धर्म की बात है।

मित्रो! आपसे यह मैं किसकी बात कह रहा हूँ? गायत्री की प्रैक्टिस की बात कह रहा हूँ। हमने गायत्री की प्रैक्टिस की है। छह घंटे रोज के हिसाब से हमने मुद्दतों उपासना की है। चौबीस साल तक जौ की रोटी और छाछ के ऊपर हम निर्भर रहे हैं। उसके फायदे आपको दिखाई पड़ते हैं कि नहीं दिखाई पड़ते। आपको दिखने चाहिए। हमने सत्तर साल की उम्र में इस शरीर से बिना स्टेनो की मदद के, बिना टाइपिस्ट की मदद के, बिना सेक्रेटरी की मदद के, बिना पी०ए० की मदद के इतना काम किया है, जो एक आदमी नहीं कर सकता। महाभारत के बारे में बताया गया है कि व्यास जी बोलते गए थे और गणेश जी स्टेनो का काम करते थे। एक अनुपम चीज लिखी गई, जिसको 'महाभारत' कहा जाता है। हमने उन सारे-के-सारे ग्रंथों को अपनी जिंदगी में इन्हीं उँगलियों के सहारे, इसी पेन-कलम के सहारे लिखकर के रख दिया।

कार्य में सफलता के तरीके

मित्रो! किसी भी कार्य को पूर्णता तक पहुँचाने का एक तरीका है। काम की क्वालिटी बढ़ाने का तरीका यह नहीं है कि आप परिश्रम करते हैं कि नहीं, परिश्रम ही काफी नहीं है। परिश्रम के साथ परिश्रम को हम कर्मयुक्त बना देंगे, तो हमारे लिए भौतिक और आध्यात्मिक हर तरह की उन्नति का दरवाजा खुल सकता है, अगर उसमें तीन बातें जुड़ी हुई हों तब—एक तो काम में हमारी कितनी ज्यादा दिलचस्पी है और दूसरी कितनी तन्मयता के साथ करते हैं। इसको हम यह मानकर चलें कि काम और हम दोनों एक ही हो गए हैं।

तीसरा—काम के प्रति हमारे मन में जिम्मेदारी का भाव हो। यह भाव हो कि इसका सामाजिक जीवन से ताल्लुक है। हम एक इकाई हैं, एक घटक हैं । यह कार्य हमारे लिए और सारे समाज के लिए लाभदायक हो सकता है। हम एक परंपरा बना सकते हैं, जो हमारे बच्चों में चली आएगी और सबमें चली आएगी। इसलिए काम को हमें उत्तरदायित्व मानकर करना चाहिए, ईमानदारी से करना चाहिए। अगर हम अपने कार्यों को इस तरीके से करेंगे, तो कहीं भी, जो भी काम हमारे हाथों में सौंपे जाएँगे, हम उन्नतिशील होते जाएँगे और आगे बढ़ते हुए चले जाएँगे।

मित्रो! साधना से सिद्धि मिलती है, जीवन में चमत्कार आते हैं, भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह इस बात पर निर्भर है कि हम जीवन को किस तरह से जीते हैं ? कर्म करने की कुशलता ही योग है। कर्मयोग का यह मंत्र मुझे 15 वर्ष की उम्र में गाँधी जी से मिला। उन्होंने मुझे यह बताया कि यहाँ हम आदमियों को यह पढ़ाते हैं कि उनको जो भी काम सौंपा जाएगा, चाहे वह लकड़ी चीरने का हो, या मल-मूत्र साफ करने का हो, आदमी इस ढंग से करेगा कि उसका स्वभाव, उसके काम करने का क्रम, उसके सोचने का तरीका, उसका अभ्यास ऐसा बन जाएगा कि जो भी काम करेगा, उसमें उन्नति होती चली जाएगी।

गाँधी जी ने जो कहा, मैंने उसी आधार पर अपनी उन्नति की है। जिंदगी में जो भी काम मेरे जिम्मे आए या सौंपे गए, उनको मैंने इतनी तन्मयता से, इतनी मुस्तैदी से, इतनी ईमानदारी से पूरा किया कि वे काम मेरे लिए वरदान होते चले गए। वही काम मेरे लिए योगाभ्यास होते चले गए। वही काम मुझे ऊँचा उठाते हुए चले गए।

कर्मयोग का मंत्र

मित्रो! मैंने समझ लिया कि गाँधी जी ने मुझे जो सिखाया है, वह कोई जादू तो नहीं है। जादू किसे कहते हैं ? इस हाथ दे, उस हाथ ले। मित्रो! ऐसा नहीं हो सकता। हम पेड़ लगाते हैं, तो फल लगने में समय लग जाता है। नहीं साहब! हमें फल चाहिए। नहीं बेटे! ऐसा नहीं हो सकता। बच्चे से हमें जवान बना दीजिए। बच्चा कह रहा है—पिताजी से कि हमको जवान बना दीजिए। हाँ बेटे, जवान बना देंगे। तो हमको अभी जवान बना दीजिए। बेटे, अभी तुझे कैसे जवान बना देंगे। वक्त आएगा तब बनाएँगे? नहीं साहब! हमें तो अभी बना दीजिए। चलो अभी बना देते हैं। बस, चार आने की मूँछें लगा दी, जा तू हो गया जवान। अहाऽऽ—अभी तो नहीं हुआ जवान। आपने तो नकली मूँछें लगा दीं। बेटे, जल्दी में तो ऐसा ही हो सकता है। समय पर सारी चीजें आधारित हैं। समय के आधार पर आदमी अपनी वृत्तियों को, अपनी प्रवृत्तियों को, अपनी आदतों को, अपने स्वभाव को बदलता चला जाता है। परिष्कृत या विकृत होता चला जाता है।

मित्रो! गाँधी जी के कर्मयोग के मंत्र को मैंने अपने जीवन से इस तरह से बाँध रखा है कि मैं रोजाना उनको याद कर लेता हूँ। गायत्री मंत्र तो मैं किसी भी समय कर सकता हूँ, पर गाँधी जी का वह मंत्र, जिसे मैं कर्मयोग का मंत्र कहता हूँ, चमत्कार का मंत्र कहता हूँ, प्रसन्नता का मंत्र कहता हूँ, योग का मंत्र कहता हूँ, उसे गिरह से बाँधकर रखा है और उससे मुझे हर काम में सफलता मिलती हुई चली गई।

मंत्रों ने जो मुझे सबसे बड़े फल दिए हैं, वही कर्मयोग ने दिया है। एक घंटा रोज टहलने की मैंने आदत को बनाकर रखा है। इस एक घंटे रोज टहलने की आदत में मैंने यह नियम बनाकर रखा है कि मैं अध्ययन करूँगा। मेरे पढ़ने का वही समय है। एक घंटे रोज टहलता रहता हूँ और किताबें पढ़ता रहता हूँ। 40 पन्ने रोज पढ़ लेता हूँ, महीने भर में होता है—1250 पन्ने और साल भर में 14500 पन्ने। इसका अर्थ होता है कि जब मैं घूमता रहता हूँ, सफर करता रहता है, उसमें मैं किताब लेकर सफर करता हूँ। अब तक मैंने लाखों पुस्तकें पढ़ ली हैं। इतना मैंने अध्ययन किया है। लोग कहते हैं कि यह चमत्कार है। गुरुजी जो लिखते हैं, तो मालूम पड़ता है कि कितने बड़े अध्ययनशील आदमी हैं। लोग मुझे चलता-फिरता एनसाइक्लोपीडिया कहते हैं। भिन्न-भिन्न विषयों पर इतना ज्यादा गहरा ज्ञान है कि आपको जब कभी भी बहस करना हो, तो मुझसे किसी भी विषय पर आप बहस कर सकते हैं।

मित्रो! यह क्या है ? यह सिर्फ एक घंटे अध्ययन का चमत्कार है और इसके साथ में जुड़ा हुआ मनोयोग, इसके साथ में दिलचस्पी, इसके साथ में तन्मयता, साथ में जिम्मेदारी है। इस एक घंटे ने मुझे विद्वान बना दिया। मेरे क्रम में, मेरे भजन में बेटे, चमत्कार पैदा हो गया, जादू पैदा हो गया। क्यों? क्योंकि जब मैंने भजन किया तब पूरी वृत्ति के साथ, पूरी तन्मयता के साथ, पूरी ईमानदारी के साथ इस तरीके से किया कि बस, वह भजन दिखाई पड़ा और मैं दिखाई पड़ा, कोई दूसरा नहीं दिखाई पड़ा।

जब मैं लेख लिखता हूँ, तो इतना तन्मय होकर कि आप कभी आना और पैर छूना और कहना—गुरुजी! प्रणाम। हाँ बेटे अच्छे हो, कहो भाई लड़के! अच्छे हो। ठीक से पढ़ाई करना, अच्छा जाओ। यह क्रम चलता रहता है। मैं लिखता हुआ चला जाता हूँ और जीभ बोलती रहती है। किससे बोल रहा हूँ, कौन पैर छू गया, किसने पैर छुए? सैकड़ों आदमी आते हैं। गुरुजी ! हमारी प्रार्थना सुनना। बेटे, इस वक्त तो सुन नहीं सकता। यह कौन कह रहा है ? यह जीभ कहती रहती है और मेरा हाथ लेख लिखता हुआ चला जाता है। इतना बारीक और इतना अध्ययन से भरा हुआ लेख लिखता रहता हूँ।

कार्य में तन्मयता लाएँ

मित्रो! यह क्या है ? यह जादू है, चमत्कार है। गुरुजी! आपके लेख बहुत अच्छे होते हैं। हाँ बेटे, हमारे लेख बहुत अच्छे होते हैं और होने भी चाहिए। गुरुजी! आपके व्याख्यान में बड़ा मजा आता है और आपकी व्याख्या बड़ी तीखी और पैनी होती है। हाँ बेटे, तेरे व्याख्यान भी उतने तीखे हो सकते हैं और पैने हो सकते हैं, अगर तू अपने आप को तन्मय कर डाले तब।

तन्मयता अर्थात अपने काम में या काम के प्रति अपने आप को खपा देना और काम में अपने आप को घुला देना। यह मंत्र मुझे पूजा में सफलता दे गया, विद्यार्थी जीवन में सफलता दे गया, सामाजिक जीवन में सफलता दे गया, पुस्तकों के लेखन में सफलता दे गया। जो भी आप मेरी सफलताएँ जानते हैं, उन सब कामों में जिस भी काम को मैं शुरू करता हूँ, उसमें इस कदर खो जाता हूँ कि मुझे पता नहीं चलता। मेरा शारीरिक श्रम, मेरा सारा मनोबल, मेरी अंत:भावनाएँ—तीनों के समन्वय होने से जो भी काम हाथ में लेता हूँ, वे चमत्कार हो जाते हैं, जादू हो जाते हैं। इसका मतलब है कि भजन करने के बाद में, साधना करने के बाद में, गायत्री मंत्र की साधना के बाद में कर्मयोग की साधना करता हूँ। कर्मयोग की जो साधना गाँधी जी ने बताई, उसे मैं करता हुआ चला गया।

मित्रो! अब मैं महात्मा गाँधी बन गया हूँ। अब मेरी मनोकामना पूरी हुई। जब मैं हिंदुस्तान में जहाँ कहीं भी जाता हूँ, अफ्रीका जाता हूँ, जहाँ कहीं भी गया, हजारों आदमियों को उमड़ते हुए देखा। जब मैं अफ्रीका गया, मुझे केन्या जाना था, तो वहाँ तंजानिया वालों ने रोक लिया और कहा कि नहीं साहब! हम आपको नहीं जाने देंगे। हम आपको पानी के जहाज से उतार लेंगे और फिर आपको केन्या भेज देंगे।

इस बीच हवाई जहाज से कितने टेलीग्राम आते रहे। वे कहते कि इतने टेलीग्राम तो किसी के नहीं आते। ये कौन हैं ? जिनके इतने टेलीग्राम रोज आ जाते हैं। उन्होंने मुझे तंजानिया में रोक लिया। दारेस्लाम पर मैंने देखा कि दो-ढाई हजार इंडियन्स खड़े हुए थे; जबकि वहाँ मुश्किल से पाँच सात हजार इंडियन्स रहते थे। वे कहाँ से आ गए? मैंने देखा कि मैं तो महात्मा गाँधी हो गया। मैंने महात्मा गाँधी को देखा था। जब वे इंग्लैंड में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में गए थे, तो उनका स्वागत करने के लिए दो-ढाई हजार आदमी खड़े थे। दारेस्लाम में मैं महात्मा गाँधी हो गया।

मित्रो! दारेस्लाम में मैं जहाँ भी गया, दो हजार से अधिक आदमी मेरी बात सुनने के लिए आए। जब मैंने लोगों से अपील की, उन लोगों ने मेरा स्वागत किया। जनता से जिस काम के लिए कहा, जनता ने मेरी बात को माना। जब मैंने पैसा माँगा, तो मेरे पास पैसा आ गया। महात्मा बनने का मंत्र, सिद्धि और महात्मा गाँधी का चमत्कार देखिए, यह सब मैं कहाँ से सीख करके आया।

इसको मैं कर्मयोग कहता हूँ और आपको सिखाता हूँ। इसको मैं प्रज्ञा कहता हूँ, लोकव्रत कहता हूँ। लोक व्यवहार को जीवन-संपदा के तरीके से उपभोग करना, यद्यपि आप मानते तो हैं, पर इस्तेमाल करना नहीं जानते। आप इस्तेमाल कीजिए, अक्ल का इस्तेमाल कीजिए, भावना का इस्तेमाल कीजिए। आप तो इस्तेमाल नहीं करते, केवल माँगते जाते हैं, पैसा दीजिए। हम आपको पैसा देंगे, तो आप क्या करेंगे? इस्तेमाल तो आप करेंगे नहीं। हम आपकी सेहत अच्छी बना देंगे, पर आप सेहत का करेंगे क्या? यह तो बता दीजिए। आपको तो उपयोग करना आता नहीं। हमें जो चीजें मिली हुई, उनको किस तरीके से ठीक से उपयोग कर सकते हैं और कितने समृद्ध बन सकते हैं, यही जीवन साधना है।

गायत्री से प्रतिष्ठा प्राप्ति ऐसे करें

मित्रो! हमने अपनी जिंदगी को जलती हुई जिंदगी नहीं, सुलगती हुई जिंदगी नहीं, चुभन देती हुई जिंदगी नहीं, काली जिंदगी नहीं, भारभूत जिंदगी नहीं, वरन शानदार, एकांत और शांतिपूर्ण, शक्ति-सामर्थ्यपूर्ण, समृद्धशाली जिंदगी जिया है। आद्य शंकराचार्य 32 वर्ष जिये थे और उन्होंने थोड़ी उम्र में न जाने कितने काम कर लिए और हमने अपनी 71 वर्ष की उम्र में न जाने कितने काम कर लिए। उपासना-साधना की बाबत बताया, अक्ल की बाबत बताया, शक्ति सामर्थ्य की बाबत बताया, समृद्धि की बाबत बताया। अब और क्या बताऊँ, बताइए? अथर्ववेद की बात बताऊँ या आपकी इच्छाओं की बात बताऊँ। चलिए आपकी इच्छा के मुताबिक बात बताता हूँ। अथर्ववेद को जाने दीजिए। आप क्या चाहते हैं ? आदमी दूसरी चीज क्या चाहता है ? आदमी दूसरी चीज चाहता है—इज्जत। हमको इज्जत मिलनी चाहिए। आप इज्जत चाहते हैं ? हाँ साहब! हम जो ठाठ-बाट बनाते हैं, लड़के-लड़कियों की शादियाँ करते हैं। एम०एल०ए० के चुनाव में खड़े होते हैं। यह सब काम इसलिए करते हैं कि दूसरों की आँखों में हमारी इज्जत ज्यादा हो।

मित्रो! जिसको लोग भौतिक लाभ कहते हैं और इसके लिए न जाने कितना पैसा फूँकते हैं और न जाने कितना खरच करते हैं। न जाने कितना ढोंग बनाते रहते हैं, कितने तमाशे बनाते रहते हैं। औरतें जेवर पहनती रहती हैं और ऐसे-ऐसे कपड़े पहनती रहती हैं। ऐसे-ऐसे विन्यास बनाती रहती हैं, जिनको देखकर हँसी आती है।

ऐसा इसलिए करती हैं कि दूसरों की आँखों में उनकी इज्जत बढ़े कि यह लड़की बड़ी खूबसूरत है, बड़ी नौजवान है। बहुत अच्छी मालूम पड़ती है। बड़े अमीर घर की है। इसके लिए न जाने क्या-क्या पहनती हैं और न जाने क्या से-क्या करती हैं ? इज्जत के बारे में यह बात कल हमने बताई थी। आदमी को इज्जत दिलाने में भी हम शानदार काम करते हैं। अभी हमको ग्यारह वर्ष बाद लोगों से मिलना हुआ है, बाहर निकलना हुआ है। सबसे पहले अहमदाबाद जाना हुआ है। अहमदाबाद की, गुजरात की जनता को मालूम हुआ कि आचार्य जी आए हुए हैं, तो रेलवे स्टेशन पर पचास हजार से ज्यादा आदमी इकट्ठे हो गए। रेलवे विभाग को कंट्रोल करना नामुमकिन हो गया। पुलिस के 40-50 सिपाही थे। उन्हें कंट्रोल करने में दिक्कत हुई। लाठी चार्ज कर नहीं सकते थे, गोली चला नहीं सकते थे। अश्रु गैस फेंक नहीं सकते थे।

मित्रो! परिस्थितियाँ ऐसी हो गई कि दो घंटे की जद्दोजहद होने पर भी कोई तरीका नहीं निकल सका। लोग इतने भावुक थे। भावनाओं से भरी हुई जनता, उमड़ती हुई जनता, भावुक जनता यही चाह रही थी कि पहले हमको आचार्य जी को माला पहनानी चाहिए। पहले हमको पैर छूने चाहिए। इसी जद्दोजहद में परिस्थिति ऐसी हो गई कि कोई रास्ता निकल नहीं पाया। फिर हमको पिछले वाले रास्ते से निकलकर भागना पड़ा। सारे-का-सारा कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। जनता का भावावेश रुका नहीं। क्या करते हैं? हम जनता की भावनाओं की इज्जत करते हैं।

इज्जत उसे कहते हैं—जिसके साथ में सहयोग जुड़ा होता है। आपने अगर जेब काट करके इज्जत वसूल की है, चमचों की मदद से इज्जत वसूल की है और अपने पैसे देकर के इज्जत वसूल की है, तो हम नहीं कह सकते; लेकिन आपने अगर कीमत देकर के इज्जत खरीदी नहीं है, तो उसके साथ में एक और चीज जुड़ी होगी। आप ध्यान रखना, उसके साथ में सहयोग भी जुड़ा होगा। सम्मान मिलेगा, तो सहयोग भी मिलेगा, आप ध्यान रखिए।

मित्रो! हमको सम्मान मिला है, तब सहयोग मिला है। गाँधी जी को सम्मान मिला है, तो साथ ही उनको सहयोग भी मिला था। भगवान बुद्ध को सम्मान मिला था, तो उन्हें सहयोग भी मिला था। ईसा को सम्मान मिला, तो सहयोग भी मिला। स्वामी विवेकानन्द को सम्मान मिला था, तो सहयोग भी मिला था। जनता ने हमको भरपूर सहयोग दिया है और जनता ने हमको भरपूर सम्मान दिया है।

क्यों साहब आपके पास क्या चीज है ? हमारे पास वह चीज है—जिसको मैं गायत्री मंत्र कहता हूँ। आप सही तरीके से उसकी उपासना करना नहीं जानते। आप में एक कमी है कि आपको सही तरीका नहीं बताया गया है। जो मेरे पास है, वह आपको नहीं मालूम है। मैं आपको सही तरीका बताने के लिए ही आया हूँ। वे तरीके क्या हैं ? जिससे कि आप में से हरेक आदमी वही फायदे उठा सकता है, जो फायदे हमने उठाए। हमने भरपूर इज्जत पाई है और जनता का भरपूर सहयोग पाया है।

मित्रो! गाँधी जी ने भरपूर इज्जत पाई थी और भरपूर सहयोग पाया था। उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा के लिए, चरखे के लिए करोड़ों रुपये माँगे, तो जनता ने करोड़ों दिए। उन्होंने हिंदुस्तान की आजादी के लिए करोड़ों माँगे, तो लोगों ने करोड़ों दिए। दूसरे फंड के लिए करोड़ों दिए और गाँधी जब शहीद हो गए, तो उनकी स्मृति के लिए जनता ने सौ करोड़ दिए। आप समझते ही नहीं हैं। आप तो बार-बार शिकायत करते हैं कि हमारी बीबी हमको सहयोग नहीं देती। हमारे बच्चे हमारा सहयोग नहीं करते। हमारे पड़ोसी हमारा सहयोग नहीं करते। आपके नौकर आपका सहयोग नहीं करते। आपको कोई सहयोग नहीं करता।

[क्रमशः समापन अगले अंक में]

कामधेनु है गायत्री (उत्तरार्द्ध)

विगत अंक में आपने पढ़ा कि परमपूज्य गुरुदेव अपने साधनापरक उद्बोधन में गायत्री को कामधेनु घोषित करते हुए कहते हैं कि माँ गायत्री की साधना में इतनी शक्ति है कि उनके माध्यम से इस संसार की समस्त विभूतियों का अर्जन संभव है। इसीलिए माँ गायत्री कामधेनु सदृश हैं। पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि माँ गायत्री से ऐसे दैवी अनुग्रह को प्राप्त करने के लिए प्रचंड पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है। जो कर्मयोग को आधार बनाकर अपने जीवन को जीते हैं एवं सदा ईश्वरीय शक्ति को समर्पित होकर जीवन जीते हैं, उन्हें माँ गायत्री के अनुग्रह से संपत्ति, प्रतिष्ठा जैसी लौकिक विभूतियाँ तो प्राप्त होती ही हैं साथ ही उन्हें वे सारी आध्यात्मिक संपदाएँ भी हस्तगत होती हैं, जो साधनात्मक पुरुषार्थ की चरम परिणति कही गई हैं। आइए हृदयंगम करते हैं उनकी अमृतवाणी को.......

इज्जत की कीमत

मित्रो! पिछले महीने अखण्ड ज्योति में एक लेख छपा था। एक कंपनी थी, वह दिवालिया हो गई थी। मालिक ने अपने नौकरों से कहा—"दोस्तो! अब हमारे ऊपर इतना कर्ज हो गया है कि हम अपनी फैक्टरी को चला नहीं सकते। अतः अब हम इसे बंद करने जा रहे हैं। अब आप लोगों का जो पैसा है, उसे हम चुकाना चाहते हैं और आप लोगों की छुट्टी करना चाहते हैं।" उस कंपनी में लोग 70-80 वर्ष से काम कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि आप क्यों बंद करना चाहते हैं ? क्योंकि बैंकों ने हमको पैसा देना बंद कर दिया है और हमारे पास पैसे खतम हो गए हैं। दूसरे दिन उस कंपनी मालिक ने देखा कि जितने भी नौकर थे, सब अपनी-अपनी पासबुक लेकर के लाइन में खड़े थे। उन्होंने उस कंपनी वाले से यह कहा कि आप हमारी पासबुकें ले लें और जो कुछ भी हमारे पास पैसा है, यह हमने आपकी कंपनी से ही कमाया है। इस पैसे को आप अपने लिए खरच कर लें और कंपनी को बंद न करें।

मित्रो! उस कंपनी में 6000 मजदूर काम करते थे। 6000 पासबुकें आ गईं। 6000 पासबुकों में ढेरों पैसे थे। उन ढेर सारे पैसों को लेकर के कंपनी का मैनेजर बैंक मैनेजर के पास गया और बोला कि आप इन 6000 पासबुकों के साथ में जो विड्रॉल फॉर्म लगे हुए हैं, आप इनका पैसा कैश कर लीजिए और अपना पैसा चुका लीजिए तथा हमारी कंपनी बंद मत कीजिए। बैंक के ऑफीसरों की बैठक हुई। उन्होंने कहा कि जिस कंपनी ने इतनी इज्जत कमाई है, जिसका प्रत्येक कर्मचारी अपनी पासबुक उसके हवाले कर रहा है, ऐसी कंपनी के फेल होने की कोई उम्मीद नहीं है। इसलिए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने दोबारा यह फैसला लिया कि हम इस कंपनी को फिर से लोन देना शुरू करेंगे। बैंक से पुन: लोन मिला और कंपनी का काम फिर से चलना शुरू हुआ एवं कंपनी अपनी पहली जैसी स्थिति में आ गई।

मित्रो! मैं यही कहता हूँ कि जहाँ आपको इज्जत मिलती है, वहाँ सहयोग भी मिलता है। आपने तो किसी की इज्जत ही नहीं पाई। न नौकरी में इज्जत पाई, न बाप की इज्जत पाई, न माँ की इज्जत पाई, न भाई की इज्जत पाई। बताइए! पाई इज्जत किसी की, आपको किसी की इज्जत नहीं मिली। किसी को आपसे कोई फरक नहीं पड़ता। परलोक की बात मैं नहीं कहता, स्वर्ग की बात मैं नहीं जानता, अगले जन्मों की बात मैं नहीं कहता। मैं तो इसी जन्म की बात कहता हूँ। मैं जानता हूँ कि आपको सहयोग की जरूरत है।

आप में से कोई भी व्यक्ति इज्जत चाहता है, तो गायत्री मंत्र की उपासना करना प्रारंभ कीजिए। नहीं साहब! उपासना तो हम करते चले आ रहे हैं। जो उपासना आप करते चले आ रहे हैं, उसमें तो बहुत-सी गलतियाँ हैं, बेहद कमियाँ हैं । आप उनको समझ ही नहीं पाए हैं और किसी ने आपको समझाया भी नहीं है। आप समझाएँगे? हाँ, मैं आपको समझाने के लिए ही आया हूँ। इसलिए समझाने के लिए आया हूँ कि चलते-चलाते जो मैंने सत्तर वर्ष में सीखा है और जो मेरे बॉस ने, बुजुर्गों ने सिखाया है; हमसे पहले भी अनेक ऋषियों ने सीखा था और समाज को फायदा पहुँचाया था, उसकी जानकारी आपको भी मिलनी चाहिए।

गायत्री-साधना से संपत्ति की प्राप्ति

मित्रो! हमने इज्जत पाई है और हमने क्या पाया है ? सांसारिक जीव क्या चाहते हैं ? सांसारिक जीव पैसा चाहते हैं। पैसा आपके पास है ? हम आपको क्या हवाला दें कि हमारे पास पैसा है कि नहीं है। आप हमारे मकान देख लीजिए। पैसा वाला होता है, तो कैसे मालूम पड़ता है, बताइए? किसी के यहाँ लड़की या लड़के की शादी के लिए बात करने जाते हैं, तो यह देखते हैं कि अरे! यह लड़की तो लाला जी की है। बड़े मालदार मालूम पड़ते हैं। कैसे? बाहर से ही मालूम पड़ जाता है। आप हमारी कोठी देख लीजिए, हवेली देख लीजिए।

अभी-अभी हमने एक नगर बसाया है। आपका गायत्री नगर तो अलग है। एक छोटा-सा नगर हमने भी बसा रखा है, जिसमें एक सौ फ्लैट बने हुए हैं। आपकी तरह जिन्होंने अपने क्वार्टर बनाए हैं, उन्होंने पैसे दिए हैं। हमारे यहाँ एक ब्रह्मवर्चस रिसर्च इन्स्टीट्यूट है, आप देखिए न। हमारे बारे में तो हमारी संस्था ने भी पैसे दिए हैं। शान्तिकुञ्ज को देखिए, गायत्री तपोभूमि को देखिए, युग निर्माण योजना को देखिए, अखण्ड ज्योति संस्थान को देखिए, आँवलखेड़ा को देखिए। इन पाँच इमारतों को देखिए। इनका एस्टीमेट लगाइए। आज के जमाने में ये संस्थान लगभग करोड़ों की इमारतें हैं।

गुरुजी! आपके पास माल कितना है? बेटे, माल की बात मैं नहीं बताना चाहता। आप में से कोई इनकम टैक्स वाला बैठा हो तो? इसलिए बाकी बात नहीं बताना चाहता हूँ। नहीं साहब! नंबर दो की बात बताइए। बेटे, हमारे चौके में पाँच सौ आदमी नित्य भोजन करते हैं। पाँच सौ से कम आदमी कभी भोजन नहीं करते और कितने खरचे हैं? हम कितने खरचे गिनाएँ। आपके पास पैसे हैं? हाँ, हमारे पास पैसा बहुत है। अभी हम शक्तिपीठें बनाने पर आमादा हो गए हैं। 1000 शक्तिपीठें अंडर कन्स्ट्रक्शन चल रही हैं, जिनकी लागत एक लाख रुपये है। वे छोटी मोटरगाड़ियाँ ले रहे हैं, ताकि देहातों में, गाँवों में विस्तार कर सकें। हर गाँव में छोटी शक्तिपीठ बना रहे हैं, जिनकी लागत बीस हजार रुपये है। चौबीस हजार इमारतों का बनाने का प्लान किया है। उनमें कितना रुपया लगेगा? मैं समझता हूँ कि पचास करोड़ रुपये लगेंगे। पैसा आपको दिखाई नहीं पड़ता। पैसा आदमी की आँखों में से चमकता है। पैसा आपके चेहरे से चमकता है। आपने हमारा चेहरा देखा है।

कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्

मित्रो! और क्या है हमारे पास? हमारे पास है—'कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्।' एक और चीज है। मैं चाहता हूँ कि वह आपके पास भी हो। उस चीज को पाकर के आप निहाल हो जाएँ। वह क्या चीज है? वह है—अपने आप को जानना, तैरना। अपने आप को नदी की धारा में से पार करना। कैसी भी नदी हो, मल्लाह अपने आप को पार कर लेता है। मल्लाह की ताकत यह है कि अपनी नाव को बल्लियों के सहारे घसीट करके इस पार से उस पार ले जाता है। मल्लाह की ताकत वह है, जो अपनी नाव में पचास आदमियों को बैठाकर बहती हुई नदी की तेज धारा में से इधर-से-उधर ले जाता है। उधर-से-इधर ले आता है। यह मल्लाह की ताकत है।

मित्रो! मल्लाह की ताकत से क्या मतलब है? मैं 'ब्रह्मवर्चस्' की बात कह रहा हूँ। आपका क्या ख्याल है? आप बताना कि हम जहाँ भी गए हैं, वहाँ कितने आदमी आए हैं। अभी भी हम 10-15 जगह होकर के आए हैं। अभी महीना भी नहीं पूरा हो पाया। जहाँ कहीं भी हम गए हैं, लाखों की तादाद में लोग आए हैं। जैसे कि हम सबसे पहले हावड़ा गए थे। वहाँ की रिपोर्ट थी कि तीन दिन में हमने पच्चीस हजार लोगों को खाना खिलाया था।

जहाँ कहीं की भी रिपोर्ट मिली है, जहाँ कहीं कंट्रोल आ गए, वहाँ तो मैं नहीं जानता, लेकिन और कहीं भी कंट्रोल में नहीं आए। खाने-पीने से लेकर के ठहरने तक लोग व्याख्यान सुनने आते हैं। नहीं, व्याख्यान सुनने नहीं आते। फिर किसके लिए आते हैं ? अपनी मुसीबतों की बात लेकर के आते हैं, कठिनाइयों की बात लेकर के आते हैं। दुःख-दरद की बात लेकर के आते हैं और सहायता प्राप्त करने की अपेक्षा लेकर के आते हैं। आप सहायता करते हैं? हाँ, हमने सहायता की है।

मित्रो! हमने लाखों आदमियों की आँखों में से बहते हुए आँसुओं को पोंछा है और आदमियों के चेहरे पर दुःख-दरद की जो गमगीनी, निराशा एवं उदासी छाई हुई थी और न जाने क्या-क्या छाई हुई थी, हमने उनसे कान में जो बात कही है, तो उनका चेहरा हँसता हुआ दिखाई पड़ा है। हमने रोते हुओं को हँसाया है और बरसते हुए आँसुओं को पोंछने की कोशिश की है। हमारे पास बहुत सारी चीजें हैं—जिनसे हम गिरे हुओं को उठाने में, मुसीबत के समय में, मुसीबत से निकालने में हमेशा मदद करते रहे हैं।

लोगों का यह ख्याल है कि आचार्य जी के दरवाजे पर जो कोई गया है, वह खाली हाथ नहीं लौटा है। हमें यह नहीं मालूम है कि यह कहाँ तक सही है और कहाँ तक गलत है, पर हमने कोशिश यही की है। राजा कर्ण सवा मन सोना कमाते थे और सारा-का-सारा दान कर देते थे हमने सुना है कि प्राचीनकाल के ऋषि भी ऐसे ही थे, अपनी तपश्चर्या से जो कमाते थे उसे लोगों के लिए खरच कर देते थे। हमने सुना है कि भगवान बुद्ध जब मरने को हुए, तब लोगों ने उनसे पूछा—"क्या आप मुक्ति में जाने वाले हैं ? स्वर्ग में जाने वाले हैं ?" तब उन्होंने कहा—"नहीं, ऐसी बात नहीं है। हम स्वर्ग और मुक्ति में नहीं जा सकते; क्योंकि जब तक संसार में एक भी आदमी बंधन में बंधा हुआ है, तब तक हम मुक्ति में जाने को रजामंद नहीं हैं।"

कौन है संत?

मित्रो! चार सौ करोड़ इनसान में से जब सब मुक्ति को चले जाएँगे, तब सबसे पीछे वाले इनसान हम होंगे, जो सबको मुक्ति में भेजने के बाद में अपने बारे में विचार करेंगे कि हमको भी मुक्ति पानी चाहिए। हमने सिद्धियों की बाबत विचार नहीं किया है। हमने शान्ति की बाबत विचार नहीं किया है। हमने मुक्ति की बाबत विचार नहीं किया है। हमने स्वर्ग की बाबत विचार नहीं किया है।

हमने एक ही बात की बाबत विचार किया है कि हम दूसरों की मुसीबतें, दूसरों की तकलीफें, दूसरों की कठिनाइयों में क्या कुछ मदद कर सकते हैं? अगर कर सकते हैं, तो हमने भरसक की है और साथ में एक और भी बात की कोशिश की है कि कहीं से जितना हमारा खरच हुआ है, उससे ज्यादा कहीं से आता हुआ चला जाता है। गंगोत्री कभी आपने देखी नहीं है, जहाँ से गंगा निकलती है। गोमुख 6 फुट चौड़ा, 6 फुट लंबा सुराख है, जहाँ से गंगा का पानी निकलता है।

मित्रो! गंगा जब गोमुख से निकली तो यह विश्वास लेकर चली थी कि हम खेतों को पानी देंगे, खलिहानों को पानी देंगे, मनुष्यों को पानी पिलाएँगे और मरे हुओं को वैकुंठ ले जाएँगे। बाग-बगीचों को पानी देंगे। रास्ते में पड़ने वाली नदियों ने कहा—गंगा! आप इस नेक इरादे से चली हैं, तो हम भी आपका सहयोग करेंगे। गंगा बढ़ती चली गई हैं।

गंगा में हिमालय की अनेक नदियों सहित यमुना भी शामिल हुई हैं। गंगा में सरयू शामिल हुई हैं। गंगा में घाघरा शामिल हुई हैं और बंगाल में जाते-जाते गंगा जी की सौ धाराएँ हो गईं। बिहार में जाते-जाते सोनपुर में दो मील चौड़ी हो गईं। पटना में तो पानी के जहाज चलते हैं और वहाँ से आगे जैसा कि आम लोगों का ख्याल था कि गंगा सूख जाएँगी, लेकिन गंगा सूखी नहीं हैं। आप सूखे हैं ? नहीं, हम सूखे नहीं हैं। छोटी-सी हमारी हस्ती, छोटा-सा हमारा व्यक्तित्व है, जिसमें हमने यह फर्ज और यह कर्तव्य इस नीयत से अपने कंधे पर ओढ़ा है कि हम एक संत के तरीके से जिएँगे।

मित्रो! संत उसे कहते हैं, जो दूसरों की मुसीबतों को देखकर पिघल जाता है। मक्खन उसे कहते हैं, जो अपने पर मुसीबत आती है, तो पिघल जाता है और संत उसे कहते हैं, जो दूसरों की मुसीबत को देखकर पिघल जाता है। हमने दूसरों को मुसीबत से निकालने के लिए पिघलना सीखा है और पिघल करके बहना सीखा है, गलना सीखा है; लेकिन हम उत्सुकता की बाबत जानते हैं। इससे हमको यकीन दिलाया हुआ है। हिमालय ने गंगा को यकीन दिलाया हुआ है कि बेटी! तू पानी फैलाने के लिए, प्यास बुझाने के लिए चली है, तो हम विश्वास दिलाते हैं कि हिमालय जब तक जिंदा है, बरफ जब तक जिंदा है, तब तक तेरे पानी में कमी नहीं हो सकती। देखिए आज तक कमी नहीं हुई है।

गायत्री-साधना से ब्रह्मवर्चस्

मित्रो! जिसका नाम है—'ब्रह्मवर्चस्', जिसको ब्रह्मतेज कहते हैं। यह हमने उसी से पाया है, जिसको हम गायत्री मंत्र की प्रैक्टिस कहते हैं। थ्योरी उसे कहते हैं जिससे कि हमको आत्मसंतोष मिलता है। थ्योरी उसे कहते हैं—जिससे कि कर्म करने की हमको प्रेरणा मिलती है, जिससे कि हमको अपने विचारों पर, भावनाओं पर और क्रियाओं पर अंकुश करने के लिए पूरी-की-पूरी सामर्थ्य मिलती है।

ब्रह्मविद्या उसे कहते हैं—जिसमें एक मैग्नेट पैदा होता है, जो देवताओं का अनुग्रह खींच करके नजदीक ले आता है। पेड़ों के अंदर एक मैग्नेट होता है, जो बादलों को पकड़ करके नीचे ले आता है। आदमी के भीतर एक मैग्नेट होता है, जो देवताओं के अनुग्रह, देवताओं के वरदान, देवताओं के आशीर्वाद को खींच करके जमीन पर ले आता है। देवता अपनी मरजी से नहीं देते। आपका क्या ख्याल है कि वे नारियल के बदले देते हैं, धूपबत्ती के बदले देते हैं। अक्षत-फूल के बदले देते हैं और जबान की बकवास के बदले में देते हैं। आपका यह ख्याल गलत है।

अपने भीतर का चुंबक

मित्रो! सही ख्याल क्या है? देवता एक मैग्नेट के दबाव से लोगों की सहायता करने के लिए और वरदान देने के लिए मजबूर होते हैं। हमारे देवता हमसे मजबूर हुए। हमारे भीतर के देवता भीतर से प्रकट हुए हैं और बाहर के देवता बाहर से प्रकट हुए हैं । नदियाँ दो तरह की पाई जाती हैं। एक नदियाँ वे होती हैं, जो ऊपर पहाड़ से झरने झरते हैं और नदियाँ बहती हैं। एक नदियाँ ऐसी होती हैं कि जैसे नर्मदा ऊपर से नहीं निकलती, वरन जमीन से फूटती है।

जमीन में से संपदाएँ फूटती हैं और ऊपर से बरसती हैं। ऊपर से भी बरसती हैं और नीचे से भी फूटती हैं। हमारे भीतर से भी अतींद्रिय क्षमताएँ फूटी हैं और दैवी अनुग्रह बरसा है; क्योंकि एक मैग्नेट हमारे भीतर है। यह मैग्नेट भीतर की सोई चीजों को भी हिला देता है, जगा देता है और एक मैग्नेट है जो ऊपर की चीजों को, देवताओं को भी खींच करके नीचे ले आता है। यह मैग्नेट कहाँ से पाया? वहाँ से पाया, जिसके लिए हमने अपना जीवन समर्पित किया है। जहाँ के लिए हमारे बॉस ने हमको शिक्षण दिया है। वह है—गायत्री की फिलॉसफी और गायत्री की शिक्षा, जिसका हम उद्घाटन करने के लिए आए हैं।

मित्रो! इसके लिए यहाँ एक शक्तिपीठ बनाया जा रहा है। इसके लिए हमने अपना जीवन समर्पित किया है, जिसकी बाबत सुनने के लिए आप सब लोग यहाँ आए हैं और जिसकी बाबत हम बहुत कुछ कहना चाहते हैं। हाँ साहब! आपने किस तरीके से पाया, बताइए। हाँ, रहस्य बताने के लिए हम आए हैं; क्योंकि रहस्य बताऊँगा नहीं, तो एक बड़ी कमी रह जाएगी। हमने लोगों को विश्वास दिलाया है।

विवेकानन्द ने लोगों को विश्वास दिलाया था कि भारतीय संस्कृति के बारे में निराश होने की जरूरत नहीं है। इसमें बहुत सारी जानदार चीजें हैं। हमने लोगों को यह विश्वास दिलाया है कि अध्यात्म के बारे में आपको निराश होने की, नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं है। इसमें भरपूर जानदार चीजें हैं। हमने अपने आप को सबूत के रूप में पेश किया है। आपको यकीन न हो, आपको विश्वास न होता हो, तो आप हमारा इम्तिहान ले सकते हैं और हमारे पीछे एक आयोग बैठा सकते हैं कि आदमी की बाबत जो अफवाहें हैं, इस आदमी के बारे में लोगों के जो खयालात हैं, वे कहाँ तक सही हैं। कहाँ तक इस मामले की तलाश की जाएगी?

मित्रो! हमारे पास लाखों आदमी आते हैं। हर आदमी के पीछे आप इन्क्वायरी कमेटी बैठाइए कि इसका जो ख्याल था, जिस मुसीबत को लेकर के आया था। जो इसको कहा गया था, जो इसको दिया गया था, वह पूरा हुआ कि नहीं हुआ? आप पता कीजिए। आप पता क्यों नहीं लगाते? आप इनकार कर सकते हैं। हमने लोगों की नास्तिकता को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने की कोशिश की है और लोगों से यह कहा है कि आपको अविश्वास करने की जरूरत नहीं है। आप विश्वास कीजिए।

विश्वास करने में अगर आपको गवाह की जरूरत हो, सबूत की जरूरत हो, प्रमाण की जरूरत हो तो आप हमें गवाह के तरीके से, सबूत के तरीके से, प्रमाण के तरीके से इस्तेमाल कीजिए। आपके अंदर क्या बात है? हमारे अंदर एक बात है कि यदि आप पूजा करते हैं, भजन करते हैं, यह सबको मालूम है कि गायत्री मंत्र की विधि हमने आप सबको सिखा दी है। पूजा की विधि के बारे में आप सब आदमी जानकार हैं, लेकिन दो चीजों के बारे में जानकार नहीं हैं। एक बात यह है कि बीज बोना आपने जाना है, लेकिन खाद और पानी लगाना नहीं जानते। खाद और पानी न लगाने की वजह से उपासना का बीज सूख गया। गवर्नमेंट हर साल वृक्षारोपण कराती है, लेकिन सारे-के-सारे पेड़ पौधे सूख जाते हैं, क्योंकि खाद-पानी का इंतजाम नहीं होता।

उपासना में खाद-पानी

मित्रो! हमारी उपासना में खाद और पानी का इस्तेमाल हुआ है। खाद और पानी का इस्तेमाल हमने कैसे किया? वही हमें बताना था। जब मैं चला जाऊँगा, तब फिर लोगों के सामने वही परिस्थितियाँ आ जाएँगी, माँगने वाले फिर आ जाएँगे। पीछे देगा कौन? फिर माँगने वाले तो अभी हैं, फिर धर्म को देगा कौन? भगवान देंगे। नहीं, भगवान एक नियम हैं, भगवान एक कायदा हैं। भगवान एक कानून हैं, भगवान एक मर्यादा हैं। भगवान के यहाँ अँधेरगर्दी नहीं चल सकती। देवी के यहाँ कोई अंधेरगर्दी नहीं है। आपके यहाँ कोई अंधेरगर्दी नहीं है। आप ठीक से इस्तेमाल कीजिए और ठीक वरदान पाइए। गलत इस्तेमाल कीजिए और गलत परिणाम पाइए।

भगवान की परंपरा वही है। यह देवपुरुषों को मदद की परंपरा है। यह भक्तों की परंपरा है। संत एक-दूसरे को दिया करते हैं। संत विचरते हैं। संत दूसरों की सहायता करते हैं। भगवान का एक नाम वह भी है, जिसको सुनकर आपको पसीना आ जाएगा।

भगवान का एक नाम है—रुद्र। भगवान सोमनाथ भी हैं। भगवान केदारनाथ भी हैं। भगवान कसाई भी हैं। भगवान निष्ठुर भी हैं; क्योंकि भगवान एक कायदा हैं, एक कानून हैं, फिर एक बार समझिए। भगवान से भक्तवत्सलता की उम्मीदें मत कीजिए। जो भक्तवत्सलता की उम्मीद करते हैं, तो आप उसकी नाखुशी से हंटर खाने की भी उम्मीद कीजिए।

नहीं साहब! भगवान तो दया करता है। गलत बात है। भगवान दया कैसे करता है? मरघट में जाइए, श्मशान में जाइए। अस्पताल में जाइए न आप, बीमारों को देखिए न आप। भगवान दयालु हैं, भक्तवत्सल हैं। किसने कहा आपसे कि भगवान भक्तवत्सल हैं। वह कामना, मनोकामना पूरी करता है, तो हर साल विद्यार्थी आत्महत्या कर लेते हैं, वो कहाँ जाएँगे? आपको इन बेकार की बातों से दूर रहना चाहिए। भगवान दयालु नहीं हो सकते। भगवान निर्दयी भी नहीं हो सकते।

भगवान एक कायदा हैं। यह कौन कहता है ? संत लोग कहते हैं। संतों का यह फर्ज है, क्योंकि संत की सेवा, संत की गरिमा तभी जिंदा रह सकती है, जब वह दूसरों को दें। देने वाले संत के लिए मैं यह पूछता हूँ कि आप में से कौन देगा? जब हम नहीं रहेंगे। सब माँगते ही चले जाएँगे, तो देने का जिम्मा कौन लेगा? फिर भगवान के प्रति, अध्यात्म के प्रति अनास्था का क्रम चालू हो जाएगा। इसलिए मैं आपसे चाहता था कि आप ग्वालियर निवासियों को वह राज बता करके चले जाएँ, जिससे कि अध्यात्म फायदेमंद हो सकता है। मैं वही बताने के लिए आया हूँ, तो बताइए। बात जरा लंबी है। इसलिए इस लंबी बात को, कि भजन में आप किस तरीके से खाद दे सकते हैं, पानी दे सकते हैं। यह बात मैं बाद में बताऊँगा; ताकि आपका जप ऐसा ही, शानदार हो जाए, जैसा कि हमारा जप शानदार हो गया।

मित्रो! गायत्री कामधेनु है। गायत्री शक्ति का भंडार है। गायत्री विज्ञान है, गायत्री ज्ञान है। दोनों-के-दोनों लाभ उसमें छिपे पड़े हैं। उसका उपयोग आप किस तरीके से करेंगे, किस तरीके से उससे लाभान्वित होंगे, इसकी चर्चा का आप इंतजार कीजिए। आज की बात तो हम यहीं समाप्त कर देते हैं। गायत्री महान है। गायत्री पारस है। गायत्री अमृत है। गायत्री कल्पवृक्ष है। गायत्री ऋषियों की धरोहर है। गायत्री कामधेनु है। गायत्री वह सब कुछ है, जिसमें भारतीय संस्कृति और भारतीय सभ्यता के सारे विज्ञान छिपे हुए हैं। इसमें हमारा उज्ज्वल भविष्य छिपा हुआ है और जिसमें आपकी सुख-शांति के सारे आधार छिपे हुए हैं; लेकिन इसको इस्तेमाल कैसे करेंगे? इसको जानने के लिए आपको कल का इंतजार करना चाहिए। आज की बात हम यहीं समाप्त करते हैं।

॥ॐ शान्तिः॥