स्वयंसेवा



किसी भी स्वयंसेवी कार्य को चालू रखने के लिये बहुत अधिक अनुशासन, कार्य के प्रति लगन और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाने की दृढ़ इच्छा और यह विश्वास कि हमें कार्य में सफलता मिलेगी, बहुत ही आवश्यक है।

अब इसी बात को ही लें कि मैंने सोचा था कि रोज ही कुछ न कुछ लिखूँगा। लेकिन वह न हो पाया। बीच में और कुछ काम भी आ गये, और मेरे अन्दर भी आलस्य था। साथ ही यह भी कि कुछ लिखने के लिये प्रेरणा नहीं मिली।

फिर आज मैंने क्यों लिखने की सोची? दरअसल आज मेरे एक मित्र, जो कि मेरे रिश्तेदार भी हैं, घर पर आये थे, और उन्होंने कुछ लेख देखे, और उन्हें सराहा भी। इससे प्रेरणा मिली, कि और लोग भी हैं जो मेरे जैसे विचार रखते हैं, और मन में जोश फिर से भर गया।

इससे यह निष्कर्ष मिलता है कि आपको अपने काम में लगा रहना चाहिये, उसका फल चाहे साफ़ दिख रहा हो या नहीं। हो सकता है कि काम को करते हुए आपके दिमाग़ में और विचार आयें जिससे कि काम बेहतर तरह से हो सके। और हो सकता है कि आपकी दिनचर्या का वह काम एक हिस्सा बन जाये, और काम काम ही न लगे।

साथ ही यह भी निष्कर्ष मिलता है कि कोई भी काम करने वाला किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन चाहता है, और यह प्रोत्साहन केवल पैसे से ही नहीं मिलता बल्कि सराहना के तौर पर भी मिल सकता है।

ऐसा क्यों है? क्यों हमें तभी अच्छा लगता है जब कोई और हमारे काम की तारीफ़ करे? क्यों हम खुद ही उन कामों को करने के लिये प्रेरित नहीं होते? प्रेमचन्द ने जो कहानियाँ लिखीं केवल पैसे के लिये नहीं लिखीं, वे कुछ लिखना चाहते थे बस इसलिये लिखीं। हाँ, वह उनका जीवन यापन का साधन तो था, लेकिन उसके लिये, सस्ती वाह वाही लूटने के मकसद से उन्होंने अपनी लेखन शैली को नहीं बदला। कोई महान व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है।

बचपन में जब मैं प्रेमचन्द की कहानियाँ पढ़ता था तो मुझे लगता था कि इसमें कौन सी बड़ी बात है, यह तो कोई भी लिख सकता है! लेकिन नहीं, लगन और कार्य में जुटे रहना, सांसारिक स्थितियों के बावजूद - कोई सरल काम नहीं है, ख़ासतौर पर तब जब वह काम आपकी दिलचस्पी का हो लेकिन लीक से हट कर हो।

आपके विचार?

जालराज

२००३/१/९
Hosted by www.Geocities.ws

1