उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में (विचारों में) ढूँढ़ेगी।’’ — वन्दनीया माताजी

मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। — पूज्य गुरुदेव

प्रवचन वन्दनीया माताजी

प्राक्कथन!

जहाँ परमपूज्य गुरुदेव वन्दनीया माताजी को 'माताजी' कहते थे, वहीं वन्दनीया माताजी पूज्य गुरुदेव को 'गुरुदेव' कहती थीं। दोनों एक प्राण दो देह की भाँति रहे। पूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण के पश्चात् वन्दनीया माताजी के पास पूज्य गुरुदेव की चर्चा ही प्रमुख कार्य था। उनको वे एक क्षण को भी नहीं भूलती थीं। समय-समय पर वन्दनीया माताजी द्वारा दिए गए प्रवचनों में उनकी वाणी सहज सरल होते हुए भी चिन्तन को झकझोरने की क्षमता रखती है।

वन्दनीया माताजी कहती थीं कि अपने बच्चों के लिए हमारी एक आँख दुलार की और एक आँख सुधार की रहती है। जहाँ वे बच्चों को सुधार की दृष्टि से डाँटती थीं, वहाँ उनका हृदय स्नेह, ममता, वात्सल्य का सागर भी था। वन्दनीया माताजी के प्रवचनों में त्याग-तपस्या भरा उत्कृष्ट जीवन जीने की प्रेरणा भी है साथ में विश्व परिवार की माँ की आत्मीयता, स्नेह और ममता का दर्शन भी है।

इस पुस्तक के माध्यम से वन्दनीया माताजी के प्रमुख प्रवचनों को इस आशा के साथ प्रकाशित किया जा रहा है कि पाठक उनसे प्रेरणा ग्रहण कर अपने जीवन में दिव्य गुणों की अभिवृद्धि करेंगे।


(01): उपासना कैसे करें?
(02): सादा जीवन—उच्च विचार
(03): विचारक्रान्ति जन-जन तक फैलाएँ
(04): कबिरा मन निर्मल भया
(05): यह परीक्षा की घड़ी है
(06): राष्ट्र को धर्म ही बना सकता है
(07): आध्यात्मिक क्रान्ति की सबसे बड़ी आवश्यकता
(08): भगवान भाव के भूखे होते हैं
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